शिमला/शैल। भाजपा की प्रदेश कार्य समिति में महेश्वर सिंह, खुशी राम बालनाहटा, राकेश पाठानिया, महन्तराम चौधरी और रूप सिंह ठाकुर को शामिल किया गया है। इनको ऊना की बैठक के लिये आमन्त्रित भी कर लिया गया है। ऊना में हो रही बैठक में शान्ता कुमार शायद शामिल न हो। कार्यसमिति में शामिल किये गये इन लोगों और शांता की संभावित गैर हाजिरी को लेकर पार्टी के भीतर नये समीकरणों की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। पार्टी के अन्दर शान्ता और धूमल दो विपरीत धु्रवों के रूप में जाने जाते रहे हैं यह सर्व विदित है। अब केन्द्र में जब प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आयी है तो भी शान्ता कुमार मोदी सरकार और संगठन को लेकर कितने प्रसन्न रहे है यह उनकी समय-समय पर आयी प्रतिक्रियाओं से जग जाहिर हो चुका है। बल्कि इन प्रतिक्रिओं से यही संदेश गया है कि केन्द्र सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी न मिल पाने का मलाल उन पर हावि हो चुका है।
इस परिदृश्य में यदि प्रदेश भाजपा का आज आकलन किया जाये तो इसमें धूमल और केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्रा जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के दो नये धु्रव बन गये हैं और शांता लगभग हाशिये पर जा चुके हैं। स्मरणीय कि प्रदेश में दो बार शान्ता को मुख्यमन्त्री बनने का मौका मिला और दो ही बार धूमल को। शान्ता दोनां बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और दोनों ही बार विधायक का चुनाव भी हार गये। इसके विपरीत धूमल ने दोनां बार कार्यकाल भी पूरा किया और लगातार चौथी बार विधायक हैं। जबकि धूमल के पहले कार्यकाल में पार्टी के विधायक और मन्त्रा ही विरोध और विद्रोह पर उत्तर सदन से गैर हाजिर होने के मुकाम पर जा पंहुचे थे। दूसरे कार्यकाल में तो नाराजगी का एक ऐसा ताना बाना खड़ा हुआ जो हिलोपा के गठन के रूप में सामने आया। संयोगवश दोनो बार इस विरोध और विद्रोह के लिये शान्ता कुमार के आर्शीवाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
लेकिन इस बार केन्द्र में इतने प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनने के बाद भी प्रदेश में भाजपा के तेवर उसके अनुरूप नही हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह इस समय के लिये केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं। वीरभद्र इस जांच के लिये केन्द्र सरकार पर राजनीतिक द्विवेश के साथ काम करने का आरोप लगा रहे हैं। जिस ढंग से वीरभद्र जनता में अपना पक्ष रख रहे हैं उससे उनके प्रति सहानुभूति पैदा होने की संभावना तक बनती जा रही है। क्योंकि भाजपा की ओर से कोई भी व्यक्ति वीरभद्र प्रकरण को पूरी स्पष्टता के साथ जनता में रख ही नही पा रहा है। ऐसा लगता है कि उन्हें स्वयं भी इस मामले की पूरी बारीक समझ नहीं है। संभवतः इसी कारण से भाजपा का कोई भी नेता इस प्रकरण पर वीरभद्र को घेर नही पा रहा है। जबकि प्रदेश विधानसभा का अगला चुनाव इसी मुद्दे पर केन्द्रित रहने की संभावना बनती जा रही है। वीरभद्र इसी मुद्दे को भाजपा के खिलाफ पलटने की पूरी तैयारी मे हैं।
