Thursday, 18 September 2025
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बीबीएन क्षेत्र के भू-जल में कैंसर कारक तत्वों का मिलना एक गंभीर मुद्दा

  • सरकार के निगरान तंत्र की कार्यशैली पर उठे सवाल
शिमला/शैल। बीबीएन औद्योगिक क्षेत्र के भू-जल में कैंसर कारक तत्व हैं। यह तथ्य आईआईटी मण्डी के एक शोध अध्ययन के माध्यम से सामने आया है। एक लंबे अरसे से इस क्षेत्र के भू-जल स्रोतों को लेकर शिकायतें आ रही थी कि यहां का पानी पीने योग्य नहीं है। कई स्रोतों को बंद भी कर दिया गया था। बीबीएन क्षेत्र प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। फार्मा उद्योग का तो यह देश का सबसे बड़ा हब है। यहां पर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर के कामगार हजारों की संख्या में यहां काम करते हैं। इसके विस्तार के कारण इस क्षेत्र को पुलिस जिला भी बना दिया गया है। उद्योगों के सुचारू संचालन के लिये यहां पर उद्योग विभाग, स्वास्थ्य विभाग का ड्रग नियंत्रण यूनिट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय यहां स्थापित है। लेकिन इतना सारा प्रशासनिक तन्त्र यहां तैनात होने के बावजूद भी यहां का भू-जल प्रदूषण के कारण कैंसर कारक हो जाये तो निश्चित रूप से इससे ज्यादा चिंता का विषय और नहीं हो सकता। यहां पर निर्मित दवाओं के सैंपल टेस्ट एक लंबे अरसे से लगातार फेल होते जा रहे हैं। इस फेल होने पर सरकार कारण बताओं नोटिस जारी करने से आगे नहीं बढ़ सकी है। किसी उद्योग के उत्पादन पर रोक नहीं लगा सकी है। पिछले दिनों यहां हुये अग्निकांड में उद्योगों द्वारा अपनाये जा रहे अग्नि सुरक्षा कुप्रबंधों पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं। अब यहां के भू-जल में कैंसर कारक तत्वों के पाये जाने से प्रदूषण नियंत्रण की कार्य शैली पर गंभीर स्वाल खड़े कर दिये हैं। क्योंकि भू-जल में इन तत्वों का पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि उद्योग अपने वेस्ट को सही से ट्रीट न करके उसे खुले में फेंक रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाला रसायन जब खुले में विसर्जित किया जायेगा तो वह निश्चित रूप से यहां की जमीन के अन्दर ही जमा हो जाएगा और भू-जल को ही दूषित करेगा। जबकि भू-जल पीने के लिये सबसे स्वच्छ माना जाता है। जब भू-जल इस हद तक प्रदूषित मिलेगा तो निश्चित ही यहां पर प्रदूषण के मानकों की अनुपालन न होना प्रमाणित होता है। बल्कि यहां की ऐसी प्रभावित जमीन के हर उत्पादन की गुणवत्ता भी प्रश्नित हो जाएगी। दवाओं के सैंपल फेल होने पर आज तक दवा नियंत्रक विभाग के किसी भी संबंधित अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ कभी कोई कारवाई नहीं की गई है। अग्निकांड, अग्नि सुरक्षा उपायों के मानकों की अवहेलना सामने ला दी है परन्तु इसके लिए संबंधित तंत्र में से किसी की भी जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। अब भू-जल में कैंसर कारक तत्वों के पाये जाने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के यहां पर तैनात अधिकारियों/कर्मचारियों की कोई जवाब देही तय नहीं हो पायी है जबकि प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड का वरिष्ठ अधिकारी एक लंबे अरसे से यहां पर तैनात है। सरकारी तंत्र की इसी असफलता का प्रतिफल है की प्रदेश में कैंसर के रोगियों की संख्या में पिछले करीब एक दशक से 800% की वृद्धि हुई है। 2013 में ऐसे मरीजों की संख्या प्रदेश में 2419 थी जो 2022 में बढ़कर 17212 हो गयी है। इससे आने वाले समय में उद्योग नीति पर यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो जायेगा कि ऐसी भयानक बीमारी की कीमत पर ऐसा औद्योगिक विस्तार प्रदेश हित में होगा या नहीं।

