Friday, 19 September 2025
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उपयोग को तरसता दस करोड़ के कर्ज से रिपेयर हुआ टाऊन हाॅल

टाऊन हाॅल की दीवारों पर उग आया घास

चर्चो की रिपेयर के 24 करोड़ कहां गये

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने 2014 में एशियन विकास बैंक से 256.99 करोड़ का कर्ज लेकर प्रदेश में हैरिटेज पर्यटन के लिये आधारभूत ढांचा खड़ा करने का फैसला लिया था। इस पैसे से बिलासपुर के मार्कण्डेय और श्री नयनादेवी, ऊना में चिन्तपुरनी तथा हरोली कांगड़ा में पौंग डैम, रनसेर कारू टापू, नगरोटा सूरियां, घमेटा ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, ज्वाला जी, धर्मशाला- मकलोड़गंज, मसरूर और नगरोटा बंगवां, कुल्लु में मनाली के आर्ट एण्ड क्राफ्ट केन्द्र बड़ाग्रां, चम्बा में हैरिटेज सर्किट मण्डी के ऐतिहासिक भवन और शिमला में नालदेहरा का ईको पार्क, रामपुर बुशैहर तथा आसपास के मन्दिर तथा शिमला शहर में विभिन्न कार्य होने थे। यह कार्य अप्रैल 2014 में शुरू हुए थे और 2017 में पूरे होने थे। यह काम हैरिटेज के नाम पर होने थे इसलिये इनकी जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंपी गयी थी और इसके लिये वाकायदा अलग से प्रौजेक्ट डायरैक्टर लगाया गया था। इसके लिये आठ कन्सलटैन्ट भी लगाये गये थे जिन्हें एक वर्ष में ही 4,29,21,353 रूपये फीस दी गयी है।
शिमला में जो काम इसके तहत होने थे उनमें से एक काम शहर के दोनों चर्चों की रिपेयर का था और इसके लिये 17.50 करोड़ खर्च किये जाने थे। रिज स्थित चर्च की रिपेयर के लिये 10-9-2014 को अनुबन्ध भी साईन हो गया था और इसके मुताबिक यह काम दो वर्षों में पूरा होना था। इसके लिये चर्च कमेटी के साथ भी वाकायदा अनुबन्ध हुआ था। यह काम सितम्बर 2016 में पूरा होना था। लेकिन आजतक दोनों चर्चों की रिपेयर के नाम पर एक पैसे का भी काम नहीं हुआ है। ऐसे में यह सवाल उठने स्वभाविक हैं कि इस रिपेयर के लिये रखा गया 17.50 करोड़ रूपया कहां गया? क्या इस पैसे को किसी और काम पर लगा दिया गया है? क्या इस पैसे को किसी दूसरे काम पर खर्च करने के लिये एशियन विकास बैंक से अनुमति ली गयी है? विभाग में इन सवालों पर कोई भी जवाब देने के लिये तैयार नहीं है।
इसी के साथ दूसरा काम था टाऊन हाल की रिपेयर का। और इसके लिये 8.02 करोड़ रखे गये थे। इसके लिये एक अभी राम इन्फ्रा प्रा.लि के साथ अनुबन्ध किया गया था। इस कंपनी ने टाऊनहाल की रिपेयर के लिये वर्मा ट्रेडिंग से 13,74,929 रूपये की लकड़ी खरीदी थी। टाऊन हाल में ज्यादा काम लकडी का ही था। इसलिये यह सवाल उठा था कि जब लकड़ी ही चैदह लाख से कम की लगी है तो रिपेयर पर आठ करोड़ कैसे। वैसे सूत्रों के मुताबिक शायद यह रकम दस करोड़ हो गयी है। शिमला में हुए कार्यों का मूल प्रारूप नगर निगम ने तैयार किया था और इसे निगम के हाऊस से ही अनुमोदित करवाया गया था। इसलिये जब कार्य नगर निगम की बजाये पर्यटन विभाग को सौंपे गये थे तब इनकी गुणवत्ता को लेकर निगम के तत्कालीन मेयर संजय चैहान ने एशियन विकास बैंक के मिशन डायरैक्टर से भी शिकायत की थी।
आज करीब दस करोड़ के कर्ज से रिपेयर हुआ टाऊन हाॅल किसकी संपत्ति है इसमें सरकार का कौन सा कार्यालय काम करेगा यह फैसला अभी तक नहीं हो पाया है। क्योंकि मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है और अभी तक सरकार और उच्च न्यायालय इस पर कोई फैसला नही ले पाये हैं। पिछले दो वर्षों से यह भवन बन्द चला आ रहा है। बन्द रहने के कारण इसकी दीवारों पर घास तक उग आया है रिपेयर की गुणवत्ता पर उठे सवालों की जांच प्रधान सचिव सतर्कता कर रहे हैं। लेकिन आम आदमी यह सोचने को विवश है कि जब एक भवन के उपयोग का फैसला भी उच्च न्यायालय करेगा तो सरकार स्वयं क्या काम करेगी। जबकि प्रदेश उच्च न्यायालय धरोहर गांव गरली- प्रागपुर को लेकर आये एक ऐसे ही मामले में स्पष्ट कह चुुका है कि किसी भवन का क्या उपयोग किया जाना चाहिये यह फैसला लेना अदालत का नहीं सरकार का काम है।  

