शैल/शिमला। प्रदेश कांग्रेस का प्रभार संभालने के बाद अपनी पहली पत्रकार वार्ता में सुशील कुमार शिन्दे ने यह दावा किया है कि इस समय न तो सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन होगा ओर न ही संगठन के। शिन्दे के प्रभार संभालने से कांग्रेस सरकार और संगठन में चल रहे मतभेद इस सीमा तक पहुंच गये थे कि कांग्रेस के छः विधायकों द्वारा मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ एक पत्र कांग्रेस हाईकमान को भेज दिया था। कांग्रेस हाईकमान को पत्र भेजने के
साथ ही प्रदेश अध्यक्ष को भी इसकी अध्किारिक सूचना दे दी गयी थी और इसकी पुष्टि मीडिया को स्वयं सुक्खु ने की थी। यही नही इस पत्र की चर्चा बाहर आने के बाद परिवहन मन्त्री जीएसबाली ने अपने जन्मदिन पर कांगड़ा में पहले की ही तरह उएक आयोजन रखा था । इस अवसर पर कांग्रेस के कई नेता और मंत्री तक पहुंये थे। सुक्खु दिल्ली से सीधे इसके लिये कांगड़ा पहुंचे थे इस आयोजन को मीडिया ने वीरभद्र विरोधीयों का शक्ति प्रदर्शन करार दे दिया था और मीडिया के ऐसे चित्रण पर किसी ने भी इसका खण्डन तक नही कियां बल्कि बाली के इस आयेाजन के बाद प्रदेश के राजनीतिक हल्को में तो यहां तक चर्चा फैल गयी कि बाली और उनके साथी विधायक कभी भी भाजपा का दामन थामने की घोषणा कर सकते है।
ल्ेकिन अब जब पत्रकार वार्ता में शिन्दे से पार्टी के विधायकों द्वारा ऐसा पत्र लिखे जाने के बारे में पुछा गया तो उन्होने इससे स्पष्ट इन्कार कर दिया। यहां तक कह दिया कि स्वयं सुक्खु की ओर से भी उन्हे ऐसे पत्र की जानकारी नही दी गयी है। जब शिंदे ने यह इन्कार किया तो सुक्खु उनकी बगल में ही बैठे थे और वह इस पर आज एकदम खामोश बैठे रहे। जिस पार्टी अध्यक्ष ने स्वयं ऐसा पत्र लिखा जाना मीडिया में स्वीकारा हो आज उसी के सामने प्रभारी द्वारा उसे एक तरह से सिरे से खारिज कर देना अध्यक्ष की विश्वसनीयता पर सवाल खडे कर जाता है। कल मीडिया सुक्खु के किसी भी कथन पर आसानी से विश्वास नही कर पायेगा और सार्वजनिक जीवन में यह विश्वनीयता ही सबसे बड़ा हथियार होती है। सुक्खु ने विधायकों के इस कथित पत्र को यह कह कर सार्वजनिक नही किया था कि इससे विधायको के साथ विश्वासघात होगा। अब जिन विधायकों के लिये सुक्खु ने प्रभारीे के हाथों अपनी यह फजीहत झेली है वह विधायक और सुक्खु जनता में अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के लिये क्या कदम उठायेंगे। क्योंकि जब वीरभद्र समर्थकों ने विधायकों का एक पत्र हाईकमान को देकर सुक्खु को हराने की मांग की थी तब 24 विधायकों ने सुक्खु के समर्थन में पत्र लिखकर अध्यक्ष में अपना विश्वास व्यक्त किया था।
जब मनकोटिया को पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से बर्खास्त किया गया था और मनकोटिया ने शिमला में एक पत्रकार वार्ता में खुलकर वीरभद्र के खिलाफ हमला बोला था तब बाली ही एक मात्र ऐसे मंत्री थे जो मनकोटिया के साथ खड़े दिखे थे। फिर वीरभद्र ने भी मनकोटिया - बाली के गठजोड़ पर खुलकर कटाक्ष किया था। बाली के केन्द्र में कुछ भाजपा मन्त्रीयों के साथ अच्छे रिश्ते और उनके साथ अवसर होती रही बैठके भी प्रशासनिक और राजनीतिक हल्को में किसी किसी से छुपी नही रही है। चौधरी वीरेन्द्र सिंह