शिमला/शैल। पिछले कुछ अरसे से प्रदेश की राजधानी शिमला को निखारने संवारने का काम बडे़ पैमाने पर बड़े जोरों से चला हुआ है। इस विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल पर चल रहे इस काम पर स्वाभाविक रूप से नजर जा रही है काम को लेकर जितने मुहं उतनी कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। शहर में हो रहा यह सारा काम यहां नगर निगम नही करवा रही है बल्कि इसका जिम्मा प्रदेश के पर्यटन विभाग ने उठा रखा है। इस काम के धन का प्रावधान एशियन विकास बैंक से ऋण लेकर किया जा रहा है। इस ऋण का 63% केन्द्र सरकार और 37% प्रदेश सरकार के जिम्मे है। प्रदेश के बिलासपुर, चम्बा, कांगडा, कुल्लु, मण्डी, शिमला और ऊना जिलों में 256.99 करोड़ के काम पर्यटन विभाग करवा रहा है। इसमें से 153,71,21,104 करोड़ के आबंटित हो चुके हैं और इन पर काम चल रहा है। शेष कामों पर भी जल्द ही काम शुरू हो जाने की संभावना है।
शिमला में जो काम किये जा रहे है उनमें माल रोड की रेस्टोरेशन का काम जून 2014 में 23,72,63,367 रूपये में आंवटित हो गया था और बारह महीने में पूरा होना था। टाऊन हाल शिमला की रेस्टोरेशन का काम सितम्बर 2014 में अवार्ड हो गया था। यह काम 18 माह में पूरा होना था और इसकी लागत 8,01,53,020 कही गयी है टूटीकण्डी वैरियर पर बहुमंजिला पार्किंग 64,57,94,064 रूपये में पूरी होनी है। इन कामों की अनुंबधित समयावधि पूरी हो चुकी है लेकिन अभी तक काम पूरे नहीं हुए हैं। इस सबमें महत्वपूर्ण यह है कि इन कामों को अंजाम दे रहे ठेकेदारो को सरकार ने विशेष राहत देते हुए इनको सारे प्रभावी करों से राहते दे दी हैं। जब इन कामों के लिये टैण्डर आमन्त्रिात किये गये थे तब टैण्डर शर्तो में इस तरह की राहत का कोई जिक्र नही था। यह राहत बाद में विभाग ने अपने स्तर पर फैसला लेकर दे दी है। इस तरह करों के रूप में इन ठेकेदारों को करोड़ो का लाभ अतिरिक्त मिल गया है। कराधान विभाग इस तरह की राहत देने के लिये कैसे तैयार हो गया? लोक निर्माण और हाऊसिंग बोर्ड में काम करने वाले ठेकेदारों को भी क्या इस तरह की राहत मिल पायेगी? इस संबंध में कराधान विभाग में कोई भी कुछ कहने को तैयार नही है। पर्यटन विभाग जो सिविल कार्य ठेकेदारों से करवा रहा है उसमें भी वही निमार्ण सामग्री प्रयोग होती है जो लोकनिमार्ण और हाऊसिंग बोर्ड में होती है।
पर्यटन विभाग यह सारा काम एशियन विकास बैंक से लिये गये ऋण से करवा रहा है। यह ऋण कैसे खर्चा जाये इसके लिये विभाग ने आठ कन्सलटैन्ट नियुक्त कर रखे हैं। और इन्हें 01-04-2014 से 31-03-2015 तक 4,29,21,353 की फीस अदा की जा चुकी है। एक ओर कन्सलटैन्ट नियुक्त करके उन्हे भारी भरकम फीस दी जा रही है दूसरी और ठेकेदारों को करों से छूट दे रखी है। लेकिन जब ठेकेदार तय समय सीमा के भीतर काम नही कर पाये तो क्या उन पर इस देरी के लिये कोई जुर्माना नहीं लगाया जाएगा इसको लेकर भी विभाग स्पष्ट नहीं है। विभाग द्वारा करवाए जा रहेें कामों के रेट को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं चल रही है क्योंकि जब 17.50 करोड़ में चर्च की रिपेयर करवाये जाने का अनुबन्ध सामने आया था तभी से पर्यटन विभाग द्वारा करवाये जा रहे काम चर्चा का विषय बने है।
