Thursday, 18 September 2025
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माल रोड़ स्थित होटल विलो बैंक में करोड़ों का पानी घोटाला लेकिन नगर निगम कारवाई से रही कतरा


होटल मालिक कोछड़ के अरूण जेटली के करीबी होेेने की चर्चा

शिमला/शैल। क्या शिमला के मालरोड़ स्थित होटल विलो बैंक का केन्द्रिय वित्त मन्त्री अरूण जेटली के साथ वास्तव में हीे परोक्ष /अपरोक्ष में कोई संबंध है यह सवाल इन दिनो फिर चर्चा में है। स्मरणीय है कि हैरिटेज क्षेत्र में बना यह होटल अपने निर्माण के साथ भी चर्चा और विवाद में रहा है। इसको नियमित करने के लिये सरकार को निमार्ण के वाईलाज तक संशोधित करने पडे थे। तब यह चर्चा उठी थी कि इसके मालिक दिल्ली के सुन्दर नगर के निवासी एच एस कोछड़ के अरूण जेटली के साथ घनिष्ठ संबंध है और उन्होने कोछड़ की सहायता किये जाने की सिफारिश भी की है । सिफारिश का यह खुलासा उस वक्त चर्चा में आया था जब इसके निमार्ण के दौरान के दौरान आयी शिकायतों पर निगम ने मालिकों को काम रोकने के लिये 7-8-2000 , 25-01-2001 और फिर 24-03-2001 को नोटिस भेजे। जब इन नोटिसों पर काम नहीं रोका गया तब नगर निगम अधिनियम की धारा 294 के तहत इसके खिलाफ 07-04-2001 को कारवाई शुरू की गयी।07-04-2001से 05-10-2002 तक करीब 18 महीने चली कारवाई में 26 बार यह मामला सुनवाई में आया और इसी दौरान इसका निर्माण कार्य पूरा करके 28-08-2002 इसकी कम्पलिशन प्लान सौप दी गयी। 

