शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के विधानसभा क्षेत्र नादौन में सरकार एक टूरिस्ट होटल बना रही है। इस फाइव स्टार होटल के लिये एशियन विकास बैंक से कर्ज लेकर धन का प्रबंध किया गया है। यह होटल बनाकर इसको चलाने के लिये इसे प्राइवेट सैक्टर को देने की योजना है। बल्कि सरकार ने इस संबंध में नौ अप्रैल को चण्डीगढ़ के होटल हयात में कुछ टूरिस्ट संपत्तियों के सुचारू संचालन के लिये प्राइवेट सैक्टर के दिग्गजों के साथ एक बैठक का भी आयोजन किया था। इन प्रस्तावित संपत्तियों में नादौन में बनाया जा रहा यह होटल भी शामिल है। लेकिन यह होटल अभी शुरुआती स्तर पर है। क्योंकि जिस जगह पर जलाड़ी में यह बनाया जा रहा है उस जमीन पर हिस्सेदारों में झगड़ा है और अदालत से यहां पर कोई भी निर्माण या निर्माण संबंधी गतिविधियां करने पर 28-11-2022 से स्टे लगा है। लेकिन अब 1-12-24 को रविवार छुट्टी के दिन प्रशासन ने अदालत के स्टे आर्डर को नजरअन्दाज करके निर्माण गतिविधि शुरू कर दी। जिन हिस्सेदारों ने स्टे हासिल किया था उनकी प्रशासन ने कोई बात नहीं सुनी। पुलिस ने भी अदालत के स्टे ऑर्डर को कोई अधिमान नहीं दिया।
पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है कि किसके दबाव में प्रशासन ने स्टे वाली जमीन पर खोद खुदाई का काम छुट्टी वाले दिन अंजाम दिया। इसी के साथ यह भी चर्चा में आ गया है कि क्या नादौन में फाइव स्टार होटल का निर्माण सरकार द्वारा किया जाना व्यवहारिक और लाभदायक सिद्ध हो पायेगा। इस समय पर्यटन विकास निगम द्वारा चलाये जा रहे होटल जिस तरह से प्रदेश उच्च न्यायालय में चर्चा में आये हैं उससे यह प्रस्तावित निर्माण स्वतः ही सवालों में आ जाता है। क्योंकि पर्यटन विकास निगम जब अपने सेवानिवृत कर्मचारियों के देय वित्तीय लाभों का भुगतान नहीं कर पाया तब यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंचा। निगम ने उच्च न्यायालय में जब अपनी वित्तीय स्थिति का खुलासा अदालत में रखा तब उच्च न्यायालय ने निगम से परफॉरमैन्स रिपोर्ट तलब कर ली। इस रिपोर्ट में जब यह सामने आया कि निगम के होटल लगातार घाटे में चल रहे हैं तो इसका कड़ा संज्ञान लेते हुये इन होटलों को बंद करने के आदेश सुना दिये। क्योंकि यह घाटा प्रदेश के आम आदमी की जेब पर भारी पड़ रहा था। उच्च न्यायालय के आदेश से जब निगम में कार्यरत कर्मचारी प्रभावित हुये तब उनका संगठन इस पर गंभीर हुआ। निगम के कर्मचारी संघ ने निगम प्रशासन द्वारा उच्च न्यायालय में रखी रिपोर्ट को एकदम नकार दिया। कर्मचारी संघ ने सीधे आरोप लगाया कि यह रिपोर्ट पर्यटन निगम की संपत्तियों को प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की नीयत से तैयार की गयी है। संघ ने निगम के उपाध्यक्ष को इस साजिश का सूत्रधार करार देते हुये उन्हें तुरंत प्रभाव से हटाने की मांग कर दी।
