Thursday, 18 September 2025
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दिल्ली उच्च न्यायालय का वीरभद्र को दस्तावेज देने से इन्कार और हिमाचल उच्च न्यायालय ने आनन्द चौहान से पूछा मेनटेनेविलिटीे का आधार


शिमला/शैल। सीबीआई और ई डी द्वारा वीरभद्र के आवास और अन्य स्थानों पी की गयी छापामारी के आधार बने तथा जांच के दौरान जुाये गये दस्तावेज उन्हे सौंपने की गुहार दिल्ली उच्च न्यायालय से लगाई थी जिसे अन्ततः अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। 

लेकिन यह रिकार्ड अदालत के सामने अश्वय रखा जायेगा जिससे यह सन्तोष किया जा सके की जांच ऐजैन्सी ज्याती नही कर रही है। अदालत ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि जांच के दौरान रिकार्ड देने का कोई प्रावधान नही है। इस अस्वीकार का असर ई डी द्वारा की गयी संपति अटैचमैन्ट के आदेश को निरस्त करने की गुहार पर भी पड सकता है दिल्ली उच्च न्यायालय के इस अस्वीकार के बाद यह माना जा रहा है कि अब जल्द ही चालान अदालत तक पहुंच जायेगा। क्योंकि 173 सी आर पी सीे के तहत जो रिपोर्ट अदालत में फाईल होने की जो अनिवार्यता ई डी के 2002 के मूल अधिनियम में थी वह जनवरी 2013 में अधिसूचित हुए संशोधन में समाप्त कर दी गयी है।
दूसरी ओर वीरभद्र के साथ सह अभियुक्त बने आनन्द चौहान और चुन्नी लाल ने भी मामलों में अब हिमाचल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अपने लिये उसी तर्ज पर राहत मांगी है। प्रदेश उच्च न्यायालय में इतनी देर बाद आयी इस याचिका पर रजिस्ट्री में कुछ एतराज लगाये गये थे जिन्ह दूर करने के बाद सुनवाई के लिये आयी इस याचिका पर अदालत ने इसकी मेनटेनेविलिटी का आधार आनन्द चैहान से पूछा है। इस याचिका पर प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में अलग तरह की अटकलों का दौर चल पड़ा है।
क्योंकि यदि आनन्द चैहान और चुन्नी लाल ने यह याचिका उसी समय डाल दी होती जब वीरभद्र को राहत मिली थी तब इसको लेकर कोई और सवाल न उठते। लेकिन अब जब यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो चुका है तब भी इस याचिका का हिमाचल उच्च न्यायालय में दायर किया जाना कई सवालों का जन्म देता है क्योंकि जब यह याचिका हिमाचल उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आयी उसी दिन दिल्ली उच्च न्यायालय मे ईडी ने वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, आनन्द चैहान, चुन्नी लाल और विक्रमादात्यि तथा अपराजिता सिंह को तलब कर रखा था। इस पूरे परिदृश्य में यह माना जा रहा हैं कि इस प्रकरण में शीघ्र ही कुछ बड़ा घटने वाला है।

