शिमला/ब्यूरो। हिमाचल प्रदेश ने खुला शौच मुक्त राज्य होने का लक्ष्य तय समय सीमा से पांच माह पहले ही पूरा कर लिया है। इसमें देश के बड़े राज्यों में यह मुकाम हासिल करने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया हैै। यह दावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने होटल पीटर हाफ में इस उपल्क्ष में आयोजित एक समारोह में केन्द्रिय ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा की मौजूदगी में किया है। सरकार के इस दावे से हिमाचल विश्व बैंक से स्वच्छता प्रौजैक्ट के लिये स्वीकुत नौ हजार करोड़ की सहायता पाने में भी भागीदारी बन गया है यह एलान ग्रामीण विकास मन्त्री तोमर ने किया है।
सरकार की इस तरह की उपलब्धियां प्रशासन द्वारा जुटाये आंकड़ों पर आधारित रहती हैं। खुला शौच मुक्त होने का दावा भी ऐसे ही आंकड़ों के आधार पर किया गया है। लेकिन यह दावा कितना सही है इसका खुलासा जिला परिषद शिमला की हुई बैठक से हो जाता है। इस बैठक में जिला के कोटखाई वार्ड की सदस्य नीलम सरेक ने आरोप लगाया कि उनके वार्ड के एक भी स्कूल मे शौचालयों का निर्माण नही हुआ है और ऐसे में सम्मपूर्ण खुला शौच मुक्त्त का दावा कैसे किया जा सकता है। नीलम के इस आरोप से बैठक में हड़कंप मच गया। तुरन्त जिलाधीश और दूसरे संवद्ध अधिकारियों ने उतेजित सदस्य को शांत करने के लिये यकीन दिलाया कि इन स्कूलों के लिये आज ही धन का आवंटन कर दिया गया है। जिला परिषद की बैठक में जिस तरह से महिला सदस्य ने अपने वार्ड की व्यवाहरिक स्थिति रखी उससे यह सवाल उठता है कि जिला प्रशासन के पास जव यह जानकारी थी कि उस वार्ड के स्कूलों मे अभी शौचालय का निर्माण नही हो पाया है तो उन्होने इसकी जानकारी सरकार को क्यों नही दी। सदस्य के शोर मचाने पर इसके लिये धन आवंटन किया जाता है। यक निर्दलीय सदस्य इस समय भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिये चुनावी चुनौती बनती जा रही है। संभवतः इसी कारण से इसके वार्ड में ऐसा हुआ है। लेकिन इससे पूरे प्रदेश में अन्य स्थानों पर भी अभी तक ऐसी स्थितियां होने की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता है।
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के दो दिन तक चले जनरल हाऊस के बाद प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी ने पत्रकार सम्मेलन को सम्बाधित करते हुए एलान किया है कि सुक्खु नहीं बदले जायेंगे और विधान सभा का अगला चुनाव वीरभद्र सिंह की ही कमान में लड़ा जायेगा। अंबिका सोनी के साथ ही सुक्खु ने भी यह कहा कि उनके वीरभद्र सिंह के साथ कोई मतभेद नही हैं। लेकिन अंबिका सोनी ने अपने ब्यान के साथ ही यह भी जोड़ा है कि उनके स्तर पर तो यही स्थिति है परन्तु उनसे ऊपर हाईकमान राहूल गांधी और सोनिया गांधी भी है जो कोई भी फैसला ले सकते हैं अंबिका का यह कहना फिर सारी स्थिति को खुला छोड़ देता है। जनरल हाऊस में नेताओं ने जिस तरह से अपने विचार रखे है। उनमें मुख्यमंत्री ने खुलकर संगठन की कार्यशैली पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। मुख्यमन्त्री ने स्पष्ट
