Friday, 19 December 2025
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भाजपा पर जमीन खरीद का आरोप:सुक्खु आरोप की डिटेल जारी नही कर रहे और भाजपा खण्डन नही कर रही क्यों?


शिमला/बलदेव शर्मा

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खु ने प्रदेश भाजपा पर शिमला, सोलन और बिलासपुर में 15 करोड़ की जमीन खरीदने का आरोप लगाया है लेकिन इस खरीद के कोई दस्तावेज उन्होने मीडिया को जारी नही किये हैं। पत्रकार वार्ताओं में आरोप लगाने के साथ उनकी पुष्टि के लिये दस्तावेजी प्रमाण क्यों जारी नहीं किये जा रहे हैं यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। लेकिन भाजपा ने भी इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया जारी नही की है। भाजपा द्वारा वीरभद्र सरकार के खिलाफ एक लम्बा चैड़ा आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपने के साथ ही भाजपा पर लगने वाला यह आरोप और इस पर अपनाया गया खामोशी का रूख अपने में ही बहुत कुछ ब्यान कर जाता है। 

स्मरणीय है कि 2016 को कालेधन के खिलाफ मोदी की कड़ी कारवाई के रूख में याद किया जायेगा क्योंकि पहले आय की स्वैच्छिक घोषणा योजना लायी गयी और उसके बाद नोटबंदी। कालेधन का सबसेे ज्यादा निवेश रियलइस्टेट में रहा है इसलिये मोदी सरकार का अगला बड़ा कदम इस दिशा में किये बड़े निवेश को लेकर होगा यह घोषणा की गयी है। रियलइस्टेट में हुए बड़े निवेश के तहत 2016 में राजधानी शिमला और उसके आप-पास जो जमीन के सौदे हुए हैं। यदि उन पर नज़र डाली जाये तो यह कुछ नाम सामने आते है तरूण बख्शी, वरूण बख्शी, बंप्पी बख्शी और अंजूबाला के नाम शिमला के करेडू में 19-7-2016, 15/9 और 26-10-2016 को अलग-अलग रजिस्ट्रीयां हुई। सबके नाम दो-दो रजिस्ट्रीयां है। एक रजिस्ट्री 1,60,000 चार 35-35 लाख और चार 28-28 लाख की हैं। इनके बाद दूसरा नाम मै0 एजिस सैन्टर प्वाईंट डवैलप्वरज मकान न0 1084 सैक्टर 27-बी चण्डीगढ़ का है। इन्होने शुईला में 17-6-2016 को 2-69-81 है 6.74 करोड़ और 1-92-99 है 5,08 करोड़ में रजिस्ट्री करवाई है। कमला नगर में मीनाक्षी के नाम 6-8-2016 और 12-8-2016 को 49-49 लाख की रजिस्ट्री है। 16-9-2016 को सुनील कुकरेजा ने बेम्लोई में शिखा अरोड़ा से 71 लाख में प्लाट की खरीद की है।
इसी तरह मै0 दक्षा इन्फ्रा बिल्ड प्रा0 लि0 बी-7/45 सफदर जंग एनकलेव ने गुडगांव के योगेश कौशिक के माध्यम से शिमला के पन्ती में करीब 30 बीघा जमीन 26/8, 27/8, 30-8-2016 को करीब 3.5 करोड़ रजिस्ट्री करवाई है। अभिनेता अनुपम खेर ने टुटु के देवेन्द्र मोहन से 8.6.2016 को एक प्लाट हरमन डिसूजा के माध्यम से 55 लाख में खरीदा है। लेकिन सबसे बड़ा सौदा कुफरी होटलज़ का हुआ है जिसे पटना के सत्यदेव हास्पिटैलीटी ने एक पंकज कश्यप के माध्यम से 32.50 करोड़ में खरीदा है। शिमला में 2016 में यही बडे़ सौदे हुए है। इनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के आरोप को इंगित करता एक भी सौदा नही है। लेकिन इन सौदों में कई ऐसे सौदे हैं जिनमें भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 को लेकर मिली अनुमतियों पर कई तरह की चर्चाएं हैं। क्योंकि जिन बिल्डरज़ ने यह बड़ी खरीद की है उन्हे इससे पूर्व सरकार से कई तरह के अनिवार्यता प्रमाण लेने आवश्यक थे। क्योंकि इतनी ज्यादा जमीन व्यवसायिक उद्देश्य के बिना नही खरीदी जा सकती है और इसके लिये सभी तरह की पूर्व अनुमतियां वांच्छित है। फिर इन जमीनों पर कितने पेड़ किस तरह के थे उसका प्रमाण पत्र 118 की अनुमति के समय स्वयं जिलाधीश को देना होता है । इसी के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि जमीन बेचने वाला इसके बाद स्वयं भूमिहीन तो नहीं हो जाता है। शैल को मिली जानकारी के मुताबिक 118 की अनुमति में बहुत सारी चीजों को नजर अंदाज कर दिया गया है।

