Thursday, 18 September 2025
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रोजगार पर आये सवालों का जवाब सूचना एकत्रित की जा रही है क्यों और कब तक

शिमला/शैल। कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में प्रतिवर्ष एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रदेश के युवाओं से वादा किया था। यह रोजगार प्राइवेट और सरकारी दोनों क्षेत्रों में उपलब्ध करवाया जाना था। प्रदेश में सरकार ही सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। इसलिये सरकार में कितने पद विभिन्न विभागों में खाली है इसका पता लगाने के लिये एक मंत्री स्तरीय कमेटी बनायी गयी थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार में 70,000 पद खाली होने की सूचना आयी थी। सरकार में अराजपत्रित कर्मचारियों की भर्ती करने के लिये अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड गठित था। लेकिन इस बोर्ड पर भ्रष्टाचार और परीक्षाओं में पेपर लीक के आरोप लगने के कारण इसे भंग कर दिया गया। भ्रष्टाचार और पेपर लीक के मामलों पर आपराधिक मामले दर्ज किये। इन मामलों की जांच अभी तक चल रही है। अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड को भंग करने के बाद इसका काम भी प्रदेश लोक सेवा आयोग को सौंप दिया गया था। प्रदेश के रोजगार कार्यालय में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या नौ लाख से बढ़ गयी है। बेरोजगारी के मामले में प्रदेश देश के पहले छः राज्यों में शामिल हो गया है। प्रदेश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है। उद्योगों के प्रदेश से पलायन करके दूसरे प्रदेशों में जाने के समाचार बराबर आ रहे हैं। उद्योगों के पलायन को विपक्ष लगातार मुद्दा बना रहा है। नये उद्योग नहीं के बराबर आ रहे हैं। इस वस्तुस्थिति में युवाओं को रोजगार कैसे मिल पायेगा यह एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
दूसरी और सरकार मंत्रिमंडल की लगभग हर बैठक में किसी न किसी विभाग में भर्तियां करने की अनुशंसा करती आ रही है। पिछले दिनों सरकार के एक ब्यान में प्रदेश में तीस हजार लोगों को नौकरियां देने का दावा किया गया है। लेकिन प्रदेश के बेरोजगार सरकार के इस दावे से सहमत नहीं हैं। उन्होंने सरकार के आंकड़ों को एकदम गलत करार दिया है। बेरोजगार युवाओं ने शिमला में विधानसभा सत्र के दौरान एक प्रदर्शन में यहां तक कह दिया कि या तो उन्हें नौकरी दे दो या गोली मार दो। युवाओं की यह हताशा एक गंभीर चेतावनी है। आने वाले दिनों में युवाओं के आक्रोश और रोष का तंत्र को सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में यह जांचना आवश्यक हो जाता है कि क्या सरकार के दावे और आंकड़े जमीनी हकीकत बन पाये हैं या नहीं। इसके लिये विधानसभा सत्र में सदन में विधायकों द्वारा इस संद्धर्भ में पूछे गये परोक्ष/अपरोक्ष सवालों पर सरकार द्वारा दिये गये उत्तरों पर नजर डालने से बेहतर और कोई साधन नहीं हो सकता।
सत्र के आखिरी दिन दस तारीख को कुछ विधायकों द्वारा पूछे गये प्रश्न और उनके उत्तर पाठकों के सामने रखना आवश्यक हो जाता है। विधायक भुवनेश्वर गॉड का तारांकित प्रश्न था गत तीन वर्षों में दिनांक 15 -01-24 तक विभिन्न विभागों/ निगमों/बोर्डों में कितने मल्टी पर्पज (एमपीडब्ल्यू) सरकार द्वारा किस-किस नीति के तहत नियुक्त किये गये ब्योरा विभाग वार दें। इसका जवाब आया सूचना एकत्रित की जा रही है। दूसरा प्रश्न भी भुवनेश्वर गॉड का ही था गत तीन वर्षों में विभिन्न विभागों/बोर्डों/ निगमों में किस-किस कंपनी को आउटसोर्स भर्ती हेतु नियुक्त/कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है और कितने कर्मचारी आउटसोर्स पर इन कंपनियों द्वारा रखे गये तथा इन भर्तियों हेतु क्या-क्या मापदण्ड रखे गये ब्योरा विभागवार/पदवार दें। इसका जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है ही आया है।
