Thursday, 18 September 2025
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महेश्वर की भाजपा वापसी के प्रयासों का परिणाम है रघुनाथ मन्दिर का अधिग्रहण

शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने कुल्लु के अन्र्तराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के केन्द्रिय देव श्री रघुनाथ के मन्दिर का अधिग्रहण करने के लिये अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार के इस कदम का कुल्लु के देव समाज और महेश्वर सिंह ने कड़ा विरोध किया है। महेश्वर सिहं ने सरकार की अधिसूचना को प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका के माध्यम से चुनौती भी दे दी है। उच्च न्यायालय का फैसला क्या आता है तब तक सरकार के फैसले पर ज्यादा कुछ
कहना सही नही होगा। लेकिन इस अधिग्रहण को जायज ठहराने के लिये मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने यह कहा है कि ऐसा करने के लिये क्षेत्र की जनता की मांग थी। सरकार ने जनता की मांग पर अधिग्रहण का फैसला लिया है। लेकिन कुल्लु की जनता ने यहां के राज परविार से जुडे़ कई मुद्दों पर पहले भी सरकार के पास मांगे रखी हंै जिन पर सरकार ने कभी अमल नही किया।

स्मरणीय है कि इसी रघुनाथ मन्दिर को लेकर 1941 में जिला जज श्री एस एम हक होशियारपुर की अदालत में दो प्रार्थनाएं नम्बर 12 और 13 आयी थी जिन पर 25.2.1942 को धर्मशाला कैंप में फैसला सुनाया गया था। यह प्रार्थनाएं 1920 के एक्ट नम्बर 14 की धारा 3 के तहत आयी थी। जिला जज एस एम हक ने अपनेे फैसले में इस मन्दिर को प्राईवेट संपति करार दिया था। इस फैसले के बाद एक समय श्रीमति विप्लव ठाकुर, कौल सिंह, सिंघी राम, स्व. राज किशन गौड और ईश्वर दास ने भी नवल ठाकुर के आग्रह पर इस मन्दिर के अधिग्रहण की मांग उठाई थी जिसे सरकार ने नही माना था।
इसी तरह देहात सुधार संगठन भुन्तर ने रूपी वैली को लेकर मांग उठायी थी। नवल ठाकुर 1991 में रूपी वैली के मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय में ले गये थे। उच्च न्यायालय ने 13.5.91 को अपने फैसले में 31.12.92 से पहले रूपी वैली के सारे नौतोड़ मामलों की समीक्षा के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों पर 4.11.96 को जिलाधीश कुल्लु ने इस स्थल के निरीक्षण के आदेश दिये थे। इस निरीक्षण की रिपोर्ट पर लम्बे समय तक जिलाधीश के कार्यालय में चिन्तन मनन चलता रहा। अन्त में 10.7.2006 को जिलाधीश कुल्लु के कार्यालय से मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त सविच को रिपोर्ट भेजी गयी। जिलाधीश के पत्र के साथ निरीक्षण की पूरी रिपोर्ट भेजी गयी जिस पर कभी कोई कारवाई नहीं हुई। जिलाधीश का पत्र और 1942 के जिला जज के फैसले की कापी पाठकों के सामने रखी जा रही है।
अब सरकार ने इस मन्दिर के अधिग्रहण का फैसला उस समय लिया जब महेश्वर सिंह ने अपनी हिमाचल लोकहित पार्टी को भाजपा में विलय करने का फैसला लिया। महेश्वर हिलोपा के एक मात्र विधायक है और उनके भाजपा में विलय पर दलबदल कानून लागू नही होता है। वीरभद्र के इस कार्यकाल में महेश्वर सदन के अन्दर और बाहर बराबर मुख्यमन्त्री के साथ खड़े रहे हंै। लेकिन अब जब राजनीतिक विवशताओं के चलते उन्होने पुनः भाजपा में वापसी करने का फैसला ले लिया तब सरकार के मन्दिर अधिग्रहण के फैसले को राजनीतिक आईने में देखा जाना स्वाभाविक है।


