से तो कांग्रेस के समय से उनके रिश्ते बहुत निकटता के रहे है जो आज तक कायम है। संभवतः इन्ही रिश्तो के कारण बाली को लेकर यह फैल चुका है कि बाली देर सवेर चुनावों से पहले भाजपा में जायेंगे ही। बाली को लेकर बन रही इन धारणाओं को विराम लगाने का भी कोई प्रयास सामने नही आया है। हालांकि अब शिंदे बाली के घर भी जा आये है। शिंदे को प्रभारी के नाते प्रदेश कांग्रेस में एक जुटता बनाये रखना जहां पहली राजनीतिक आवश्यकता है वहीं पर यह प्रबन्ध करना भी उतना ही आवश्यक होगा कि सरकार और स्वयं मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ लगने वाले आरोप कम से कम बाहर आयें। लेकिन इस दिशा में जब शिंदे ने मनकोटिया के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई किये जाने का संकेत दे दिया है तब लगता है कि इस संद्धर्भ में शिंदे के सामने भी अभी तक सही तस्वीर नही आ पायी है।
वीरभद्र पिछले दिनो यह सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं कि उनके ऊपर हो रहे भाजपा के हमलों संगठन की ओर से कोई भी उनके बचाव में नही आ रहा है। भाजपा ने कानून व्यवस्था और मुख्यमन्त्री पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को ही चुनाव का केन्द्रिय मुद्दा बनाने की रणनीति बना रखी है। बल्कि विधानसभा के मानसून सत्र में भी इन्ही मुद्दों पर सरकार को घेरा जायेगा । ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शिंदे के प्रभार संभालने के बाद कौन - कौन मुख्यमन्त्री के बाचव में आता है और भाजपा पर भी उसी तर्ज में हमला कर पाता है। क्योंकि यदि कांग्रेस मनकेाटिया के खिलाफ कारवाई करती है तो मनकोटिया के मिले और तेज हो जायेगे और वह सब पर भारी पड़ जायेगा।
शैल/शिमला। प्रदेश सरकार पूर्व मुख्यमन्त्रीयों को कुछ सुविधाएं देने का प्रस्ताव लायी थीं मन्त्री परिषद की बैठक में सामान्य विभाग की ओर से उलाये गये प्रस्ताव के अनुसार पूर्व मुख्य मन्त्रीयों से अब एक नियमित डाक्अर और काफिले में डाक्टर मुक्त एंबुलैन्स डाक्टर सहित एक एस यू वी गाडी पंसद के दो सुरक्षा अधिकारी एवम लैण्ड लाईन और मोबाईल के लिये वर्ष 50 हजार तथा प्रशासनिक खर्च के लिये एक लाख रूपये प्रतिवर्ष देने जा रही थी। इस आश्य का प्रस्ताव मन्त्री परिषद में लाया गया लेकिन जब इसके राजनीतिक प्रभाव की ओर कुछ मन्त्रियों ने ध्यान आर्किषत किया तो इसे वापिस ले लिया गया। मन्त्रियों का तर्क था कि अब तीन माह बाद प्रदेश विधान सभा के चुनाव होने वाले है। ऐसे में इस फैसले को लेकर पार्टी की चुनावी संभावनाओं के बारे में लोगों में नकारात्मक संदेश जायेगा इसलिये ऐसा फैसला नही लिया जाना चाहिये।
सरकार और पार्टी सत्ता में न केवल वापसी बल्कि वीरभद्र को सातंवी बार मुख्यमन्त्री बनाने के दावे करती आ रही है। पार्टी के नये प्रभारी शिंदे ने वीरभद्र और सुक्खु के बीच चल रहे टकराव को विराम देने के लिये अनुशासन का चाबुक चलाकर सबको एकजुट रहने की नसीहत देते हुए यहां तक ऐलान कर दिया कि न तो सुक्खु हटेंगे और न ही वीरभद्र। बल्कि कुछ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा सुक्खु को हटाने के लिये लगाये गये नारों का कड़ा संज्ञान लेते हुए वीरभद्र के बेटे और युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह से भी मंच से यह ऐलान करवाया कि भविष्य में प्रदेश अध्यक्ष की राय से ही हर फैसला लेंगे और उन्हे पूरा सहयोग देंगे। यह माना जा रहा है कि यदि आने वाले विधानसभा चुनावों में ईमानदारी से पार्टी एक जुटता के साथ काम करेगी तो वह भाजपा को कड़ी चुनौती पेश कर सकती है।
