Friday, 19 September 2025
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संगठन, सरकार और वरिष्ठ नेताओं में सन्तुलन बनाये रखना होगी बिन्दल के लिये बड़ी चुनौती

शिमला/शैल। राजीव बिन्दल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन गये हैं और पद संभालने के बाद बतौर अध्यक्ष उन्होने सबसे पहले पूर्व अध्यक्षों से मिलने का कार्यक्रम बनाया। इस समय शान्ता कुमार, प्रेम कुमार धूमल, सुरेश भारद्वाज तथा सतपाल सत्ती पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं। सत्ती से तो बिन्दल ने कार्यभार संभाला है और सुरेश भारद्वाज शिक्षा मन्त्री हैं इसलिये इनसे अलग से मिलने का कोई बड़ा अर्थ नही रह जाता है। शान्ता, धूमल दोनों पूर्व मुख्यमन्त्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। दोनों का अपना-अपना जनाधार आज भी अपनी जगह बना हुआ है। इसी जनाधार के चलते धूमल को 2017 के चुनावों में नेता घोषित किया गया था। यदि धमूल ने अपने चुनाव क्षेत्र में कुछ ज्यादा समय दिया होता तो वह चुनाव जीत भी जाते और उस सूरत में आज प्रदेश की राजनीति का परदिृश्य कुछ दूसरा ही होता। बिन्दल की ताजपोशी के अवसर पर यही दोनों मौजूद नही थे। इसलिये बिन्दल के लिये यह एक राजनीतिक आवश्यकता थी कि वह इन दोनों वरिष्ठ नेताओं से उनके घर जाकर मिलते और संवाद स्थापित  करते। बिन्दल ने किया भी ऐसा ही। अब बिन्दल की टीम जब घोषित होगी तब स्पष्ट हो जायेगा कि उसमें स्थान पाने वाले नेताओं/कार्यकर्ताओं की निष्ठाएं किसके साथ कितनी हैं।
बिन्दल की ताजपोशी के बाद राजनीतिक स्तर पर दो महत्वपूर्ण फैसले आने हैं। पहला है विधानसभा ना नया अध्यक्ष चुनना। इस चयन को टाला नही जा सकेगा क्योंकि आगे बजट सत्र आना है। जब विधानसभा अध्यक्ष चुना जायेगा तो इसी के साथ मन्त्री परिषद के दोनों खाली स्थानों को भरने का दवाब भी बढ़ जायेगा और उसे आगे टालना कठिन हो जायेगा। इस समय रमेश धवाला और नरेन्द्र बरागटा दो ऐसे विधायक हैं जो धूमल मन्त्रीमण्डल में मन्त्री रह चुके हैं। जयराम मन्त्रीमण्डल में इन्हें स्थान न मिलने पर दोनों की नाराजगी बाहर आ गयी थी और इस नाराजगी को दूर करने के लिये दोनों को मन्त्री रैंक में सचेतक और मुख्य सचेतक के पद आफर किये गये थे। बरागटा ने यह आफर स्वीकार कर ली थी परन्तु धवाला ने नही। उसके बाद ही धवाला की ताजपोशी की गयी थी। परन्तु यह दोनों अपनी वरियता के नाते अब भी मन्त्री पद की दौड़ में हैं। इन्ही के साथ राकेश पठानिया और सुखराम चौधरी जिस तरह से सदन में अपने तेवर जाहिर करते रहे हैं उससे स्पष्ट है कि यह लोग भी मन्त्री पद की दौड़ में हैं। फिर बिन्दल के पार्टी अध्यक्ष बनने से सिरमौर का सरकार में प्रतिनिधित्व का दावा भी खड़ा हो जायेगा।
अब यह एक सुखद संयोग है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। यहीं से विधायक, मन्त्री और सांसद रहे हैं यहीं से छात्र राजनीति में आये थे। अब जब त्रिलोक जम्वाल, धर्माणी, रणधीर शर्मा के नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में आये थे तब इन सबको नड्डा के साथ ही जोड़कर देखा जा रहा था। यह दूसरी बात है कि अब बिन्दल भी महेन्द्र पांडे के माध्यम से नड्डा के नजदीकी बन चुके थे और राजनीतिक समीकरणों तथा वरियता के नाते इन सब पर भारी पड़ते थे इसलिये नड्डा का आर्शीवाद उन्हे हासिल हो गया। इस परिदृश्य में यह स्वभाविक होगा कि प्रदेश से जुड़े हर राजनीतिक फैसले में नड्डा की भूमिका प्रभावी रहेगी। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि नड्डा बिन्दल के माध्यम से प्रदेश की राजनीति पर पूरा कन्ट्रोल रखेंगे। लेकिन इस समय राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उसमें भाजपा की कठिनाईयां बढ़ती जा रही हैं। अभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और माना जा रहा है कि यहां भाजपा की सरकार नही बन पायेगी जबकि पूरी केन्द्र सरकार इस चुनाव में उतर चुकी है। सभी राज्यों के मुख्यमन्त्रीयों तक को भाजपा ने चुनाव में उतार दिया है। भाजपा का इस बार भी दिल्ली हारना पार्टी के लिये पहले से भी ज्यादा नुकसान देह होगा। इस हार का असर हर प्रदेश पर पड़ेगा और उसके बाद कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रामक हो जायेंगे।
इस समय हिमाचल से मुख्यमन्त्री सहित भाजपा की एक बड़ी टीम दिल्ली में चुनाव प्रचार पर गयी हुई हैं इसी के कारण जनमंच जैसा कार्यक्रम आगे खिसकाना पड़ा है। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली का यह चुनाव प्रदेश सरकार और भाजपा के लिये क्या अर्थ रखता है। अभी दिल्ली में जिस तरह से नितिन गडकरी ने प्रदेश लोक निर्माण विभाग के सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव से कुछ बिन्दुओं पर जवाब तलबी करने के साथ ही मुख्यमन्त्री से भी नाराजगी जताई है उसको लेकर कई तरह की चर्चाएं चल निकली हैं। कुछ हल्कों में इसे परवाणु, शिमला फोरलेन के निर्माण के साथ जोड़कर देख रहे हैं क्योंकि कंपनी ने आगे काम करना बन्द कर दिया था और इसके कर्मचारी भी कंपनी के खिलाफ धरने प्रदर्शन पर बैठ गये थे जबकि फोरलेन के लिये तो पैसा केन्द्र दे रहा है। यह राज्य सरकार की कार्यप्रणली पर अपने में ही एक गंभीर सवाल हो जाता है। सरकार के बड़े बाबू किस तरह से काम कर रहे हैं इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब जयराम ने सत्ता संभाली थी तब चण्डीगढ़ में एक पत्रकार वार्ता में बड़ा दावा किया गया था कि चण्डीगढ़ से मिलने वाले हिस्से के लिये पूरे प्रयास करेंगे, यह संदेश दिया गया था कि सब कुछ तुरन्त मिल जायेगा लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ भी ठोस नजर नही आया है। इस तरह के कई प्रकरण हैं जहां सरकार की कारगुजारी औसत से भी बहुत कम है और आने वाले दिनों में यह सब कुछ सामने आता जायेगा।
पार्टी अध्यक्ष राजीव बिन्दल के खिलाफ कांग्रेस ने एक बार चार दिन तक सदन सुचारू रूप से चलने नही दिया था। आज बिन्दल को उसी कांग्रेस का बतौर अध्यक्ष सामना करना होगा। अभी तक वह सारे पुराने मसले अपनी जगह खड़े हैं। सरकार की भी ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नही है जिसके आधार पर राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित मान लिया जाये। बल्कि पिछले दिनों जाखू में एक मकान खरीद के प्रकरण में जिस तरह से कुछ नाम चर्चा में आ गये थे यदि ऐसे प्रकरण आने वाले दिनों में जन चर्चा का विषय बन जाते हैं तो कई लोगों के लिये परेशानीयां खड़ी हो जायेगी। इस परिदृश्य में बिन्दल वरिष्ठ नेताओं, सरकार और पार्टी में कैसे सन्तुलन बनाये रखते हैं इस पर सबकी निगाहें लगी रहेगी।

