शिमला/शैल। क्या हमारीे पुलिस अभी तक महिलाओं के प्रति असंवेदनशील है? क्या पुलिस पर अदालत के निर्देशों का भी कोई असर नही पड़ता है? क्या सरकार कोई समाधान आदि के सारे दावों की जमीनी हकीकत बिल्कुल निराशाजनक है? यह सवाल मनाली की दो बहनों की व्यथाकथा से उभर कर सामने आये है। शैल को मिले इनकी व्यथाकथा के ब्यौरे से पूरी व्यवस्था पर ंगभीर सवाल खड़े हो जाते है। मनाली थाना के एसएचओे और मनाली के एसडीएम को दो महिलाओं पुष्पलता और पूर्णिमा ने 19.1.2016 को एक लिखित शिकायत देकर दोषियों के विरूद्ध मामला दर्ज करके कारवाई करने की गुहार लगायी। इनकी शिकायत थी कि शिनाग गंाव की टीकम राम और जीया गांव के देशराज ने इनके पिता अली राम और इनके साथ करीब एक करोड़ की धोखाधड़ी की है। जिसमें इन लोगों ने इनके ही किसी रिश्तेदार के नाम से झूठी पावर आफ अटार्नी बनाकर बडुआ गांव स्थित इनका बागीचा 6 लाख 90 हजार रूपये में बेच दिया है। जबकि रिश्तेदार को जिस गांव का रहने वाला बताकर पावर आॅफ अटार्नी बनायी गयी है उस गांव में उनका रिश्तेदार कभी रहा ही नहीं है।
एक आदमी का इस तरह का षडयंत्र करके बागीचा बेच दिया जाये तो स्वभाविक है कि वह इसकी शिकयत लेकर सबसे पहले पुलिस और प्रशासन के पास ही जायेगा। यह महिलाएं भी अपने पिता के साथ हुई धोखाधड़ी की शिकायत लेकर एसएचओ मनाली और एसडीएम मनाली के पास गयी। 19.1.2016 को दी गयी इस शिकायत पर 18.5.2016 को इन महिलाओं को डीसीपी मनाली के कार्यालय में बुलाया गया। वहां पर इनके ब्यान दर्ज किये गये लेकिन दोषीयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नही हुई। मुख्यमंत्री को भी फैक्स करके शिकायत भेजी। कुछ मन्त्रीयों से भी फरियाद की। लेकिन कहीं से कोई कारवाई नहीं हुई। इसकेे बाद हारकर 9.9.2016 को सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मनाली में अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 12.9.2016 को मामला दर्ज करने और जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने के निर्देश जारी किये। लेकिन इन निर्देशों के बाद भी पुलिस हरकत में नही आयी। करीब सात लाख में बागीचा षडयंत्र करके बेच दिया जाता है। ऐसा करने वालों के खिलाफ पुलिस अदालत केे निर्देशों के बाद भी मामला दर्ज नहीं करती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ऐसे संगीन अपराध को पुलिस क्यों दबा रही है। क्या पुलिस पर किसी का दवाब है?
