शिमला/शैल। सोलन जिले के अर्की चुनाव क्षेत्र की पंचायत कुनिहार में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पिता स्व0 राजा पदमचन्द केे नाम पर क्रिकेट स्टेडियम का निमार्ण किया जा रहा है। इस निमार्ण के लिये यहां पर सैकडों वर्ष पहले 18 वीघे 10 बिस्वे में बने तालाब को खत्म किया जा रहा है। राजस्व रिकार्ड में 18 बीघे 10 बिस्वे में गैरमुमकीन तालाब का इन्दराज है। यह तालाब किसी की प्राईवेट संपति नहीं है बल्कि विलेज कामन लैण्ड है विलेज कामन लैण्ड के इस्तेमाल को लेकर सर्वोच्च न्यायालय जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब मामले में 2011 में एक ऐतिहासिक फैसला दे चुका है। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सारे राज्यों के मुख्यसचिवों को पार्टी बनाते हुए विलेज कामन लैण्ड के आवंटन और इस्तेमाल को लेकर गंभीर दिशा निर्देश जारी किये हुए हैं। इन निर्देशों के अनुसार इस तालाब को खत्म करके यहां पर क्रिकेट स्टेडियम और शापिंग काम्पलैक्स निमार्ण नही किया जा सकता।
स्व0 राजा पदम चन्द के नाम यहां क्रिकट स्टेडियम और शांपिग काम्पलैक्स का निमार्ण करने के लिये कुनिहार पंचायत ने 20.10.15 को अपनी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद इस जगह को ग्रामीण विकास एंवम पंचायती राज विभाग के नाम करने के लिये जिलाधीश से लेकर स्थानीय प्रशासन तक ने बडी तेेज रफ्रतार से काम किया है। क्यांेकि पंचायत के माध्यम से तब तक कोई निमार्ण नही हो सकता जब तक जमीन विभाग के नाम न हो। फिर पंचायत के पास अपने स्तर पर तो इतना पैसा संभव हो नही सकता। इसलिये यह निवेश या तो पंचायती राज और युवा सेवाएं तथा खेल विभाग के माध्यम से आयेगा या आऊटसोर्स किया जायेगा। शापिंग काम्पलैक्स के लिये आऊटसोर्स के माध्यम से भी पैसे का प्रबन्ध किया जा सकता है। लेकिन मजे की बात यह है कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच इस तालाब के सौन्दर्यकरण के लिये सरकार 49 लाख की ग्रंाट दे चुकी है और यह पैसा खर्च भी हो चुका है यह दुसरी बात है कि सौन्दर्यकरण के नाम पर हुए इस खर्च की झलक मौके पर कम मिलती है।
इस प्रस्तावित स्टेडियम के निमार्ण को कुछ लोगों जोगेन्द्र कंवर, रघुवीर कंवर और सतीश ठाकुर आदि ने एक याचिका के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती भी दे रखी है। इस याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने इसके निमार्ण पर स्टे जारी करते हुए संबंधित जिला प्रशासन और विभागों से रिपोर्ट तलब की है। बल्कि इस रिपोर्ट तलबी पर याचिकाकर्ता के वकील रमन पराशर ने यह आपति भी जताई है कि उन्ही विभागों से रिपोर्ट मांगी जा रही है जो इसमें संलिप्त हैं। पराशर की इस आपति पर अदालत ने उन्हें इसमें धैर्य रखने के लिये कहा है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि इस तालाब को खत्म करने के लिये करीब 2000 टिप्पर मिटी और मलवे के डाले गये हैं और इसमें संबंधित विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस आश्य की एक सीडी भी अदालत में सौंपी गयी है। उधर पंचायत ने अपने जवाब में यह कहा है कि जो संस्था यह याचिका लेकर आयी है उसके कई सदस्यों ने यहां पर अवैध कब्जे तक कर रखे हैं।