तीनों उपचुनावों में निर्दलीयों की उम्मीदवारी बहाल रखना भाजपा के लिये बना चुनौती

  • संभावित विरोध और विद्रोह को शांत रखना होगी बड़ी चुनौती
  • नड्डा और अनुराग पर भी आयेगी जिम्मेदारी
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश को केंद्रीय मंत्री परिषद में इस बार कोई स्थान नहीं मिला है जबकि प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस समय गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री परिषद में स्वास्थ्य मंत्राी बनाये गये हैं। उनके मंत्री बनने से प्रदेश को प्रतिनिधित्व न मिलने का मुद्दा भले ही भाजपा में बड़ा सवाल नहीं बना है लेकिन सतारूढ़ कांग्रेस ने इस पर सवाल अवश्य खड़े किये हैं। प्रदेश की राजनीति में यह सवाल बराबर बना हुआ है कि अनुराग ठाकुर को इस बार मंत्री परिषद में स्थान क्यों नहीं मिल पाया। इसके संभावित कारणों पर दबी जुबान से यह आवश्यक सुनने को मिल रहा है कि जब भाजपा लोकसभा की चारों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही है तो फिर विधानसभा के लिये हुये छः उपचुनावों में से चार पर कैसे हार गयी? जबकि जिन चार स्थानों पर कांग्रेस विधानसभा के लिये जीत गयी और उन्हीं स्थानों पर लोकसभा के लिये भाजपा जीती है। एक ही विधानसभा में एक ही समय में इस तरह का अलग मतदान कई सवाल खड़े कर रहा है। भाजपा की ओर से विधानसभा उपचुनाव हारने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। इन उपचुनावों में चार तो ऊना और हमीरपुर जिलों में ही है जो कि अनुराग ठाकुर का अपना लोकसभा चुनाव क्षेत्र है। विधानसभा के लिये हुये उपचुनावों की स्थिति राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस के बागियों द्वारा भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के कारण पैदा हुई थी। क्योंकि क्रॉस वोटिंग के बाद यह बागी भाजपा में शामिल हो गये थे। कांग्रेस ने भाजपा के इस आचरण की सुक्खू सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस की संज्ञा दी थी। पूरे चुनाव प्रचार में भाजपा पर धनबल से सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगा। इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कथित लोटस ऑपरेशन की व्यूह रचना में भाजपा हाईकमान की पूरी सहमति रही है। क्योंकि भाजपा हाईकमान ने इन बागियों और तीनों निर्दलीयों को विधानसभा उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इन लोगों को उम्मीदवार बनाना भाजपा को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए आवश्यक था। स्वभाविक है कि इस सबके लिये प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी अवश्य विश्वास में लिया गया होगा। अनुराग ठाकुर उस समय केंद्र में मंत्री थे। इस नाते यह सब कुछ उनके संज्ञान में भी अवश्य रहा होगा। फिर अनुराग या प्रदेश के किसी भी अन्य नेता ने इस दल बदल पर कभी कोई सवाल भी नहीं उठाया है। लेकिन अन्त में हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में ही चार में से तीन स्थान हार जाना अपने में कई सवाल तो पैदा करता ही है। क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपनी चुनावी सभाओं में सुक्खू सरकार के भविष्य पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं। इस परिदृश्य में आने वाले दिनों में प्रदेश भाजपा के समीकरणों में भी कई बदलाव देखने को मिले तो इनमें आश्चर्य नहीं होगा। अब प्रदेश के तीनों निर्दलीयों के क्षेत्रों में भी उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। इन निर्दलीयों के भाजपा में शामिल होते ही हाईकमान ने उन्हें उपचुनाव के लिये उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। लेकिन पिछले कुछ समय से इन क्षेत्रों में भी भाजपा के पुराने लोगों में निर्दलीयों को प्रत्याशी बनाये जाने पर रोष पनपने के समाचार लगातार सामने आ रहे हैं। यह भी फैल रहा है की संभावित विद्रोह को देखते हुये शायद इन लोगों को प्रत्याशी बनाने पर पुनः विचार हो। क्योंकि इस तरह के समाचारों का प्रदेश भाजपा नेतृत्व की ओर से कोई खण्डन भी नहीं आया है। ऐसे में इन तीन उपचुनाव में इन निर्दलीयों की उम्मीदवारी कायम रखना और उनके खिलाफ पार्टी में कोई विरोध या विद्रोह न उभरने देना प्रदेश नेतृत्व की कसौटी बन जायेगा। संयोगवश इन तीन उपचुनावों में से दो हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही है। अनुराग ठाकुर यहां के सांसद है तो केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा भी इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इस वस्तुस्थिति में यह उपचुनाव अनुराग और नड्डा के लिये भी चुनौती होंगे।
तीनों उपचुनावों में निर्दलीयों की उम्मीदवारी बहाल रखना भाजपा के लिये बना चुनौती
