Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

अवैध निर्माणों पर अदालत द्वारा चिन्हित जिम्मेदार कर्मीयों के खिलाफ अब तक कारवाई क्यों नही

शिमला/शैल। कसौली हत्या कांड का कड़ा संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल राज्य सरकार को लताड़ ही लगायी है बल्कि पूरे प्रदेश में हुए अवैध निर्माणों और उनके खिलाफ की गयी कारवाई की भी रिपोर्ट तलब की है। शीर्ष अदालत ने कुल्लु , मनाली , कसोल, धर्मशाला और मकलोड़गंज में हुए निर्माणों का विशेष रूप से जिक्र किया है। स्मरणीय है कि जब 2016 में सरकार ने टीपीसी एक्ट में संशोधन करके इसमें धारा 30बी को जोड़ा था तब इसे 2017 में तीन अलग-अलग याचिकाओं CWP 612 of 2017, CWP 704 of 2017 तथा CWP 819 of 2017 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इन याचिकांओं के माध्यम से उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया गया था कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार अवैध निर्माणों के 35000 दोषीयों को राहत पहुंचाना चाहती है। उस समय सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए यह कहा था कि ऐसे लोगों को नोटिस देकर यह कहा गया है कि वह इन अवैध निर्माणों को स्वयं गिरा दें। लेकिन इसी के साथ यह भी कहा था कि ऐसा करने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जायेगी लेकिन अदालत ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए इस संशोधन को रद्द कर दिया था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति त्रिलोक चौहान की खंडपीठ ने यह कहा कि In view of our aforesaid discussion, we hold that:

(i) Insertion of Section 30-B by the Amending Act is contrary to the object and purpose of the Principal Act, as also ultra vires the Constitution of India, as such we strike it down.

(ii) Judgment rendered in Consumer Action Group (supra) is clearly distinguishable, having no binding effect on the grounds of assailing the validity of the Amending Act.

(iii)&(iv) In view of specific finding in Shayra Bano (supra), holding the observations made in Binoy Viswam (supra) that arbitrariness cannot be a ground for invalidating a legislation, only to be in per incurium, as such, we hold the amendment to be violative of Article 14 of the Constitution, being manifestly arbitrary, irrational,illogical, capricious and unreasonable.
(v) Much, as we had desired, the amendment being totally ultra vires, cannot be saved by adopting the doctrine of severability. 

अदालत के इस फैसले के बाद अब जयराम सरकार ने भी उसी तरह संशोधन सदन से पारित करवा लिया है। जबकि अदालत ने इन अवैध निर्माणों के लिये दोषी अधिकारियों /कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने की अनुशंसा की है जब अदालत में यह मामला चल रहा था तब प्रशासन ने ऐसे अवैध निर्माणों की शिनाख्त करके अदालत को सूचित भी कर दिया था। इस सूचना के बाद ही अदालत ने इन अवैध निर्माणों के बिजली, पानी काटने के आदेश दिये थे। इन अवैध निर्माणों की सूची में कई प्रभावशाली लोग शामिल हैं। इन्ही लोगों के दबाव में जयराम सरकार को यह संशोधन लाना पड़ा है। लेकिन उच्च न्यायालय के साथ ही एनजीटीे और फिर सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन अवैधताओं के लिये जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने के आदेश किये हैं। शीर्ष अदालत ने तो ऐसे करीब एक दर्जन लोगों को सीधे नाम से चिन्हित करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हुए हैं। 

लेकिन इन लोगों के खिलाफ न तो पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा ने कोई कारवाई की और न ही अब विनित चौधरी कोई कारवाई करे पा रहे हैं। इन चिन्हित लोगों में टीसीपी, पर्यटन और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के लोग हैं। सूत्रों की माने तो अब जब कसौली में इन निर्माणों को गिराये जाने के लिये जिलाधीश सोलन के आदेशों पर चार टीमें गठित की जा रही थी उस समय भी इन्ही चिन्हित लोगों में से कुछ अवैध निर्माणों के मालिकोे को यह आश्वासन दे रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। यह दावा किया जा रहा था कि सरकार कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी। कसौली कांड के बाद जिस तरह के ब्यान आये हैं उनसेे भी यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि कहीं न कहीं किसी बड़े का आश्वासन अवश्य था और इसी बड़े के कारण मुख्य सचिव कोई कारवाई भी नही कर पा रहे हैं।

 