गंभीर हो सकते है विनित चैाधरी की याचिका के परिणाम

शिमला/बलदेव शर्मा। जब से वी सी फारखा प्रदेश के मुख्य सचिव बने है तभी से विनित चैाधरी  और उपमा चैाधरी प्राटैस्ट लीव पर चले गये थे। दीपक सानन इस ताजपोशी से पहले से ही छुटी पर चल रहे थे। यह अधिकारी इसलिये छुटी पर चल रहे है क्योंकि फारखा इनसे जूनियर है और फारखा की ताजपोशी के आदेशों के मुताबिक इन्हे उनके अधीन काम करना पडे़गा उन्हे रिपोर्ट करना पड़ेगा और इससे उनकी प्रतिष्ठा/गरिमा को आघात पहुंचेगा। मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री के विश्वास का अधिकारी होना चाहिए। इस धारणा के तहत इससे पहले भी रेणु साहनीधर, ओ पी यादव और सी पी सुजैया को नजर अन्दाज करके इनसे जूनियर अधिकारियों को मुख्य सचिव बनाया गया था। लेकिन
उस समय इन लोगों को प्रधान सलाहकार बनाकर मुख्य सचिव के नियन्त्रण से बाहर रखा गया था। परन्तु इस बार ऐसा नहीं हुआ है इसको लेकर विनित
चैाधरी  और उपमा चैाधरी  ने मुख्यमन्त्री को एक प्रतिवेदन भी दिया था लेकिन आरटीआई के तहत मिली सूचना के मुताबिक यह प्रतिवेदन मुख्यमन्त्री के सामने लाया ही नहीं गया और अतिरिक्त मुख्य सचिव कार्मिक के स्तर पर ही इसे फाईल कर दिया गया। 

विनित चैाधरी  और दीपक सानन ने संयुक्त रूप से कैट में याचिका दायर की है और इसमें कार्मिक विभाग पर मुख्यमन्त्री को गुमराह करने का आरोप लगया गया है। आरोप है कि मुख्य सचिव के चयन के लिये 16 अधिकारियों की जो सूची मुख्यमन्त्री के सामने रखी गयी उससे यह आभास दिया गया कि यह सब अधिकारी अब एक बराबर है। क्योंकि सबको 80,000 का उच्चतम वेतन मिल रहा है। इनमें से किसी को भी मुख्य सचिव बनाया जा सकता है। लेकिन इस सूची में 1982 से लेकर 1985 बैच तक के सभी अधिकारी शामिल थे क्योंकि सबको अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाकर 80,000 का वेतन दे दिया गया है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि प्रदेश में मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव के केवल दो ही पद काडर में सृजित है और इनके बराबर दो और पद अतिरिक्त मुख्य सचिव के एक्स के अनुसार मुख्य सचिव का चयन इन्ही चार अधिकारियों में से किया जा सकता है। इन चार पदों के अतिरिक्त ए सी एस के जितने भी पद सृजित किये गये हैं उनके लिये भारत सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होती है और यह शुद्ध रूप से अस्थायी होते है तथा केवल दो वर्ष तक के लिये रह सकते हैं। इन अस्थायी पदों को मुख्य सचिव के चयन के दायरे में नहीं लाया जा सकता। इस संद्धर्भ में लाये गये कार्मिक विभाग के नोट को लेकर याचिका में कहा गया है कि That the note artificially expands the list of officers who are eligible to be considered for appointment as Chief Secretary by including officers holding posts of Additional Chief Secretary that have been created in contravention of the IAS Pay Rules and the IAS Cadre Rules and Government of India instructions disallowing creation of posts in the apex grade under the 2nd proviso to Rule 4(2) of the IAS Cadre Rules.

