शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ ईडी में चल रहे मनीलाॅंडरिंग मामलें में अन्ततः अनुपूरक चालान दायर हो गया हैं यह अन्ततः इसलिये है क्योंकि इस मामलें में ईडी ने दो बार अटैचमेन्ट आदेश जारी किये थे। जब पहला अटैचमेन्ट आदेश जारी हुआ था। उसमें कहा गया था कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को लेकर अभी जांच जारी है और इसके पूरा होने के बाद इसमें अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। पहले अटैचमेन्ट आदेश के बाद वीरभद्र के एर्ल.आइ.सी. ऐजैन्ट आनन्द चौहान को ई.डी. ने 9 जुलाई 2016 को गिरफ्तार कर लिया था जिसे अब जनवरी 2018 में उस समय ज़मानत मिली जब ई.डी. ट्रायल कोर्ट से करीब छः बार अनुपूरक चालान दायर करने का समय लेने के बाद भी चालान दायर नही कर पायी। ई.डी. द्वारा बार-बार समय मांगने और फिर चालान दायर न कर पाने के कारण ट्रायल कोर्ट आनन्द चौहान के चालान पर आगे कारवाई नहीं बढ़ा पा रहा था। जबकि मामलें के मुख्य अभियुक्त तो वीरभद्र सिंह थे और आनन्द चौहान तो केवल सहअभियुक्त थे। इस मामलें में यदि अभी भी अनुपूरक चालान दायर न हो पाता तो शायद आनन्द चौहान का मामला ट्रायल से पहले ही समाप्त करना पड़ जाता।
जर्ब ई.डी. ने इस मामलें में दूसरा अटैचमेन्ट आदेश जारी करके महरौलीे स्थित फार्म हाऊस को अटैच किया था उस समय यह माना जा रहा था कि इस आदेश के बाद किसी की गिरफ्तारी हो जायेगी क्योंकि यह फार्म हाऊस विक्रमादित्य सिंह की कंपनी के नाम है और ई.डी. के मुताबिक इसकी खरीद के लिये कुछ पैसा वीरभद्र सिंह से और कुछ पैसा वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के माध्यम से मिला है। इस अटैचमेन्ट आदेश के साथ लगे दस्तावेजों के मुताबिक पूरे पैसे की ट्रेल में वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर- वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य सिंह है। इस तरह पूरे प्रकरण में वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर एक मुख्य पात्र हैं लेकिन ई.डी. के चालान में वह अभियुक्त नामज़द नही है। वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के अभियुक्त नामज़द न होने र्से इ.डी. में दर्ज हुए मामलें के आधार पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते है। इसमें वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, चुन्नी लाल, आनन्द चौहान, लवण कुमार और प्रेम राज को ही अभियुक्त बनाया गया है।
इ.डी. के पहले अटैचमेन्ट आदेश में करीब 8 करोड़ और दूसरे में 5.6 करोड़ की संपत्तियों की अटैचमेन्ट दिखाई गयी है। इस तरह करीब 14 करोड़ की संपत्ति अटैचमेन्ट हुई है। स्मरणीय है कि सबसे पहले सी.बी.आई. ने वीरभद्र के खिलाफ आये से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था और इसका आधार बनी थी मार्च 2012 में दायर की गयी संशोधित आयकर रिर्टन में बढ़ी हुई आय को सेब बागीचे की आय बताया गया था। इस बागीचे का प्रबन्धन एर्ल.आइ.सी. ऐजैन्टे आनन्द चौहान के पास था और उसने इस आय को वीरभद्र परिवार के लिये एर्ल.आइ.सी. की पाॅलिसीयां लेने में निवेशित कर दिया था। लेकिन आयकर विभाग ने इस बढ़ी हुई आय को बागीचे की आय मानने से इन्कार कर दिया। इसी तर्ज पर सी.र्बी.आइ. ने भी इस आय को बागीचे की आय नही माना और इसे आय से अधिक संपत्ति करार दे दिया। सी.बी.आई.के इस निष्कर्ष पर्र ई.डी. ने भी मामला दर्ज कर लिया और उसने दो अटैचमेन्ट आदेशों में करीब 14 करोड़ की संपत्ति अटैच की ली। ई.डी. के अनुसार इस संपत्ति खरीद पर हुआ निवेश वीरभद्र के अपने कालेधन का है जिसे सफेद बनाने के लिये इस तरह के निवेश का सहारा लिया गया है और इस नातेेमनीलाॅंडरिंग के दयरे में आता है।