मकलोड़गंज पर अभी तक जिला जज ही नही दे पाये हैं जांच रिपोर्ट

शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से मैकलोड़गंज में हुए अवैध निर्माण पर रिपोर्ट तलब की है। मैकलोड़गंज के बी ओ टी के माध्यम से बने बस अड्डा प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर कांगड़ा के जिला जज् को सौंपी थी। इस पर चार माह में रिपोर्ट जानी थी जो अब एक वर्ष से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद भी नही गयी है। अब सरकार इसमें सर्वोच्च न्यायालय के सामने क्या तथ्य रखती है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। क्योंकि यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना उसका अधीनस्थ जिला जज ही तय समय में न कर पाये तो फिर प्रशासनिक अधिकारियों से ऐसी अनुपालना की अपेक्षा कैसे की जा सकती है यह एक बड़ा सवाल सर्वोच्च न्यायालय के सामने रहेगा।
स्मरणीय है कि धर्मशाला के मकलोड़गंज में बीओटी के आधार पर बन रहे बस अड्डा और चार मंजिला होटल तथा शाॅपिंग कम्पलैक्स के निर्माण को एक अनुज भारद्वाज ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी में चुनौती दी थी। इसमें यह आरोप लगाया गया था कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है और इसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अुनमति नही ली गयी है। इस मामलें पर सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निमार्ण पर कानूनी प्रावधानों की घोर उल्लंघना के गंभीर आरोप लगे है। इस उल्लंघना में पूरे संवद्ध प्रशासन की भी मिली भगत पायी गयी है। इस उल्लंघना के लिये प्रदेश सरकार को एक करोड़ का जुर्माना लगाया गया था और निर्माण कर रही कंपनी मै. प्रशांती सूर्य को ब्लैक लिस्ट किया गया था।
सीईसी की इस रिपोर्ट को प्रशांती सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में फैसला आया। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने मै. प्रशांती सूर्य को 15 लाख का जुर्माना लगाया और बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथॅारिटी पर दस लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का जुर्माना लगाया। जुर्माने के साथ इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को गिराने के भी आदेश पारित किये हैं। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की अनुशंसा की है।
बस अड्डा प्राधिकरण ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की फिर से अपील की। इस अपील की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले फैसले को संशोधित करते हुए इसकी जांच मुख्य सचिव से लेकर जिला जज धर्मशाला को सौंप दी और चार माह में इसकी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने के निर्देश दिये। यह निर्देश 2017 में दिये गये थे और करीब एक वर्ष हो गया है। लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक नहीं जा सकी है। इस संबंध में जब जिला जज के कार्यालय से संर्पक किया तो उन्होने कहा कि उन्हे इसकी जानकारी ही नही है। जिला जज से इस बारे में बात नही हो सकी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के वाबजूद जिला जज द्वारा चार माह में रिपोर्ट न सौंपा जाना प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के इन आदेशों के बाद जिला जज द्वारा सरकार से इस मामले में सहायता के लिये एक वकील मांगा गया था जो सरकार ने उपलब्ध करवा दिया था। यह वकील भी एक वर्ष पहले दे दिया गया था लेकिन इसके वाबजूद इसमें अभी तक और कोई कारवाई नही हो पायी है। यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना तय समय के भीतर जिला जज द्वारा भी न हो पाये तो स्वभाविक रूप से यह चर्चा का विषय तो बनेगा ही।We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers responsible for the construction of the bus stand /hotel /accompanying complex and to submit a report to this Court as to the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a suitable presenting officer to assist him in the matter. We further direct that the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his/ her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek any clarification or direction considered necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report  before this Court within a period of four months from the date a copy of this order is received by him.

