शिमला/शैल। ईडी में वीरभद्र परिवार के एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की लगातार चल रही गिरफ्तारी और 9 अगस्त को प्रतिभा सिंह तथा 12 अगस्त को इन्ही के आयकर के वकील चन्द्रशेखर के जांच ऐजैन्सी के सामने पेश होने के बाद यह सवाल चर्चा में चल रहा है कि क्या इन मामलों में इस परिवार को राहत मिल पायेगी। किसी भी मामलें में दर्ज एफआईआर यदि रद्द हो जाती है या उसमें जांच के बाद ‘‘कुछ भी नही पाया गया’’ की रिपोर्ट अदालत में दायर नही हो जाती है तो ऐसे मामलों में राहत की संभावना नही के बराबर रह जाती है। वीरभद्र परिवार दोनांे मामलों में दर्ज एफ.आई. आर. को रद्द करने और उनकी संभावित गिरफ्रतारी पर स्थायी रोक लगाये जाने की लगातार गुहार लगा रहा है लेकिन अब तक ऐसा हो नही पाया है।
स्मरणीय है कि सीबीआई ने 23.9.2015 को आय से अधिक संपति का मामला दर्ज किया था और वीरभद्र के आवास पर छापामारी की थी। सीबीआई के इस कदम को हिमाचल उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी और दर्ज एफआईआर को रद्द करने की गुहार लगायी गयी। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को सुनवाई के लिये स्वीकारते हुए 1.10.2015 को इसमें सीबीआई को निर्देश जारी करते हुए इसकी जांच जारी रखने लेकिन अभियुक्तों के ब्यान दर्ज करने या अदालत में चालान दायर करने के लिये उच्च न्यायालय की पूर्व अनुमति लेने की शर्त लगा दी। हिमाचल उच्च न्यायालय के इन निर्देशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए सीबीआई ने मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रंासफर करने का आग्रह कर दिया। सीबीआई के आग्रह को स्वीकारते हुए सवोच्च न्यायालय ने 5.11.2015 को मामला दिल्ली उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया। मामला ट्रांसफर होने के बाद सीबीआई ने हिमाचल उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों को रद्द करने की गुहार दिल्ली उच्च न्यायालय से लगा दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 6 अप्रैल को हिमाचल उच्च न्यायालय के निर्देशों में आंशिक संशोधन करते हुए प्रार्थीयों से पूछताछ की अनुमति दे दी। इस अनुमति के बाद वीरभद्र सीबीआई में पेश हुए हैं। 6 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिखा है कि Now the situation has changed as statements of some of the witnesses been recorded under Section 164 Cr. P.C. and some stamp papers have also been recovered which create suspicion on the genuineness of MOU dated 15.06.2008.
दूसरी ओर सीबीआई की एफआईआर के बाद 27.10.2015 को ईडी ने इसी आधार पर मनी लाॅडंरिंग का मामला दर्ज कर लिया। ईडी ने भी कई स्थानों पर छापामारी की है। ईडी ने उसके बाद वीरभद्र और प्रतिभा सिंह को अपना पक्ष रखने के लिये कई बार बुलाया और नही आने के बाद 23.3.2016 को परिवार की करीब आठ करोड़ की संपति अटैच कर ली। इस अटैचमैन्ट में अपराजिता कुमारी के 15,85,639 तथा विक्रमादित्य के 62,86,746 रूपये हैं। ईडी की इस कारवाई को अपराजिता और विक्रमादित्य ने CWP 3008/16 के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। 