शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस अभी तक लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के लिये अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर पायी है। कांग्रेस और विधायकी छोड़कर जो बागी भाजपा में शामिल हुये हैं उनका सरकार के खिलाफ बड़ा आरोप रहा है कि यह सरकार विधानसभा चुनावों के दौरान जनता को दी गारंटीयां पूरी करने की ओर कोई कदम नहीं उठा पायी है। युवाओं को जो नौकरियां देने का वायदा किया था उस वायदे को पूरा करने के बजाये उस बोर्ड को ही भंग कर दिया जिसके माध्यम से नौकरियां दी जाती थी। आज यह सरकार 1,36,000 कर्मचारीयों को पुरानी पैन्शन योजना के तहत लाने का श्रेय ले रही है लेकिन इसमें अभी तक केवल 3899 कर्मचारियों के मामले ए.जी. ऑफिस को भेजे गये हैं। यह जानकारी विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी गयी है। यह सरकार एक वर्ष में कितने लोगों को सरकार और इसके उपक्रमों में नौकरियां दे पायी हैं? इस आश्य के हर सवाल के जवाब में कहा गया की सूचनाएं एकत्रित की जा रही है। अभी चुनावों से पहले महिलाओं को 1500 रूपये प्रति माह देने की अधिसूचना जारी की गई थी। इस अधिसूचना के साथ वह फॉर्म भी संलग्न है जो आवेदक को भर कर देना है। लेकिन इस फॉर्म में आवेदन के लिये जो राइडर दर्ज है उनके अनुसार यह लाभ पाने वाले व्यवहारिक रूप से बहुत कम रह जायेंगे। जबकि प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की संख्या 2020-21 में 2,58,852 के आंकड़े से बढ़कर 2023-24 में 2,66,304 परिवार हो गयी है। यह आंकड़ा भी विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में आया है। इसका सीधा सा अर्थ है कि इस सरकार के कार्यकाल में गरीबी बढ़ी है।
इस सरकार ने सत्ता संभालने के बाद प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुये डीजल पर वैट बढ़ाया बिजली पानी के रेट बढ़ाये। कूड़ा शुल्क की दरें बढ़ाई। अब फिर इन दरों में दस प्रतिश्त की दर से वृद्धि कर दी गई है। कांग्रेस ने चुनावों में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा की थी क्योंकि पिछली सरकार 125 युनिट बिजली मुफ्त दे रही थी इसलिए उससे बड़ी घोषणा करनी थी। लेकिन सत्ता संभालने के बाद यह कहा गया कि पहले एक हजार मेगावाट का नया उत्पादन पैदा करेंगे और फिर तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देंगे। इस आश्य का भी बजट सत्र में एक प्रश्न आया था जिसके उत्तर में कहा गया है कि अभी तक कोई भी नया समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित नहीं हुआ है। अब विद्युत नियामक आयोग ने चुनावों की पूर्व संध्या पर बिजली की नयी दरें घोषित कर दी है। यह नयी दरें उपभोक्ता से वसूलने की बजाये इसका बोझ सरकार उठाकर इसकी क्षतिपूर्ति बिजली बोर्ड को करने का फैसला लिया गया है। इसी के साथ बिजली बोर्ड सरकार को मिल रही 12% मुफ्त बिजली सरकार से 2.57 पैसे प्रति यूनिट खरीदता था वह सुविधा बोर्ड से वापस ले ली गयी है जिसके कारण बोर्ड को खुले बाजार से महंगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ेगी। इस समय बोर्ड की आय और व्यय में करीब डेढ़ सौ करोड़ का अन्तर है। सरकार के फैसले से बोर्ड का वित्तीय प्रबंधन और बिगड़ेगा क्योंकि सरकार अभी 125 यूनिट मुफ्त बिजली की क्षतिपूर्ति ही बोर्ड को नहीं कर पायी है। नये बोझ से यह क्षतिपूर्ति 2000 करोड़ वार्षिक से भी बढ़ जायेगी। इस समय बोर्ड पर 1600 करोड़ से अधिक की देनदारी खड़ी है। इस तरह सरकार के ऐसे फैसलों से न तो संस्थाओं का भला हो पा रहा है न ही आम जनता का।
इस समय चुनावों की पूर्वसंध्या पर बिजली पानी और कूड़े के शुल्क बढ़ाना जानबूझकर आम आदमी पर बोझ डालने जैसा हो जायेगा। क्योंकि जिस अनुपात में सरकार आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ा रही है उसी अनुपात में आम आदमी की क्रय शक्ति नहीं बढ़ रही है। जब सरकार की योजनाओं का लाभ प्रतिफल गरीबी रेखा से नीचे का आकड़ा बढ़ने के रूप में सामने आये तो इन योजनाओं पर स्वतः ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