ल्ेकिन सवालों से हटकर व्यवस्था पर जो सवाल खड़े होतेे है वह बहुत गंभीर है। 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 101 of 1978 में 9.4.1978 को पुलिस को निर्देश जारी किये है कि महिलाओं को पुसिल स्टेशन में न बुलाया जाये। बुलाये की बाध्यता में स्पष्ट कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद तो कदापि नहीं। पुलिस के पास आने वाली हर शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज किया जाना अनिवार्य है। यदि शिकायत एफआईआर दर्ज करने लायक नहीं पायी जाती है तो उसके कारण सात दिन के भीतर रिकार्ड पर लाकर उसकी सूचना शिकायतकर्ता को देनी होगी। सत्यनारायण बनाम स्टेट आफॅ राजस्थान में 25.9.2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश जारी किये है। परन्तु इन निर्देशों की अनुपालना न किया जाना पूरी व्यवस्था की विश्वसनीयता को ही कठघरे में खड़ा कर देता है। इस मामले में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मामला दर्ज किये जाने के निर्देशों के बाद भी एफआईआर दर्ज न किया जाना और वह भी महिला शिकायतकर्ताओं के मामलों में यही दर्शाता है कि अभी भी हमारी पुलिस महिलाओं के बारे मे पूरी तरह असंवेदनशील है।
शिमला/शैल। विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि विधानसभा में चर्चा से बचने के लिए मुख्यमंत्री अभद्र टिप्पणियां करते हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा सांसद अनुराग ठाकुर पर की गई टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि आज तक का इतिहास देखें, हर सत्र से पहले अभद्र टिप्पणियां की जाती है, जिसके कारण भ्रष्टाचार जैसे विकास के ठप्प होने के बारे में और सरकार के हर फ्रंट पर असफलता के बारे में चर्चा नहीं हो। प्रयास किया जाता है कि भावनाओं को भड़काया जाए, माहौल खराब किया जाए, ताकि चर्चा न हो। और शोरगुल में सत्र की औपचारिकता हो जाए। वह शिमला में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जितनी जिसकी सोच होती है, उतना आदमी बोलता है। लोढा कमेटी व कोर्ट जो भी निर्णय करते हैं क्या इनको बता कर करते हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ऐसी टिप्पणी किस आधार पर कर रहे हैं। याद रहे मुख्यमंत्री ने कहा था कि अनुराग ठाकुर की बीसीसीआई से छुट्टी होने वाली है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भ्रष्टाचार का मुद्दा सबसे बड़ा है। साथ ही सरकार की असफलताएं, माफियाराज हैं।
एक सवाल के जवाब में धूमल ने कहा कि भाजपा भौरंज उपचुनाव के लिए तैयार है तथा पार्टी की इसमें जीत होगी। इसके अलावा भाजपा नगर निगम शिमला के चुनावों में भी जीत दर्ज करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा की चार्जशीट में वह सभी अधिकारी व राजनीतिज्ञ शामिल होंगे जो भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं। चार्जशीट 24 या 25 दिसम्बर को सरकार के चार साल पूरे होने के अवसर पर राज्यपाल को सौंपी जाएगी तथा राष्ट्रपति को राज्यपाल के माध्यम से भेजी जाएगी। उन्होंने कहा कि हाल ही के कुछ वर्षों में दुर्भाग्यवश राजनीति में ब्यानबाजी का स्तर नहीं रहा। लोकतंत्र में आलोचना होती है, लेकिन यह तथ्यात्मक होनी चाहिए।
धूमल ने कहा कि वर्तमान सरकार के समय में अधिकारियों पर दबाव है। इस कारण कुछ अधिकारी बिमार पडे़ हुए हैं। लेकिन कुछ अधिकारियों ने साहस दिखा तथा आत्मस मान व भ्रष्टाचार से समझौता नहीं किया। उन्हें थोड़े समय के लिए अपमान व अनदेखी का सामना करना पड़ा, लेकिन लोगों की नजर में उनका कद बढ़ा है। ऐसे अधिकारियों को भाजपा सत्ता में आने पर सम्मानित करेगी, ताकि हमारी सरकार भी यदि कोई गलत काम करे तो वह उसका भी विरोध कर सके।
