Thursday, 18 December 2025
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हिमाचल उच्च न्यायालय द्वारा ज्ञान चंद की जमानत याचिका खारिज करने के बाद ई.डी. ने दायर कर दिया चालान

  • बैंस ने भी इसी मामले में ई.डी. में शिकायतकर्ता होने का दावा किया है
  • बैंस की शिकायत में नामितों  के खिलाफ कोई कारवाई होना अभी तक सामने नहीं आया है

शिमला/शैल। अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग में ई.डी. की डासना जेल पहुंच चुके नादौन के खनन कारोबारी ज्ञान चन्द की हिमाचल उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका खारिज करते हुये कहा है कि याचिकाकर्ता को जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है। अदालत के सामने आये रिकॉर्ड के मुताबिक ज्ञान चन्द आदि के खिलाफ ई.डी.ने 2-7-24 को मामला दर्ज किया और चार-पांच जुलाई को छापेमारी की। इस छापेमारी में जो दस्तावेज संजय के आवास से बरामद हुये उनमें यह भी सामने आया की याचिकाकर्ता ने 2023-24 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 4.70 करोड़ से एक स्टोन क्रेशर खरीदा है। जिसमें 1.6 करोड़ का भुगतान कैश में किया गया है। यह कैश हिमाचल में हुये अवैध खनन से अर्जित किया गया। इसी कड़ी में साथ 7-11-24 को सहारनपुर में भी वहां के खनन इंस्पैक्टर ने भी धारा 379, 413, 415, 417, 418, 424, 471 और आई.पी.सी. की धारा 120ठ आदि में एफआईआर दर्ज की गयी है। इस तरह जो तथ्य ई.डी. द्वारा उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बिपिन चन्द्र नेगी की एकल पीठ के सामने रखे उनके आधार पर अदालत में याचिकाकर्ता को जमानत देने से इन्कार कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में साफ कहा है कि The facts, in the case at hand, made out from the grounds of arrest and reasons to believe prima facie reflect that the officer, in the case at hand, had material in his possession, on the basis of which in writing reasons to believe were recorded, that the applicant, who is to be arrested is guilty of the offence under the Act. As is the requirement of law, grounds of arrest and reasons to believe were supplied to the applicant upon his arrest. The conclusion drawn prima facie appears to logically flow from the facts. Prima facie neither there exists any error of nor there appears to be any improper exercise of power.

In view of the aforesaid, I am of the considered view that no case for grant of bail has been made out in terms of Section 45 of the PML Act, as there exist reasonable grounds for believing that the applicant is guilty of such offence. Moreover, taking into account the antecedent of the applicant, his propensities, the way and manner in which the applicant is alleged to have committed the offence, in my considered view, the applicant is likely to commit similar offences, if enlarged on bail in the future.
Necessity of arrest, in the case at hand, has been made out in the reasons to believe (Page 427 of the paper book). No case is made out for grant of bail at this stage.

हिमाचल उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद ई.डी. ने ज्ञानचन्द और सात अन्य आरोपियों के खिलाफ धन शोधन मामले में गाजियाबाद की विशेष अदालत में चालान दायर कर दिया है जिसका संज्ञान भी अदालत ने ले लिया है। ई.डी. ने चालान के साथ ही मामले में जांच भी जारी रखने की बात कही है। अब इस आगामी जांच में कब क्या सामने आता है और उसका अनुपूरक चालान कब पेश होता है इस पर निगाहें लगी रहेंगी। क्योंकि इसी मामले के दौरान युद्ध चन्द बैंस के खिलाफ केसीसी बैंक के ऋण मामले में राज्य विजिलैन्स ने एफआईआर दर्ज कर ली थी। यह एफआईआर दर्ज होने के बाद बैंस ने ऊना में एक पत्रकार वार्ता में इसी ज्ञान चन्द और अन्य के खिलाफ बहुत ही गंभीर आरोप लगा रखे हैं। इन आरोपों में बैंस ने दावा किया है कि ज्ञान चन्द आदि के खिलाफ ई.डी. में शिकायतकर्ता भी वही है। बैंस को केन्द्र के गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा भी प्रदान की गई है। उच्च न्यायालय ने बैंस को अंतरिम जमानत भी दी है। विजिलैन्स यह जमानत रद्द करवाने का प्रयास कर रही है। बैंस ने जिन लोगों के खिलाफ ई.डी. में शिकायत दर्ज करवाने की बात की है उनमें से किसी की भी कोई पूछताछ नहीं हुई है। अब ई.डी. द्वारा ज्ञान चंद और सात अन्य के खिलाफ चालान दायर कर दिये जाने के बाद बैंस द्वारा अपनी शिकायत में नामितों को लेकर क्या कारवाई होती है यह देखना रोचक हो गया है।