वीरभद्र सिंह ने फिर कहा जेटली और अनुराग पडे़ हैं उनके पीछे

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच से किस कदर आहत है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह इस सबके लिये धूमल, जेटली और अनुराग को लगातार कोसते आ रहे हैं। उधर धूमल ने फिर चुनौती दी है कि प्रदेश में मुख्यमन्त्री रहे तीनों नेताओं की संपति की जांच सीबीआई से करवा ली जाये। इस समय शान्ता कुमार, धूमल और वीरभद्र ही ऐसे नेता हैं जो प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इन तीनों के खिलाफ शिकायतें भी हैं। शान्ता के खिलाफ पालमपुर के ही एक सेवानिवृत प्रिंसिपल आंेकार धवन की शिकायत सरकार के पास धूमल के समय से लंबित है। गंभीर शिकायत है लेकिन न धूमल और न वीरभद्र ही इस पर कारवाई करने को तैयार हैं। धूमल के खिलाफ विनय शर्मा की शिकायत 2012 से लंबित चली आ रही है। विनय शर्मा तो इस शिकायत पर 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। 2013 से वीरभद्र सत्ता में है लेकिन आज तक उनकी विजिलैन्स इसमें कुछ नही कर पायी है। अनुराग ने भी बतौर सांसद 10,27,000 की संपति दो लाख में खरीदी हैं। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मुताबिक कोई भी पब्लिक सर्वेन्ट कम कीमत पर संपति नही खरीद सकता। वीरभद्र की विजिलैन्स के पास यह सारे मामले हैं लेकिन कारवाई नही है।

धूमल के खिलाफ ए एन शर्मा के नाम पर बनाये गये मामले में सरकार की फजीहत किस कदर हुई है यह भी सबके सामने है। एच पी सी ए के सारे मामलों में सरकार की स्थिति हास्यस्पद हो चुकी है। सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का मामला आज तक आरसीएस और प्रदेश उच्च न्यायालय के बीच लटका पड़ा है। अरूण जेटली के खिलाफ मान हानि का मामला वापिस लेना पड़ा है। इन सारे प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र ने अपने विरोधीयों को घेरने के लिये हर संभव प्रयास किया है लेकिन उनका सचिवालय और उनकी विजिलैन्स इन प्रयासों को सफल नही बना पाया है। वीरभद्र के प्रयास सार्वजनिक रूप से सामने भी आ गये और उनके परिणाम शून्य रहने से फजीहत होना स्वाभाविक है। इसी फजीहत का परिणाम है कि वीरभद्र का दर्द इस तरह यदा-कदा सामने आ जाता है।
वीरभद्र परिवार के खिलाफ चल रहे मामले अपने अन्तिम परिणाम तक पहुचने के कगार पर पहुंच चुके हैं भले ही एक दिन की राहत का कानूनी जुगाड़ बैठाते हुए कुछ और समय निकल जाये लेकिन इन मामलों में नुकसान होने की पूरी-पूरी संभावना है। इस परिदृश्य में वीरभद्र का धूमल, जेटली और अनुराग को कोसना तब तक बेमानी हो जाता है जब तक कि वह उनको अपने बराबर के धरातल पर लाकर खड़ा नही कर देते हंै। आज वीरभद्र का कोसना केवल खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे होकर रहा गया है। ऐसे में यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि वीरभद्र अपने प्रयासों में सफल क्यों नही हो पा रहे हंै। क्योंकि यदि धूमल के खिलाफ भी आय से अधिक संपति का मामला ठोस आधारों पर खड़ा हो जाता है तो वह भी वीरभद्र की तर्ज पर आगे चलकर ईडी के दायरे में आ खड़ा होगा। लेकिन क्या वीरभद्र का सचिवालय और विजिलैन्स ऐसा कर पायंेेगे? आज इनकी मंशा पर भी राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्यांेकि वीरभद्र की सरकार अब तक उन आरोपों पर कोई परिणाम प्रदेश की जनता के सामने नही ला पायी है जिनके सहारे वह सत्ता तक पहुंची थी। बल्कि आज वीरभद्र सरकार स्वयं उन आरोपों में घिरती जा रही है जो वह विपक्ष में बैठकर धूमल सरकार के खिलाफ लगाया करती थी। क्योंकि विजिलैन्स के पास ऐसी शिकायतें मौजूद हैं जिन पर यदि ईमानदारी से गंभीर जांच की जाये तो उसकी आंच कई बडे़ चेहरांे को बेनकाब कर सकती है। लेकिन विजिलैन्स ऐसा कर नही पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रशासन के अहम पदों पर बैठे बड़े बाबू अपने भविष्य की चिन्ता को लेकर ज्यादा सजग हो गये हंै। क्योंकि उन्हें उसी तर्ज पर धमकीयां मिलनी शुरू हो गयी है। जैसी की 31.3.99 को स्वयं वीरभद्र ने तत्कालीन शीर्ष प्रशासन को दी थी।