6 अप्रैल को सुनवाई के लिये आए इस मामले पर 12 अप्रैल को ईडी ने एडज्यूडिकेटिंग आथाॅरिटी के पास मनीलाॅंडरिंग एक्ट की धारा 5 (5) के तहत शिकायत दायर कर दी। जिसे CM NO 12627/16 के तहत चुनौती दी गयी और उच्च न्यायालय ने अटैचमैन्ट आदेश को जारी रखते हुए इस पर अगली कारवाई के लिये रोक लगा दी। इसी बीच ईडी ने आनन्द चौहान को आठ जुलाई को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी से अपनी गिरफ्तारी की आंशका जताते हुए वीरभद्र और प्रतिभा सिंह ने अदालत से अपनी सुरक्षा की गुहार लगा दी। अदालत ने इनकी गिरफ्तारी पर कोई रोक नही लगायी है। ईडी ने प्रतिभा सिंह को 28 जुलाई को पेश होने का नोटिस भेजा था लेकिन वह पेश नही हुई। 29 जुलाई को यह मामला सुनवाई के लिये लगा था। उस दिन प्रतिभा सिंह ने 9 अगस्त को ईडी जांच में पेश होने और जांच में सहयोग देने का अनुग्रह अदालत में रखा।
इस पर प्रतिभा सिंह 9 अगस्त को जांच में शामिल हुई। जांच में शामिल होने के बाद की गयी अगली कारवाई को लेकर स्टेट्स रिपोर्ट अदालत में रखी जायेगी। आर्डर में लिखा है कि Status report shall be filed regard to the further investigation carried out by the respondent before the next date. अगली तारीख 24 अगस्त है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि 24 अगस्त तक ईडी अगली जांच को भी अजांम देगा। ईडी ने 10-11 और बारह अगस्त को कुछ लोगों को बुला रखा था। जिसमें चुन्नी लाल और चन्द्रशेखर भी थे। सीबीआई के संद्धर्भ में 6 अप्रैल को अदालत में आ चुका है कि कुछ गवाहों के 164ब्तच्ब् के तहत ब्यान हो चुके हैं। स्मरणीय है कि चुन्नी लाल के मुनीम को सीबीआई ने पकडा था और उसके ब्यान करवा लिये गये थे। 8 जुुलाई को आनन्द चौहान के साथ चुन्नी लाल को भी पकड़ा गया था। सूत्रों के मुताबिक चुन्नी लाल भी ब्यान दे चुका है क्योंकि मुनीम के ब्यान के बाद उसके पास कोई और विकल्प शेष नही था। अब इस मामले में मेघराज, कनुप्रिया, स्टांप पेपर विक्रेता और चन्द्रशेखर ऐसे व्यक्ति हैं जो इसमें कहीं न कहीं जुड़े हुए है। इन सब की भूमिका सेब बागीचे की आय से लेकर उसकी बिक्री तथा संशोधित आयकर रिटर्नज दायर किये जाने के साथ जुडी हुई है। यदि बागीचे से छः करोड़ का सेब होना प्रमाणित नही होता है तो यह सब मनीलाॅडरिंग में अभियुक्तों की ़श्रेणी में आ सकते हैं।
इसी तरह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से लिये गये ऋण की स्थिति है यदि उसके पास ऋण देने की क्षमता प्रमाणित न हो सकी तो यह लेनदेन भी मनीलाॅडरिंग माना जायेगा। इसी ऋण के बाद महरौली के फार्म हाऊस की खरीद हुई और गढ्ढे परिवार इसमें कुछ अदायगी ब्लैक में होने की बात पहले ही स्वीकार कर चुका है। इसी के साथ ईडी में एक समय राजेन्द्र राणा के नाम से गयी शिकायत को भी जोड़े जाने की चर्चा है। भले ही राणा ऐसी शिकायत न करने का शपथ पत्र ईडी को सौंप चुके हैं। ईडी के उच्चस्थ सूत्रों की माने तो सुभाष आहलूवालिया का मामला चण्डीगढ़ से दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद इसमें ऊना के दो वकीलों के नाम से आयी शिकायत की कड़ीयां भी इस प्रकरण से जोडी जा रही हैं। संभवत इसी सब को सामने रखते हुए अदालत वीरभद्र परिवार को राहत नही दे पा रही है। माना जा रहा है कि 17 अगस्त को इस मामले में चन्द्रशेखर और प्रतिभा सिंह को ईडी ने फिर से बुलाया है और आनन्द चौहान के साथ इनका आमना सामना हो सकता है।
