Friday, 19 September 2025
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उपचुनावों के दौरान मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अन्य विभागों का भी दायित्व रहना सवालों में

क्या 16 अक्तूबर को धर्मशाला में इन्वैस्टर मीट की प्रस्तावित समीक्षा बैठक आचार संहिता का उल्लंघन नही है इन्वैस्टर मीट के पोस्टरों पर मुख्यमन्त्री के फोटो का चुनाव आयोग ने लिया कड़ा संज्ञान-हटाने के दिये निर्देश

शिमला/शैल। इन उपचुनावों में सरकारी तन्त्र का दुरूपयोग होने का आरोप लगना शुरू हो गया है। इस संद्धर्भ में एक मामला दर्ज भी हो गया है। दूसरे में मामला दर्ज होने के कगार पर है और तीसरे विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. बिन्दल के मामले में नोटिस जारी हो चुका है। पच्छाद में दो बार आईपीएच विभाग द्वारा चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद पानी की पाईपों के दो ट्रक पकड़े गये हैं। विधानसभा अध्यक्ष चुनाव प्रचार कर रहे हैं उनके प्रचार करने को मुख्यमन्त्री ने यह कह कर जायज ठहराया है कि जब बहुमत की सरकार होती है तो ऐसा किया जा सकता है और अन्य प्रदेशों में भी अध्यक्ष चुनाव प्रचार करते हैं। मुख्यमन्त्री का यह कहना कितना तर्क संगत है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार बनती ही बहुमत से है और रहती भी तभी तक जब तक उसे बहुमत हासिल रहता है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष पूरे सदन का संरक्षक होता है और इसीलिये उसे निष्पक्ष रहना होता है। क्योंकि जब राष्ट्रपति शासन में सरकार चली जाती है और विधानसभा भी भंग कर दी जाती है तब अकेला विधानसभा अध्यक्ष ही अपने पद पर बना रहता है। अध्यक्ष पद की इस गरिमा को बनाये रखना अध्यक्ष और सरकार दोनों की ही जिम्मेदारी होती है परन्तु इस समय ऐसा हो नही पा रहा है।
यही नही चुनाव आयोग ने इन्वैस्टर मीट के पोस्टरों पर से मुख्यमंत्री के फोटो को हटाने के निर्देश जारी किये हुए हैं। इन निर्देशों से यह स्पष्ट हो जाता है कि चुनावों के दौरान इस मीट की तैयारियों का प्रचार-प्रसार आर्दश चुनाव आचार सहिंता के दायरे में आता है जिसका मुख्य निर्वाचन अधिकारी को संज्ञान लेना चाहिये। लेकिन इस संज्ञान से हटकर इस मीट की तैयारियों की समीक्षा बैठक ही 16 अक्तूबर को धर्मशाला में की जा रही है जहां पर उपुचनाव होना है। इस समीक्षा बैठक में सारा शीर्ष प्रशासन मौजूदा रहेगा। नियमों की जानकारी रखने वालों के मुताबिक यह बैठक चुनाव आचार संहिता का सीधा उल्लघंन है। लेकिन मुख्य निर्वाचन अधिकारी इसका संज्ञान नही ले रहे हैं क्योंकि उपचुनावों में वह चुनाव आयोग के साथ-साथ राज्य सरकार में भी कुछ विभागों के सचिव की भी जिम्मेदारी निभा रहे है। कायदे से चुनावों के दौरान मुख्य निर्वाचन अधिकारी को और कोई जिम्मेदारी नही दी जाती है ताकि वह भयमुक्त होकर इस जिम्मेदारी को निभा सके। अभी 10 अक्तूबर को राष्ट्रीय जनजाति आयोग एक दिन की यात्रा पर शिमला आया था। उसने मुख्य सचिव और अन्य सचिवों के साथ बैठक करके एक पत्रकार वार्ता भी कर ली। इस वार्ता में आयोग ने जनजातियों के लिये प्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों का पूरा प्रशस्ति पत्र वार्ता में रख दिया। प्रदेश के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव चल रहा है और इस क्षेत्र का आधा भाग हाटी समुदाय उसे जनजाति दर्जा दिये जाने की मांग कर रहा है। इस उपचुनाव में भी वहां पर यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस परिदृश्य में जनजाति आयोग की उपचुनावों के दौरान प्रदेश मुख्यालय में शीर्ष प्रशासन से बैठक और फिर प्रैसवार्ता करना दोनों आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आते हैं। लेकिन इस सब पर शीर्ष प्रशासन से लेकर मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक सब एकदम खामोश होकर बैठे हुए हैं जबकि चुनावों में प्रशासन की परोक्ष/अपरोक्ष भूमिका पर कोई सवाल न उठें यह उन्हे सुनिश्चित करना होता है। चुनावों के दौरान भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अन्य विभागों का भी दायित्व रहना अपने में सरकार से लेकर चुनाव आयोग तक की नीयत और नीति पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है।