लेकिन इस समय कार्यकाल के अन्तिम दिनों में पूर्व मुख्यमन्त्रीयों को यह सुविधाएं देने का प्रयास किया गया उससे अनचाह ही यह संदेश चला गया कि वीरभद्र और उनके सचिवालय ने अभी से स्वीकार कर लिया है कि चुनावों में उनकी हार होने जा रही है। मन्त्री परिषद में यह प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से लाया गया और सामान्य प्रशासन विभाग स्वयं मुख्यमन्त्री के पास है। फिर मनत्री परिषद के सचिव की जिम्मेदारी मुख्य सचिव के पास होती है। ऐसे में सामन्य प्रशासन विभाग द्वारा तैयार किया गया यह प्रस्ताव मन्त्री परिषद के ऐजेंण्डा में डालने से पूर्व इसे मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री द्वारा अवश्य देखा गया होगा क्योंकि हर मन्त्री अपने विभाग से संबधित ऐजेण्डे को स्वयं मन्त्री परिषद में रखता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह प्रस्ताव तैयार करने से पहले इससे जुडे़ अधिकारी राजनीतिक आकंलन करने में या तो एकदम असफल रहे है। या फिर उन्होने जानबूझकर अपने राजनीतिक विरोधीयों को एक मुद्दा और थमा दिया। बल्कि इससे यह आशंका और बन गयी है कि लोग चुनाव आते- आते एकाध ऐसा और कारनामा कर सकते है।
शैल/शिमला। वीरभद्र सरकार विभिन्न सरकारी विभागों /निकायों में आऊट सोर्स के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को लेकर एक पाॅलिसी लाने की घोषणा एक लम्बे समय से करती आ रही है। बल्कि संवद्ध प्रशासन पर यह पाॅलिसी
लाने के लिये दवाब भी बनाया गया और जब इसे अधिकारियों ने उकदम नियमों के विरूद्ध करार दिया तो कुछ अधिकारियों को इसका खमियता भी भुगतना पड़ा है इस समय सरकार में करीब 35000 कर्मचारी आऊट सोर्स के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहें है। यह कर्मचारी एक ही कंपनी के माध्यम से रखे गये है। यह आरोप कर्मचारी नेता विनोद ठाकुर ने लगाया है। आरोप है कि इस कंपनी को सरकार 20% कमीशन दे रही है। 80% कर्मचारी को जाना है लेकिन यह 80% भी पहले इस कंपनी के खाते मे जाता है और फिर कंपनी अपने खाते से इनका भुगतान करती है इस तरह यह भी स्पष्ट नही है किे यह 80% भी कर्मचारी को वास्तव में ही मिल रहा है या नही।
आऊट सोर्स के नाम पर प्रदेश के श्रम विभाग के पास कितनी कपनीयां पंजीकृत है और विभाग का उनपर किस तरह का कितना नियन्त्रण है इसको लेकर विभाग में कुछ भी स्पष्ट नही है। जिस कंपनी के माध्यम से हजारों कर्मचारी सरकार में अपनी सेवाएं दे रहे है। उस कंपनी का दफ्तर के नाम पर न्यू शिमला में एक छोटा सा बोर्ड टंगा है लेकिन दफ्तर में कितने कर्मचारी है इसको लेरक भी बहुत कुछ स्पष्ट नही हे क्योंकि कंपनी में फोन करने पर कोई जानकरी नही मिल पाती है इससे यह आशंका और पुख्ता हो जाती है। कि इस कंपनी के नाम पर केवल एक तरह से लेवर सप्लाई का काम किया जा रहा है। क्योंकि आज तक इस कंपनी की ओर से ने तो किसी विज्ञापन के