शिमला/शैल। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सचिव, पंजाब की प्रभारी और बनीखेत की विधायक, प्रदेश की वरिष्ठ कांग्रेस नेता आशा कुमारी का थप्पड़ प्रकरण जिस ढंग से प्रचारित /प्रसारित हुआ है उससे कई ऐसे राजनीतिक और प्रशासनिक सवाल खड़े हो गये हैं जिन पर गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक हो गया है क्योंकि इस प्रकरण की एक पात्र महिला कांस्टेबल ने आशा कुमारी के खिलाफ मामला थाना सदर में दर्ज करवा दिया है। इस कांस्टेबल के बाद आशा कुमारी ने भी मामला दर्ज करवा दिया है। यह मामला जब घटा था उसके बाद आशा कुमारी ने इस पर खेद भी व्यक्त कर दिया था लेकिन इस खेद जताने के वाबजूद यह मामला दर्ज हुआ है।
स्मरणीय है कि घटना वाले दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस भवन में काग्रेस के नेताओं की एक बैठक लेने आये थे जिसमें यह विधानसभा चुनाव लड़े सारे प्रत्याशीयों, जिला एवम ब्लाक अध्यक्षों को आमन्त्रित किया गया था क्योंकि इस बैठक में कांग्रेस की हार के कारणों का आंकलन किया जाना था। राहुल गांधी को एसपीजी की सुरक्षा उपलब्ध है जिसका
कांग्रेस भवन में हुई इस बैठक के लिये सुरक्षा प्रबन्धों की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की थी क्योंकि एसपीजी जो राहुल गांधी की सुरक्षा के लिये जिम्मेदार है। स्थानीय प्रबन्धन में उसकी भूमिका इतनी ही थी कि उसके द्वारा जारी पास के बिना भीतर बैठक में कोई नहीं जा सकता था। पुलिस प्रबन्धन भी ऐसी बैठकों के लिये तैनात किये गये सुरक्षा कर्मियों से यह सुनिश्चित करता है कि वह बैठक में भाग लेने वालों को जानता हो या उन्हें आसानी से चिहिन्त कर पाये ताकि कोई अव्यवस्था की शिकायत न आयेे। इस बैठक के लिये जब आशा कुमारी और अन्य लोग तो प्रत्यक्षदर्शीयों के मुताबिक सबसेे आगे मुकेश अग्निहोत्री उनके पीछे आशा कुमारी और फिर धनीराम शांडिल थे। आशा कुमारी के साथ उनका पीएसओ भी था। सबसे पहले मुकेश निकले उनका पास वहां तैनात इसी महिला कांस्टेबल ने चैक किया फिर उनको वापिस कर दिया और वह आगे चले गये। फिर आशा कुमारी ने पास दिखाया लेकिन इस पास को देखने के बाद इसे आशा को वापिस नही किया गया। जब पास वापिस मांगा गया और बताया गया कि आशा कुमारी विधायक है तो इसी पर महिला कांस्टेबल तर्क करने लग गयी उसने साथ खड़े पीएसओ को देखकर भी नही पहचाना जबकि धनीराम शांडिल भी वहीं आशा के पीछे खड़े थे। प्रत्यक्षदर्शीयों के अनुसार कांस्टेबल का व्यवहार जायज़ नही था और इसी पर नौबत थप्पड़ तक पहुंच गयी और उसी क्षण उसका विडियो भी शूट हो गया और तुरन्त ही वायरल भी हो गया। फिर जो विडियो वायरल हुआ है उसमें आशा से पहले मुकेश के जाने की घटना नही है। पास का दिखाना और वापिस मांगना भी रिकार्ड नही है केवल थप्पड़ और उसके बदले में फिर थप्पड़ यही रिकार्ड है।
वायरल हुए विडियो को देखने से यह सवाल उठता है कि विडियो रिकार्ड करने वाला पहले से ही इस बैठक में आने जाने वालो, पुलिस के सरुक्षा कर्मीेयों और एसपीजी की कारवाई को स्वभाविक रूप से रिकार्ड नही कर रहा था जिससे आगे-पीछे की कोई चीज रिकार्ड नही है तो स्वभाविक है कि रिकार्ड करने वाले के लिये भी यह अप्रत्याशित घटना रही हो। तब यह सवाल उठता है कि ऐसे माहोल में तो सामान्यतः दोनों पक्षों को शान्त करने का प्रयास पहले किया जाता है उस माहौल में ऐसी रिकार्डिंग तो तभी संभव है जब रिकार्ड करने वालों को पहले से ही यह ज्ञात रहा हो कि अब ऐसा घटने वाला है। इस प्रकरण में न तो आशा कुमारी के व्यवहार को जायज़ ठहराया जा सकता है और न ही महिला कांस्टेबल के व्यवहार को। फिर यह सामने आना भी आवश्यक है कि क्या यहां तैनात इन सुरक्षा कर्मीयों को यह तक नही समझाया गया था कि किसी भी व्यक्ति के साथ यदि कोई पीएसओ है तो उसका अर्थ क्या होता है। फिर यहां आने वाले लोग किसी मेले में नही जा रहे थे बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष की बैठक के लिये विधायक जा रहे थे। ऐसे मे क्या वहां तैनात सुरक्षा कर्मीयों को अधिक संवदेनशील नही होना चाहिये था। क्या इस संवदेनशीलता की जिम्मेदारी अप्रत्यक्षतः शीर्ष प्रशासन की नही हो जाती है। क्या यह सुरक्षा कर्मी इन वी आई पी लोगों को नहीं जानती थी या उन्हे पहचानने की उसे सामान्य समझ भी नही थी। ऐसे बहुत सारे सवाल है जो आगे उठेंगे।