Thursday, 18 September 2025
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हैरिटेज इस्टीच्यूट आॅफ होटल एण्ड मैनेजमैन्ट को बन्द करने के आदेश


शिमला। प्रदेश के निजि शिक्षण संस्थानों पर शिक्षा का बाजारीकरण करने के आरोप एक अरसे से लगते आ रहे हंै। इन्ही आरोपों की गंभीरता को देखते हुए हिमाचल सरकार ने प्रदेश में इन संस्थानों के लिये एक नियामक आयोग का गठन किया हुआ है। बल्कि प्रदेश के एक निजि शिक्षण संस्थान का मामला जब सर्वोच्च न्यायालय तक पंहुचा था तब शीर्ष अदालत ने भी इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए एक एसआईटी का गठन किया था। यह एसआईटी भी पिछले छःमाह से प्रदेश में कार्यरत है। लेकिन इस सबके बावजूद कई निजि शिक्षण संस्थान लोगों की आंखों में धूल झोकंने और छात्रों से लाखों की फीस बटोरने के धन्धे में लगे हुए है। राजधानी शिमला के उपनगर संजौली में स्थित हैरिटेज इंस्टीच्यूट आॅफ होटल एण्ड मैनेजमैन्ट को नियामक आयेाग ने इस अवैधता का दोषी पाते हुुए उसे तुरन्त प्रभाव से बन्द किये जाने के आदेश जारी किये है। इस संद्धर्भ में उत्तर प्रदेश की हैरिटैज ऐजुकेशनल सोसायटी के अध्यक्ष को नोटिस जारी करते हुए आयोग के सदस्य सुनील दत्त ने दस दिनों के भीतर इन आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के आदेश जारी किये हैं।
इस मामले मेे सुनवाई करते हुए आयोग ने पाया कि होटल मैनेजमैन्ट और केटरिंग में जो बीएससी की डिग्री मदुरैये के कामराज विश्वविद्यालय एमकेयू से 21 हजार रूपये में होती है उसके लिये यहां छात्रों से 2,58,505 रूपये वसूले जा रहे थे। जो डिप्लोमा वहां आठ हजार में होता है उसके लिये यहां पर 45650 रूपये लिये जा रहे थे।
इस शिक्षण संस्थान को चला रही सोसायटी केआठ सदस्य हैं लेकिन हिमाचल से एक भी नही है। जबकि प्रदेश में अपना काम चलाने के लिये यहां से भी कुछ सदस्य होने चाहिये थे। नियामक आयोग के मुताबिक यह इंस्टीच्यूट रैगुलर कोर्स चलाने जैसे भ्रामक विज्ञापन देकर छात्रों को यहां आने के लिये प्रलोभित करता है। जबकि सही मायनों में यह एक स्टडी सैन्टर भी नहीं है। केवल छात्रों से पैसा बनाने का धंधा चलाया जा रहा था। इस संस्थान को यहां चलाने के लिये राज्य सरकार से भी कोई अनुमति नही ली गयी है। माना जा रहा है कि प्रदेश में ऐसे और भी कई संस्थान हो सकते हंै।

प्रदेश के पन्द्रह प्राईमरी स्कूल बिना किसी छात्र के, पांच की संख्या तक के 99 स्कूल हुए बन्द