भाजपा ने अभी वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्रा लाने की घोषणा की है और इस आश्य की एक कमेटी भी गठित कर दी है। लेकिन जो आरोप पत्र इससे पहले जारी किया गया था उसको लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखायी है। इससे यही संदेश जाता है कि पार्टी भ्रष्टाचार के प्रति नही बल्कि इसको राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर विश्वास रखती है। संभवतः इसी कारण से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता वीरभद्र के प्रति ज्यादा आक्रामक नही हो पा रहे हैं। ऐसे मे पार्टी चुनावों के लिये किस तरह की रणनीति लेकर आती है उसका अन्दाजा इस बैठक के बाद लग जायेगा। लेकिन इस समय यदि पार्टी वीरभद्र के खिलाफ तीव्र आक्रामकता के तेवर नही अपनाती है तो वीरभद्र उल्टे केन्द्र के खिलाफ आक्रामकता अपनाने का प्रयास करेगें। क्योंकि अभी विक्रमादात्यि ने बंसल आत्महत्या मामले में आये अमित शाह के नाम को जिस तरह से उठाया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है। फिर नड्डा भी संजीब चतुर्वेदी मामले में आगे और घिरते नजर आ रहे हैं। वीरभद्र ने धूमल और एचपीसीए के घेरने के लिये जो भी प्रयास किये हैं वह उल्टे पडे हैं ऐसे में वह अब धूमल मामलों को उछालने की स्थिति में नही है।
इस परिदृश्य में भाजपा के भीतर किस तरह के नये समीकरण उभरते है और उनके केन्द्र में कौन रहता है नड्डा या धूमल या फिर कोई तीसरा चेहरा उभरता है। इसके संकेत कार्यसमिति की इस बैठक में उभर कर सामने आ जायेंगे ऐसा माना जा रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेष्कां की नजर में इस समय वीरभद्र और कांग्रेस को घेरने में धूमल से ज्यादा सशक्त चेहरा भाजपा के पास नही है।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह पिछले कुछ अरसे से प्रदेश के कांग्रेस संगठन के प्रति लगातार आक्रामक हाते जा रहे हैं। संगठन में नियुक्त सचिवों को लेकर यहां तक कह गये कि कई लोग तो पंचायत के सदस्य बनने के लायक नहीं है। अपने ही चुनाव क्षेत्रा शिमला बनाये गये सचिवों को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रिया उन्होने दी है उससे आहत होकर इन लोगों ने अपने पदों से त्याग पत्रा दे दिया है। वीरभद्र की आक्रामकता से पहले उनके बेटे युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमादित्य ने भी एक पत्रकार वार्ता में यह कहा था कि चुनाव में टिकट केवल जीत की संभावना रखने वालों को ही दिया जाना चाहिये। इसमें नेताओं का कोटा नहीं होना चाहिये। व्यवहारिक दृष्टि से विक्रमादित्य का यह सुझाव सही है। लेकिन इसके लिये संगठन को लेकर सरकार तक एक ही स्तर का मानदण्ड होना चाहिये।
जब वीरभद्र ने इस बार सत्ता संभालने के बाद विभिन्न निगमों/बांर्डों में नेताओं को नियुक्तियां देना आरम्भ किया था उस समय हाईकमान ने ‘एक व्यक्ति एक पद’ पर अमल करने का निर्देश दिया था। लेकिन वीरभद्र ने इस सि(ान्त को मानने से इन्कार कर दिया था। आज विभिन्न सरकारी अदारों में हुई राजनीतिक नियुक्तियों से करीब पचास विधानसभा क्षेत्रों में समान्तर सत्ता केन्द्र स्थापित हो चुके हैं। इन नियुक्तियों के लिये क्षेत्रा के विधायक या वहां से अधिकारिक उम्मीवार बने व्यक्ति से कोई राय नहीं ली गई है। कल को यह लोग भी चुनाव टिकट के दावेदारों में शामिल होंगे। राजनीतिक पंडितो के मुताबिक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य का सुझाव इसी संद्धर्भ में आया है। वीरभद्र ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है कि संगठन में भी पदाधिकारी मनोनयन से नहीं बल्कि चयन से ही बनाये जायेगें।
