Friday, 19 September 2025
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माननीयों के लिये नही हो पाया अब तक विशेष अदालत का गठन

शिमला/शैल। राजनीति में बढ़ते अपराधिकरण को रोकने के लिये विशेष अदालतें गठित की जानी है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार यह अदालतें पहली मार्च तक गठित हो जानी थी। ऐसी अदालतों के गठन के बाद विधायकों/सांसदो/मन्त्रियों से जुडे़ आपराधिक मामलों की कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी किये जाने का प्रावधान किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ऐसे मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाने के निर्देश पहले भी कई बार दे चुका है जिन पर ठीक से अमल नही हो पाया है। लेकिन इस बार इस संद्धर्भ में गंभीरता बदल गयी है क्योंकि प्रधानमन्त्री मोदी ने भी देश और संसद से यह वायदा किया है कि वह संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवायेंगे। यह तभी संभव है जब माननीयों से जुड़े आपराधिक मामलों के निपटारे एक समय सीमा के भीतर हो जायें।
प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में भी करीब एक दर्जन सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। कांग्रेस की आशा कुमारी को तो अदालत एक वर्ष कीे सजा़ तक सुना चुका है। इस मामले में आशा कुमारी की अपील अदालत में लंबित है। वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई अदालत में चालान दायर कर चुकी है। ईडी भी चालान दायर कर चुकी है। इसी तरह भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर और वीरेन्द्र कश्यप के मामले अदालत में पहुंच चुके हैं। भाजपा के ही किशन कपूर और राजीव बिन्दल के मामले भी अदालत में पहुंच चुके हैं। ऐसे में यदि विशेष अदालत गठित हो जाती है तो इन माननीयों के मामलों में फैसला आने में वक्त नही लगेगा और इससे प्रदेश की राजनीति के सारे गणित बदल जायेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने माननीयों के मामलों को निपटाने के लिये विशेष अदालत का गठन कर दिया है लेकिन हिमाचल में अभी तक ऐसा नही हो पाया है। इस संद्धर्भ में अभी तक सरकार और उच्च न्यायालय की ओर से कोई कदम नही उठाये गये हैं। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के मुताबिक प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले दिनों छुट्टियां होने के कारण इस दिशा में कारवाई नही हो पायी है। लेकिन उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक कुछ लोग विशेष अदालत का गठन किये जाने को टालनेे का प्रयास कर रहे हैं। यह लोग तर्क दे रहे हैं कि हिमाचल में ऐसे मामलों की संख्या कम होने के कारण अलग से ऐसी विशेष अदालत गठित किये जाने का कोई औचित्य नही बनता है लेकिन जिन भी माननीयों के खिलाफ मामले चल रहे हैं उन्हें एक वर्ष की तय समय सीमा के भीतर कैसे निपटाया जाये इस बारे में यह लोग एकदम चुप हैं। माना जा रहा है कि जयराम सरकार पर कुछ मामलों को वापिस लेने के लियेे जो दबाव बना हुआ है उसके चलते भी विशेष अदालत के गठन को लंबित किया जा रहा है। क्योंकि जब विशेष अदालत का गठन अधिसूचित हो जायेगा तब इन मामलों को वापिस लेना और भी कठिन हो जायेगा।

आखिर क्यों कर रहे हैं वीरभद्र सुक्खु का विरोध

शिमला/शैल। वीरभद्र ने एक बार फिर सुक्खु को पद से हटाने की मांग की है। यही मांग उन्होने विधानसभा चुनावों से पूर्व भी की थी। उस समय इसी मांग के कारण हाईकमान ने वीरभद्र को फिर से मुख्यमन्त्री का चेहरा घोषित किया था और चुनाव की पूरी बागडोर उनके हाथ में दे दी थी। चुनाव की पूरी कमान मिलने सेे ही 68 में से 56 टिकट उन्होने अपनी पंसद के लोगों को दिये और केवल 15 ही इनमे से जीत पाये। दूसरी ओर संगठन के खाते में केवल 15 टिकट आये जिनमें से 6 पर जीत हासिल हुई। पार्टी के भीतर का यह सच तब सामने आया जब सुक्खु ने वीरभद्र को पलटकर आईना दिखाया।