290 प्राईमरी,196 अप्पर प्राईमरी

और सकैण्डरी स्कूलों के पास केवल एक-एक कमरा

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठता के लिये पिछले दिनों एक मीडिया ग्रुप ने दिल्ली में आवार्ड प्रदान किया है। मुख्यमंत्री के नाम पर इस आवार्ड समारोह में उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री शामिल हुए थे और उन्होने यह आवार्ड ग्रहण किया था। जिस दौरान यह आवार्ड समारोह आयोजित हुआ था उसी दौरान प्रदेश कई भागों से यह समाचार भी आये थे कि कहीं पर छात्रों ने अध्यापकों की कमी के कारण सामूहिक रूप से स्कूल छोड़ दिया या अभिभावकों ने जाकर स्कूल ही बन्द कर दियं यह स्थिति माध्यमिक शिक्षा की थी।
इसके मुकाबले में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तो और भी निराशाजनक रही है। प्रदेश में हजारों स्कूल ऐसे हैं जो कहीं अध्यापकों के संख्या मानदण्ड पूरे नही करते तो कंही छात्रों की संख्या के मानदण्ड पूरे नही करते हैं। जबकि एक प्राथमिक स्कूल से लेकर कालिज खोलने तक मानदण्ड तय हैं। लेकिन इन मानदण्डो की अनदेखी करते हुए स्कूल खोल दिये गये। शिक्षा के प्रचार के लिये आप्रेशन ब्लैक बोर्ड से लेकर सर्वशिक्षा अभियान और राष्ट्रीय उच्च अभियान जैसे जो भी कार्यक्रम केन्द्र सरकार की ओर से समय-समय पर आये उनमें पहली प्राथमिकता नये शिक्षण संस्थान खोलने की रही है और इसमें तय मानदण्डों की जमकर अनदेखी हुई है। इस अनदेखी के परिणाम स्वरूप आज सरकार को शून्य से पांच की संख्या तक के 99 प्राथमिक स्कूल बन्द करने के आदेश जारी करने पड़े हैं। इन स्कूलों को बन्द करने के लिये यह सुनिश्चित किया गया है इनके एक से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में दूसरा स्कूल उपलब्ध रहे। ताकि बन्द किये स्कूल के बच्चे और अध्यापक उस निकट के स्कूल में समायोजित किये जा सकें।

शिक्षा का सूरते हाल

लेकिन इसके अतिरिक्त 290 प्राईमरी 196 अप्पर प्राईमरी और चार सकैण्डरी स्कूल ऐसे हैं जिनके पास कवेल एक-एक ही कमरा है। एक कमरे में कैसे सुचारू रूप से अध्यापन हो सकता है इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है। स्वभाविक है कि यह स्कूल खोलते समय केवल राजनीति ही प्रभावी रही है बच्चों का भविष्य नही। आज भी मुख्यमंत्री अपने हर दौरे में स्कूल घोषित करते जा रहे हैं ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब पहले खोले गये स्कूलों में ही भवन आदि की कमी है तो फिर नये स्कूलों की घोषणाएं क्यों की जा रही हैं।
एक से डेढ किलोमीटर दायरे का मानदण्ड रखकर जो 99 स्कूल बन्द किये गये हैं उनमें पन्द्रह स्कूल तो ऐसे हैं जहां पर बच्चों की संख्या शून्य थी। एक से दो की संख्या वाले इस सूची में 17 स्कूल  हैं। छात्रों की इस संख्या से यह स्वभाविक सवाल उठता है कि यह स्कूल खोलते समय क्या सोचा गया होगा। अभी एक से डेढ़ किलोमीटर के मानदण्ड से बाहर भी सैंकडो स्कूल ऐसे है। जहां बच्चों की संख्या पांच तक ही है। एक ओर मुख्यमंत्री यह दावा कर रहे हैं कि जहां एक भी बच्चा पढ़ने वाला होगा वह वहां भी स्कूल खोलेंगे। इसी कड़ी में प्राईमरी स्कूल से ही अंग्रेजी भाषा पढ़ाने का दावा किया गया है। लेकिन इन दावों को पूरा करने के लिये स्कूलों अध्यापको की अपेक्षित संख्या की ही भारी कमी है। संभवतः इसी कमी को देखकर अब इस कार्यकाल के अन्तिम वर्ष में प्राईमरी अध्यापकों के चार हजार पद भरने की घोषणा की गयी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बिना अध्यक्षों के कब तक चलेंगे सूचना एंवम शैक्षणिक नियामक आयोग