That the note indicates that all 16 officers have been placed in the apex grade after due screening by the screening committee which is factually incorrect because respondent No. 3 Sh VC Pharka along with Respondent no 4, was granted the Chief Secretary's grade without any consideration by the Screening Committee and was, therefore, not eligible for being considered for appointment to the post of Chief Secretary.
That the note fails to draw attention to the fact that recommendation of the Civil Services Board was now mandatory for making any appointment to cadre posts after amendment in the IAS (Cadre Rules) in pursuance of the Supreme Court's judgment in the TSR Subramanian case and consequential amendments in the IAS Cadre Rules.
Two officers of the 1983 batch vizUpmaChawdhry and VidyaChanderPharka were promoted to the Chief Secretary's grade on 04.03.2014 by upgrading two posts of Principal Secretary to the Govt out of which one post was to re-convert to the post of Principal Secretary on 30.4.2015. The apex scale was released without any assessment by the Screening Committee.As per information obtained under RTI, no information about the meeting of the Screening Committee is available with the State Govt.

अब तो सर्वोच्च न्यायालय ने आई ए एस अधिकारियों की पदोन्नति और स्थानान्तरण को लेकर सिविल सर्विस बोर्डे का गठन अनिवार्य कर दिया है। इस बोर्ड की सिफारिशों के बिना यह चयन नही हो सकता। लेकिन फारखा की नियुक्ति के समय यह मामला बोर्ड के सामने लाया ही नही गया बल्कि बोर्ड का गठन ही नहीं किया गया। मुख्यमन्त्री ने फारखा के नाम को इसी आधार पर स्वीकृति दे दी की सब अधिकारी मुख्यसचिव के बराबर ही है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पश्ट कहा हैं कि "What has to be seen for equivalence is the status and the nature and responsibilities of the duties attached to the two posts.  Merely giving the salary of one post to the other does not make for equivalence". इस परिदृश्य में फारखा की नियुक्ति को चुनौति देने वाली इस याचिका से प्रदेश के शीर्ष प्रशासन पर गंभीर प्रभाव पड़ने तय हैं।

 