मुख्यमन्त्री को इलैक्ट्रिक कार का तोहफा और कर्मचारियों को अदालत का दरवाजा़

शिमला/शैल। हिमाचल पथ परिवहन निगम घाटे और कर्जोें के सहारे चल रही है यह एक सार्वजनिक सच है। लेकिन इस सच के बाद भी परिवहन निगम ने जब पिछले दिनों मुख्यमन्त्री को इलैक्ट्रिक कार भेंट करने का दम दिखाया तब लगा था कि निगम अपने कर्मचारियों और विशेषकर सेवानिवृत कर्मचारियों को भी उनके सेवानिवृति लाभ देने में भी उतनी ही तत्परता और संजीदगी दिखायेगी। क्योंकि उसी दौरान इन कर्मचारियों ने प्रैस क्लब में एक पत्रकार वार्ता आयोजित करके अपनी परेशानी प्रबन्धन और सरकार के सामने रखी थी। लेकिन कर्मचारियों के इस प्रयास का किसी पर कोई असर नही हुआ और अन्ततः एक सेवानिवृत कर्मचारी रणजीत सिंह का CWP/423 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है। इस याचिका का कड़ा संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा पर आधारित एकल पीठ ने पथ परिवहन निगम को सेवानिवृत कर्मचारियों के सवोनिवृति लाभ तीन माह के भीतर अदा करने के निर्देश दिये हैं। यही नहीं ऐसा न करने पर चैथे माह से 6% की दर पर उन्हें अदायगी तक ब्याज देने और इसके लिये जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी से 100 रूपये प्रतिदिन जुर्माना वसूलने के भी निर्देश दिये हैं। अदालत के इन निर्देशों का आने वाले समय में प्रदेश सरकार और उसके विभिन्न अदारों के सेवानिवृत कर्मचारियों को भी लाभ मिलेगा ऐसा माना जा रहा है। क्योंकि अधिकांश सेवानिवृत कर्मचारी अपने लाभों के लिये लम्बे समय तक इन्तजार करते देखे गये हैं।
हिमाचल ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन प्रदेश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सबसे बड़ा माध्यम से है। इस समय निगम के पास 11 क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय, 29 परिवहन डिपो और 9 सब डिपो हैं। इनमें 3161 बसों का फ्लीट है। जोगिन्द्र नगर, नेरवा और धर्मपूर डिपुओं के पास अपना कोई कार्यालय और कार्यशाला न होने के कारण इन्हे कोई बस उपलब्ध नही करवाई गयी है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 14 निजि और 8 हिमाचल पर्यटन विकास निगम की वाल्वो बसें भी आप्रेट कर रही हैं। परिवहन निगम की वाल्वो बसों से 5000 रूपये प्रति बस प्रतिदिन का टैक्स लिया जाता है। निजिक्षेत्र में चल रही वाल्वों बसों का मालिक कौन है और कहां से है इसका कोई विवरण निगम के पास नही है क्योंकि इनका टैक्स इनके बस नम्बर के आधार पर उगाहया जाता है। जिन वाल्वों बसों का पंजीकरण प्रदेश से बाहर का है उन्हें पांच वर्ष का परमिट दिया जाता है। जयराम सरकार आने के बाद 342 नये बस रूट घोषित किये गये थे जिनके लिये 919 लोगों ने आवेदन किये थे। इनमें से केवल 23 रूट ही आवंटित हो पाये हैं। सरकार द्वारा घोषित 166 रूट ऐसे रहे हैं जिनके लिये एक भी आवदेन नही आया है। जो रूट आंवटित नही हो पाये हैं उनके के लिये धर्मशाला, चम्बा, बिलासपुर, मण्डी और ऊना के कार्यालयों में बैठकें आयोजित की जा रही हैं। जयराम सरकार आने के बाद बसों की नियमित चैकिंग के 3325 चालान काटे गये और इनसे 1,34,01,400 रूपये का जुर्माना  वसूला गया है।
पथ परिवहन निगम की घाटे की स्थिति का आलम यह है कि इसके चलते कर्मचारियों को उनके सेवानिवृति लाभ नही दिये जा रहे हैं। 2014 में भी एक कर्मचारी को एजी आफिस द्वारा स्पष्ट निर्देश दिये जाने के बाबजूद घाटे का कवर लेकर यह लाभ नही दिये गये थे और उसे उच्च न्यायालय जाना पड़ा था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब निगम मुख्यमन्त्री को इलैक्ट्रिक कार गिफ्ट करने की बात कर सकता है तो अपने कर्मचारियों को यह लाभ क्यों नही दे सकता। निगम की कार्य प्रणाली पर इसलिये भी सवाल उठने स्वभाविक हैं  कि 1989-90 में निगम का प्रति किलो मीटर खर्च 6.30 रूपये था और 2000-01 में यह बढ़कर 17.22 रूपये हो गया जबकि इस दौरान सड़को की हालत में सुधार हुआ है और टैक्नौलोेजी में भी। दूसरी ओर 1989-90 में किराया 19.37 पैसे प्रति किलो मीटर था जो कि 2000-01 में बढ़कर 59.07 पैसे हो गया है। सामान्यतः किसी भी परिवहन निगम के आकलन के आधारभूत मानक यही होते हैं। इन मानकों के अतिरिक्त अन्य सारे कारक जो बैलैन्सशीट में उठाये गये हैं वह सब प्रबन्धन की अपनी कुशलता पर निर्भर करते हैं।