प्रदेश की वरिष्ठ नौकरशाही की कार्य प्रणाली सवालों में 

शिमला/शैल। अभी 30 नवम्बर को सेवानिवृत होकर पहली दिसम्बर को मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव की पत्नी मीरा वालिया ने निजि शैक्षणिक संस्थानों के लिये बने रैगुलेटरी कमीशन में बतौर सदस्य पदभार ग्रहण कर लिया है। सदस्य के रूप में मीरा वालिया का चयन करीब पांच छः माह पहले हो गया था। लेकिन उन्होने ने सेवानिवृति के बाद ही नया पदभार संभालने को अधिमान दिया ताकि उन्हे इस आयोग में पूरे तीन वर्ष का कार्याकाल मिल जाये। मीरा वालिया के पदभार संभालने के साथ ही इस नियामक आयोग के सदस्यों की संख्या दो हो गयी है। लेकिन अभी तक इस आयोग के अध्यक्ष का पद खाली चल रहा है और करीब एक वर्ष से यह पद खाली है। इस पद को भरने के लिये अलग से आवेदन मांगने की आवश्कता होगी और इसके लिये इसे अलग से विज्ञापित करना होगा।
इस रैगुलेटरी कमीशन की तरह मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी करीब एक वर्ष से खाली चल रहा है। इस पद को भरने के लिये आवेदन भी आमन्त्रित कर लिये गये थे। लेकिन इसके चयन के लिये चयन कमेटी का गठन नही किया गया और यह पद खाली चल रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच वर्ष है और यह पद उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष है और यहां से सेवानिवृति के बाद उसी तर्ज पर उसे लाभ मिलते हैं इसलिये इस पद के लिये कई बड़ो की नजर रहना स्वभाविक है। इस पद के चयन के लिये जो कमेटी गठित होती है उसमे मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमन्त्री द्वारा मनोनीत एक वरिष्ठ मन्त्री/चयन बहुमत से होता है। तो स्वाभाविक है कि जिसे मुख्यमंत्री चाहेंगे वही इस पद को हासिल करेगा।
एक वर्ष से यह पद खाली चल रहा है। इसके लिये आवदेन आमन्त्रित कर लिये जाने के बाद भी चयन नही किया गया है। स्वाभाविक है कि इस पद पर किसी की नजर है जिसके लिये इस पद को अभी तक खाली रखा गया है। सचिवालय के गलियारों की चर्चाओं को यदि अधिमान दिया जाये तो इस पद पर मुख्य सचिव वीसी फारखा आयेंगे क्योंकि मुख्य सचिव के लिये जिस तरह से अपने वरिष्ठों को पछाड़ कर वह इस पद पर काबिज होने में सफल हुए हैं उससे यही संकेत उभरते हैं। फारखा के लिये इस पद को एक बार फिर विज्ञापित करना होगा क्योंकि उन्होने पहले इसके लिये आवदेन नही कर रखा है। माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया को पूरा होने में 2017 के मई जुन तक का समय लगा दिया जायेगा। क्योंकि इसा दौरान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष का पद खाली होगा।