सोलन हादसे के बाद अवैध निर्माणों पर फिर उठे सवाल

शिमला/शैल। पिछले दिनों सोलन के कुमारहट्टी में एक तीन मंजिला इमारत गिर गयी और इसके मलबे के नीचे 42 लोग दब गये। इनमें से केवल 28 लोगों को ही बचाया जा सका और 14 लोगों की इसमें मौत हो गयी। मरने वाले में होटल मालिक बलवीर सिंह की पत्नी अर्चना और सेना के तेरह जवान शामिल है। हादसे का जायजा लेने के लिये मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर स्वयं मौके पर गये और इसकी जांच एसडीएम सोलन को सौंपी गयी है। इस हादसे पर थाना धर्मपुर में होटल मालिक और इस भवन को बनाने वाले ठेकेदार के खिलाफ आई पी सी की धारा 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालने) और 304 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। एसडीएम सोलन घटना के कारणो की जांच करेंगे। इस जांच में यह आयेगा कि क्या इस भवन का नक्शा पास था या नही? क्या यहां पर इतना बड़ा निर्माण किया जा सकता था? यह तीन मंजिला भवन 2009 में बना था और अभी इसमें चौथी मंजिल का निर्माण किया गया था। जांच में सामने आयेगा कि चौथी मंजिल का निर्माण संवद्ध प्रशासनिक तन्त्र से स्वीकृति लेकर किया गया था या नहीं? चर्चाओं के मुताबिक भवन की नींव बहुत कमजोर थी और शायद नक्शा भी पास नही था।
एसडीएम की जांच में क्या सामने आता है यह तो रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पायेगा। लेकिन थाना धर्मपुर में जो मामला दूसरों के जीवन को खतरे में डालने को लेकर दर्ज किया गया है उसमें अभी तक होटल मालिक और ठेकेदार को ही नामजद किया गया है। यहां पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या इस हादसे के लिये केवल ठेकेदार और मलिक पर ही जिम्मेदारी डालकर ही पुलिस का काम पूरा हो जायेगा। क्या इसके लिये उस तन्त्र को जिम्मेदार नही ठहराया जाना चाहिये जिसने इसका नक्शा पास करना था। यदि नक्शा नही था तब यह निर्माण सीधे अवैध हो जाता है और तब प्रशासन की भूमिका और भी गंभीर हो जाती है। इस हादसे में चौदह लोगों की जान गयी है और इसी कारण से अवैध निर्माणों पर एक बार फिर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि जब से एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगाया है और अनुमति के बाद भी केवल अढाई मंजिल तक ही निर्माण कर सकने की सुविधा दी है तथा इसी के साथ यह भी शर्त लगायी है कि किसी भी सूरत में 45 डिग्री से अधिक की कटिंग नही होनी चाहिये। लेकिन क्या इस फैसले पर ईमानदारी से अमल हो पा रहा है शायद नही। अभी शिमला के रिपन अस्पताल के पास चल रहे एक भवन निर्माण के कारण हुए लैण्ड स्लाईड से आस पास के भवनों को खतरा हो गया है। इस निर्माण में यह आरोप है कि यहां पर शायद 90 डिग्री तक पहाड़ की कटिंग कर दी गयी है। इतनी कटिंग की अनुमति नही है और अब तो अदालत का आदेश भी साथ है यही नही शिमला के कई हिस्सों में निर्माण कार्य चल रहे हैं और संवद्ध प्रशासन उस ओर से आंखे मूंदे बैठा है।
प्रशासन की स्थिति यह है कि अदालत के आदेशों तक की परवाह नहीं कर रहा है। न्यू शिमला में मुख्य सड़क पर बना मन्दिर एक दम सरकारी भूमि पर स्थित है। इसके लिये वाकायदा नगर निगम ने तहसीलदार को लेकर निशान देही करवाई। निशानदेही के दस माह बाद निगम के ही ज्वाईंट कमीशनर की अदालत में इस पर मुकद्दमा दर्ज हुआ। इस अदालत ने करीब आठ साल बाद मन्दिर को गिराने /हटाने का फैसला दे दिया। फैसले में निगम के ही तीन कर्मचारियों/अधिकारियों के फैसले पर अमल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी लगा दी। लेकिन इस सबके बावजूद अभी दो साल तक फैसले पर अमल नही हो सका है। जो अधिकारी न्यायिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए फैसला दे रहा है क्या प्रशासनिक जिम्मेदारी के तहत उस फैसले पर अमल करना उसकी डयूटी नही हो जाती है। लेकिन ऐसा हुआ नही है। ऐसे सरकार में सैंकड़ों मामले