माध्यम से या न ही किसी रोजगार कार्यालय के माध्यम से यह सामने आ पाया है कि अमुक कार्यालय या कार्य के लिये उसे अमुक योग्यता के इतने व्यक्ति चाहिये। क्योंकि यदि कंपनी ऐसी प्रक्रिया अपनाती है तो वह रोजगार कार्यालय के समकक्ष हो जाती है और सरकार के मौजूदा नियम इसकी अनुमति नही देते है इससे हटकर यदि कंपनी ऐसी नियुक्तियों के लिये आमन्त्रण देती है तो उसे अपने ही कार्यालय में या उससे संवद्ध संस्थान में नियुक्ति देनी होगी लेकिन इस कंपनी का अपना कोई ऐसा संस्थान है नही जहां पर यह किसी को नौकरी दे सके।
क्या सरकारी विभागक आऊट सोर्स के माध्यम से किसी को दफ्तर में लिपिक या सहायक आदि की नौकरी दे सकते है ऐसा कोई प्रावधान भी नियमों में नही है ऐसे में आऊट सोर्स के माध्यम से केवल अस्थायी लेवर ही सप्लाई की जा सकती है और सरकारी दफ्तर में ऐसी लेवर रखने का भी प्रावधान नहीं है। इसी कारण से 20% कमीशन के बाद का 80% भी कंपनी के खाते में ही जमा करवाना पड़ता। क्योंकि यदि सरकार के दफ्तर की ओर से कर्मचारी को सीधे 80% का भुगतान कर दिया जाये तो यह लोग सीधे सरकारी कर्मचारी हो जाते हैं इसी के साथ एक सवाल यह खड़ा होता है कि क्या यह कंपनी अपने रिकार्ड में इसके माध्यम से रखे गये कर्मचारियों को अपना रेगुलर कर्मचारी दिखाती है या नही। आज सरकारी कार्यालयों में इस कपंनी के माध्यम से रखे गये हजारों कर्मचारी इस उम्मीद में चल रहे है कि वह कभी नियमित हो जायेंगे। सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को लेकर पाॅलिसी लाये जाने के वायदों से भी इन्हें यह उम्मीद बंधी थी जो कि एकदम आधारहीन थी।
आरोप है कि अभी सरकार ने आऊट सोर्स कर्मचारियों के लिये विभागों को दस करोड़ रूपये जारी किये है। इसमें से दो करोड़ तो कंपनी को सीधे कमीशन के रूप में मिल जायेंगें शेष आठ करोड़ भी कंपनी के खाते में ही जमा होंगे और इसमें से वास्तव में ही संवद्ध कर्मचारियों को कितने मिलेंगे इसकी कोई जानकारी पैसे देने वाले विभाग को नही होगी। ऐसे में हजारों कर्मचारियों का भविष्य जहां अनिश्चितता में हे वहीं पर इसमें करोड़ों का घपला होने की भी पूरी - पूरी संभावना बनी हुई है।
शैल/सोलन। सोलन हिमाचल का शिमला के बाद दूसरा बड़ा शहर है। 2011 की जनसंख्या गणना के मुताबिक शहर की आवादी उस समय 39256 जो बढकर 50,000 का आंकड़ा पा कर चुकी है। सोलन में 1950 में नगर परिषद का गठन हो गया था। 33.43 वर्ग किलो मीटर में फैले शहर को Mushroom City of india और City of RedGold के खिताब भी मिल चुके है सोलन को नगर निगम बनाने का औपचारिक प्रस्ताव नगर परिषद बहुत पहले ही पारित करके सरकार को भेज चुकी है बल्कि इस प्रस्ताव पर जिलाधीश सोलन की ओर से 4.6.15 को कुछ स्पष्टीकरण भी मांगे गये थे इन स्पष्टीकरणों का जवाब जिलाधीश और सचिव शहरी विकास विभाग को 8.7.15 को भेज दिया गया था। लेकिन सरकार की ओर से अब तक इस पर कोई कारवाई नही की गयी है। इस प्रस्ताव में शहर के साथ लगती 11208 जनसंख्या को भी शहर में मिलाने का प्रस्ताव दिया गया था। बल्कि इस मिलाये जाने वाले क्षेत्र मे कोई कृषि योग्य भूमि भी नही आती है।