इस कंपलिशन पर चार गंभीर एतराज लगे। पहला एतराज था कि यह निमार्ण सरकार के आदेश TCF(6) 40193 दिनांक 01-06-99 और नगर निगम के आदेश 169/ AP दिनांक 08-06-99 की अवहेलना में किया गया है। दूसरा एतराज था कि माल रोड़ के साथ ओर ऊपर तीन मंजिलें बना ली गयी । तीसरा था कि कुल तीन मंजिलों की स्वीकृति थी जिसमें मालरोड़ से ऊपर केवल एक मंजिल बननी थी तबकि पार्किंग ब्लाक में ही पांच मंजिले बना ली गयी जिसमें तीन को बन्द करके दो को सीढियों से होटल के साथ जोड़ दिया गया । 09-10-2002 को निगमायुक्त द्वारा सरकार को भेजी रिपोर्ट में चैथा एतराज प्लान ओवर राईटिंग और टेंपरिंग का लगाकर संबंधित अधिकारियों /कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई किये जाने की सिफारिश की गयी । लेकिन 04-02-2004 को निगम के संयुक्त आयुक्त ने पांचवी और छठी मंजिल की कंपाऊडिंग फीस तय कर दी तथा साथ ही यह भी लिख दिया कि इन्हे कंपाऊड नही किया जा सकता। इस पर कोछड ने CWP 625/ 2003 डालकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया । उच्च न्यायालय का फैसला 02-09-2003 को आया और उसमें स्पष्ट कहा गया कि दूसरी मंजिल तक हुई अनियमिताओं की फीस ले ली जाये लेकिन पांचवी और छठी मंजिल के किसी भी तरह के उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
इसके बाद सरकार ने 28-02-11 को संशोधित वाईलाज अधिसूचित कर दिये। इस पर कोछड़ ने फिर निगम को कंपालिशन प्लान सौंपा जिसे निगम की सिंगल अम्बरेला कमेटी ने 28-06-12 की बैठक में अस्वीकार कर दिया । इस पर कोछड फिर उच्च न्यायालय पहुंच गया उच्च न्यायालय ने 28-05-12 को विभाग के सचिव को मामले की सुनवाई के निर्देश दिये । इन निर्देशों पर अतिरिक्त मुख्य सचिव ने बतौर अपील अथारिटी कोछड की अपील को संशोधित वाईलाज के नियम 4.9 के तहत स्वीकार कर लिया। उच्च न्यायालय का पहला फैंसला 02-09-2003 को आया और संशोधित वाईलाज 28-02-11 को अधिसूचित हुए। इससे साफ हो जाता है कि नगर निगम को 02-09-2003 के बाद अवैध निर्माण को गिराने की कारवाई करनी जो कि नहीं हुई। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद करीब आठ वर्ष तक निगम ने कारवाई नहीं की। सरकार भी खामोश रही बल्कि वाईलाज बदले गये। स्वाभाविक है कि यह सब किसी बडे के ही दबाव में हुआ होगा।
अब नगर निगम ने 2003 से लेकर अब तक इस होटल का काम पानी के आठ घरेलू कनैक्शनों के सहारे चलते रहने का वाटर घोटाला पकडा है। जबकि पानी के कनैक्शन कमर्शियल होने चाहिये थे। इस वाटर घोटाले की जानकारी मिलने पर निगम की लाॅ ब्रांच से राय लेकर होटल के खिलाफ 2,63,76,202 रूपये की रिकवरी 31 मार्च 2015 तक की निकाली है। कानूनी शाखा से सितम्बर 2015 में राय आ गयी थी जिस पर इतने एरियर का नोटिस तैयार कर दिया गया है लेकिन यह नोटिस अभी तक भेजा नही गया है और ना ही पानी के कनैक्शन बदले गये है। स्मरणीय है कि सितम्बर 2003 में 25 कमरो से शुरू हुए इस होटल में 2007 और 2008 में दस दस कमरे और जुडे। जब यह कमरे जुडे तब इनमें भी पानी की सप्लाई दी गयी होगीं फिर इस होटल के निमार्ण को लेकर लगातार विवाद चलता रहा है । सरकार और नगर निगम का सारा शीर्ष प्रशासन विवाद से पूरी तरह जानकार रहा है । ऐसे में किसी भी स्तर पर कोई कारवाई ना किया जाना कई सवाल खड़े करता है। धूमल और वीरभद्र दोनो के शासन कालों में यह मामला बना रहा है। आज वीरभद्र और उनका बेटा उनके खिलाफ हो रही सी बी आई और ई डी की कारवाई के पीछे अरूण जेटली का प्रमुख हाथ होने का आरोप लगाते आ रहे हैं इस परिदृश्य में आज इस होटल से जुडे इस वाटर घोटाले के खुलासे को भी इसी आईने में देखा जा रहा है।

क्या प्रदेश वित्तिय आपात स्थिति की और बढ़ रहा है?

GSDP का 40 % और राजस्व प्राप्तियों सेे 214 % हुआ कुल कर्जभार
FRBM और बजट मैन्यूअल मानकों की नजरअन्दाजी
स्ंविधान की धारा 204 और 205 की अवमानना
राजभवन और विधानसभा भी बजट प्रावधानों से अधिक खर्च करने वालों में शामिल
सवालों में वित्त सचिव और वित्त मन्त्री