वीरभद्र की आक्रामकता को लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का दौर शुरू हो चुका है। सभी इस आक्रामकता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। अधिकांश इस अक्रामकता को वीरभद्र के खिलाफ केन्द्रिय ऐजैन्सीयों सी बी आई और ई डी में चल रही जांच के आईने में देख रहे हैं। इस जांच को रोकने और इसको लेकर दर्ज हो चुकी एफ आई आर को रद्द करवाने के लिये वीरभद्र हर संभव प्रयास कर चुके हैं। लकिन उनको इसमें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। जांच को लेकर यह स्पष्ट हो चुका है कि अब यह मामले अपने अन्तिम परिणाम तक पहुंचने वाले हैं। इन मामलों में चालान ट्रायल कोर्ट में दायर होगें ही और इसी के साथ पद त्यागने की मांग पूरी मुखरता के साथ सामने आ जायेगी। हाई कमान भी इस स्थिति के आगे बेबस हो जायेगा। वीरभद्र पर पद त्यागने का दबाव बढ़ जायेगा। उस स्थिति में वीरभद्र के सामने केवल दो ही विकल्प रह जायेंगे, या तो वीरभद्र को पद त्यागना पड़ेगा या फिर खुली बगावत करके अदालत के अन्तिम फैंसले तक पद पर बने रहने का साहस दिखाना होगा। क्योंकि अदालत में अन्तिम फैंसला आने में काफी समय लगेगा।
वीरभद्र पहली बार 1983 में मुख्यमन्त्री भी हाईकमान को आंखे दिखाकर ही बने थे। 1993 में भी जब पंडित सुखराम हाई कमान की पसन्द बन गये थे तब भी वीरभद्र ने खुली बगावत के संकेत देकर मुख्यमन्त्री का पद संभाला था। 2012 में भी जब सी डी प्रकरण में आरोप तय होने पर केन्द्र में मन्त्री पद छोड़ना पड़ा था तब भी बगावती संकेतों से ही पार्टी अध्यक्ष पद और फिर मुख्यमन्त्री की कुर्सी हासिल की थी। इस बार भी हाईकमान के एक व्यक्ति एक पद के सिद्धान्त खुली चुनौति दी है। जब सी बी आई और ई डी के मामले दर्ज किये तब कानूनी दावपेचों का सहारा लेकर मामलों को लम्बा खींचने के प्रयास किये वहीं पर संगठन में भी समानांतर संगठन खड़ा करने के खुले संकेत देते हुये वीरभद्र ब्रिगेड खड़ा कर दिया। ब्रिगेड के खढ़ा करने के साथ ही प्रदेश में जनता और अपने समर्थकों की नब्ज टटोलने के लिये प्रदेश का तूफानी दौरा शुरू कर दिया। इस दौरे के साथ ही सरकार की उपलब्धियों के विज्ञापन जारी होने शुरू हो गये ताकि विपक्ष और विरोधियों को यह संदेश चला जाये कि कभी भी मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। अब जैसे-जैसे वीरभद्र के खिलाफ चल रहे मामले क्लोज़ होने के कगार पर पहुंच रहे हैं वैसे ही पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सुक्खु के खिलाफ जो आरोप अभी लगे हैं और उनका एक ज्ञापन राजभवन तक भी पंहुचा दिया गया है उसे भी इस रणनीति के साथ जोड़कर देख जा रहा है। इससे यह संकेत उभरतें है कि वीरभद्र की पहली चाल होगी कि पद त्यागना ही पड़ता है तो विद्या स्टोक्स को अपनी जगह बैठाया जाये इसलिये प्रदेश दौरे में उसे अपने साथ रखा जा रहा है। दूसरी चाल पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने की होगी ताकि अगले चुनावों में अपनी मर्जी से टिकट बांट सकें। क्योंकि टिकटों में विक्रमादित्य के समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा हिस्सा तभी दिया जा सकेगा।
वीरभद्र के राजनीतिक स्वभाव और रणनीति को समझने वाले पूरी तरह जानते हैं कि यदि वह अपनी रणनीति को अमलीजामा न पहना सके तो वह पार्टी से बगावत करने में भी गुरेज नहीं करेंगे। क्योंकि विक्रमादित्य को राजनीति में स्थापित करने के लिये उनके पास और कोई विकल्प नहीं बचा है। लेकिन आज जिस एज और स्टेज पर वीरभद्र खडे़ हैं वहां पर यह सब करने के लिये एक टीम चाहिये जो उनके पास नहीं है। इस कार्यकाल में उनके पास भुनाने के लिये कोई उपलब्धि नहीं है। इस बार यह पहले दिन से ही धूमल और अनुराग को कोसते चले आ रहे हैं। इन्हे घेरने के लिये जो भी कदम उठाये उनके परिणाम शून्य रहे। इस बार जिस टीम के सहारे उन्होंने प्रशासन चलाया है वह उन्हे वांछित परिणाम नहीं दे पायी है क्योंकि अपने भविष्य को सामने रखते हुये उनकी निष्ठायें दूसरी जगह भी बराबर बनी रही हैं। बल्कि जो कुछ जांच ऐजैन्सीयों की पड़ताल के बाद वीरभद्र के खिलाफ खड़ा हो गया है यदि वह सब जनता के सामने सही तरीके से आ गया तो इस परिवार को राजनीति से भी बाहर होने की नौबत आ सकती है। बहरहाल जो मोर्चा वीरभद्र ने संगठन के खिलाफ खोला है वह क्या रंग लाता है इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।