संभावित विरोध और विद्रोह को शांत रखना होगी बड़ी चुनौती
नड्डा और अनुराग पर भी आयेगी जिम्मेदारी
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश को केंद्रीय मंत्री परिषद में इस बार कोई स्थान नहीं मिला है जबकि प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस समय गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री परिषद में स्वास्थ्य मंत्राी बनाये गये हैं। उनके मंत्री बनने से प्रदेश को प्रतिनिधित्व न मिलने का मुद्दा भले ही भाजपा में बड़ा सवाल नहीं बना है लेकिन सतारूढ़ कांग्रेस ने इस पर सवाल अवश्य खड़े किये हैं। प्रदेश की राजनीति में यह सवाल बराबर बना हुआ है कि अनुराग ठाकुर को इस बार मंत्री परिषद में स्थान क्यों नहीं मिल पाया। इसके संभावित कारणों पर दबी जुबान से यह आवश्यक सुनने को मिल रहा है कि जब भाजपा लोकसभा की चारों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही है तो फिर विधानसभा के लिये हुये छः उपचुनावों में से चार पर कैसे हार गयी? जबकि जिन चार स्थानों पर कांग्रेस विधानसभा के लिये जीत गयी और उन्हीं स्थानों पर लोकसभा के लिये भाजपा जीती है। एक ही विधानसभा में एक ही समय में इस तरह का अलग मतदान कई सवाल खड़े कर रहा है। भाजपा की ओर से विधानसभा उपचुनाव हारने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। इन उपचुनावों में चार तो ऊना और हमीरपुर जिलों में ही है जो कि अनुराग ठाकुर का अपना लोकसभा चुनाव क्षेत्र है। विधानसभा के लिये हुये उपचुनावों की स्थिति राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस के बागियों द्वारा भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के कारण पैदा हुई थी। क्योंकि क्रॉस वोटिंग के बाद यह बागी भाजपा में शामिल हो गये थे। कांग्रेस ने भाजपा के इस आचरण की सुक्खू सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस की संज्ञा दी थी। पूरे चुनाव प्रचार में भाजपा पर धनबल से सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगा। इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कथित लोटस ऑपरेशन की व्यूह रचना में भाजपा हाईकमान की पूरी सहमति रही है। क्योंकि भाजपा हाईकमान ने इन बागियों और तीनों निर्दलीयों को विधानसभा उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इन लोगों को उम्मीदवार बनाना भाजपा को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए आवश्यक था। स्वभाविक है कि इस सबके लिये प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी अवश्य विश्वास में लिया गया होगा। अनुराग ठाकुर उस समय केंद्र में मंत्री थे। इस नाते यह सब कुछ उनके संज्ञान में भी अवश्य रहा होगा। फिर अनुराग या प्रदेश के किसी भी अन्य नेता ने इस दल बदल पर कभी कोई सवाल भी नहीं उठाया है। लेकिन अन्त में हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में ही चार में से तीन स्थान हार जाना अपने में कई सवाल तो पैदा करता ही है। क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपनी चुनावी सभाओं में सुक्खू सरकार के भविष्य पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं। इस परिदृश्य में आने वाले दिनों में प्रदेश भाजपा के समीकरणों में भी कई बदलाव देखने को मिले तो इनमें आश्चर्य नहीं होगा। अब प्रदेश के तीनों निर्दलीयों के क्षेत्रों में भी उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। इन निर्दलीयों के भाजपा में शामिल होते ही हाईकमान ने उन्हें उपचुनाव के लिये उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। लेकिन पिछले कुछ समय से इन क्षेत्रों में भी भाजपा के पुराने लोगों में निर्दलीयों को प्रत्याशी बनाये जाने पर रोष पनपने के समाचार लगातार सामने आ रहे हैं। यह भी फैल रहा है की संभावित विद्रोह को देखते हुये शायद इन लोगों को प्रत्याशी बनाने पर पुनः विचार हो। क्योंकि इस तरह के समाचारों का प्रदेश भाजपा नेतृत्व की ओर से कोई खण्डन भी नहीं आया है। ऐसे में इन तीन उपचुनाव में इन निर्दलीयों की उम्मीदवारी कायम रखना और उनके खिलाफ पार्टी में कोई विरोध या विद्रोह न उभरने देना प्रदेश नेतृत्व की कसौटी बन जायेगा। संयोगवश इन तीन उपचुनावों में से दो हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही है। अनुराग ठाकुर यहां के सांसद है तो केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा भी इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इस वस्तुस्थिति में यह उपचुनाव अनुराग और नड्डा के लिये भी चुनौती होंगे।
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निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र हुये स्वीकार