धूमल ने कहा कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाले संस्थानों को महत्व व बल दिया जाएगा। इसी कड़ी में विजीलेंस का पुनर्गठन करेंगे तथा उसे स्वायत्ता देने का प्रयास किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पुराने नोट बदलने का भी एक नया सकैंडल सामने आएगा। केवाईसी के माध्यम से जो नोट बदले हैं, पता चल रहा है कि इसका कार्ड होल्डर को पता नहीं है। इस मामले में कहां-कहां धांधलियां हुई है, वह सभी सरकार के ध्यान में होगी। एक सवाल के जवाब में धूमल ने कहा कि नोटबंदी को लेकर हिमाचल में स्थिति सामान्य है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने पहले इसका स्वागत करते हुए इसे भ्रष्टाचार को समाप्त करने वाला कदम कहा तथ अब वह इसका विरोध कर रहे हैं।
एक अन्य सवाल के जवाब में प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि शौचमुक्त राज्य घोषित करने से पहले सच्चाई का पता लगा लेना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यह सरकार झूठी घोषणा के लिए जानी जाती है। क्षणिक वाहवाही के लिए प्रदेश की जनता को गुमराह कर रहे थे। केंद्र व विश्व को भी गुमराह किया। इस सारी प्रक्रिया में प्रदेश को बदनाम किया है। हर तरफ लोग कह रहे हैं कि यह झूठा दावा है। सरकार की साख दाव पर लग गई है।
बीबीएमबी मामले पर धूमल ने कहा कि प्रदेश सरकार के अधिकारी अपना पक्ष प्रभावी तरीके से नहीं रख पाए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने इस मामले में नालायकी दिखाई है, जो इनकी असफलता का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि यूपीए व हिमाचल सरकार ने इस मामले को लटकाया।
वीरभद्र ने बिठाई थी 1994 में पहली जांच कमेटी
शिमला/शैल। देश के भीतर फैले कालेधन के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए मोदी सरकार ने पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के बाद बेनामी संपत्तियों पर कारवाई करने का ऐलान किया है। नोटबंदी से पहले सरकार ने कालाधन और बेनामी संपत्तियों को घोषित करके वैध बनाने के लिये 30 सितम्बर तक का वक्त दिया था। प्रधानमन्त्री के दावे के अनुसार इस अवधि में करीब 1.25 लाख करोड़ की संपत्ति घोषित हुई है। इस योजना की अवधि समाप्त होने के बाद नोटबंदी का फैसला आया और अब बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कारवाई किये जाने की घोषणा की गयी है। कालेधन का सबसे ज्यादा निवेश रियलइस्टेट में होता है यह एक सर्व स्वीकार्य सच है। हिमाचल में तो बेनामी संपत्तियों की खरीद बेच इतने बड़े स्तर पर है कि स्वयं सरकार ने इस संबंध में तीन बार जांच आयोगों का गठन किया था। हिमाचल पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण प्रदेश है। इसलिये पर्यटन उद्योग के लिये यह पहली पसन्द रहता है। लेकिन यहां पर गैर कृषकों और गैर हिमाचलीयों द्वारा सरकार की अनुमति के बिना जमीन खरीद पर प्रतिबन्ध है। सरकार से जमीन खरीद की अनुमति भू-सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत मिलती है। इस तरह धारा 118 की अनुमति लिये बिना की गयी खरीददारी भी बेनामी खरीद ही बन जाती है।
हिमाचल में धारा 118 की अनुमति लिये बिना बेनामी खरीद का चलन 1990 में शान्ता कुमार की सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था। फरवरी 1990 में शान्ता कुमार की सरकार बनी थी। 6 दिसम्बर 1992 को बावरी मस्जिद गिराये जाने पर यह सरकार भी भंग कर दी गयी थी और यहां पर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। करीब एक वर्ष चले राष्ट्रपति शासन के बाद 1993 के अन्त में यहां पर चुनाव हुए और वीरभद्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। वीरभद्र सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहला बड़ा कदम 1990 से 1992 के बीच हुई बेनामी संपत्ति खरीद के खिलाफ जांच कमेटी गठित की थी। इसकी अधिसूचना No. Rev. 2A(4) -2/93 Dated 7-1-1994 को जारी हुई थी। इसके अध्यक्ष वित्तायुक्त राजस्व एस एस सिद्धु और के सी चौहान, टी आर शर्मा सदस्य और पी आर शर्मा सदस्य सचिव थे। इस कमेटी को तत्कालीन जिलाधीश सोलन श्रीकान्त बाल्दी, कांगड़ा-मनीषा श्रीधर और चम्बा मनीषा नन्दा का विशेष सहयोग रहा है। इनके अतिरिक्त मोहन चौहान और अरूण शर्मा के सहयोग की भी कमेटी ने सराहना की है।