इस प्रकरण में चल रही कानूनी प्रक्रिया में जहां अभी तक मामले के सह अभियुक्त आनन्द चौहान को जमानत नही मिल पा रही है वहीं मुख्य अभियुक्तों को भी संभावित गिरफ्तारी से सुरक्षा नहीं मिल रही है और न ही जांच ऐजैन्सीयां उनकी गिरफ्तारी का कदम उठा पा रही हैं। इस परिदृश्य में राहत की संभावनाएं भी कमजोर होती जा रही हैं।
शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार एशियन विकास बैंक से कर्ज लेकर प्रदेश में हैरिटेज पर्यटन के लिये इन्फ्र्रास्ट्रक्चर खड़ा करने जा रही है। इस विकास के लिये 256.99 करोड़ का कर्ज लिया गया है और इसके लिये बिलासपुर में मार्कण्डेय और नैयना देवी मन्दिर, ऊना में चिन्तपुरनी और हरोली, कांगडा में पौंग डैम, रनसेर तथा कारू टापू नगरोटा सूरियां धमेटा, ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, ज्वालाजी, धर्मशाला- मकलोड़गंज, मसरूर और नगरोटा बगंवा, कुल्लु में मनाली का आर्ट एण्ड क्राट केन्द्र बड़ाग्रां, चम्बा में हैरिटेज, सकिर्ट, मण्डी के ऐतिहासिक भवन और शिमला में नालदेहरा का ईको पार्क, रामपूर बुशैहर तथा आस पास के मन्दिर तथा शिमला शहर में विभिन्न कार्य चिन्हित किये गये हैं। इस विकास के साथ हैरिटेज को जोड दिये जाने के कारण यह पूरा कार्य पर्यटन विभाग को ही सौंप दिया गया है। पर्यटन विभाग में इसके लिये एक प्रौजेक्ट डायरैक्टर अलग से लगाया गया है। जिसे अब लोक निमार्ण विभाग के सेवानिवृत ई इन सी एसपी नेगी भी सहयोग दे रहे हैं। यह सारा कार्य अप्रैल 2014 में शुरू हुआ था और 2017 तक पूर्ण किया जाना है। एशियन विकास बैंक से लिये गये कर्ज में केन्द्र सरकार की भी भागीदार हैं। इस कार्य को अंजाम दे रहे ठेकेदारों पर आयत होने वाले सारे कर भी राज्य सरकार ही अदा करेगी।
पर्यटन के विकास के लिये एक मुश्त शुरू होने वाली इस बड़ी योजना की कार्यशैली पर नगर निगम के महापौर संजय चैहान ने एशियन विकास बैंक के मिशन डायरेैक्ट को 27.6.2016 को पत्रा लिखकर गंभीर शंकाए व्यक्त की हंै। बैंक के मिशन डायरैक्टर ने शिमला में इस योजना को अंजाम दे रहे प्रौजेक्ट डायरैक्टर मनोज शर्मा को 6 जुलाई को पत्र भेजकर नगर निगम के मेयर की शंकाओं से अवगत भी करवा दिया है। लेकिन इस पत्राचार का अभी तक कोई परिणाम सामने नही आया है। स्मरणीय है कि शिमला के लिये सौन्दर्यकरण की इस योजना का प्रारूप मूल रूप से नगर निगम प्रबन्धन ने ही तैयार किया था और इस पर निगम के हाॅऊस से भी स्वीकृति करवा ली थी लेकिन काम को अंजाम देने की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को दे दी गयी है। परन्तु शिमला के सौन्दर्यकरण के लिये कहां पर क्या काम करवाया जानातय हुआ था। उसकी मुल जानाकरी शिमला नगर निगम को ही है। संभवतः इसी जानकारी के कारण आज इस कार्य की गुणवत्ता और इस पर हो रहे निवेश पर एक साथ सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