पर्यटन निगम के कर्मचारी संघ के सक्रिय भूमिका में आने के बाद निगम प्रबंधन ने भी इस संद्धर्भ में कदम उठाये और उच्च न्यायालय में वायदा किया कि वह सेवानिवृत कर्मचारियों के सारे वितिय लाभों का तुरंत भुगतान कर देगा। इस भुगतान के लिये टाइम फ्रेम भी अदालत में सौंपा है। अदालत ने निगम के वायदे पर 18 होटलों को बंद करने के आदेश पर रोक लगा दी है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 जनवरी को है तब पता चलेगा कि कितने सेवानिवृत्त कर्मचारीयों को भुगतान हो जाता है। पर्यटन निगम का मामला उच्च न्यायालय में पहुंचने के बाद दो मुख्य बिन्दु उभरे हैं। पहला कि निगम के होटल घाटे में चल रहे हैं और घाटे की स्थिति में यह है कि अपने सेवानिवृत कर्मचारियों को उनके लाभों का भुगतान तक नहीं कर पा रही है। दूसरा है कि निगम के होटल को प्राइवेट सैक्टर को देने की जमीन तैयार की जा रही है। सवाल उठता है कि जब निगम के पहले से चले आ रहे होटल घाटे में चल रहे हैं तो नये क्यों बनाये जा रहे हैं। पिछली सरकार के समय भी ऐसा हुआ सरकार कर्ज लेकर होटल बना रही है और उसे प्राइवेट सैक्टर को सौंप रही है। पिछली सरकार के समय यह मामला विधानसभा तक भी पहुंचा था। अधिकारियों को चिन्हित किया गया था परंतु अब सरकार बनने के बाद उस दिशा में कोई कारवाई नहीं है क्यों? दूसरा बिन्दु उभरा है कि निगम संपत्तियों को प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की भूमिका तैयार करने का इस संद्धर्भ में नादौन के प्रस्तावित होटल को लेकर हो रही गतिविधियों से यह शक पुख्ता होता है। क्योंकि नादौन में सरकार एडीबी से कर्ज लेकर यह होटल बना रही है परंतु इसे बनाकर प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की मंशा नौ अप्रैल को चण्डीगढ़ के होटल हयात में हुई बैठक से सामने आ जाती है। उस बैठक में नादौन की यह प्रस्तावित संपत्ति भी एजेंडा में थी। अब छुट्टी वाले दिन जिस तरह से प्रशासन ने अदालत के स्टे को अंगूठा दिखाते हुये हरकत की है उससे स्पष्ट हो जाता है कि शायद प्राइवेट सैक्टर के दबाव में ऐसा किया जा रहा है।
यह है स्टे आर्डर
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस की पिछले दिनों प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर की सारी इकाइयां भंग कर दी गई थी। अब इसकी जगह नई इकाइयां गठित होनी है। प्रदेश अध्यक्षा अभी इस पुनर्गठन की दिशा में बढ़ने ही लगी थी कि हिमाचल प्रभारी राजीव शुक्ला ने इस पुनर्गठन के लिए कुछ पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिये। संयोगवश यह सब पर्यवेक्षक हिमाचल से बाहर के हैं। यह लोग अपने-अपने क्षेत्र का दौरा करने वहां लोगों से फीडबैक लेने में कितना समय लगाते हैं और कब अपनी रिपोर्ट सौंपते हैं इस सब को ध्यान में रखते हुये यह तय है कि इस पुनर्गठन में समय लगेगा। संगठन के पुनर्गठन के लिये इस तरह से पर्यवेक्षकों की नियुक्ति पहली बार हिमाचल में देखने को मिल रही है। लेकिन इस कदम के साथ ही कांग्रेस के अन्दर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं। कुछ हलकों में इस कदम को प्रदेश अध्यक्षा पर अंकुश लगाने का प्रयास माना जा रहा है। इसी के साथ कुछ हलकों में इसे मंत्रिमण्डल में फेर बदल के संकेतों के रूप में भी देखा जा रहा है। यह तय है कि इन पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट का परिणाम बहुत दूरगामी होगा। इसलिये इस पूरी प्रक्रिया का निष्पक्ष आकलन करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि कांग्रेस सत्ता में है।
