Thursday, 18 September 2025
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फिर होगी भ्रष्टाचार पर राजनीति की रस्म अदायगी


भाजपा ने सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में गठित की आरोप पत्र कमेटी

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने के लिये पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवम् शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी के अन्य सदस्य है पूर्व मन्त्री एवम विधायक महेन्द्र सिंह, राजीव बिन्दल, जयराम ठाकुर रविन्द्र रवि, रणधीर शर्मा और विपिन परमार। यह कमेटी प्रदेश के सभी भागों और सरकार के सारे विभागों की कारगुजारी के बारे में सूचनाएं एकत्र करके आरोप पत्र तैयार करेगी। दिसम्बर में सरकार के चार साल पूरा होने पर यह आरोप पत्र सौंपा जायेगा। वीरभद्र के इस कार्यकाल में यह भाजपा का दूसरा आरोप पत्र होगा। पहला आरोप पत्र सरकार के तीस महीने पूरे करने पर सौंपा गया था और इसमें तीस ही आरोप थे। अब के आरोप पत्र में क्या कुछ रहता है इसका खुलासा तो आरोप पत्र के आने पर ही होगा।

लेकिन भाजपा के इस प्रस्तावित आरोप पत्र के परिदृश्य में जो सवाल उभरते हैं कि वह आरोप पत्र से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हंै क्योंकि सत्तारूढ़ सरकारों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करना एक तरह से राजनीतिक संस्कृति बनता जा रहा है। ऐसे में यह स्वाल उठना स्वभाविक है कि आरोप पत्र से होगा क्या? क्या आरोप पत्र जारी करने से यह प्रमाणित होता है कि आरोप पत्र जारी करने वाला ईमानदारी से भ्रष्टाचार के खिलाफ है? क्या इससे यह प्रमाणित होता है कि आरोप पत्र जारी करने वाला सत्ता में आकर इन आरोपों की जांच करके भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवायेगा? यदि पूरी व्यवहारिक ईमानदारी से इन सवालों की पड़ताल की जाये तो इनका जवाब नकारात्मक ही मिलता है। वीरभद्र के इसी कार्यकाल में भाजपा का यह दूसरा आरोप पत्र होने जा रहा है लेकिन भाजपा के पहले आरोप पत्र का क्या हुआ? उसकी जांच कहां तक पंहुची है? यदि सरकार ने उसकी जांच नहीं करवाई है तो भाजपा ने उन आरोपों को लेकर कहां किस अदालत में कथित दोषियों के खिलाफ कोई मामला दायर करके अदालत के माध्यम से जांच करवाने का आग्रह किया? भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया है बल्कि आरोप पत्र जारी करने के बाद स्वयं भी उन्हीं आरोपों पर प्रदेश की जनता के बीच कोई बहस तक उठाने का साहस नहीं दिखाया है। 