सामने आ जायेंगे जहां प्रशासन की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। एनजीटी के फैसले के खिलाफ सरकार सर्वोच्च न्यायालय में अपील में गयी हुई है। वहां पर अभी तक मामला लंबित है। इस मुद्दे पर शिमला के नागरिक दो बार बैठकें करके अपनी चिन्ताएं व्यक्त कर चुके हैं। नागरिक चाहते हैं कि निर्माण पर लगा प्रतिबन्ध तुरन्त हटा लिया जाये। जबकि सरकार इस बारे में कोई भी फैसला लेने से घबरा रही है क्योंकि आज तक अवैधताओं के हर मामले में सरकार की भूमिका ही सर्वोपरि रही है। सरकार के कारण हर बार अवैधताओं को संरक्षण मिला है और इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों का आचरण एक बराबर प्रश्नित रहा है। प्रदेश में टीपीसी एक्ट 1977 में लागू हुआ था इस एक्ट के तहत पूरे प्रदेश के लिये एक विकास प्लान तैयार किया जाना था। 1979 में एक अन्तरिम प्लान जारी हुआ था जो आज स्थायी नही हो पाया है। क्योंकि इस अन्तरिम प्लान मे ही अबतक एक दर्जन से अधिक संशोधन हो चुके हैं। यही नहीं इसके अतिरिक्त नौ बार रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी है। हर बार अवैधताओं को नियमित किया गया लेकिन इसके बावजूद अवैधताएं आज तक जारी हैं।
अब सरकार प्रदेश में निवेश लाने के लिये देश से लेकर विदेश तक प्रयास कर रही है। कई निवेशक प्रदेश में निवेश करने की ईच्छा भी जता चुके हैं लेकिन यह सारा निवेश तो ज़मीन पर ही होना है। इसके लिये हर निवेशक को जमीन तो चाहिये ही है फिर उस जमीन पर कोई न कोई निर्माण किया जाना है और इस निर्माण के लिये एनजीटी की अढ़ाई मंजिल की सीमा आड़े आयेगी। सरकार टीसीपी के नियमों में संशोधन कर सकती है और एक बार फिर करने जा रही है। प्रदेश के भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के नियमों में फिर संशोधन कर सकती है। लेकिन क्या इन संशोधनों से यह सच्चाई बदल जायेगी कि प्रदेश भूकम्प जोन पांच और चार के दायरे में आता है। सरकार के अपने आपदा प्रबन्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक यदि शिमला में हल्के स्तर का भी भूकंप आता है तो उसमें कम से कम बीस हजार लोग मारे जायेंगे। प्रदेश उच्च न्यायलय भी इस पर चिन्ता व्यक्त कर चुका है। नेपाल में आये भूकंप के बाद उच्च न्यायालय ने अवैध निर्माण का स्वतः संज्ञान लेते हुए बड़े सख्त लहजे में यह कहा है Further the respondents do not seem to have learnt any lesson from the recent earthquakes which have devastated the Himalayan region, particularly, Nepal. As per the latest studies, majority of Himachal Pradesh falls in seismic    Zone-V and the remaining in  region-IV and yet this fact has failed to shake the authorities in Shimla out of their slumber. The quake-prone erstwhile summer capital of Raj cannot avert a Himalayan tragedy of the kind that has killed thousands and caused massive destruction in Nepal.
 It has been reported that Shimla ‘s North slope of Ridge and open space just above the Mall  that extends to the Grand Hotel in the West and Lower Bazar in the East is slowly sinking. We can only fasten the blame on the haphazard and illegal construction being carried out and all out efforts being made for converting the once scenic seven Himalayas of this Town into a  concrete Jungle.  उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि 1983 से लेकर 2015 तक उसके पास शिमला में हुए अवैध निर्माणों को लेकर तीन जनहित याचिकायें आ चुकी हैं जिन पर अदालत की ओर से नियमों की अनुपालना को लेकर कड़े निर्देश जारी किये गये हैं। लेकिन इसे वाबजूद शिमला में 186 छः से लेकर दस मंजिलो तक के भवनों का निर्माण हो चुका है जिनके नक्शे पास हैं या नही इसकी जानकारी ही नगर निगम को नही है।

