Friday, 19 September 2025
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वीरभद्र हाईकमान से टकराव क्यों ले रहे है

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और मुख्यमन्त्री  वीरभद्र सिंह  विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नही लड़ेंगे? लड़ेंगे तो कहां से लड़ेंगे। इन चुनावों में पार्टी को लीड करेंगे या नही करेंगे? दन सवालों पर अब तक संशय बना हुआ है क्योंकि इस संद्धर्भ में उनके ब्यान बराबर बदलते आ रहे हैं। इस बारे में अगर कुछ स्पष्ट है तो सिर्फ इतना कि इस समय उनकी राजनीतिक प्राथमिकता सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटवाना बन गया है। ऐसे में यह सवाल उठता जा रहा है कि यदि सुक्खु अध्यक्ष पद से नही हटते हैं तो वीरभद्र का अगला कदम क्या होगा? वीरभद्र को हाईकमान का क्या रूख रहता है? इस पर सुक्खु और वीरभद्र से असहमति रखने वाले दूसरे नेताओं का स्टैण्ड क्या होता है?  यह सवाल इस प्रदेश कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है जबकि भाजपा ने प्रदेश सरकार और कांग्रेस के खिलाफ पूरा हमला बोल रखा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह 22 को कांगड़ा में आयोजित होने जा रही हुंकार रैली में इस हमले को और भी धार देने वाले हैं। भाजपा के हमलों का जवाब देने के लिए कांग्रेस का कोई बड़ा नेता सामने आने का साहस नही जुटा पा रहा है। ऊपर से यह भ्रम भी फैला हुआ है कि कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़कर कभी भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं। क्योंकि कुछ नेताओं का आचरण ही इसके स्पष्ट संकेत दे रहा है। 

इस परिदृष्य में यह आंकलन महत्वपूर्ण हो जाता है कि वीरभद्र  ऐसा स्टैण्ड ले क्यों रहे है? वीरभद्र हर चुनाव में पार्टी पर अपना एक छत्र अधिकार चाहते हैं और जब ऐसा होने में कोई बाधा आती है तब वह बगावत के किसी भी हद तक चले जाते है। 1983, 1993 और 2012 में घटे घटनाक्रमों की जानकारी रखने वाले यह अच्छी तरह से जानते हैं कि हाईकमान को उनकी शर्ते माननी ही पड़ी है लेकिन क्या इस बार भी ऐसा हो पायेगा? क्योंकि इस समय के वीरभद्र के अपने खिलाफ जो मामले खड़े हैं यदि उनके दस्तावेजी  प्रमाण चुनाव अभियान के दौरान सार्वजनिक चर्चा में आ खडे़ होते है तो वीरभद्र और पूरी पार्टी के लिये संकट खड़ा हो जायेगा। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब इन मामलों की चर्चा उठी थी तो कांग्रेस को  68 में से 65 हल्को में हार का मुख देखना पड़ा था जनता भ्रष्टाचार के आरोपों पर जितने विरोध में आ जाती है उतना समर्थन वह विकास कार्यो पर नही देती है यह एक राजनीतिक सच बन चुका है और इसमें कांग्रेस की स्थिति बहुत कमजोर है यह भी स्पष्ट हो चुका है। इसके बावजूद वीरभद्र पूरी पार्टी को आॅंखे दिखा रहे हैं। जबकि चुनाव सरकार की परफारमैन्स पर लड़ा जाता है अकेले पार्टी के प्रचार अभियान के दम पर नही और इस समय सरकार की छवि माफिया राज बनती जा रही है। विकास के नाम भी जो काम ऊना के हरोली विधानसभा क्षेत्र और शिमला के शिमला ग्रामीण में हुए उनके मुकाबले में दूसरे क्षेत्रों में तो 10ः भी नहीं है। कांग्रेस के अपने ही विधायक इसकी शिकायतें करते रहे हैं। यही कारण है कि यह लोग आज खुलकर वीरभद्र के साथ खड़ेे नही हो पा रहे हैं। क्योकि इन विधायकों को नजरअन्दाज  करके  इनके क्षेत्रों से जिन लोगों को विभिन्न निगमो/वार्डो  में ताजापोशीयां दी गयी थी वह सब आज समानान्तर सत्ता केन्द्र बनकर टिकट के दावेदार बने हुए है। इनमें से अधिकांश को ताजापोशीयां विक्रमादित्य की सिफारिश पर मिली है और वहीं विक्रमादित्य की अपनी राजनीतिक ताकत भी बने रहे हैं। इन्ही की ताकत पर विक्रमादित्य समय - समय  पर चुनाव टिकटों के वितरण के लिये मानदण्ड तय करने को लेकर ब्यान देते रहे है। 

