इस समय सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक नही है। यह कितनी गंभीर है और इसके परिणाम क्या हो सकते हैं इसका संकेत प्रधान महालेखाकार विधान में कैग रिपोर्ट रखने के बाद हुई अपनी पत्राकार वार्ता में पूरी स्पष्टता से दे चुके हैं। जी.डी.पी. का 40% और राज्य की राजस्व आय से 214% अधिक का कर्जभार होना अच्छे सूचक नहीं हैं। यदि केन्द्र राज्य के कर्जभार को एक मुश्त माफ नही करता है तो कभी भी वेतन अदायगी तक का संकट आ सकता है। वीरभद्र बतौर मुख्यमंत्राी और वित्त मंत्राी इस हकीकत से पूरी तरह परिचित हैं। लेकिन इस सबकी जानकारी होते हुए भी मुख्यमंत्री प्रदेश में जहां कहीं भी जा रहे हंै दिल खोलकर घोषणाएं कर रहे हैं जिनसे प्रदेश का राजस्व व्यय लगातार बढ़ता जा रहा है। इस परिदृश्य में जानकार जानते है कि इन घोषणाओं के 5% को भी व्यवहारिक शक्ल दे पाना संभव नही होगा। अगले वर्ष के अन्त में वैसे ही चुनाव होने है। लोग इन घोषणाओं पर अमल की अपेक्षा इसी वर्ष के अन्त तक करना शुरू कर देंगे। अमल में एक-एक दिन की देरी से सरकार की विश्वसनीयता और अपेक्षित राजनीतिक लाभ पर प्रतिकूल असर पडे़गा। ऐसे में राजनीतिक पंडितों की राय में ऐसी घोषणाओं का लाभ उनके अमल की नौबत आने से पहले ही लिया जा सकता है।
संगठन में भी कांग्रेस के भीतरे की खींचतान बाहर आना शुरू हो गयी है। वीरभद्र ब्रिगेड का गठन और विघटन अपने में एक बड़ा राजनीतिक कदम था। एन जी ओ का नाम लेकर पार्टी के समानान्तर संगठन घोषित करना जिसमें प्रदेश के हर भाग से प्रतिनिधित्व था ऐसा कदम कुछ क्षेणों के सोच का परिणाम नहीं माना जा सकता। फिर जब ब्रिगेड से जुडे़ नेताओ के खिलाफ सुक्खु ने कारवाई का कदम उठाया तो उस कदम को आगे बढ़ने से पहले ही जिस तरह से रोका गया उसके संकेत भी कुछ इसी दिशा की ओर इंगित करते हैं । ब्रिगेड के बाद विक्रमादित्य का विधायकों के रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के ब्यान पर वीरभद्र सिंह का यह कहना है कि चुनाव में विधायकों के टिकट भी काटे जा सकते हैं इसका अर्थ भी कुछ इसी तरह का संकेत है। इसके बाद प्रतिभा सिंह का भी यह कहना कि विक्रमादित्य अगला चुनाव लड़ सकते हैं और यदि जनता चाहेगी तो मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। राजनीतिक विश्लेष्कों की राय में ऐसे ब्यानों से संगठन और जनता की प्रतिक्रियाओं का विश्लेष्ण किया जाता है। विक्रमादित्य को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करना वीरभद्र की आश्वयकता और विवशता दोनों ही हैं और इसके लिये वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। विश्लेष्कों का मानना है कि जब विक्रमादित्य की सिफारिश पर तीन दर्जन से ज्यादा विधान सभा क्षेत्रों में समानान्तर सत्ता केन्द्र तैयार किये गये थे तो उसके पीछे यही धारणा बलवती थी और अब इसको फलीभूत करने का समय आ गया है।
इन सबसे ऊपर वीरभद्र पर सीबीआई और ईडी की जांच का दबाव है। कानून के जानकार जानते हैं कि इन मामलों का खत्म होना संभव नहीं है इसी वर्ष इन मामलों के चालान अदालत में पहुंच जायेंगे। इनमें गिरफ्रतारी के लिये ‘‘ डीम्ड अरैस्ट ’’ की अवधारणा के तहत कभी भी चालान अदालत में आ जायेंगे। अदालत में चार्ज लगने की प्रकिया में ज्यादा से ज्यादा दो महीने का समय लग सकता है। लेकिन अन्त में चार्ज लगना तय है और इसके बाद राजनीतिक हल्को में पद छोड़ने की मांग उठ जायेगी। ऐसी मांग पर विपक्ष के साथ अपरोक्ष में अपने भी स्वर मिला सकते है। यह स्थिति आयेगी ही यह तय है। ऐसी स्थिति से बचने के लिये इसी वर्ष के अन्त तक चुनाव करवा लिये जाने को बेहतर विकल्प माना जा रहा है और इसके लिये वीरभद्र ने अपने विश्वस्तो से चर्चा करना भी शुरू कर दिया है।