शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ ईडी में चल रहे मनीलाॅंडरिंग मामलें में अन्ततः अनुपूरक चालान दायर हो गया हैं यह अन्ततः इसलिये है क्योंकि इस मामलें में ईडी ने दो बार अटैचमेन्ट आदेश जारी किये थे। जब पहला अटैचमेन्ट आदेश जारी हुआ था। उसमें कहा गया था कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को लेकर अभी जांच जारी है और इसके पूरा होने के बाद इसमें अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। पहले अटैचमेन्ट आदेश के
जर्ब ई.डी. ने इस मामलें में दूसरा अटैचमेन्ट आदेश जारी करके महरौलीे स्थित फार्म हाऊस को अटैच किया था उस समय यह माना जा रहा था कि इस आदेश के बाद किसी की गिरफ्तारी हो जायेगी क्योंकि यह फार्म हाऊस विक्रमादित्य सिंह की कंपनी के नाम है और ई.डी. के मुताबिक इसकी खरीद के लिये कुछ पैसा वीरभद्र सिंह से और कुछ पैसा वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के माध्यम से मिला है। इस अटैचमेन्ट आदेश के साथ लगे दस्तावेजों के मुताबिक पूरे पैसे की ट्रेल में वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर- वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य सिंह है। इस तरह पूरे प्रकरण में वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर एक मुख्य पात्र हैं लेकिन ई.डी. के चालान में वह अभियुक्त नामज़द नही है। वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के अभियुक्त नामज़द न होने र्से इ.डी. में दर्ज हुए मामलें के आधार पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते है। इसमें वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, चुन्नी लाल, आनन्द चौहान, लवण कुमार और प्रेम राज को ही अभियुक्त बनाया गया है।
इ.डी. के पहले अटैचमेन्ट आदेश में करीब 8 करोड़ और दूसरे में 5.6 करोड़ की संपत्तियों की अटैचमेन्ट दिखाई गयी है। इस तरह करीब 14 करोड़ की संपत्ति अटैचमेन्ट हुई है। स्मरणीय है कि सबसे पहले सी.बी.आई. ने वीरभद्र के खिलाफ आये से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था और इसका आधार बनी थी मार्च 2012 में दायर की गयी संशोधित आयकर रिर्टन में बढ़ी हुई आय को सेब बागीचे की आय बताया गया था। इस बागीचे का प्रबन्धन एर्ल.आइ.सी. ऐजैन्टे आनन्द चौहान के पास था और उसने इस आय को वीरभद्र परिवार के लिये एर्ल.आइ.सी. की पाॅलिसीयां लेने में निवेशित कर दिया था। लेकिन आयकर विभाग ने इस बढ़ी हुई आय को बागीचे की आय मानने से इन्कार कर दिया। इसी तर्ज पर सी.र्बी.आइ. ने भी इस आय को बागीचे की आय नही माना और इसे आय से अधिक संपत्ति करार दे दिया। सी.बी.आई.के इस निष्कर्ष पर्र ई.डी. ने भी मामला दर्ज कर लिया और उसने दो अटैचमेन्ट आदेशों में करीब 14 करोड़ की संपत्ति अटैच की ली। ई.डी. के अनुसार इस संपत्ति खरीद पर हुआ निवेश वीरभद्र के अपने कालेधन का है जिसे सफेद बनाने के लिये इस तरह के निवेश का सहारा लिया गया है और इस नातेेमनीलाॅंडरिंग के दयरे में आता है।
मोदी और भाजपा ने वीरभद्र के इस मामले को 2014 के लोकसभा चुनावों में खूब भुनाया। यहां तक कहा गया कि वीरभद्र के तो पेड़ो पर तो सेब की जगह नोट उगते हैं । इन विधानसभा चुनावों में भी यह बड़ा मुद्दा रहा है । पिछले चार वर्षो में यह लगातार संकेत दिये जाते रहे कि इस मामलें में वीरभद्र या उनके परिजानों की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती हैं लेकिन मोदी-जटेली की सी.बी.आई.और ई.डी. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं कर पायी। दोनों ऐजैन्सीयां ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी हैं और अब वीरभद्र के पास इन मामलों को अन्तिरम अदालत तक लड़ने के लिये पर्याप्त समय और स्थान उपलब्ध है। वीरभद्र इन मामलों को राजनीतिक प्रतिशोध से बनाये गये मामले कहते आये हैं। इसके लिये अरूण जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर पर नाम लेकर आरोप लगाते रहे है। अब जब ई.डी. के चालान से अभियुक्तों की सूची से इस वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर का नाम गायब है जिसे इसे पूरे प्रकरण का केन्द्रिय पात्र प्रचारित किया जा रहा था तो इससे यह लगने लगा है कि शायद वीरभद्र के इस आरोपो में दम था कि यह सब कुछ राजनीतिक प्रतिशोध का ही परिणाम था। इस मामले में अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।