लेकिन इस तरह आयी उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बावजूद सरकार ने 2016 के मानसून सत्र में फिर टीसीपी एक्ट में संशोधन करके इन अवैधताओं को और बढ़ावा देने की बात कर दी। उस समय भी  अदालत ने इन अवैधताओं पर कड़ा संज्ञान लेते हुए यह कहा था कि  Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised  their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
           The  regularization of unauthorized constructions/encroachments on public land will render a number of  enactments, like Indian Forest Act 1927, Himachal Pradesh Land  Revenue Act, 1953 and Town and Country Planning Act, 1977 nugatory and  otiose. The letter and spirit of these  enactments cannot be  obliterated all together by showing undue indulgence and  favouritism to dishonest  persons. The  over- indulgence by the State to dishonest  persons may ultimately lead to anarchy and would also  destroy the democratic polity.   उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान ली गयी यह हकीकत आज भी अपनी जगह यथास्थिति बनी हुई है। सोलन हादसे के साथ ही प्रदेश के कई भागों में मकान गिरने के समाचार सामने आ चुके हैं। भू सख्लन से प्रदेश के अधिकांश मार्गो पर लम्बे समय तक यातायात बाधित रहा है। आज नैना देवी मन्दिर तक को खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश भूकम्प जोन में है इस सच्चाई को नही बदला जा सकता है इस खतरे के नुकसान के दायरे को इस तरह के निर्माण और बढ़ा देते हैं। ऐसे में प्रदेश के विकास की रूप रेखा कैसी होनी चाहिये इसके लिये प्रदेश की जनता के साथ एक खुली बहस की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे खतरों से नुकसान भी उसी का होता है। ऐसे मामलों में सरकारी आकलनों की विश्वसनीयता आसानी से स्वीकार्य नही हो सकती है। नगर निगम शिमला के रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 2018-19 में उसके पास भवन निर्माणों संबंधित 31-1-2019 केवल 381 मामलें आये थे जिनमें से केवल 106 को ही स्वीकृति प्रदान की गयी है। जबकि इसी दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंचे एक मामले में निगम ने अपने शपथ पत्र में स्वीकारा है कि इसी अवधि में अवैध निर्माणों के हजारों मामले उसके सामने आये जिन पर कारवाई की जा रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जब तक सरकार वोट और दलगत की राजनीति से ऊपर उठकर अवैधताओं के खिलाफ ईमानदारी से कदम उठाने का फैसला नही लेती है तब तक विकास के नाम पर इन्हें रोकना संभव नही होगा।