सीआईसी और शिक्षा के नियामक आयोग का अध्यक्ष तलाशने के लिए नही बन पायी स्क्रीनिंग कमेटी

शिमला/शैल। प्रदेश में मुख्य सूचना आयुक्त और शिक्षा के नियामक आयोग के अध्यक्ष पद करीब पिछले पांच माह से खाली चल रहे हैं। इन पदांे को भरने के लिये आवेदन आमन्त्रित कर लिये गये थे। शिक्षा के नियामक आयोग में सदस्य का रिक्त पद भर भी लिया गया है और मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी आर.के.एम.बी. कालिज की प्रिसिंपल मीरा वालिया को सदस्य का पद मिला है। जिस बैठक में सदस्य का पद भरा गया था उस बैठक में अध्यक्ष का पद नही भरा जा सका। क्योंकि नियामक आयोग का अध्यक्ष पद भरने के लिये शिक्षा सचिव चयन समिति की बैठक बुलाते है। लेकिन यहां पर तत्कालीन शिक्षा सचिव पी सी धीमान स्वयं इस पद के लिये दावेदार थे और इस कारण यह बैठक नही बुलायी जा सकी। अब धीमान सेवानिवृत हो गये हैं अब यह बैठक बुलायी जा सकती है। 

पी सी धीमान की दावेदारी के कारण यह पद खाली रखा गया था। लेकिन इसी बीच सरकार ने शराब का कारोबार करने के लिये भी एक अलग निगम बनाने का फैसला ले लिया है। सरकार द्वारा शराब का सारा कारोबार अपने एकाधिकार में लेने के लिये जीआईसी को इस कारोबार से बाहर कर दिया गया है। जीआईसी को अपना आवेदन तक वापिस लेना पड़ा है। इस सबमंे आबकारी एंवम कराधान सचिव के नाते पीसी धीमान की मुख्य भूमिका रही है। धीमान की इसी भूमिका के लिये इस नयी निगम के अध्यक्ष पद के लिये भी वह प्रबल दावेदारों में आ गये हैं। लेकिन एचपीसीए के मामले में सरकार धीमान के खिलाफ मुकद्दमा चलाने की अनुमति तक दे चुकी है ऐसे में सेवानिवृति के बाद धीमान को किसी पद पर तैनाती देना सरकार के लिये विवाद खड़ा कर सकता है।
इसी तरह सीआईसी के लिये आये आवेदनों की छंटनी के लिये भी अभी तक स्क्रीनिंग कमेटी गठित नही हो पायी है। इस पद के दावेदारों में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के एस तोमर भी शामिल हो गये हैं। हालांकि संविधान के मुताबिक लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के सदस्यों पर सरकार में कोई भी अन्य पद स्वीकारने पर प्रतिबन्ध है। इस संद्धर्भ में आरटीआई एक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य राज्यपाल को शिकायत तक भेज चुके हैं। उधर विशेषज्ञों के मुताबिक सूचना आयोग अध्यक्ष के बिना काम ही नही कर सकता है। सूचना आयोग में अध्यक्ष का होना अनिवार्यता है। सूचना आयोग को लेकर सरकार एक तरह से सवैंधानिक संकट मे फंस चुकी है। ऐसे में सरकार इन रिक्त पदों को कब और कैसे भरती है इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।