मंच ही नही हैलीकाॅप्टर की सूची से भी गायब था बाली का नाम


शिमला/बलदेव शर्मा। वीरभद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर सरकार ने धर्मशाला में रैली आयोजित की थी। इस रैली को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संबोधित किया था। यह कार्यक्रम सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। लेकिन इस रैली के मंच पर परिवहन मन्त्री जी एस बाली को स्थान नही दिया गया। बाली जब मंच तक आने लगे तो सुरक्षा कर्मी ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि मंच पर बैठने वालों की सूची में उनका नाम शामिल ही नही है। यह सरकारी कार्यक्रम था इसलिये स्वभाविक रूप से मंच पर बैठने वालों की जो सूची तैयार की गयी होगी उसकी जानकारी मुख्यमन्त्राी कार्यालय और मुख्य मन्त्री को ही रही होगी। सूची तैयार होने के बाद इसकी प्रति मंच संचालक को दी जाती है लेकिन मंच संचालक उसमें अन्तिम क्षणों में कोई फेरबदल नहीं कर सकता। इस रैली में मंच संचालक की जिम्मेदारी उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री के पास थी।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मण्डी आये थे तब भाजपा ने जो रैली आयोजित की थी उस रैली में मोदी ने जिस भाषा और तर्ज में वीरभद्र के भ्रष्टाचार मामलों का जिक्र किया था उससे सरकार और कांग्रेस दोनो असहज हो उठे थे। उस रैली की प्रतिक्रिया में यह दावा किया गया था कि इसी स्थल पर इससे भी बड़ी रैली का आयोजन करके मोदी और भाजपा को जवाब दिया जायेगा। उसके बाद उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक मण्डी में इस रैली का आयोजन करने का प्रयास किया। मण्डी के बाद ऊना में संभावना तलाश की गयी और अन्त में इसके लिये धर्मशाला तय की गयी। धर्मशाला की रैली को सफल बनाने के लिये कांगड़ा के मन्त्रीयों जी एस बाली, सुधीर शर्मा और सुजान सिंह पठानिया के अतिरिक्त युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने विशेष प्रयास किये। विक्रमादित्य सिंह ने हमीरपुर, ऊना और कांगड़ा का विशेष दौरा किया। संभवतः इसी दौरे के परिणाम स्वरूप कई जगहों पर उनके पोस्टर देखे गये। लेकिन रैली के लिये मुख्य मन्त्री और सुधीर शर्मा के पोस्टर ही ज्यादा देखे गये और अन्य मंत्रीयों को इनमें जगह नही मिली। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुक्खु भी ज्यादा नजर नही आये। मंच पर भाषण का मौका भी मन्त्रीयों में केवल सुधीर को ही मिला। जबकि सूत्रों के मुताबिक रैली के लिये परिवहन प्रबन्धों की सारी जिम्मेदारी बाली ने निभाई है। कांगड़ा की राजनीति में बाली के प्रभाव और स्थान को कम करके नहीं आंका जा सकता। यह उन्होने पंचायती राज सभाओं के चुनावों में पूरी तरह प्रदर्शित कर दिया था। दिल्ली दरबार में बाली ने किस तरह से पुनः अपना स्थान बना लिया यह सब जानते है। इसी स्थान के फलस्वरूप वह रैली के बाद राहुल गांधी का एक कार्यक्रम अपने चुनाव क्षेत्रा नगरोटा में रखवाने -करवाने में सफल रहे। इस कार्यक्रम में भी बाली ने राहुल के सामने मीलों लम्बी लाईनंे लगवाकर अपने जनाधार का सफल परिचय दे दिया। इस कार्यक्रम में भीड़ ने बाली और राहुल के नारे भी लगाये। धर्मशाला की रैली की सफलता का श्रेय अकेेले सुधीर शर्मा को नही जाता है यह सब मानते है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर इस रैली को एक तरह से सुधीर और विक्रमादित्य सिंह ने ही हाईजैक कर लिया था। सूत्रों के मुताबिक इस पर न केवल बाली बल्कि कई अन्य नेता भी अन्दर खाते नाराज़ है। बाली को मंच पर न पाकर कांगड़ा के लोगों में हैरानी होना स्वाभाविक है। बाली ने जब सूची में उनका नाम ने होने की शिकायत मुख्यमन्त्री से करके इसकी जांच करने का आग्रह किया तो मुख्यमन्त्री ने बाली के आक्षेप को कोरा झूठ करार दे दिया। जबकि सच तो यह है कि बाली का नाम राहुल के साथ हैलीकाॅप्टर में बैठने वालों की सूची में भी नही था। बाली हवाई अड्डे तक अपनी गाडी में पहुंचे है हालांकि राहुल ने हैलीकाप्टर में उनके बारे में पूछा और थोड़ा इन्तजार भी किया। यह सब आज कांगड़ा में हरेक की चर्चा का विषय है। भाजपा को कांग्रेस की एक जुटता पर हमला करने का मौका मिल गया। हैं बल्कि अब बाली विरोधी नितिन गडकरी के साथ उनके रिश्तों को एक नयी व्याख्या देने लग पड़े हैं। बाली एक ऐसे नेता है जिनकेे रिश्ते दूसरे राजनीतिक दलों के कई बड़े नेताओं के साथ बहुत अच्छे है। इन्ही रिश्तों के कारण कई लोग बाली के अनचाहे विरोधी हो गये हैं। लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह सवाल बराबर गूंज रहा है कि मुख्यमन्त्री के निकटस्थों ने इस समय राजनीतिक विवाद का यह नया अध्याय क्यों शुरू करवा दिया। इसी का परिणाम है कि बाली जहां भाजपा के आरोप पत्र को खारिज कर रहे है। वहीं पर यह भी मान रहे है कि बेरोजगार युवाओं के साथ किया गया वायदा पूरा नहीं किया गया है। बाली का मंच के साथ ही हैलीकाॅप्टर की सूची से भी नाम गायब होना एक महज संयोग नही माना जा सकता और बाली का यह दर्द कई लोगों को दर्द दे सकता है।

