शिमला/शैल। अभी कुल्लु में एक उपभोक्ता को सस्ते राशन की दुकान से ऐसा आटा सप्लाई किया गया है जो बैग में भी सीमेन्ट की तरह जम गया हुआ था। इस उपभोक्ता ने इस आटे का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में शेयर किया है। मजे़ की बात यह है कि यह कुल्लु की ही एक प्लोर मिल से राशन की दुकान पर गया है। बैग पर इस मिल का नाम महान रोलर फ्लोर मिल साफ पढ़ा जा सकता है और यह सप्लाई हिमाचल सरकार को गयी है यह भी बैग पर साफ लिखा है यह आटा किसी भी तरह खाने योग्य नही है। उपभोक्ता चीख-चीख कर वीडियो में यह आरोप लगा रहा है कि क्या सरकार उपभोक्ताओं को पशु समझती है। करीब एक सप्ताह से यह वीडियो सामने है लेकिन इस पर क्या कारवाई हुई है यह अभी तक सामने नही आया है।
ऐसा ही एक मामला इसी वर्ष जनवरी में शिमला में सामने आया था। इसमें राजधानी शिमला के उपनगर टूटी कंडी के एक सरकार के सस्ते राशन की दुकान से एक उपभोक्ता को ऐसे गलेसड़े चावल दे दिये गये जिन्हें आदमी तो क्या पशु भी न खाते। उपभोक्ता ने जब चावल देखे तो इसकी शिकायत खाद्य एवम् आपूर्ति मन्त्री किशन कपूर तक कर दी। मन्त्री के पास जब यह शिकायत आयी तो उन्होंने तुरन्त अपने विभाग को खींचा और कारवाई करने के आदेश दिये। मन्त्री के आदेशों के बाद विभाग हरकत में आया और रात को ही डिपो मालिक के खिलाफ कारवाई अमल में लायी गयी। इस कारवाई पर डिपो मालिक ने अपनी गलती मानते हुए सुबह दस बजे ही उस उपभोक्ता को संपर्क किया और उससे यह चावल वापिस ले लिये। विभाग के अधिकारियों ने भी उपभोक्ता
विभाग सस्ता राशन खाद्य एवम् आपूर्ति निगम के माध्यम से खरीदता है और इस खरीद के लिये एक प्रक्रिया तय है। सरकार विभाग के माध्यम से निगम को सस्ते राशन के तहत दी जाने वाली चीजों पर प्रतिवर्ष करीब छः हजार करोड़ का उपदान देता हैं। स्पष्ट है कि बड़ी मात्रा में यह सामान खरीदा जाता है। इस सामान की गुणवता और उसकी मात्रा सुनिश्चित करना उन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है जो इस खरीद की प्रक्रिया से जुड़े रहते हैं। यह जिम्मेदारी सरकार के खाद्य एवम् नागरिक आपूर्ति सचिव से शुरू होकर निगम के एमडी और विभाग के निदेशक तक सबकी एक बराबर रहती है। ऐसे में जब एक जगह से ऐसे घटिया चावल/आटा सप्लाई होने का मामला सामने आ गया तब इसकी शिकायत आने के बाद पूरे प्रदेश में हर जगह इसकी जांच हो जानी चाहिये थी। इस तरह के गले सड़े चावल डिपो तक कैसे पहुंच गये? कहां से यह सप्लाई ली गयी थी और कैसे ऐसे चावल उपभोक्ता तक पहुंच गये? इसको लेकर किसी की जिम्मेदारी तय होकर उसके खिलाफ एक प्रभावी कारवाई हो जानी चाहिये थी जिससे की जनता में एक कड़ा संदेश जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ है केवल उपभोक्ता से यह चावल वापिस लिये गये और अब घटिया आटा सप्लाई हो गया।
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