इसी दिन विधायक दीप राज और जीतराम कटवाल का संयुक्त प्रश्न था गत डेढ़ वर्ष में दिनांक 31-7-24 तक सरकार द्वारा सरकारी तथा निजी स्तर पर कितने लोगों को रोजगार प्रदान किया गया तथा प्रदेश में बेरोजगारी दर क्या है? इसी दिन विधायक केवल सिंह पठानिया का अंतारंकित प्रश्न था प्रदेश में वर्तमान में समस्त श्रेणियां में कुल कितने पद रिक्त हैं, इनमें से कितने पद काफी समय से बैकलॉग में चल रहे हैं और सरकार द्वारा गत वर्ष में 15-1-24 तक कितने लोगों को रोजगार प्रदान किया गया ब्योरा विभागवार तथा पदवार दें- इसका जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है -ही आया है। यह कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न ही पाठकों के सामने रखे गये हैं इस संद्धर्भ में पूछे गये सभी प्रश्नों का उत्तर इसी तरह टाल दिया गया है। सरकार को सत्ता में आये दो वर्ष होने जा रहे हैं। बेरोजगारी एक गंभीर समस्या होती जा रही है बेरोजगारी पर तो सरकार से ठोस जवाब चाहिये। यदि अब भी सरकार इस पर कुछ भी ठोस बताने को तैयार नहीं है तो सरकार को लेकर क्या आकलन बनता है इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।

यह वित्तीय संकट कहीं राजनीतिक संकट न बन जाये उभरने लगी आशंकाएं

  • जब बजट के मुताबिक 2024-25 का वित्तीय वर्ष 10783.87 करोड़ के घाटे पर बन्द हो रहा है तो वित्तीय संकट कैसे
  • बजट पूरा करने के लिये केवल 10783.87 करोड़ का कर्ज ही अपेक्षित था
  • महिला कांग्रेस के आन्दोलन का राजनीतिक अर्थ क्या है?
शिमला/शैल। हिमाचल का वित्तीय संकट कहीं कांग्रेस के अन्दर एक और विद्रोह का कारण न बन जाये इसकी आशंका लगातार बढ़ती जा रही है। इसका संकेत उस समय स्पष्ट हो गया था जब पिछले दिनों महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा अलका लांबा को भाजपा विधायक पूर्व अध्यक्ष हंसराज के खिलाफ एक महिला द्वारा एफ.आई.आर. करवाने के बाद भी प्रदेश पुलिस द्वारा आगे की कारवाई नहीं की गयी। इससे यह सन्देश गया था कि शायद राज्य सरकार इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती। महिला कांग्रेस ने विधानसभा के बाहर ही इस मामले में प्रदर्शन किया था। महिला कांग्रेस का यह प्रदर्शन भाजपा विधायक से ज्यादा अपनी ही सुक्खु सरकार के खिलाफ था। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस कार्यकर्ता कहीं न कहीं अपनी ही सरकार की कार्य प्रणाली से खुश नहीं हैं। अब सरकार का वित्तीय संकट खुलकर सामने आ गया है जब मुख्यमंत्री स्वयं इस संकट पर विधानसभा में अपना ब्यान रख चुके हैं तब उसके बाद यह कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है कि कोई संकट नहीं है। यह फैसला तो वित्तीय अनुशासन लाने के लिये लिया गया था। संकट का सच उस समय स्वयं खुलकर सामने आ गया जब कर्मचारी और पैन्शनरों को समय पर भुगतान नहीं हो सका। इस संकट के लिये कौन जिम्मेदार है यह सुनिश्चित करने से ज्यादा यह महत्वपूर्ण हो गया है कि इस संकट का असर कहां-कहां पड़ेगा। यह स्पष्ट है कि संकट के चलते चुनाव के दौरान जनता को दी गयी एक भी गारंटी पर सरकार व्यवहारिक रूप से अमल नहीं कर पायेगी। बल्कि पहले से मिल रही सुविधाओं पर कटौती की जाने लगी है। यह स्थिति किसी भी राजनीतिक कार्यकर्ता के लिये सुखद नहीं हो सकती क्योंकि उसे जनता के बीच जाना होता है और उसके सवालों का जवाब देना होता है। कांग्रेस का कार्यकर्ता इसी