शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद पहले ही वर्ष में 15 जनवरी 2019 तक 229 गाड़ियां राजनेताओं और अधिकारियों के लिये खरीदी है। इनमें राजभवन के लिये दो गाड़ियां एक 18,03,600 तो दूसरी 70,00,000 रूपये की खरीदी गयी हैं। सचिवालय के लिये सात गाड़ियां 2,22,50,266 रू. में ली गयी है। सचिवालय के लिये यह खरीद बैगंलूर की कंपनी किर्लोस्कर मोटर प्रा.लि. के माध्यम से की गयी है। नयी गाड़ियां पाने वालों में राज्य शिक्षा बोर्ड, राज्य कृषि बोर्ड, राज्य सूचना आयोग, योजना सलाहकार और आयुर्वेद बोर्ड शामिल हैं। इन सभी को टोयटा गाड़ियां दी गयी है। जिनकी कीमत 31 लाख से 36 लाख तक प्रति गाड़ी रही है। इन सभी अदारों को यह महंगी गाड़ियां इसलिये दी गयी हैं क्योंकि सरकार बदलने के बाद इनमें नयी ताजपोशीयं हुई थी। सचिवालय में शायद मंत्रीयों के लिये नयी गाड़ियां खरीदनी पड़ी है। सरकार द्वारा नयी गाड़ियां को खरीदने को लेकर मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष 2018-19 का बजट सदन में पेश करने के बाद विधानसभा में ही हुई पत्रकार वार्ता में भी सवाल पूछा गया था जिसे अधिकारियों ने टाल दिया था। अब यह जानकारी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पूछे गये एक सवाल के जवाब में सामने आयी है। ऐसा नही है कि 15 जनवरी 2019 के बाद नयी गाड़ियां नही खरीदी गयी है। अब भी मंहगी गाड़ियां लगातार खरीदी जा रही है। यही नहीं घाटे में चल रही एचआरटीसी ने तो इलैक्ट्रिक कार मुख्यमंत्री को भेंट की है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कर्ज लेकर खैरात बांटने की कहावत लागू होती है।
आज यह विषय इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि सरकार को लगभग हर माह कर्ज उठाने की आवश्यकता पड़ती रही है। यही नही पैट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ानी पड़ी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब सरकार की वित्तिय स्थिति मजबूत नही है तो फिर क्या इन गाड़ियों की खरीद पर करोड़ों रूपया खर्च करने की एकदम जरूरत क्यों पड़ गयी। क्या इन गाड़ियों के बिना सरकार का काम नही चल रहा था। मुख्यमंत्री के सत्ता संभालते ही प्रशासन ने चण्ड़ीगढ़ में हिस्सेदारी के दावे को लेकर बड़े- बड़े ब्यान दिलवाये थे। यह संदेश दिया गया था कि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहे मामले को कुछ ही दिनों में निपटाकर प्रदेश की माली हालत को मजबूत कर लिया जायेगा। मीडिया ने भी इन दावों को बड़ी उपलब्धि बनाकर जनता में परोसा था। लेकिन आज दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर भी इस दिशा में कोई प्रगति नही है। मुख्यमंत्री से लेकर मीडिया तक सभी मौन होकर बैठ गये हैं उद्योग मंत्री के माध्यम से प्रदेश सरकार ने केन्द्र से चौदह हजार करोड़ की सहायता मांगी है जिस पर आश्वासन तक नही मिला है। ऐसे में प्रदेश को बढ़ते कर्ज से बचाने के लिये कर्ज लेकर घी पीने की आदत को सुधारना होगा।
शिमला/शैल। देवभूमि कहलाये जाने वाले प्रदेश में रेप, महिला अत्याचार और मादक द्रव्यों के मामलों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। जनवरी 2018 से 31-7-2019 तक अपराध के 30814 मामले दर्ज हुए हैं। जिनमें रेप 544, एनडीपीएस 2080, अपहरण के 732, महिला अत्याचार 317, अभद्रता 789 और आबकारी के 4351 मामले शामिल हैं। इन अपराधों का इस गति से बढना जहां प्रदेश की कानून और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है वहीं पर आने वाले समय में सामाजिक संरचना के लिये भी एक चिन्ताजनक संकेत हैं।