प्रबोध सक्सेना और कांगड़ा बैंक लोन प्रकरण बन सकते हैं चुनावी मुद्दे

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना के खिलाफ आई एन एक्स मीडिया प्रकरण में अभियोग की अनुमति भारत सरकार द्वारा दे दी गयी है। सक्सेना के साथ ही अन्य तीन अधिकारियों के खिलाफ भी यह अनुमति दी गयी है। आई एन एक्स मीडिया प्रकरण में यह सभी अधिकारी पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त हैं। बल्कि प्रबोध सक्सेना को पदोन्नत करने की भी चर्चा चली हुई है जिससे यह सपष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार की नजर में सक्सेना चिदम्बरम आदि के खिलाफ बुनियादी तौर पर मामला सही नही है क्योंकि अभी तक इनमें से किसी की भी गिरफ्तारी इस प्रकरण में नही हुई हैं। जबकि चिदम्बरम इसी मामले में जेल में है। इन अधिकारियों के खिलाफ अब अभियोग की अनुमति आयी है। अभियोग की अनुमति तब मांगी जाती है जब मामले में जांच के बाद अदालत में चालान दायर किया जाना होता है। स्वभाविक है कि इन अधिकारियों के खिलाफ जांच पूरी करके चालान तैयार कर लिया गया है और जांच के दौरान इनकी गिरफ्तारी की आवश्यकता नही समझी गयी। ऐसे में अब यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जिन अधिकारियों की सिफारिश पर चिदम्बरम ने मोहर लगायी है जब उनको ही गिरफ्रतारी लायक नही माना गया तो फिर चिदम्बरम की गिरफ्तारी कैसे?
इसी तरह कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक द्वारा पिछले दिनों मनाली की एक पर्यटन ईकाई को 65 करोड़ का लोन स्वीकृत होने का मामला सामने आया है। यह लोन वीरभद्र शासन में स्वीकृत हुआ था और तब करीब सात करोड़ की एक किश्त ऋणकर्ता कांगड़ा बैंक की राजकीय महाविद्यालय उन्ना की ब्रांच से जारी हो गयी थी। उसके बाद सरकार बदलने के बाद इसे शायद बीस करोड़ की एक किश्त का भुगतान कर दिया गया। यह बीस करोड़ की किश्त मिलने के बाद ऋणी ने इसमें ग्यारह लाख रूपये वाकायदा चैक के माध्यम से विवेकानन्द ट्रस्ट पालमपुर को दान के रूप में दे दिये। शान्ता कुमार इस ट्रस्ट के चेरयमैन हैं उन्होने दान का यह चैक ऋणी को वापिस कर दिया क्योंकि तब तक इस ऋण को लेकर विवाद खड़ा हो चुका था। इसमें सबसे रोचक यह है कि कांगड़ा बैंक के चेयरमैन राजीव भारद्वाज भी इस ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। ऐसे में दान का यह चैक एक प्रकार से रिश्वत बनता है। सर्वोच्च न्यायालय तो रैडक्रास को इस तरह से दान देने को अपराध मानकर सजा दे चुका है। ऐसे में कांगड़ा बैंक का यह लोन और फिर उसमें से दान देना सीधा भ्रष्टाचार का मामला बनता है जिसकी राज्य सरकार को जांच करनी चाहिये थी। लेकिन जयराम सरकार ऐसा नही कर पायी है। माना जा रहा है कि कांग्रेस इस ऋण दान और प्रबोध सक्सेना मामले को इन उपचुनावों में एक मुद्दा बनाकर सरकार को घेर सकती है।