शिमला/शैल। प्रदेश में एक बार फिर बड़े पैमाने पर भर्ती घोटाला हो रहा है। इस घोटाले के पुख्ता सबूत सिफारसी पत्र और आडियो भाजपा के पास मौजूद है तथा इस सबको आरोप पत्र तैयार कर रही कमेटी को सौंपा जायेगा। यह भाजपा प्रवक्ताओं विक्रम ठाकुर, महेन्द्र धर्माणी और हिमांशु मिश्रा ने एक सांझे ब्यान में लगाया है प्रवक्ताओं ने दावा किया है कि प्रदेश में सरकारी और अर्द्ध सरकारी नौकरियों की भर्ती में बड़े स्तर पर घोटाला हो रहा है और यह रौंगटे खडे़ कर देने वाला है।
भाजपा ने आरोप लगाया है कि शिक्षा, परिवहन निगम, वन विभाग, बैंक व अन्य विभागों में हो रही भर्तीयों में अनियमितताओं की सूचनाएं तो मिल ही रही थी। परन्तु अब पर्यटन विभाग में भी युटिलिटी वर्कर्ज के नाम पर लोग रखे जा रहे है और इसके लिये तय प्रक्रिया को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। सिफारिशी पत्रों में नौकरियों के साथ-साथ टूरिज्म के होटलों के नाम भी अकिंत है।
भाजपा के इस आरोप पर पलटवार करते हुए कांग्रेस मन्त्रीयों सुधीर शर्मा और कर्ण सिंह ने एक वक्तव्य में भाजपा को चुनौती दी है कि वह उनके पास मौजूद आडियो तथा सिफारिशी पत्रां को तुरन्त प्रभाव से सार्वजनिक करें। मन्त्रीयों ने भाजपा के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए धूमल के पहले कार्यकाल 1998 से 2003 के बीच हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड में हुए भर्ती स्कैम का स्मरण दिलाया जिस पर अब सर्वोच्च न्यायालय भी अब अपनी मोहर लगा चुका है। कांग्रेस मन्त्रीयों ने दावा किया है कि वीरभद्र सरकार के इस कार्यकाल में 60,000 नौकरियां प्रदान की जा चुकी है और इनमें पूरी पारर्शिता बरती गयी है।
भाजपा और कांग्रेस के इन दावों में कितना सच है और भाजपा अपने आरोपों को प्रमाणित करने के लिये क्या कदम उठायेगी इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही होगा। लेकिन 1993 से 1998 के बीच चिटों पर हुई हजारों भर्तीयों को लेकर धूमल शासन में जो जांच करवाई गयी थी। उस पर निणार्यक और प्रभावी कारवाई भाजपा शासन में क्यों नही हो पायी थी इसका कोई जबाव प्रदेश की जनता के सामने अब तक नही आ पाया है। इस ‘‘चिटों पर भर्ती ’’ स्कैम को जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस ने दबाया है उससे ऐसे मामलों में दोनों दलों की विश्वसनीयता प्रशनित है। आज भी यह आरोप ब्यानां से आगे नही बढे़गे यह माना जा रहा है। क्योंकि इस हमाम में दोनों दल बराबर के नंगे हैं।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2013 में सरकार की कान्टै्रक्ट पर लगे कर्मचारियों के नियमितीकरण की पालिसी को असंवैधानिक और गैर कानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद भी सरकार कान्ट्रैक्ट पर भर्तीयां भी कर रही हैं और उनका नियमितिकरण भी हो रहा है। यह सब प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले की सीधी अवमानना है। प्रदेश के यह दोनों बड़े राजनीतिक दल इस पर मौन साधे हुए है और इसी से इनकी नीयत और नीति का खुलासा हो जाता है।