2003 में जब कांग्रेस वीरभद्र के नेतृत्व में सत्ता में आयी थी उस समय भी भाजपा ने बतौर विपक्ष सरकार के पूरे कार्यकाल में ऐसे तीन आरोप पत्र सौंपे थे। भाजपा-धूमल के नेतृत्व में फिर सत्ता में आयी। दिसम्बर 2012 तक भाजपा की सरकार रही। उस दौरान तीन में से केवल दो आरोप पत्र विजिलैंस को जांच के लिये भेजे। विजिलैंस ने इन आरोप पत्रों की पड़ताल करके जांच के लिये कुछ मुद्दे चिन्हित किये। इन मुद्दों पर अगली कारवाई की स्वीकृति लेने के लिए इन्हे सरकार को भेजा। लेकिन धूमल सरकार की ओर से इस संद्धर्भ में विजिलैंस को कोई निर्देश नहीं गये। विजिलैंस ने अपने स्तर पर इन मुद्दों को आगे नहीं बढ़ाया। जबकि विजिलैंस को जांच करने के लिये सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता ही नहीं थी। इस तरह उन गंभीर आरोपों पर आगे आज तक कोई कारवाई नहीं हुई है।
भाजपा भी उन आरोपों को भूल गयी है और कांग्रेस के जिन मन्त्रीयों और दूसरे लोगों के खिलाफ यह गंभीर आरोप लगाये थे उन्होने भी आरोप लगाने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की है। इस संद्धर्भ में कांग्रेस का भी चाल, चरित्र और चेहरा भाजपा से कतई भिन्न नहीं है। कांग्रेस ने भी बतौर विपक्ष हर बार भाजपा सरकारों के खिलाफ ऐसे ही आरोप पत्र दागे हैं। सत्ता ने आने पर अपने ही आरोप पत्रों पर जांच करवाने का साहस नहीं दिखाया है। बल्कि 31 अक्तूबर 1997 को वीरभद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन सहयोग का आह्वान करते हुए एक रिवार्ड स्कीम अधिसूचित थी। इस स्कीम के तहत भ्रष्टाचार की शिकायतों पर एक माह के भीतर प्रारम्भिक जांच करवाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन इस योजना के तहत आयी शिकायतों पर वर्षों तक कोई कारवाई नहीं हुई है। वीरभद्र अपनी ही अधिसूचित स्कीम पर अमल नहीं कर पाये हैं। इस तरह आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ जितने भी बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं व्यवहार में उन पर कभी कोई अमल नहीं हुआ है।
सबसे रोचक पक्ष तो यह रहा है कि भ्रष्टाचार के किसी भी मामले का हमारे उच्च न्यायालय ने भी कभी कोई स्वतः संज्ञान नही लिया है। जबकि यह आरोप पत्र हर बार समाचार पत्रों में चर्चित रहे हैं। बल्कि उच्च न्यायालय के पास अवय शुक्ला की वह रिपोर्ट जिसमें जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर 65 किलोमीटर रावी नदी के ही लोप हो जाने का कड़वा सच्च दर्ज है आज तक लंबित है। जबकि अवय शुक्ला को रिटायर हुए भी अरसा हो गया है। इसी तरह जे.पी. उद्योग के थर्मल प्लांट के संद्धर्भ में उच्च न्यायालय ने ही एक एसआईटी पुलिस अधिकारी केसी सडयाल के तहत गठित की थी। एसआईटी की रिपोर्ट उच्च न्यायालय मे पहुंची हुई है। सडयाल रिटायर भी हो चुके हैं लेकिन इस रिपोर्ट पर आज तक कोई कारवाई सामने न आई है। ऐसे मे भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी राजनीतिक दल या नेता के किसी भी दावे पर जनता आज विश्वास करने को तैयार नही है और यह आरोप पत्र जारी करना रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रह गया है।