इसमें चिन्ताजनक यह भी है कि जांच ऐजैन्सीयों की कार्यशैली भी ऐसे मामलों में सवालों के घेरे में आ जाती है क्योंकि अदालतों में इनकी सफलता अभी तक 43.48% तक ही पहुंच पायी है। अपराध को लेकर जो मामलें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में दर्ज हैं उसकी सफलता का रेट तो केवल 10.71% ही रहा है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सबसे बड़ी ऐजैन्सी है। यदि उसके पास आये मामलों की अदालत में सफलता 10% तक ही पहुंच पायी है तो यह सरकार के भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स के दावों पर न केवल सवाल ही खड़े करती है बल्कि उसकी प्रतिबद्धता पर भी अविश्वास पैदा करती है।
आबकारी में तो अपराध का बढ़ना सीधे सरकार के राजस्व को चोट पहुंचाता है। इसमें मामलों का बढ़ना संवद्ध प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। अपराध के इन 30814 मामलों का जो जिलावार रिकार्ड सामने आया है उसमें कांगड़ा, मण्डी, कुल्लु और शिमला का ग्राफ अन्य जिलों के जनसंख्या अनुपात में ज्यादा बढ़ना अपने में ही गंभीर सवाल खड़े करता है। विभागीय सूत्रों की माने तो शायद बहुत सारे मामलों का तो रिकार्ड पर संज्ञान ही नही लिया जाता है। यह आम चर्चा है कि नशे के बढ़ते कारोबार को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। इसके लिये सोलन में एक बड़े राजेनता की गाड़ी से चिट्टा बरामद करके नेता की गाड़ी को रिकार्ड से हटा देना और केवल ड्राईवर के खिलाफ मामला बनाना। बीबीएन से पिछले दिनों एसपी की ट्रांसफर और मण्डी में उस इन्सपैक्ट का दूसरे ही दिन तबादला कर देना जिसने नशे के कारोबारियों के खिलाफ हाथ डाला था संरक्षण के बड़े संकेतक माने जा रहे हैं।
शिमला/शैल। इन्वैस्टर मीट के प्रयासो से प्रदेश में 93000 करोड़ का निवेश आने का दावा करने वाली जयराम सरकार के समय में 15.11.2019 तक केवल 168 उद्योग ईकाईयों को र्सैंद्धान्तिक रूप से स्वीकृत प्रदान की गयी है। यह ईकाईयां सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, ऊना, शिमला, बिलासपुर तथा मण्डी जिलों में स्थापित होगी। इनमें 5435.87 करोड़ का निवेश होने की संभावना हैं। इनमें से 30 ईकाईयां उत्पादन में आ गयी है और इनमें 1689 लोगों को रोजगार उपलब्ध हुआ है। पहले से ही स्थापित 77 ईकाईयों ने विस्तार करने के लिये एमओयू हस्ताक्षरित किये हैं जिनमें 2165.44 करोड़ का निवेश तथा 7278 लोगों को रोज़गार मिलने की संभावना है। इसके अतिरिक्त मुख्यमन्त्री स्वावलम्बन योजना के तहत 428 ईकाईयां स्थापित हुई है और इन्हे 7916.69 लाख की ऋण सुविधा दी गयी है। तथा 1597 लोगों को रोज़गार मिला है। यह जानकारी उद्योग विभाग द्वारा विधानसभा में सुखविन्दर सिंह के प्रश्न के उत्तर में रखी गयी हैं।
सरकार इन्वैस्टर के प्रयासों में पिछले एक वर्ष से लगी हुई है। इसके लिये देश से लेकर विदेश तक इन्वैस्टर मीट करने के बाद अभी धर्मशाला में एक बड़ा आयोजन किया गया था जिसका उद्घाटन करने स्वयं प्रधानमंत्री आये थे। इन्वैस्टर मीट के लिये सरकार करोड़ों रूपये खर्च कर चुकी है। बल्कि 12 करोड़ तो इसके लिये केन्द्र सरकार ने दिये हैं। इन साल भर के सारे आयोजनों पर सरकारी सूत्रों के मुताबिक करोड़ो रूपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन अब तक केवल 168 ईकाईयों को ही सैद्धान्तिक रूप से स्वीकृति दी गयी है। जिनमें 5435.87 करोड़ के निवेश की संभावना है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि 93000 करोड़ के निवेश का दावा पूरा होने में दशकों लग जायेंगे और जीडीपी की जो इस समय स्थिति है उसे देखते हुए यह सारे दावे हवा-हवाई ही साबित न हो यह आशंका अभी से उभरने लग पड़ी है।
