शिमला। हिमाचल की आम आदमी पार्टी ईकाई भंग होने के बाद अभी तक नयी ईकाई गठित नहीं हो पायी है भंग ईकाई पर भी प्रदेश में आशानुरूप काम न कर पाने का आरोप था। इसी आरोप के साथ प्रदेश ईकाई के शीर्ष नेताओं में भी मतभेद इतने गहरे हो गये थे कि प्रदेश संयोजक अपने साथ ईकाई के किसी दूसरे अधिकारी को मंच तक शेयर नही करने देते थे। मतभेद मन भेद बनकर जब मैं मैं तू तू तक आ गये तब एक दूसरे की परोक्ष -अपरोक्ष शिकायतों का दौर चला और इसकी कीमत पार्टी को ईकाई भंग करके चुकानी पड़ी।
ईकाई भंग होने के बाद हाईकमान ने पर्यवेक्षकों की एक टीम प्रदेश में भेजी। इस टीम ने शिमला सहित सभी जिला मुख्यालयों पर सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षेण सबसे पहले भंग ईकाई के सदस्यों के साथ बैठके करके शुरू हुआ। फिर इन्ही बैठकों में सर्वेक्षण के लिये एक प्रश्नोत्तरी बनायी गयी। इस प्रश्नोत्तरी के सवालों में मुख्य प्रश्न थे कि क्या आप केजरीवाल को जानते है? आमआदमी पार्टी की सरकार के बारे में आपकी क्या राय है? क्या आप प्रदेश में बदलाव चाहते है? क्या आप को प्रदेश में चुनाव लड़ना चाहिये?
आज केजरीवाल राष्ट्रीय चेहरा बन गये हैं। स्वाभाविक है कि आम आदमी इस नाम से परिचित है पार्टी की सरकार दिल्ली में है और बाहर उसके बारे में ज्यादा जानकारी संभव ही नहीं है। क्योंकि उसकी उपलब्धियों के विज्ञापन प्रदेश की अखवारों में तो छपते नही है। प्रदेश में बदलाव हर आदमी चाहता है आप को चुनाव लड़ने से कोई मना भी क्यों करेगा। लेकिन किसी ने यह नही पूछा कि बदलाव क्यों चाहते हैं प्रदेश की दो तीन मुख्य समस्यांए क्या है और उसके लिये कांग्रेस और भाजपा की जिम्मेदारी कितनी कितनी है। प्रदेश में आम आदमी को राजनीतिक विकल्प बनने के लिये क्या करना होगा। पूर्व ईकाई के काम के बारे में क्या राय है। सर्वेक्षण में इन सवालों को नहीं उठाया गया।
इस समय प्रदेश राजनीतिक तौर पर एक गंभीर स्थिति से गुजर रहा है। मुख्यमन्त्राी और उनकी पत्नी पूर्व सांसद को दिल्ली उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की गुहार लगानी पड़ी है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा अगली सता का प्रबल दावेदार बनकर बैठा हुआ है। ऐसे में अभी आम आदमी पार्टी सर्वेक्षण के स्तर पर पंहुची हुई है। हां यह अवश्य है कि उसके कुछ लोग सोशल मीडिया में बहुत सक्रिय हंै लेकिन सोशल मीडिया अभी तक जन मीडिया नहीं बन पाया और ना ही पूरा विश्वसनीय बन पाया है। ऐसे सर्वेक्षण के बाद पार्टी क्या स्वरूप लेकर आती है इस पर सबकी निगाहें लगी है।
शिमला। सर्वोच्च न्यायालयों ने द वर्किंग फ्रैन्डज कोआपरेटिव हाऊस बिलडिंग सोसायटी लिमिटेड बनाम स्टेट आॅफ पंजाब व अन्य और रतन सिंह बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया मामलों में राइट टू फेयर कंपनसेशन एण्ड टंªासपेरेंसी इन लैण्ड एक्यूजेशन रिहेविलिटेशन एंड रिसटमैन्ट एक्ट 2013 की धारा 24(2) में व्यवस्था देते हुए कहा है कि Thus compensation can be regarded as "paid if the compensation has Literally been paid to the person interested, or after being offered to such person, it has been deposited in the Court. The deposit of the Award in a Government Treasury would not amount to compensation being paid to the person interested. सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 और 2015 में उसके पास आये मामलांे में भूमि अधिग्रहण की धारा 24 (2) की विस्तृत व्याख्या करते हुए स्पष्ट कहा है कि भूमि अधिग्रहण में मुआवजा संबधित व्यक्ति को वास्तव में ही मिला हुआ होना चाहिये। यदि किन्ही कारणों से ऐसा नहीं होे पाया है तो ऐसा मुआवजा अदालत के पास जमा हुआ होना चाहिये। सरकारी ट्रेजरी में जमा करवाये हुए मुआवजे को पेड़ करार नहीं दिया जा सकता। यदिे ऐसा मुआवजा पंाच वर्षो तक सबंधित व्यक्ति को नही मिला है तो ऐसा अधिग्रहण स्वतः ही निरस्त हुआ माना जायेगा।
