सुक्खू के खुलासे की प्रासंगिकता पर उठने लगे सवाल
भाजपा में शामिल हुये कांग्रेस के बागीयों की राजनीतिक सुरक्षा की जिम्मेदारी अनचाहेे ही अनुराग-धूमल पर आ गयी।
सुक्खू का खुलासा कहीं बैक फायर न कर जाये उठने लगी आशंका
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने एक चुनावी जनसभा में खुलासा किया है की प्रेम कुमार धूमल को 2017 में एक षडयंत्र करके सुजानपुर से टिकट देकर हरवाया गया था। स्मरणीय है कि 2017 में धूमल ने सुजानपुर में राजेन्द्र राणा के खिलाफ चुनाव लड़ा था और बड़े ही कम अन्तर से यह चुनाव हार गये थे। तब वह प्रदेश के मुख्यमंत्राी थे। राजेन्द्र राणा कांग्रेस के उम्मीदवार थे। 2017 में यदि धूमल न हारते तो जयराम की जगह वह प्रदेश के मुख्यमंत्री होते। सुजानपुर में धूमल के साथ क्या षडयंत्र हुआ था इसका कोई विस्तृत खुलासा तो सुखविंदर सिंह सुक्खू ने नहीं किया है। लेकिन प्रदेश के राजनीतिक हल्कों में एक ऐसी बहस को छेड़ दिया है जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। सुक्खू भी धूमल की तरह हमीरपुर जिले से ही ताल्लुक रखते हैं। जिस राजेन्द्र राणा ने धूमल को हराकर मुख्यमंत्री की कुर्सी मण्डी जाने के हालात पैदा किये थे आज वही राणा सुक्खू के खिलाफ हुई बगावत का मुख्य किरदार है। ऐसे में राणा के प्रति सुक्खू का रोष और आक्रोश अपनी जगह जायज है। लेकिन इस खेल में धूमल को इस तरह एक चुनावी जनसभा में इंगित करना एक बहुत बड़ी राजनीतिक चाल है। क्योंकि 2017 में चुनाव हारने के बाद वह आज तक पार्टी नेतृत्व के साथ न प्रदेश में और न ही केंद्र में किसी टकराव में आये हैं। हालांकि उनके खिलाफ इस दौरान मानव भारती विश्वविद्यालय के प्रकरण को उछाला गया था। उसके परिणाम दूरगामी और घातक होते यदि दस्तावेज साक्ष्य उनके खिलाफ होते। इस प्रकरण को उछालने वालों को इन साक्ष्यों की जानकारी ही नहीं थी और उस समय जयराम प्रशासन की भी यही सबसे बड़ी भूल थी।
लेकिन आज धूमल के खिलाफ 2017 में हुये षडयंत्र का प्रसंग चुनावी जनसभा में उछाल कर सुक्खू क्या हित साधना चाहते हैं यह राजनीतिक विश्लेषकों के लिये एक बड़ा सवाल बन गया है। क्योंकि आज राजेन्द्र राणा अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाकर भाजपा में शामिल हुये हैं। कांग्रेस में राज्यसभा चुनाव के दौरान हुआ क्रॉस वोटिंग का खेल भाजपा प्रायोजित था यह कांग्रेस का आज सबसे बड़ा आरोप और इस चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बना हुआ है। क्योंकि भाजपा ने सभी क्रॉस वोटिंग करने वालों को इस चुनाव में प्रत्याशी बनाया है। हालांकि इसके लिये प्रदेश भाजपा में थोड़ा रोष भी देखने को मिला है। भाजपा में सब केन्द्र की अनुमति के बाद हुआ है। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की किसी प्रदेश सरकार को अस्थिर करना भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता बन गया था और इसके लिये हिमाचल सबसे उपयुक्त स्थान था। क्योंकि यहां पर विधायकों में नेतृत्व के खिलाफ रोष के स्वर सार्वजनिक होते जा रहे थे और हाईकमान के संज्ञान तक आ चुके थे। भाजपा की यह आवश्यकता इसलिये थी क्योंकि उसे व्यवहारिक रूप से कांग्रेस को अक्षम प्रमाणित करना था। इसी के लिये कांग्रेस के नेताओं को भाजपा में शामिल करवाया जा रहा था।
इस परिप्रेक्ष में यह कहना गलत होगा कि हिमाचल में जो कुछ घटा उस पर भाजपा हाईकमान की स्वीकृति और निर्देशन नही था। ऐसे में आज प्रदेश भाजपा का कोई भी बड़ा नेता केंद्र द्वारा निर्देशित किसी की योजना का विरोध करने की कल्पना भी नहीं कर सकता। निर्दलीय विधायकों के प्रकरण में आयी जटिलता के लिये प्रदेश नेतृत्व कितना जिम्मेदार है और छः बागियों के भाजपा उम्मीदवार बनने के बाद चुनाव में कौन परोक्ष/ अपरोक्ष में भीतरघात करने की जद में आता है इस पर कई स्तरों पर निगरानी चल रही है। कांग्रेस भाजपा पर धन बल के सहारे सुक्खू सरकार को गिराने के प्रयास करने के आरोप लगा रही है। लेकिन प्रदेश भाजपा के कई बड़े नेता इन आरोपों पर मौन साधकर चले हुये हैं। मुख्यमंत्री सुक्खू ने इसी मौन पर धूमल के माध्यम से प्रहार करने का प्रयास किया है ताकि भाजपा के अपने भीतर परोक्ष में एक वाकयुद्ध की स्थिति उभर जाये। वैसे आज तक सुक्खू ने धूमल-अनुराग के खिलाफ कभी जुबान नहीं खोली है और न ही धूमल-अनुराग ने सुक्खू पर कभी कोई निशाना साधा है।
ऐसे में सुक्खू के धूमल पर अपरोक्ष निशानों का असर क्या होता है यह देखने लाईक होगा। क्योंकि हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में यदि किसी भी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को कोई परेशानी या फिर हार का सामना करना पड़ता है तो उसकी सीधी जिम्मेदारी धूमल-अनुराग पर आ जायेे इसकी पृष्ठभूमि सुक्खू के खुलासे ने तैयार कर दी है। अब तक कांग्रेस और भाजपा में हमीरपुर क्षेत्र ए बी टीमें होने के जो आरोप लगते थे सुक्खू के खुलासे ने उसे पुखता कर दिया है। क्योंकि सुक्खू के ब्यान ने भाजपा में बैठे धूमल-अनुराग विरोधियों को भी मुखर होने का मौका दे दिया है।