कहा कि संगठनात्मक जिलों के गठन से पूर्व उनसे राय नही ली गयी। अब यदि भाजपा प्रशासनिक जिले बनाने का वायदा कर देती हैं तो सरकार और पार्टी की फजीहत होगी। सचिवों की नियुक्तियों पर बहुत ज्यादा तलख थे। इस पर सुक्खु ने यहां तक कह दिया कि हर पिता पुत्र मोह का शिकार होता ही है। संगठन में सारे लेग चुनकर आये है। बाली ने कांग्रेस के आरोप पत्र पर कोई ठोस कारवाई न होने का मुद्दा उठाते हुए यहां तक कह दिया कि पार्टी लोकसभा की चारों सीटें क्यों और कैसे हार गयी। वरिष्ठ नेताओं के इस तरह के वक्तव्य पार्टी और सरकार के तालमेल की पूरी तस्वीर है।
वीरभद्र अपने बेटे को पूरी तरह स्थापित करने के लिये किसी भी हद तक जा सकते है। यह जगजाहिर हो चुका है। इसी मंशा से उन्होने वीरभद्र ब्रिगेड को अब एक जीओ की शक्ल दी है। ब्रिगेड और अब एनजीओ प्रमुख बलदेव ठाकुर का सुक्खु के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया जाना तथा सुक्खु के खिलाफ आये भाजपा के आरोपों पर मुख्यमन्त्री का तुरन्त जांच पडताल का एलान किया इसी कडी के हिस्से माने जा रहें है। विक्रमादित्य का टिकट आंवटन के मामले में हाईकमान के दखल का विरोध करना भी यही प्रमाणित करता है। क्योंकि रोहडू विधानसभा चुनावों में एक बार वीरभद्र के पूरे प्रयासों के वाबजूद प्रतिभा सिंह को टिकट न मिल पाना वीरभद्र की आशंकाओं का ठोस आधार है। चुनावों में अपना एक छत्र वर्चस्व स्थापित करने के लिये पार्टी अध्यक्ष पर पूरा कब्जा होना आवश्यक है और सुक्खु के रहते यह संभव नही है। इसलिये सुक्खु के खिलाफ हर संभव मोर्चा खोला गया है। अपनी मनवाने के खेल में वीरभद्र किस हद तक जा सकते हैं इसका गवाह 1980 -81 में जनता पार्टी के दल बदल से सरकार बनाये जाने का विरोध 1993 में पंडित सुखराम के विरोध के लिये विधानसभा भवन के घेराव की नौवत आना और 2012 में शरद पवार के साथ जाने की अटकलों का गर्म होना रहा है। फिर इस बार तो सीबीआई और ईडी जांच के परिणामों की आशंका बनी हुई हैं ऊपर से हाईकमान स्वंय भी कमजोर मानी जा रही है। इस परिदृश्य में थोडे से तल्ख तेवर दिखाकर पार्टी पर कब्जा करना आसान मान जा रहा है।
पार्टी और सरकार के बीच इस तरह की वस्तुस्थिति का होना जगजाहिर है। लेकिन इसके वाबजूद अगला चुनाव वीरभद्र के ही नेतृत्व में लड़ा जाना और सरकार की वापसी के दावे किये जाना चर्चा का विषय बन रहे है। 2017 के अन्त में विधानसभा चुनाव होने हैं परन्तु समय पूर्व ही चुनाव हो जाने की संभावनाएं भी बनी हुई है। ऐसे में यह समय चुनावी गणित के साये में देखा जा रहा है। लेकिन इस जनरल हाऊस के लिये आयी पार्टी प्रभारी अंबिका सोनी के स्वागत के लिये कोई बडा उत्साह नही देखा गया जबकि सामान्यतः ऐसे मौको पर खूब ढोल नगाडे बजते थे चुनावों में टिकटों की दावेदारीयों के लिये संभावित उम्मीदवारो के समर्थको का भारी हजूम रहता था। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी देखने को नही मिला। पार्टी कार्यालय में संगठन के पदाधिकारियों बल्कि विवादित बनाये गये पार्टी सचिवों के अतिरिक्त प्रभारी को मिलने कोई नही पहुंचा। इसी तरह पीटरहॉफ में भी सरकार में विभिन्न निगमों /बार्डो में ताज पोशीयां पाने वालों से हटकर और कोई मिलने वाला नही था। प्रभारी दोनों दिन करीब दो-दो घण्टे लगभग खाली रही। पीटरहॉफ में लंच के समय मुख्यमन्त्री के पास कोई भीड नही थी। पार्टी के भीतर की यह स्थिति अपने में ही बहुत कुछ कह जाती है। इस पर मुख्यमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष में चल रहा शह और मात का खेल क्या गुल खिलाता है इस पर सबकी नजरें लगी हुई है।