प्रदेश में सरकार ने अंबूजा और जे पी सीमेन्ट उद्योगों के लिये जमीनों को अधिग्रहण किया था। इस अधिग्रहण में बहुत सारे किसानों ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण का विरोध किया था। लेकिन इन उद्योग घरानो, प्रशासन और राजनेताओं के गठजोड़ के आगे किसानों के विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया। यहां तक कि जिन किसानों ने आज तक अपनी जमीनो का कब्जा नही छोड़ा हैं उनको मुआवजा प्रशासन की मिली भगत से इन कंपनीयांे ने सरकारी ट्रेजरी में जमा करवा दिया । इसी मिली भगत के चलते कब्जे के बिना ही राजस्व दस्तावेजों में जमा करवा दिया। इसी मिली भगत के चलते मांगल विकास परिषद् के नेता एडवोकेट नन्द लाल चैहान के मुताबिक अंबूजा के लिये करीब बारह वर्ष पहले और जे पी के लिये आठ वर्ष पहले सरकार ने जबरन भूमि अधिग्रहण किया था। लेकिन इसमें करीब चार सौ बीघा जमीन पर आज भी मालिक किसानों का ही कब्जा हैं जबकि राजस्व में इनदराज बदल दिये गये है।
इन किसानों ने आज तक कंपनीयों से मुआवजा नहीं लिया हैं प्रशासन ने मुआवजे का पैसा सरकार की ट्रेजरी में जमा करवा रखा है। अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह जबरन हुआ भूमि अधिग्रहण स्वतः ही खत्म हो जाता है। इस फैंसले से इन जमीनो पर किसानांे का हक बहाल हो जाता है। राजस्व अधिकारियों को राजस्व इन्दराज किसानो के नाम करने होगें। मांगल विकास परिषद् ने राज्यपाल और मुख्यमंत्राी को पत्रा भेजकर सर्वोच्च न्यायालय के फैंसले पर तुरन्त प्रभाव से अमल किये जाने की मांग की हैं उधर संबंधित प्रशासन से जब इस बारे में जानकारी मांगी तो उसका कहना था कि जे पी और अंबूजा को लेकर कोई फैंसला ही नही आया है। जब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के संद्धर्भ में पूछा तब एसडीएम कार्यालय अर्की ने ऐसे फैसले की जानकारी होने से ही इन्कार किया। जबकि इस संद्धर्भ में सारी कारवाई ही एसडीएम कार्यालय से शुरू होनी है। जे पी और अंबूजा सीमेन्ट के लिये हुए अधिग्रहण को लेकर स्थानीय लोग कई बार आन्दोलन कर चुके हैं अब सबकी नजरें इस पर लगी हुई है। कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फंैसले पर अमल करने के लिये कितनी जल्दी कितने प्रभावी कदम उठाती है। क्योंकि लोगों को अभी भी सन्देह है कि इन कंपनीयों के दवाब के आगे सरकार इस फैसले पर अमल करने में टाल मटोल करेगी।
शिमला/शैल। केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी.नड्डा के हिमाचल के दो दौरों ने प्रदेश के सियासी समीकरणों को हिल्लाकर रख दिया है। पहले दौरे में उन्होने कुल्लू में प्रदेश की सियासत में वापसि का संकेत जिस अदांज में दिया था इस दौरे में उस अंदाज को पीटरहाॅफ में ऐसे मुखर किया जिससे यह स्पष्ट संकेत उभरा कि भाजपा हाईकमान ने उन्हे प्रदेश का नेतृत्व सौंपने का मूक ऐलान कर दिया है। गडकरी के नड्डा को लिखे पत्र को ऐसे प्रचारित प्रसारित किया गया जैसे की इन नैशनल हाइवेज़ की अधिसूचना वास्तव मेें ही केन्द्र ने जारी कर दी हो। जबकि इन नैशनल हाइवेज़ को अमली शक्ल मिल भी पायेगी या नही यह सन्देह भी स्वयं गडकरी के पत्रा से ही झलकता है। नड्डा और भाजपा के इस अन्दाज का असर पार्टी और चुनावों पर क्या पडे़गा यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा लेकिन वीरभद्र और उनकी सरकार पूरी खामोशी बरतने से सियासी समीकरणों में बदलाव अश्वय आया है।
हालांकि नड्डा के नाम का किसी ने कहीं कोई एलान नहीं किया लेकिन राजधानी के एक नामी सरकारी होटल पीटरहाफ में नड्डा ने जिस तरह से प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार और मोदी सरकार में सड़क मंत्राी गडकरी के मंत्रालय के नेशनल हाइवे के अधिकारियों के साथ फर्राटा बैठक की व अपने मंत्रालय के नहीं गडकरी के मंत्रालय में दखल देकर अधिकारियों की क्लास ली है, वो सब कुछ साफ साफ बयां कर गई हैं।