ठियोग रोहडू सड़क के गिर्द केन्द्रीत होती शिमला की राजनिति

शिमला/शैल। ठियोग कोटखाई-हाटकोटी रोहडू रोड़ की हालत को लेकर पूर्व मन्त्री नरेन्द्र बरागटा के आरोपों


को सिरे से नकारते हुए मुख्य संसदीय सचिव रोहित ठाकुर ने दावा किया है कि इस सड़क का 80% कार्य पूरा हो चुका है और शेष बचे कार्य को भी जून 2017 तक पूरा कर लिया जायेगा। रोहित ठाकुर ने यह भी दावा किया कि क्षेत्र के विकास के लिये वह अब तक नावार्ड के माध्यम से सौ करोड़ की योजनाएं स्वीकार करवा चुके हैं और उन पर काम भी कई स्थानों पर पूरा हो चुका है व अन्य पर काम चल रहा है। यह दावे ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता करते हुए पूर्व मन्त्री बरागटा को चुनौती दी कि वह इस सेब सीजन के दौरान एक सप्ताह तक इस सड़क के बन्द रहने के अपने आरोपों को प्रमाणित करें। ठाकुर ने आंकडे रखते हुए बरागटा को याद दिलाया कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में उनके बागवानी मन्त्री रहते हुए कैसे सेब के हजारों बैग नष्ट करने पडे़ थे। उन्होने स्मरण दिलाया कि भाजपा शासन के दौरान इस सड़क का केवल 18% काम ही पूरा हो पाया था। बरागटा जब भाजपा शासन में मन्त्री थे उसी दौरान 2010 में जुब्बल के एक देवेन्द्र चैहान ने प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर इस सड़क की स्थिति की ओर सरकार का ध्यान आकर्शित किया था।