सरकार द्वारा इन आयोजनों पर जिस साही तरीके से खर्च किया गया है और उसके बाद पैट्रोल डीजल का वैट और रसोई गैस की कीमते बढ़ाई गई है उससे इस सब के औचित्य पर सवाल उठने भी स्वभाविक हैं। विधानसभा का शीतकालीन सत्र इन सवालों के लिये सबसे उपयोगी मंच सिद्ध हुआ है। इस सत्र के पहले ही दिन नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने जिस तरह से यह सवाल सदन में रखा है और उसका विधानसभा अध्यक्ष सहित पूरे सता पक्ष ने इसका विरोध किया है उससे जन आशंकाओं को बल मिल जाता है।
कांग्रेस विधायकों ने तपोवन में शुरू हुए विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही इंवेस्टर मीट को लेकर जयराम सरकार पर संगीन लांछनों की झड़ी लगा दी। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने शोकोदगार के बाद इंवेस्टर मीट का पर चर्चा की मांग करते हुए संगीन इल्जाम लगाया कि इंवेस्टर मीट पर कुछ नौकरशाहों की मिलीभगत से जयराम सरकार ने हिमाचल के अब तक इतिहास का संभवतः सबसे बड़ा घोटाला कर डाला है।
उन्होंने कहा कि ये 16 करोड़ का घोटाला है। कांग्रेस भी चाहती है कि प्रदेश में निवेश हो लेकिन सरकार ने जिस तरह का तौर-तरीका अपनाया है उससे लगता है कि ये हिमाचल के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला हो जाएगा।
मुकेश ने अपने इल्जामों में कुछ नौकरशाहों को भी लपेट लिया व कहा कि नौकरशाहों ने साजिश रच कर ये घोटाला किया है। जिस समय नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री सदन में ये इल्जाम लगा रहे थे, उस समय अधिकारी दीर्घ में इंवेस्टर मीट आयोजित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नौकरशाहों में मुख्य सचिव श्रीकांत बाल्दी, अतिरिक्त मुख्य सचिव उद्योग मनोज कुमार व प्रधान सचिव आबकारी व कराधान और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव आइपीएस अधिकारी संजय कुंडू मौजूद थे। इस बीच सतापक्ष व विपक्ष दोनों की ओर से नारेबाजी व शोरगुल शुरू हो गया।
मुकेश का कहना था कि तमाम काम छोड़कर इस मसले पर चर्चा की जाए। सदन का माहौल शांत करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल कुछ कहने के लिए अपनी सीट पर खड़े हो गए लेकिन नेता प्रतिपक्ष नहीं रुके और सरकार पर एक के बाद एक करके संगीन इल्जामों की झड़ी लगा दी।
दोनों ओर से हो रही नारेबाजी और शोरगुल के बीच बिंदल कई देर तक नजारा देखते रहे व बाद में उन्होंने शोरगुल के बीच विधानसभा की कार्यवाही को आगे बढ़ा दिया व कांग्रेस विधायकों ने इसके विरोध में सदन से वाकआउट कर दिया।
वाकआउट के बाद में बिंदल ने नेता प्रतिपक्ष व अन्य कांग्रेस विधायकों की ओर से नियम 67 के तहत नोटिस को नामंजूर कर दिया।
विपक्ष की ओर से वाकआउट करने के बाद जयराम ठाकुर ने इसे प्रदेश में निवेश रोकने के लिए कांग्रेस विधायकों की साजिश करार दिया व आगाह किया कि सरकार ईमानदारी से इस दिशा में आगे बढ़ रही है, इस तरह का रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में क्या किया है वह सब सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा कि मुकेश अग्निहोत्री खुद उद्योग मंत्री रह चुके है। इन्होंने बंगलोर, मुबंई, अहमदाबाद और दिल्ली में इंवेस्टर मीट के नाम पर चार धाम किए व एक भी पैसे का निवेश नहीं आया। जयराम ने कहा कि इंवेस्टर मीट के लिए 12 करोड़ रुपए तो केंद्र सरकार ने ही दिए है। उन्होंने मुकेश अग्निहोत्री की ओर से सदन में इस्तेमाल भाषा पर भी तल्खी में नाराजगी जताई व कहा कि विकास के मामले में राजनीति नहीं की जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ईंट का जवाब पत्थर से देगी।
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