The Himachal Pradesh High Court, while disposing of an execution petition and a petition filed by Sh. Ranjit Singh, a retired employee of HRTC, has reprimanded HRTC for not giving the retirement benefits to the retired employees well in time. Disposing of the petition, Vacation Judge Mr. Anoop Chitkara said that the attitude of HRTC towards low-level retired employees is pathetic, insulting and insensitive as despite being working sincerely throughout their working life, the retired employees have to approach Courts for release of their post retirement benefits. The Court said that litigation is neither a free lunch for the employee nor for the employer. The Court expressed surprise that instead of expressing gratitude to its employees by making timely payments, HRTC is willing to spend money on litigation.
The court directed HRTC to expeditiously settle all such pending cases of retired employees and pay the dues to all within three months of retirement. However, the Court clarified that HRTC, while disbursing the retiral benefits, should ensure that no disciplinary inquiry or other issue is pending against the retired employee.

The Court also directed that in case of default, the officer/ employee sitting on the files and found responsible for the delay without any proper explanation, will have to pay compensation at the rate of Rs 100 per day. The Court further directed that apart from this compensation, HRTC will have to pay interest at the rate of 6% per annum, compoundable monthly, from the first day of the fourth month of retirement until the entire amount is credited to the retired employee's account.



अब पटवारियों का चयन भी आया सीबीआई के शिकंजे में उच्च न्यायालय ने दिये जांच के निर्देश