अतुल शर्मा की शिकायत के बाद रेरा की नियुक्तियों पर लगी निगाहें

  • क्या सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज कर पायेगी
  • रेरा द्वारा लाखों के सेब खरीदना सवालों में

शिमला/शैल। रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है इस आश्य का विज्ञापन जारी होने के बाद इसके लिये आवेदन आने शुरू हो गये हैं। हिमाचल में अभी तक रेरा के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव ही नियुक्त रहे हैं। इस बार भी इसमें अपवाद होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव भी इसके लिए आवेदक हो गये हैं। लेकिन इस बार यह चयन सरकार के स्वयं के लिये एक परीक्षा बन चुका है। वैसे तो सरकार के लिये लोकलाज कोई मायने नहीं रखती है। परन्तु जनता में सरकार और सत्ता रूढ़दल के लिये यह चयन ऐसे सवाल खड़े कर जायेगा जिनका प्रभाव दोनों की सेहत के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा। क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त हैं ंऔर यह मामला अभी तक सीबीआई कोर्ट में लम्बित चल रहा है। मुख्य सचिव ने इस मामले में हर बार व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने में छूट ले रखी है। लेकिन यह छूट अदालत की अनुकंपा पर निर्भर है जिसे अदालत बिना नोटिस दिए रद्द भी कर सकती है। फिर केन्द्र के क्रमिक विभाग की 9 अक्तूबर 2024 की अधिसूचना के मुताबिक जिस भी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई आपराधिक मामला होगा उसे न तो कोई संवेदनशील पोस्टिंग दी जा सकती है और न ही सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति। किसी भी नियुक्ति के लिये विजिलैन्स से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वालों के लिये स्टेट विजिलैन्स और अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के लिये केंद्र के क्रामिक विभाग के माध्यम से यह अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है। वैसे राज्य सरकार के क्रामिक विभाग के पास भी यह सूचना उपलब्ध है। फिर एक बार अतुल शर्मा ने भी इस बारे में राज्य सरकार के सारे संबद्ध लोगों को पत्र लिखकर सचेत किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज करने का कितना साहस दिखाती है। क्योंकि केन्द्र के निर्देशों के मुताबिक ऐसे अधिकारी को सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले पैन्शन आदि के लाभों पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
इसी के साथ पिछले दिनों सर्वाेच्च न्यायालय ने भी रेरा के कामकाज पर कड़ी आपत्ति जताते हुये भारती जगत जोशी बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य मामले में यह टिप्पणी की है कि हम रेरा के बारे में बात नहीं करना चाहते। यह उन नौकरशाहों के लिये पुनर्वास केन्द्र बन गया है जिन्होंने अधिनियम की पूरी योजना को ही असफल कर दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अपने में ही बहुत गंभीर है। फिर हिमाचल में भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत गैर कृषकों को हिमाचल में जमीन खरीदने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति वान्छित है। गैर कृषक अन्यथा प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकता। इस प्रतिबंध के बावजूद हिमाचल में रेरा के पास दो सौ से अधिक बिल्डर लिस्टिड हैं और शायद इससे ज्यादा दूसरे हैं जो रेरा की सूची में नहीं हैं। फिर हिमाचल में रेरा के धन से एचपीएमसी से लाखों का सेब खरीदकर प्रदेश से बाहर उपहार स्वरूप भेजा गया है। उससे सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी को ही बल मिलता है। इससे प्राधिकरण के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अब जब अतुल शर्मा ने वाकायदा शिकायत भेज कर इस पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है तब स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। क्योंकि चयन प्रक्रिया में प्रदेश उच्च न्यायालय की अहम भूमिका है। अतुल शर्मा की शिकायत के बाद रेरा की नियुक्तियों पर लगी निगाहें
क्या सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज कर पायेगी