शिमला/शैल। प्रदेश के पर्यटन विभाग में सुनियोजित तरीके से बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है और इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसलों का कोई असर नही हो रहा है यह आरोप लगाया है पर्यटन विकास निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल ने। राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायधीश, राज्यपाल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश मुख्यमन्त्री केन्द्रिय वित्त मन्त्री, केन्द्र के केबिनेट सक्रेटरी सीएजी निदेशक सीबीआई और केन्द्रिय पर्यटन सविच के नाम भेजी 56 पन्नों की शिकायत में गोयल ने आरोप लगाया है कि प्रदेश के पर्यटन विेभाग में केन्द्र सरकार द्वारा भेजे इस करोड़ रूपये में घपला हुआ है। गोयल ने कहा कि जब उन्होने 2002 में इस आशय की एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की थी जिस पर 13.3.2003 को आये फैसले में सरकार को जो निर्देश दिये गये थे उनकी भी अनुपालना नही हुई है। इस संद्धर्भ में गोयल ने 2009 में उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका भी दायर की थी। जिसके जवाब में तत्कालीन प्रधान सचिव पर्यटन अशोक ठाकुर ने अपने शपथ पत्र में स्वीकारा है कि विभाग ने भारत सरकार से आये 6,93,9000 रूपये बिना पूर्व अनुमति के दूसरे कार्यो पर खर्च कर लिये हैं। लेकिन इसके लिये उन्होने किसी की जिम्मेदारी तय नही की। बल्कि उच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिये जो निर्देश जारी किये थे उन पर आज तक कोई अमल नही हो पाया है बल्कि इस संद्धर्भ में पर्यटन निगम के तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक ने भी 16.09.2007 को अदालत में गल्त शपथ पत्रा दायर किया है।
पर्यटन विभाग का कारनामा
गोयल का आरोप है कि पर्यटन विकास के लिये विभिन्न योजनाओं के नाम पर केन्द्र सरकार से जो पैसा मिल रहा है उसमें बडे़ स्तर पर घपला हो रहा है इन योजनाओं के लिये झूठे प्रमाणपत्रा भारत सरकार को भेजे जा रहे हैं। केन्द्रिय पैसे का पूरी तरह से दुरूपयोग हो रहा है। अपने आरोप को प्रमाणित करने के लिये गोयल ने सुंरगी टूरिस्ट कम्पलैक्स से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज आर टी आई के तहत प्राप्त करके अपनी शिकायत के साथ भेजे हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक 1995 में खदराला के लिये केन्द्र ने एक टूरिस्ट कम्पलैक्स स्वीकृत किया था। जिसे बाद में सुंगरी के लिये शिफ्रट कर दिया गया। इस प्रौजैक्ट के लिये 26.3.1996 को भारत सरकार से 46,11,600 रूपये की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस टूरिस्ट कम्पलैक्स के लिये प्रदेश सरकार ने तीन लाख का योगदान दिया है। इसमें 38 बिस्तरों के लिये 19 कमरे और 12 बिस्तरों के लिये एक डारमैट्री तथा इनसे संबद्ध अन्य निमार्ण होना था। इसके लिये केन्द्र सरकार से 10.5.1996 को पहली, 7.8.1996 को दूसरी, 10.11.1998 को तीसरी और 24.8.2005 को अन्तिम किश्त भी जारी हो गयी। अन्तिम किश्त से पहले यू सी कम्पलीशन और कमीशनींग आदि के सारे प्रमाणपत्रा भी 31.12.2004 को भारत सरकार को भेज दिये गये। इसके बाद नियमों के अनुसार वांच्छित एग्रीमैन्ट भी भारत सरकार के साथ साईन हो गया और यह कम्पलैक्स एक रूपये प्रतिमाह की दर पर प्रदेश के पर्यटन विभाग को मिल गया। इस टूरिस्ट कम्पलैक्स से जुडी औपचारिकताएं पूरी हो गयी। इसके अनुसार प्रौजैक्ट पूरी तरह तैयार हो कर प्रदेश के टूरिज्म विभाग द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है।