शिमला/शैल। पेपर सेटिंग में धूर्तता बरतने का अंदेशा जताते हुए प्रदेश हाईकोर्ट ने पटवारी भर्ती परीक्षा की सीबीआई जांच के आदेश देेेते हुए  तीन महीने में जांच रिपोर्ट अदालत को सौंपने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई आठ अप्रैल को निर्धारित की है।
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चैहान व न्यायमूर्ति चंदर भूषण बारोवालिया ने इन आदेशों की प्रती एसपी सीबीआई को फैक्स व रजिस्ट्री के जरिए भेजने के निर्देश दिए है।
जयराम सरकार में पिछले से 1194 पटवारियों की भर्ती के लिए प्रक्रिया शुरू की थी। इनके पदों के लिए हुई पटवारी की परीक्षा में आवेदकों ने तरह-तरह के इल्जा्म लगाए थे। सरकार ने इन पटवारियों की नियुक्ति कर भी दी है लेकिन नवंबर महीने में एक आवेदक ने हाईकोर्ट में इन भर्तियों के खिलाफ याचिका दायर कर दी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में इल्जाम लगाया था कि पटवारी भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा में सौ प्रश्नों में से 43 प्रश्न वही पूछे गए थे जो जेबीटी परीक्षा में भी पूछे गए थे। खंडपीठ ने इस इल्जाम पर जवाब मांगा था लेकिन सरकार ने इस बावत कोई जवाब नहीं दिया। इस पर खंडपीठ ने एक सप्ताह के भीतर पूरक हलफनामा दायर करने के आदेश दिए थे। इन आदेशों की पालना करते हुए लैंड रिकार्ड निदेशालय ने दायर अपने हलफनामें में स्वीरकार किया कि सौ में से 43 प्रश्न वही थे जो जेबीटी परीक्षा में पूछे गए थे। खंडपीठ ने कहा कि यह महज एक संयोग नहीं हो सकता कि प्रश्न बैंक में लाखों प्रश्न होने के बावजूद पहले वाली पारीक्षा में पूछे गए प्रश्न ही किसी दूसरी परीक्षा में पूछ लिए जाएं।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत का मानना है कि पटवारी परीक्षा के लिए सेट किए पेपरों में कुछ चिन्हित अभ्यार्थियों को मदद करने की मंशा से कुछ धूर्तता की गई हो। हालांकि अदालत के पास अभी इस बावत कोई निष्कर्ष निकालने के लिए कोई सामग्री रिकार्ड पर उपलब्ध नहीं है। इसलिए ये जरूरी है कि तमाम तथ्यों की जांच सीबीआई करे।
ऐसे में सीबीआई इस आदेश में जो आब्जर्व किया गया है उससे बिना प्रभावित हुए मामले की निष्पक्ष जांच करे। अदालत ने जांच रिपोर्ट को अगली सुनवाई से पहले अदालत में सौंपने के आदेश भी दिए हैं।