स्मरणीय है कि 80 किलोमीटर लम्बी इस सड़क की रिपेयर का काम जून 2008 में शुरू हुआ था और इसके पूरा होने का लक्ष्य जून 2011 रखा गया था। इस काम केे लिये अन्र्तराष्ट्रीय विकास ऐसोसियेशन आई वीआरडी सेे ़ऋण लिया गया है। इसके लिये अन्र्तराष्ट्रीय टैण्डर के माध्यम से चीन कीे कंपनी लौंजियान कोे 228.26 करोेड़ का ठेको दिया गया था और इसमें अमेरिका कीे लूईस बर्गर ग्रुप की सेवाएं बतौर कंसलटैन्ट ली गयी थी। जब यह कंपनी तय समय सीमा के भीतर अपना काम पूरा नही कर पाई तो धूमल सरकार ने इसका कार्यकाल बढ़ाकर 14.4.2012 कर दिया था।
लेेकिन मार्च 2012 में जब इसके कार्य का आकलन किया गया तब यह कंपनी केवल 13.49 प्रतिशत काम ही पूरा कर पायी थी। कंपनी ने समय पर काम पूरा न कर पाने के लियेे समय समय पर जो कारण गिनायेे है। उनमें दोे तीने मामलों में अदालत सेे स्टे जमीन अधिग्रहण के बाद कुछ लोगों को मुआवजे अदायगी न होे पाना औैर सड़क के किनारेे 875 पेडोें के न काटे जाने जैैसे कारण प्रमुख रहें है। लेकिन इसीे सड़क के मामले मेेेे वर्ष 2010 में जुब्बल केे देेवेेन्द्र चौहान ने एक जनहित याचिका भी प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर की थीे। इस याचिका की सुनावाई के दौैरान उच्च न्यायालय ने 20.5.2011 को भू अधिग्रहण अधिकारी कोेेे जमीन के मुआवजों केेे मामलों पर एक माह केे भीतर शपथ पत्र दायर करनेे तथा कंजरवेेटर फारेस्ट भारत सरकार चण्डीगढ़ को पेेेडो के संद्धर्भे में आवश्यक स्वीकृतियां देनेे के निर्देंश दिये थे। उच्च न्यायालय के इन निर्देशोेें पर भू अधिग्रहण अधिकारी नेे 15,46,22031 रूपयेेे का मुआवजा तुरन्त जमा करवाया। जिसमें से 13,36,66,867 रूपये का लोगों को भुगतान भी तुरन्त हो गया। पेडों केे संद्धर्भ में भी तीन दिन के भीतर सारी कारवाई पूरीे हो गयीे। उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायधीश को भी निर्देश दिये कि इस सड़क के संवंध में आयी सारी याचिकाओं का निपटारा एक माह के भीतर कर दिया जाये और ऐेसा हो भी गया। उच्च न्यायालय के निर्देशो पर एक माह के भीतर सारे लंबित मामलेे हल हो गए थेे।
उच्च न्यायालय के 20.5.2011 के निर्देशों के बाद 2.7.2012 को जो टिप्पणी इसी मामले पर उच्च न्यायालय ने की है चौकाने वाली है उच्च न्यायालय ने 2.7.2012 को कहा है कि that there is hardly tangible progress in work,  apparently, neither the  contractor nor the Government is serious in the matter, what action the Govt. has taken in the mattter is not quite clear despite the unsatisfactory  progress in the execution of work. The contractor has been raising one or the other evasive objection to   justified their in-action, instead or taking proper action for completing the work as per contract. It is high time that the Govt. view the matter with required seriousness
उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद 2013 में चीन की इस कंपनी से ठेका रद्द करके अब एक चड्डा एण्ड चड्डा कंपनी को शेष बचा हुआ काम 350 करोड़ में दिया गया। अभी इस सड़क की रिपेयर की लागत 132 करोड़ बढ़ चुकी है और इसके पूरा होने तक और बढ़ने की संभावना बनी हुई है। इस बढ़ी हुई लागत के लिये कौन जिम्मेदार है इसकी जबावदेही तय करने के लिये न तो सरकार ने और न ही उच्च न्यायालय ने कोई ध्यान दिया हैै।
सड़क के काम मे देरी क्यों हो रही है इसको लेकर विधानसभा में भाजपा शासन में भी प्रश्न उठते रहे है और आज कांगे्रस शासन मे भी उठ रहें है। इस सड़क के कारण दुर्घटनाएं हो चुकी है और उनमें जानमाल का कितना नुकसान हो चुका है इसके आंकडेे़ भी उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता अपने शपथ पत्र के माध्यम से रख चुके है। यह सड़क कभी स्टेट रोड़ हुआ करती थी जिसे भाजपा शासन में बदल कर जिला रोड़ कर दिया गया था। स्टेट रोड़ से जिला रोड़ करके इसका स्तर और अहमियत क्यांे घटाई गयी इस पर कभी किसी भाजपा नेता ने कोई सवाल नहीं उठाया है। जबकि इस सेब बहुल क्षेत्र के लिये यह सड़क मुख्य लाईफ लाईन थी और आज भी है। यह सवाल आज इसलिये प्रसांगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भाजपा ने इस सड़क को लेकर रोहडू से लेकर शिमला तक पद यात्रा का आयोजन किया था और इस आयोजन के बाद राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा तथा नरेन्द्र बरागटा ने उच्च न्यायालय मे एक याचिका भी दायर कर दी।
नेरन्द्र बरागटा की इस याचिका को प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित मानने से इन्कार करते हुए उन्हें इससे बाहर कर दिया है। अदालत ने बरागटा की याचिका को राजनीति से प्रेरित करार दिया है। अदालत ने साफ कहा कि Applying  the above tests to the facts of the present case and while keeping in view paragraph. 1 of the writ petition that the petitioner was an  ex-Minister, the writ petition cannot be retained as public interest litigation on behalf of the petitioner.
भाजपा शासन में इस सडक के काम देरी क्यों हुई? इसके लिये सरकार की ओर से काम कर रही कंपनी को कैसा और कितना सहयोग मिला है इसका खुलासा इसी याचिका में 22.2.2011 को उच्च न्यायालय में आये चीफ इन्जिनियर के शपथ पत्र से हो जाता है। इस परिदृश्य में आज बरागटा द्वारा इस सड़क को लेकर राजनीति करना निश्चित तौर पर भाजपा में घटे सब कुछ को जन चर्चा का विषय बना देगा यह तय है।