यह प्रस्तावित निमार्ण पंचायत के प्रस्ताव पर किया जा रहा है। लेकिन पंचायत के इस प्रस्ताव पर यह सवाल उठ खडे़ हुए हैं कि जब यह प्रस्ताव उपप्रधान की अध्यक्षता में पारित किया गया था तब प्रदेश में आचार संहिता लगी हुई थी। इस प्रस्ताव के बाद एक और प्रस्ताव पंचायत की ओर से सामने आया है और यह प्रस्ताव उस दिन पारित किया गया जब नवनिर्वाचित सदस्य शपथ ग्रहण कर रहे थे। इस तरह इन दोनों प्रस्तावों पर सवालिया निशान लग जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि एक ओर यहां सौन्दर्यकरण के नाम पर सरकार का करीब 50 लाख रूपया लगा दिया जाता है। यह पैसा भी पंचायत के माध्यम से ही खर्च होता है और आज वही पंचायत उस तालाब को समतल करके मुख्यमन्त्राी के स्व0 पिता राजा पदम चन्द्र के नाम पर क्रिकेट स्टेडियम और शापिंग काम्पलैक्स के निमार्ण का प्रस्ताव पारित करती है। कुछ लोग पंचायत के इस कदम को अगले विधानसभा चुनावों के आईने में भी देख रहे हैं।
शिमला/शैल। ई डी ने वीरभद्र एवं अन्य के खिलाफ 27-10-15 को मनीलाॅडरिंग निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। 23-03-16 को इसमे प्रोविजनल अटैचमैंट आदेश जारी करते हुए करीब आठ करोड की चल-अचल सम्पति
अटैच कर दी गई है। जो संपतियां अटैच हुई हंै उनमे वीरभद्र की 27-03-10 को ली गई एक करोड़ की एल आई सी पाॅलिसी, यूको बैंक विधान सभा खाते से 9,84,652, पी एन बी रामपूर में 4,36,000, स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया पार्लियामैंट हाऊस में 28,43,957 रूपये प्रतिभा सिंह द्वारा 28-05-10 को ली गई एक करोड की पाॅलिसी और स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया सराहन में 2,43,000, स्टेट कोआपरेटिव बैंक शिमला में 14,34,563, की एफ डी आर, स्टेट स्टेट बैंक आॅफ पटियाला में दी माल शिमला में 67,332, स्टेट कोआपरेटिव बैंक दी माल शिमला में 1,51,332, स्टेट कोआॅपरेटिव बैंक सराहन में 2,98,490, स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया पार्लियामैंट हाऊस में 15,70,272 रूपये ,विक्रमादित्य की 31-12-10 को ली गई 41,29,908 रूपये की पाॅलिसी, आई सी आई सी आई बैंक शिमला में 8,87,272 रूपये की एफ डी आर, स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया पार्लियामैंट हाऊस में 3,97,636 रूपये, एच डी एफ सी दी माल शिमला में 8,71,931 रूपये और अपराजिता सिंह के आई सी आई सी आई बैंक दी माल शिमला के दो खातों में क्रमशः 5 लाख और 85,639 रूपये अटैच हुए हैं। इसके अतिरिक्त ग्रेटर कैलाश पार्ट -1 नई दिल्ली में 4,47,20,000 का मकान नम्बर w 122 भी अटैच किया गया है। यह मकान प्रतिभा सिंह के नाम पर है। एल आई सी की सारी पाॅलिसियां संजौली ब्रांच से ली गई हैं। इस सारी संपति को प्रोसीडज आॅफ क्राईम माना गया है।
ई डी के अटैचमैन्ट आदेश मे साफ कहा गया है कि This has been a text book case of money laundering where MOU was fabricateed to show proceeds of crime as bonafide funds, then introduction into the banking channel, layering by moving through insurance compaines and different bank accunts and finally integrating into the system in form of purchase of property.
In veiw of the same it appears that proceeds of crime of Rs. 3,89,97,500/- deposited in PNB bank, 5,00,000/- in HDFC bank in the name of Shri Anand Chauhan and Rs. 50,00,000/- in PNB bank and of Rs.5,14,87,200/- in the name of Shri Virbhadra Singh, Smt. Pratibha Singh, Shri Vikaramaditya Singh and Ms. Aprajita Singh. According to Discussion in the Paras supra, there is reasonable belief that these proceeds of crime are prima facie involved in the offence of money laundering an thus liable for attachment by issuing Provisional Attachment order under the provisions of PMLA, 2002.
