Thursday, 18 September 2025
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प्रतिभा-विक्रमादित्य सिंह को लेकर आये जयराम के ब्यान ने बदले राजनीतिक समीकरण

  • जयराम के ब्यान से भाजपा की मुश्किलें बढ़ेगी
  • सरकार गिराने के दावों पर भी आयेगा प्रश्न चिन्ह
  • इस ब्यान से मण्डी में कांग्रेस की स्थिति होगी मजबूत
शिमला/शैल। नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम ने मण्डी में एक पत्रकारवार्ता में खुलासा किया है कि प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस के बागीयों को उकसाया और बाद में खुद पलट गये। जयराम के अनुसार इन लोगों ने पहले तो मुख्यमंत्री और सरकार को ब्यान देकर कमजोर किया और फिर पलट गये। जयराम के इस ब्यान को लेकर वाकायदा प्रैस नोट जारी हुआ है। जयराम के इस ब्यान से प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में नई अटकलों का दौर शुरू हो गया है। स्मरणीय है कि कांग्रेस के बागीयों ने अपने रोष को 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करके मूर्त रूप दे दिया और कांग्रेस यह चुनाव हार गयी। इस हार के बाद बागी सदन से निष्कासित भी हो गये और उनके क्षेत्रों में उपचुनाव भी घोषित हो गया। यह लोग भाजपा में शामिल हो गयेे और पार्टी ने इन्हें उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी नामित कर दिया। 27 फरवरी के बाद करीब एक माह तक यह लोग हिमाचल से बाहर रहे। इस बाहर रहने का सारा प्रबन्ध करने का आरोप भाजपा पर लगा है। धन बल से सरकार गिराने का आरोप भाजपा पर लग रहा है। कांग्रेस के दो विधायकों ने इस आश्य की शिकायत भी बालूगंज पुलिस थाना में करवा रखी है। जिसकी जांच चल रही है। प्रदेश के वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के दौर के लिये भाजपा को कोसा जा रहा है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक हर नेता आरोप लगा रहा है कि जयराम धन बल के सहारे मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी में है। कांग्रेस के इन आरोपों का जयराम यह कहकर जवाब दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री अपने विधायकों को संभाल कर नहीं रख पाये और दूसरों को दोष दे रहे हैं। इसी के साथ जयराम यह दावा करना भी नहीं भूल रहे हैं कि चुनाव के बाद सुक्खू सरकार गिर जायेगी। सरकार अल्पमत में आ गयी है यह कहना भी नहीं भूल रहे हैं। इस परिदृश्य में जयराम का प्रतिभा-विक्रमादित्य को लेकर आया ब्यान राजनीतिक पंडितों के लियेे एक रोचक विषय बन गया है। क्योंकि इस समय सदन में कांग्रेस की संख्या 34 रह गयी है जबकि भाजपा की 25 ही है। यदि निर्दलीयों के क्षेत्र में भी उपचुनाव हो जाये और भाजपा सभी नौ स्थानों पर जीत जाये तो भाजपा की संख्या कांग्रेस के बराबर आती है और तब सदन में सरकार के अल्पमत में आने से गिरने की संभावना बनती है। ऐसे में जयराम का इस तरह का ब्यान इस समय आना अपने में महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रदेश में जो कुछ घटा है वह भाजपा प्रायोजित है इसमें किसी को संदेह नहीं है। यह भी स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार को गिराना भाजपा की आवश्यकता बन गया है। इसके लिये कांग्रेस में और तोड़फोड़ करना पहला कदम होगा। आज केन्द्र विपक्ष की सरकारें गिराने के लिये केन्द्रीय एजैन्सियों के दुरुपयोग के आरोप झेल रहा है। लेकिन जयराम के ब्यान के बाद क्या कांग्रेस और नहीं संभल जायेगी। क्योंकि जयराम का ब्यान उस समय आया है जब विक्रमादित्य सिंह को मण्डी से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने के संकेत आ रहे हैं। विक्रमादित्य सिंह निश्चित रूप से भाजपा की कंगना रनौत से सौ प्रतिश्त बेहतर प्रत्याशी है। फिर जब प्रतिभा सिंह जयराम की सरकार के समय मण्डी का उपचुनाव जीत गयी थी तो अब कांग्रेस की सरकार में विक्रमादित्य सिंह की जीत की संभावनाएं ज्यादा प्रबल हो जाती हैं। इस क्षेत्र की हार जीत का सीधा प्रभाव जयराम के राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा यह स्पष्ट है। इस राजनीतिक परिदृश्य में जयराम के इस ब्यान को शीघ्रता में दिया गया ब्यान माना जा रहा है। क्योंकि इस ब्यान के साथ जयराम का सरकार के गिरने का दावा कमजोर पड़ जाता है। वर्तमान परिदृश्य में इस ब्यान को भ्रामकता पैदा करने का असफल प्रयास माना जा रहा है। क्योंकि प्रतिभा और विक्रमादित्य के सोनिया गांधी को मिलने के बाद यह माना जा रहा है कि प्रदेश पर कांग्रेस हाईकमान नजर रख रही है।

प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे परिवारों का आंकड़ा हुआ 2,66,304

  • चुनावों की पूर्व संध्या पर बढ़ाये बिजली पानी और कूड़े के रेट
  • बिजली दरें बढ़ने के बाद भी बिजली बोर्ड की कठिनाई बढ़ेंगी

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस अभी तक लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के लिये अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर पायी है। कांग्रेस और विधायकी छोड़कर जो बागी भाजपा में शामिल हुये हैं उनका सरकार के खिलाफ बड़ा आरोप रहा है कि यह सरकार विधानसभा चुनावों के दौरान जनता को दी गारंटीयां पूरी करने की ओर कोई कदम नहीं उठा पायी है। युवाओं को जो नौकरियां देने का वायदा किया था उस वायदे को पूरा करने के बजाये उस बोर्ड को ही भंग कर दिया जिसके माध्यम से नौकरियां दी जाती थी। आज यह सरकार 1,36,000 कर्मचारीयों को पुरानी पैन्शन योजना के तहत लाने का श्रेय ले रही है लेकिन इसमें अभी तक केवल 3899 कर्मचारियों के मामले ए.जी. ऑफिस को भेजे गये हैं। यह जानकारी विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी गयी है। यह सरकार एक वर्ष में कितने लोगों को सरकार और इसके उपक्रमों में नौकरियां दे पायी हैं? इस आश्य के हर सवाल के जवाब में कहा गया की सूचनाएं एकत्रित की जा रही है। अभी चुनावों से पहले महिलाओं को 1500 रूपये प्रति माह देने की अधिसूचना जारी की गई थी। इस अधिसूचना के साथ वह फॉर्म भी संलग्न है जो आवेदक को भर कर देना है। लेकिन इस फॉर्म में आवेदन के लिये जो राइडर दर्ज है उनके अनुसार यह लाभ पाने वाले व्यवहारिक रूप से बहुत कम रह जायेंगे। जबकि प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की संख्या 2020-21 में 2,58,852 के आंकड़े से बढ़कर 2023-24 में 2,66,304 परिवार हो गयी है। यह आंकड़ा भी विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में आया है। इसका सीधा सा अर्थ है कि इस सरकार के कार्यकाल में गरीबी बढ़ी है।