सचिवालय से मन्त्री नदारद क्यों

शिमला/शैल। वीरभद्र के मन्त्री प्रदेश सचिवालय से अकसर नदारद देखे जा रहे हैं। मीडिया में यह नदारदगी सुर्खियां भी बटोर चुकी है। इस पर वीरभद्र कई बार मन्त्रियों को नसीहत और निर्देश भी जारी कर चुके हैं कि वह कम-से-कम सप्ताह में तीन दिन सचिवालय में रहकर लोगों की समस्याएं सुनें और उन पर काम करें। सुधीर शर्मा पर तो मुख्यमन्त्री गैर हाजिरी को लेकर व्यंग्यात्मक उलाहना भी कर चुके है। लेकिन मुख्यमन्त्री के निर्देशों का विद्या स्टोक्स और धनीराम शांडिल के अतिरिक्त और किसी पर कोई असर नही हुआ है और इनका यह है कि इनके पास और कहीं जाने की जगह ही शायद नहीं है। मन्त्रियों का असर बड़े बाबूओं पर भी बराबर देखने को मिल रहा है कुछ अधिकारी तो नियमित रूप से हर सप्ताह दो-तीन दिन तक सचिवालय में नदारद रहते हैं। मजे कि बात तो यह है कि यह मन्त्राी लोग अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों के बाहर भी नहीं देखे जा रहे हैं।
सचिवालय से मन्त्रियों का लगातार नदारद रहना जनता के लिए चिन्ता और चिन्तन का विषय बनता जा रहा है। क्योंकि मुख्यमन्त्री भी यदि दिल्ली की यात्रा पर नहीं है तो वह भी प्रदेश के किसी-न-किसी विधानसभा क्षेत्रा के दौरे पर ही रहते हैं। मुख्यमन्त्री के निर्देशों का उनके मन्त्रियों पर असर क्यों नही हो रहा है जब इस बारे थोडी जानकारी जुटायी गई तो यह सामने आया है कि वीरभद्र के मन्त्री ही मुख्यमन्त्री की हर गतिविध् िपर पूरी बारीकी से नजर रख रहे हैं। दिल्ली में सीबीआई और्र इ. डी. के मामलों में कब क्या हो रहा है यह उनको वीरभद्र से ज्यादा जानकारी है। मुख्यमन्त्री कब हाई कमान के किस सूत्र से मिल रहे हैं और हाई कमान का नजरिया उनको लेकर क्या चल रहा है इसकी भी पूरी खबर ये लोग रख रहे हैं। कुछ लोग तो कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद के माध्यम से इनके केसों की भी पूरी जानकारी रख रहे हैं। ऐसे ही एक जानकार का दावा है कि इन वकीलों ने वीरभद्र के साथ-साथ हाई कमान को भी इन केसों के संभावित अन्तिम परिणामों से आगाह भी कर रखा है। चर्चा है कि इसी सबको सामने रख कर वीरभद्र सिंह ने हाई कमान को पंजाब से पहले ही प्रदेश विधानसभा के चुनाव करवा लिए जाने का सुझाव तक दे रखा है। छठी बार मुख्यमन्त्री बने वीरभद्र की राय को हाई कमान ने पूरी गम्भीरता से लिया है। लेकिन इनकी जानकारी जैसे ही बाकी मन्त्रियों तक अपने-अपने सूत्रों से पहुंची है तभी से उन्होने भी अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों का रूख कर लिया है।