लेकिन जब जुलाई 2006 में मुख्यमन्त्री यहां पहुंचे तो इस निमार्ण को अधूरा देखकर इसे पूरा करने के लिये लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर करने के निर्देश दे दिये। मुख्यमन्त्री के इन निर्देशों पर अमल करते हुए 21.8.2006 एम टूरिज्म और लोकनिर्माण के अधिकारियों ने कम्पलैक्स स्थल का निरीक्षण किया। निरीक्षण की रिपोर्ट के बाद 16.7.2007 को कम्पलैक्स लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर हो गया। 16.7.207 को जो टूरिज्म और लोक निर्माण विभाग की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक इसकी ग्राऊंड प्लोर पर पांच कमरे बने थे जो पूरी तरह से टूटे हुए थे और इस पर कोई छत नही थी पूरा निमार्ण पूरी तरह से क्षतिग्रस्त था।
2007 को लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर हो चुके इस कम्पलैक्स पर 2015 में जब अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निमार्ण यहां पहुंचे तो उन्होने इसे पूरा करने के निर्देश विभाग को जारी किये। इन आदेशों पर अमल करते हुए विभाग ने फिर इस स्थल का निरीक्षण करके रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस निमार्ण को तोड़कर नये सिरे से निमार्ण करना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक कम्पलैक्स की साईट भी उचित नही है। नये निमार्ण पर 76 लाख खर्च होने का अनुमान है और विभाग ने इस खर्च की स्वीकृति भी 2016 में प्रदान कर दी है पर्यटन विभाग इस निमार्ण पर 46 लाख केन्द्र सरकार के और तीन लाख प्रदेश सरकार के खर्च कर चुका है। पर्यटन विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक 31.12.2004 को 49 लाख की लागत से यह कम्पलैक्स पूरी तरह तैयार था और इस्तेमाल में था। लेकिन जुलाई 2006 में मुख्यमन्त्री इसे अधूरा पाते हैं। 2007 में जब लोक निमार्ण इसे अपने कब्जे में लेता है और टूरिज्म के साथ सयुंक्त निरीक्षण करता है तब यह कम्पलैक्स टूटा हुआ पाया जाता है यहां यह सवाल उठता है कि क्या 31.12.2004 को पर्यटन विभाग द्वारा केन्द्र सरकार को निर्माण से जुडे़ जो सर्टिफिकेट भेजे गये थे वह सब झूठ थे? या फिर उसके बाद एक वर्ष में ही यहां तोड़ फोड़ हो गयी? यदि ऐसा हुआ है तो पर्यटन विभाग क्या कर रहा था? जब 2007 में इस निर्माण के क्षतिग्रस्त होने की रिपोर्ट सरकार के पास आ गयी तो उस पर कोई कारवाई क्यों नहीं हुई? इस पर लगा 49 लाख रूपया पूरा बर्वाद हो गया है। दस्तावेजों के मुताबिक यह कम्पलैक्स कभी यूज में लाया ही नही गया है इसके निमार्ण में पूरी तरह घपला हुआ है और इसी कारण इसे भारत सरकार की अनुमति के बिना ही लेाक निमार्ण विभाग को ट्रांसफर कर दिया गया जबकि नियमानुसार ऐसा नही किया जा सकता है। रिकार्ड के मुताबिक यह आज भी भारत सरकार की संपति है।
शिमला/शैल। इन दिनों प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में वीरभद्र और कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु में चल रहा टकराव चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। वीरभद्र ने पिछले कुछ दिनों में संगठन को लेकर जिस तरह की टिप्पणीयां की हैं उससे यह टकराव अपने आप चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि वीरभद्र ने संगठन की कार्यप्रणाली पर ऐसे सवाल उठा दिये है जिनका ताल्लुक सीधे हाईकमान से हो जाता है। वीरभद्र ने संगठन में नियुक्त सचिवों की न केवल संख्या पर बल्कि उनकी एक प्रकार से राजनीतिक योग्यता पर ही सवाल खड़े कर दियेहैं। सचिवो की नियुक्ति हाईकमान के निर्देशों और उसकी स्वीकृति से होती है यह वीरभद्र भी जानते हैं। लेकिन इसके बाद भी उनका ऐसे सवाल उठाना एक प्रकार से हाईकमान को भी चुनौती देने जैसा हो जाता है। वीरभद्र जैसा वरिष्ठ नेता ऐसा क्यों कर रहा है वह अपरोक्ष में हाईकमान से ही टकराव की स्थितियां क्यों पैदा कर रहा है। इसको लेकर यदि वीरभद्र के इस कार्यकाल का निष्पक्ष आंकलन किया जाये तो जो तस्वीर उभरती है इससे सब कुछ पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है।