अब जब धर्मशाला को नगर निगम बना दिया गया है। तब यहां के लोग इस मांग को लेकर बहुत सक्रिय हो गये है। लोगो ने नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष कुल राकेश पंत की अध्यक्षता में 10.7.17 को एक संघर्ष समिति का भी गठन कर लिया है। संधर्ष समिति ने 15.7.17 से 28.7.17 के बीच इसके लिये एक हस्ताक्षर अभियान भी छेड़ा था। जिसमें 7000 लोग इस प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर कर चुके है। आने वाले विधानसभा चुनावों की दृष्टि से सोलन के लोगों की इस मांग का जिले की राजनीति पर गहरा प्रभाव पडे़गा यह तय है। इस समय सोलन जिले पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर भाजपा का कब्जा है केवल सोलन की सीट ही कांग्रेस के पास है जहां से कर्नल धनी रा शांडिल इस समय वीरभद्र मन्त्रीण्डल में मन्त्री है सोलन की इस मांग को स्वीकार करवाना शांडिल के रजनीतिक भविष्य के लिये भी महत्वपूर्ण होगा।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने कोटखाई के बलात्कार और हत्या प्रकरण पर उभरे जनाक्रोश के बाद मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को 26 जुलाई तक अपने पद से त्यागपत्र देने का अल्टीमेटम दिया था। इस अल्टीमेटम पर त्यागपत्र न आने के बाद भाजपा ने प्रदेश भर में पोलिंग बूथों पर एक साथ पुतले फूंके है। इसके बाद अब प्रदेश कार्यसमीति ने निन्दा प्रस्ताव पारित किया है। भाजपा का निन्दा प्रस्ताव दो मुद्दों पर प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और वीरभद्र के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर आया है। कार्यसमिति के प्रस्ताव के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल ने भी अगल-अलग पत्रकार वार्ताओं में वीरभद्र पर हमला बोलते हुए उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देने की सलाह दी है। 
भाजपा नेतृत्व पिछले दो वर्षों से यह दावे करता आ रहा है कि वीरभद्र सरकार गिरने वाली है और प्रदेश में समय से पहले ही चुनाव हो जायेंगे। इस बार तो भाजपा ने वीरभद्र को त्यागपत्र देने के लिये 26 जुलाई की तारीख भी तय कर दी थी लेकिन इस बार भी पहले ही की तरह भाजपा का आकलन सफल नही हुआ है। अब जो चार माह के बाद प्रदेश विधानसभा के चुनाव ही हो जायेंगे। ऐसे में आज जनता के बीच जाने के लिये भाजपा ने फिर वीरभद्र के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का फैसला लिया है। इसी के साथ पार्टी ने उन नेताओं को भी घर वापसी का खुला न्योता दिया है जो कभी किन्ही कारणों से संगठन से बाहर चले गये थे। इस दिशा में महेश्वर सिंह, राधा रमण शास्त्री, श्यामा शर्मा, राकेश पठानिया, खुशीराम बालनाहटा और टिक्कु ठाकुर आदि घर वापसी कर चुके हैं। अब राजन सुशान्त और महेन्द्र सोफत की वापसी की अटकलें चल पड़ी है। इसी कड़ी में अन्य दलों के नेताओं को भी भाजपा में आने का खुला आमन्त्रण दिया गया है। इस आमन्त्रण पर कांग्रेस से कोई लोग निकलकर भाजपा का दामन थामते है या नही इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही होगा।