भ्रष्टाचार पर जीरो टालरैन्स के दावे हुए हवा-हवाई, 92 करोड़ की न्यूनतम दर को छोड़ 100 करोड़ में करवाया काम, दलालों के चलते लगा 8 करोड़ का चूना


रामलाल ठाकुर की पत्रकार वार्ता और विधानसभा सवाल के बावजूद नही जागी सरकार
एक भी हिमाचली को नही मिला लेबर तक का काम
 
हाईड्रो इन्जीनियरिंग  काॅलेज निर्माण में

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार बिलासपुर के बन्दला में एक हाईड्रो इन्जिनियरिंग काॅलिज बना रही है। इस कालिज के निर्माण की जिम्मेदारी भारत सरकार की ऐजैन्सी एन पी सी सी को दी गयी है। इस निर्माण की प्रक्रिया 2017 में शुरू हुई थी। दिसम्बर 2017 में इसके लिये निविदायें आमन्त्रित की गयी थी जिसमें पांच ऐजैन्सीयों ने भाग लिया था। जब निविदायें बीओजी में खोली गयी तब इनमें एन पी सी सी के रेट सबसे कम 3.4% पाये गये और इस निर्माण की जिम्मेदारी इस ऐजैन्सी को सौंप दी गयी। यह जिम्मेदारी सौंपते हुए बी ओ जी ने स्पष्ट कहा था कि Therefore, keeping in view the lowest departmental charges  into consideration as quoted by all the five agencies for the construction of Hydro Engg. College campus at Bandla (Bilaspur) the Department charges as quoted by the NPCC were found to be the lowest i.e.    @3.4%, which includes the consultancy  work for designing, planning, preparation of architectural drawings, execution and supervision of construction of campus of Hydro Engineering College. The BOG constituted a Committee to finalize the space norms and other requirements to be transmitted to the executing agency for formulation of the master plan and further, authorized the Member Secretary to issue letter to the executing agency i.e. NPCC Ltd. In this regard. The Technical committee shall submit the space norms etc. to the executing agency within 2 weeks and the Executing Agency shall submit the presentation of the master plan to the BOG by 31st January 2018 .
यह जिम्मेदारी लेने के बाद एन पी सी सी ने अगली प्रक्रिया शुरू की। इसके तहत उसने निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदारों/कंपनीयों से टैण्डर आमन्त्रित किये। इस काम के लिये प्रदेश सरकार को सौ करोड़ का धन केन्द्र सरकार ने उपलब्ध करवाया है और यह जानकारी एन पी सी सी को हो गयी थी। ठेकेदारों/कंपनीयों ने भी इसी कुल राशी को देखकर अपने -अपने रेट टैण्डर में आफर किये। इसके लिये टैक्नीकल और वित्तिय दोनों निविदायें अलग-अलग आमन्त्रित की गयी थी। इसलिये पहले टैक्नीकल निविदायें खोली गयी इनमें तय मानकों के आधार पर जो जो सही पाये गये उनकी वित्तिय निविदायें खोली गयी इनमें एक कम्पनी ने यह काम 92 करोड़ में पूरा करने की आफर दी थी और दूसरी ने 100 करोड़ में करने की आफर दी थी। इसके आधार पर यह काम 92 करोड़ की आफर देने वाले को आवंटित होना चाहिये था। लेकिन एन पी सी सी ने यह काम 92 करोड़ को छोड़कर 100 करोड़ वाले को आवंटित कर दिया। इस तरह टैण्डर में ही प्रदेश सरकार को 8 करोड़ का चूना लगा दिया गया। ऐसा क्यों हुआ इसका खुलासा वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री और अब श्री नयना देवी के विधायक राम लाल ठाकुर ने बिलासपुर में एक पत्रकार वार्ता