मोदी और भाजपा ने वीरभद्र के इस मामले को 2014 के लोकसभा चुनावों में खूब भुनाया। यहां तक कहा गया कि वीरभद्र के तो पेड़ो पर तो सेब की जगह नोट उगते हैं । इन विधानसभा चुनावों में भी यह बड़ा मुद्दा रहा है । पिछले चार वर्षो में यह लगातार संकेत दिये जाते रहे कि इस मामलें में वीरभद्र या उनके परिजानों की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती हैं लेकिन मोदी-जटेली की सी.बी.आई.और ई.डी. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं कर पायी। दोनों ऐजैन्सीयां ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी हैं और अब वीरभद्र के पास इन मामलों को अन्तिरम अदालत तक लड़ने के लिये पर्याप्त समय और स्थान उपलब्ध है। वीरभद्र इन मामलों को राजनीतिक प्रतिशोध से बनाये गये मामले कहते आये हैं। इसके लिये अरूण जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर पर नाम लेकर आरोप लगाते रहे है। अब जब ई.डी. के चालान से अभियुक्तों की सूची से इस वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर का नाम गायब है जिसे इसे पूरे प्रकरण का केन्द्रिय पात्र प्रचारित किया जा रहा था तो इससे यह लगने लगा है कि शायद वीरभद्र के इस आरोपो में दम था कि यह सब कुछ राजनीतिक प्रतिशोध का ही परिणाम था। इस मामले में अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दिल्ली में प्रदेश काडर के केन्द्र की प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारियों से शनिवार को भेंट की है। यह मुलाकात केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा के आवास पर हुई है। नड्डा के आवास पर हुई यह बैठक स्वभाविक है कि नड्डा द्वारा ही आयोजित की गयी है। क्योंकि यदि ऐसे आयोजन का विचार मुख्यमन्त्री का अपना होता तो यह आयेाजन नड्डा के आवास पर होने की बजाये हिमाचल भवन में भी हो सकता था। नड्डा के आवास पर यह आयोजन होने से यह संदेश जाता है कि नड्डा ने इन अधिकारियों का परिचय मुख्यमन्त्री से करवाया और उनसे आग्रह किया कि वह मुख्यमन्त्री और राज्य सरकार को सहयोग प्रदान करें। दिल्ली स्थित प्रदेश के अधिकारियों से ऐसी मुलाकात किया जाना अपने में एक सकारात्मक प्रयास है लेकिन यदि इन अधिकारियों ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नये मुख्यमन्त्री से स्वयं मुलाकात करने की पहल की होती तो इसके राजनीतिक और प्रशासनिक मायने ही बदल जाते। इससे मुख्यमन्त्री का कद और ऊंचा हो जाता। लेकिन ऐसा नही हो पाया है। आज मुख्यमन्त्री की इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक विश्लेष्कों के लिये यह सवल खड़ा हो गया है कि क्या इस समय ऐसी मुलाकात की कोई आवश्यकता थी भीे या नहीं क्योंकि केन्द्र की ओर से जो योजनाएं राज्य में लागू हैं उनके तहत केन्द्र से ज्यादा से ज्यादा सहयोग प्राप्त कर
पाना राज्य के उन अधिकारियों पर निर्भर करता है जो इनके तहत प्रस्ताव तैयार करके केन्द्र को भेजते हैं। हर योजना के लिये राज्य और केन्द्र की कितनी- कितनी भागीदारी होगी इसके मानक तय रहते हैं और इन तय मानकों को नज़रअन्दाज कर पाना संभव नही हो पाता है। ऐसे में केन्द्र से यह सहयोग लेना राज्य के अधिकारियों पर ज्यादा निर्भर करता है। अभी प्रदेश सरकार ने बड़े स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल को अंजाम दिया है। इस फेरबदल में यह भी सामने आया है कि कई अधिकारी ऐसे स्थानों पर नियुक्त हो गये हैं जहां वह अपने अनुभव और योग्यता का पूरा- पूरा योगदान शायद न कर पायें। इसलिये जब तक प्रदेश के प्रशासन में अपने स्तर पर स्थिरता नही आ पायेगी तब तक केन्द्र के सहयोग का कोई ज्यादा प्रश्न ही नही उठता है। क्योंकि अभी एक माह के समय में ही सरकार ने कई ऐसे फैसलें ले लिये हैं जिनके प्रभाव से सरकार को बाहर निकलने में काफी समय लग जायेगा।