इसी दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय में दो याचिकांए CWP 971/93 और CWP 62/94 आयी थी। इन याचिकाओं में भी उच्च न्यायालय ने इस कमेटी को जांच का कार्य दिया था। इन याचिकाओं की जांच पर कमेटी ने दो अन्तरिम रिपोर्ट भी उच्च न्यायालय को सौंपी थी। कमेटी ने अपनी फाईनल रिपोर्ट 21 दिसम्बर 1994 को सरकार को सांपी थी। कमेटी के पास जांच के लिये आये केसों पर अपने स्तर पर कोई कानूनी कारवाई का अधिकार नही था। यह अधिकार राजस्व अधिनियम के तहत केवल जिलाधीशों के पास था। कमेटी ने जिलावार सारे मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन इस रिपोर्ट पर क्या कारवाई हुई यह सामने नही आ पाया है। बल्कि इस कमेटी के बाद जस्टिस रूप सिंह ठाकुर और जस्टिस डी पी सूद की अध्यक्षता में भी जांच कमेटीयां बनी और उनकी रिपोर्ट सरकार के पास आयी है लेकिन कारवाई क्या हुई यह सामने नही आया है। इसलिये तीनों कमेटीयों की पूरी रिपोर्ट आने वाले दिनों में क्रमशः पाठकों के सामने रखी जायेगी। रिपोर्ट की पहली कड़ी में कमेटी के सामने आये शिमला के सात मामले रखे जा रहे है। इन मामलों में कमेटी की अन्तिम टिप्पणी क्या रही है। वह पाठकों के सामने रखी जा रही है। कमेटी की टिप्पणीयों से स्पष्ट हो जाता है कि इन मामलों में दोषियों के खिलाफ विस्तृत जांच और उसके बाद कारवाई के पुख्ता आधार बनते है।
सिद्धू कमेटी के सामने आये थे शिमला के यह सात मामले
बेनामी खरीद की जांच के लिये बनी सिद्धू कमेटी के पास शिमला के सात मामले जांच के लिये आये थे। इन मामलों में कमेटी की राय इस प्रकार रही है
1. Sawhney Estate Rook Wood, near Oakover, Shimla : As the complex is being constructed in a sizeable area of a prime land in the heart of the town, opposite to the chief Minister's residence, it will be proper to scrutinise the plan of the complex as a whole to ensure that no deviations from the approved plans take place.
2. M/S Dilshant Estatess, S.C.O, 91 sector 35-C Chandigarh :It may be mentioned that according to the amending legislation passed by the Himachal Pradesh Vidhan Sabha, The built up houses and flats cannot be sold to non-agriculturist without the permission of the Government.
The committee , however, would like to add that the construction is being done on a path of thick well wooded area i,e green belt. At the same time it would not be desirable to allow unrestricted constructions of buildings for commercial purpose of sale in shimla Town not in harmony with the land scape.
3. M/S Ashiana Holdings and Restorts Pvt.Ltd.Village Satian, near Kufri Distt. Shimla:
It is not correct that the original sellers are in any way the collaborator in the Project, which is meant for commercial purpose and there is a clear clandestine attempt to contravene the Law.
4. Shri Ashok KumarMadan, resident of Kelstion, Shimla1 Afshan Apartment(New Shimla):
The case falls in the category of case of contravention of Section 118 of Himachal Pradesh Tenancy and Land Reforms Act, 1972 and cannot be said to be a valid partnership.