रेरा द्वारा लाखों के सेब खरीदना सवालों में
शिमला/शैल। रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है इस आश्य का विज्ञापन जारी होने के बाद इसके लिये आवेदन आने शुरू हो गये हैं। हिमाचल में अभी तक रेरा के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव ही नियुक्त रहे हैं। इस बार भी इसमें अपवाद होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव भी इसके लिए आवेदक हो गये हैं। लेकिन इस बार यह चयन सरकार के स्वयं के लिये एक परीक्षा बन चुका है। वैसे तो सरकार के लिये लोकलाज कोई मायने नहीं रखती है। परन्तु जनता में सरकार और सत्ता रूढ़दल के लिये यह चयन ऐसे सवाल खड़े कर जायेगा जिनका प्रभाव दोनों की सेहत के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा। क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त हैं ंऔर यह मामला अभी तक सीबीआई कोर्ट में लम्बित चल रहा है। मुख्य सचिव ने इस मामले में हर बार व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने में छूट ले रखी है। लेकिन यह छूट अदालत की अनुकंपा पर निर्भर है जिसे अदालत बिना नोटिस दिए रद्द भी कर सकती है। फिर केन्द्र के क्रमिक विभाग की 9 अक्तूबर 2024 की अधिसूचना के मुताबिक जिस भी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई आपराधिक मामला होगा उसे न तो कोई संवेदनशील पोस्टिंग दी जा सकती है और न ही सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति। किसी भी नियुक्ति के लिये विजिलैन्स से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वालों के लिये स्टेट विजिलैन्स और अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के लिये केंद्र के क्रामिक विभाग के माध्यम से यह अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है। वैसे राज्य सरकार के क्रामिक विभाग के पास भी यह सूचना उपलब्ध है। फिर एक बार अतुल शर्मा ने भी इस बारे में राज्य सरकार के सारे संबद्ध लोगों को पत्र लिखकर सचेत किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज करने का कितना साहस दिखाती है। क्योंकि केन्द्र के निर्देशों के मुताबिक ऐसे अधिकारी को सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले पैन्शन आदि के लाभों पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
इसी के साथ पिछले दिनों सर्वाेच्च न्यायालय ने भी रेरा के कामकाज पर कड़ी आपत्ति जताते हुये भारती जगत जोशी बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य मामले में यह टिप्पणी की है कि हम रेरा के बारे में बात नहीं करना चाहते। यह उन नौकरशाहों के लिये पुनर्वास केन्द्र बन गया है जिन्होंने अधिनियम की पूरी योजना को ही असफल कर दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अपने में ही बहुत गंभीर है। फिर हिमाचल में भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत गैर कृषकों को हिमाचल में जमीन खरीदने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति वान्छित है। गैर कृषक अन्यथा प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकता। इस प्रतिबंध के बावजूद हिमाचल में रेरा के पास दो सौ से अधिक बिल्डर लिस्टिड हैं और शायद इससे ज्यादा दूसरे हैं जो रेरा की सूची में नहीं हैं। फिर हिमाचल में रेरा के धन से एचपीएमसी से लाखों का सेब खरीदकर प्रदेश से बाहर उपहार स्वरूप भेजा गया है। उससे सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी को ही बल मिलता है। इससे प्राधिकरण के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अब जब अतुल शर्मा ने वाकायदा शिकायत भेज कर इस पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है तब स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। क्योंकि चयन प्रक्रिया में प्रदेश उच्च न्यायालय की अहम भूमिका है। अतुल शर्मा ने जो शिकायत सरकार को भेजी है उसे पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि सरकार के बारे में पाठक अपनी एक निष्पक्ष राय बना सके।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या प्रदेश भाजपा में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है