शिमला/शैल। कांग्रेस के छः बागियों और तीन निर्दलीय विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद इन सभी नौ लोगों को इनके कारण होने वाले उपचुनावों के लिये उन्हीं स्थानों से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। हालांकि तीन निर्दलीयों पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अभी आना है। इन लोगों के भाजपा में शामिल होने और साथ ही उपचुनावों के लिये उम्मीदवार भी घोषित हो जाने से वह लोग नाराज हो गये हैं जिनको हराकर यह विधायक बने थे। इन लोगों का नाराज होना स्वभाविक है लेकिन यदि यह नाराजगी कोई ठोस आकार लेकर पूरी मुखरता के साथ इन लोगों को चुनाव में हरा देती है तब तो इस नाराजगी का कोई अर्थ बनेगा अन्यथा इसे आत्मघाती कदम ही करार दिया जायेगा। क्योंकि जब कांग्रेस के यह बागी राज्यसभा में क्रॉसवोटिंग करके भाजपा में शामिल होने का फैसला ले चुके थे तब इन लोगों को इसकी भनक भी न लग पाना यह प्रमाणित करता है कि यह नाराज लोग प्रदेश की राजनीति की कितनी समझ और जानकारी रख रहे थे।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह भी उभर रहा है की प्रदेश में जो कुछ घटा है क्या उसकी योजना प्रदेश में ही तैयार हुई या दिल्ली में हाईकमान के यहां। भाजपा की जानकारी रखने वाले जानते हैं की भाजपा संघ परिवार की एक इकाई मात्र है । इस पूरे परिवार का संचालन संघ के पास है। भाजपा में कुछ भी महत्वपूर्ण संघ की पूर्व अनुमति के बिना नहीं घटता है। इससे स्पष्ट हो जाता है की प्रदेश की इस राजनीतिक अस्थिरता को संघ की पूर्व अनुमति हासिल है। ऐसे में इन नौ लोगों के भाजपा में शामिल होने और चुनाव उम्मीदवार बनने के फैसले का विरोध सीधा संघ का विरोध होगा। इस समय भाजपा के इस फैसले का विरोध करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर लिये गये अन्य फैसलों का भी इन कथित नाराज लोगों को विरोध करना होगा। संघ देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहता है है और इसके लिये संविधान बदलने की तैयारी है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने का साहस करेंगे? इस समय इलैक्टोरल बॉड का खुलासा सबसे गंभीर मुद्दा बनने जा रहा है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने को तैयार होंगे? यदि सैद्धांतिक मुद्दों पर इन रुष्ट लोगों की कोई राय नहीं है तो इनके कथित विरोध और कांग्रेस द्वारा लगाये जा रहे आरोपों में कोई ज्यादा अन्तर नहीं रह जाता है।
इस समय कांग्रेस इस दल बदल को जिस भाषा में कोस रही है यदि उसके स्थान पर बागियों द्वारा पिछले एक वर्ष से उठाये जा रहे सार्वजनिक मुद्दों का तर्क पूर्ण जवाब जनता के सामने रखती तो स्थिति कुछ और होती। इस दल बदल तक सरकार के खिलाफ यह आरोप लगातार लगता रहा है की सरकार में कार्यकर्ताओं का सम्मानजनक समायोजन नहीं हो पाया है? क्या बदली परिस्थितियों में यह आरोप झूठा हो गया है? यह लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव प्रदेश सरकार की परफॉरमैन्स पर लड़े जायेंगे। यह देखा जायेगा की सरकार ने इस एक वर्ष में कौन से नये विधेयक पारित किये है और उनका क्या प्रभाव पड़ा है। सरकार ने लैण्ड सीलिंग विधेयक में संशोधन किया है और यह संशोधित विधेयक महामहिम राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये लंबित है। लेकिन इस संशोधन को पारित करते समय प्रदेश के सामने यह नहीं आ पाया है कि आज लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन रखने के मामले सरकार के संज्ञान में आये हैं। यह चुनाव बहुत सारे मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगेगा। इस परिदृश्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा की भाजपा में उठाता रोष कोई ठोस आकर ले पायेगा या नहीं?