ऐसे में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष का पद मुख्य सूचना आयुक्त और रैगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष का पद सब एक साथ भरे जायेंगे और तीन विश्वस्तों को यहां बिठा दिया जायेगा। इसी के साथ नया मुख्य सचिव भी एक अन्य विश्वस्त बन जायेगा। इस सब में जो नाम चर्चा में चल रहे हैं उनमें सीआईसी के लिये फारखा लोक सेवा आयोग के लिये नरेन्द्र चौहान रैगुलेटरी कमीशन के लिये वी एन एस नेगी और मुख्य सचिव के लिये तरूण श्रीधर शामिल हैं। लेकिन कानूनी हल्कों में इन दिनों एक चर्चा यह चल रही है कि क्या कोई कमीशन अध्यक्ष के बिना हो सकता है। कानून के जानकारों के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त बिना सूचना आयोग नही हो सकता। रैगुलेटरी कमीशन को तो पहले ही चुनौती दी जा चुकी है। प्राईवेट शैक्षणिक संस्थानों ने चुनौती दी है मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। इधर इतने समय तक इस पद के खाली रखे जाने से इस आयोग की आवश्यकता पर स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। फिर यही कहीं भाजपा ने प्रशासनिक अकर्मणयता के नाम पर इन खाली पदों पर दिये अपने आरोप पत्र में सवाल उठा दिया तो स्थिति एकदम बदल भी सकती है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील में गयी हुई है और सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टे लगा रखा है। अब यह मामला कभी भी सुनवाईे के लिये आ सकता है। अब तक प्रदेश में जितने भी प्राईवेट विश्वविद्यालय खोलने के लिये हर विश्वविद्यालय के नाम से एक अलग से एक्ट लाया जाता है। अब तक प्रदेश मे जितने भी प्राईवेट विश्वविद्यालय खुले हैं उनके किसी के भी एक्ट में यह प्रावधान नही किया गया है कि यह विश्वविद्यालय नियामक आयोग द्वारा कंट्रोल किया जायेगा। अब जब इस आयोग के अध्यक्ष का पद ही करीब एक वर्ष से खाली चल रहा है तो सरकार इसकी अनिवार्यता का औचित्य कैसे प्रमाणित कर पायेगी। अब यह सवाल चर्चा का विषय बनता जा रहा है।
इसी तरह अभी वीरभद्र सरकार ने पुलिस में सेवा निवृति से एक दिन पूर्व 1988 के बैच के आईपीएस अधिकारी वीएनएस नेगी को डीजीपी पदोन्नत करने से पूरे आईपीएस और आई ए एस हल्कों में यह पदोन्नति चर्चा का विषय बन गयी है। पुलिस में तो सबसे वरिष्ठ अधिकारी सोमेश गोयल ने तो वाकायदा अपना रोष व्यक्त करते हुए भारत सरकार के गृहमन्त्रालय को पत्र तक भेज दिया है। उनका आरोप है कि इन पदोन्नतियों में सर्विस नियमों की पूरी तरह अवहेलना की गयी है। सोमेश गोयल की वरियता को भी नजर अन्दाज करके उन्हे डीजीपी स्टेट नही बनाया गया था। उनके कनिष्ठ संजय कुमार को डी जी पी तैनात करते समय गोयल को भी डी जी पी प्रोमोट तो कर दिया गया परन्तु उन्हे अपैक्स स्केल नही दिया गया। अब नेगी को पदोन्नत करके उन्हे सेवा निवृति से पूर्व यह लाभ दे दिया गया है। इस समय पुलिस में डी जी पी स्तर के चार अधिकारी हो गये हैं।
दूसरी ओर आई पी एस 1988 बैच के अधिकारी को डी जी पी प्रोमोट करने से आई ए एस में भी इसी गणित पर पदोन्नतियों की मांग उठने की संभावना खडी हो गयी है। आई ए एस में अभी 1987 बैच के अधिकारियों को भी अतिरिक्त मुख्य सचिव नही बनाया गया है। 1987 बैच के ए जे वी प्रसाद भी सेवा निवृति के मुकाम पर पहुंच गये हैं इस नाते आई ए एस में भी पुलिस की तर्ज पर पदोन्नति की मांग उठना स्वाभाविक है।