बीसीसीआई अध्यक्ष से हटाये गये अनुराग ठाकुर-मानहानि की तलवार बरकरार

शिमला/बलदेव शर्मा। क्रिकेट प्रशासन में सुधार के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने के लिये एक वर्ष ये भी अधिक समय से शीर्ष अदालत में चल रहे मामले में आये फैसले में सर्वोच्च अदालत ने बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को उनके पदों से हटा दिया है। अभी अध्यक्ष के काम काज की जिम्मेदारी वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओर सचिव की जिम्मेदारी सयुंक्त सचिव को सौंपी गयी है। बोर्ड का अगला प्रबन्धन किसके पास कैसे रहेगा इसका फैंसला 19 जनवरी को आयेगा। बीसीसीआई विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है लेकिन इस बोर्ड पर लगभग देश के राजनेताओं का कब्जा है और इसमें सभी राजनीतिक दल बराबर के हिस्सेदार हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि सभी खेलों का प्रबन्धन राजनेताओं के हाथों में पहुंच चुका है। क्रिकेट में खिलाड़ियों की बोली लगती है। इसमें चल रहे सट्टे के खेल पर भी जांच कमेटी बिठानी पड़ी थी। क्रिकेट में फैल ‘‘इस सब कुछ’’ में सुधार कैसे लाया जा सकता है इसके लिये ही लोढ़ा कमेटी का गठन किया गया था। लोढ़ा कमेटी ने इस संद्धर्भ में इसके प्रबन्धक अधिकारियों की उम्र, कार्यकाल, एक राज्य एक वोट जैसी कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की है। लेकिन बीसीसीआई ने इन सिफारिशों को मानने में अडियल रूख अपना लिया। बीसीसीआई का अडियल रूख जब इसके अध्यक्ष अनुराग के शपथ पत्र के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया तब स्थिति और भी गंभीर हो गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस शपथ पत्र को अदालत की मानहानि करार दिया जिसका परिणाम अध्यक्ष और सचिव की बर्खास्तगी के फैंसले के रूप में सामने आया है। 

बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग हमीरपुर सांसद है और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के बड़े बेटे हैं। बीसीसीआई तक पहुंचने से पहले अनुराग एचपीसीए के सर्वेसर्वा थे। यह एक संयोग है कि जब धूमल हिमाचल के मुख्यमन्त्री बने उसी दौरान एचपीसीए ने अपना यहां पर विस्तार किया। इस विस्तार के नाम पर एचपीसीए ने प्रदेश में धर्मशाला जैसा स्टेडियम स्थापित किया और अन्य स्थानों पर भी स्टेडियमों की स्थापना की है। लेकिन एचपीसीए का यह विस्तार राजनीति के आईने में धूमल शासन का भ्रष्टाचार बन गया। और आज वीरभद्र सरकार ने एचपीसीए के खिलाफ कई आपराधिक मामले चलाये हुए है। जिन पर ट्रायल कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक से स्टे मिला हुआ है। एचपीसीए को इंगित करके ही वीरभद्र सरकार नया खेल विधेयक लेकर आयी। जो कि राजभवन में स्वीकृति के लिये लंबित पड़ा हुआ है। अनुराग ठाकुर की गिनती केन्द्रिय वित्त मंत्री अरूण जेटली के निकटस्थों में होती है। इसी कारण वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे सीबीआई और ईडी के मामलों को धूमल, जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार देते हैस्मरणीय है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई के मामले मे फैंसला सुरक्षित किया था और अनुराग के शपथ पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी तब वीरभद्र ने अनुराग को लेकर जिस तर्ज में अपनी प्रतिक्रिया दी थी उससे स्पष्ट हो जाता है कि अब जब बीसीसीआई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आ गया तब वीरभद्र और उनकी विजिलैन्स भी एचपीसीए के मामलों में ऐसे ही परिणाम पाने के लिये पूरा - पूरा प्रयास करेंगे।
दूसरी ओर भाजपा के भीतर भी जो लोग धूमल विरोधी माने जाते है वह भी अनुराग के खिलाफ आये इस फैंसले का पूरा - पूरा राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि यही विरोधी खेमा है जिसने नड्डा को भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों के रूप में प्रचारित किया है। कांग्रेस और वीरभद्र भी इस प्रचार को अपनी सुविधानुसार हवा देते रहे हैं। इस परिदृश्य में यह स्वाभाविक है कि वीरभद्र एचपीसीए के मामलों को आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास करें। क्योंकि राजनीतिक तौर पर वीरभद्र को जो चुनौती धूमल से है वह नड्डा से नहीं है। ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में धूमल और वीरभद्र दोनो की ओर से ही आक्रामक राजनीति देखने को मिले। क्योंकि जहां अनुराग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आया है वहीं पर वीरभद्र के खिलाफ भी आयकर अपील ट्रिब्यूनल चण्ड़ीगढ़ और उसके बाद हिमाचल उच्च न्यायालय के फैंसले आये हैं। इन फैसलों को लेकर कौन कितना आक्रामक होता है यह आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।