स्मरणीय है कि अप्रैल 83 में वीरभद्र ने प्रदेश की बागडोर संभालने से पूर्व तत्कालीन मुख्यमन्त्री स्व. रामलाल ठाकुर के खिलाफ फाॅरेस्ट माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए एक पत्र प्रदेश के विधायकों और सांसदो के नाम लिखा था और यह पत्र उन्ही के लोगों ने सार्वजनिक भी कर दिया था। उस समय स्व. हेमवत्ती नन्दन बहुगुणा कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर बगावत पर उतर आये थे। यह आशंका बन गयी थी कि इस बगावत का असर स्व. ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ सकता है। क्योंकि बहुगुणा के साथ वीरभद्र की पांवटा साहिब और बड़ोग में हुई दो बैठके सार्वजनिक हो चुकी थी और उस समय दलबदल विरोधी कानून तो था नही। इस परिदृश्य में इस संभावित डैमेज को कन्ट्रोल करने के लिये ही रामलाल को राज्यपाल और वीरभद्र को प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनाया गया था। लेकिन जिस फाॅरैस्ट अपराध के खिलाफ झण्डा उठाने का दावा करके वीरभद्र सत्ता में आये थे उसका आज का कडवा सच यह है कि वीरभद्र का रोहडू वनभूमि पर हुए अवैध अतिक्रमणों में पहले स्थान पर है। इसका दूसरा सच रामलाल सूरी की शिकायत पर आयी लोकायुक्त की रिपोर्ट में भी दर्ज है।
1983 के बाद 1993 में विधानसभा का घेराव करवाकर वीरभद्र कैसे मुख्यमन्त्री बने थे इसके तो सुशील कुमार शिंदे भी स्वयं गवाह रहे हैं क्योंकि वह तब भी प्रदेश के प्रभारी थे। 1993 के बाद 1998 में छः दिन के लिये और फिर 2003 और 2012 में किस तरह से दबाव की राजनीति करके मुख्यमन्त्री बने है इसकी जानकारी प्रदेष की राजनीति की खबर रखने वालों को है। वीरभद्र अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को मानहानि दावे करके कैसे दबाने का प्रयास करते आये हैं इसे शान्ता कुमार, विजय सिंह मनकोटिया और शैल के संपादक बलदेव शर्मा बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन मानहानि के एक भी मामले को वीरभद्र अन्तिम मुकाम तक नही ले जा पाये हैं। हर मामला अन्ततः वापिस लिया गया है। जब से वीरभद्र ने प्रदेश की बागडोर संभाली है वह एक बार भी सत्ता में रिपिट नहीं कर पाये हैं। वीरभद्र जिस तरह की राजनीति करते आये हैं शायद उसी का परिणाम है कि वह आज अपने अन्तिम पड़ाव में सीबीआई और ईडी के मामले झेल रहे हैं। 2014 में प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें कांग्रेस ने इन्ही आरोपों के कारण हारी है यह सब जानते हैं। ईडी ने जब मुख्य अभियुक्तों को छोड़कर सहअभियुक्त एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द  चौहान को गिरफ्तार किया था उसी समय कुछ हल्कों में यह संकेत चला गया था कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव नही जितेगी और वही हुआ भी है। अब लोकसभा चुनावों से पहले एक और सहअभियुक्त वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी से फिर यह संकेत गये हैं कि कांग्रेस लोकसभा नही जितेगी क्योंकि वक्कामुल्ला की गिरफ्तारी से यह आशंका तो प्रबल हो ही गयी है कि ईडी आने वाले समय में वीरभद्र और उनके विधायक बेटे विक्रमादित्य को भी पकड़ सकती है। क्योंकि फार्म हाऊस तो विक्रमादित्य सिंह की कंपनी के नाम है और इसमें हुए निवेश का 90 लाख रूपया वीरभद्र से गया है। यदि यह सारा निवेश मनीलाॅंड्रिंग है तो इसे केवल वीरभद्र और विक्रमादित्य ही स्पष्ट कर सकते हैं इसके खुलासे के लिये गिरफ्तारी की संभावना से इन्कार तो नही किया जा सकता है।