5. M/S Geol Brotheres II ard wares, Near Bishop Cotton School Shimla-2:
The committee is of the opining that the plea of tenancy appears to be untenable and deal of the site of the building is a shady deal, therefore, M/S Geol Brothers have taken the refuge in the plea of tenancy. M/S Geol Brothers, who are non- agriculturists, have acquired the land in vidation of Section 118 of Himachal Pradesh Tenancy & Land Reforms Act, 1972.
6. Case of Dr. R.S Santoshi:
Since the matter is subjudice before the Hon'ble High Court, the committee would not like to offer any comments.
7. Case of Shri Dilbagh Singh S/O Shri Kartar Singh , resident of Mandir Building, Sanjauli:
It appears to be case of a transfer obtained on the basis of false certificate and is in violation of Section 118 of the Act.
शिमला/शैल। सरकारी नौकरी में हर वित्तिय वर्ष में अधिकारियों/कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ए. सी. आर) लिखे जाने का नियम है। इसी ए सी आर के आधार पर पदोन्नति वगैरा के साथ जुड़े मामलों का फैसला लिया जाता है। यदि किसी की वार्षिक रिपोर्ट सही ना हो तो ऐसे कर्मचारी की वरिष्ठता को नज़र अन्दाज करके कनिष्ठ को लाभ देने का प्रावधान है।
इस तरह वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट का सरकारी सेवा में बहुत ही केन्द्रिय स्थान है। इसलिये ए सी आर लिखने के तीन चरण है पहला reporting officer दूसरा Reviewing officer और तीसरा Accepting officer का । यह तीनां लोग अलग-अलग होते हैं। सरकारी सेवा में यह शिकायतें अक्सर रहती हैं कि किसी को लाभ देने के लिये या किसी को नुकसान पहुचाने के लिये ए सी आर लिखने में संबंधित व्यक्ति का आंकलन सही नहीं किया जाता है और इसके कारण उसका अहित हो जाता है। ए सी आर लिखने में जुड़ी ऐसी सारी संभावनाओं को समाप्त करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने 12-05-2008 को CWP 7631 of 2002 titled Dev Dutt Vs Union of India & others में स्पष्ट दिशा निर्देश देते हुये कहा है कि Fairness and transparency in public administration required that all entries (whether poor, fair average, good or very good) in the Annual Confidential Report of a public servant, whether in civil , Judicial, police or any other State service (except the military), must be communicated to him within a reasonable period so that he can make a representation for its up- gradation. This, in our opinion, is the correct legal position even though there may be no Rule /G.O. requiring communication of the entry or even if there is a rule /G.O. prohibiting it, because the principle of non- arbitrariness in state action as envisaged by article -14 of the Constitution of India in our opinion requires such communication, Article -14 will over rules or the government order लेकिन क्या सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों का सरकारी विभागों में ईमानदारी से अनुपालन हो रहा है? प्रदेश के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान इन्दिरा गांधी मैडिकल कॉलेज में एक प्राध्यापक की ए सी आर का मामला चर्चा में आया है। ई एन टी विभाग के प्राध्यापक डा. भूषण लाल की वर्ष 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2013-14, और 2014-15 की ए सी आर अतिरिक्त निदेशक स्वास्थ्य सेवा की ओर से 9-11-16 को इस प्राध्यापक को भेजी गई है और पन्द्रह दिन के भीतर इस पर उनसे जवाब मांगा गया है । वर्ष 2010 से 2013 तक की रिपोर्ट में इन्हे Very good आंका गया है लेकिन 2013-14, और 2014-15 में यह आकलन Average हो गया है। मजे की बात यह है कि वर्ष 2010-11 से 2014-15 तकReporting officer एक ही व्यक्ति रहा है। वर्ष 2013-14 में इस प्राध्यापक ने ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों स्तरों के छात्रों को पढ़ाया है। एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी भाग लिया और उसका पेपर भी प्रकाशित हुआ है। फिर एक माह से अधिक समय तक अकेले ही अपने यूनिट को संभाला और किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं रही। लेकिन इस सबके बावजूद 2013-14 और 2014-15 की ए सी आर सामान्य (Average) हो जाती है।