  • संगठनात्मक चुनाव में भाजपायी बने कांग्रेसियों को नहीं मिली कोई बड़ी जिम्मेदारी क्यों?
  • सरकार के खिलाफ भाजपा के बड़े वर्ग की चुप्पी सवालों में
  • ई.डी. की अगली कारवाई पर लगी सबकी नज़रें
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा में इन दिनों संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं। प्रदेश में भाजपा के 17 संगठनात्मक जिले हैं और 171 मण्डल हैं। भाजपा के 171 मण्डलों में से 141 के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। 30 मण्डलों के चुनाव लटक गये हैं। 17 में से 16 संगठनात्मक जिलों के चुनाव पूरे हो चुके हैं और ऊना जिले का चुनाव लटका है क्योंकि वहीं पर 50% मण्डलाध्यक्षों की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है। चुने गये जिला अध्यक्षों में छः राजपूत, नौ एस सी, दो एस टी, दो ब्राह्मण, दो व्यापारी और एक ओबीसी वर्ग से है। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 15 जनवरी के बाद होने की संभावना है। 30 मण्डलाध्यक्षों का चुनाव लटकने से यह संकेत और संदेश उभरा है कि भाजपा में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। यह संदेश उस समय ज्यादा मुखर होकर सामने आया था जब लोकसभा चुनाव में संघ को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने यह कहा था कि भाजपा को संघ की सहायता की आवश्यकता नहीं है। भाजपा को संघ की राजनीतिक इकाई के रूप में जाना जाता रहा है। आज संघ की 80 से ज्यादा देशों में इकाइयां हैं। 55000 से ज्यादा शाखाएं लगती हैं। 50 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तथा 200 से ज्यादा क्षेत्रीय प्रभाव वाली संघ की अनुषांगिक संगठन हैं। इतने बड़े आकार वाले संगठन को लेकर आयी राष्ट्रीय अध्यक्ष की टिप्पणी से हर प्रदेश में संघ भाजपा के रिश्तों को लेकर सवाल उठे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं इसलिए उनकी टिप्पणी का हिमाचल पर भी प्रभाव पढ़ना स्वभाविक है।
इस पृष्ठभूमि में यदि प्रदेश भाजपा पर नजर डालें तो यह सामने आता है कि जब जयराम के नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तब कई बार इन अटकलें का बाजार गर्म हुआ कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है। जयराम के विकल्प के रूप में कई नाम चर्चा में आये लेकिन परिवर्तन हो नहीं सका। इसी स्थिति में हिमाचल विधानसभा के चुनाव हो गये। मोदी और शाह के चुनाव प्रचार के बावजूद भाजपा चुनाव हार गयी। लेकिन जिस तरह के चुनाव परिणाम सामने आये उसमें हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। जबकि इस क्षेत्र से ही अनुराग ठाकुर और जगत प्रकाश नड्डा आते हैं। केवल जयराम के मण्डी में ही भाजपा शानदार जीत हासिल कर पायी। इन्हीं चुनाव परिणामों के कारण इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिमाचल को स्थान नहीं मिल पाया। जगत प्रकाश नड्डा क्योंकि गुजरात से राज्यसभा आये हैं इसलिये उन्हें हिमाचल के कोटे से नहीं माना जा रहा है। इसी से यहां संकेत भी उभरे हैं