दुविधा से गुजर रहा है। अभी चार राज्यों के चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा प्रदेश की स्थिति को इन राज्यों में उछालेगी। विश्लेषकों के मुताबिक राज्य की वित्तीय स्थिति पर सदन में मुख्यमंत्री द्वारा ऐसा ब्यान नहीं रखा जाना चाहिए था। यह ब्यान रखना अपने में आत्मघाती कदम बन जाता है। माना जा रहा है कि सुक्खू के सलाहकार इस मामले में भारी गलती कर गये हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो यह उभर रहा है कि जब चालू वित्त वर्ष के लिये फरवरी में सदन में बजट पारित किया गया था तब उसमें वर्ष के अन्त में सिर्फ 10783.87 करोड़ का घाटा दिखाया गया था। जिसका अर्थ यह है कि वर्ष के राजस्व और पूंजीगत व्यय को पूरा करने के लिये यदि सरकार को कोई कर्ज भी लेना पड़ता है तो वह इससे अधिक का नहीं हो सकता था। क्योंकि बजट में तो हर चीज का सही आकलन और हिसाब रखा जाता है। सदन में पारित बजट के बाद प्रदेश की वित्तीय स्थिति का इस मुकाम तक पहुंच जाना अपने में कई गंभीर स्वर खड़े कर देता है। बजट दस्तावेज के आईने में वर्तमान स्थिति का उभरना सामान्य समझ के बाहर की बात है। फिर अभी सरकार को तीन वर्ष का और कार्यकाल पूरा करना है। यह स्थिति प्रदेश के कार्यकर्ताओं से ज्यादा कांग्रेस हाई कमान के लिए चिंताजनक है। क्योंकि आज यदि किन्हीं कारणों से प्रदेश में चुनाव की स्थिति खड़ी हो जाये तो कांग्रेस का पुनः सत्ता में आना संभव नहीं होगा। यह है सदन में पारित 2024-25 का दस्तावेज। इस बजट के बाद कई सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाये गये हैं। इस बढ़ौतरी के बाद भी वेतन भत्ते निलंबित करने की स्थिति आना अपने में चिंताजनक है।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

क्या भाजपा का अघोषित समर्थन है सुक्खू सरकार को?

  • अपने ही उठाये मुद्दों पर भाजपा की खामोशी से उठा सवाल
  • सीपीएस मुद्दे पर फैसला रिजर्व होने पर भाजपा को याचिकाकर्ता होने के नाते इसे शीघ्र सुनाये जाने की गुहार का हक हासिल है
  • सुधीर शर्मा और होशियार सिंह द्वारा उठाये मुद्दों पर भाजपा की खामोशी सवालों में

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने अभी सस्ते राशन के नाम पर मिलने वाले आटे के दाम 2.70 पैसे और चावल 3 रूपये किलो बढ़ा दिये हैं। सीमेंट के दाम दस रूपये बढ़ा दिये हैं। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा है कि इस कांग्रेस सरकार के शासन में सीमेंट के दाम 70 रूपये प्रति बैग बढ़ाये गये हैं। नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा है कि जितना कर्ज उन्होंने पूरे कार्यकाल में लिया था उतना इस सरकार ने पौने दो साल में ही ले लिया है। जिस सरकार को सस्ते राशन के दाम बढ़ाने पड़ जाये उसकी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार प्रतिमाह एक हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज ले रही है। इतना कर्ज लेने के बाद भी सरकार कर्मचारियों, पैन्शनरों के देह भते और संशोधित वेतनमान के एरियर नहीं दे पायी है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाने के लिये अध्यापक नहीं है। बच्चों को अपने आप पढ़ने के लिए कहा गया है। जब तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी से इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि टीचर भर्ती करने में डेढ़ वर्ष लगेगा। क्योंकि सरकार के पास पैसा नहीं है। जब संबंधित विभाग का मंत्री यह कहेगा तो उससे पूरी सरकार की कथनी और करनी का पता चल जाता है। कड़ी मेहनत कर प्रवेश परीक्षा में मैरिट के आधार पर बच्चों  को सरकारी कॉलेजों में दाखिला मिला है और मंत्री यह कहे कि सरकार ने बच्चों को दाखिला लेने के लिये नहीं कहा था तो इससे सरकार की युवाओं के प्रति संवेदनशीलता और उसकी घोषणाओं का व्यवहारिक सच सामने आ जाता है।