 
 

अवैध निर्माण नियमितिकरण में क्या उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद राजभवन की स्वीकृति मिलेगी

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार ने इस मानसून सत्र के अन्तिम दिन नगर एंव ग्राम नियोजन अधिनियम 1977 में संशोधन पारित किया है। संशोधित अधिनियम में अवैध भवन निर्माणों को नियमित करने के लिये कुछ फीस का प्रावधान करके नियमितिकरण का रास्ता खोल दिया गया। ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर पूरे प्रदेश में भवन निर्माणों को नियोजित करने के लिये यह अधिनियम लागू है। नगर निगम और नगरपालिका क्षेत्रों में तो इस अधिनियम से पहले से ही भवन निर्माणों को नियोजित करने की व्यवस्था लागू है। लेकिन इस सबके बावजूद भवन निर्माण नियमों का उल्लंघन होता आया है और इस उल्लंघन को नियमित करने के लिये सरकार रिटैंशन पाॅलिसियां लाकर ऐसे निर्माणों को नियमित करती रही। लोग नियमों का उल्लंघन करते रहे और सरकार उन्हें नियमित करती रही।

इस बार भी सरकार ने अध्यादेश जारी करके नियमितिकरण की योजना अधिसूचित की थी। इस योजना पर सभी क्षेत्रों से तीव्र आपत्तियां मुखरित हुईं। यहां तक की नगर निगम शिमला के हाऊस ने ध्वनिमत से इस योजना पर अपना विरोध दर्ज करवाया। लेकिन इन सारे विरोधों/आपत्तियों को सिरे से खारिज करते हुये विधानसभा में सरकार ने इसे पारित करवा लिया। राज्यपाल की स्वीकृति के लिये भी भेज दिया गया है और स्वीकृति के बाद यह लागू भी हो जायेगा।
लेकिन इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय की जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की खण्ड पीठ ने एक फैसले में इस प्रस्तावित नियमितिकरण को एकदम असंवैधानिक करार दे दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि-It is expected from the State to maintain rule of law. The action of the State Government to regularize the unauthorized construction/encroachments is suggestive of non-governance. प्रदेश में इससे पहले सात बार रिटैन्शन पाॅलिसियां सरकार ला चुकी है। अन्तिम बार 2009 में रिटैंशन पाॅलिसी आयी थी। उस समय प्रदेश में 8198 मामले अवैध निर्माणों के थे जिनमे से 2108 निर्माण इस पालिसी के तहत नियमित हो गये थे और 6090 मामले बचे थे। लेकिन इस बार यह संशोधन लाते समय अवैधनिर्माणों की संख्या 13000 कही गयी है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस रिटैंशन पाॅलिसी के बाद सात हजार नये अवैध निर्माण खड़े हुए हैं। शिमला में दस-दस मंजिलें भवन खड़े हुए हैं। पांच और इससे अधिक मंजिलों वाले भवनों की सूची नगर निगम शिमला से कई बार विधानसभा पटल तक आ चुकी है। हर बार रिटैंशन पाॅलिसी आने के बाद अवैध निर्माण रूकने के स्थान पर बढ़े ही हैं।
अवैध निर्माणों के नियमितिकरण पर चिन्ता जताते हुये अदालत ने कहा है कि Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
The regularization of unauthorized constructions/encroachments on public land will render a number of enactments, like Indian Forest Act 1927, Himachal Pradesh Land Revenue Act, 1953 and Town and Country Planning Act, 1977 nugatory and otiose. The letter and spirit of these enactments cannot be obliterated all together by showing undue indulgence and favouritism to dishonest persons. The over-indulgence by the State to dishonest persons may ultimately lead to anarchy and would also destroy the democratic polity. इस परिदृष्य में अब जनता की निगाहें राजभवन पर टिकी हैं कि जनता और अदालत की चिन्ता व नाराजगी का सम्मान करते हुये माहमहिम इस संशोधन को स्वीकृति प्रदान करते हैं या वापिस लौटाते हैं। क्योंकि खेल विधेयक आजतक राजभवन में लंबित है।