सबसे बड़ी हैरानी तो यह है कि सर्वोच्च न्यायालय 15-02-2008 को दिये अपने फैसले में यह निर्देश देता है कि ए सी आर तुरन्त प्रभाव से संबंधित व्यक्ति को सूचित की जानी चाहिये ताकि वह उस पर आवश्यक कदम उठा सके। लेकिन इस मामले में 2013-14 और 2014-15 की रिपोर्ट नवम्बर 2016 में संबंधित व्यक्ति को भेजी जाती है। चर्चा है कि विभाग में शीघ्र ही ऐसोसियेट प्रोफेसर का पद भरा जाना है जिसके लिये Average ए सी आर के कारण 25 वर्ष के शानदार कार्यकाल के बवाजूद यह प्राध्यापक इससे बाहर हो जाता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को भी नज़रअन्दाज करने का साहस दिखाया जा रहा है।
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में देश की प्रतिष्ठत पत्रिका इण्डिया टुडे ने सर्वश्रेष्ठता का ईनाम दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में किस राज्य में क्या काम हुआ है? वहां शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है। साक्षरता की दर क्या है। ड्राॅपआऊट की स्थिति क्या है? भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे सर्वशिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों की स्थिति क्या है? शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत बड़े स्कूलों में बी पी एल के कितने बच्चों को दाखिला मिला है। ऐसे कई मानदण्ड है जिनका व्यवहारिक आकलन किये बिना प्रदेश की शिक्षा स्थिति का सही मूल्यांकन नही किया जा सकता है। इस पत्रिका को इन मानदण्डों पर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का आकलन करके क्या अध्ययन रहा है इसकी कोई औपचारिक सूचना प्रदेश सरकार के पास नही मिल पायी है।
वैसे जिस दौरान यह आवार्ड दिया जा रहा था उसी दौरान प्रदेश के कई भागों से यह समाचार आ रहे थे कि लोगों ने स्कूल में पर्याप्त अध्यापक न होने के कारण सामूहिक रूप से बच्चों को स्कूल से निकाल लिया है। पिछे जब कई स्कूलों के परीक्षा परिणाम शून्य रहने पर ऐसे अध्यापकों के खिलाफ कारवाई करने की कवायद की जाने लगी थी तो उसे अन्तिम क्षणों में रोक दिया गया था क्योंकि इसका कारण अध्यापकों की कमी मिला था। अब सरकार ने शत-प्रतिशत परिणाम देने वाले अध्यापकों को ईनाम के रूप सेवा विस्तार देने का फैसला लिया है। वैसे इस शिक्षक सम्मान योजना की घोषणा मुख्यमन्त्री ने अपने बजट भाषण में की थी जिस पर अब अमल करने की बात आ रही है।
इस समय प्रदेश में स्कूलों की संख्या हजारों में है जहां तय मानदण्डो से बच्चों और अध्यापकों दोनों की संख्या कम है। ऐसे भी स्कूल है जहां एक ही छात्र है और एक ही अध्यापक है। मुख्यमन्त्री ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि जहां एक भी बच्चा पढ़ने वाला होगा वह वहां स्कूल खोलेंगे। लेकिन अब व्यवहारिकत्ता का ज्ञान होने के बाद हजारो स्कूलों को बन्द करने का फैंसला लिये जाने की स्थिति आ गयी है। अभी सौ स्कूलों को बन्द करने का फैसला लिये जाने की स्थिति आ चुका है। शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमन्त्री के पास है इसलिये बतौर मुख्यमन्त्री उनकी घोषणाएं अलग अर्थ रखती है। लेकिन बतौर शिक्षा मंत्री वह इन घोषणाओं पर अमल करने की स्थिति में नही है। ऐसे में चर्चा यह चल पड़ी है कि सर्वश्रेष्ठता का मानदण्ड घोषणाएं है या उन पर अमल न हो पाना है।