इस सरकार ने सत्ता संभालने के बाद प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुये डीजल पर वैट बढ़ाया बिजली पानी के रेट बढ़ाये। कूड़ा शुल्क की दरें बढ़ाई। अब फिर इन दरों में दस प्रतिश्त की दर से वृद्धि कर दी गई है। कांग्रेस ने चुनावों में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा की थी क्योंकि पिछली सरकार 125 युनिट बिजली मुफ्त दे रही थी इसलिए उससे बड़ी घोषणा करनी थी। लेकिन सत्ता संभालने के बाद यह कहा गया कि पहले एक हजार मेगावाट का नया उत्पादन पैदा करेंगे और फिर तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देंगे। इस आश्य का भी बजट सत्र में एक प्रश्न आया था जिसके उत्तर में कहा गया है कि अभी तक कोई भी नया समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित नहीं हुआ है। अब विद्युत नियामक आयोग ने चुनावों की पूर्व संध्या पर बिजली की नयी दरें घोषित कर दी है। यह नयी दरें उपभोक्ता से वसूलने की बजाये इसका बोझ सरकार उठाकर इसकी क्षतिपूर्ति बिजली बोर्ड को करने का फैसला लिया गया है। इसी के साथ बिजली बोर्ड सरकार को मिल रही 12% मुफ्त बिजली सरकार से 2.57 पैसे प्रति यूनिट खरीदता था वह सुविधा बोर्ड से वापस ले ली गयी है जिसके कारण बोर्ड को खुले बाजार से महंगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ेगी। इस समय बोर्ड की आय और व्यय में करीब डेढ़ सौ करोड़ का अन्तर है। सरकार के फैसले से बोर्ड का वित्तीय प्रबंधन और बिगड़ेगा क्योंकि सरकार अभी 125 यूनिट मुफ्त बिजली की क्षतिपूर्ति ही बोर्ड को नहीं कर पायी है। नये बोझ से यह क्षतिपूर्ति 2000 करोड़ वार्षिक से भी बढ़ जायेगी। इस समय बोर्ड पर 1600 करोड़ से अधिक की देनदारी खड़ी है। इस तरह सरकार के ऐसे फैसलों से न तो संस्थाओं का भला हो पा रहा है न ही आम जनता का।
इस समय चुनावों की पूर्वसंध्या पर बिजली पानी और कूड़े के शुल्क बढ़ाना जानबूझकर आम आदमी पर बोझ डालने जैसा हो जायेगा। क्योंकि जिस अनुपात में सरकार आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ा रही है उसी अनुपात में आम आदमी की क्रय शक्ति नहीं बढ़ रही है। जब सरकार की योजनाओं का लाभ प्रतिफल गरीबी रेखा से नीचे का आकड़ा बढ़ने के रूप में सामने आये तो इन योजनाओं पर स्वतः ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

क्या भाजपा में उठा रोष कोई आकार ले पायेगा?

शिमला/शैल। कांग्रेस के छः बागियों और तीन निर्दलीय विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद इन सभी नौ लोगों को इनके कारण होने वाले उपचुनावों के लिये उन्हीं स्थानों से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। हालांकि तीन निर्दलीयों पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अभी आना है। इन लोगों के भाजपा में शामिल होने और साथ ही उपचुनावों के लिये उम्मीदवार भी घोषित हो जाने से वह लोग नाराज हो गये हैं जिनको हराकर यह विधायक बने थे। इन लोगों का नाराज होना स्वभाविक है लेकिन यदि यह नाराजगी कोई ठोस आकार लेकर पूरी मुखरता के साथ इन लोगों को चुनाव में हरा देती है तब तो इस नाराजगी का कोई अर्थ बनेगा अन्यथा इसे आत्मघाती कदम ही करार दिया जायेगा। क्योंकि जब कांग्रेस के यह बागी राज्यसभा में क्रॉसवोटिंग करके भाजपा में शामिल होने का फैसला ले चुके थे तब इन लोगों को इसकी भनक भी न लग पाना यह प्रमाणित करता है कि यह नाराज लोग प्रदेश की राजनीति की कितनी समझ और जानकारी रख रहे थे।