 ऐसे में माना जा रहा है कि वीरभद्र सिंह पर विक्रमादित्य के अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलवाने का दवाब है जबकि जिन क्षेत्रों से पार्टी के पास मौजूदा विधायक है वहां पर इन लोगों को टिकट देना आसान नही। सुक्खु बतौर कांग्रेस अध्यक्ष वर्तमान विधायकों के लिये एक मात्र सहारा रह गये हैं क्योंकि यह ब्यान आते  रहे हैं कि कई वर्तमान विधायकों के टिकट भी कट सकते हैं। विक्रमादित्य के समर्थकों को टिकट तभी सुनिश्चित हो सकते हैं यदि टिकट बंटवारे पर केवल वीरभद्र सिंह का ही अधिकार रहे। अन्यथा वीरभद्र का सुक्खु से और क्या विरोध हो सकता है। शिंदे ने भी संभवतः इसी व्यवहारिकता को ध्यान में रखकर यह कहा था कि चुनाव वीरभद्र की ही लीडरशीप मे लड़े जायेंगे लेकिन सुक्खु को भी नही हटाया जायेगा लेकिन  वीरभद्र इस आश्वासन से भी सन्तुष्ट नही हुए तो स्पष्ट है कि वह इस समय पार्टी की सिफारिश पर नही वरन् अपनी ईच्छा से टिकट वितरण चाहते हैं और यह तभी संभव है जब सुक्खु अध्यक्ष न रहे। माना जा रहा है कि वीरभद्र सिंह अर्की के कुनिहार में 25 तारीख को भाजपा की हुंकार रैली के जवाब में एक उससे भी बड़ी रैली आयोजित करने जा रहे है। इस रैली में वीरभद्र अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगें यदि यह रैली वीरभद्र की ईच्छा के अनुसार एक सफल रैली हो जाती है तो संभव है कि एक बार फिर हाईकमान वीरभद्र की शर्तो को मान ले।  लेकिन इस रैली का सफल होना इस पर निर्भर करता है कि क्या अमितशाह की 22 की रैली में कांग्रेस का कोई नेता भाजपा में शामिल होता है या नही। अभी हर्षमहाजन ने जिस तरह से जीएस बाली और वीरभद्र में फिर से बैठकें करवाई हैं उसे इसी प्रयास के रूप मे देखा जा रहा है। 