शिमला/शैल। किसी भी सरकार की आर्थिक एवं वित्तिय स्थिति का सही आकलन करने की संवैधानिक जिम्मेदारी राज्यों में तैनात महालेखाकार कार्यालय की रहती है। महालेखाकार कार्यालय द्वारा तैयार किया गया लेखा जोखा हर वर्ष राज्य की विधान सभा में रखा जाता है। सदन में इस लेखे के आने के बाद विधानसभा की पब्लिक एकाऊंटस कमेटी महालेखाकार की रिपोर्ट में दर्ज टिप्पणीयों पर विस्तृत चर्चा करती है और संबंधित विभागो के सचिवों एवम् अन्य शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों से इस बारे में जवाब तलबी करती है सी ए जी की रिपोर्ट में दर्ज टिप्पणीयों को हल्के से लेना कई बार राज्य सरकारों को भारी भी पड़ जाता है। सरकार एक तय वित्तिय अनुशासन और प्रबन्धन के मानदण्ड़ों का उल्लंघन ना करे इसकी पूरी तस्वीर कैग रिपोर्ट में दर्ज रहती है। वित्तिय अनुशासन के लिए ही वर्ष 2005 में एफ आर बी एम एक्ट लाया गया था जिसमें 2011 में संशोधन भी किया गया था। एक्ट के अतिरिक्त इस बजट में मैन्यूअल भी हैै। लेकिन क्या इन सब की अनुपालना की जा रही है? कैग में सरकार के आर्थिक और वित्तिय प्रबन्धन को लेकर गम्भीर सवाल उठाए गए हैं बल्कि कैग की टिप्पणीयां सदन की पी ए सी को भी कठघरे में खड़ा करती हैं।
वर्ष 2014-15 के सदन में आई कैग रिपोर्ट में कहा गया है As per Article 204 (3) of the Constitution of India, no money shall be withdrawn from Consolidated Fund of the State except under appropriation made by law passed in accordance with the provision of this article .
Notwithstanding the above, excess expenditure over budget provision increased from rupees 474.86 crore in 2013-14 to rupees 1,585.69 crore in 2014-15.
As per Article 205 of the Constitution of India, it is mandatory for a state Government to get the excess over a grant / appropriation regularized by the state Legislature. Although no time limit for regularisation of expenditure has been prescribed under the Article, the regularization of excess expenditure is done after the completion of discussion of the appropriation Account by the Public Accounts Committee (PAC). However, the excess expenditure amounting to rupees 5,055.89 crore (Appendix 2.2) for the years 2009 -10 to 2013- 14 was yet to be regularized as of September 2015. 

सदन की बैठकें वर्ष में तीन बार होती हैं ऐसे में वर्ष 2009-10 में समेकित निधि से किये गये अधिक खर्च का अब तक नियमितिकरण न होना सारे वित्तिय प्रबंधंन की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े करता है। क्योंकि बजट प्रावधानो से लगातार अधिक खर्च करना कुछ विभागों का स्वभाव ही बन गया है। प्रदेश के सिंचाई एवम् जन स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2010-11 में 586.72 करोड़ वर्ष 2011-12 में 350.71 करोड़ वर्ष 2012-13 में 285.21 करोड़ वर्ष 2013-14 में 255.33 करोड़ तथा वर्ष 2014-15 में 474.07 करोड़ बजट प्रावधानो से अधिक खर्च करके संविधान की धारा 204 का सीधा उल्लंघन किया है। लेकिन बजट प्रावधानों से हर वर्ष ज्यादा खर्च करने के बावजूूद राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार कम होती जा रही है। 2010-11 में यह वृद्धि दर 18.24 प्रतिशत, 2011-12 में 16.62 प्रतिशत, 2012-13 में 14.76 प्रतिशत, 2013-14 में 12.57 प्रतिशत तथा 2014-15 में यह केवल 11.35 प्रतिशत रह गई है।

प्रदेश के जी एस डी पी में वृद्धि जहां लगातार कमी आ रही है वहीं पर प्रदेश का कर्ज भार हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2010-11 में यह कर्ज 26415 करोड़ था, वर्ष 2011-12 में 28228, 2012-13 में 30442, 2013-14 में 33884 और 2014-15 में यह बढ़कर 38192 करोड़ हो गया है।जिस अनुपात में यह कर्जभार बढ़ रहा है उस पर कैग में गम्भीर सवाल उठाए गए हैं आज कर्ज लौटाने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ रहा है। दूसरी और प्रशासन इस वित्तिय स्थिति को कितनी गम्भीरता से ले रहा है इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि कई विभाग बजट का अधिकांश धन वर्ष के अंतिम मास मार्च में खर्च कर रहे हैं।
ऊर्जा के लिये 2014-15 में 403.78 करोड़ का प्रावधान किया गया था। इसमें मार्च 2015 में विभाग ने 330 करोड़ 82 प्रतिशत खर्च किये हाऊसिंग के लिये 16.52 के कुल प्रावधान में से मार्च में 110.05 करोड़ खर्च किये गये 67 प्रतिशत मध्यम सिंचाई के लिये 22.91 करोड़ में से 22.81 करोड़ 99 प्रतिशत मार्च मे खर्च किये गये, कमांड एरिया विकास के 18.74 करोड़ में से 15.29 82 प्रतिशत मार्च में खर्च हुए और सड़क एवं पुल 21.49 करोड़ में से 16.08 75 प्रतिशत मार्च में खर्च होना इन विभागों की नीयत और कार्यशैली को कठघरे में ला खड़ा करता है।