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह भी उभर रहा है की प्रदेश में जो कुछ घटा है क्या उसकी योजना प्रदेश में ही तैयार हुई या दिल्ली में हाईकमान के यहां। भाजपा की जानकारी रखने वाले जानते हैं की भाजपा संघ परिवार की एक इकाई मात्र है । इस पूरे परिवार का संचालन संघ के पास है। भाजपा में कुछ भी महत्वपूर्ण संघ की पूर्व अनुमति के बिना नहीं घटता है। इससे स्पष्ट हो जाता है की प्रदेश की इस राजनीतिक अस्थिरता को संघ की पूर्व अनुमति हासिल है। ऐसे में इन नौ लोगों के भाजपा में शामिल होने और चुनाव उम्मीदवार बनने के फैसले का विरोध सीधा संघ का विरोध होगा। इस समय भाजपा के इस फैसले का विरोध करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर लिये गये अन्य फैसलों का भी इन कथित नाराज लोगों को विरोध करना होगा। संघ देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहता है है और इसके लिये संविधान बदलने की तैयारी है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने का साहस करेंगे? इस समय इलैक्टोरल बॉड का खुलासा सबसे गंभीर मुद्दा बनने जा रहा है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने को तैयार होंगे? यदि सैद्धांतिक मुद्दों पर इन रुष्ट लोगों की कोई राय नहीं है तो इनके कथित विरोध और कांग्रेस द्वारा लगाये जा रहे आरोपों में कोई ज्यादा अन्तर नहीं रह जाता है।
इस समय कांग्रेस इस दल बदल को जिस भाषा में कोस रही है यदि उसके स्थान पर बागियों द्वारा पिछले एक वर्ष से उठाये जा रहे सार्वजनिक मुद्दों का तर्क पूर्ण जवाब जनता के सामने रखती तो स्थिति कुछ और होती। इस दल बदल तक सरकार के खिलाफ यह आरोप लगातार लगता रहा है की सरकार में कार्यकर्ताओं का सम्मानजनक समायोजन नहीं हो पाया है? क्या बदली परिस्थितियों में यह आरोप झूठा हो गया है? यह लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव प्रदेश सरकार की परफॉरमैन्स पर लड़े जायेंगे। यह देखा जायेगा की सरकार ने इस एक वर्ष में कौन से नये विधेयक पारित किये है और उनका क्या प्रभाव पड़ा है। सरकार ने लैण्ड सीलिंग विधेयक में संशोधन किया है और यह संशोधित विधेयक महामहिम राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये लंबित है। लेकिन इस संशोधन को पारित करते समय प्रदेश के सामने यह नहीं आ पाया है कि आज लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन रखने के मामले सरकार के संज्ञान में आये हैं। यह चुनाव बहुत सारे मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगेगा। इस परिदृश्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा की भाजपा में उठाता रोष कोई ठोस आकर ले पायेगा या नहीं?

क्या भाजपा विधायक दल सामूहिक त्याग पत्र देगा?

  • क्या यह प्रचार अध्यक्ष के पास लंबित अवमानना याचिका वापस करवाने का प्रयास है
  • क्या शान्ता के साथ पार्टी के और स्वर भी उभरेंगे?
  • क्या भाजपा प्रदेश को मध्यवर्ती चुनाव की ओर ले जा रही है?