प्रदेश संगठन की इकाई प्रदेश अध्यक्षता की सिफारिश पर भंग की गयी है। स्मरणीय है कि प्रदेश अध्यक्षा काफी समय से निष्क्रिय कार्यकर्ताओं और पदाधिकारी को हटाने की बात करती रही है। यह भी शिकायतें रही हैं कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सरकार में उचित मान सम्मान नहीं दिया जा रहा है। हाईकमान तक यह शिकायतें पहुंची और एक समन्वय समिति गठित की गयी जो व्यवहार में प्रभावी नहीं हो पायी। विपक्ष लगातार सरकार को गारंटीयों के मुद्दे पर घेरता रहा है। इसी सब का परिणाम हुआ कि प्रदेश के चारों लोकसभा सीटें कांग्रेस हार गयी। राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के छः विधायक पार्टी छोड़कर चले गये। प्रदेश का सह प्रभारी तक पार्टी छोड़ गया था। लेकिन हाईकमान इस सब को समझ नहीं पायी। परन्तु अब जिस तरह से सरकार के कुछ फैसले विवादित हुये और स्पष्टीकरण जारी करने की नौबत आयी। प्रधानमंत्री ने हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों जगह हिमाचल को चुनावी मुद्दा बनाया। समोसा जांच राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय समाचार बन गया। पहली बार इस तरह की विवादित छवि प्रदेश की देश भर में प्रचारित हुई।
यह एक स्थापित सच है की सरकार बनने के बाद उसकी कार्य प्रणाली और परफॉरमैन्स से ही पार्टी और सरकार का आदमी आकलन करता है। कांग्रेस चुनाव में दस गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी। यह गारंटीयां देते हुये इन पर कोई ‘‘किन्तु परन्तु’’ नहीं लगाये गये थे। इन गारंटीयों की व्यवहारिक स्थिति क्या है उसको आम आदमी नेताओं के भाषणों से हटकर जानता है। प्रदेश से बाहर नेता क्या बोल रहे हैं और प्रदेश के अन्दर की स्थिति क्या है उसे प्रदेश का आम आदमी बेहतर जानता है। प्रदेश के संगठन और सरकार में कैसे रिश्ते हैं इसकी जानकारी प्रदेश के लोगों को ज्यादा पता है। अभी सरकार दो वर्ष पूरे करने के अवसर पर आयोजन करने जा रही है। मुख्यमंत्री इस आयोजन का निमंत्रण केंद्रीय नेताओं को दे रहे हैं। लेकिन उन्ही का एक सहयोगी मंत्री यह कहे कि उसे ऐसे प्रस्तावित आयोजन की जानकारी मीडिया से मिल रही है तो फिर सरकार के बारे में ज्यादा कुछ बोलने को नहीं रह जाता है।
अभी जब पर्यवेक्षक संगठन के बारे में फीडबैक लेने के लिये जनता में जाएंगे तब उन्हें सरकार की परफॉरमैन्स की व्यवहारिक जानकारी मिलेगी। यह देखने को मिलेगा की कितनी महिलाओं को पन्द्रह सौ रूपये मिल रहे हैं। कितने युवाओं को व्यवहारिक तौर पर सरकार रोजगार दे पायी है। महंगाई को कितना कम कर पायी है। यह सामने आयेगा कि सरकार ने खर्च कम करने के लिये क्या-क्या किया है। जिन फैसलों के सरकार को स्पष्टीकरण जारी करने पड़े हैं उनका असली सच क्या है। प्रदेश से बाहर के पर्यवेक्षक लगाकर हाईकमान ने संगठन के नाम पर सरकार के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए पर्यवेक्षकों को फीडबैक लेने के लिए भेजा है। क्योंकि कोई भी संगठन केवल सरकार की परफॉरमैन्स का ही सबसे बड़ा सूत्रा होता है। ऐसे में हाईकमान ने संगठन के नाम पर सरकार की असली जानकारी जुटाने के लिये प्रदेश से बाहर के पर्यवेक्षक भेजे हैं। इसकी रिपोर्ट के बाद हाईकमान प्रदेश सरकार के बारे में ठीक व्यवहारिक और सटीक जानकारी जुटा पायेगी।