में किया था। रामलाल ठाकुर ने आरोप लगाया था कि जो कंपनी यह निर्माण कार्य कर रही है उसने काम का अधिकारिक आंवटन होने से पहले ही मौके पर काम कैसे शुरू कर दिया है। उन्होंने यह सवाल पूछा था कि कंपनी को कैसे पता चल गया है कि काम उसी को मिल रहा है। कैसे तकनीकी निदेशालय ने कंपनी को आवंटन से पहले ही साईट सौंप दी है। रामलाल ठाकुर ने पत्रकार वार्ता में वाकायदा इसका वीडियो तक जारी किया था। बल्कि उसके बाद विधानसत्र में इस पर प्रश्न भी पूछा था जो कि संयोवगश अन्त में लगा होने के कारण चर्चा में नही आ सका था।
रामलाल ठाकुर की पत्रकार वार्ता के बाद यह मामला विभाग और सरकार के संज्ञान में आ गया था। एन पी सी सी प्रदेश सरकार  के लिये काम कर रही है। यह पैसा 100  करोड़ रूपया प्रदेश सरकार का है। इसलिये यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि उसके पैसे का कोई दुरूपयोग न हो। स्वभाविक है कि जब 92 करोड़ और 100 करोड़ आफर करने वाली दोनो कंपनीयां तकनीकी आधार पर सही तथा बराबर पायी गयी तभी उनकी वित्तिय निविदायें खोली गयी और उनके रेट सामने आये। यह रेट सामने आने के बाद नियमानुसार यह काम 92 करोड़ आफर करने वाले को आवंटित होना चाहिये था जो कि नही हुआ और सरकार का आठ करोड़ का सीधा नुकसान हो गया। यही नही 3.4% रेट के हिसाब से एन पी सी सी को भी 3.4 करोड़ से कम देने पड़ते। राज्य सरकार के संवद्ध विभाग आज तक इस घपले पर चुप है जबकि विभाग के शीर्ष तक इसकी जानकारी है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की इस ऐजैन्सी पर ऐसे ही घपलों के कई आरोप लगे हुए हैं और इन्ही आरोपों के कारण अब इस ऐजैन्सी को भंग भी कर दिया गया है। कई मामलों को लेकर सीबीआई की जांच भी चल रही है और कई अधिकारी सीबीआई शिकंजे में आ भी चुके हैं। चर्चा है कि इस ऐजैन्सी में दलालों का दबदबा बढ़ गया था। सरकारी ऐजैन्सी होने के नाम पर दलाल सरकारी विभागों में काम का जुगाड़ बैठाते थे और इसके लिये अपनी जेब से भी निवेश करते थे और बाद में अपनी पंसद के ठेकेदार को काम देकर मोटी कमाई करते थे। जैसे कि इसी काॅलिज के निर्माण में सामने आया है। जो काम एक आदमी 92 करोड़ में करने को तैयार है जब उसी काम को 100 करोड़ मे करवाया जा रहा है तो स्वभाविक है कि यह आठ करोड़ की कमाई कुछ लोगों में मुफ्त में बंट जायेगी। चर्चा है कि जब तकनीकी विभाग की टीम एन पी सी सी के काम देखने दिल्ली और आसपास गयी थी तब इन्ही दलालों ने इस टीम की अच्छी खासी आवभगत की थी। चर्चा है कि एक दलाल तो भाजपा के किसान मोर्चा का बड़ा नेता है और उसके संबंध कांग्रेस में भी ऊंचे स्तर तक है। इसी का सहयोगी एक करोड़पति ऐसे प्रबन्धों के लिये निवेश की जिम्मेदारी लेता है।
ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रदेश सरकार इस आठ करोड़ के घपले की जांच करेगी और इस नुकसान को बचायेगी या फिर राजनीतिक दवाब में यह सब दब जायेगा। 2017 में एन पी सी सी को दिया यह काम इस वर्ष जून में पूरा हो जाना चाहिये था जो कि नही हुआ है। यही नहीं जब इस पर सवाल उठने शुरू हुए थे तब निर्माणकर्ता कंपनी ने स्थायी लेबर को भी काम से निकाल दिया था और उसके बाद एक भी हिमाचली को काम पर नही रखा है। विभाग यह सब जानते हुए भी चुप है और इसी कारण से सवालों की गंभीरता भी बढ़ती जा रही है।

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