शिमला/शैल। भाजपा ने कांग्रेस के छः बागिया और तीन निर्दलीय विधायकों को उनसे विधायकी से त्यागपत्र दिलवाकर भाजपा में शामिल करवा कर प्रदेश सरकार को अस्थिरता के कगार पर पहुंचा दिया है। क्योंकि इन नौ स्थानो पर उपचुनाव होने आवश्यक हो गए हैं। भाजपा के 9 विधायकों के खिलाफ अवमानना कि याचिका अध्यक्ष के पास लंबित चल रही है। यदि यह याचिका वापस नहीं ली जाती है और उनके खिलाफ भी स्पीकर का फैसला आ जाता है तो उनकी विधायकी भी जाने की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसी बीच यह फैल गया है कि भाजपा के सभी 25 विधायक भी त्यागपत्र दे रहे हैं । इस अपवाह का भाजपा की ओर से कोई खंडन भी नहींआया है और ऐसा माना नहीं जा सकता कि भाजपा नेतृत्व को इसकी जानकारी ही न हो । ऐसे में यह लगता है कि इस अफवाह के पीछे कोई रणनीति काम कर रही है । पहली नजर में यह माना जा रहा है कि भाजपा विधायकों के खिलाफ लंबित चल रही यचिका को वापस लेने का इससे दबाव बनाया जा रहा है । दूसरे अर्थों में यदि यह याचिका वापस नहीं ली जाती है तो पूरे प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव करवाए जाने का वातावरण तैयार कर दिया जाये । क्योंकि अभी तक छ: मुख्य संसदीय सचिवों की याचिका पर 2 अप्रैल को सुनवाई होनी है।
सर्वोच्चन् यायालय पहले ही कह चुका है कि राज्य विधानसभा को ऐसा एक्ट बनाने का अधिकार ही नहीं है। समरणीय है कि जब स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के शासनकाल में प्रदेश उच्च न्यायालय ने तब नियुक्त किये गए मुख्य संसदीय सचिवों और संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार देकर इनको रद्द कर दिया था तब सरकार ने उच्च न्यायालय की अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर करने के साथ ही इस आशय का नया कानून ही बना दिया था । लेकिन उस कानून को तभी उच्चन्यायालय में चुनौती दे दी गई थी जो अभी तक लंबित चल रही है । इसी कारण से जयराम सरकार में ऐसी नियुक्तियां नहीं हो पाई थी। जयराम सरकार के दौरान सरकार की ओर से यह शपथ पत्र दायर किया गया था कि यदि सरकार ऐसी नियुक्तियां करने का फैसला लेती है तो नियुक्ति करने से पहले उच्चन्यायालय की अनुमति ली जाएगी ।
परंतु अब यह नियुक्तियां करने से पहले उच्च न्यायालय से ऐसी कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई है । नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर भी साथ ही सुनवानी हो रही है । सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक इस आशय का एक्ट बनाने की राज्य विधायिकी को अधिकार ही नहीं है । इस कानूनी जटिलता के साये में यह खतरा बरकरार बना हुआ है की कहीं इन मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी भी न चली जाये । यदि ऐसा होता है तो उनके स्थान पर भी उपचुनाव होने अनिवार्य हो जाएंगे। ऐसे में भाजपा अपने पच्चीस सदस्यों के त्यागपत्र से प्रदेश में मध्यावधि चुनाव करवाने की सभावनाएं पैदा करने का प्रयास करेंगी । वैसे तो कानूनी तौर पर मध्यावधि चुनावो की कोई बाध्यता नहीं होगी । परंतु ऐसी स्थिति में राजनीतिक अस्थिरता का एक राजनीतिक वातावरण आवश्यक खड़ा हो जाएगा।
राजनीतिक अस्थिरता कोई निश्चित रूप से परिभाषित नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता का संज्ञान लेकर राज्यपाल कोई भी संस्तुति केंद्र को भेज सकता है । ऐसी संस्तुति करने के लिए राज्यपाल के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती है। पूरे भाजपा विधायक दल के त्यागपत्र देने की बात फैला कर यही संदेश देने का प्रयास माना जा रहा है। इससे यह संभावना भी उभर सकती है कि कांग्रेस के जो विधायक और मंत्री अपने को असहज महसूस कर रहे हैं वह पासा बदलने पर विचार करने लग जायें। भाजपा के इस खेल पर पार्टी के ही वरिष्ठतम नेता शांता कुमार ने जिस भाषा में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह भी इस समय महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मानी जा रही है । क्योंकि सत्ता पाने के लिए इस स्तर तक जाने को कोई भी सिद्धांत वादी नेता अपना समर्थन नहीं दे सकता। शांता की ही तर्ज पर बहुत से उन लोगों ने जिन्होंने आपातकाल का दौर देखा है और उस समय जेल में गए थे इस तरह के राजनीतिक आचरण को अपना समर्थन नहीं दिया है । लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के असहमति को विरोध करार देकर उसे प्रताड़ित किया जा रहा था ऐसे स्वरों को क्या करना चाहिए था इस पर शांता का मौन फिर कई नए प्रश्नों को जन्म दे जाता है।

नौ लोगों के भाजपा में शामिल होने के बाद सरकार कितनी देर सुरक्षित रह पायेगी?