वीरभद्र ब्रिगेड बना अब हिमाचल वीर कल्याण समिति
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ अच्छा नहीं चला रहा है इसका प्रमाण जय हिमाचल वीर कल्याण समिति के गठन के रूप में सामने आया है। क्योंकि इससे पूर्व जब प्रदेश कांग्रेस सेवादल के पूर्व चीफ बलदेव सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में कांग्रेस के कुछ सक्रिय कार्यर्ताओं ने वीरभद्र ब्रिगेड का गठन किया था। तब इस गठन को कांग्रेस के भीतर पार्टी विरोधी गतिविधि करार दिया गया था। इसके लिये कुछ लोगों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए उन्हें पार्टी से निष्कासित तक कर दिया गया था। पार्टी के भीतर इस ब्रिगेड के गठन को वीरभद्र द्वारा अपरोक्ष में समानान्तर संगठन खड़ा करने का प्रयास माना गया था। लेकिन बड़े पैमाने पर प्रतिक्रियाएं समाने से पहले ही ब्रिगेड को भंग कर दिया गया था। ब्रिगेड भंग होने के बाद इससे जुड़े जिन नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की गयी थी उसे वापिस ले लिया गया था। लेकिन किन्ही कारणों से इसके अध्यक्ष बलदेव सिंह ठाकुर के खिलाफ कारवाई वापिस नही ली गयी। बलेदव ठाकुर ने इस एकतरफा कारवाई के खिलाफ आवाज उठाई और प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी के दरबार तक मैं फरियाद रखी। सूत्रों के मुताबिक अंबिका सेनी ने इस एकतरफा कारवाई को अनुचित ठहराते हुए प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु को अपने फैंसले पर पुनर्विचार करने को कहा जो कि नही हुआ।
अब सुक्खु की एकतरफा तानाशाही कारवाई से आहत होकर ब्रिगेड से जुडे़ लोगो ने विधिवत एक एनजीओ जय हिमाचल वीर कल्याण समिति का गठन घोषित कर दिया है। इस एनजीओ का पंजीकरण 17.8.16 को करवाया गया हैं एनजीओ के गठन से हटकर ब्रिगेड के अध्यक्ष रहे बलदेव ठाकर ने अपने निष्कासन को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु के खिलाफ सीजेएम कोर्ट कुल्लु में एक मानहानि का मामला भी दायर कर दिया है। मानहानि का मामला दायर करते हुए स्पष्ट लिखा है। ज्ीम च्संपदजपि ंसवदह ूपजी वजीमते तिंउमक ं छळव् दंउमक टपतइींकतं ैपदही ठतपहंकमए भ्पउंबींस च्तंकमे वित ेचतमंकपदह जीम चवसपबपमे वि जीम च्तमेमदज ळवअमतदउमदज वि बवदहतमे च्ंतजल ंदक टपतइींकतं ैपदही ूव पे ं सपअपदह समहमदक ंदक ीं इममद जीम ब्ीपमि डपदपेजमत वि भ्ण्च्ण् वित ं तमबवतक दनउइमत वि 6 जपउमेण्
इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि ब्रिगेड के गठन में वीरभद्र का पूरा आर्शीवाद ओर सहयोग इसके लोगों को प्राप्त था। ब्रिगेड का उस समय एनजीओ के तौर पर पंजीकरण नही था। अब इसके नाम मे हल्का सा परिवर्तन करते हुए इसका विधिवत पंजीकरण करना लिया गया है। यह एनजीओ घोषित रूप से पूरी तरह गैर राजनीतिक है। इस नाते इसमें हर राजनीतिक संगठन और विचार धारा से जुड़े लोग शामिल हो सकते है और मूल संगठन इन लोगों के खिलाफ पहले की तरह से कोइ अनुशासनात्मक कारवाई भी नहीं कर पायेगा। एक तरह से यह एनजीओ हर विरोध और विद्रोह को मुखरता प्रदान करने का मंच बन जायेगा। इस समय इसका गठन पूरी तरह राजनीतिक शैली में ही किया गया है यह दावा भी किया गया है कि इसमें आने वाले दिनो मे सक्रिय राजनीति से जुड़े लोग शामिल होंगे। इस एनजीओ से जुड़े लोग अलग से किसी भी राजनीतिक दल के तहत चुनाव लड़ने के लिये स्वतन्त्रा रहेंगे। ऐसे मे इस एनजीओ को यदि वीरभद्र की ओर से एक अलग राजनीतिक मंच प्रारूप में देखा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