2014-15 में इन विभागों ने प्रावधानों से अधिक खर्च किया 

संविधान की धारा 204 का उल्लंघन करके बजट प्रावधानों से अधिक खर्च करने वालों में प्रदेश के 16 विभाग शामिल हैं। इनमें राज्यपाल एवं मन्त्रीपरिषद अवकारी एवं कराधान कृषि बागवानी सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, ऊर्जा विकास, विधानसभा, लोकनिर्माण, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, वित्त राजनीति विकास, और उद्योग विभाग तथा सूचना प्रा़द्यौगिकी आदि विभाग शामिल है। इनमें राजस्व से लेकर केपिटल एकाऊंट तक में प्रावधानों से अधिक खर्च हुआ है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों के 42642 उपयोगिता प्रमाण पत्र अभी तक जारी नहीं हो पाये हैं। इस तरह वित्तिय प्रबंधन के सारे मानदण्डो़ पर सरकार लगातार असफल सिद्ध हो रही है। इन मानदण्ड़ो के अनुसार वर्ष 2011-12 में राजस्व धारा शून्य पर लाया जाना था। लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो सका है। आज प्रदेश का कर्जभार राजस्व प्राप्तियां का 214 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत हो चुका है और यह एक अच्छा संकेत नहीं है।

अरूण धूमल कौन है - बहुत कमजोर प्रतिक्रिया है वीरभद्र की

शिमला /शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अरूण धूमल की मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के खिलाफ आक्रामकता फिर से बढ़ने लगी है। शिमला में वीरभद्र सिंह द्वारा 1974 में हाॅलीलाज पांच हजार
में बेचे प्लाट को 2007 में हिमाचल सरकार द्वारा 25 लाख में अधिग्रहण कर लिए जाने का मुद्दा उछालने के बाद ऊना में पत्रकार वार्ता में ई डी द्वारा दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में अटैच की गई अचल सम्पति का मुद्दा उछालकर वीरभद्र को प्रतिक्रिया देने पर विवश कर देना राजनीतिक सन्दर्भाें में अरूण धूमल की एक बडी सफलता है। अरूण धूमल के आरोपों का यह जवाब देना की अरूण धूमल कौन है वीरभद्र के स्तर के मुताबिक एक बहुत ही कमजोर प्रतिक्रिया है। बल्कि इससे अपरोक्ष में यह प्रमाणित हो जाता है कि इन आरोपों का कोई जवाब ही नहीं है क्योंकि छोटे धूमल ने हर आरोपों के दस्तावेजी प्रमाण मीडिया के साथ जारी किए हैं। अरूण धूमल के आरोपों पर मोहर लगाते हुए भाजपा विधेयक ने भी वीरभद्र सिंह को चुनौति दी है कि वह इन आरोपोे पर मानहानि का मामला दायर करने का साहस दिखाए। अरूण धूमल और भाजपा के साथ ही एच पी सी ए ने भी वीरभद्र और उनके बेटे विक्रमादित्य के खिलाफ जोरदार हमला किया बल्कि पहली बार एच पी सी ए ने बिना नाम लिए शान्ता कुमार के खिलाफ भी निशाना साधा है।वीरभद्र पर हो रहे इन हमलों में कांग्रेस संगठन की और से कोई भी उनके बचाव में नहीं आया है।