3. However, it has been seen that some of the LIC policies have been redeemed prematurely and only four policies are in force. Out of these four LIC policies, in case of one LIC policy in the name of Shri Vikramaditya singh S/o Shri Virbhadra singh No. 153234865 a premium of Rs. 4,87,200/- only has been paid from Laundered proceeds of crime whereas the payment of remaining four installments valued at Rs. 19,48,800/- has been made from sources still under investigation. The said policy is not being considered for attachment as of now. The two LIC policis in the name of Shri Vibhadra singh numbering 153597194 & Smt Prtibha singh numbering 153599300 and one policy of Shri Vikramaditya singh numberd 153924400 in vogue have been acquired from Proceeds of crime.
इस निष्कर्ष पर पहंुचने के लिए ई डी ने बैंक खातों और एल आई सी पाॅलिसियों का विस्तृत विवरण खंगालते हुए पाया कि On Scrutiny of bank accounts and cross verification with the amounts received on account of en cashed LIC policies it was revealed that smt. Pratibha singh encashed 2 LIC Policies bearing No. 153596149 and 153596173 on 10-05-2014 for an amount of Rs. 66,42,000/ each and credited in her Bank A/c bearing No. 10023820637 maintained with State Bank of India Parliament House, New Delhi. on 12.05.2014. One LIC policy bearing No. 153234331 in her name was encashed on 27-05-2014 for amount of Rs. 1585639/- and credited in her Bank A/C bearing No. 10023820637 maintained with state Bank of India, Parliament House ,New Delhi.
5. LIC policy in the name of Sh. Virbhadra singh bearing No. 153379960 was encashed on 10-05-2014 for amount of Rs. 66,42,000/- and credited in this Bank A/C bearing No. 315586922870 maintained with State Bank of India, Parliament House New Delhi on 12-05-2014 .Sh. Virbhadra singh further transferred this amount of Rs. 66,00,000/- through NEFT in the account No. 10023820637 of state Bank of India, parliament House New Delhi of smt. Pratibha Singh.
6. Sh. Vikramaditya singh encahed 2 LIC policies in his name bearing No. 153596172 and 153596174 on 12-05-2014 for value of Rs. 66,42,000/- each .The encashe amount was credited in his account No. 31596514960 with State Bank of India, Parliament House New Delhi. He Further transferred amount of Rs.1,32,00,000/- vide Cheque No. 791252 into the account No. 10023820637 of state Bank of India Parliament House New Delhi of Smt. Pratibha singh on 12-05-2014. further an amount of Rs. 85,00,000/- was transferred by him to smt. Pratibha Singh on 19-05-14 wide cheque No. 791253.
ई डी को यह विवरण खंगालने की आवश्यकता इसलिए पडी क्योंकि वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह बार बार बुलाये जाने पर भी ई डी में पेश नहीं हुये हर सम्मन पर आधी- अधूरी सूचना ऐजैन्सी को देते रहे वीरभद्र सिंह के वकील ने भी 11.01.16 को पेश होकर पूरे वांच्छित दस्तावेज ई डी को नहीं सौंपे। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि In response to the summons dated 16-11-2015 Shri. Virbhadra Singh Submitted a latter dated 10-1-16 that he being Chief Minister of the state has certain constitutional obligations and his schedule till 15th february 2016 was prepared well in advance hence will not be appearing . His advocate appeared on 11.01.2016and provided photocopies of certain documents.Thereafter despite repeated adjournments for 05-01-16, 12-01-16, 28-01-16, 11-03-16, 17.03.2016 & 21/03/2016, The documents sought from him were not furnished . Thus he did not comply and kept on buying time by submitting piecemeal information. No specific reply was given to queries raised regarding source of investment in LIC policies/immovable properties. Thus he did not make available the information asked from him on 16/11/2015 for four months. Therefore his statement could not be recorded. Moreover an adverse presumption can be attached in terms of Section 114 of Evidence Act.