इस समय वीरभद्र जिस तरह के दौर से गुजर रहे हैं उसमे उनकी पहली आवयश्यकता कांग्रेस संगठन पर कब्जा करना हो जाती है। इसके लिए हर संभव प्रयास करके सुक्खु को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाना हो जाता है। इस नवगठित एनजीओ के अध्यक्ष और उनके साथियों ने भी इसी आश्य से सुक्खु को अब तक का सबसे कमजोर प्रदेश अध्यक्ष करार दिया है। इसका सीधा सा अर्थ है कि इस एनजीओ के माध्यम से वीरभद्र ने सुक्खु के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया है। सुक्खु के खिलाफ जब भाजपा नेताओं ने बेनामी संपत्ति के आरोप लगाये थे तो कांग्रेस में विद्यास्टोक्स और जी एस बाली जैसे वरिष्ठ मन्त्रा उसके बचाव में आ गय थे। अब जब सुक्खु के खिलाफ अपरोक्ष में वीरभद्र ने मोर्चा खोल दिया है तो कौन नेता उसके बचाव में आता है यह देखने वाला होगा।
इस एनजीओ के मुख्य सलाहकार पूर्व विधायक कश्मीर सिंह ठाकुर बनाये गये है और मुख्य कानूनी सलाहकार बार कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष नरेश सूद है। उपाध्यक्ष देवी सिंह पाल और मनभरी देवी बने है। महामन्त्रा दीपक शर्मा, विजय डोगरा और अनुराग शर्मा, सहसचिव करतार सिंह चौधरी, खुशीराम भूरिया और विजय ठाकुर है। आत्मा राम ठाकुर को हमीरपुर और चन्द्र बल्भ नेगी को कुल्लु का जिला अध्यक्ष बनाया गया है। संगठन का विस्तार शीघ्र किये जाने का दावा किया गया है।
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खु के पास बेहिसाब बेनामी संपत्ति होने के आरोप लगायें है धूमल सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं ने। भाजपा नेताओं ने यह भी दावा किया है कि यह आरोप उनके आने वाले आरोप पत्र में प्रमुखता से दर्ज रहेंगे। यह आरोप लगते ही मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह ने भी इनकी पड़ताल करवाने का एलान कर दिया। जैसे ही यह आरोप उछले सुक्खु ने भी तुरन्त प्रभाव से पलटवार करते हुए
धूमल को चुनौती दे दी कि या तो इन आरोपों को प्रमाणित करे या राजनीति से सन्यास ले लें। इसी के साथ सुक्खु ने यह भी दावा किया कि उनके पास जो भी चल अचल संपत्ति है उसका उन्होने 2012 के चुनाव शपथ पत्र में पूरा खुलासा किया हुआ है और यदि इस चुनाव पत्र से हटकर कोई संपत्ति प्रमाणित हो जाती है तो वह राजनीति से सन्यास ले लेंगे। सुक्खु की चुनौती के बाद भाजपा नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है और न ही वीरभद्र सिंह का पड़ताल का दावा आगे बढा है।