इसके अलावा नड्डा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ एक भी बोल नहीं बोला। यहां तक सरकार के कामकाज पर भी मौन साध गए। जबकि प्रदेश भाजपा व धूमल खेमा पिछले तीन सालों से वीरभद्र सिंह पर ताबड़तोड़ हमले करता आया है। वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार पर न तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बोलते है और न ही उनके मंत्री जेपी नड्डा कोई हमला बोलते हैं। जबकि मोदी सरकार की सीबीआई वीरभद्र सिंह के खिलाफ जांच कर रही हैं। यहां ये महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व जगत प्रकाश नड्डा दोनों के ही वीरभद्र सिंह से दोस्ताना रिश्ते हैं। दूसरे वीरभद्र सिंह की ये मजबूरी है कि प्रदेश में धूमल नहीं कोई और नेता भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा बने।
उधर दूसरी ओर प्रदेश में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी केंद्रीय मंत्री ने दूसरे मंत्री के मंत्रालय के कामकाजों का जायजा लिया हो। गडकरी व नड्डा के आपस में याराना रिश्ते है। शायद ये लिबर्टी गडकरी की ओर से इसी याराना की वजह से मिली हो।
इसके अलावा पीटरहाफ में भाजपा नेताओं की फौज जिस तरह से खड़ी हुई वो अपने आप में चैंकाने वाली थी। उनके स्वागत में बैंड बाजा भी बजा तो फूल-मालाएं पहनाने को भी भाजपा नेता आतुर रहे। भाजपा अध्यक्ष सतपाल सती से लेकर धूमल खेमे के विरोधी मंडी जिला से विधायक महेंद्र सिंह ठाकुर, जयराम ठाकुर, शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज, अर्की के विधायक गोबिंद शर्मा नड्डा के चारों ओर घूमते रहे।
इसके अलावा धूमल खेमा भी पीछे नहीं था। जिला कुल्लू से गोबिंद ठाकुर, जिला सिरमौर;पहले सोलनद्ध राजीव बिंदल उनके आसपास रहे। इसके अलावा भाजपा सांसद रामस्वरूप शर्मा व बीरेंद्र कश्यप भी इस मौके पर मौजूद रहे लेकिन जलवा सिर्फ नडडा का ही रहा। राजीव बिंदल मीडिया को काबू में रखने का काम करते रहे चूंकि नड्डा मीडिया से बात करने में तय समय से देरी से आ रहे थे। सो बिंदल पूरी तरह से चैकस रहे।
नड्डा ने कहा कि मोदी सरकार ने दो सालों में 60 नेशनल हाइवे हिमाचल को दिए है जिन पर कम से कम 13 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसमें से 56 नेशनल हाईवे तो इसी साल मंजूूर किए गए हैं। इन हाईवे पर उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के अफसरों से उनकी बैठक हुई है व उन्होंने अफसरों को निर्देश दिए है कि वो एक सप्ताह के भीतर इन हाइवे में होनेे वाले किसी भी तरह के बदलाव की रिपोर्ट मोदी सरकार को भेज दें ताकि इन पर काम हो सके। नड्डा ने कहा कि जैसे ही बदलाव की रिपोर्ट मोदी सरकार के पास पहुंचेगी उसी के साथ डीपीआर तैयार करने के लिए कंस्लटेंट नियुक्त करना शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि वो चाहते है कि प्रदेश को ज्यादा से ज्यादा लाभ हो।
वीरभद्र सिंह सरकार पर हमला करनेे से बचते हुए नड्डा ने केवल इतना कहा कि जिस रफ्रतार में मोदी सरकार काम कर रही है वीरभद्र सिंह सरकार भी उसी रफ्तार में काम करें। वीरभद्र सिंह सरकार की रफ्तार तेज नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनावों में वो भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे इसका उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। वो बोले वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केबिनेट में बाखुबी काम कर रहे हंै। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वो विकास के मसले पर बात करने आए है। दिलचस्प ये रहा कि वो वीरभद्र सिंह व उनके सरकार के कामकाज पर किसी भी तरह का हमला करने से बार -बार बचते रहे। उन्होंने उन पर सीधा हमला नहीं किया।