ईडी मामले में नहीं मिल पायी वीरभद्र को अन्तरिम राहत और आनन्द चौहान को जमानत

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को मनीलाॅडरिंग मामले में अब तक अदालत से कोई राहत नही मिल पायी है और इसी मामलें में गिरफ्तार उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को जमानत नही मिल पायी है। इस मामले में ईडी का जो रूख अब तक सामने आया है उससे लगता है कि अभी निकट भविष्य में किसी को भी राहत मिलना कठिन है। स्मरणीय है कि वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, आनन्द चौहान और चुन्नी लाल के खिलाफ 23.9.15 को सीबीआई ने आय से अधिक संपति का मामला दर्ज किया था। इसी मामले के तथ्यों के आधार पर ईडी ने 27.10.15 को मनीलाॅडरिंग का मामला दर्ज कर लिया था। सीबीआई ने मामला दर्ज करने के साथ ही वीरभद्र के आवास और कुछ अन्य स्थानों पर छापेमारी की। इस छापामारी से आहत होकर वीरभद्र ने हिमाचल उच्च न्यायालय में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले को रद्द किये जाने की गुहार लगायी। इस याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी करते हुए उच्च न्यायालय ने वीरभद्र से पूछताछ करने गिरफ्तार करने और मामले का चालान अदालत में ले जाने से पूर्व अदालत से पूर्व अनुमति लेने की शर्त लगा दी। जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिये जाने के बाद भी गिरफ्रतारी के लिये अनुमति लेने की शर्त अब भी जारी है। इस शर्त को हटाने के लिये सीबीआई की याचिका दिल्ली उच्चन्यायालय में लंबित है। वीरभद्र की तर्ज पर ही आनन्द चौहान और चुन्नी लाल ने भी हिमाचल उच्च न्यायालय से ऐसी ही राहत मांगी थी जो उन्हें नही मिली क्योंकि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो चुका है। आनन्द चौहान और चुन्नी लाल की गिरफ्तारी पर अदालत से कोई रोक न होने से ही इनकी गिरफ्तारी हुई है।
दूसरी ओर जब ईडी ने मामला दर्ज करने के बाद छापामारी की तब वीरभद्र सिंह ने इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए ईडी की कारवाई का आधार बने दस्तावेजों की कापी मांगी तथा दर्ज मामले को रद्द करने की गुहार लगायी। यह याचिका भी अभी तक न्यायालय में लंबित चल रही है ईडी द्वारा किसी की भी गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं है। इसी आधार पर ईडी ने आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर लिया है। आनन्द चौहान की गिरफ्तारी से संकट में आये वीरभद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से अपनी गिरफ्तारी की संभावित आंशका पर न्यायालय से सुरक्षा की गुहार लगायी है जो नही मिलने पायी है। ईडी से अभी तक इस मामले के किसी भी अभियुक्त को कोई राहत नहीं मिल पायी है। जानकारो का मानना है कि इसमें अब राहत मिलने की सारी संभावनाएं नही के बराबर रह गयी है क्योंकि ईडी में 27.10.15 को दर्ज हुए मामले में वीरभद्र को 16.11.15 को ऐजैन्सी में पेश होने के सम्मन जारी किये गये थे। जिस पर वीरभद्र ने ईडी को 10.1.16 को पत्र भेजकर सूचित किया कि 15 फरवरी तक व्यस्त है इसलिये नही आ सकते। इसके बाद 11.1.16 को वीरभद्र का वकील पेश हुआ जिसने कुछ आंशिक जानकारीयां ईडी को दी। यह आंशिक जानकारियां पर्याप्त और संतोषजनक न होने पर ईडी ने वीरभद्र को 5.1.16,12.1.16, 21.1.16, 28.1.16, 11.3.16, 17.3.16 और 21.3.16 को पेश होने के सम्मन भेजे लेकिन वह एक बार भी ऐजैन्सी के सामने पेश नही हुए। वीरभद्र के पेश होने पर ईडी ने 23.8.16 को करीब आठ करोड़ की चल-अचल संपति की अटैचमैन्ट के आदेश जारी कर दिये। बल्कि इसी बीच 9.2.16 को बागवानी निदेशक डी पी भंगालिया का ब्यान ईडी ने दर्ज किया जिसमे श्रीखण्ड बागीचे से 2008-09 में 5500, 2009-10 में 2700 तथा 2010-11 में 9300 वाक्स सेब उत्पादन की संभावना बतायी गयी है। 8.2.16 को ए.पी.एम.सी. सोलन के सचिव भानू शर्मा ने ईडी को परवाणु सेब मण्डी के कार्यशील होने तथा सेब के ढुलान में प्रयुक्त होने वाले फार्मो आर तथा क्यू की जानकारी दी तथा आनन्द चौहान द्वारा ऐसा कोई भी दस्तावेज जांच में न मिलने की भी जानकारी दी। 8.2.16 को निदेशक परिवहन के कार्यालय से इस सेब के ढुलान में प्रयुक्त हुए कथित वाहन नम्बरों की जानकारी ली गयी जिसमे यह वाहन मौजूदा ही नहीं होने की जानकारी सामने आयी।
इस तरह जो घटनाक्रम पूरे मामले में घटा है उससेे यह तथ्य उभरता है कि ईडी ने वीरभद्र को अपना पक्ष रखने के बहुत अवसर दिये लेकिन वह एक बार भी ऐजैन्सी के सामने पेश नही हुए। वीरभद्र के इस असहयोग के बाद ईडी के पास संपति अटैचमैन्ट का आदेश जारी करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जाता था। अब एलआईसी पाॅलिसीयों और कुछ एफडीआर में निवेश हुए धन का वैध स्त्रोत बताने की जिम्मेदारी केवल वीरभद्र परिवार की ही रह जाती है क्योंकि इन पाॅलिसीयों को कैश करवाकर ग्रेटर कैलाश में लिया गया मकान प्रतिभा सिंह के नाम पर है पालिसीयों में हुए निवेश के रिकार्ड पर लाभार्थी यही परिवार है। इसी तरह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से करीब 6.5 करोड़ का ट्टण लेना तो प्रतिभा सिंह ने अपने चुनावी शपथ पत्र में दिखाया हैं लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच में यह सामने आया है कि वक्कामुल्ला के पास इतना धन है ही नही। ईडी वक्कामुल्ला से लिये गये करीब 6.5 करोड के ट्टण को भी मनीलाॅडरिंग मान रही है। सूत्रों के मुताबिक वक्कामुल्ला को लेकर ईडी की जांच पूरी हो गयी है और अब उसको सारे संबंधित लोगों से पूछताछ का दौर शुरू होगा। यदि वक्कामुल्ला के पास वैध स्त्रोत नहीं पाया गया तो यह पैसा भी मनीलाॅडरिग का हिस्सा बनेगा और इसमें कुछ और संपतियां अटैच होने की स्थिति आ जायेगी। यह भी माना रहा है कि ईडी ने इसी मामले में जो देश के विभिन्न शहरो में छापामरी की है उसकी कड़ीयांे में भी कई और लोग जुड़ने स्वाभाविक हैं। चर्चा है कि इसमें कुछ मन्त्रियों, चेयरमैनो, पत्रकारो तथा अधिकारियों के नाम भी चिन्हित हो चुके हैं जो इस मनीलाॅडरिंग ट्रेल का हिस्सा माने जा रहे हैं। इस परिदृश्य में ईडी प्रकरण में निकट भविष्य में कोई राहत मिल पाने की संभावना नहीं है। माना जा रहा है कि वीरभद्र के सलाहकार इस मामलें में उन्हे सही राय नही दे पाये हैं।