नड्डा के आवास पर हुए इस आयोजन में मुख्यमन्त्री के साथ मुख्यसचिव विनित चौधरी, पुलिस प्रमुख एस. आर. मरडी के अतिरिक्त प्रदेश के कुछ अन्य अधिकारी भी शामिल रहे हैं लेकिन इस अवसर पर मुख्यमन्त्री अपने किसी सहयोगी मन्त्री को साथ नही ले गये थे। इस अवसर पर नड्डा ने राज्य तथा केन्द्र में कार्य कर रहे अधिकारियों के बीच राज्य के हित में बेहतर सामंजस्य व तालमेल पर बल दिया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के अधिकारियों की कुशल व प्रभावशाली सेवाओं के लिये उनकी सराहना की और उम्मीद जताई कि वे भविष्य में भी केन्द्र तथा राज्य की इसी जज्बे से सेवा करना जारी रखेंगे।
मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा केन्द्र को भेजी गई परियोजनाओं तथा प्रस्तावों की स्वीकृतियों में तेजी लाने में संबंधित मंत्रालयों में अग्र-सक्रिय भूमिका के लिये अधिकारियों से आग्रह किया ताकि विकास की गति में तेजी आ सके। उन्होंने कहा कि अधिकारी किसी भी सरकार की रीढ़ होते हैं और नीतियां व कार्यक्रमों के निर्माण तथा जमीनी स्तर पर विकासात्मक गतिविधियों के कार्यान्वयन को गति देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जय राम ठाकुर ने कहा कि यह हिमाचल प्रदेश के लिये गौरव की बात है कि भारत सरकार में कार्यरत अनेक कुशल अधिकारी राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों से राज्य के हितों की रक्षा करने तथा राज्य की उन्नति में प्रभावी भूमिका निभाने को कहा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के कर्मचारियों से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं और सरकार उनकी बहुमूल्य सेवाओं को देखते हुए उनके हितों की रक्षा के लिये वचनबद्ध है।
मुख्य सचिव विनीत चौधरी ने केन्द्रीय मंत्री तथा मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया और आश्वासन दिया कि सरकार की नीतियों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिये हर संभव प्रयास किए जाएंगे और राज्य के लोगों का कल्याण प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित बनाया जाएगा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं आवासीय आयुक्त अनिल खाची सहित भारत सरकार में कार्यरत हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में उपस्थित थे।
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद यह ऐलान किया था कि वीरभद्र शासन में राजनीतिक प्रतिशोध की नीयत से बनाये गये आपराधिक मामले तुरन्त वापिस लिये जायेंगे। इस संद्धर्भ में एचपीसीए के खिलाफ बनाये गये मामलों का विशेष रूप से जिक्र किया गया था। सरकार का यह ऐलान दस तारीख को धर्मशाला में हुई मन्त्रीमण्डल की बैठक के बाद सामने आया था, लेकिन इसके बाद जब एचपीसीए के खिलाफ बनाया गया पहला ही मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया तब वहां यह सवाल उठा कि क्या मामले वापिस लिये जा रहे हैं क्योंकि अब तो प्रदेश में भाजपा की ही सरकार सत्ता में है। इस सवाल के उठने के बाद मामले में प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता से जब पूछा गया तो उन्होने स्पष्ट कहा कि अभी तक उन्हें ऐसी कोई हिदायत नही है। महाधिवक्ता को अबतक ऐसी हिदायत होने को लेकर इस संद्धर्भ में कई तरह की चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं।