कांग्रेस प्रदेश को धनासेठों के हाथों में बिकने नही देगीःराठौर

शिमला/शैल। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर ने पत्रकार वार्ता में  कहा कि इस वर्ष हिमाचल के निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री डा.वाॅई.एस.परमार की जयंती 5 अगस्त 2019 को उनके गांव बागठन में मनाई जायेगी। कांग्रेस पार्टी ने इस कार्यक्रम के लिये एक कमेटी गठित की है। इस दिन सिरमौर में एक विशाल जनसभा का आयोजन भी किया जायेगा जिसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता भाग लेंगे। इस दिन को विशेष रूप से स्वतन्त्रता सेनानीयों को सम्मानित किया जायेगा। डाॅ. वाई एस परमार हिमाचल निर्माता के प्रयासों से ही हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल पाया था। जबकि उस समय भी जनसंघ के लोग हिमाचल बनाने के पक्ष में नही थे। इतिहास ग्वाह है जो जनसंघ के लोग आज सत्ता में बैठे हैं उस समय वही लोग ‘‘स्टे्ट हुड मारो ठुड का नारा’’ लगाया करते थे। हिमाचल एक पहाड़ी राज्य होने के साथ यहां के लोग गरीब और ईमानदार हैं हिमाचल की भूमि पर बाहरी लोगों की नजर हमेशा से रही है। धारा 118 डा. परमार की देन हैं जिसकी वजह से हिमाचल की जनता लूटने से आज तक बची हुई है। आज जिस तरह से हिमाचल के मुख्यमंत्री धारा 118 के सरलीकरण का प्रयास कर रहे है वह प्रदेशहित में नही है। आज हिमाचल की हरी भरी पहाड़ीयों पर उन धनासेठों की नजर है जिन्होने चुनाव के वक्त भाजपा को धन दिया था। लेकिन कांग्रेस प्रदेश को इन धनासेठों के हाथों में बिकने नही देगी। कांग्रेस हिमाचल में उद्योग स्थापित करने के पक्ष मेे है लेकिन जो पुराने उद्योग बन्द व पलायन कर रहे हैं उसके लिये सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। आज भाजपा प्रदेश में बड़े-बडे़ रिजोट बनाने की बात कर रही है जिसका प्रदेश के  छोटे होटल कारोबारियों पर बुरा असर पड़ेगा। राठौर ने कहा कि अगर आज हिमाचल को बिकने से बचाने की बात आयी तो कांग्रेस सड़को पर उतरेगी और आन्दोलन करेगी। कांग्रेस पार्टी रक्षा मंत्री के आरट्रैक के शिमला से मेरठ शिफ्ट करने के निर्णय को वापिस लेने का स्वागत करती है। राठौर ने कहा कि कांग्रेस ने ही सबसे पहले यह मांग उठायी थी। राठौर ने कहा कि आज पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था निम्न स्तर चली गई है। हिमाचल में आये दिन बलात्कार की घटनाएं हो रही है। उन्होने ने बताया कि प्रदेश में 2018 में 19,549 आपराधिक मामले दर्ज हुए है। जिसमें 476 अपहरण, 151 अनुसूचित व जनजातिय, 342 एनडीएण्डपीएस,  14,693 आईपीसी, 1671 महिला उत्पीड़न और 345 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं। 2019 में अब तक 9814 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें एनडीएण्डपीएस के 751 मामले, महिला उत्पीड़न के 511 और बलात्कार के 130 मामले दर्ज हुए हैं। राठौर ने कहा कि आंकडे साफ बताते है कि पिछले दो सालों में अपराधियों के हौंसले बहुत बढ़े हैं और शासन कमजोर हुआ है। उन्होने कहा कि आज प्रदेश में सड़को की बुरी हालत है आज प्रदेश केे बागवानों  को मंडी तक माल पहुंचाना मुश्किल हो रहा है जो सरकार किसानों की आय 2022 तक दोगुणा करने के दावे करती आयी है उसकी नीयत का पता तो 50 पैसे का समर्थन मुल्य बढ़ाने से ही लग गया है। कांग्रेस मांग करती है कि यह मूल्य 10 रू प्रति किलो होना चाहिये। सेब की फसल इस साल स्क्रैब की बीमारी से ग्रस्त हुई है। 36 साल पहले इस रोग के लक्षण पाये गए थे तब 1983 में कांग्रेस सरकार की ओर से इस रोग को रोकने के लिये सस्ते दामों पर दवाई उपलब्ध करवायी गयी थी। आज कांग्रेस पार्टी यह मांग करती है कि इसके बारे में उचित कदम उठाये। राठौर ने कहा कि भाजपा सरकार में आज प्राईवेट इन्शोरेंस कंपनी को फायदा दिलाया जा रहा है और किसानों की फसलों को जबरन इंन्शोरेंस करवाया जा रहा है जबकि हकीकत यह है इन कंपनीयों की ओर से एक भी बागवान को क्लेम नही मिला है। कांग्रेस पार्टी इन सभी मुद्दों को लेकर आने वाले दिनों में प्रदेशभर में धरना प्रर्दशन करेगी और नये राज्यपाल को अस बारे में ज्ञापन सौंपेगी।

इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र से भाजपा सरकार और संगठन पर उठते सवाल

शिमला/शैल। हिमाचल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष इन्दु गोस्वामी ने 9-7-2019 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। इन्दु गोस्वामी ने जब यह त्यागपत्र दिया तब यह पत्र के अनुसार दिल्ली में थी। गोस्वामी ने अपने पत्र में लिखा है कि मेरे प्रदेश अध्यक्षा बनने से लेकर विधानसभा चुनाव लड़ने तक मुझे कई विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन मेरा विधानसभा चुनाव लड़ना प्रदेश संगठन और सरकार  दोनों को शायद सुखद नही लगा। बहुत बार अपनी परिस्थिति से प्रदेश नेतृत्व और सरकार को अवगत करवाया लेकिन समस्या कम होने की बजाये बढ़ती गयी। इन्दु गोस्वामी प्रदेश महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षा थी और पिछले 32 वर्षों से संगठन में विभिन्न पदों पर रह कर इस मुकाम तक पहुंची हैं। लेकिन इन्दु के त्यागपत्र पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती की यह प्रतिक्रिया कि वह तो घर बैठी हुई थी उन्हें महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाकर हमने पहचान दी है। इस प्रतिक्रिया से इन्दु गोस्वामी का 32 वर्षों तक संगठन में काम करना एकदम अर्थहीन हो जाता है।
इन्दु गोस्वामी ने संगठन और सरकार  दोनों पर सवाल उठाये हैं। संगठन में सतपाल सत्ती स्वयं प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में जब गोस्वामी यह कहती है कि संगठन और सरकार  दोनों को उनका चुनाव लड़ना शायद सुखद नही लगा तो यह आरोप स्वयं सत्ती पर आ जाता है। गोस्वामी ने प्रदेश नेतृत्व और सरकार  दोनों को अपनी परिस्थिति से अवगत करवाया। इसमें भी सत्ती पर बात आती है लेकिन सत्ती ने इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए गोस्वामी की अहमियत को ही एक तरह से नकार दिया है। सरकार की ओर से मुख्यमन्त्री की कोई प्रतिक्रिया नही आयी है जबकि गोस्वामी के त्यागपत्र में सरकार का अर्थ सीधे मुख्यमन्त्री है।


इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र से पहले जयराम सरकार के एक मन्त्री एक सलाहकार और एक ओ एस डी को लेकर पत्र आ चुके हैं। यह पत्र मीडिया में चर्चित भी हुए हैं। इन पत्रों में गंभीर आरोप भी दर्ज रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले एक बड़े नौकरशाह के खिलाफ भी एक पत्र चर्चा में आया था। इस पत्र के पीछे जिन लोगों का हाथ होने की चर्चा थी अब शायद सरकार ने उस व्यक्ति को ही उस पद से हटा दिया है। लेकिन मजे की बात यह है कि इन सभी लोगों के खिलाफ आये पत्रों पर संगठन की ओर से प्रदेश अध्यक्ष की कोई प्रतिक्रियाएं नही आयी है।
इन्दु गोस्वामी अपनी परिस्थितियां प्रदेश नेतृत्व के सामने ला चुकी हैं और अब उन्होने अपना त्यागपत्र दिल्ली से दिया है। इसका स्वभाविक अर्थ है कि भाजपा के केन्द्रिय नेतृत्व को भी इस सबसे उन्होने अवगत करवाया होगा और आज की तारीख में केन्द्रिय नेतृत्व का सीधा अर्थ हो जाता है जे.पी. नड्डा। नड्डा प्रदेश से ताल्लुक रखने के नाते अपने स्तर पर भी बहुत सारी जानकारी रखे हुए हैं। विशेषकर जो पत्र बम पिछले दिनों आ चुके हैं उनके संद्धर्भ में। राज्य की वित्तिय स्थिति पर जो नियन्त्रण रखने के लिये केन्द्रिय वित्त मंत्रालय ने वीरभद्र शासन के अन्तिम के दिनों में लिखा था अब उस पर अमल करने की बाध्यता आ खड़ी हो चुकी है और इस बारे में पुनः निर्देश भी जारी हो चुके हैं। ऐसे में आज यदि सरकार के अन्दर से ही सरकार पर इस तरह से सवाल उठते है तो इससे विपक्ष को स्वतः ही एक बड़ा मुद्दा मिल जायेगा। अभी सरकार में बहुत सारे निगमों/बोर्डो में ताजपोशीयां होनी हैं। बल्कि अभी तक सरकार नगर निगम शिमला में मनोनीत किये जाने वाले सदस्यों तक को नामित नही कर पायी है। यह सारे ऐसे सवाल हैं जो अभी तक जन चर्चा में नही आये हैं लेकिन जैसे ही मन्त्रीमण्डल के खाली पद भर लिये जायेंगे उसके बाद जिन लोगों को मन्त्री पद नही मिल पायेंगे उनके लिये इन्दु गोस्वामी जैसे नेताओं के पत्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के सहज़ हथियार बन जायेंगे। यही नही ऐसे पत्रों का असर आने वाले उपचुनावों पर भी पड़ सकता है।
माना  जा रहा है कि इन्दु गोस्वामी के पत्र से कांगड़ा की राजनीति में विशेष असर पडे़गा। क्योंकि धर्मशाला का उपचुनाव होना है और यहीं से मन्त्रीमण्डल का स्थान खाली हुआ है। कांगड़ा से ही रमेश धवाला और राकेश पठानिया इसके प्रबल दावेदारों में गिने जा रहे हैं। धवाला, शान्ता कुमार तो पठानिया, जे.पी.नड्डा के नजदीकी माने जाते हैं। कांगड़ा के ज्वालामुखी से ही भाजपा के प्रदेश के संगठन मन्त्री राणा भी ताल्लुक रखते हैं। पार्टी में राणा संघ के प्रतिनिधि हैं और शायद शीघ्र ही संघ में उनकी पदोन्नति हो रही है। उन्हें चार राज्यों का दायित्व सौंपा जायेगा। इस नाते राणा का स्थान पार्टी में महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिये मन्त्रीयों के चयन में उनकी राय भी महत्वपूर्ण रहेगी यह तय है। लेकिन कांगड़ा के ही कुछ विधायक राणा के दखल को राजनीतिक हस्ताक्षेप और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी करार दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो कुछ लोग इस बारे में मुख्यमन्त्री से भी बात कर चुके हैं। शायद इनमें राणा के विरूद्ध सबसे अधिक शिकायत रमेश धवाला को ही है क्योंकि संयोगवश दोनांे एक ही विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इस तरह कुल मिलाकर जो कुछ भाजपा के अन्दर गोस्वामी के पत्र के माध्यम से उभरता नज़र आ रहा है उसके परिणाम दूगामी होंगे यह तय है।


केन्द्र कर्ज और संपति बेचकर जुटायेगा 8,23,588.42 करोड़ की पूंजीगत प्राप्तियां

केन्द्र सरकार का वर्ष 2019-20 के बजट आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष सरकार का कर्जा और घाटा उसकी राजस्व आय से काफी अधिक बढ़ने जा रहा है। सरकार 27,86,349 करोड़ का खर्च पूरा करने के लिये 8,23,588.42 लाख करोड़ की पूंजीगत प्रप्तियां कर्ज लेकर जुटा रही हैं यह कर्ज कहां-कहां से लिया जायेगा उसका विवरण इस प्रकार रहेगा।

























































































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