8. Similarly Smt. Pratibha singh was summoned on 04.03.2016 to appear in person or through her authorized representative for 11/03/2016 , 17/03/2016, 21-03-16 but she kept on seeking time through her representative by providing piecemeal information and showing her preoccupation. No Statement could be recorded despite several opportunities afforded to them.
9.Despite non submission of requisite documents by Shri Virbhadra singh & Smt. Pratibha singh /their authorized representative as discussed in para Supra the statements and documents submitted by shri Chuni Lal Chauhan , Shri Anand Chauhan, Shri Megh Raj Sharma & shri BIshambar Dass reveal that the payments shown to have been received from agriculture produce have been invested in LIC policies. Therefore investigation was conducted to track the flow of funds to and from LIC policies
ई डी का अटैचमैन्ट आदेश अभी तक मुख्यतः एल आई सी पाॅलिसियों के माध्यम से हुए निवेश और उनसे अर्जित संपतियों तक ही आधारित रहा है। लेकिन ऐजैन्सी ने साफ कहा है कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के माध्यम से आये निवेश और उससे बनाई संपतियों को लेकर जांच जारी है। इस जांच में और क्या कुछ सामने आता है इसका खुलासा तो आने वाला समय ही करेगा। लेकिन जांच ऐजैन्सी के सूत्रों के मुताबिक इसकी जांच का दायरा बहुत विस्तृत होने वाला है और निकटस्थ इस जांच के दायरे में आने वाले हैं और संभवतः इसी आशंका के कारण वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह अभी तक ई डी के सामने पेश होने से कतरा रहे हैं।
शिमला/शैल।भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक शिमला के विधायक पूर्व सांसद एवम् पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश भारद्वाज ने केन्द्रिय गृह मन्त्री राजनाथ सिंह को एक पत्र लिखकर प्रियंका गांधी बाड्रा के छराबड़ा में बन रहे भवन की निमार्ण अनुमति को तुरन्त प्रभाव से वापिस लेकर इस निर्माण को रोकने का आग्रह किया है। भारद्वाज ने तर्क दिया कि यह निमार्ण राष्ट्रपति आवास स्ट्रीट और कल्यानी हैली पैड के दायरे में आता है। यह दोनों ही स्थान अतिविशिष्ट लोगों के लिये है और इस कारण सह निर्माण उनकी सुरक्षा के लिये खतरा हो सकता है। खतरे के लिये तर्क देते हुए भारद्वाज ने लिखा है कि This reason is ridiculous. There is no guarantee that an SPG protectee cannot indulge in unlawful or terrorist activities. Shri P.V. Narsumha Rao, an SPG protectee was convicted in JMM Bribery case. His son Shri P.V. Prabhakar Rao another SPG Protectee was involved in Rs. 133 Crore Urea Scam. Being an SPG Protectee is not a parmanent status. it is only for one year after a Prime Minister demist office (SPG Act of 2003 (Amended) Shri Robert Vadra,husband of Smt Priyanka Gandhi Vadra is already under cloud for various fraudulent land deals. जहां प्रियंका का घर बन रहा है वहां पर 2002 में धूमल शासन के दौरान नौ सेना अधिकारी देवेन्द्र जीत सिंह ने 16 विस्वे जमीन खरीद कर वहां काॅटेज बनाने की अनुमति मांगी थी। देवेन्द्रजीत का अनुमति आग्रह आने पर प्रदेश के प्रधान सचिव गृह ने 24.08.2002 को पत्र भेजकर कहा कि वह एडीजीपी सी.आई.डी. से विचार विर्मश करके इस पर अपनी राय दें। इसमें राष्ट्रपति सचिवालय से भी राय लेने के लिये कहा गया था। इस पर 12.06.03 को वीरभद्र शासन में डीजीपी ने गृह विभाग को सूचित किया कि सुरक्षा कारणों से ऐसी अनुमति नही दी जा सकती और सरकार की इस राय से 1.7.2003 को देवेन्द्रजीत सिंह को भी सूचित कर दिया गया। इस पर देवेन्द्र जीत ने 17.8.04 को फिर सरकार को प्रतिवेदन भेजा जिसे 12.10.04 को राष्ट्रपति के सचिव को भी भेज दिया गया। इस पर 11.11.04 को राष्ट्रपति सचिवालय से यह जवाब आया "With reference to your No. Home (A) -E-(3) 42/2003 -II dated 12.10.2004, I am directed to state that the responsibility for of India when the President is at the Retreat /Shimla is that of the State Government and the state Government should give a considered opinion in the matter. However , in terms of the long -term perspective and consequences that may follow in granting such a permission and after taking due consideration some embargo may have to be placed by notifying certain area surrounding the Retreat as ' No Construction Zone , Otherwise , the possibility of other such demand snowballing on the strength of the present precedent cannot be ruled out."