स्टेट को आपरेटिव बैंक की कंप्यूटर खरीद पर उठे सवाल

शिमला/शैल। प्रदेश के राज्य सहकारी बैंक में इन दिनों अन्जाम दी जा रही कंप्यूटर खरीद पर गम्भीर सवाल उठ खड़े हुये हैं। राज्य सहकारी कृषि एंव ग्रामीण विकास बैंक तथा जिला शिमला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष शेर सिंह चैहान नेे प्रैस को जारी एक ब्यान में इस कंप्यूटर खरीद को एक बड़ा घोटाला करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि बैंक में 1998-99 में कंप्यूटराइजेशन शुरू हुई थी और उसके बाद से बैंक का सारा काम कंप्यूटर के माध्यम से हो रहा है। जब कभी कोई कंप्यूटर खराब होता था उसे रिपेयर करवा लिया जाता था। कभी कभार ही किसी कंप्यूटर को रिपलेस करवाने की नौबत आती थी।
लेकिन अब प्रबन्धन ने सारे कंप्यूटर एक मुश्त नये खरीदने का फैंसला लिया है। नया कंप्यूटर 53,550 रूपये में खरीदा जा रहा है लेकिन इसी कंपनी को पूराना कंप्यूटर जो कि ठीक चालू हालत में है महज़ 1200 रूपये में दिया जाता है। जबकि इसी पुराने कंप्यूटर को यह कंपनी 7000 से 9000 के बीच बेच रही है इसी तरह के पुराने पिं्रटरज़ जो कि 13120, 24805 और 28665 रूपये मंे खरीदे गये थे अब 300 और 200 रूपये मे इसी कंपनी को दिये जा रहे हैं। पुराना स्कैनर 50 रूपये में दिया जा रहा है। सवाल उठाया जा रहा है कि जब कंपनी पुराने कंप्यूटरों को बैंक से महज़ 1200 रूपये में लेकर सात से नौ हजार के बेच रही है तो इस काम को बैंक ने अलग से स्वतन्त्रा में क्यों नही किया। पुराने कंप्यूटरों में ही कई लाख का गोल माल होने का आरोप है। नये कंप्यूटरों की खरीद करोड़ों की है। इसकी निविदाओं को लेकर भी कई सवाल खडे़ हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब पुरानेे कंप्यूटर ठीक काम कर रहे थे तो फिर उन्हे एक मुश्त ही बदलने का फैंसला क्यों लिया गया। आरोप यह भी है कि बैंक की खरीद शाखा में तैनात कर्मचारी लम्बे अरसे से उसी जगह पर तैनात है। प्रबन्धन उन्हे बदलने का साहस ही नहीं कर पाता है। बैंक में हर वर्ष कई करोड़ों की खरीद को यही लोग अंजाम देते आ रहे हैं। खरीद के लिये अपनाई जा रही प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में हैं। खरीद शाखा के स्टाफ को छोड़कर बाकी सभी शाखाओं का स्टाफ बदलता रहता है। बैंक में भी आम चर्चा है कि इन लोगों को यहां से बदलना आसान नहीं है। यदि इस शाखा के स्टाफ को बदलकर इसके माध्यम से की गई खरीद की गहन जांच की जाये तो कई चैंकाने वाले खुलासे सामने आ सकते हैं। कुछ लोगों के बारे में तो यहां तक चर्चा है कि उन्होने इतनी संपत्ति इकट्ठी कर ली है जो उनकी आय के स्त्रोत से कहीं अधिक है।
पिछले दिनों बैंक मे हुई भर्तीयों को लेकर भी शेर सिंह चैहान ने गंभीर आरोप लगाये हैं। इन आरोपों का प्रबन्धन की ओर से कोई सार्वजनिक जवाब नहीं आया है। बल्कि चैहान के खिलाफ ही किसी बहुत पुराने मुद्दे को कुरेद कर कुछ निकालने के लिये विजिलैंस को सक्रिय किया गया है। दूसरी ओर माना जा रहा है कि बैंक में खरीद के नाम पर, भर्तीयों के नाम पर और रिपेयर के नाम पर जो करोड़ो के गोल-माल होने की आशंका बैंक में आम चर्चित है उसको लेकर विधिवत शिकायत कभी भी होने की संभावना है। चर्चा है कि शीर्ष प्रबन्धन में बैैठे कुछ बड़े लोगों ने कुछ होटलों और विद्युत परियोजना के लिये दिये गये ट्टणों की वसूली में बैंक को भारी नुकसान पंहुचाया है। इन लोगों ने जो संपत्तियां अर्जित कर रखी है उनको लेकर भी बड़े खुलासे सामने आने की संभावना है।

युग हत्या कांड नौकर के नार्को से खुला इस अपहरण और हत्या का मामला

शिमला/शैल। चार साल के मासूम युग के अपहरण और फिर हत्या के कांड को सुलझाने में सीबीआई को युग के कारोबारी पिता के अपने नौकर के नार्को से ही इन अपराधियों तक पहुचने में सफलता मिली है। इन्ही की शिनाख्त पर युग का कंकाल पानी के उस टैंक से बरामद हुआ है जिसे पीलिया प्रकरण में नगर निगम कई बार साफ करने का दावा कर चुकी है। टैंक की सफाई में यह कंकाल क्यों सामने नहीं आया? इसको लेेकर निगम की सफाई के दावों पर भी सवालिया निशान लग रहा है। और इसी बिन्दु पर सीबीआई ने नगर निगम के खिलाफ भी मामला दर्ज करने की सिफारिश की है। सीबीआई की सिफारिश के बाद शहर की जनता के भी कई वर्गों ने नगर निगम के शीर्ष प्रबन्धन के खिलाफ एफआईआर दर्ज किये जाने की मांग की है। इस कांड ने शहर की जनता को इस कदर हिला दिया है कि जनता अपना रोश प्रकट करने के लिये कैण्डल मार्च तक कर रही है।