  • अध्यक्ष के फैसले से मुख्यमंत्राी के आरोप आये सवालों में
  • बालूगंज थाना में हुई एफआईआर पर भी पड़ेगा असर
  • विधायकों के बिकने के आरोपों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर है मानहानि के मामले

शिमला/शैल। निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र मतगणना से एक दिन पहले ही विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं। स्मरणीय है कि प्रदेश विधानसभा में तीन निर्दलीय विधायक जीत कर आये थे और पहले दिन से ही सुक्खू सरकार को समर्थन दे रहे थे। लेकिन इस बीच राजनीतिक परिस्थितियों ने ऐसा मोड़ लिया कि राज्यसभा चुनाव में इन लोगों ने कांग्रेस के छः बागियों के साथ भाजपा के पक्ष में वोट कर दिया। राज्यसभा में कांग्रेस की हार के बाद छः बागियों को दलबदल कानून के तहत कारवाई करके निष्कासित कर दिया। इस निष्कासन के बाद इन निर्लदलीयों ने भी विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को त्यागपत्र दे दिया। त्यागपत्र देने के बाद इन्होंने भाजपा की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही भाजपा ने इन्हें भी उनके क्षेत्र से उपचुनाव के लिए बागियों की तर्ज पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस के बागियों के निष्कासन के बाद उनके क्षेत्र तो रिक्त घोषित हो गये और उनके उपचुनाव भी हो गये। लेकिन इन निर्दलीयों के उपचुनाव बागियों के साथ ही न हो जायें इसलिये इनके त्यागपत्रों की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया। यह प्रश्न चिन्ह दो कांग्रेस विधायक संजय अवस्थी और भुवनेश गौड की शिकायत के आधार पर लगाया गया। यह आरोप लगा कि यह लोग भाजपा के पास बिक गये हैं और दबाव में आकर त्यागपत्र दिये हैं। इस आश्य की बालूगंज थाना में एक एफआईआर भी दर्ज हो गयी। इसमें हमीरपुर के आजाद विधायक आशीष शर्मा और गगरेट से कांग्रेस के बागी चैतन्य शर्मा के पिता राकेश शर्मा सेवानिवृत्ति मुख्य सचिव उत्तराखण्ड को पार्टी बनाया गया। जांच के दौरान कई तरह के पुख्ता परिणाम इनके खिलाफ मिलने के दावे किये गये। इन्हीं दावों के बीच राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने भी अध्यक्ष के पास एक याचिका दायर कर इन निर्दलीयों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कारवाई करने की गुहार लगा दी। पूरे चुनाव प्रचार में इन लोगों को बिकाऊ विधायक करार देकर इन्हें हराने की अपील की गयी। यह दावा मुख्यमंत्री ने किया कि उनके बिकने के कई सबूत सरकार को मिल गये हैं। लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में एक भी सबूत जनता में नहीं रखा गया।
निर्दलीयों और कांग्रेस के बागियों के पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने के आरोप लगाये गये। इन आरोपों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले तक दर्ज हुये हैं। अब जब विधान सभा अध्यक्ष ने इन निर्दलीयों द्वारा दिये गये त्यागपत्रों को बिना किसी दबाव और स्वेच्छा से दिये गये मानकर उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कारवाई न करके त्यागपत्रों को स्वीकार कर लिया गया है। अध्यक्ष के इस फैसले से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनकी जांच में इनके बिकने या दबाव में होने के कोई प्रमाण नहीं आये हैं। अध्यक्ष के फैसले के बाद उनके खिलाफ बालूगंज थाना में दर्ज हुई एफआईआर पर इसका क्या असर पड़ता है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि इस फैसले के बाद कोई भी इन्हें बिकाऊ होने का संबोधन नहीं दे पायेगा। इसी के साथ इस फैसले से मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर हुए मानहानि के मामलों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह देखना भी रोचक होगा। मतगणना से पहले आये इस फैसले के राजनीतिक अर्थ बहुत गंभीर हो जाते हैं क्योंकि यह फैसला मुख्यमंत्री के सारे दावों के उलट माना जा रहा है।