यहां ये महत्वपूर्ण है कि अगर नड्डा को हिमाचल से मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर उतारा जाता है तो फिर धूमल परिवार की राजनीति पर विराम लगना तय है। आगामी चुनावों में प्रदेश में पिता पुत्रों की सरकार एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने वाला है। ये भााजपा आलाकमान भी जानता है। कांग्रेस में वीरभद्र सिंह व विक्रमादित्य सता पर काबिज है तो भाजपा पर धूमल व अनुराग का कब्जा है।
आज दिलचस्प स्थिति भाजपा अध्यक्ष सतपाल सती की रही है। वो नड्डा खेमे की ओर भी है और धूमल खेमे की ओर भी। हालांकि वो अपना झुकाव किस ओर रखेंगे ये आगामी दिनों में तय हो जाएगा। समझा जा रह है एबीवीपी का खेमा नड्डा की ओर झुकेगा। एबीवीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागेश कुमार भी बिलासपुर से हैं। बताते है कि वो राज्यसभा जाने का सपना पाले हैं। नड्डा उनके लिए सीढ़ी बन सकते है। इन सबकों को एक दूसरे की जरूरत हैै। हालांकि भाजपा के लिए धूमल को नजरअंदाज करना आसान नहीं हैं। लेकिन कहते है कि उनके लिए गवर्नरी का पद रखा हुआ है जबकि उनके पुत्र अनुराग ठाकुर के लिए हमीरपुर लोकसभा सीट सुरक्षित है। ऐसे में नड्डा को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने से पिता-पुत्र की सरकार की काट भी मिल जाएगी। अब देखना ये है कि भाजपा आगे क्या करती है।
शिमला/शैल। हिमाचल पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों की हड़ताल पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रतिबन्ध लगा रखा है। लेकिन यह कर्मचारी इन आदेशों को नज़रअन्दाज करके हड़ताल पर चले गये। उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद हड़ताल पर जाने के लिये इन कर्मचारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला बन गया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेशों की अनदेखी किये जाने का कड़ा संज्ञान लेते हुये प्रबन्धन को हड़तालियों से सख्ती से निपटने के आदेश जारी कर दिये। उच्च न्यायालय की सख्ती को देखते हुये कर्मचारियों ने हड़ताल खत्म कर दी। लेकिन हड़ताल का नेतृत्व कर रहे तीस कर्मचारी नेताओं ने अन्य कर्मचारियों के साथ हड़ताल समाप्त नहीं की। कर्मचारी नेताओं के इस कदम पर प्रबन्धन ने उच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना करते हुए इन्हे बर्खास्तगी के आदेश थमा दिये।
बर्खास्तगी के आदेश मिलने पर चैबीस कर्मचारी नेताओं ने प्रबन्धन को अपना-अपना शपथ पत्रा देकर हड़ताल के लिये क्षमा याचना कर ली। प्रबन्धन की इसी क्षमा याचना पर बोर्ड की बैठक में बर्खास्तगी के आदेश वापिस लेकर इन 24 नेताओं को पुनः सेवा में बहाल कर दिया है। लेकिन इसमें परिवहन मजदूर संघ के अध्यक्ष शंकर सिंह ठाकुर और पांच अन्य कर्मचारी नेताओं ने प्रबन्धन को ना कोई शपथ पत्रा दिये न क्षमा याचना की न ही बर्खास्तगी के आदेश की विधिवत अपील दायर की। इसलिये इन छः लोगों की बर्खास्तगी अभी तक बरकरार चल रही है।
हड़ताली नेताओं के खिलाफ उच्च न्यायालय मंे अवमानना का मामला चल रहा है। अदालत ने शंकर सिंह के जमानती वारंट तक जारी कर दिये हैं। जिन कर्मचारियों ने शपथ पत्र देकर क्षमा याचना की है उन्होंने अपने शपथ पत्रों में इस हड़ताल के शंकर सिंह पर उन्हें गुमराह करने का आरोप लगाया है। हड़ताली कर्मचारियों की बर्खास्तगी के समय इन्हे कोई भी कारण बताओ नोटिस जारी करके इन्हे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था। अदालत के आदेशों का सहारा लेकर बर्खास्तगी की कारवाई कर दी गई थी। क्या अदालत के आदेशों के नाम पर बिना कारण बताओ नोटिस जारी करके कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा सकता था? क्या अदालत के आदेश की आड मंे तय प्रक्रिया को नजरअंदाज किया जा सकता था? जिन कर्मचारियोे को बर्खास्त कर दिया गया था। क्या उन्हे विधिवत अपील फाईल किये बिना केवल शपथ पत्र पर ही बहाल की किया जा सकता था? भारतीय मंजदूर संघ पर लगाये गये गुमराही के आरोप की क्या जांच नही की जानी चाहिए थी? क्या हड़ताल पर जाने के लिये किसी कर्मचारी को गुमराह किया जा सकता है?