ऐसे में इस समय वीरभद्र का एक मात्र मकसद इस संभावित गिरफ्तारी से बचना है। जबकि मोदी और अमितशाह की गंभीरता और प्राथमिकता तो लोकसभा चुनाव जीतना है। उनके लिये भ्रष्टाचार तथा उसके खिलाफ कारवाई कोई मायने नही रखती है। वीरभद्र को गिरफ्तारी से बचाने के लिये कई और सहअभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन वीरभद्र के बचने के साथ भाजपा मोदी को तो हिमाचल चाहिये और इसके लिये कांग्रेस का कमजा़ेर होना बुहत जरूरी है। कांग्रेस को कमजोर करने के लिये पार्टी के भीतर एक बडी लड़ाई खड़ी करना आवश्यक है जो कि सुक्खु को इस तरह घेर कर ही संभव है। राजनीतिक विष्लेशकों के मुताबिक वीरभद्र सिंह द्वारा सुक्खु को हटाने की मांग करना अपरोक्ष में भाजपा को मजबूत करना हो जाता है क्योंकि जहां सारा कांग्रेस संगठन प्रदेश के भाजपा सांसदो से उनके पांच वर्षों की सांसद निधि खर्च करने का हिसाब मांग रहा है वहीं पर सुक्खु को हटाने की मांग करना कांग्रेस की इस आक्रामकता को बन्द करने का प्रयास बन जाता है।

वीरभद्र प्रकरण में अब वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर सह अभियुक्त की हुई गिरफ्तारी

शिमला/शैल। ईडी द्वारा वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी के बाद वीरभद्र का मनीलाॅंड्रिंग मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। हालांकि वक्कामुल्ला चन्द्रशखेर को जब गिरफ्तारी के बाद ईडी ने अदालत में पेश किया और कस्टोडियल जांच की मांग की तब अदालत ने ईडी के आग्रह को अस्वीकार करते हुए उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया। न्यायिक हिरासत से उसे कब ज़मानत मिलती है और उसके खिलाफ कब अदालत में चालान दायर किया जाता है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। वक्कामुल्ला को जब गिरफ्तार कर लिया गया है तो निश्चित है कि उसके खिलाफ भी चालान तो दायर करना ही पड़ेगा। लेकिन जब तक यह चालान दायर नही हो जाता है तब तक इस मामले में पहले आनन्द चौहान और फिर वीरभद्र सिंह एवम् अन्य के खिलाफ दायर हो चुके चालानों पर कारवाई आगे नही बढ़ पायेगी। क्योंकि यह सब एक ही मामले की अलग-अलग कड़ियां है।
स्मरणीय है कि वीरभद्र सिंह 28.5.2009 से 26.6.2012 तक केन्द्र में मन्त्री थे और उसी दौरान 30.11.2010 को अशोका होटल स्थित एक जिन्दल स्टील उद्योग के मुख्यालय पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई जिसमें एक डायरी पकड़ी गयी। इस डायरी में कुछ लोगों के सांकेतिक नाम थे जिनके आगे मोटी रकमें दर्ज थी। इनमें एक नाम VBS था जिसके आगे 2.77 करोड़ की रकम लिखी गयी थी। इस नाम को वीरभद्र सिंह मान लिया गया। इसके बाद मार्च 2012 में वीरभद्र ने पिछले तीन वर्षो की संशोधित आयकर रिटर्नज़ दायर कर दी और इनमें पहले दायर की गयी मूल आय से कई गुणा अधिक आय दिखा दी गयी। इसके बाद 11-01-2013 को प्रशांत भूषण ने सीबीआई और सीबीसी में एक शिकायत डालकर यह आग्रह कर दिया कि आयकर विभाग को 30.11.2010 को छापेमारी के दौरान जो डायरी मिली थी जिसमें VBS के आगे 2.77 करोड़ की रकम लिखी गयी थी उसे वीरभद्र से जोड़कर इस मामले की जांच की जाये। इस तरह आगे बढे़ इस मामले में सीबीआई ने 23-09-2015 को वीरभद्र एवम् अन्य के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज कर लिया और इसमें वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को भी एक सहअभियुक्त बना लिया गया। क्योंकि जब प्रतिभा सिंह ने मण्डी से उपचुनाव लड़ा था तो चुनाव शपथपत्र में वीरभद्र और अपने नाम पर करीब चार करोड़ का Unscured कर्ज वक्कामुल्ला से लिया दिखाया था। सीबीआई द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बाद 27.10.2015 को ईडी ने भी मनीलाॅंड्रिंग के तहत मामला दर्ज कर लिया।
सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में डाल दिया है। इसमें वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, चुन्नी लाल, आनन्द चौहान, वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर सहित ग्याहर लोगों को अभियुक्त बनाया गया है परन्तु सीबीआई ने इस मामले में एक भी गिरफ्तारी नही की है। जबकि दूसरी ओर ईडी ने मामला दर्ज करने के बाद 23.3.2016 को पहला अटैचमैन्ट आर्डर जारी करके दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित मकान सहित करीब आठ करोड़ की संपत्ति अटैच कर ली। ग्रटेर कैलाश का मकान प्रतिभा सिंह के नाम पर है। इस अटैचमैन्ट के बाद 9 जूलाई 2016 परिवार के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को ई डी ने गिरफ्तार कर लिया। यहां यह गौरतलब है कि 23 मार्च 2016 को जो अैटचमैन्ट आर्डर जारी किया गया था उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि वक्कामुल्ला की भूमिका को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई है और जांच पूरी होने के बाद इसमें अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। सीबीआई की जांच में आनन्द चौहान और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर पूरे मामले के दो प्रमुख पात्र हैं क्योंकि वीरभद्र परिवार के पास पैसा या तो आनन्द चौहान या वक्कामुल्ला के माध्यम से आया है।
ईडी ने जब आनन्द चौहान को गिरफ्तार किया तो उसके बाद इस सद्धर्भ में चालान भी दायर करना पड़ा। लेकिन इस चालान पर कारवाई आगे नही बढ़ पायी क्योंकि उसमें अनुपूरक चालान नही आया था। अदालत लगातार अनुपूरक चालान के लिये ई डी को लताड़ लगाता रहा। विधानसभा चुनावों के दौरान चार बार ई डी ने इसके लिये समय मांगा। बल्कि अनुपूरक चालान में देरी होने के कारण ही आनन्द चौहान को जमानत मिल गयी। यहां यह भी गौरतलब है कि 31-03-2017 को ई डी ने दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी करके महरौली स्थित फार्म हाऊस को भी अटैच कर लिया है। यह फार्म हाऊस विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी के नाम है। इसकी खरीद 1.20 करोड़ में दिखायी गयी है और इसके लिये 90 लाख रूपया वीरभद्र ने दिया है और शेष 30 लाख विक्रमादित्य सिंह ने। लेकिन जिस समय यह फार्म हाऊस खरीदा गया उस वर्ष की आयकर रिटर्न में विक्रमादित्य सिंह ने अपनी कुल आय ही 2,97,149 दिखाई है और यह तीस लाख से कहीं कम है। ई डी ने जो दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी किया है उसके मुताबिक 18-07-11 को 90 लाख रूपया पांच आरटीजीएस के माध्यम से भारत फूडज, गुरचरण सिंह और एचडीएफसी बैंक से वक्कामुल्ला के नाम गया। फिर 21-07-11 को यही पैसा वक्कामुल्ला से वीरभद्र को गया। वीरभद्र से 2-8-11 को यह पैसा विक्रमादित्य सिंह को गया तथा 4-8-11 को यही पैसा सुनीता गड्डे और पिचेश्वर गड्डे को गया जिनसे यह फार्महाऊस खरीदा गया है। फिर 19-11-11 से 25-11-11 तक दो करोड़ रूपया वक्कामुल्ला से विक्रमादित्य सिंह को गया। फिर मैप्पल डैस्टीनेशन से 11-1-12 को 1.50 करोड़ तारिणी शूगर को और 10-1-12 को 50 लाख वक्कामुल्ला को गया। इस सारे लेन -देन के दस्तावेज ई डी के दूसरे अटैचमैन्ट आर्डर के साथ लगे हैं। लेकिन ई डी ने जो अनुपूरक चालान दायर किया है उसमें वीरभद्र सहित छः लोग अभियुक्त बनाये गये हैं और उसमें वक्कामुल्ला का नाम नहीं है। अब वक्कामुल्ला को गिरफ्तार किया गया है तो इस गिरफ्तारी से फिर सवाल उठेगा कि मुख्य अभियुक्तों को छोड़कर सह अभियुक्तों को क्यों पकड़ा जा रहा है। आनन्द चौहान के साथ भी यह सवाल उठा था। अदालत में भी यह सवाल तो उठेगा ही। इसलिये ईडी जिस तरह से इस मामले में आगे बढ़ रही है उससे लगता है कि इसमें कई अनुपूरक चालान और आयेंगे। क्योंकि जिस भारत फूडज़ और गुरचरण सिंह के नाम से ट्रांजैक्शन दिखा रखी है कल को ईडी उन्हे भी पकड़ सकती है। उसके बाद जिस गड्डे परिवार से फार्म हाऊस की खरीद दिखायी गयी है उनकी बारी भी आ सकती है लेकिन इस पूरे मामले ईडी को अन्ततः यह जवाब देना ही होगा कि मुख्य अभियुक्तों को छोड़कर सह अभियुक्तो को क्यों पकड़ा गया? या फिर ईडी ने जितने भी दस्तावेज जुटाये हैं उनकी प्रमाणिकता पर क्या उसे ही सन्देह है और इसीलिये मामले को लम्बा खिंचा जा रहा है ताकि समय के साथ सब कुछ अपने आप ही दब जाये।

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