पिछले दिनांे रोहडू में एक आयोजन के मौके पर मुख्यमन्त्राी ने ठेकेदारों की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खडे़ किये थे। ठेकेदारांे पर सरकार और प्रदेश की जनता को लूटने का आरोप लगाया था। मुख्यमन्त्राी का यह आरोप शिमला के सौन्दर्यकरण के नाम पर हो रहे कार्यो को देखकर सही प्रतीत होता है। नगर निगम द्वारा पारित प्रारूप के अनुसार शिमला के सौन्दर्यकरण के तहत 13 मद्दंे तय की गयी थी जिनमें से अब मद्द संख्या 11 एसकेलेटरज और मद्द संख्या 12 यूटिलिटी सर्वसिज को ड्राप कर दिया गया है। शिमला में हो रहे कार्यो में कुछ प्रमुख कार्य हैं हैरिटैज के तहत आने वाले दोनो चर्चांे की मुरम्मत, मालरोड़ की मैटलिंग टारिंग, पांच रेन शैल्टरों का निमार्ण और नगर निगम के मुख्यालय टाऊन हाल की रेस्टोरेशन। इन कार्यो पर किये जाने वाले निवेश का आकलन भी तीन किश्तो में किया गया है। इन कार्यों को अजांम देने के लिये आठ कन्सलटैन्ट भी नियुक्त किये गये हंै। जिन्हें 1.4.2014 से 31.3.2015 तक फीस के रूप में 4,29,21,353 रूपयेे अदा किये गये हैं।
चर्चों की मुरम्मत को लिये ADB LOAN-No. 3223 IND,IDIPT- H.P. किश्त तीन में 12.40 करोड़ के निवेश का आकलन है। लेकिन इसी मुरम्मत को लेकर 27.2.16 को एक प्रकाश सैमुअल ने जो आर टी आई के तहत सूचना हासिल की है उसमें यह आकलन 17.52 करोड़ कहा गया है। इस कार्य के लिये पर्यटन विभाग चर्च कमेटी के बीच हुये अनुबन्ध के मुताबिक सितम्बर 2016 तक यह कार्य पूरा होना है। अभी तक यह काम शुरू भी नही हुआ है और इसकी लागत में पांच करोड की बढ़ौतरी हो गयी है। पांच रेन शैल्टरों की निमार्ण लागत का आकलन 3 करोड़ कहा जा रहा है। मालरोड की रैस्टोरेशन का आकलन ADB LOAN NO 2676-IND किश्त एक में 23.73 करोड़ है और किश्त तीन में यह आकलन 33.89 करोड़ दिखाया गया है। टाऊन हाल की मुरम्मत का आकलन किश्त एक के मुताबिक 8.02 करोड है। टाऊन हाल के निमार्ण का काम एक अभी राम इन्फ्र्रा प्रौजेक्ट प्राईवेट लि. को दिया गया था। अभी राम इन्फ्र्रा ने इस काम के लिये शिमला स्थित वर्मा ट्रैडिंग कंपनी से लकडी की खरीद की। टाऊन हाल का काम इस कंपनी को सितम्बर 2014 में अवार्ड हूआ और इसने जनवरी 2016 में वर्मा ट्रैडिंग कंपनी से लकडी की खरीद की। कुल 13,74,929 रूपये की लकडी इस काम के लिये खरीदी गयी और इस पैसे की वर्मा टेªडिंग को अदायगी भी नही की गयी है। वर्मा ट्रैडिंग ने यह शिकायत भी नगर निगम के मेयर से की है। उसे यह जानकारी ही नहीं है यह काम नगर निगम की बजाये मुख्यमन्त्राी का पर्यटन विभाग करवा रहा है।
शिमला में हो रहे कार्यो का मूल प्रारूप नगर निगम में तय हुआ था इसलिये निगम के महापौर और अन्यों की नजर इस पर बनी रही। जिसके चलते महापौर ने इसकी शिकायत एशियन विकास बेैंक के मिशन डायरैक्टर तक कर दी। इस काम से जुडे दस्तावेज शिकायत की प्रमाणिकता की पुष्टि करते हैं। इसी तर्ज पर यदि अन्य स्थानों पर हो रहे कार्यो की भी समीक्षा की जाये तो उनमें भी ऐसी ही स्थितियां सामने आने की पूरी-पूरी संभावना है।