वीरभद्र की और से आयी कमजोर प्रतिक्रिया पर यह सवाल उठता है कि क्या वीरभद्र और उनकी सरकार के पास धूमल परिवार के खिलाफ कुछ भी नहीं है? जबकि वीरभद्र बार बार धूमल सम्पतियों की जांच को लेकर बड़े बड़े ब्यान दागते रहे हैं। विजिलैन्स ने भी धूमल सम्पतियों की जांच को लेकर छपे समाचारों का कभी प्रतिवाद नहीं किया है। राजनीति का यह स्वभाविक नियम है कि अपने विरोधी के आरोप को सीधे नकारने के साथ ही उसके खिलाफ इतना बड़ा और जोरदार आरोप लगा दो कि उसके आगे आपका आरोप स्वतः ही छोटा पड़ जाए। वीरभद्र और उनकी पूरी टीम इस मोर्चे पर बुरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। इससे यह प्रमाणित होता है कि या तो यह टीम पूरी तरह खाली है या फिर वीरभद्र के प्रति उनकी निष्ठाएं बदल चुकी हैं। इसमें चाहे जो भी स्थिति हो यह अन्ततः वीरभद्र के लिए घातक सिद्ध होगी।
इस समय वीरभद्र और उनके परिवार के खिलाफ सी बी आई और ई डी में दर्ज मामलों की जांच चल रही है। कानूनी प्रतिक्रियाओं का पूरा पूरा लाभ उठाकर इस मामले को यहां तक खींचने में भले ही सफल हो गये हों पर इस मामले को खत्म नहीं करवा पाए हैं। आज जो बड़े बाबू वीरभद्र के चारों ओर घेरा डालकर बैठे हैं उनका अपना स्वार्थ इतना भर ही है कि किसी तरह मुख्यमन्त्री अपना यह कार्यकाल पूरा कर लें। इस कार्यकाल के बाद इन मामलों में उनके परिवार का क्या होता है इससे इस टीम का कोई लेना देना नहीं है। संगठन के तौर पर भी वीरभद्र के गिर्द पुराने हारे हुए नेताओं की एक ऐसी टीम संयोगवश खड़ी हो चुकी है जिसने आगे चुनाव लड़ना ही नहीं है। इस टीम का स्वार्थ भी इतना मात्र ही है कि जब तक वीरभद्र सत्ता में बने रहेंगे तब तक ही उन्हें लाभ मिलता रहेगा। लेकिन जैसे जैसे धूमल/ भाजपा का अटैक वीरभद्र के खिलाफ बढ़ता जाएगा उसी अनुपात में अदालत और जांच एजैन्सीयों पर भी उसका असर पड़ता जाएगा। क्योंकि जब कोई दस्तावेजी प्रमाण मीड़िया के माध्यम से सार्वजनिक होते जाते है तब उन्हे नजर अन्दाज कर पाना संभव नहीं रह जाता है। आज वीरभद्र हर रोज इस तरह की स्थिति में घिरते जा रहे हैं और बहुत सम्भव है कि निकट भविष्य में उनके कुछ विश्वस्तों के खिलाफ भी ऐसे ही हालात देखने को मिलें। क्योंकि सूत्रों की माने तो कई पुराने मामलों को ताजा करने की रणनीति पर काम चल रहा है जिसके परिणाम और भी घातक होंगे। माना जा रहा है कि पिछले दिनों एक पत्रकार के माध्यम से वीरभद्र, धूमल और विक्रमादित्य के बीच में हुई बैठक में जो कुछ भी तय हुआ था उसका तत्कालिन लाभ तो कुछ को मिल गया था लेकिन अब उस बैठक से वीरभद्र के अतिरिक्त अन्य सभी पल्ला झाड़ रहें हैं क्योंकि इस बैठक के बाद बड़ी विजयी मुद्रा में उस पत्रकार को कहा था कि अब भविष्य में अरूण धूमल की जुबान बन्द रहनी चाहिए। लेकिन अरूण धूमल की पत्रकार वार्ताओं से स्पष्ट हो गया है कि यह सब बीते कल की बात हो गई है। राजनीति में इसके कई अर्थ निकलते हैं।

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