सरकार ने विभिन्न सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर पांच हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाने का दावा किया है। कर्ज और दाम बढ़ाने के बाद भी जो सरकार कॉलेज में अध्यापकों का प्रबन्ध करने को प्राथमिकता न माने उसके बारे में आम आदमी क्या राय बनायेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसी वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर इस पैसे का निवेश हो कहां रहा है? कांग्रेस का हर नेता इस पर चुप है क्योंकि हाईकमान का डर है। विपक्ष सरकार की इस स्थिति पर केवल रस्म अदायगी के लिये ब्यानबाजी कर रहा है। गंभीर मुद्दों पर विपक्ष की चुप्पी सन्देहास्पद है। सरकार ने जब पिछले छः माह के फैसले पलटते हुये सैकड़ो संस्थान बन्द कर दिये थे तब उस पर पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा करने के बाद उच्च न्यायालय में इस संद्धर्भ में याचिका दायर की थी। उसके बाद मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में भाजपा के एक दर्जन नेताओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस याचिका पर लम्बे समय से फैसला सुरक्षित चल रहा है। भाजपा नेताओं को याचिकाकर्ता होने के नाते यह हक हासिल है कि यह फैसला शीघ्र सुनाये जाने की अदालत से गुहार लगाये। लेकिन भाजपा चुप है क्यों? यही नहीं विधानसभा उपचुनावों के दौरान सुधीर शर्मा ने नादौन एचआरटीसी द्वारा बनाये जा रहे ई-बस स्टैंड की जमीन खरीद का मामला उठाया था लेकिन अब पूरी भाजपा इस पर चुप है। देहरा में भाजपा प्रत्याशी होशियार सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश ठाकुर के चुनाव शपथ पत्र पर गंभीर शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर होशियार सिंह और पूरा भाजपा नेतृत्व खामोश है। जबकि इन मामलों की गंभीरता समझने वाले जानते हैं कि इनके उठने से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल जायेगा।
आज जब सरकार को संपन्नता के नाम पर आम आदमी की सुविधाओं में कटौती करनी पड़ रही है तब क्या यह सवाल विपक्ष को नहीं पूछना चाहिये की आखिर पैसे का निवेश हो कहां रहा है? क्या सरकार सही में फिजूल खर्ची कर रही है? जनता के मुद्दों पर विपक्ष की चुप्पी का अर्थ है सरकार को अघोषित समर्थन। यदि भाजपा द्वारा अदालत तक पहुंचाये गये मुद्दे सही में उसकी नजर में अर्थहीन है तो उन्हें तुरन्त प्रभाव से वापस लेकर सरकार को बिना किसी रुकावट के काम करने देना चाहिये। यदि भाजपा अपने में बंटी हुई है तो उसे यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिये। यह सही है कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने सामूहिक नेतृत्व के नाम पर लड़ा था। इसलिये जनता कांग्रेस को सत्ता में लायी थी। आज कांग्रेस का नेतृत्व किस तरह से परफारम कर रहा है उसे झेलना जनता की मजबूरी है लेकिन जनता की इस मजबूरी का स्वभाविक लाभ भाजपा को ही मिलेगा इसे गारंटी नहीं समझा जाना चाहिये। आज इस वित्तीय वर्ष के सात माह शेष बचे हैं अगले दो माह में सरकार की कर्ज लेने की सीमा भी पूरी हो जायेगी। उसके बाद सरकार कैसे चलेगी यह इस समय का गंभीर मुद्दा है। क्या इस मुद्दे पर इस विधानसभा सत्र में चर्चा हो पायेगी इस पर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी रहेगी।

कर्मचारी आन्दोलन को हल्के से लेना घातक होगा