गुड़िया प्रकरण में सीबीआई अब तक क्यो नही कर पायी कोई और गिरफ्तारी

शिमला/शैल। गुड़िया प्रकरण में सीबीआई ने दस माह बाद बड़ी सफलता का दावा करते हुए कांगड़ा के बड़ा भंगाल क्षेत्र के एक चिरानी को गिरफ्तार किया है। इस गिरफ्तारी पर सीबीआई ने यह दावा किया है कि पूरे फारैन्सिक साक्ष्यों के आधार पर इसको अंजाम दिया गया है। यह भी दावा किया गया है कि इस कांड में चार पांच लोग और फिर शामिल हैं जिन पर सीबीआई की पूरी नज़र बनी हुई है। सीबीआई के दावे कितना पुख्ता है और किस हद तक उसे यह मामला सुलझाने में सफलता मिल चुकी है इसका खुलासा तो आने वाले वक्त में ही सामने आयेगा। लेेकिन जो कुछ घट चुका है उसके मुताबिक अब तक इसमें सीबीआई केवल एक ही गिरफ्तारी कर पायी है। यदि इस कांड में चार- पांच लोग और भी शामिल हैं तथा उन पर सीबीआई की पूरी नजर है तो फिर अब तक अगली कोई गिरफ्तारी क्यों नही हो पायी है जबकि इस एक ही गिरफ्तारी पर कांगड़ा के सांसद शान्ता कुमार से लेकर कांग्रेस के विनय शर्मा तक कई लोग गंभीर आशंकांए व्यक्त कर चुके हैं। चिरानी नीलू की गिरफ्तारी सीबीआई ने 13 अप्रैल को कर ली थी लेकिन उसके बाद अब मई का पहला सप्ताह पूरा बीत जाने के बाद भी कोई गिरफ्तारी न हो पाना इस आशंका की संभावना को पुख्ता करता है कि उच्च न्यायालय की लताड़ के बाद हुई चिरानी की गिरफ्तारी महज़ एक अन्धेरे का ही तीर है जो आशंका शैल पहले ही व्यक्त कर चुका है। 

सीबीआई के पास यह मामला 23 जुलाई को चला गया था। सीबीआई पर अब तक लगभग दो करोड़ राज्य सरकार का खर्च हो चुका है। इस तरह करीब दस माह बाद एक चिरानी की गिरफ्तारी किया जाना और उस गिरफ्तारी की स्टे्टस रिपोर्ट दाखिल किये जाने तक मीडिया को कोई भी तफसील जारी न किया जाना ऐजैन्सी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। क्योंकि इस अकेली गिरफ्तारी से इस कांड़ को गैंग रेप करार देना संभव नही होगा। जबकि अब तक इसे सामूहिक दुष्कर्म ही माना जाता रहा है। स्मरणीय है कि यह कांड चार जुलाई को घटा था। गुड़िया चार बजेे स्कूल से निकली और उसके बाद उसे पकड़ा गया उसके साथ गैंग रेप हुआ फिर छः बजे तक उसकी हत्या भी कर दी गयी। जिस स्थान पर उसकी लाश मिली है वह स्कूल से करीब 20 मिनट का रास्ता माना जाता है। जिस जगह उसकी लाश मिली है वह भी आम रास्ते से इतनी दूर नही है कि जहां पर उसके चीखने चिल्लाने की आवाज न पहुंचती। फिर गैंग रेप से लेकर हत्या तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक छः बजे तक घट जाता है। तो क्या यह लोग पेशेवर शातिर अपराधी थे जिन्होने दो घण्टे से भी कम समय में इस सबको अंजाम दे दिया? लेकिन आम आदमी के गले यह बात आसानी से उतरती नही है। क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर न तो पुलिस ने कोई शक जाहिर किया है और न ही सीबीआई ने। यदि एफआईआर और पोस्टमार्टम रिपोर्ट दोनों ही सही हैं तो यह सारा कांड दो घण्टे से कम समय में अजाम दिया गया है। लेकिन पकड़े गये चिरानी को देखने के बाद यह नही लगता कि वह कोई पेशेवर शातिर अपराधी हो जो पकड़े जाने के लिये सीबीआई का इन्तजार कर रहा था।
इसी के साथ दूसरा सवाल यह खड़ा होता है कि जिन चार लोगों के फोटो सोशल मीडिया में मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेसबुक पेज पर वायरल हुए और फिर हटा लिये गये। ऐसा क्यों और किसने किया इस पर से न तो पुलिस और न ही सीबीआई पर्दा हटा सकी है? इस पक्ष पर अब तक चुप्पी क्यों है जबकि इन चारों लोगों ने कोटखाई पुलिस थाना में एक संयुक्त शिकायत दर्ज करवाई थी इस शिकायत पर अब तक क्या कारवाई हुई है इस पर भी कुछ भी सामने नही आया है क्यों? गुड़िया चार जुलाई को स्कूल से घर नही पहुंची। पांच जुलाई को भी घर नही पहुंची लेकिन उसके घरवालों ने न चार को और न ही पांच को इस बारे में पुलिस को सूचित किया क्यों? पांच को देर शाम लड़की के मामा को सूचित किया जो छः को सुबह तलाश के लिये निकला और उसे लाश मिल गयी। उसने मामले की जानाकरी पुलिस को दी। क्या गुड़िया के घर वालों पर पुलिस में शिकायत न करने के लिये कोई दवाब था? इस पक्ष पर भी कुछ सामने नही आया है।