क्या लोकसेवा आयोग में अगली नियुक्ति से पहले नयी प्रक्रिया अधिसूचित हो पायेगी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश लोकसेवा आयोग की सदस्य समीति मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि मीरा वालिया की नियुक्ति पूरी तरह संविधान में तय प्रक्रिया अनुरूप हुई है और उसमें कुछ भी अवैध नही है। स्मरणीय है कि मीरा वालिया की नियुक्ति प्रदेश विधानसभा के लिये दिसम्बर 2017 में हुए चुनावों से बहुत पहले हुई थी लेकिन भाजपा ने 2017 के चुनावों में इसे एक बड़े मुद्दे के रूप में उठाया था और अपने आरोप पत्र में भी इसे प्रमुख स्थान दिया था। भाजपा का आरोप था कि यह नियुक्ति तय नियमों के अनुरूप नही हुई है। बल्कि जब ला स्टूडैण्ट हेम राज ने इसे चुनौती दी थी तब भी यह चर्चा उठी थी कि इस याचिका के पीछे अपरोक्ष में भाजपा नेतृत्व का ही हाथ है। इस परिप्रेक्ष में आज प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में नियुक्ति वैध ठहराना और इसे चुनौती देने वाले की नीयत पर गैर ईमानदारी की अदालत द्वारा टिप्पणी किया जाना अपने में बहुत कुछ कह जाता है।
गौरतलब है कि संविधान की धारा 316 से लेकर 320 तक लोकसेवा आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति, उनके दायित्वों और उनको हटाये जाने की प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके मुताबिक नियुक्ति किया जाने वाला व्यक्ति सरकार और महामहिम राज्यपाल की नजर में इसके लिये पात्र होना चाहिये। इस पात्रता में केवल यही शर्त है कि आयोग के कुल सदस्यों की संख्या का आधा भाग ऐसे लोगों का होना चाहिये जो इस नियुक्ति से पूर्व कम से कम दस वर्ष तक राज्य सरकार की सेवा में रहे हों। आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है और इसके लिये भी पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सदस्य के खिलाफ लगे आरोपों की जांच किया जाना आवश्यक है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आयोग के सदस्यों को हटाने के लिये जितना कड़ा प्रावधान किया गया है उतना उनकी नियुक्ति के लिये नहीं है आयोग में प्रदेश के मुख्य सचिव सेना के सेवानिवृत जनरल से लेकर सरकार के विभाग के उपनिदेशक तक को नियुक्तियां मिलती रही हैं। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह नियुक्तियां अधिकांश में राजनीतिक नेतृत्व की ईच्छानुसार ही होती हैं। क्योंकि सरकार में दस वर्ष की सेवा का प्रावधान रखते हुए यह नही कहा गया है कि सेवा किस स्तर की होनी चाहिये।
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कोई बहुत कड़े नियम न होने के कारण इस संबंध में समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं आ चुकी हैं। वर्ष 1985 से लेकर 2013 तक छः याचिकाएं आयी हैं। जिनमें यह निर्देश दिये गये हैं कि इन नियुक्तियों को लेकर ठोस प्रक्रिया सुनिश्चित की जाये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2013 में दिये गये निर्देशों के बाद ही हिमाचल लोकसेवा आयोग के वर्तमान चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्तियां हुई हैं। लेकिन हिमाचल सरकार ने इन निर्देशों के अनुसार प्रदेश में अलग से आज तक कोई प्रक्रिया तय नही की है। इसलिये यह माना जा रहा था कि मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका से पूरा लोकसेवा आयोग प्रभावित होगा। लेकिन जो याचिका दायर की गयी थी उसमें मीरा वालिया की नियुक्ति को उसके खिलाफ एक समय दायर हुए भ्रष्टाचार के मामले के आधार पर चुनौती दी गयी थी जबकि यह मामला नियुक्ति से बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था और इसे किसी ने भी अगली अदालत में चुनौति नही दी थी। अब जिस हेमराज ने मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती दी थी वह इससे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नही होता था। इस नाते उसका इसी नियुक्ति को चुनौती देना नही बनता था। यदि उसने सभी नियुक्तियों को एक बराबर चुनौती दी होती तो पूरा परिदृश्य ही अलग हो जाता। हेमराज ने इस नियुक्ति को चुनौती देने के साथ ही यह आग्रह किया था कि ऐसी नियुक्तियों के लिये सरकार को ठोस प्रक्रिया तय करने के निर्देश दिये जायें। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को मानते हुए सरकार को निर्देश दिये हैं कि इस बारे में अतिशीघ्र विस्तृत प्रक्रिया तय की जाये। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद यह देखना रोचक होगा कि क्या जयराम सरकार आयोग में अगली नियुक्ति से पहले ऐसी प्रक्रिया अधिसूचित कर पाती है या नही।
 यह है निर्देश
The High Court of Himachal Pradesh today dismissed the petition, challenging the order of appointment of Smt.Meera Walia as a Member of Himachal Pradesh Public Service Commission.
While disposing of the petition filed by one Shri Hem Raj, a law student, Division Bench comprising the Chief Justice L. Narayana Swamy and Justice Jyotsna Rewal Dua stated that the appointment of respondent has been made by adopting and following the due procedure as mandated by the Constitution of India and the respondent has also been discharged by the Special Judge in FIR on the allegations of corruption. The Court said that it is held that the petitioner has not come to the Court with clean hands, but the Court refrained itself from imposing cost on the petitioner for filing such petition, for being a law student and law abiding citizen.
The Court said that it hopes that the State of H.P. must step in and take urgent steps to frame memorandum of Procedure,administrative guidelines and parameters for the selection and appointment of the Chairperson and Members of the Commission, so that the possibility of arbitrary appointments is eliminated.
The petitioner had challenged the appointment of Meera Walia as a member of H.P. Public Service Commission alleging it to be in violation of the   constitutional provisions as well as law laid down by the Hon'ble Apex Court. The petitioner had also alleged that an FIR was lodged against Meera in the State Vigilance and Anti Corruption Bureau Shimla under sections 13 (1) (e) and 13 (2) of the Prevention of Corruption Act in the year 2008 and a challan was also filed in the court of Special Judge(Forests), Shimla, but in the year 2013, the State presented the supplementary report in the court of Special Judge(Forests), Shimla, stating that no case of disproportionate assets was made out against the accused on the basis of which Meera Walia was discharged on 9 September 2014. He had alleged that the state government ignored all these facts and appointed Meera as a member in Himachal Pradesh Public Service Commission.
He had prayed that the order dated 5.5.2017, appointing Meera Walia as a Member of Himachal Pradesh Public Service Commission may be quashed and set aside and the respondent State may be directed to frame guidelines or parameters for the appointment of Chairman and Members of the H.P. Public Service Commission.