  • जिस अध्यक्षा को संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया उससे चुनाव लड़ने की उम्मीद कैसे की जा सकती है
  • मुख्यमंत्री के साथ शिमला आने के बाद भी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने स्थिति का संज्ञान लेने का कोई संदेश क्यों नहीं दिया?
  • क्या हाईकमान अब भी मुख्यमंत्री के चश्मे से ही प्रदेश को देख रहा है?
शिमला/शैल। कांग्रेस के छः बागियों और तीन विधायकों द्वारा त्यागपत्र देने के बाद सभी नौ लोगों के भाजपा में विधिवत रूप से शामिल होने से प्रदेश की राजनीति का अस्थिरता की ओर एक कदम और आगे बढ़ गया है। निर्दलीय विधायक भाजपा में शामिल होने के बाद स्वत: ही दल बदल कानून के दायरे में 1985 में हुए संशोधन के बाद आ जाते हैं। फिर इन विधायकों ने भाजपा में शामिल होने से पहले अपनी विधायकी से त्यागपत्र दिये हैं। उनके त्यागपत्र देने पर कहीं से कोई ऐसा आरोप नहीं है कि ऐसा करने के लिए इन पर कोई दबाव था । ऐसे किसी आरोप के बिना इनके त्यागपत्रों को तुरंत प्रभाव से स्वीकार न करना इनको मनाने के रूप में देखा जा रहा है । भाजपा में विधिवत रूप से शामिल होने के बाद कांग्रेस के छः विधायकों की याचिका सर्वोच्चन्यालय में स्वत: ही अर्थहीन हो जाती है इसलिए इस याचिका को आने वाले दिनों में वापस ले लिया जायेगा । शैल के पाठक जानते हैं कि इस बारे में हमने बहुत पहले ही सारी स्थिति के बारे में पूरी स्पष्टता के साथ लिख दिया था। अब यह सवाल उठ रहा है कि इस सारे प्रकरण का अंतिम परिणाम क्या होगा।
अब तक जो घट चुका है उसके मुताबिक नौ विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। क्या इन उपचुनावों में कांग्रेस कोई सीट जीत पायगी? कांग्रेस यह उपचुनाव और लोकसभा चुनाव किसके चेहरे पर लड़ेगी? कांग्रेस अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह मंडी से चुनाव न लड़ने की बात कह चुकी हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस का कार्यकर्ता मानसिक रूप से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है । उनके इस कथन पर कांग्रेस विधायकों द्वारा अध्यक्षा को बदलने की मांग तक सामने आ गयी। इस पर यह सवाल उठ रहा है की क्या प्रतिभा सिंह के पास कोई और विकल्प था? इस बीच आनंद शर्मा का एक ब्यान आ गया है जिसे सीधे राहुल गांधीको ही चुनौती देना माना जा रहा है। ऐसे परिदृश्य में प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति का प्रश्नित होना माना जा रहा है क्योंकि आनंद शर्मा प्रदेश चुनाव समिति के सदस्य भी हैं।
इस वस्तु स्थिति में प्रदेश में यदि कांग्रेस की स्थिति को खंगाला जाये और अध्यक्षा की भूमिका से शुरुआत की जाये तो सबसे पहले यह सामने आता है की बतौर अध्यक्षा पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी होने का मुद्दा उन्होंने बार-बार मुख्यमंत्री से लेकर हाईकमान तक उठाया। क्या यह मुद्दा उठाना गलत था? शायद नहीं । लेकिन शिमला से लेकर दिल्ली तक उनकी बात नहीं सुनी गयी। फिर जब इस संकट के समय जब दिल्ली ने पर्यवेक्षक भेजें तो उनकी रिपोर्ट में हाली लॉज पर ही सारा दोष डालकर उनको हटाने के सिफारिश कर दी गयी। इस कथित रिपोर्ट को मीडिया में खूब उछाला गया। ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल उठाता है कि एक तरफ तो सारे संकट के लिए हाली लॉज को जिम्मेदार ठहराकर उनको हटाने की बात की जाये और इसके साथ उनसे चुनाव लड़ने की उम्मीद की जाये तो यह दोनों परस्पर विरोधी बातें एक साथ कैसे संभव हो सकती हैं? क्या इससे उन्हें चुनाव में हरवाने की योजना के रूप में देखा जा सकता है ? इसी क्रम में यदि इस संकट को सुलझाने के प्रयासों पर नजर डालें तो यह सामने आता है की राज्यसभा में क्रॉसवोटिंग के बाद इन बागियों के खिलाफ जनाक्रोश उभारने का प्रयास किया गया। इनके क्षेत्रों में प्रदर्शनों और उनके होर्डिंग्ज को काला करने तोड़ने फोड़ने की रणनीति अपनाई गयी ? लेकिन क्या सही में कहीं भी जनाक्रोश उभर पाया? जिस ढंग का यह जनाक्रोश बाहर आया उससे स्पष्ट हो गया कि यह प्रायोजित है और स्थायी नहीं बन पायेगा आज यह कथित जनाक्रोश स्वत: ही शांत हो गया है । फिर इन बागियों के खिलाफ प्रशासनिक और पुलिस तंत्र को प्रयोग करने का प्रयास किया गया। इनके व्यावसायिक परिसरों पर छापेमारी की गयी । इनके समर्थकों को तंग करने की कारवाई शुरू हुई। लेकिन किसी भी कारवाई का कोई परिणाम सामने नहीं आ पाया। यहां तक बालूगंज की एफआईआर तक कारवाई गयी जिसमें यह लोग शामिल तक नहीं हुये। अंत में मुख्यमंत्री चंडीगढ़ से शिमला तक सड़क मार्ग से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ आये। इससे यह संदेश तो चला गया की मुख्यमंत्री के हाईकमान के साथ अच्छे रिश्ते है।
यह उम्मीद बनी थी कि कांग्रेस महासचिव प्रदेश की स्थिति का कोई कड़ा संज्ञान लेकर कुछ कदम अवश्य उठायेंगी ।लेकिन व्यवहार में कुछ ऐसा नहीं हुआ। इससे यही संदेश गया कि अब भी हाईकमान प्रदेश को मुख्यमंत्री के चश्मे से देख रहा है। इससे मुख्यमंत्री को पार्टी और सरकार के डूबने तक बचाये रखने का संदेश तो गया लेकिन सरकार और संगठन को बचाने के प्रयासों का कोई संदेश नहीं गया। ऐसे में कार्यकर्ता अंततः किसके चेहरे पर चुनावों में उतरेगा? जिस नेतृत्व के कारण सरकार कुछ दोनों की मेहमान होने के कगार पर पहुंच चुकी हो उसका कार्यकर्ता कितने आत्मबल के साथ चुनाव में उत्तर पाएगा यह सवाल बड़ा होता जा रहा है। राजनीति में स्वार्थ सर्वोपरि हो जाता है यह एक स्थापित सत्य है और ऐसे में कांग्रेस के कुछ और लोग जी भाजपा में चले जाएं तो कोई हैरानी नहीं होगी। क्योंकि सरकार बचाने के अभी भी कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं । यह फैल चुका है की कुछ अधिकारी और राजनेता ईडी के राडार पर चल रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने खिलाफ साक्ष्य नष्ट करने के प्रयास किए हैं । ऐसे वातावरण में कोई सरकार कितने दिन सुरक्षित रह सकती है यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है । इस समय बागियों के खिलाफ जो कारवाई प्रशासनिक और पुलिस तंत्र के माध्यम से करने का प्रयास सरकार कर चुकी है अब उस सब को उसी भाषा में यह लोग लौटाने का प्रयास करेंगे यह स्वाभाविक है । इसलिए आने वाले दिनों में व्यक्तिगत स्तर के आरोप लगाने का दौर शुरू होगा यह तय है।

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