स्मरणीय है कि मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह इस समय संपत्ति प्रकरण में ही केन्द्र की ऐजैन्सीयों सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहें है। नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी संपत्ति प्रकरण मे विजिलैन्स की आंच झेल रहे हैं इन दोनो नेताओं के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप है और अब इस पंक्ति में कांग्रेस अध्यक्ष का नाम भी जुड़ गया है किसके खिलाफ लगे आरोप कितने प्रमाणित हो पाते है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन सुक्खु ने 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ते समय अपने शपथपत्र में अपनी संपत्ति का जो ब्योरा दिया है उसके मुताबिक पत्नी और दो बच्चों सहित इस परिवार के पास चल और अचल कुल संपति करीब तीन करो़ड के आस पास हैं इस संपति में अपने पुश्तैनी गांव सहित शिमला और बद्दी की संपति भी शामिल है यह शपथ पत्र पाठकों के सामने रखा जा रहा है बहरहाल इस शपथ पत्र से हटकर और किसी संपति का खुलासा सामने नहीं आया है और इससे अधिक संपति के खुलासे तो कई ऐसे विधायकों ने कर रखे है जो पहली बार ही चुनकर आये हैं बल्कि अधिकांश विधायकों ने तो अपनी पत्नीयों के नाम अपने से अधिक दिखा रखी है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस वक्त सुक्खु के खिलाफ यह आरोप क्यां लगे? क्या इनके पीछे कांग्रेस की अपनी राजनीति हावि है? क्या भाजपा सुक्खु और वीरभद्र के रिश्तों की तलबी को और हवा देना चाहती है? इन सवालों की निष्पक्ष पड़ताल से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि सुक्खु के अध्यक्ष पद संभालते ही सरकार में एक व्यक्ति एक पद का मुद्दा उछला था। अभी पिछले दिनों संगठन में सचिवों की नियुक्ति को लेकर जो विवाद उछला था। उसमें त्यागपत्र तक की नौबत आ गयी थी। वीरभद्र संगठन के फैसलों से कभी भी ज्यादा सहमत नही रहे है। संगठन के लिये बनाये गये जिलों को लेकर वीरभद्र की नाराजगी जगजाहिर है कुल मिलाकर वीरभद्र और सुक्खु में किसी न किसी मुद्दे पर मदभेत बाहर आते ही रहे है। हालांकि हर बार इन मदभेदों के बाद दोनो नेताओं में बैठकें भी होती रही है। बल्कि जब वीरभद्र के विश्वस्तों ने वीरभद्र ब्रिगेड बनाया था उस समय सुक्खु ने कुछ लोगों के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई का चाबुक भी चला दिया था। सुक्खु ने ऐसी कारवाई का साहस इस लिये दिखाया था क्योंकि उनके अध्यक्ष बनने में वीरभद्र की भूमिका नहीं के बराबर रही हैं ऐसे में कल जब विधानसभा चुनावों को टिकटों के बंटवारे का प्रश्न आयेगा उस समय अध्यक्ष की भूमिका ज्यादा प्रभावी रहेगी। जबकि दूसरी ओर से वीरभद्र, विक्रमादित्य के माध्यम से टिकटों के मामले में कांग्रेस हाईकमान को भी अप्रत्यक्षतः आंखे दिखा चुके है। इस परिदृश्य में आज वीरभद्र की पहली राजनीतिक प्राथमिकता संगठन पर कब्जा करना हो जाती है। इस दिशा में हर्ष महाजन, गंगुराम मुसाफिर, सुधीर शर्मा जैसे नेताओं के नाम प्रेषित होते रहे हैं लेकिन इस बार चिन्तपुरनी के विधायक और पूर्व अध्यक्ष कुलदीप कुमार का नाम लगभग स्वीकृति के मुकाम तक पहुंच गया था। लेकिन उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक कुलदीप कुमार की फाईल प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी के यहां से ऐसे गायब हुई जिसका कोई अता-पता ही नहीं चल पाया है। चर्चा है कि वीरभद्र सिंह ने इस फाईल के गुम होने को अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक हार माना हैं इसके लिये वीरभद्र सिंह, सुक्खबिंदर सिंह सुक्खु और मुकेश अग्निहोत्री को अपरोक्ष में जिम्मेदार मान रहे हैं। चर्चा तो यहां तक है कि सुक्खु के खिलाफ आयी संपति की शिकायत और उस पर पड़ताल करवाने की घोषणा तथा अग्निहोत्री के महकमों के भीतर हुआ बड़ा परिवर्तन इस फाईल के गुम होने