बेवफा हैं मनकोटिया पठानिया की जनसभा में वीरभद्र ने लगाया आरोप

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को गिरफ्तार करने की मांग करने वाले कांग्रेसी नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया को ठिकाने लगाने के लिए आगे किए केवल सिंह पठानिया की ओर से शाहपुर में आयोजित जनसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ ऐसे नेता है जो कि सुरक्षित जगह की तलाश में वफादारी तक ताक पर रख देते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग खुद वफादार नहीं हैं वह समाज के प्रति वफादार कैसे हो सकते हैं। उन्होंने इसमें कई और दलबदलुओं को भी जोड़ा।
वीरभद्र सिंह ने मनकोटिया को पिछली बार भी छुटकू नेता केवल सिंह पठानिया को मोहरा बना कर विधानसभा चुनाव में पिटवा दिया था। इस बार भी पठानिया ने गजब की जुगत भिड़ा रखी है और वीरभद्र सिंह के चेले बने हुए हैं। मनकोटिया को उम्मीद थी कि वीरभद्र सिंह पठानिया का साथ छोड़ देंगे व शाहपुर से कांग्रेस का टिकट उन्हें मिलेगा। लेकिन पठानिया इतने जुगतु निकले कि उन्होंने वीरभद्र सिंह के दम पर मनकोटिया को टिकट की दावेदारी से बाहर कर दिया है। ऐसे में मनकोटिया ने वीरभद्र सिंह के खिलाफ हमला बोल दिया और अब दोनों में जंग चली हुई है। इस जंग में पठानिया के मजे हैं। इससे पहले वीरभद्र सिंह ने परिवहन मंत्री जी एस बाली को ठिकाने लगाने के लिए पठानिया को आगे किया था व उन्हें एचआरटीसी का वाइस प्रेजिडेंट बनाया था। लेकिन बाली, वीरभद्र सिंह की चाल से वाकिफ हो गए और उन्होंने पठानिया को एचआरटीसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
शायद कम ही लोगों को मालूम है कि पठानिया दिल्ली से जब हिमाचल आए थे तो वो वीरभद्र सिंह की तब की राजनीतिक विरोधी विद्या स्टोक्स के वफादार रहे थे। लेकिन बाद में उन्हें वफादारी बदल ली और वीरभद्र सिंह के वफादारों की लिस्ट में शुमार हो गए।
बहरहाल, पठानिया ने शाहपुर में वीरभद्र सिंह की रैली करा दी और इस मौके पर विभिन्न परियोजनाओं की घोषणाएं करने तथा आधारशिलाएं रखने के बाद शाहपुर में जनसभा को संबोधित किया। इस मौके पर भारतीय जनता पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि कुछ नेता चुनावों के नजदीक आते ही समाज को जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर बांटने लग जाते हैं ताकि वह चुनावों में जीत सुनिश्चित कर सकें। वीरभद्र सिंह ने कहा कि फूट डालना भाजपा नेताओं की कार्यप्रणाली का एक अहम हिस्सा बन गया है।