शंकर सिंह का ताल्लुक भारतीय मजदूर संघ से है और बीएमएस भाजपा की मजदूर ईकाइ है। इस तरह गुमराही का यह आरोप सीधे भाजपा और आरएसएस पर आ जाता है। इस आरोप पर भाजपा और संघ ने शंकर सिंह को अदालत में यह लडाई लड़ने के लिये हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करवाने का प्रबन्ध कर दिया है। माना जा रहा है कि शंकर सिह और उसके साथियों ने पिछले केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी. नड्डा के समाने सारी स्थिति रखी थी जिस पर नड्डा ने उच्च न्यायालय में इस लड़ाई को लड़ने के लिये पूरे प्रबन्ध किये जाने के निर्देश संगठन को दिये हैं। यह भी माना जा रहा है कि इस लड़ाई के माध्यम से भाजपा प्रदेश के कर्मचारियो में अपने संगठन को आगे बढ़ाने का आधार भी जुटा सकती है इसके लिये प्रदेश स्तर पर एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन की तैयारी भी की जा रही है।
शिमला/शैल। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु ने एक साक्षातकार में कहा है कि पार्टी प्रदेश में अगला चुनाव सामूहिक नेतृत्व के तहत लड़ेगी। उन्होने यह भी कहा है कि वीरभद्र एक बड़ा चेहरा हैं। लेकिन पार्टी के अन्दर और भी बड़े चेहरे हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव और पंजाब की प्रभारी डलहौजी की विधायक आशा कुमारी ने कहा है कि वीरभद्र सातवीं बार प्रदेश के मुख्य मन्त्री बनेगें। प्रदेश कांग्रेस की वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स तो बहुत अरसेे से वीरभद्र को प्रदेश का अगला मुख्यमन्त्री घोषित कर चुकी है। कांग्रेस के इन नेताओं के ब्यानों में कितना दम है यह तो समय ही बतायेगा। लेकिन वीरभद्र अभी तक मुख्ंयमत्री पद पर आसीन है यह हकीकत आशा कुमारी, राकेश कालिया, राजेश धर्माणी, जी एस बाली और ठाकुर कौल सिंह जैसे नेता जो एक समय वीरभद्र के विरोधीयों में गिने जाते थे आज यह सब अपने-अपने कारणों से खामोश होकर बैठे चुके हैं। सबकी नजरें सीबीआई और ईडी की जांच रिपोंर्टाें पर अदालत में पेश होने वाले चालानों के परिणामों पर टिकी हुई हैं। यह स्पष्ट है कि देर सवेर यह मामले अदालत में पहुंचकर वीरभद्र परिवार के लिये कठिनाई पेश करेंगे ही। लेकिन यह भविष्य का सवाल है। इसमें कितना वक्त लगेगा। यह भी निश्चित रूप से नही कहा जा सकता। लेकिन इस सबका परिणाम सामने है कि अब वीरभद्र की वकालत में भी मुखर होकर ज्यादा स्वर सामने नही आ रहे हैं।
चुनाव अगले वर्ष दिसम्बर में होने हैं लेकिन जिस ढंग से वीरभद्र प्रदेश का तूफानी दौरा कर रहे हैं और बजटीय संसाधनों की परवाह किये बिना जनता में घोषणाएं करते चले जा रहे हैं उससे समय पूर्व चुनावों की संभावना के भी पूरे संकेत उभर रहे हैं। वीरभद्र के दौरों के कारण ही वीरभद्र के मन्त्री और विधायक भी अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार अभियान में ही जूट गये हैं जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं क्षीण होती जा रही है। ऐसी स्थिति बन गयी है जिसमें यह लग रहा है कि कांग्रेस को अगले चुनावों तक वीरभद्र का नेतृत्व झेलना पड़ेगा।