  • आन्दोलन ने सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी थी। प्रदेश की जनता ने इस चेतावनी पर कोई सवाल नहीं उठाये। सरकार ने इस चेतावनी का कवर लेकर प्रदेश की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये जो कदम उठाये उन कदमों के तहत मध्यम वर्ग को मिल रही सुविधाओं पर कटौती की जाने लगी। जो आज सस्ते राशन के दाम बढ़ाने तक पहुंच गयी है। इस कटौती के साथ ही प्रदेश पर कर्ज भार भी बढ़ने लगा। लेकिन इन सारे कदमों के साथ सरकार अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगा पायी। सरकार के बड़े अधिकारियों के खिलाफ बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगे। लेकिन कोई जांच नहीं हुई। उल्टा जब मीडिया ने इन मामलों को उठाया तो मीडिया को ही डराने धमकाने का चलन शुरू हो गया। भ्रष्टाचार की जो शिकायतें मुख्यमंत्री के पास भी पहुंची उन पर भी कोई कारवाई नहीं हुई। कुल मिलाकर हालात यहां तक पहुंच गये की सरकार पर मित्रों की सरकार होने का तगमा लग गया। यह स्वभाविक है कि जब परिवार संकट में होता है तो सबसे पहले परिवार का मुखिया अपने खर्चों में कटौती करता है तब परिवार उसकी बात पर विश्वास करता है। लेकिन सुक्खू सरकार इस स्थापित नियम पर न चलकर कर्ज लेकर घी पीने के रास्ते पर चल पड़ी।
सरकार और कर्मचारी एक दूसरे का पूरक होते हैं। फिर आज तो कर्मचारियों का हर वर्ग संगठित है। कर्मचारियों में भी सचिवालय के कर्मचारी तो पूरे तंत्र का मूल होते हैं। क्योंकि सरकार का हर फैसला सचिवालय में ही शक्ल लेता है। सचिवालय का कर्मचारी रूल्स ऑफ बिजनेस का जानकार होता है। इस कर्मचारी को सरकार की वित्तीय स्थिति और फिजूल खर्ची दोनों की एक साथ जानकारी रहती है। जब सचिवालय के कार्यरत कर्मचारी यह देखता है कि अफसरशाही और राजनेताओं के खर्चों में तो कोई कटौती नहीं हो रही है बल्कि पहले से ज्यादा बढ़ गये हैं और उसके जायज देय हकों की अदायगी करने के लिये कठिन वित्तीय स्थिति का तर्क दिया जा रहा है। तब वह सारे हालात पर अलग से सोचने पर मजबूर हो जाता है। आज सचिवालय कर्मचारी संघ सरकार की कथनी और करनी के अन्तर देखकर अपनी मांगों के लिये आवाज उठाने पर विवश हुआ है। सचिवालय के कर्मचारियों के पास हर मंत्री और अधिकारी की तथ्यात्मक जानकारी रहती है। इसी कर्मचारी ने सरकार की फजूल खर्ची का आंकड़ों सहित खुलासा आम आदमी के सामने रखा है। इसी कर्मचारी के माध्यम से यह बाहर आया है कि आपदा राहत का 114 करोड़ रूपया लैप्स हो गया है। आपदा राहत के नाम पर प्रदेश सरकार केंद्र पर किस तरह हमलावर थी यह पूरा प्रदेश जानता है। यदि 114 करोड़ लैप्स होने का खुलासा सही है तो इससे सरकार की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
मंत्रियों के कार्यालयों पर करोड़ों रुपए खर्च करने का खुलासा इसी सचिवालय कर्मचारियों ने किया है। कमरे के फोटो तक बाहर आये हैं। जब मंत्रियों के कार्यालय पर खर्च हो रहा है तो उसी कड़ी में मुख्यमंत्री कार्यालय पर भी 19 करोड़ खर्च करने का खुलासा इसी सचिवालय कर्मचारी संघ ने सामने रखा है। महंगी गाड़ियों और दूसरे खर्चों पर पूरी बेबाकी से इन कर्मचारियों ने खुलासा सामने रखा है। जो कुछ सरकार की फजूल खर्ची को लेकर कहा गया है वह पूरे प्रदेश में हर आदमी तक पहुंच गया है। सरकार की ओर से फिजूल खर्ची के आरोपों पर कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कर्मचारी आंदोलन की शुरुआत सचिवालय कर्मचारी संघ से हुई है। लेकिन सरकार ने वार्ता के लिये सचिवालय कर्मचारियों को न बुलाकर दूसरे कर्मचारी नेताओं को बुलाया है। क्या सरकार इस तरह कर्मचारियों को विभाजित कर पायेगी इसका पता तो आने वाले दिनों में लगेगा। सचिवालय कर्मचारी संघ विधानसभा सत्र के बाद किस तरह की रणनीति अपनाते हैं यह भी आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा। लेकिन कर्मचारियों ने सरकार की फिजूल खर्ची पर आंकड़ों सहित जो आरोप लगाये हैं वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गये हैं। यदि सरकार ने अपने खर्चों पर क्रियात्मक रूप से कटौती न की तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की ‘‘समर्थ को नहीं दोष गोसांई’’ बराबर लागू होता है