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा सत्र का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा के नेता सदन की अस्मत को तार-तार कर देते हैं और इसे सही तरीके से चलने नहीं देते हैं। यही नहीं भाजपा के नेताओं द्वारा अभद्र भाषा का प्रयोग करना सदन की गरिमा को और छोटा करता है। वीरभद्र सिंह ने कहा कि विपक्ष लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है लेकिन विधानसभा सत्र के समय को धरने प्रदर्शन और नारेबाजी में गवा देना लोकतंात्रिक परम्परा का गला घोंटने के समान है।
हिमाचल प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई दे रही है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिहं ने इसको देखते हुए विभिन्न परियोजनाओं के उद्घाटन और आधारशिलाओं को रखने का सिलसिला तेज कर दिया है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने चुनावी अभियान की शुरुआत वाॅल पेंटिंग्स के जरिए कर दी है, इनमें कहा गया है कि ‘अबकी बार भाजपा सरकार’।
शाहपुर विधानसभा हलके से इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर केवल सिंह पठानिया को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। पठानिया मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के काफी करीबी माने जाते हैं। अपने आकाओं को खुश करने के लिए यह छोटे नेता या यूं कहें चुनावों में अपना टिकट पक्का करने की फिराक में बैठे नेता कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। शाहपुर में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए इस जनसभा का आयोजन वन निगम के उपाध्यक्ष केवल सिंह पठानिया ने करवाया था। मुख्यमंत्री के सामने भीड़ इकट्ठी करने के लिए शाहपुर कांग्रेस इकाई ने यहां सरकारी स्कूल के बच्चों को भी कड़ी धूप में भूखे-प्यासे बैठाए रखा। क्या इसे राजनीतिज्ञों के द्वारा करवाया गया कक्षाओं का सामूहिक बहिष्कार ना माना जाए। बच्चों की पढ़ाई में हुई इस दखलंदाजी और नुकसान का कौन जिम्मेदार है? स्कूली बच्चों से नारेबाजी करवाना और जय-जयकार करवाना किस आचार-संहिता का हिस्सा है। हमारे संवाददाता ने जब शाहपुर के सरकारी स्कूल के बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि प्रिंसिपल ने उन्हें मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए भेजा है। साथ ही उन्हें कार्यक्रम की समाप्ति तक रुकने के आदेश दिए गए थे। छात्र तो मजबूरी में इस जनसभा में उपस्थित हुए थे लेकिन अध्यापक भी इसमें क्रमबद्ध तरीके से ‘राजा साहब’ और उनके मुंह बोले ‘युवराज’ की इस जनसभा में हाथ जोड़कर खड़े मिले।
मुख्यमंत्री की इस सभा के दौरान उन्हें कुछ लोगों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा। भीड़ में से कुछ लोगों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने के नारे लगाए। इस पर केवल सिंह पठानिया जिन्होंने इस जनसभा का आयोजन किया था आगबबुला होते दिखे। उनका गुस्सा होना भी लाजमी था, क्योंकि उन्हें रंग में भंग पढ़ने का अंदाजा जो नहीं था।

