Friday, 19 September 2025
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न्याय मंच के आंदोलन को कंट्रोल करने से नही,पुलिस जांच पर उभरे संदेहों का निराकरण करने से होगी स्थिति सामान्य

शिमला/शैल। गुडिया गैंगरेप व मर्डर, फारेस्ट गार्ड होशियार सिंह के कातिलों को पकड़ने की मांग व लापता मेदराम की तलाश को लेकर आम आदमी की आवाज सता के गलियारों तक गुंजाने के लिए उतरी भीड़ को काबू करने के लिए वीरभद्र सिंह सरकार ने डीसी, एसपी व पुलिस बलों के अलावा फायर विभाग को मैदान में उतार दिया हैं।
शिमला में गुडिया गैंगरेप व मर्डर कांड के बाद पहली बार वीरभद्र सिंह सरकार ने आंदोलनकारियों को कंट्रोल करने के लिए पुलिस को मैदान में उतारा हैं। इससे पहले आंदोलनकारी धारा 144 तोड़ कर मालरोड़ से सचिवालय जाते थे। चूंकि ये राजनीतिक प्रदर्शन नहीं था, तो शायद मंच ने टकराव का रास्ता नहीं अपनाया नहीं तो आज पुलिस व आंदोलनकारियों के बीच भिड़ंत हो ही जाती।
मामूली घरों के इन तीनों पीडितों की ओर से न्याय की आवाज प्रदेश सरकार ने कितनी सुनी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुडिया गैंगरेप कांड की जांच में पुलिस की ओर से किए गए कारनामों के बाद सीबीआई जांच शुरू हो गई हैं।
जबकि करसोग में फारेस्ट गार्ड होशियार सिंह के कत्ल में प्रदेश पुलिस किस तरह की जांच कर रही हैं, ये हाईकोर्ट की टिप्पणियों से जाहिर हो चुका है। मेदराम एक अरसे से लापता है, लेकिन उसे तलाशने में पुलिस नाकाम हैं।
यहां ये महत्वपूर्ण है कि गुडिया गरीब घर से थी। वो बीपीएल परिवार से थी। फारेस्ट गार्ड हाशियार सिंह को उसकी दादी ने पाला था। उसके मां बाप मर चुके थे। मुश्किल से वो फारेस्ट गार्ड लगा था व अभी नौकरी में साल भी नहीं हुआ था कि उसका कत्ल हो गया। उसकी डायरी में बहुत कुछ लिखा हुआ हैं। अब उसकी बूढ़ी दादी ही बची है। यही स्थिति मेदराम की भी है, वो भी एक अरसे से लापता है।
सरकार व एजेंसियों की नाकामियां कभी उजागर नहीं होती अगर समाज आगे आकर आवाज नहीं उठाता। इन तीनों परिवारों में ऐसा कोई भी नहीं था जिनकी फरियाद सरकार व एजेंसियों के कानों तक पहुंचती। गुडिया गैंगरेप कांड व होशियार सिंह मामले में पुलिस ने जो कारनामे किए, उसके खिलाफ पूरे प्रदेश में आक्रोश सड़कों पर उतर आया है। उस आक्रोश में भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी सब साथ थे। अब सरकार ने पुलिस व प्रशासन को सड़कों पर उतार दिया है।
गुडिया न्याय मंच के बैनर तले इन परिवारों के परिजन न्याय की आस में इसलिए सड़कों पर है ताकि एजेंसियां कोई और गुल न खिला दें। लेकिन वीरभद्र सरकार उस आवाज को भी कंट्रोल करने पर तुल गई है।
गुडिया न्याय मंच के बैनर तले जब भारी भीड़ सीटीओ से मालरोड होते सचिवालय के लिए जाने के लिए एकत्रित हुई तो महिला डीसी रोहन ठाकुर, एसपी सौम्या सांबशिवन पूरी विनम्रता के साथ भीड़ के आगे आ गए और गुडिया न्याय मंच के प्रतिनिधियों कुलदीप तनवर, राकेश सिंघा, संजय चैहान समेत बाकियों से आग्रह किया कि वो धारा 144 न तोड़े व वाया लोअर बाजार जाएं। चूंकि डीसी व एसपी मौके पर थे तो बाकी अफसर भी साथ ही आ गए।
लेकिन इससे पहले सीटीओ पर बैरीकेटस लगा पुलिस ने भारी बंदोबस्त कर रखे थे। महिला पुलिस, पुरूष पुलिस के अलावा अग्निशमन विभाग की गाड़ी भी तैनात कर दी गई। ये साफ संदेश था। ताकि अगर मंच के बैनर तले एकत्रित लोगों ने बैरिकेटस तोड़ आगे बढ़ने की कोशिश की तो बल इस्तेमाल करने का पूरा इंतजाम था।
बहरहाल, ये सारे इंतजाम देखते हुए, पीडितों की लड़ाई कहीं और दिशा न पकड़ लें, मंच ने टकराव न करने का फैसला लिया। नाज के पास भीड़ सचिवालय के बजाय माल रोड़ की ओर से मुड़ जाए पुलिस ने वहां भी बेरीकेटस लगा दिए। इससे भीड़ में गुस्सा जरूर आया व नाज पर जमकर नारेबाजी की गई लेकिन भीड़ आगे सचिवालय की ओर बढ़ गई। भीड़ के नाज पर रुक जाने पर मंच के एक पदाधिकारी ने बाद में कहा भी कि समझौता हो गया है, इसलिए यहां क्यों रोका होगा। लेकिन बाद में पता चला कि ये ठहराव केवल गुस्सा जाहिर करने के लिए था। शुक्र है कि मंच के पदाधिकारियों ने टकराव का रास्ता नहीं अपनाया अन्यथा वीरभद्र सिंह सरकार की फजीहत और हो जाती।
लेकिन सरकार के लिये स्थिति अभी सुखद नही है क्योंकि फारेस्ट गार्ड होशियार ंिसंह के मामलें में अब उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लेते हुए सरकार से दो टूक पूछा है कि यह मामला भी सीबीआई को क्यों न सौंप दिया जायें यह नौबत इसलिये आई है क्योंकि पुलिस जांच की रिपोर्ट आम आदमी के गले नही उतर पायी हैं हर संवेदनशील मामले में पुलिस की नीयत और नीति गंभीर सन्देहों में घिरती जा रही है इससे सरकार और खासतौर पर स्वयं मुख्यमन्त्री और उनके सचिवालय की विश्वनीयता सवालों में आ खड़ी हुई है। अब विधानसभा चुनावों को सामने रखते सरकार को अपनी विश्वनीयता बहाल करने के लिये या तो इन मामलों के गुनाहागारों को पकड़ कर या फिर संवद्ध पुिलस अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने के अतिरिक्त और कोई कारगर विकल्प नही बचा है क्योंकि गुड़िया मामलें में पुिलस की कार्यप्रणाली पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट से लेकर मुख्यमन्त्री के फेसबुक पेज पर कथित अपराधियों के फोटो आने फिर हटा लिये जाने से जो सन्देह उभरे है वह अभी तक अपनी जगह बने हुए है। यदि सीबीआई भी इन सन्देहों पर से पर्दा न हटा पायी तो जनाक्रोश को एक बार सड़कों पर आने से कोई नही रोक पायेगा और वह स्थिति सरकार के लिये बहुत घातक सिद्ध होगी यह तय है।

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