नोटबंदी के बाद अंबूजा सीमेन्ट ने मजदूरों को निकालने के लिये गेट पर चिपकाये नोटिस

78 मजदूर निकाले गये और अन्य की तैयारी

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी घोषणा के बाद प्रदेश के सबसे बडे़ सीमेंट कारखाने अंबूजा में कार्यरत मजदूरों को काम से निकालने का काम शुरू हो गया है। स्मरणीय है कि अंबूजा सीमेन्ट में मजदूरी का सारा काम ठेकेदारों के माध्यम से अन्जाम दिया जाता रहा है। अब इन्ही ठेकेदारों के नाम से मजदूरों सेपरेशन स्कीम के तहत काम से हटाने के नोटिस कंपनी के गेट पर चिपका दिये गये हैं। अब तक 78 लोगों को काम से हटा दिया गया है और अन्य के भविष्य पर तलवार लटक गयी है। काम से हटाने के लिये जो नोटिस  जारी किये गये हैं उनमें कहा गया है कि अब उनके पास काम नही रहा है और भविष्य में भी काम होने की संभावना नही है। ऐसे में बिना काम के मजदूरों को वेतन दे पाना संभव नहीं है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया जा रहा है कि अचानक काम में कमी कैसे आ गयी है? या फिर इसके पिछे कोई और खेल खेला जा रहा है। 

प्रदेश के लेवर विभाग का इस बारे में कहना है कि वह इस संबध में कुछ नहीं कर सकता है। क्योंकि सीमेंट उद्योग केन्द्र सरकार की कन्ट्रोल्ड सूची में आता है। इस कारण सीमेन्ट उद्योग में कार्यरत लेवर के बारे में भी केन्द्र का लेवर विभाग ही इसका सज्ञांन ले सकता है। इसके लिये पीड़ित मजदूरों को केन्द्र के डिप्टी चीफ लेवर कमीशनर चण्डीगढ़ के पास ही अपनी याचिकाएं दायर करनी होगीं। प्रदेश के लेवर विभाग को मजदूरों को निकाले जाने के बारे में कोई जानकारी ही नही है। उधर अबुंजा में मजदूरों के अन्दर बहुत रोष व्याप्त हो चुका है और मजदूर अपने भविष्य के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गये हैं। प्रबन्धन ने इस स्थिति से निपटने के लिये पुलिस बल भी तैनात करवा दिया है। 

फोरलेन सर्वे में धांधली, ग्रामीणों ने सरकार को भेजी शिकायत

बंगाणा/शैल। ऊना जिले के बंगाणा उपमण्डल में बंगाणा से शांतला राष्ट्रीय उच्च मार्ग घोषित हुआ है। इस उच्च मार्ग के लिये इन दिनों सर्वे का काम चला हुआ है। जिस ढंग से यह सर्वे किया जा रहा है उससे कुछ गांवो में भारी रोष पनप उठा है और यदि शासन-प्रशासन ने लोगों की जायज समस्या का निराकरण न किया तो यह रोष क्या शक्ल ले लेगा यह अन्दाजा लगाना कठिन है। समलाडा गांव के लोगों ने इस संबध में स्थानीय प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक को इस संबध में शिकायत भेजी हैं लोगों का आरोप है कि फोरलेन के लिये सड़क को चैड़ा करने का जो काम होना है उसके लिये जहां सरकारी भूमि उपलब्ध है पहले उसका उपयोग करने की बजाये जानबूझ कर लोगों की उपजाऊ जमीन को लिया जा रहा है। सड़क के लिये जहां पुली आदि का निमार्ण होना है उसके लिये सरकारी भूमि को न लेकर निजि भूमि को लिया जा रहा है। लोगों का आरोप है कि सर्वे में लगे कर्मचारी/अधिकारी जानबूझ कर कुछ लोगों को लाभ और कुछ को नुकसान पहुुंचाने का काम कर रहे हैं इससे लोगों में भी तनाव का माहौल बनता जा रहा है।





























बंगाणा अनुराग ठाकुर के संसदीय क्षेत्र हमीरपुर का एक अहम हिस्सा है। उन्ही के प्रयासों से यह राष्ट्रीय उच्च मार्ग

स्वीकृत हुआ है। इस समय यहां के विधायक भी भाजपा के वीरेन्द्र कंवर हैं। लोगों को शिकायत है कि वह भीे इस जायज समस्या को हल करने की बजाये इससेे जुडे़ कुछ लोगों का अपरोक्ष में सहयोग दे रहे हैं। इस फोरलेन में इसी गांव की सबसे ज्यादा उपजाऊ जमीन जा रही है जिसके लिये प्रभावितों में रोष होना स्वाभाविक है।

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