की हिमाचल भाजपा भी खेमे में बंटी हुई है। लेकिन इसी भाजपा ने प्रदेश की कांग्रेस में सेंधमारी करके पहले कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हर्ष महाजन को अपने में मिलाया। उसके बाद हर्ष महाजन को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया। हर्ष महाजन की उम्मीदवारी पर कांग्रेस के छः विधायक तथा तीनों ही निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गये। इस दल बदल के बाद प्रदेश की राजनीति में जो कुछ घटा है उसने हर आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।
क्योंकि इस दल बदल को कांग्रेस ने ऑपरेशन लोटस की संज्ञा दी। इसमें धन बल के प्रयोग का आरोप लगाकर बालूगंज थाना में एफ आई आर तक दर्ज की गई। दूसरी ओर दल बदल कर गये कांग्रेस के नेताओं ने मुख्यमंत्री को घेरना शुरू कर दिया। उच्च न्यायालय में मानहानि के मामले दायर हुये। इन्हीं कांग्रेसियों की आक्रामकता का परिणाम हमीरपुर और नादौन में ई.डी. और आयकर की छापेमारी मानी जा रही है। जिसमें दो लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और दो फरार कहे जा रहे हैं। अब इसी प्रकरण में युद्ध चन्द बैंस शामिल हो गये हैं। बैंस ने दावा किया है कि ई.डी में वही शिकायतकर्ता हैं। विजिलैन्स द्वारा बैंस के खिलाफ दायर की गई एफ.आई.आर. से भी बैंस के दावे को बल मिलता है। लेकिन ई.डी. की छापेमारी और दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद भाजपा की आक्रामकता बहुत कुन्द हो गई है। जयराम के अलावा भाजपा के दूसरे नेताओं की चुप्पी अब सवालों में आ गई है। जबकि भाजपा नेताओं ने ही 2017 में हमीरपुर में पत्रकार वार्ताएं आयोजित करके तब सुक्खू के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खोला था। यही नहीं बीजेपी में गये कांग्रेसियों की भी जो आक्रामकता एक समय थी उसमें भी बहुत बदलाव आ गया है। जिस तरह धन बल के आरोप को लेकर दर्ज मामले में सरकार की पुलिस की आक्रामकता थी उसमें भी जैसे-जैसे कमी आती रही है उसी अनुपात में दूसरी ओर भी चुप्पी चल रही है।
इस परिदृश्य में यह सवाल खड़ा होने लगा है कि भाजपा में निश्चित रूप से एक अघोषित खेमेबाजी चल पड़ी है। माना जा रहा है कि भाजपा में जगत प्रकाश नड्डा और अनुराग ठाकुर भी जयराम के साथ प्रदेश नेतृत्व की रेस में शामिल हो गये हैं। भाजपा में उभरी इस अघोषित खेमेबाजी का सुक्खू सरकार को अपरोक्ष में कितना लाभ मिलता है और इसमें भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों को क्या हासिल होता है इस पर अभी से सब की नजरें लग गई हैं। क्योंकि इस समय हो रहे संगठन के चुनाव में इन नये भाजपाइयों की कोई बड़ी सक्रियता सामने नहीं आयी है। इससे सभी लोग अपने-अपने तरीके से ई.डी. और सीबीआई की अगली कारवाई की प्रतीक्षा में आ गये हैं। माना जा रहा है की सुक्खू प्रशासन में बैठे भाजपा के हितैशियों ने अब सरकार के खिलाफ अपने तरीके से रणनीति बनाकर उतरने की योजना तैयार कर ली है और कभी भी 1990 की तर्ज पर एक बड़ा कर्मचारी आन्दोलन देखने को मिल सकता है।

