शिमला/शैल। प्रदेश विधान सभा के चुनाव इस वर्ष के अन्त में नवम्बर दिसम्बर में होने तय है। हिमाचल में अरसे से सत्ता कांग्रेस और भाजपा के बीच ही केन्द्रित रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि प्रदेश की जनता को इन दोनों में से किसी एक को चुनना उसकी विवशता रही है। क्योंकि इनका कोई राजनीतिक विकल्प टिक ही नही पाया। क्योंकि कोई भी जनता में अपनी विश्वसनीयता स्थापित ही कर पाया। तीसरे दल जनता को न तो यह समझा पाये कि कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने प्रदेश का कहां और क्या अहित किया और न ही इस पर
आश्वस्त कर पाये की उनके पास विकल्प में क्या योजना है। आज प्रदेश एक प्रकार से कर्ज के चक्रव्हू में इस कदर उलझ चुका है कि कर्ज लेकर घी पीने की कहावत चरितार्थ हो रही है। प्रदेश की इस स्थिति के लिये कांग्रेस और भाजपा की सरकारें कितना-कितना जिम्मेदार रही हैं इस पर तीसरे दलों की ओर से प्रदेश की जनता के सामने कभी कोई तस्वीर रखी ही नही है। जब कोई विकल्प बनने का दावा करने वाला इस मूल प्रश्न पर ही मौन रहेगा तो उसकी विश्वसनीयता का आकंलन अपने आप ही हो जाता है।
आज हिमाचल में फिर कुछ दलों ने चुनावी दस्तक देने की घोषणाएं की है। इनमें ‘‘राष्ट्रीय आजाद मंच’’ ‘‘राम’’ ने प्रदेश में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है। इस मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष चण्डीगढ़ स्थित एक एडवोकेट सत्यव्रत हैं लेकिन हिमाचल की जिम्मेदारी 88 वर्षीय लै. जनरल पीएन हूण को सौंपी गयी है। जनरल हूण सेना के एक सम्मनित अधिकारी रहे हैं और अभी कुछ समय पहले तक वह केन्द्र सरकार के सलाहकार भी रहे हैं । सलाहकार का पद छोड़ने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं और भूतपूर्व सैनिकों के सहारे आगे बढ़ना चाह रहे हैं। हिमाचल का सेना में बड़ा योगदान और प्रदेश में भूतपूर्व सैनिकों की संख्या भी काफी है। जनरल हूण ने पिछले दिनों जब शिमला में एक पत्राकार वार्ता को संबोधित किया था तब उनका ज्यादा फोकस भूतपूर्व सैनिकों पर ही था। सूत्रों की माने तो मन्त्री कर्नल धनी राम शांडिल और पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया जनरल हूण के संर्पक में हैं । 88वर्षीय जनरल प्रदेश के भूतपूर्व और वर्तमान सैनिकों के सहारे कंहा तक आगे बढ़ते हैं यह आने वाला समय ही बतायेगा।
इसी तरह एक लोक गठबन्धन पार्टी ने भी प्रदेश की 68 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष पांडे भारत सरकार के सचिव पद से निवृत होकर राजनीति में आये हैं और बहुत सारे गंभीर मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर हरे है। जस्टिस सी एस कर्णनन का खुलकर समर्थन किया है लोक गठबन्धन पार्टीं ने। हामिद अंसारी ने उपराष्ट्रपति पद से कार्यकाल पूरा होने के बाद जिस तरह की चिन्ता मुस्लिम समुदाय को लेकर व्यक्त की है लोक गठबन्धन पार्टी ने उसका खुलकर समर्थन किया है। किसानों की आत्महत्याओं से लेकर बैंको के लाखों करोड़ो के एनपीए पर पार्टी ने पूर्व और वर्तमान सरकारों की नीतियों पर खुलकर प्रहार किया है। यह पार्टी जिस तरह अपने लिये एक बौद्धिक आधार तैयार कर रही है उसमें कितनी सफलता मिलती है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन इसका हिमाचल को लेकर क्या एजैण्डा है यह अभी तक सामने नही आया है।
आम आदमी पार्टी हिमाचल में विधानसभा चुनाव नही लड़ रही है क्योंकि वह अपने प्रदेश नेतृत्व को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नही हो पायी।
क्योंकि यहां ‘आप’ सोशल मीडिया से बाहर जमीन पर कहीं नजर ही नही आ रही थी इसलिये इन्हें चुनाव न लड़ने का फैसला लेना पड़ा है। लेकिन इस बार मायावती की बसपा प्रदेश में चुनाव लड़ने जा रही है। यह संकेत पिछले दिनों सेवानिवृत हुए डी जी पी पृथ्वीराज की अचानक सामने आयी राजनीतिक सक्रियता से उभरे हैं । पृथ्वीराज ने जिस तरह से सेवानिवृत होने के बाद कृष्णा नगर में एक पार्टी का आयोजन किया और उसके बाद अम्बेदकर की प्रतिमा के आगे संकल्प लिया है उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने जा रहे हैं और बहुत संभव है कि बसपा उन्हें यहां की जिम्मदारी सौंपे। वामपंथी शिमला नगर निगम के महापौर और उपमहापौर पदों पर पिछली बार काबिज रह चुके हैं। इस नाते अब प्रदेश विधानसभा की सारी सीटों पर चुनाव लड़ना उनकी राजनीतिक आवश्यकता माना जा रहा है।
इस परिदृश्य में यदि यह सारे दल तीन प्रतिशत वोट भी ले जाते हैं तो निश्चित तौर पर प्रदेश की राजनीति का खेल उल्टा कर रख देंगे। क्योंकि भाजपा के पूरे प्रयासों के बावजूद पार्टी को नगर निगम में अपने दम पर बहुमत नही मिल पाया है। फिर भाजपा में नेतृत्व के प्रश्न पर अस्पष्टता बनी हुई है। इस लिये इन तीसरे दलों की भूमिका को कम करके आंकना सही नही होगा।