जंगी थोपन पवारी परियोजना रिलांयस को मिलने का रास्ता साफ


ब्रकेल के 2713 करोड़ का हर्जाना बसूलने का क्या होगा
क्या अदानी को 280 करोड़ लौटाना सरकार की जिम्मेदारी है

शिमला/शैल।वीरभद्र के इस शासनकाल में सरकार के सारे बडे़ बडे़ दावों के वाबजूद प्रदेश के पाॅवर प्रौजेक्टस में बडे़ निवेश का दावा अमली शक्ल नही ले पाया है। हांलाकि सरकार ने निवेशकों के पक्ष में अपनी हाईड्रल नीति में भी कई बड़े बदलाव किये है इन बदलावों के अतिरिक्त सरकार ने 960 मैगावाट के जंगी थोपन पवारी हाईडल प्रौजेक्ट को सितम्बर 2015 में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रचर को देने का फैसला लिया। इस फैसले के बाद इसी प्रौजेक्ट में अपफ्रन्ट प्रिमियम के नाम पर ब्रेकल -अदानी के जमा हुए 280 करोड़ को वापिस लौटाने का भी फैसला लिया। इस प्रौजेक्ट को लेकर रिलायंस 2009-10 से सर्वोच्च न्यायालय में गया हुआ था। क्योंकि उसे यह प्रौजेक्ट 2006-07 में वीरभद्र सरकार ने नही दिया था। उस समय यह प्रौजेक्ट नीदरलैण्ड की कंपनी बे्रकल को दिया गया था। लेकिन ब्रेकल यह प्रौजेक्ट शुरू नही कर पाया और किसी न किसी बहाने सरकार से समय में बढ़ौतरी हालिस करता रहा। ब्रेकल के इस आचरण को रिलायंस ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस चुनौती में अदालत के सामने ब्रेकल के सारे दावे एकदम गल्त साबित हुए। उच्च न्यायालय ने ब्रेकल को फ्राड करार देते हुए इस आवंटन को ही रद्द कर दिया। जब इस प्रोजैक्ट के लिये टैण्डर निविदायें आमन्त्रित की गयी थी तब रिलायंस दूसरे स्थान पर था। लेकिन आवंटन रद्द होने के बाद भी जब प्रोजैक्ट रिलायंस को नही दिया गया तब रिलायंस इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ले गया ।