शिमला/शैल। भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष सांसद अनुराग ठाकुर की एचपीसीए को प्रदेश सरकार ने वर्ष 2002 में धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम तथा 2009 में खिलाडीयों को आवासीय सुविधा तैयार करने के लिये विलेज काॅमन लैण्ड आवंटित की थी। उस आवंटन के बाद स्टेडियम का निमार्ण हुआ। फिर पैब्लियन के नाम से पांच सितारा आवासीय सुविधा का निमार्ण हुआ और 2012 में इस आवासीय निमार्ण के कर्मशियल यूज की अनुमति भी एचपीसीए को दे दी गयी। इसी बीच एचपीसीए ने अपने को सोसायटी से कंपनी में तबदील कर लिया। एचपीसीए को दोनों मर्तबा जमीन सोसायटी के नाम पर लगभग मुफ्त में मिली थी। होटल दी पैब्लियन का कर्मशियल यूज भी सोसायटी के नाम पर मिला था। सहकारिता नियमों के मुताबिक सोसायटी के नाम पर सरकार से ली गयी सुविधाऐं कंपनी बनाये जाने से पहले सरकार को वापिस की जानी चाहिए थी जो कि नही हुई। यही नही सटेडियम के साथ ही राजकीय महाविद्यायल धर्मशाला का एक दो मंजिला आवासीय होस्टल था जो गिरा दिया गया है और उसकी जमीन पर एचपीसीए द्वारा नाजायज कब्जे का आरोप है। इस क्रिकेट ऐसोसियेशन को दी गयी जमीन पर सैंकडों पेड़ भी थे जिन्हें अवैध रूप से काट लिये जाने का भी आरोप है। एचपीसीए पर इस तरह की अवैधताओं के आरोपों को लेकर धर्मशाला की अदालत में सीआरपीसी की धारा 156;3द्ध के तहत मामला दर्ज कर जांच करने की गुहार भी लगायी गयी थी। जिसके परिणाम स्वरूप इस समय एचपीसीए के खिलाफ सोसायटी से कंपनी बनाये जाने काॅलिज के आवासीय परिसर को गिरा कर उस पर अवैध कब्जा करने तथा आवंटित जमीन पर से सैकड़ों पेड़ों को अवैध रूप से काटने के आरोपों को लेकर अलग अलग मामले 2013 से चल रहे हैं।
इन्ही आरोपों में से राजकीय काॅलिज धर्मशाला के आवासीय परिसर की भूमि पर एचपीसीए के कथित अवैध कब्जे की पुष्टि करने के लिये 3-10-13 को विजिलैन्स ने डीसी कांगडा को इस जमीन की डिमार्केशन करके रिपोर्ट सौपने का आग्रह किया। इस पर 14-11-13 को तहसीलदार धर्मशाला ने डिमार्केशन करके अपनी रिपोर्ट सौंप दी। जब तहसीलदार की रिपोर्ट विजिलैन्स में 16-11-13 को पहुंची तो उसमें कई खसरा नम्बरो में करीब 2100 वर्ग मीटर भूमि पर अवैध कब्जा होने का खुलासा था। इस पर एडीजीपी विजिलैन्स ने 20-2-14 को एससी धर्मशाला को पत्रा भेजकर इस अवैध को लेकर मामला दर्ज करके जांच करने का आग्रह किया जिस पर 8-4-14 को पुलिस थाना धर्मशाला में आईपीसी की धारा 441 और 447/34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया। मामला दर्ज होने के बाद सीजेएम धर्मशाला में चालान पेश हुआ।