लेकिन भाजपा जिस भ्रष्टाचार की बात कर रही है उसको लेकर करीब हर वर्ष एक-एक आरोपपत्र सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपती आयी है। अभी शिमला नगर निगम चुनावों से पूर्व भी नगर निगम को लेकर ही एक आरोपपत्र राज्यपाल को सौंपा गया था। अब इस निगम की सत्ता पर भाजपा का ही कब्जा है और निगम के जिस भ्रष्टाचार को लेकर आरोप पत्र सौंपा गया था उसकी जांच करने के लिये किसी आदेश की भी आवश्यकता नही है। परन्तु इस दिशा में अब सत्ता मिलने के बाद आॅखें बन्द कर ली गयी है। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ थोड़ी सी भी ईमानदारी हो तो ऐसे मामलों पर व्यक्तिगत स्तर पर भी विजिलैन्स और अदालत में मामले दायर किये जा सकते है। लेकिन ऐसा हो नही रहा है बल्कि जब पिछली बार भाजपा सत्ता में थी तब अपने ही सौंपे आरोप पत्रों पर सरकार ने कोई कारवाई नहीं की थी। ऐसे में भ्रष्टाचार पर वीरभद्र को घेरने के लिये भाजपा के पास कोई नैतिक आधार नही रह जाता है। क्योंकि वीरभद्र के खिलाफ जिस भ्रष्टाचार की बात की जा रही है उसमें सीबीआई तो अदालत में चालान दायर कर चुकी है और उसका फैसला आने में कई वर्षों लग जायेंगे। सीबीआई के बाद ईडी में मामला चल रहा है। लेकिन उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी ईडी की कारवाई आगे नही बढ़ रही है। ईडी की कारवाई को लेकर आम चर्चा है कि प्रदेश भाजपा ही इस कार्यवाही को आगे नही बढ़ने दे रही है। क्योंकि अगली कारवाई में गिरफ्तारी की नौबत आ सकती है और यह नौबत आने का आधार ईडी द्वारा जारी दूसरे अटैचमैन्ट आदेश के बाद होने वाली पूछताछ है लेकिन यह पूछताछ अब तक नही हुई है जबकि पहले अटैचमैन्ट आदेश के बाद ही आनन्द चैहान की गिरफ्तारी हुई थी। 26 पन्नों के दूसरे अटैचमैन्ट के साथ लगे दस्तावेजों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें भी कोई गिरफ्तारी तो अवश्य होगी। चर्चा है कि ईडी की यह कारवाई भाजपा के ही कुछ बड़े नेताओं द्वारा ही रोकी गयी है और इसके लिये पार्टी द्वारा करवाये गये एक सर्वे को आधार बनाया गया है। इस सर्वे के मुताबिक वीरभद्र के खिलाफ किसी भी बड़ी कारवाई से पब्लिक सहानुभूति बदल जायेगी और भाजपा की सरकार बनना कठिन हो जायेगा। इसी सर्वे के कारण शान्ता जैसे बड़े भी भाजपा नेता अब जनता में इतना ही कह रहे है कि वीरभद्र जमानत पर है। जबकि भाजपा के भी कई बड़े नेताओं के खिलाफ मामलें चल रहे है और वह जमानत पर है। राजीव बिन्दल के खिलाफ चल रहा मामला फैसले के कगार पर पहुंचने वाला है।
ऐसे में भ्रष्टाचार और कानून एवम व्यवस्था के नाम पर सरकार के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पारित करके केवल राजनीति ही की जा सकती है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि भाजपा ने अब एक बार भी गंभीरता से वीरभद्र को सत्ता से हटाने का कोई प्रयास ही नही किया है। अब कोटखाई प्रकरण में सीबीआई के हाथ मामला जाने के बाद जनाक्रोश से लेकर सोशल मीडिया में हर तरह के दावे करने और सन्देह व्यक्त करने वालों के तेवर भी बहुत हद तक बदल गये है। ऐसे में अब तब तक सीबीआई की फाईल रिपोर्ट इस मामलें में नही आ जाती है तक तक राजनीतिक दलों को इसमें अपनी सक्रियता को जारी रखने का कोई आधार नही रह जाता है। संभवतः इस बार भाजपा द्वारा वीरभद्र के त्यागपत्र के लिये 26 जुलाई की तारीख का अल्टीमेटम देना राजनीतिक आंकलन की एक बड़ी चूक ही करार दी जा सकती है। जिसे अब निन्दा प्रस्ताव से कवर करने का प्रयास किया गया है।