संगठन पर भारी पड़ेगा सुक्खु-वीरभद्र विवाद

शिमला/शैल। कांग्रेस में वीरभद्र और सुक्खु के बीच उठा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बढ़ते विवाद पर न केवल पार्टी के कार्यकर्ताओं की ही नजरें लगी हैं बल्कि प्रदेश के हर व्यक्ति के लिये यह चर्चा का विषय बन चुका है। पूरा विपक्ष भी इस विवाद के अन्तिम परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है। इस विवाद और इसके परिणाम का प्रभाव प्रदेश की दशा-दिशा बदल देगा यह भी तय माना जा रहा है। दूसरी ओर भाजपा ने देश को कांग्रेस मुक्त करने का संकल्प भी ले रखा है। इस परिदृश्य में कांग्रेस को हर प्रदेश में बहुत सावधानी पूर्वक अपनी चुनावी नीति तय करनी होगी।
इस परिदृश्य में प्रदेशकांग्रेस का आकंलन करते हुए जो बिन्दु उभरते हैं उन पर विचार किया जाना आवश्यक है। प्रदेश में कांग्रेस का दूसरी पंक्ति का नेतृत्व अब तक एक स्पष्ट शक्ल नही ले पाया है यह सही है। क्योंकि एक लम्बे अरसे से संगठन का काम मनोनयन के सहारे ही चला आ रहा है। आज शायद संगठन के कुछ शीर्ष पदाधिकारी तो चुनाव लड़ने का साहस तक नही दिखा पायेगे। इसीलिये आज कांग्रेस का एक भी नेता चाहे वह सरकार में मन्त्री हो या संगठन में पदाधिकारी भाजपा -संघ की नीतियों और केन्द्र सरकार की विफलताओं पर एक शब्द तक नही बोल पा रहा है। बल्कि इस चुप्पी का तो यह अर्थ निकाला जा रहा है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग कभी भी भाजपा में शामिल होने का ऐलान कर सकता है। आज प्रदेश में कांग्रेस के पास वीरभद्र को छोड़कर एक भी नेता ऐसा नही है जो चुनावों के दौरान अपने चुनाव क्षेत्र को छोड़कर किसी दूसरे उम्मीदवार के लिये प्रचार करने जा पाये।
इसी के साथ यह भी एक कड़वा सच है कि इस पूरे कार्यकाल में कांग्रेस धूमल शासन पर लगाये अपने ही आरोपों की जांच करवा कर एक भी आरोप को प्रमाणित नही कर पायी है। इसके लिये सरकार और संगठन दोनो बराबर के जिम्मेदार हैं। इसलिये आज इस संद्धर्भ में प्रदेश भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के पास कोई बड़ा मुद्दा नही रह गया है। क्योंकि हर मुद्दे का एक ही जवाब होगा कि आपने सरकार में रहते हुए क्या कर लिया। इस पूरे कार्यकाल में कई मन्त्री और सीपीएस वीरभद्र को आॅंखें तो दिखाते रहे हैं लेकिन कभी भी किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट स्टैण्ड नही ले पाये। इस कारण इन सबकी अपनी छवि यह बन गयी अपने-अपने काम निकलवाने के लिये यह इस तरह के हथकण्डे अपनाते रहे हैं इसलिये आज भी न तो वीरभद्र के पक्ष में और न ही उसके विरोध में कोई स्पष्ट स्टैण्ड ले पा रहे हैं। सुक्खु के खिलाफ जिस तरह का ओपन स्टैण्ड वीरभद्र ने ले रखा है वैसा स्टैण्ड सुक्खु नही ले पा रहे हैं। संभवतः सुक्खु की इसी स्थिति को भांपते हुए वीरभद्र ने एक समय सुक्खु को यह कह दिया था कि पहले अपने चुनावक्षेत्र में अपनी जीत तो सुनिश्चित कर लो।
आज कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वालों के नामों में बाली, करनेश जंग , अनिल शर्मा, अनिरूद्ध आदि के नाम पिछले काफी अरसे से उछलते आ रहे हैं। सुक्खु और हर्ष महाजन को लेकर यह चर्चा है कि यह लोग चुनाव ही लड़ना नही चाहते है। यह चर्चाएं पार्टी के लिये घातक है। इनमें कई लोगों के बारे में यह चर्चा है कि यह लोग अमितशाह के साथ भेंट कर चुके हैं। भाजपा भी बार-बार यह दावा कर रही है कि कांग्रेस के कई नेता उसके संपर्क में हैं। लेकिन कांग्रेस के इन लोगों की ओर से आज तक कोई खण्डन नही आया है और बाली को ही वीरभद्र विरोधीयां का ध्रुव माना जा रहा है। ऐसे में यदि कल को बाली भाजपा में चले ही जाते हैं तो उस समय सुक्खु के साथ-साथ शिंदे की स्थिति भी हास्यस्पद हो जायेगी।