शिमला/शैल। ईडी ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के विधानसभा क्षेत्र से खनन व्यवसाय से जुड़े दो कारोबारियों ज्ञानचन्द और संजय धीमान को गिरफ्तार कर लिया है। पांच माह पहले ई डी और आयकर विभाग ने हमीरपुर और नादौन में छापेमारी की थी। दो माह में तीन बार ई डी ने यहां दस्तक दी थी। नादौन में चार लोगों ज्ञानचन्द, प्रभात चन्द, संजय धीमान और संजय शर्मा के यहां छापेमारी हुई थी। इस छापेमारी में ई डी को क्या कुछ मिला था इसकी कोई आधिकारिक सूची जारी नहीं हुई थी। लेकिन इस छापेमारी और फिर इस गिरफ्तारी के बीच 14-9-24 को एक बसन्त सिंह ठाकुर को ई डी ने बतौर गवाह दिल्ली तलब कर लिया था। बसन्त सिंह ठाकुर ने सुक्खू के 2017 के चुनाव शपथ पत्र को चुनौती दी थी। बसन्त सिंह ने आरोप लगाया था कि इस शपथ पत्र में संपत्ति को लेकर कुछ जानकारीयों को छुपा लिया गया है। उच्च न्यायालय ने इस आरोप को गंभीरता से लिया और कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने इसकी जांच के आदेश देते हुये संबद्ध अधिकारियों को इसमें त्वरित कारवाई करने के निर्देश दिये। इन निर्देशों के बाद यह मामला जांच के लिये हमीरपुर पुलिस के पास पहुंच गया और नादौन की अदालत में केस चला। नादौन की अदालत में सुक्खू को इस आधार पर राहत दे दी कि इसमें किसी को भी न व्यक्तिगत लाभ हुआ है और न ही हानि। बसन्त सिंह इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में आ गये। उच्च न्यायालय की जस्टिस कैंथला की एकल पीठ ने जून में इस पर फैसला देते हुये नादौन की अदालत के फैसले को यथास्थिति बनाये रखते हुये यह भी कह दिया कि इस फैसले से केस की मेरिट प्रभावित नहीं होगी।
इस बसन्त सिंह-सुक्खू मामले की फाइल ज्ञानचन्द के यहां छापेमारी के दौरान ई डी के हाथ लग गयी। जबकि ज्ञानचन्द का इस मामले के साथ कोई संबंध ही नहीं है। ई डी ने इस केस की फाइल को देखने के बाद इसके सत्यापन के लिये बसन्त सिंह को दिल्ली तलब कर लिया। इस फाइल में संपत्ति से जुड़े कई दस्तावेज होने कहे जा रहे हैं। बसन्त सिंह 14-9-24 को ई डी में पेश हो आये हैं। शायद ई डी बसन्त सिंह को गवाही के लिए फिर तलब करें। बसन्त सिंह ने सुक्खू के चुनाव शपथ पत्र में जमीन संबंधी कुछ जानकारियां छुपाने का आरोप लगा रखा है। हमीरपुर के ए एस पी ने अपनी जांच रिपोर्ट में बसन्त सिंह के आरोप को प्रमाणित कर दिया है। जिस स्टोन क्रशर की ई डी ने अधवाणी में जांच और छापेमारी की है वह पहले बसन्त सिंह के गांव जरोट में ही स्थापित था। बसन्त सिंह की शिकायत पर ही जरोट से इस क्रशर को शिफ्ट करने के अदालत ने आदेश दिये थे और तब जरोट से यह अधवाणी शिफ्ट हुआ था। माना जा रहा है कि जो केस फाइल ई डी के हाथ लगी है उसमें शायद स्टोन क्रशर से जुड़ी जानकारियां भी हैं। यह केस फाइल ई डी के हाथ लगने से इस मामले में कई मोड़ आने की संभावनाएं बन गयी हैं क्योंकि यह स्टोन क्रशर भी उस जमीन पर स्थित था जो शायद सरकार के नाम सिलिंग के समय जा चुकी है और इस पर बर्तनदारों के हक सुरक्षित थे क्योंकि यहीं पर कुछ गांवों का शमशान भी है।
यह है बसन्त सिंह के नाम ई डी के सम्मन
शिमला/शैल। प्रधानमंत्री द्वारा हिमाचल सरकार की परफॉरमैन्स को महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव में भी मुद्दा बनाया गया तब मुख्यमंत्री सुक्खू ने इसका जवाब देते हुए आरोप लगाया है कि भाजपा प्रदेश को बदनाम कर रही है तथा प्रधानमंत्री को भी गलत सूचनाएं दी जा रही हैं। मुख्यमंत्री अपनी सरकार की स्थिति स्पष्ट करने महाराष्ट्र भी गये लेकिन इन्हीं चुनाव के मतदान से पहले एक मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा हिमाचल भवन दिल्ली को अटैच करने के आदेश जारी हो गये। उच्च न्यायालय के यह आदेश एकदम पूरे देश में चर्चा का विषय बन गये। प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक होने और पांच चुनावी गारंटीयां लागू कर देने के दावों पर भी स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग गये। यहां पर यह प्रश्न उठता है कि जब प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह पैसा जमा करवाने के निर्देश बहुत पहले दे रखे थे तो उनकी अनुपालना क्यों नहीं हुई। जबकि ऐसे मामलों में अपील दायर करने के लिये भी यह शर्त रहती है कि संदर्भित पैसा अदालत की रजिस्ट्री में पहले जमा करवाना पड़ता है। अदालत के फैसले की अनुपालना न करने के लिये कौन अधिकारी जिम्मेदार है। उन्हें चिन्हित करने के निर्देश देते हुये इस रकम का ब्याज इस बीच के समय का उनसे वसूलने के आदेश भी अदालत ने दे रखे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार ऐसे अधिकारियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कारवाई करती है या नहीं। इस सरकार के कार्यकाल में आर्विटेशन के जो मामले हुये हैं उनमें शायद पन्द्रह सौ करोड़ की देनदारी सरकार पर आ खड़ी हुई है। सभी मामलों में अधिकारियों के स्तर पर गड़बड़ होने की आशंकाएं सामने आयी हैं। लेकिन किसी के भी खिलाफ जिम्मेदारी तय करने की बात नहीं हुई है। बल्कि सर्वाेच्च न्यायालय से लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय तक कई मामलों में सरकार को भारी जुर्माने तक लगे हैं। लेकिन इन मामलों का सरकार के स्तर पर कोई गंभीर संज्ञान नहीं लिया गया। इसी दौरान सीपीएस मामले में फैसला आया है। उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को अवैध और असंवैधानिक ठहराते हुये इस आश्य के अधिनियम को भी अवैध करार दे दिया है। 1971 के जिस अधिनियम के तहत इन लोगों को संरक्षण हासिल था उसे भी रद्द कर दिया है। इस मामले में एक दर्जन भाजपा विधायकों की याचिका उच्च न्यायालय में थी। अब इस याचिका के बहाल होने के बाद सीपीएस की विधायकी भी खतरे में आ गयी है। जब याचिकाकर्ता विधायकों की ओर से यह फैसला राज्यपाल के संज्ञान में ला दिया जायेगा तब राजभवन संविधान की धारा 191 और 192 के प्रावधानों के तहत कारवाई करने के लिये बाध्य हो जायेगा। संभावना है कि यह कारवाई सर्वाेच्च न्यायालय में यह मामला सुनवाई के लिए आने तक पूरी हो जायेगी। भाजपा सीपीएस नियुक्तियों को शुरू से ही गैर जरूरी करार देती आयी है। क्योंकि एक ओर तो सरकार वित्तीय संकट के कारण अपने वेतन भत्ते निलंबित करने के लिये बाध्य हो गयी और दूसरी ओर सीपीएस पर करोड़ों खर्च कर रही है। ऐसे में उच्च न्यायालय का फैसला सीपीएस के खिलाफ आने से भाजपा का एक और आरोप प्रमाणित हो गया है। यह फैसला भी महाराष्ट्र और झारखण्ड के मतदान से पहले आया है। इससे भी अनचाहे ही प्रदेश सरकार की परफारमैन्स इन चुनावों में भी चर्चा का विषय बन गयी है। इस फैसले को लेकर भाजपा ने उन तीन कांग्रेस विधायकों को भी लाभ के पद के दायरे में परिभाषित करना शुरू कर दिया है जिन्हें सरकार ने कैबिनेट रैंक दे रखे हैं। बल्कि कैबिनेट रैंक प्राप्त और विधायक भी कल को चर्चा का विषय बन जाएंगे। क्योंकि कैबिनेट रैंक से ही यह लोग मंत्री के बराबर सुविधाओं के पात्र बन जाते हैं।