2012 के चुनावों में वीरभद्र ने कैसे पार्टी की कमान हासिल की थी इसे सब जानते हैं। उस समय यहां तक चर्चाएं उठी थी कि यदि वीरभद्र को नेतृत्व नहीं सौंपा गया तो वह शरद पवार का दामन थाम सकते हैं इसके लिये हर्ष महाजन की भूमिका को लेकर भी चर्चाएं उठी थी। इन चर्चाओं का परिणाम था कि चुनावों में नेतृत्व वीरभद्र को मिल गया। लेकिन जब चुनावों के बाद मुख्यमन्त्री के चयन का सवाल आया था उस समय पर्यवेक्षकों के सामने पूरा विधायक दल दो बराबर हिस्सों में बंटा मिला था। इसी कारण से सरकार के गठन के तुरन्त बाद वीरभद्र ने जब अपने समर्थकों की ताजपोशीयां शुरू की थी तो उस पर इस कदर एतराज उठे थे कि इन ताजपोशीयों पर विराम लगाना पड़ा था। बड़े अरसे बाद यह गतिरोध समाप्त हुआ था। लेकिन वीरभद्र ने जिस तरह से अपने सचिवालय में स्टाॅफ का चयन किया और सेवानिवृत अधिकारियों को अधिमान दिया उसका असर प्रशासन पर भी पड़ा। बल्कि मुख्यमन्त्री के अपने सचिवालय में ही दो धुव्र बन गये। क्योंकि सेवानिवृत अधिकारियों का प्रशासन पर जितना प्रत्यक्ष प्रभाव था उतनी उनकी अधिकारिक तौर पर जवाबदेही नही थी।
वीरभद्र के अपने ही सचिवालय में बने इन अलग-अलग ध्रुवों का परिणाम यह हुआ कि जिन मुद्दों को धूमल शासन के खिलाफ उछाल कर वीरभद्र सत्ता में आये थे उनमें से एक भी मुद्दे को आज तक प्रमाणित नही कर पाये हैं। धूमल के खिलाफ हिमाचल आॅन सेल का आरोप लगाकर कोई मामला चिहिन्त नही कर पाये हैं। मिन्हास को कबर से भी खेद कर लाने की धमकीयां देते थे वीरभद्र परन्तु परिणाम शून्य/अवैध फोन टेपिंग के खुद शिकार होने के वाबजूद इस मामले में कुछ नही कर पाये। एचपीसीए को लेकर जितने मामले उठाये उनका परिणाम यह रहा कि अपने ही सचिवालय के अधिकारी इसमें खाना 12 में अभियुक्त नामजद हैं। यह सारे वह मामले हैं जिन पर जनता को सरकार से कुछ प्रभावी कारवाई की उम्मीद थी। वीरभद्र के अपने ही दफ्तर से डीओ लैटर चोरी होने और उनके आधार पर ट्रांसफरें होने के मामलें में हुई जांच का अन्तिम परिणाम क्या रहा कोई नही जानता। युवा कांग्रेस के चुनावों में भी एक विज्ञापन जारी होने और उसकी पैमेन्ट के मामलें में दर्ज रिपोर्ट का क्या हुआ है कोई नही जानता। ऐसे कई प्रकरण हैं जिन्हें जनता नही भूली है। इन सवालों का जवाब केवल वीरभद्र को ही देना है। सरकार और वीरभद्र आज तक यह नही खोज पाये हैं कि ऐसी असफलता के क्या कारण रहे हैं।
यही नही आज स्वयं सीबीआई और ईडी में जिस कदर घिर गये हैं वहां पर अन्तिम परिणाम में नुकसान होना तय है। इन मामलों के लिये धूमल, अनुराग और जेटली को कोसने की बजाये अपने गिर्द ही नजर दौड़ाते और अपने सलाहकारों की सलाह का निष्पक्ष आंकलन करते तो शायद ऐसे हालात पैदा ही नही होते।आज सीबीआई और ईडी मामलों में आरोप लगने की स्टेज पहुंच रही है अदालत से भी ज्यादा वक्त मिलना संभव नही होगा।इनमे मामले दर्ज हुए को करीब एक वर्ष हो गया है और अब ट्रायल तक आने ही हैं। ऐसे में विपक्ष से ज्यादा कांग्रेस के भीतर से नेतृत्व परिवर्तन की आवाज उठेगी इस आवाज को संगठन के साथ टकराव लेकर दबाना कठिन होगा। इस परिदृश्य में वीरभद्र और संगठन आने वाले समय में क्या रास्ता अपनाते हैं यह देखने वाला होगा। क्या संगठन अपनी कीमत पर वीरभद्र की वकालत करने का रास्ता चुनता है या नही। क्योंकि वीरभद्र की वकालत से संगठन लम्बे समय के लिये सत्ता से बाहर हो जायेगा। दूसरी ओर क्या वीरभद्र संगठन के लिये पद त्यागते हैं या संगठन को पूरी तरह तहस नहस करने के लिये फिर वीरभद्र ब्रिगेड खड़ा करने की रणनीति अपनाते हैं।