क्या कांग्रेस से निकलते ही बागी अपराधी हो गये हैं

  • चुनाव प्रचार के दौरान देन्वेद्र भुट्टो के खिलाफ दर्ज हुये आपराधिक मामलों के राजनीतिक परिणाम घातक होंगे
  • सुधीर शर्मा के आरोपों पर मुख्यमंत्री कब तक खामोश रह पायेंगे
  • आने वाले दिनों में दोनों पक्षों के मामले कितने आगे बढ़ेंगे इस पर रहेगी नजरें

शिमला/शैल। प्रदेश में हुये लोकसभा और छः विधानसभा उपचुनाव प्रचार के दौरान कुटलैहड से भाजपा प्रत्याशी बने देन्वेद्र भूट्टो और उनके बेटे करण के खिलाफ चार आपराधिक मामले दर्ज हुये हैं। पहला मामला जब देहरा में दर्ज हुआ था तब उस समय देवेन्द्र भूट्टों ने यह जवाब दिया था कि वह प्रदेश उच्च न्यायालय से इस मामले में पहले ही जीत चुके हैं और उसका रिकॉर्ड पुलिस में पेश कर दिया जायेगा। इसके बाद भी इनके खिलाफ तीन और अलग-अलग मामले दर्ज हुये हैं। स्मरणीय है कि इस चुनाव प्रचार में जब मुख्यमंत्री कुटलैहड गये थे तब उन्होंने जनता से कहा था की ‘‘भुट्टों को कुट्टो’’। मुख्यमंत्री के इस ब्यान का भाजपा ने कड़ा संज्ञान लेते हुये इसकी चुनाव आयोग में शिकायत भी की है। इसी के साथ और भी कानूनी कारवाई की गयी है। भुट्टो दिसम्बर 2022 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने थे। अब राज्यसभा चुनाव के दौरान वह कांग्रेस से बगावत करके विधानसभा से निष्कासित होकर भाजपा में शामिल हो गये। करीब पन्द्रह माह तक कांग्रेस के वफादार सिपाही बनकर मुख्यमंत्री का समर्थन करते रहे हैं। भुट्टो ठेकेदार हैं और एक स्टोन क्रेशर भी चला रहे हैं। लोक निर्माण विभाग और अन्य सरकारी विभागों में अरसे से ठेकेदारी करते आ रहे हैं। यह ठेकेदारी विधायक बनने से बहुत पहले से चल रही है। लेकिन विभाग की शिकायतों पर पहली बार उनके खिलाफ इस तरह के मामले दर्ज हुये हैं। यह मामले दर्ज होने पर उभरी प्रतिक्रियाओं में यह कहा जा रहा है कि क्या चुनाव के दौरान ही यह धोखाधड़ी विभाग के संज्ञान में आयी है। जब पन्द्रह महीने तक भट्टो कांग्रेस के विधायक थे तब वह पाक साफ थे और भाजपा में शामिल होते ही अपराधी हो गये हैं। इस चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों ने कांग्रेस के छः बागियों के भाजपा में शामिल होने को बिकाऊ होने की संज्ञा देते हुये पूरा चुनाव इसी मुद्दे पर केंद्रित करने का प्रयास किया है। इसी प्रयास में इन बागियों को भू-माफिया और खनन माफिया तक करार दिया है। धर्मशाला में सुधीर शर्मा को भू -माफिया करार देते हुये मुख्यमंत्री ने यहां तक आरोप लगाया है कि सुधीर शर्मा ने 82 संपत्तियों में अपने ड्राइवर के नाम पर निवेश किया है। मुख्यमंत्री के इन आरोपों का जवाब देते हुये पलटवार करके जो आरोप सुक्खू पर दस्तावेजी प्रमाणों के साथ लगाये हैं वह बहुत गंभीर है। बागियों को बिकाऊ करार देने को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले दायर हैं। आने वाले दिनों में यह मामले किस हद तक कैसे आगे बढ़ते हैं इस पर सब की नज़रें लगी रहेंगी। सुधीर शर्मा ने जो आरोप मुख्यमंत्री के खिलाफ लगाये हैं उनके दस्तावेजी प्रमाण और पूरा खुलासा जनता में किस तरह सामने आता है यह देखना रोचक होगा। लेकिन यह तय है कि इस चुनाव प्रचार में दोनों पक्ष जिस हद तक जनता के सामने आ गये हैं उससे पीछे हटना किसी के लिये भी संभव नहीं होगा।