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकल पीठ ने एचपीसीए के अध्यक्ष हमीरपुर से भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर एंवम् अन्य के खिलाफ उस मामले की एफ आई आर को रद्द कर दिया है जो इन लोगों के खिलाफ अक्तूबर 2013 में विजिलैन्स कार्यालय धर्मशाला में सरकारी काम काज में बाधा डालने के संद्धर्भ में दर्ज की गयी थी। इस एफ आई आर की जांच पूरी करके इसका चालान सी जे एम कोर्ट में दायर कर दिया था। सी जे एम कोर्ट में भी यह चालान आने के बाद अगली प्रक्रिया शुरू कर दी गयी थी और इसी सब कुछ को अनुराग ठाकुर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अनुराग ठाकुर की याचिका को स्वीकार करते हुए इस संद्धर्भ में दर्ज हुई एफ आई आर और उस पर सीजेएम कोर्ट में चली कारवाई को निरस्त कर दिया है। अनुराग एवम् अन्य के खिलाफ यह मामला बनाया गया था कि इन लोगों ने धर्मशाला स्थित विजिलैन्स के थाना में आकर नारेबाजी करके वहां उपस्थित सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को सरकारी काम काज करने में बाधा पहुंचाई है। सरकारी कामकाज में बाधा विजिलैन्स के थाना/कार्यालय में पहुंचाई गयी थी लेकिन इस मामले की शिकायत अदालत में विजिलैन्स की बजाये एस एच ओ धर्मशाला द्वारा डाली गयी। एस एच ओ धर्मशाला के काम काज में तो कोई बाधा नही डाली गयी थी इसलिये उसे यह मामला दायर करने का कोई अधिकार ही नही था। उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि सी आर पी सी की धारा (195)(1)(a) के तहत एस एच ओ धर्मशाला इसमे शिकायत कर्ता नही हो सकते थे। The complaint filed under the signatures of SHO, PS Dharamshala cannot be termed as complaint under Section 195 (i) (a) Cr.P.C. The complaint could only be filed by the officer concerned.अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि आई पी सी की धारा 186 के मुताबिक शिकायत में यह तफसील होनी चाहिए थी कि जिन अधिकारियों के काम मे बाधा डाली गयी उनमें कौन अधिकारी क्या काम कर रहा था और किसने कैसे उसे व्यक्तिगत तौर पर काम करने से रोका। उच्च न्यायालय ने 38 पन्नो के अपने विस्तृत आदेश में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर देश के कई उच्च नयायालयों के ऐसे मामलों मे आए फैसलों का जिक्र किया है। उच्च न्यायालय ने जिस तरह से इस मामले में सी आर पी सी की धारा 195 (1)(a)ओैर आई पी सी की धारा 186 के प्रावधानों की अनदेखी कियेे जाने का जिक्र किया है उससे सरकार की मंशा पर ही बुनियादी सवाल खडे़ हो जाते है और यह संदेश जाता है कि जानबूझकर यह मामले बनाये जा रहें है। इस मामले के रद्द हो जाने के बाद यह सवाल उठा है कि इसमें ऐसी बुनियादी कमिया क्यों रखी गई जिनकी जानकारी हर बड़े पुलिस अधिकारी और पूरे अभियोजन विभाग को होना आवश्यक है। क्योंकि यह पुलिस में सामान्य प्रक्रिया है कि किसी भी मामले की जांच के बाद जब जांच अधिकारी उसका चालान तैयार करता है तो वह पूरे मामले को एक बार फिर अपने बड़े अधिकारियों के संज्ञान में लाता है और उसके बाद कानूनी पहलुओं को देखने के लिए अभियोजक के पास भेजता है। यह मामला उस व्यक्ति के खिलाफ खड़ा किया जा रहा था जो तीसरी बार भााजपा का सांसद बना है। पूर्व मुख्यमंत्राी का बेटा है और भाजपा के युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष है। पूर्व मुख्यमन्त्राी प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह के बीच किस तरह के राजनीतिक रिश्ते है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रही ईडी और सीबीआई जांच के लिये हर संभव मंच पर धूमल, अनुराग और अरूण जेटली को कोसना नहीं भूलते। इन्ही रिश्तों के कारण वीरभद्र के इस कार्यकाल में एचपीसीए की जांच ही सरकार की विजिलैन्स का प्रमुख मुद्दा रहा है। धूमल के खिलाफ चलायी जा रही संपति जांच भी इन्ही रिश्तों का परिणाम है।
