Friday, 19 September 2025
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एचआरटीसी के आर.एम. के खिलाफ शिमला पुलिस का केस निकला फ्राड

शिमला/शैल। शिमला पुलिस ने 30 अप्रैल को शोघी में नाका लगाकर एचआरटीसी के सोलन में तैनात आर एम महेन्द्र सिंह को चार किलो चिट्टे के साथ पकड़ा था। पकड़ने के बाद उसे बालूगंज थाना में लाया गया और उससे कड़ी पूछताछ की गयी। जो चिट्टा पकड़ा था उसे जुन्गा की फाॅरैंसिक लैब में जांच के लिये भेजा गया। जुन्गा के अतिरिक्त इस चिट्टे के नमूने हैदराबाद की लैब में भी भेजे गये थे। यह नमूने भेजने के बाद महेन्द्र सिंह को कैंथु जेल भेल दिया गया। जब चार किलो चिट्टे के साथ प्रदेश की परिवहन निगम के रीजनल मैनेजर के पकड़े जाने की खबर मीडिया में उठी तब इस संद्धर्भ में एक जनहित याचिका भी प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर हो गये क्योंकि अपने में ही यह एक बड़ा कांड था। उच्च न्यायालय में यह याचिका कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय करोल जस्टिस अजय मोहन गोयल की खण्डपीठ में सुनवाई के लिये आई। उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले का संज्ञान लिये जाने के बाद पुलिस को अपनी जांच में तेजी लानी पड़ीं लेकिन जैसे ही यह मामला आगे बढ़ा पुलिस का सारा केस एकदम आधारहीन और झूठ का पुलिंदा प्रमाणित हुआ और परिणाम स्वरूप महेन्द्र सिंह न केवल इस मामले से बाईज्जत बरी हुए बल्कि एचआरटीसी को उनके निलंबन के आदेश भी वापिस लेने पडे़ और उन्हें नौकरी से बहाल करना पड़ा। महेन्द्र सिंह ने इस मामले में बरी होने के बाद एक पत्रकार सम्मेलन करके शिमला पुलिस पर एक पूरी तरह फ्राड केस खड़ा करने के लिये संबधित अधिकारी के खिलाफ 50 लाख का मानहानी का दावा दायर करने का ऐलान किया है।
शिमला पुलिस द्वारा एक अधिकारी के खिलाफ इस तरह का फ्राड मामला खड़ा करने के आरोपों ने पूरी व्यवस्था पर कोई गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। पुलिस की इस ज्यादती के कारण महेन्द्र सिंह को 72 दिन जेल में गुजारने पडे़ हैं। बेगुनाह होते हुए इस तरह के इल्जाम में 72 दिन जेल में काटने पर मेहन्द्र सिंह और उनके परिवार पर क्या गुजरी होगी इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। महेन्द्र सिंह के मुताबिक 30 अप्रैल रविवार को वह अपनी गाड़ी से नालागढ़ से शिमला आ रहे थे और शाम को 7ः30 बजे के करीब शोघी पहुंचे। गाड़ी में उनके साथ एक राजीव नाम का व्यक्ति भी था। इस राजीव को किसी विकास का फोन आया जिसने कहा कि उससे मिलना ओर वह पंप के समीप है यह संदेश मिलने पर उन्होने गाड़ी मोड़ी ओर पंप पर चले गये। वहां पहुंचने पर गाड़ी से उतरे और पेशाब करने चले गयें जैसे ही वह वापिस आये तो सीआईए स्टाफ ने उनसे धक्का-मुक्की शुरू कर दी और चैक पोस्ट में ले गये और उनके पास वहां पहले ही एक बैग मौजूद था। महेन्द्र सिंह ने उन्हे अपना पहचान पत्र भी दिखाया लेकिन कोई असर नही हुआ। इसी नोक झोंक में नौ बज गये व साढे नौ बजे के करीब उन्हे बालूगंज थाना में ले आये। थाना में डीएसपी रत्न सिंह ने उन्हे बहुत टार्चर किया।
लेकिन पुलिस ने अपने रिकार्ड में महेन्द्र सिंह को रात साढे़ बारह बजे शोघी में नाके पर खड़ा पकडा हुआ दिखाया है और उनसे चार किलो चिट्टा बरामद किया बताकर सुबह चार बजे गिरफ्रतारी दिखाई। एफआरआई में यह भी कहा गया है कि महेन्द्र सिह ने बैग को गाड़ी में छुपाने की कोशिश की और ड्रावर ने यह बैग आरएम का ही है महेन्द्र सिह के मुताबिक उनकी गाड़ी में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ था और उसकी रिपोर्ट के मुताबिक उनकी गाड़ी 7ः30 बजे के करीब शोघी में है और उसके बाद साढे़ नौ से लेकर सुबह तक गाड़ी बालूगंज थी। गाड़ी रात दस बजे के बाद चली ही नहीं ऐसे में जब गाड़ी चली ही नही तो पुलिस ने रात बारह बजे के बाद उनकी गाड़ी शोघी में कैसे पकड़ी? जीपीए की रिपोर्ट से पुिलस की सारी रिपोर्ट का पर्दाफाश हो गया। महेन्द्र सिंह ने यह भी आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनसे लो लाख रूपये की मांग की थी।
पुलिस ने जो कथित चार किलो चिट्टा महेन्द्र सिंह सेना के में पकड़ा दिखाया था उसकी रिपोर्ट उच्च न्यायालय ने तलब कर ली थी। इस रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि जो नमूना जांच के लिये भेजा था वह अमोनियम कार्बन और अमोनियम वायोकार्बोनेट था जो वेकरी में काम आता है हैरदावाद लैब से भी यही रिपोर्ट आयी है। इसी रिपोर्ट के आधार पर सारा केस धराशाही हो गया और महेन्द्र सिंह स्ंपैलज जज की अदालत से वरी हो गया। महेन्द्र सिंह  ने संबद्ध पुलिस अधिकारी के खिलाफ 50 लाख का मानहानि का दावा करने और अगले 15 दिनों में इस मामलें में और खुलासा करने का ऐलान किया है।

जीपीएस की रिपोर्ट से पुलिस की सारी रिपोर्ट के पर्दाफाश से यह प्रमाणित हो जाता है कि पुलिस एकदम झूठा केस खड़ा कर रही थी। पुलिस की नीयत और कार्य प्रणाली दोनों पर इससे गंभीर सवाल खड़े होते हैं। पुलिस जब नीयतन एक झूठा केस बना रही थी तब इसमें भी चिट्टे की जगह बेकरी पाऊडर इस्तेमाल किया जा रहा था जिसका अर्थ है कि गल्त काम भी गल्त तरीके से किया जा रहा था। इस पर अब पुलिस के शीर्ष प्रशासन और मुख्यमन्त्री पर सवाल आयेगा कि पुलिस का यह झूठ सामने आने के बाद दोषीयों के खिलाफ क्या कारवाई की जाती है।

 

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