अबूंजा सीमेन्ट प्लांट हादसे प्रबन्धन से लेकर सरकार तक सभी सवालों के घेरे में

शिमला/
अबूंजा सीमेन्ट ने पिछले दिनों कुछ कामगारों को यह कहकर काम से निकाल दिया है कि उनके पास अब काम नही हैं इन कामगारों को निकालने के लिये अपनाई गयी प्रक्रिया में इनके निश्कासन के नोटिस गेट पर चिपका दिये गये थे। उस समय इन कामगारों के निष्कासन पर प्रदेश के श्रम विभाग ने अपने दखल से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि सीमेन्ट उ़द्योग केन्द्र के कन्ट्रोल में है इसलिये इसकी समस्याओं के लिये केन्द्र का श्रम विभाग ही जिम्मेदार है। अब इसी सीमेन्ट प्लांट में एक मजदूर पर गर्म लावा गिरने से उसकी मौके पर ही मौत हो गयी और तीन गंभीर रूप से घायल हो गये जिन्हें आईजीएमसी लाया गया। इनमें से एक को तो पीजीाअई चण्डीगढ़ रैफर कर दिया गया है। इस हादसे ने कंपनी के प्लांट के अन्दर के सुरक्षा प्रबन्धों पर गंभीर सवाल खडे कर दिये हैं। लेकिन इतना बड़ा हादसा हो जाने पर प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा है। जबकि केन्द्र और प्रदेश के श्रम विभाग और उ़द्योग विभाग की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह मौके पर आते। यहां तक कि डी सी और एसपी तक मौके पर नहीं आये। पूरा मामला स्थानीय पुलिस और एसडीएम तथा तहसीलदार पर ही छोड़ दिया गया।
इस हादसे में हुई कामगार की मौत के बाद जब कामगार उसकी डेडबांडी लेने गये तो उन्हे वहां जाने से पहले बाघल होटल में कपंनी प्रबन्धन से पहले मिलने के लिये कहा गया। कंपनी पिछले दिनों करीब 80 मजदूरों को काम से निकाल चुकी है और वह सब विरोध कर रहे हंै। यह हादसा उनकी चिन्ताओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है। लेकिन इस हादसे को निपटाने के लिये एक जांच कमेटी बना दी गयी। इस कमेटी में मजदूर यूनियन सीटू के अध्यक्ष लच्छी राम, उपप्रधान मुकेश कोषाध्यक्ष देव राज तथा बीएमएस के महासचिव मस्तराम को शामिल किया है। इस जांच के लिये कंपनी के विशेषज्ञ मुबंई से आयेंगे लच्छी राम और देवराज को कंपनी ने निकाला हुआ है। स्थानीय पुलिस ने धारा 336 और 304 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। इस हादसे में सबसे बड़ा तथ्य यह सामने आया है कि लेबर विभाग का सेफ्रटी अफसर कभी भी यहां निरीक्षण के लिये नहीं आया है। जबकि इस अधिकारी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह समय-समय पर जाकर सुरक्षा प्रबन्धों का जायजा लेता है और वाकायदा अपनी रिपोर्ट तैयार करता है अब इस अधिकारी के न आने की जिम्म्ेदारी केन्द्र के लेवर विभाग पर आती है या प्रदेश के इस बारें में किसके स्तर पर कोताही हुई है इसको लेकर अभी पुलिस खामोश है।
दूसरी ओर प्रशासन ने 30 साल के मृतक अजय कुमार के मामले को 39 लाख का मुआवजा और कंपनी में ही लगे उसके भाई को पक्की नौकरी तथा मां को पैन्शन देने का समझौता करके 24 घन्टे के भीतर ही मामले को निपटा दिया है। ऐसे में इस प्रकरण में दर्ज मामले पर पुलिस कैसे आगे बढ़ेगी या प्रशासन की तरह वह भी शांत हो जायेगी। इस मामले की जांच केमटी में जो निष्कासित मजदूर लच्छी राम और देव राज सदस्य बनाये गये हैं वह इसकी जांच को कैसे अन्तिम परिणाम तक ले जाते हैं या फिर उन्हें भी पुनः नौकरी मिल जाती है आज यह सारे सवाल चर्चा में हैं। लेकिन इस हादसे से इन बड़े उद्योगों के भीतर के प्रबन्धन और शीर्ष प्रशासन तथा राजनेताओं के साथ क्योंकि यह सब इस पर खामोश रहें है।

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