का परिणाम है।



शिमला/शैल। भाजपा ने अगले विधानसभा चुनावों के लिये 50 प्लस का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य के साथ ही भाजपा ने समय पूर्व चुनावों की संभावना भी जताई है। भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने एक पकार वार्ता में दावे रखते हुए खुलासा किया कि इसके लिये एक अभियान समिति गठित कर दी गयी है। इसी के साथ पार्टी वीरभद्र सरकार के खिलाफ एक आरोप पत्र लायेगी जिसके लिये पूर्व अध्यक्ष विधायक सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में एक आरोप पत्र कमेटी का भी गठन किया गया है। यह आरोप पत्र 25 दिसम्बर को वीरभद्र सरकार के 4 साल पूरा होने पर राज्यपाल को सौंपा जायेगा। भाजपा के सत्ता में आने पर इस आरोप पत्र पर कारवाई करने का भी भरोसा दिलाया है। वैसे भाजपा ने अब तक अपने आरोप पत्रों पर सत्ता में आने पर कभी कोई कारवाई नहीं की है। लेकिन इस बार वीरभद्र ने धूमल और एच पी सी ए के खिलाफ मामले बनाने की शुरूआत कर दी है इसलिये भाजपा ने अब इस परम्परा को निभाने का दावा किया है। भाजपा अपने मिशन 50 प्लस के लिये किस कदर गम्भीर है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी पार्टी ने प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी के दो कार्यक्रमों का आयोजन मण्डी और नाहन मे रखा है। प्रधान मन्त्री के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी तीन दिनों के प्रदेश दौरे पर आने वाले हैं। पार्टी ने अगले साल के लिये भी कार्यक्रमों की सूची तैयार कर ली है।
पार्टी अपने मिशन 50 प्लस को पाने के लिये कोई कसर नही छोड़ेगी इसमें कोई संदेह नही है। बल्कि पार्टी ने जिस अन्दाज में हिलोपा पार्टी का विलय करवाया है और इस विलय के बाद महेश्वर सिंह, खुशीराम बालनाहटा, राकेश पठानिया, महंतराम चौधरी आदि नेताओं को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनाकर अपनी गंभीरता का परिचय दे दिया है। लेकिन इस सबके बावजूद पार्टी के लक्ष्य की सफलता को लेकर कुछ क्षेत्रों मे अभी भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। इस संदेह का आधार पार्टी के भीतर पनपती खेमेबाजी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता शान्ता कुमार केन्द्र से लेकर राज्य ईकाई तक से पूरी तरह संतुष्ट ओर सहमत नही है यह सर्वविदित है। अभी ऊना की बैठक में भी उनका शामिल न होना इसी सं(र्भ में देखा जा रहा है। पंजाब के वरिष्ठ भाजपा नेता कालिया ने जिस तरह से शान्ता कुमार के खिलाफ गंभीर सवाल उछाले हैं उनसे भी ऐसे ही संकेत उभरते हैं। क्योंकि यह सवाल आने वाले दिनों में विपक्ष के हाथों में एक बड़ा हथियार सिद्ध होंगे। शान्ता और जे पी उद्योग के रिश्ते भी कब बड़ा सवाल बन कर खड़े हो जायें यह आशंका भी बराबर बनी रहेगी। इस परिदृश्य में पार्टी और स्वयं शान्ता अपने लिये क्या भूमिका तय करते हैं इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।