रिलायंस के सर्वोच्च न्यायालय में होने के बीच ही प्रदेश के सियासी समीकरण बदल गये। स्मरणीय है कि ब्रेकल जब इस प्रौजेक्ट की अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा नही कर पाया था तब अदानी से 280 करोड़ कर्ज लेकर ब्रकेल ने 2008 में यह अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा किया था। लेकिन अदानी ब्रेकल कन्सरोटियम का विधिवत अधिकृत सदस्य नही था। इसलिए ब्रेकल को कर्ज देने वाले के अतिरिक्त अदानी की इस प्रोजैक्ट में और कोई हैसियत नही बन पायी। ब्रेकल को 280 करोड़ का कर्ज अदानी ने सरकार की जिम्मेदारी पर नही दिया था। कर्ज बे्रकल और अदानी का निजी मामला था। ब्रेकल के तय समय तक इस प्रोजैक्ट को पूरा न कर पाने के कारण जो नुकसान प्रदेश को हुआ है उसका आकलन 2713 करोड़ आंका गया है। यह 2713 करोड़ ब्रेकल से बसूल किया जाना था। इसके लिये पहले कदम के तौर पर उसके द्वारा जमा करवाया 280 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम जब्त किया जाना था। इसके लिये ब्रेकल को नोटिस तक जारी हो रहा था। लेकिन सियासी समीकरणों के बदलनेे के कारण न केवल 2713 करोड़ के हर्जाने का नोटिस देना ड्राप किया गया बल्कि ब्रेकल के नाम अदानी का 280 करोड़ का कर्ज लौटाने का भी प्रबन्ध कर दिया गया।
रिलायंस और अदानी दोनो प्रधान मंत्राी नरेन्द्र मोदी के चेहते उद्योगपति हैं। दोनो ने लोकसभा चुनावों में मोदी का किस हद तक साथ दिया है इसे पूरा देश जानता है। इस पृष्ठभूमि में रिलायंस और अदानी के हित आपस में जुड़ गये। यहां रिलायंस प्रोजैक्ट हासिल करने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया। ब्रेकल को अदालत ने फ्राड करार दे रखा है। ब्रेकल और अदानी वैध हिस्सेदार है नही। अदानी का इस तरह 280 करोड़ डूब रहा था। ऐसे में संयोवंश वीरभद्र-मोदी की सीबीआई और ईडी की जांच के शिकंजे में उलझ गये। स्थिति गंभीर बन गयी इसको भांपते हुए वीरभद्र के प्रबन्धकों ने अदानी अंबानी के सहारे मोदी तक पहुंचने का जुगाड़ भिडाया। इस जुगाड़ के प्रबन्धन में लगे वीरभद्र के एक अतिविश्वस्त अधिकारी की भूमिका तो बड़ी चर्चा तक का विषय बन गयी थी। इसी पृष्ठ भूमि में अन्ततः रिलायंस नेे सवोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस ली है। सरकार रिलायंस को यह प्रोजैक्ट देने की आॅफर भेज चुकी है जिसे उसने सिन्द्धात रूप में स्वीकार भी कर लिया है। रिलायंस को प्रौजेक्ट के लिये तो अपफ्रन्ट प्रिमियम देना ही है। अब इसी प्रिमियम को अदानी को वापिस दिया जाना है बदले में वीरभद्र को सीबीआई और ईडी से राहत दिलाने की शर्त है।
लेकिन अब ईडी अटैचमैन्ट आर्डर जारी करने के बाद एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर चुका है। सीबीआई ने गिरफ्तारी की रोक हठाने की याचिका दे रखी है। ईडी ने आनन्द चौहान पर जांच में सहयोग न करने का आरोप लगाया हुआ है। ऐसे में वीरभद्र का मामला इस समय ऐसा पेचीदा बन गया है जहां पर प्रत्यक्षतः राहत पहुंचा पाना बहुत आसान नही होगा। दूसरी ओर ब्रेकल को अदालत द्वारा एकदम आधार हीन पाये जाने के बाद उससे 2713 करोड़ के नुकसान के नोटिस को ड्राप करके 280 करोड़ वापिस लौटाने का जोखिम इस समय वीरभद्र का प्रशासनिक तन्त्रा ले पायेगा इसको लेकर भी सन्देह है।

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