300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की जगह बिजली सब्सिडी बन्द करने पर पहुंची सरकार

  • आरबीआई के मुताबिक प्रदेश का कर्ज़ भार जीडीपी के 42.5% तक पहुंचा
  • पंजाब के बाद कर्ज भार में दूसरे स्थान पर पहुंचा हिमाचल
  • सरकार के फैसलों से हाईकमान भी आई कठघरे में
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश सरकार द्वारा बिजली पर दी जा रही सब्सिडी छोड़ दी है। सब्सिडी छोड़ने की घोषणा उन्होंने वाकायदा एक पत्रकार वार्ता बुलाकर उसमें की है। उन्होंने कहा है कि उनके नाम पर पांच बिजली के मीटर हैं और उन पांचों मीटरों पर मिल रही सब्सिडी उन्होंने छोड़ दी है। पत्रकार वार्ता में ही सब्सिडी छोड़ने का फॉर्म भरकर बिजली बोर्ड के अध्यक्ष को सौंप दिया। उन्होंने दूसरे संपन्न लोगों से भी यह सब्सिडी छोड़ने का आग्रह किया। उनके आग्रह पर लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य ने भी तुरन्त यह सब्सिडी छोड़ने का फॉर्म भर दिया। मुख्यमंत्री और विक्रमादित्य सिंह दोनों ही निश्चित रूप से संपन्न व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं। इसलिए उन्हें यह सब्सिडी छोड़नी ही चाहिए थी। उन्हीं की तरह दूसरे संपन्न राजनेताओं को भी ऐसा ही अनुसरण करना चाहिए। सरकार ने सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए इस आशय का शायद आदेश भी जारी कर दिया है। जो शायद सेवानिवृत्त लोगों पर भी बराबर लागू होगा। सरकार के इस आदेश से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश वित्तीय संकट से गुजर रहा है। वित्तीय संसाधन जुटाना के लिये जिस तरह के फैसले इस सरकार ने लिये हैं जिन सेवाओं और वस्तुओं पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष कर भार बढ़ाया है उससे जो सवाल खड़े हुये उसे न केवल प्रदेश कांग्रेस बल्कि कांग्रेस हाईकमान तक सवालों के घेरे में आ जाता है।
सुक्खू सरकार को सत्ता में आये दो वर्ष हो गये हैं। मंत्रिमण्डल का कोई भी सदस्य ऐसा नहीं है जो पहली बार ही विधायक बना हो। हर सरकार हर वर्ष बजट विधानसभा में रखती है और पास करवाती आयी है। हर बजट कर मुक्त बजट प्रचारित होता रहा है। हर बजट में प्रदेश की वित्तीय स्थिति का पूरा विवरण माननीय के सामने आता है। हर वर्ष कैग रिपोर्ट और आर्थिक सर्वेक्षण विधानसभा के पटल पर रखे जाते रहे हैं और आगे भी रहेंगे ही। इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि किसी भी राजनीतिक दल को चुनावों में उतरते वक्त अपना घोषणा पत्र जारी करते हुये प्रदेश की वित्तीय स्थिति की जानकारी न रही हो। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि जब दो वर्ष पहले कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश की जनता को दस गारंटीयां दी थी तब उसे प्रदेश की वित्तीय स्थिति की पूरी जानकारी रही ही होगी। लेकिन सरकार बनने के बाद जिस तरह का आचरण गारंटीयों को लेकर सरकार का रहा है और जिस तरह से शौचालय शुल्क लगाने तक स्थिति आ पहुंची है उससे कुछ अलग ही तस्वीर उभरती है। क्योंकि हर जिस तरह के ‘किन्तु -परन्तु’ की शर्तें लगाई गयी हैं उससे हर गारंटी की लाभार्थियों के आंकड़ों में जो व्यवहारिक कमी आयी है उसने सरकार की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। सरकार के फैसले राष्ट्रीय स्तर पर निन्दा और चर्चा का विषय बने हैं। प्रधानमंत्री तक ने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हिमाचल के फैसलों पर कांग्रेस की समझ पर कड़े हमले किये हैं। बल्कि हिमाचल के फैसले ही प्रधानमंत्री की आक्रमकता का आधार बने हैं।
जिस तरह के भ्रष्टाचार के आरोप सरकार पर लगने शुरू हुये हैं उससे कांग्रेस की कार्यशैली और खर्चों पर न चाहे ही सरकार के गठन से लेकर अब तक नजर जानी शुरू हो गयी है। जिस सरकार को हर माह कर्ज लेना पड़ रहा हो वहां मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रस्तावित कायाकल्प पर 19 करोड़ के खर्च का अनुमान स्वभाविक रूप से विपक्ष के निशाने पर आयेगा ही। क्योंकि रिजर्व बैंक की 2024 में आयी रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज भार में हिमाचल राष्ट्रीय स्तर पर पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है। पंजाब का कर्ज जीडीपी के अनुपात में 44.1% है और हिमाचल 42.5% है। जहां कर्ज जीडीपी का 42.5 प्रतिशत पहुंच जाये वहां पर विकास सिर्फ राजनेताओं के भाषणों तक ही सीमित रहता है जमीन पर नहीं पहुंचता है। क्योंकि सारे संसाधन इस कर्ज का ब्याज चुकाने में ही लग जाते हैं और जब सरकार अपने खर्चों पर लगाम लगाने में सक्षम न रह जाये तो स्थिति और भी भयानक हो जाती है। जो पार्टी दो वर्ष पहले 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वायदा करके आयी हो उसे आज सब्सिडी छोड़ने के आदेश और आग्रह करने पड़ जायें उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। बल्कि सरकार के फैसले हाईकमान के लिये विश्वसनीयता का संकट खड़ा करते जा रहे हैं।