आसान नही होगा भाजपा के लिये नये अध्यक्ष का चयन

 

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा के नये अध्यक्ष का चुनाव 18 जनवरी को हो जायेगा यह संकेत  मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दिया है। इसके मुताबिक 17 को नांमाकन भरा जायेगा और 18 को चुनाव हो जायेगा। अध्यक्ष के लिये कितने लोग नांमाकन करते है या फिर चयन के स्थान पर मनोनयन को ही चुनाव मान लिया जाता है यह तो 18 जनवरी को ही पता चलेगा। वैसे अब तक प्रथा रही है उसमें मनोनयन को ही चयन की संज्ञा दी जाती रही है। इसलिये यही माना जा रहा है कि इस बार भी इसी प्रथा का निर्वहन होगा यह तय है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषको के लिये यह एक महत्वपूर्ण सवाल बन गया है कि इस मनोनयन का आधार क्या रहता है।

सामान्तय किसी भी राजनीतिक संगठन में अध्यक्ष एक बहुत बड़ा पद होता है। यह उसी पर निर्भर करता है कि यदि उसी की पार्टी सत्ता में है तो वह किस तरह सरकार और संगठन में तालमेल बनाये रखता है। यह भाजपा और वामदलों की ही संस्कृति है कि इनमें संगठन का सरकार पर पूरा नियन्त्रण रहता है। यह शायद कांग्रेस में ही है कि संगठन सरकार के हाथों की कठपुतली होकर ही रह जाता है क्योंकि उसमें भाजपा और वामदलांे जैसा काडर आज तक नही बन पाया है। भाजपा इस गणित में वामदलों से भी आगे है क्योंकि उसके सारे काडर का संचालन संघ के पास रहता है। इसीलिये संघ को एक परिवार कहा जाता है जिसकी एक दर्जन से अधिक ईकाईयां है और भाजपा संघ परिवार की राजनीतिक ईकाई है। भाजपा की इस संगठनात्मक संरचना के जानकार जानते है कि भाजपा के हर बड़े फैसले के पीछे संघ की स्वीकृति रहती है। इसलिये आज प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में भी यह तय है कि इसमें संघ की स्वीकृति के बिना कुछ नही होगा। भाजपा सरकारों के महत्वपूर्ण ऐजैण्डे संघ परिवार ही तय करता है यह अब एक सार्वजनिक सत्य है। आज केन्द्र की मोदी सरकार पर जो देश को हिन्दु राष्ट्र बनाने के प्रयास करने के आरोप लग रहे हैं वह सब संघ ऐजैण्डे के ही परिणाम स्वरूप है।
इस परिदृश्य में आज केन्द्र से लेकर राज्यों तक के संगठनात्मक चुनावों में संघ के ही निर्देश सर्वोपरि रहेंगे यह तय है। इस समय पूरा देश नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उभरे विरोध की चपेट में आ चुका है। इसी विरोध का परिणाम है कि सरकार को अपना पक्ष रखने के लिये 3.5 करोड़ लोगों के पास पहुंचना पड़ रहा है। पोलिंग बूथों पर जाकर कार्यकर्ताओं और जनता के सामने स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है हर मुख्यमन्त्री की जिम्मेदारी लगाया गयी है कि पत्रकारवार्ताओं के माध्यम से इस विषय पर जनता से संपर्क बनाये। नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उभरे विरोध के आगे जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना और तीन तलाक समाप्त करना सब कुछ गौण हो गया है। सरकार को 2024 में सत्ता में वापसी कर पाना अभी से कठिन लगने लग पड़ा है। क्योंकि लोकसभा चुनावों के बाद हुए सारे विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में पार्टी को जन समर्थन में भारी कमी आयी है। हिमाचल में भी हुए दोनांे उपचुनावों में लोकसभा के मुकाबले समर्थन में भारी कमी आयी है।