वीरभद्र के लिए धूमल, अनुराग जितने बडे़ मुद्दे बन चुके हैं उसमें विजिलैंस उसी अनुपात में सरकार को झटके देती जा रही है। एच पी सी ए के पहले चालान का ट्रायल सर्वौच्च न्यायालय से स्टे हो चुका है। टेलिफोन टेपिंग के मामले में भी कोर्ट से झटका मिल चुका है। ए एन शर्मा के मामले में भी मार पड़ चुकी है। इस तरह अगर इन सारे मामलों को इकट्ठा करके देखा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र के सलाहकार इस समय वीरभद्र से ज्यादा धूमल के हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।
शिमला/शैल। प्रदेश का मुख्यसचिव कौन होता है इस पर प्रदेश की निगाहें लगी हुई हैं। मुख्यमंत्राी किस पर अपना भरोसा जताते हैं और उस भरोसे का आधार क्या रहेगा इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में आमने आयेगा। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि वीरभद्र शासन में किसी महिला का मुख्यसचिव बन पाना संभव नही है। इस समय वरियता में सानन और विनीत चौधरी के बाद उपमा चौधरी का नाम आता है। उपमा का दामन एक-दम पाक साफ है। उसकी एसीआर भी outstanding है। लेकिन इसके बावजूद भी मुख्यमंत्राी उस पर भरोसा जताने को तैयार नहीं है। माना जा रहा है कि वीरभद्र की नजरे इनायत उनके करीबी वी सी फारखा पर रहेगी।
लेकिन इस मौके पर सचिवालय के गलियारों से लेकर सकैण्डल तक एक चर्चा अवश्य आ गई है। और इस चर्चा में पूर्व में मुख्यसचिव पद के लिए नजरअन्दाज हुई दो महिला अफसरों का नाम सबकी जुबान पर आ गया है। पुर्व में वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी रेणु साहनी धर और सी पी सुजाया के नाम लोग याद कर रहे हैं। इन अधिकारियों को भी मुख्य सचिव की ताजपोशी से वंचित रखा गया था। आज यदि वी सी फारखा मुख्य सचिव का पद पाने में सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस और वीरभद्र के साथ यह जुड़ जाएगा कि वह महिला अधिकारियों को मुख्य सचिव जैसे पद के योग्य ही नहीं मानते हैं क्योंकि उपमा चौधरी का नाम इस कड़ी में तीसरा जुड़ जायेगा।
इस समय आई ए एस और आई पी एस तथा अन्य सेवाओं में दर्जनों महिला अधिकारी है।। इन अधिकारियों के मनोबल पर किस तरह का असर पडेगा और यह अधिकारी कांग्रेस और वीरभद्र सिंह को लेकर इस सं(र्भ में किस तरह की धारणा बनाते हैं इसका खुलाया भी आने वाले दिनों में ही सामने आयेगा। लेकिन इन दिनों बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ आदि के जो कार्यक्रम चल रहे हैं उन कार्यक्रमों पर भी यह सवाल तो अवश्य ही उठेगा कि क्या हम ईमानदारी से ही इन कार्यक्रमों को अंजाम दे रहे हैं या फिर केवल एक रस्म अदायगी ही निभाई जा रही है। उधर कुछ सिरफिरे इस नजरअन्दाजी को आने वाले चुनावों में कांग्रेस और वीरभद्र के महिला आदर सम्मान की सच्चाई के रूप में भी भुनाने का प्रयास करने की योजना अभी से ही बनाने लगे हैं।
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