राष्ट्रपति सचिवालय केे जवाब के बाद आईजीसी आई डी ने 5.11.04 को प्रधान सचिव गृह को पत्र भेजकर रीट्रीट के खसरा न0 264 से 269 तक निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये। इसके बाद 14.3.08 को फिर धूमल शासन में सरकार स पूछा गया कि यहां पर एक मंजिला निमार्ण की अनुमति दी जा सकती है या नही। प्रदेश सरकार ने फिर 4.4.08 को यह पत्र राष्ट्रपति के सचिव को भेज दिया जंहा से 16.5.08 को आये पत्रा के मुताबिक निमार्ण की अनुमति नही दी गयी। लेकिन सभी जानते है कि इस भवन का निमार्ण धूमल शासन मंें ही शुरू हो गया था और अब वीरभद्र शासन में वाहय निमार्ण पूरा होने के बाद आन्तरिक काम भी लगभग पूरा होने वाला है। यदि इसके डिजायन में दो बार परिवर्तन न किये जाते तो शायद धूमल शासन में ही पूरा हो जाता।
लेकिन अब सुरेश भारद्वाज के पत्रा से जो सवाल उभरे हैं उनमें यह सभी मानेगे की जिस तरह से पूर्व प्रधानमन्त्री नरसिंह राव को जे एम एम प्रकरण पर बने अपराधिक मामलें में सजा हुई है और उसके बाद उनके बेटे प्रभाकर राव को 133 करोड के यूरिया स्कैम में सजा हुई है। उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई भी अतिविशिष्ट व्यक्ति किसी भी अपराधिक मामलें में संलिप्त हो सकता है और यह संभावना तो हर के बारे में एक बराबर बनी रहेगी चाहे वह पूर्व में रहे शासक हों या आज के शासक हों। भारद्वाज की यह चिन्ता और आंशका सब पर एक बराबर लागू होती है।
इसी संद्धर्भ में दूसरा सवाल उठता है कि जब 5.11.04 को आई जी सी आई डी ने खसरा नम्बर 264 से 269 तक के क्षेत्र को No Construction Zone घोषित करने का आग्रह किया था तो उस पर वीरभद्र और धूमल दोनों ही सरकारों ने कोई कारवाई क्यांे नही की? दोनों ही सरकारों ने यहां पर जमीन खरीद की अनुमतियां क्यों दी। बल्कि धूमल शासन में तो पहले देवेन्द्र सिंह और बाद में प्रियंका गंाधी को अनुमति दी गयी। वीरभद्र शासन में भी यही हुआ। फिर इस अतिविशिष्ट क्षेत्र में किस तरह की निमार्ण गतिविधियां चल रही है। क्या इस बारे में केन्द्र सरकार को कभी कोई जानकारी ही नही मिल पायी? मोदी सरकार को भी सत्ता में आये दो वर्ष हो गये हैं इसलिये आज सुरेश भारद्वाज के पत्र से वीरभद्र से लेेकर मोदी तक की सरकार सवालों के घेरे में आ खडी होती है।
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