इसलिये आज जब प्रदेश अध्यक्ष का चयन किया जायेगा तो यह तय है कि उसमें इन सारे बिन्दुओं को ध्यान में रखा जायेगा। यह देखा जायेगा कि कौन सा नेता यह क्षमता रखता है कि वह सरकार का उचित मार्ग दर्शन कर पायेगा। संगठनात्मक चुनावों के पूराने शैडूयल के मुताबिक 15 दिसम्बर तक अध्यक्ष बन जाना था। लेकिन तब तक जिलों के चुनाव ही पूरे नही हो पाये इसलिये यह तारीख 31 दिसम्बर तक बढ़ाई गयी। लेकिन फिर यह संभव नही हो पाया और पांच जनवरी तक टाल दिया गया और अब 18 जनवरी को यह चुनाव होना तय हुआ है। यह स्पष्ट है कि अध्यक्ष का चुनाव तीन बार आगे बढ़ाना पड़ा जिसका सीधा अर्थ है कि इस चयन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर उभरा रणनीतिक परिदृश्य लगातार प्रभावी होता जा रहा है। जब प्रदेश के उपचुनावों में लोकसभा के अनुपात में अन्तराल को बनाये नही रखा जा सका तो इस नेतृत्व के सहारे अगले चुनावों में सत्ता में वापसी की उम्मीद रख पाना कितना सही होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस गणित में संगठन के लिये यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि इस प्रदेश में ऐसे कौन से वरिष्ठ नेता हैं जो प्रदेश और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर योगदान दे सकें। आज की परिस्थितियों में नेता का बौद्धिक होना भी आवश्यक होगा। क्योंकि जब वैचारिक ऐजैण्डें पर अमल किया जाता है तो उसके लिये तर्क आवश्यक हो जाता है। इस समय प्रदेश में भाजपा के पास इस सतर के दो ही नेता शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल रह जाते हैं जिनके पास अपना वैचारिक धरातल मौजूद है। धूमल को विधानसभा चुनावों में भी इसी कारण से नेतृत्व सौंपा गया था। लेकिन प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपा के भीतरी समीकरणों में बहुत बदलाव आया है आज प्रदेश के युवा नेता जगत प्रकाश नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने जा रहे हैं क्योंकि वह इस समय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनके बाद प्रदेश के युवा नेता अनुराग ठाकुर केन्द्र में वित मंत्री हैं। इसलिये प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिये मुख्यमंत्री के साथ ही इन दोनों नेताओं की राय भी महत्वपूर्ण रहेगी यह तय है। लेकिन प्रदेश में अब तक जिस तरह से प्रशासनिक फेरबदल एक सामान्य बात हो गई है उससे यह संदेश गया है कि सरकार की अब तक प्रशासन पर पकड़ नही बन पायी है। प्रदेश की महिला ईकाई की अध्यक्ष इन्दू गोस्वामी ने अपना त्याग पत्र देते हुये जिस तरह का कड़ा पत्र लिखा था उससे सरकार और संगठन के रिश्तों पर उंगलियां उठी हैं। विधान सभा अध्यक्ष राजीव बिन्दल को लेकर भी यह जग जाहीर हो चुका है कि वह मन्त्री बनना चाहते हैं। मन्त्रीयों के खाली चले आ रहे दोनों पद शायद इसी कारण से अब तक भरे नही जा सके हैं। इस तरह प्रदेश अध्यक्ष के चयन में ये सारे समीकरण प्रभावी भूमिका निभायेंगे यह तय हैं।
अब तक प्रदेश अध्यक्ष की सूची में जितने नाम चर्चा में रहे हैं उनमें सबसे अधिक बिलासपुर के त्रिलोक जमवाल और धर्माणी रहे हैं। यह माना जा रहा था कि शायद जे.पी.नड्डा इनमें से किसी एक को लेकर अपनी राय सार्वजनिक करेंगे और उससे नयी राजनीति शुरू हो जायेगी लेकिन ऐसा नही हो पाया है। अब सैजल प्रकरण से प्रदेश का दलित वर्ग रोष में आ गया है। गोस्वामी प्रकरण मे महिलाओ में रोष है। ऐसे में नये अध्यक्ष के लिये इन सारे वर्गों में सन्तुलन बनाये रखना एक बड़ी चुनौती होगी जिसके लिये किसी वरिष्ठ नेता के हाथों में ही अध्यक्ष की कमान देना अनिवार्य हो जायेगा।

 

 

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