  • प्रवीण गुप्ता प्रकरण से उठी चर्चा
  • विभागीय सचिव से मुख्य सचिव तक कोई भी स्पष्ट निर्देश नहीं दे पाया
शिमला/शैल। सरकारी कर्मचारी/अधिकारी को जब भी सरकारी आवास आबंटित किया जाता है तो संबद्ध व्यक्ति से यह जानकारी मांगी जाती है कि उसके पास उसी स्थान पर जहां वह कार्यरत है और सरकारी आवास चाहता है वहां उसके नाम पर कोई अपना घर तो नहीं है। ऐसी जानकारी यदि गलत पायी जाती है तो ऐसे व्यक्ति को आबंटित सरकारी आवास का आबंटन तुरन्त प्रभाव से रद्द करके उससे तीन गुना फीस वसूल करने की कारवाई के साथ अनुशासनात्मक कारवाई अमल में लाये जाने का प्रावधान है। यह एक स्थापित प्रक्रिया है। लेकिन क्या समर्थ बड़े लोगों के खिलाफ यह कारवाई हो पाती है? इस समय सुक्खू सरकार एक ऐसे ही रोचक मामले में उलझी हुई है। बल्कि जिस विभाग के अधिकारी का ऐसा मामला सामने आया है उसका प्रभार भी स्वयं मुख्यमंत्री के पास ही है।
स्मरणीय है की जयराम सरकार के कार्यकाल में डॉ. रचना गुप्ता को सरकारी आवास आबंटित हुआ था। जिसे 1-8-2018 को उन्होंने आधिकारिक तौर पर ग्रहण कर लिया। यह आबंटन उन्हें बतौर सदस्य लोकसेवा आयोग हुआ था। इसके बाद फरवरी 2022 में यही आवास डॉ. रचना गुप्ता के पति पी.सी. गुप्ता को बतौर मुख्य अभियन्ता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हो गया। जब यह आबंटन पी.सी. गुप्ता के नाम हुआ तब उनसे नियमानुसार अपना घर होने की जानकारी मांगी गई। इस पर पी.सी. गुप्ता ने सूचित किया कि उनके नाम पर शिमला में कोई घर नहीं है। लेकिन इस पर जब दिल्ली के नोएडा निवासी देवाशीष भट्टाचार्य ने शिकायत कर दी कि प्रवीण गुप्ता के नाम पर शिमला के पंथाघाटी में मकान है तो एकदम स्थितियां बदल गयी। एस्टेट विभाग ने प्रवीण गुप्ता से उसकी अपने नाम पर घर होने को लेकर पुनः जानकारी मांगी। इस पर गुप्ता ने सूचित किया कि पंथाघाटी में उनके नाम पर घर है जिसे उन्होंने 1-9-2021 से किराए पर दे रखा है जिससे 61040/- रुपए प्रति माह की आय हो रही है।
इस जानकारी और स्वीकारोक्ति के बाद गुप्ता के खिलाफ आवास आबंटन नियमों के तहत कारवाई करने की प्रक्रिया चल रही है जो अभी तक पूरी नहीं हो पायी है। इस मामले की फाइल जीएडी के मुख्य सचिव तक हो आयी है। लेकिन किसी भी स्तर पर बड़े अधिकारी इस मामले में नियमानुसार कारवाई करने की अनुशंसा ही कर पाये हैं। यही नहीं प्रवीण गुप्ता के नाम पर पंथाघाटी में जो मकान है उसमें फूड कमिश्न का कार्यालय था। जबकि इस मकान का नक्शा व्यवसायिक न होकर आवासीय पारित है। इस भवन की दो मंजिलें शायद पारित नक्शे से बाहर हैं जिसको लेकर नगर निगम में लम्बे अरसे से चल रही कारवाई अभी भी अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंची है। सचिवालय के गलियारों में इस पूरे प्रकरण को लेकर यही चर्चा है कि ‘‘समर्थ को नहीं दोष गोसांई’’ चाहे सरकार जयराम ठाकुर का हो या ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की हो। क्योंकि शायद प्रदूषण नियंत्रण ने भी जनवरी 2023 में एक मामला इन्हीं प्रवीण गुप्ता को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजा था जो अब तक वापस नहीं आया है।

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