शान्ता के अतिरिक्त केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे पी नड्डा ने केन्द्र सरकार और संगठन में जो मुकाम हासिल कर लिया है उसके बाद नड्डा को भी प्रदेश नेतृत्व की पंक्ति मे एक बड़ी संभावना के रूप मे देखा जा रहा है। बल्कि राकेश पठानिया और खुशीराम बालनाहटा जैसे नेताओं को पार्टी में वापिस लाने में उनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है। लेकिन नड्डा इस समय प्रदेश से राज्य सभा सांसद है। प्रदेश में पार्टी नेतृत्व के लिये बिलासपुर मे नड्डा के लिये कौन सी सीट सुरक्षित रहेगी इसको लेकर भी तस्वीर स्पष्ट नहीं है। क्योंकि जब से नड्डा को नेतृत्व की पंक्ति मे गिना जाने लगा तभी से बिलासपुर में उनके विरोधी सक्रिय हो गये। विरोधियों की इस सक्रियता का ही परिणाम था कि संगठन के चुनावों में नड्डा के समर्थकों को पूरी सफलता नही मिल पायी। बिलासपुर में सुरेश चन्देल और नड्डा आज प्रतिद्वंदी बन कर खड़े हैं यह भी सर्वविदित है। फिर नड्डा के खिलाफ केन्द्र मे चल रहा एम्ज़ का प्रकरण भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। पार्टी के भीतर अब उस पर चर्चा होने लगी है। ऐसे में नड्डा की प्रदेश में सक्रियता किस कदर कितनी रहती है क्योंकि उनके पास उत्तराखण्ड की भी जिम्मेदारी है। इस परिपेक्ष्य में नड्डा राज्यसभा के माध्यम से केन्द्र में सुरक्षित राजनीति की रणनीति अपनाते हैं। या प्रदेश में आने का जोखिम उठाते हें इसका खुलासा भी आने वाले दिनों में सामने आ जायेगा।
शान्ता- नड्डा के बाद पार्टी का सबसे बड़ा खेमा धूमल का है। दो बार मुख्यमन्त्री का कार्यकाल न केवल पूरा ही किया बल्कि अपने विरोधियों पर भी भारी पड़े। दोनों बार वीरभद्र के खिलाफ ऐसी व्यूह रचना की वह उससे बाहर ही नहीं निकल पाये। धूमल को पहले ही कार्यकाल में यह पूरी तरह समझ आ गया था कि विपक्ष और विरोध की सबसे बड़ी धुरी वीरभद्र ही है और यदि उन्हें ही अपने में उलझा दिया जाये तो शासन का रास्ता साफ हो जाता है। इसी समझ का परिणाम है कि वीरभद्र इस बार भी धूमल को हर रोज कोसने की बजाये उसका कोई बड़ा नुकसान नहीं कर पाये। आज धूमल के सांसद बेटे अनुराग ने वी सी सी आई के शीर्ष पर पहुचने का जो मुकाम हासिल कर लिया है यदि उससे सर्वोच्च न्यायालय और लोढ़ा कमेटी के कारण वहां से हटना भी पड़ता है तो प्रदेश की राजनीति में स्थापित होने के लिये पर्याप्त आधार बना पड़ा है। इसलिये आज धूमल अनुराग को हिमाचल में पार्टी नज़रअन्दाज कर पाने की स्थिति में नही है। इस परिदृश्य में पार्टी को 50 प्लस का टारगेट हासिल करने के लिये कोई बड़ी कठिनाई अभी नज़र नहीं आ रही है।
लेकिन इस समय वीरभद्र ने अपने खिलाफ चल रही सी बी आई और ई डी की जांच को जिस ढंग से केन्द्र की राजनीतिक ज्यादती प्रचारित करना शुरू किया है उनका कोई प्रतिवाद भाजपा की ओर से नही आ रहा है। सत्ती ने दिल्ली में चल रहे मामलों के लिये वीरभद्र के मन्त्रीयों द्वारा वकीलों की फीस के नाम पर की जा रही उगाही का आरोप तो लगा दिया है लेकिन इस आरोप को प्रमाणित करने के तथ्य जनता के सामने नही रखे है। सत्ती के आरोप के बाद कांग्रेस के मन्त्रीयों को वीरभद्र के पक्ष में एकजुट होने की बाध्यता बन जायेगी। भाजपा अभी वीरभद्र का पूरा मामला ही तर्किक स्पष्टता के साथ जनता के सामने नही ला पा रही है। यदि यही स्थिति कुछ दिन ओर बनी रही तो भाजपा का गणित गड़बडाने की भी पूरी पूरी संभावना बनी हुई है। क्योंकि भाजपा के आरोप पत्र को जनता अब रस्म अदायगी से अधिक कुछ भी मानने को तैयार नही होगी यह तय है।