टैंकर सप्लाई घोटाले से सुक्खू सरकार आयी सवालों में

  • क्या इस तरह का घोटाला प्रदेश के अन्य भागों में भी घटा होगा उठने लगा सवाल
  • क्या राजनीतिक संरक्षण के बिना ऐसा हो सकता है?
  • क्या शिमला जिले के नेताओं का सूचना तन्त्र सही में कमजोर है?

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पुलिस अधिनियम में संशोधन करके प्रदेश में किसी भी सरकारी कर्मचारियों को सरकार की पूर्व अनुमति के बिना गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। इस संशोधन के बाद पुलिस किसी भी आपराधिक मामले में सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार नहीं कर सकती। यह संशोधन केन्द्र से अनुमोदन मिलने के बाद कानून बन जायेगा। इस संशोधन से सरकार की नीयत और नीति का पता चल जाता है। वैसे इसी सत्र में मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून लाने की भी घोषणा की है। सरकार जब सदन में यह सब कर रही थी तब शिमला के ठियोग में पानी सप्लाई का बहुचर्चित घोटाला घट चुका था। इस घोटाले की जानकारी सरकार को भी हो चुकी थी। क्योंकि नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के मुताबिक टैंकर वाले ने ही नवम्बर में एक पत्रकार वार्ता करके इस घोटाले का पर्दाफाश किया था। जयराम के मुताबिक इस घोटाले की शिकायत काफी समय तक एसडीएम ठियोग के पास लंबित रही है। एसडीएम के पास ऐसी शिकायत आने का अर्थ है कि प्रशासन के उच्च स्तरों तक भी इस घोटाले की सूचना रही होगी। घोटाले में जिस तरह से दस छोटे-बड़े अभियंताओं को निलंबित किया गया है और जितनी पेमेंट्स इसमें हो चुकी है उससे इस घोटाले का आकार सामने आ जाता है। इसमें जितने लोगों को निलंबित किया गया है उसमें एक मृतक व्यक्ति भी एक भाजपा पदाधिकारी के ब्यान के मुताबिक शामिल है। इससे यह सामने आता है कि इस घोटाले की जांच कितनी गंभीरता से की जा रही है। इसी के साथ यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि यदि ठियोग में यह सब घट सकता है तो प्रदेश के अन्य भागों में क्यों नहीं जहां भी इस तरह से पानी की सप्लाई की गई होगी।
ठियोग क्षेत्र शिमला राजधानी से सटा है। शिमला जिले से मंत्रिमंडल में तीन मंत्री हैं। शिमला से ताल्लुक रखने वाले सलाहकार और ओ.एस.डी. भी मुख्यमंत्री की टीम में शामिल हैं। शिमला में इतना राजनीतिक प्रतिनिधित्व सरकार में होते हुये भी इस घोटाले की भनक तक न लग पाना अपने में ही कई सवाल खड़े कर जाता है। क्या इन राजनेताओं का सूचना तंत्र इतना कमजोर था? जबकि सरकार में लोक निर्माण और जल शक्ति विभागों में सप्लायर बनने के लिये राजनीतिक रिश्ते होना एक अघोषित और व्यवहारिक शर्त रहती ही है। फिर यह सवाल आता है कि जब टैंकरों से पानी सप्लाई करने की आवश्यकता महसूस की गई होगी तब सबसे पहले उन गांव की सूची तैयार की गई होगी जहां पानी सप्लाई किया जाना था। यह रिकॉर्ड पर आया होगा कि वहां सड़क है या नहीं। घोटाले के विवरण में यह सामने आया है कि जहां सड़क ही नहीं थी वहां भी गाड़ियों से सप्लाई दी गई और कई चक्कर लगाये गये। इससे यह सवाल उठता है कि कहीं उन गांवों को भी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क से जुड़ा हुआ तो नहीं दिखा रखा है। अन्यथा कोई भी अधिकारी रिकॉर्ड पर इतनी गलती करने की मूर्खता नहीं करेगा की सड़क न होते हुये भी गाड़ी से वहां पानी की सप्लाई का ऑर्डर दे दें। इससे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी जांच के दायरे में आ जाती है। यदि अधिकारियों/कर्मचारियों ने इस सब को नजरअंदाज करते हुये इस तरह के कारनामों को अंजाम दे दिया है तो इससे स्पष्ट हो जाता है की पूरी व्यवस्था ही नीचे तक भ्रष्ट हो चुकी है।
इसी के साथ क्षेत्र के स्थानीय नेतृत्व जिसमें पंचायत बी.डी.सी. और जिला परिषद तक सब सवालों के घेरे में आ जाते हैं। जिस तरह का घोटाला घटा हुआ लग रहा है उसमें ऐसा लगता है कि सब कुछ एक दफ्तर में बैठकर ही अंजाम दे दिया गया। जहां करोड़ों में पेमेन्ट हुई है उसमें अच्छे स्तर का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रहना अनिवार्य हो जाता है। फिर इसमें पैसा एस.डी.आर.एफ और एन.डी.आर.एफ से दिया गया है। विपक्ष बहुत अरसे से आपदा राहत में घोटाला होने का आरोप लगाता आया है जो इससे स्वतः ही प्रमाणित हो जाता है। केंद्र पर भी इस घोटाले का प्रभाव पड़ेगा। केंद्र आसानी से राज्य के किसी भी आग्रह को भविष्य में स्वीकार नहीं कर पायेगा। कांग्रेस हाईकमान भी इस घोटाले को सामने रखते हुये प्रदेश नेतृत्व को लम्बे अरसे तक अभयदान नहीं दे सकेगी। और न ही इस घोटाले को विपक्ष की सरकार गिराने की चाल करार दे पायेगी। बल्कि यह घोटाला कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर भी सवाल उठाने का कारण बन जायेगा।

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