इस चालान पर अदालत ने 17-11-15 और 21-11-15 को इसमें नामजद अभियुक्तों अनुराग ठाकुर और विशाला मरवाहा को अदालत में तलबी के आदेश भेज दिये। इन आदेशों और इस सं(र्भ में दर्ज एफआईआर को रद्द किये जाने की गुहार प्रदेश उच्च न्यायालय में लगाई गयी जिसे स्वीकारते हुए जस्टिस राजीव शर्मा ने 2अगस्त को सुनाये फैसले में इसमें दर्ज एफआईआर, पेश हुए चालान तथा तलवी आदेशों को निरस्त कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने पूरे मामले में तहसीलदार की डिमार्केशन रिपोर्ट और एफआईआर में लगायी गयी धाराओं 441 और 447 के प्रावधानों को अपने फैसले का आधार बनाया है। डिमार्केशन के लिये एक तय प्रक्रिया है जिसके तहत संद्धर्भित जमीन के साथ लगने वाली हर जमीन के मालिकों को इसमें तलव किया जाता है। उनका पक्ष और एतराज सुने जाते हैं । जिसके खिलाफ डिमार्केशन हो रही है और जो डिमार्केशन करवा रहा है सबका इसमें शामिल होना तथा सहमत होना अनविार्य है। यदि कोई नही आता है तो उसका अलग से उल्लेख किया जाता है। लेकिन इस डिमार्केशन में तहसीलदार ने किसी भी संवद्ध पक्ष को इसमें बुलाया ही नही। फिर जिन खसरा नम्बरों की उसने पैमाईस करके अवैध कब्जा निकाला बाद में अपने 161 के ब्यान में कहा कि सही खसरा नम्बर और हंै। रिपोर्ट मांगी जाती है तो उसमें किसी संव( पक्ष को बुलाने की अनिवार्यता नही हैं के साथ अवैध कब्जे को लेकर धारा 163 के तहत कारवाई करनी होती है। इसमें कब्जा होने का आरोप था लेकिन शिक्षा विभाग ने अपने तौर पर इसमें कोई कारवाई नही की पुलिस ने धारा 441/ 34 के तहत मामला दर्ज किया। अदालत के मुताबिक इन धाराओं के अपेक्षित मानदण्ड इसमें पूरे ही नही होते। जब यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंचा तब अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह का इसमें जबाब आया है। अदालत का कहना है कि यह जबाब याचिका में उठाये गये बिन्दुओं से एकदम हटकर हैं। स्मरणीय है कि जब यह मामला उच्च न्यायालय में पहंुचा तब गृह और शिक्षा विभाग के सचिव की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति पीसी धीमान के पास थी। लेकिन उन्होने उस समय भी इस मामले के सारे पक्षों की ओर ध्यान नही दिया जबकि जमीन शिक्षा विभाग की थी और मूल मामले मंे वह पहले ही अभियुक्त नामजद हैं।
जब इस मामले का चालान तैयार हुआ तब अभियोजन पक्ष ने भी इन बिन्दुओं की ओर ध्यान नही दिया। तहसीलदार ने डिमार्केशन के लिये तय प्रक्रिया पर अमल क्यों नही किया? स्टेडियम और होटल निमार्ण टीसीपी द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार हुआ कहा गया है। टीसीपी के संज्ञान में नाजायज कब्जे की बात क्यों नही आयी? जिस गुरमीत की प्राईवेट जमीन पर भी अवैध कब्जा होने का जिक्र तहसीलदार की रिपोर्ट में आया है। उसके ध्यान में यह तथ्य क्यों नही आया या वह इस पर खामोश क्यों बैठा रहा ।
तहसीलदार की रिपोर्ट में आया है कि एचपीसीए के स्टेडियम के लिये 49118.25 वर्गमीटर भूमि आवंटित हुई थी जबकि उसके कब्जे में केवल 45959.68 वर्गमीटर भूमि है तो फिर उसकी शेष आंवटित भूमि कंहा है। ऐसे बहुत सारे बिन्दु इस फैसले के बाद सामने आये हैं जो कि वीरभद्र प्रशासन की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खडे़ करते हैं।
The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.