स्मरणीय है कि एचपीसीए के खिलाफ बने पहले ही मामले में अनुराग ठाकुर एचपीसीए के पदाधिकारियों सहित पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सनान और कई अन्य अधिकारी बतौर अभियुक्त नामज़द हैं। इनके अतिरिक्त वीरभद्र के प्रधान सचिव रहे टीजी नेगी और प्रधान नीजि सचिव रहे सुभाष आहलूवालिया भी इसमें खाना 12 में अभियुक्त नामज़द है। खाना 12 में रखे गये अभियुक्तों को अदालत जब चाहे मुख्य अभियुक्तों में शामिल कर सकती है क्योंकि अदालत में आये चालान में इसका विस्तार से खुलासा किया गया है कि पूरे मामले में इनकी भूमिका क्या रही है। चालान में इन अधिकारियों के खिलाफ यह आरोप है कि इन्होने एचपीसीए द्वारा ज़मीन की मांग किये जाने से एक सप्ताह पहले ही मन्त्री परिषद् को सही स्थिति न बताकर एचपीसीए के पक्ष में जमीन का आबंटन करवा दिया। यही नहीं एचपीसीए का यह भी आवेदन नही रहा है कि ज़मीन की लीज़ की दर एक रूपया की जाये। एक रूपया लीज़ रेट करने का फैंसला सुभाष आहलूवालिया का बैतार निदेशक रहा है। यह आरोप अपने में गंभीर है। फिर एच पी सी ए को जो ज़मीन दी गयी है वह विलेज काॅमन लैण्ड है। सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब में मामले में दिये फैंसले में विलेज़ काॅमन लैण्ड के इस तरह के आबंटन पर पूरे देश में तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगा दिया है। राज्यों के मुख्य सचिवों को इस फैसले पर अमल करने के निर्देश देते हुये उनसे अनुपालना रिपोर्ट भी तलब की गयी है। एचपीसीए के प्रकरण में तो अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व पर आरोप ही यह है कि उन्होंने इस ज़मीन के ट्रांसफर का फैसला भी अपने ही स्तर पर ले लिया जबकि वह इसके लिये अधिकृत नहीं थे। इस पर फैसले का अधिकार केवल मन्त्रिपरिषद् को था।
इस मामले का चालान जब धर्मशाला कोर्ट में दायर हुआ और उसके बाद जब इसपर संज्ञान लिये जाने की प्रक्रिया शुरू हुई तब इसे प्रदेश उच्च न्यायालय में एचपीसीए ने चुनौती दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय ने एचपीसीए की याचिका अस्वीकार करते हुए इस पर संज्ञान लिये जाने को हरी झण्डी दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय में हारने के बाद एचपीसीए इसमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चली गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर ट्रायल स्टे कर दिया। उसके बाद से अब तक यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। इस मामले के सारे तथ्यों की जानकारी रखने वालों का मानना है कि इसमें जितने भी अधिकारियों की भूमिका रही है उन्होने सरकार और मुख्यमन्त्री को इसमें निश्चित तौर पर गुमराह किया है। लेकिन अब जब प्रदेश उच्च न्यायालय इसको संज्ञान योग्य मान चुका है तो क्या सरकार इसको आसानी से वापिस ले पायेगी। क्योंकि किसी मामले को वापिस लेने के लिये उसमें यह आधार बनाना पड़ता है कि उपलब्ध तथ्यों के मुताबिक मामला नही बनता है और ऐसा तभी संभव है जब इसमें किसी कारण से पुनः जांच किये जाने की नौबत आ जाये। वैसे अभी तक आर सीएस की ओर से यह नहीं आया है कि एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी क्योंकि जब एचपीसीए ने इसे सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का आग्रह आरसीएस से किया था तब विभाग इस आग्रह पर लगभग एक वर्ष तक खामोश बैठा रहा था। जबकि इस आग्रह को तुरन्त प्रभाव से स्वीकार या अस्वीकार किया जाना चाहिये था क्योंकि बहुत संभव है कि यदि यह आग्रह तुरन्त प्रभाव से अस्वीकार हो जाता है तो एचपीसीए इसे कंपनी बनाती ही ना। इस समय प्रदेश की राजनीति में एचपीसीए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। जो वीरभद्र इस मामले में अपने शासनकाल में कुछ नही कर पाया अब वह इस मामले को वापिस लिये जाने का विरोध कर रहा है। जयराम सरकार इसमें क्या और कैसे करती है उस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
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