अगले मुख्यसचिव को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नही

शिमला/शैल। प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव 31 मई को सेवानिवृत हो रहे हैं । इस नाते प्रदेश के अगले मुख्य सचिव को लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में इन दिनों अटकलों और चर्चाओं का दौर चला हुआ है। यहअटकलें इसलिए हैं कि सेवानिवृत हो रहे पी.मित्रा के बाद वरियता क्रम यह लोग हैं सर्व श्री दीपक सानन, अजय मित्तल, विनित चौधरी, उपमा चौधरी डा.आशा राम सिहाग और वी सी फारखा। अजय मित्तल ने भारत सरकार में सूचना एंवम प्रसारण मन्त्रालय में सचिव का पदभार संभाल लिया है इसलिये उन्हें इस रेस से बाहर माना जा रहा है। दीपक सानन के खिलाफ एचपीसीए मामले में अभियोजन की स्वीकृति सरकार बहुत अरसा पहले जारी कर चुकी है और वह अभी तक यथास्थिति बनी हुई है। सानन एचपीसीए के उसी मामले में अभियुक्त नामजद है जिसमें पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी नामजद है। सानन को मुख्यसचिव बनाने के लिये यह मामला वापिस लेना पडता है। सानन के खिलाफ मामला वापिस लेने की सूरत में प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ भी मामला लगभग खत्म ही हो जाता है। अभी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सेवा निवृत हुए निदेशक सूचना एंवम जन संपर्क डा. एम.पी.सूद को सेवा विस्तार देने के लिये इस कारण से इन्कार कर दिया क्योंकि उनके खिलाफ भी विजिलैन्स ने उसी मामले में अभियोजन की स्वीकृत मांग रखी है। जिसमें ए.एन. शर्मा भी अभियुक्त नामजद है। डा. सूद के खिलाफ मामला वापिस लेने से ए. एन.शर्मा के खिलाफ भी मामला कमजोर पड़ जाता। ऐसे परिदृश्य में सानन को बनाने से धूमल के खिलाफ मामला कमजोर करने का जोखिम वीरभद्र उठा पायेगें ऐसा लगता नही है।
सानन के बाद विनित चौधरी की बारी आती है। उनकोे दो बार कार्यवाहक मुख्य सचिव की जिम्मेदारी वीरभद्र सौंप चुके हैैं। उनके खिलाफ दिल्ली के ऐम्ज का जो मामला चर्चा में है उसमें अभी तक कोई एफ.आई.आर. दर्ज नहीं हेै । ऐम्ज के तत्कालीन सीबीओ संजीव चुर्तवेदी के माध्यम से जो पत्र प्रदेश सरकार को एक समय आया था उस पत्र को सीबीसी निरस्त कर चुके है। ऐसे में चौधरी के खिलाफ भी प्रदेश सरकार के रिकार्ड पर कुछ नही है। विनित के बाद उपमा चैधरी है और वह बिल्कुल पाक साफ है। उपमा के बाद डा. सिहाग हैं जो इस समय केन्द्र में है उनके बाद वीसी फारखा आते हैं। फारखा मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव भी है और उनके खिलाफ भी रिकार्ड पर कुछ नही है। भले ही सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता विनय शर्मा ने एचपीसीए के खिलाफ आरटीआई में कुछ जानकारियां जुटाकर अदालत में जिन लोगों के खिलाफ इस प्रकरण में मामला दर्ज करने की गुहार लगायी थी उनमें फारखा का नाम भी शामिल था। फारखा के पास धूमल के शासन काल से लेकर वीरभद्र के शासनकाल में भी लम्बे समय तक युवा सेवाएं एंवय खेल विभाग की जिम्मेदारी रही है इस जिम्मेदारी के नाते स्वाभाविक है कि वह धमूल और अनुराग के भी विश्वस्त रहेे हांेगे। बल्कि विजिलैन्स के हल्कों में तो यह आम चर्चा है कि एचपीसीए और धूमल के मामलों में इन्ही संबधों के कारण सरकार से अपेक्षित सहयोग नही मिल रहा है। आज मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव होने के नाते वह उनके विश्वस्त है और इसी विश्वस्तता के आधार पर उनके अगला मुख्यसचिव बनने की संभावनाएं प्रबल मानी जा रही है।
मुख्य सचिव कौन बन सकता है इसके लिये 30 वर्ष के सेवा काल के अतिरिक्त सरकार के रूल्ज आॅफ विजनैस में और कुछ नही है। लेकिन आई ए एस और आई पी एस देश की ऐसी सेवाएं हैं जहां वरियता को सामान्यतः नजर अन्दाज नही किया जाता है। नजर अंदाज तभी किया जाता है जब किसी के खिलाफ आपराधिक मामलें में अभियोजन की अनुमति मांग रखी हो। लेकिन रूल्ज आॅफ विजनैस में नजर अन्दाज करने की छूट भी नही है। फिर अब तो ऐसी नियुक्तियों और इनके स्थानान्तरणों के लिये आदेशों से पहले मामला सलैक्शन कमेटी में रखने का प्रावधान है और उसमें कमेटी को अपने फैसले के आधार रिकार्ड पर लाने होते है तथा इनकी जानकारी आरटीआई में ली जा सकती है। अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टो में भी प्रतिकूल टिप्पणीयांे की जानकारी संबधित अधिकारी/कर्मचारी को उपलब्ध करवाई जाती है और ऐसी टिप्पणीयों को चुनौती देने का भी प्रावधान है। सलैक्शन कमेटी के गठन की अवधारणा के पीछे भी यही मंशा रही है कि इसके लिये आगे चलकर राजनीतिक नेतृत्व/ मुख्यमन्त्री पर जिम्मेदारी न डाली जा सके। ऐसे में मुख्यसचिव के चयन के लिये जो भी कमेटी बनेगी उसके लिये सानन के अतिरिक्त दूसरे दावेदारों को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही होगा। फिर फारखा के बनाये जाने पर बाकियों को उनके समकक्ष लाना भी आसान नही होगा। आईएएस और आईपीएस में तो सिनियर अपने जूनियर को रिपोर्ट करना या फाईल भेजना तक गवारा नही करते है।
ऐसे में फारखा की ताजपोशी के साथ वरिष्ठोें का सहयोग वीरभद्र को मिलना आसान नही होगा। वीरभद्र इस समय केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों का जिस कदर शिकार चल रहे हैं उसमें इस तरह की प्रशासनिक असहजता में कई तरह के नये खतरे भी पैदा हो सकते है। इस परिदृश्य में वरियता को नजर अन्दाज करके वीरभद्र फारखा की ताजपोशी करने का दम दिखा पायेेेंगे इसको लेकर तस्वीर साफ नही हो पायी है।

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