लेकिन इस कांड का जो खुलासा अब तक सामने आया है इसके मुताबिक 14-6-2014 को शाम को युग का अपहरण होता है। 16 जून को इसकी एफआईआर दर्ज होती है। 22 जून को ही इस मासूम को टैंक में डूबो कर मार दिया जाता है। लेकिन इस अपहरण को लेकर फिरौती की पहली मांग ही 27 जून को आती है। उसके बाद फिरौती मांगने का सिलसिला चला रहता है। जब युग को 22 जून को ही पानी के टैंक में डूबो दिया गया था तो फिर उसको मारने के बाद फिरौती की मांग क्यों आती है? क्योंकि अगर फिरौती देना मान लिया जाता तो यह लोग युग को कहां से लाकर देते? पुलिस से यह मामला 14-8-2014 को सीआईडी को ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस दौरान केवल ठियोग का एक व्यक्ति फोन काॅल करके युग की सूचना देने के लिये 20 लाख की मांग करता है पुलिस इस काॅल को टैªक करके इस व्यक्ति को पकड़ लेती है, गहन पूछताछ करती है। लेकिन कुछ भी महत्वपूर्ण सुराग नहीं मिलता है और अदालत से इसे जमानत मिल जाती है। लेकिन जब तक यह मामला पुलिस के पास रहा इन तीनों अभियुक्तों की तरफ किसी का कोई शक तक नहीं गया। जनवरी 2015 में न्यू शिमला में मोबाइल और लेपटाॅप चोरी का एक मामला घटता है। जिसकी 22 जनवरी 2015 को एफआईआर होती है। इस चोरी की जांच में पुलिस इन अभियुक्तों तक पहुंचती है। 26 मार्च को इन्हें गिरफ्तार किया जाता है। 30 मार्च को इन्हे जमानत मिल जाती है। क्योंकि चोरी का सारा सामान इनसे बरामद हो जाता है। इस चोरी की घटना तक भी युग अपहरण हत्या के संद्धर्भ में यह कहीं शक के दायरे में नहीं आते हैं।
इसके दौरान पुलिस गुप्ता के परिजनों से पूछताछ करती है। लेकिन कहीं कोई सुराग हाथ नहीं लगता है। अन्त में गुप्ता के नौकर का नार्को टैस्ट करवाया जाता है। उस नार्को में चन्द्र का नाम बार बार आता है यहां से चन्द्र शक के दायरे में आता है। चोरी कांड में उसके और उसके साथियों का पकड़ा जाना सामने आता है। चोरी की गिरफ्तारी के दौरान ली गयी जामा तलाशी में इनके मोबाईल बगैरा पुलिस ने अपने कब्जे में ले लेती है और सीआईडी अदालत के माध्यम से इनके मोबाईल पुलिस से हासिल करती है। चन्द्र का मोबाईल गहनता से खंगाला जाता है उससे महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगते है और चन्द्र से कड़ी पूछताछ होती है और फिर पूरे प्रकरण की पर्तें खुलती चली जाती हैं और अन्त में ये तीनों आभियुक्त सीआईडी की गिरफ्त में आ जाते हैं।
लेकिन अभी भी इस मामले में ये बिन्दु स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जब युग को 22 जून 2014 को ही पानी के टैंक में डुबो दिया था और इनकी ओर कोई शक तक नहीं था फिर उन्होने उसकी मौत के बाद फिरौती मांगने का सिलसिला क्यों शुरू किया? अभी तक सीआईडी के पास इनके अपने ब्यानों के अलावा और कोई ठोस सबूत नहीं है। कंकाल की फाॅरेंसिक जांच और डीएनए टैस्ट के परिणामों से ही इनके ब्यानों के माध्यम से सामने आये पूरे प्रकरण के खुलासे की प्रमाणिकता निर्भर करती है। क्योंकि सामान्यतः यह बात गले नही उतरती है कि कोई व्यक्ति अपहरित की हत्या कर देने के बाद भी फिरौती की मांग जारी रखेगा और इस मामले में तो पुलिस रिकार्ड के मुताबिक फिरौती की मांग ही हत्या के बाद आती है। यदि फिरौती की मांग न आती तो सम्भवतः इस कांड़ पर से पर्दा ही ना उठ पाता। तो ऐसे में जो सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इस अपहरण कांड़ के पीछे यही तीनों लोग थे या इनके पीछे भी कोई और था। सीआईडी को इस मामले को ठोस सजा तक पहुंचाने के लिए अभी ठोस प्रमाण जुटाने होंगे ऐसा माना जा रहा है। बहरहाल पूरे प्रदेश की नजरें इस कांड पर लगी हुई हैं क्योंकि इसमें राजनीति का दखल भी सामने आ गया है।

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