यह है एफआईआर और लड़को की शिकायत













































इस मामले में छः को लाश मिलने के बाद एफआईआर दर्ज हुई। मीडिया में इसको लेकर खबरें आठ और नौ को छपनी शुरू हुई जिस पर दस तारीख को ही उच्च न्यायालय ने संज्ञान ले लिया। इसी बीच इस मामले पर जनता भी उत्तेजित हो गयी। गुड़िया न्याय मंच बन गया। जनता ने कोटखाई पुलिस थाना का घेराव करके वहां तोड़फोड़ को अजांम दे दिया। उच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा In the post lunch session, when the matter was taken up, we were informed by the learned Advocate General that Malkhana of Police Station at Kotkhai, District Shimla, H.P., stands ransacked; some of the files kept in the Police  Station burnt; five vehicles of the police department burnt; Fire Brigade is not allowed by the mob to   enter the area; and three police personnel injured, who stand referred for medical treatment to the respective hospitals. Also, though there is huge public outcry, yet police is exercising restraint in maintaining the law and order situation. It is  further submitted that in view of peculiar facts and circumstances, matter warrants investigation to be conducted by the Central Bureau of   Investigation (in short CBI). It is further prayed that necessary orders in that regard be passed. The Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh shall ensure that appropriate action is taken against the erring officials/officers/functionaries of the State, in accordance with law. Within a period of two weeks from today, he shall independently examine the matter and take appropriate action. (vii) The Director General of Police, Himachal Pradesh shall ensure  maintenance of law and order. (viii) Affidavit of the Chief Secretary and status report by the SIT be filed not later than two weeks. लेकिन आज तक मुख्य सचिव की ओर से उच्च न्यायालय के निर्देशों पर क्या कारवाई की गयी है यह भी  जनता के सामने नही आया है क्यों? सीबीआई भी इन पक्षों पर चुप है और अब इस गिरफ्तारी से पूरा परिदृश्य ही ही बदल जाता है और यह संकेत जाता है कि क्या जन आन्दोलन केवल पुलिस थाना कोटखाई के कुछ रिकार्ड को नष्ट करने के लिये ही था।

More Articles...

  1. अवैध निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सरकार के लिये बना कसौटी
  2. क्या सीबीआई की गिरफ्तारी भी अन्धेरे का ही तीर है
  3. कायाकल्प को 90 कनाल जमीन देने पर शान्ता का विवेकानन्द ट्रस्ट फिर विवादों में
  4. जिला जज भी अब तक नही कर पाये सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना
  5. सरकार में कौन सुप्रीम है वित्त विभाग या मन्त्री परिषद-बजट चर्चा के बाद उठा सवाल
  6. कर्जों पर आश्रित रहेगी यह सरकार -अग्निहोत्री
  7. माननीयों के लिये नही हो पाया अब तक विशेष अदालत का गठन
  8. आखिर क्यों कर रहे हैं वीरभद्र सुक्खु का विरोध
  9. वीरभद्र प्रकरण में अब वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर सह अभियुक्त की हुई गिरफ्तारी
  10. वीरभद्र मामले में ईडी नही कर पायी कोई और गिरफ्तारी-दायर हुआ अनुपूरक चालान
  11. नड्डा ने आयोजित की दिल्ली स्थित प्रदेश के अधिकारियों से मुख्यमन्त्री की मुलाकात
  12. क्या एचपीसीए के मामले वापिस हो पायेंगे
  13. नौ वर्षों में 35,000 करोड़ डकार चुके उद्योगों के लिये फिर मांगी गयी राहतें
  14. राज्यपाल के अभिभाषण पर अनचाहे ही घिर गयी सरकार
  15. पुलिस में हुए फेरबदल में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना
  16. नेता प्रतिपक्ष के लिये राहुल ने मुकेश पर जताया भरोसा
  17. आशा कुमारी थप्पड़ प्रकरण पर उठते कुछ सवाल
  18. चुनौती भरा होगा जयराम सरकार का सफर
  19. भाजपा की बड़ी जीत पर धूमल की हार से उठा बडा सवाल
  20. अवैध कब्जों पर यदि 2002 की पाॅलिसी कानूनन सही नही थी तो अबकी कैसे होगी

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search