बड़सर में 55 लाख कैश मिलने का आरोप कोरा झूठ-जयराम

  • हमीरपुर और कांगड़ा लोकसभा में कांग्रेस का रक्षात्मक होना घातक होगा
  • सुधीर शर्मा के आरोपों ने बदला परिदृश्य
May be an image of 5 people and templeशिमला/शैल। इन चुनावों के चुनाव प्रचार का आकलन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसमें छः विधानसभा उपचुनावों को लोकसभा चुनाव से ज्यादा अधिमान दिया है। क्योंकि विधानसभा उपचुनाव का आने वाले समय में सरकार की सेहत पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इस संभावित प्रभाव के साये में चल रही कांग्रेस ने जहां शिमला मण्डी में रणनीतिक भूलें की वहीं पर हमीरपुर और कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ रस्मी आक्रामकता से आगे नहीं बड़े। जबकि हमीरपुर में अनुराग के खिलाफ दिल्ली में वृन्दा करात द्वारा उठाया गया मामला अपने में अभी भी गंभीर बना हुआ है। लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में इस मुद्दे का एक बार भी कहीं जिक्र तक नहीं आया। इसी तरह कांगड़ा में केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा ऊना की एक ब्रांच के माध्यम से लाहौल-स्पीति में दिया गया ऋण एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे की आंच तो एक समय शान्ता कुमार तक पहुंच गई थी। यह मुद्दे मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक हर प्रमुख कांग्रेस नेता के संज्ञान में रहे हैं। लेकिन चुनाव प्रचार में इस पर किसी ने सवाल तक नहीं उठाया। बल्कि कांगड़ा में आनन्द शर्मा की स्वीकार्यता बनाने के लिए मुख्यमंत्री को यह कहना पड़ा कि यदि नरेन्द्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ सकते हैं तो आनन्द कांगड़ा से क्यों नहीं। कांगड़ा और हमीरपुर में कांग्रेस का चुनाव प्रचार आक्रामक होने की बजाये रक्षात्मक रहा है और यही नुकसानदेह होने की प्रबल संभावना है। दूसरी ओर इन दोनों क्षेत्रों में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिये पूरी आक्रामकता के साथ मुख्यमंत्री ने यह परोसा की यह लोग पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिक गये हैं। इस पर मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले दायर हो गये हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुये मुख्यमंत्री ने सुधीर शर्मा को भू-माफिया की संज्ञा देते हुये यह आरोप लगा दिया कि उसने अपने ड्राइवर के नाम पर 10 करोड़ की 82 संपत्तियां खरीदी है। लेकिन इस आरोप के कोई प्रमाण जारी नहीं किये। इसके जवाब में सुधीर शर्मा ने पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ मुख्यमंत्री के खिलाफ हमला बोला है। सुधीर शर्मा के आरोपों के परिणाम दूरगामी और गंभीर होंगे। यही नहीं बड़सर में 55 लाख रुपये मिलने के एक मामले को मुख्यमंत्री ने अपने ब्यानों में यहां तक उछाला है कि इस कथित कैश को लखनपाल के नाम तक लगा दिया। मुख्यमंत्री द्वारा यह आरोप लगाये जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बड़सर गये। जयराम ठाकुर ने जनसभा में यह कहा कि उन्होंने यह कथित 55 लाख पकड़े जाने की घटना का मीडिया और प्रशासन के माध्यम से यह जानकारी जुटाने का प्रयास किया कि किस से यह 55 लाख किस अधिकारी ने पकड़े हैं। किस थाने में इसको लेकर मामला दर्ज हुआ है। जयराम ठाकुर ने भरी सभा में यह कहा है कि उनको मिली जानकारी के अनुसार ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं है। जयराम ने मुख्यमंत्री के इस आरोप को कोरा झूठ करार दिया है। जयराम का यह खुलासा पूरे प्रदेश में फैल गया है। चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री के नाम पर नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा कोरा झूठ बोलने का आरोप लगना सारे परिदृश्य को ही बदल देता है। सुधीर के आरोपों के साथ जयराम ठाकुर का यह खुलासा पूरे चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
 

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