चुनाव लड़ना वीरभद्र की राजनीतिक आवश्यकता

शिमला/शैल। जहां सीबीआई जांच में यह मामला सुलझने के करीब पहुंचने लगा है उसी अनुपात में विपक्ष ने इस मामले में सरकार और मुख्यमन्त्री के खिलाफ अपना हमला और तेज कर दिया है। सांसद अनुराग ठाकुर ने तो सीधे मुख्मन्त्री की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले के दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही है। इस प्रकरण में अपने परिवार पर लगने वाले आरोपों से आहत होकर वीरभद्र ने ऐसे बेबुनियाद आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि का मामला दायर करने की चेतावनी दी है। लेकिन जहां सीबीआई जांच के बावजूद विपक्ष मुख्यमन्त्री के खिलाफ लगातार हमलावर होता जा रहा है वहीं पर कांग्रेस इस मुद्दे पर एकदम चुप्पी साध कर बैठ गयी है।

माना जा रहा है कि कांग्रेस की इसी खामोशी से आहत होकर वीरभद्र ने अब अगला विधानसभा चुनाव लड़ने और चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करने का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस समय वीरभद्र जिस तरह के हालात में घिरे हुए है उनको सामने रखते हुए यह चुनाव लड़ना उनकी राजनीतिक विवश्ता बन गयी है। क्योंकि सीबीआई और ईडी के जो मामले उनके खिलाफ चल रहे हैं उन्हे अन्तिम फैसले तक पहुंचने में समय लगेगा और उसके लिये न केवल प्रदेश की सक्रिय राजनीति में रहना होगा बल्कि उन्हें इसमें पूरी तरह केन्द्रिय भूमिका में रहना आवश्यक है। इसी के साथ उन्हें अपने बेटे विक्रमादित्य को भी राजनीति में स्थापित करने के लिये विधानसभा में पहुंचाना होगा। इसको सुनिश्चित करने के लिये स्वयं चुनाव लड़ना और पार्टी का नेतृत्व अपने साथ रखना ही एक मात्र उपाय शेष है।
क्योंकि अभी ईडी ने महरोली स्थित फार्म हाउस की जो प्रोविजिनल अटैचमैन्ट इस वर्ष मार्च में की थी वह अब कनफर्म हो गयी है। इससे पहले ग्रेटर कैलाश की संपत्ति की भी अटैचमैन्ट स्थायी हो गयी है। अब इन सम्पतियों को छुड़ाने के लिये अदालत के अन्तिम फैसले तक इन्तजार करना होगा। जबकि इस धन शोधन के मामले में अभी तक वीरभद्र के खिलाफ जांच पूरी होकर चालान अदालत में दायर होना है और माना जा रहा है कि इसमें भी अभी और समय लग सकता है। ऐसे में यदि सबका समग्रता में आंकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि इस लड़ाई को लड़ने और जीतने के लिये सक्रिय राजनीति का हथियार अतिआवश्यक है और इसी के लिये चुनाव लड़ना राजनीतिक आवश्यकता है।

सोशल मीडिया में वायरल हुई भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची

कांग्रेस नेता जी.एस.बाली और करनेश जंग टिकट पाने वालो में शामिल

शिमला/शैल। कांग्रेस के करीब आधा दर्जन नेताओं के नाम भाजपा में शामिल होने वालों के रूप में काफी अरसे से चर्चा में चल रहे हैं। इनमें कई मन्त्रीयों तक के नाम भी खबरों में रहेे हैं लेकिन इन खबरों का खण्डन न तो इन नेताओं ने कभी किया और न ही भाजपा की ओर से कोई खण्डन आया बल्कि भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही नेतृत्व यह दावा करता रहा है कि एक दूसरे के लोग उनके संपर्क में है। अब भाजपा की ओर से विधान सभा चुनावों के लिये उम्मीदवारों की एक सूची सोशल मीडिया में वायरल हुई है।
इस सूची के मुताबिक भाजपा की केन्द्रिय चुनाव कमेटी की बैठक 28 अगस्त हो हुई थी। इस बैठक में हिमाचल विधानसभा के 31 विधानसभा क्षेत्रों के लिये उम्मीदवारों का चयन फाईनल हुआ है। इस बैठक में हुए फैसले की सूचना 29अगस्त को शाम को चयन समिति के सदस्य जेपी नड्डा द्वारा प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती को भेजी गयी है। इसमें कहा गया है कि इस सूची को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह अपने हिमाचल दौरे के दौरान सार्वजनिक करेंगे। इस सूची में कांगडा़ के नगरोटा से कांग्रेस नेता परिवहन मन्त्री जी एस बाली और पांवटा साहिब से करनेश जंग नाम पाने वालों के तौर पर शामिल है। सोशल मीडिया में वायरल हुई यह सूची कितनी प्रमाणिक है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। लेकिन इसमें यह हुआ है कि जैसे ही इस सूची के वायरल होने कीे जानकारी पार्टी अध्यक्ष सत्ती को हुई उन्होने पत्र लिखकर अपने आईटी सैल को इसके लीक होने की जांच करने के निर्देश जारी कर दिये हैं।
इस सूची के मुताबिक नड्डा के गृह विधानसभा क्षेत्र बिलासपुर से त्रिलोक जम्वाल को उम्मीदवार बनाया गया है। इसी तरह हमीरपुर से प्रेम कुमार धूमल के स्थान पर उनके छोटे पुत्र अरूण धूमल को टिकट दिया गया है। यदि यह सूची सही है तो इसके मुताबिक नड्डा और धूमल दोनो ही नेतृत्व से बाहर हो जाते है।
यह है वायरल हुई सूची


























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