Friday, 19 September 2025
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अदालत में ट्रायल झेल रहे सक्सेना ओ डी आई सूची से बाहर कैसे

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा के एक प्रश्न के जवाब में आयी जानकारी के मुताबिक सरकार के विभिन्न विभागों में संदिग्ध आचरण वाले 64 अधिकारी कार्यरत हैं। इस सूची में पुलिस, स्वास्थ्य, आयुर्वेद और पशुपालन आदि विभागों के कई अधिकारी शामिल हैं। लेकिन इस सूची में किसी भी आई ए एस अधिकारी का नाम शामिल नहीं है। जबकि सरकार के प्रधान सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना चिंदम्बरम प्रकरण में जमानत पर हैं और उनके खिलाफ सीबीआई अदालत मे दिल्ली में चालान दायर हो चुका है। मामले में ट्रायल चल रहा है। इस संद्धर्भ में राज्य सरकार ने शायद यह तर्क ले रखा है कि उन्हें सीबीआई के मामले की जानकारी नही है। सक्सेना चिदम्बरम के साथ सहअभियुक्त हैं और इस प्रकरण की जानकारी देश के हर आदमी को है। क्योंकि चिदम्बरम प्रकरण मोदी-शाह की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। देश की राजनीति का बहुत कुछ इस मामले पर निर्भर करता है। ऐसे में राज्य सरकार को अपने ही अधिकारी के बारे में यह जानकारी न हो यह कैसे संभव हो सकता है। आज जिन अधिकारियों के नाम संदिग्ध आचरण की सूची में आये हैं उनमें यह मामला विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। सरकार की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल उठने लग पड़े हैं।
संदिग्ध आचरण के अधिकारियों को चिन्हित करने और उन पर नजर रखने की चिन्ता संसद में 1961 में व्यक्त की गयी थी। 10 अगस्त 1961 को लोकसभा और 24 अगस्त को राज्यसभा में इस आश्य के प्रस्ताव लाये गये थे। यह प्रस्ताव पारित होने के संबंध में यह स्कीम तैयार की गयी थी The list will be termed as the list of public servants of gazetted status of doubtful integrity, It will include names of those officers only who, after enquiry or during the course of enquiry, have been found to be lacking in integrity. It will thus include the names of the officers, with certain exceptions mentioned below, falling under one of the following categories.
Convicted in a court of law on a charge of lack of integrity or for an offence involving moral turpitude but on whom, in view of exceptional circumstances, a penalty other than dismissal, removal or compulsory retirement is imposed.
Awarded departmentally in major penalty (a) on charges of lack of integrity (b) on charges of gross dereliction of duty in protecting the interests of Govt. although the corrupt motive may not be capable of proof.
(iii) Against whom proceedings for a major penalty or a court trial are in process for alleged acts of involving lack of integrity or moral turpitude.
(iv) Who were prosecuted but acquitted on technical grounds, and on whose case on the basis of evidence during the trial there remained a reasonable suspicion against their integrity.
संदिग्ध आचरण के अधिकारियों को लेकर प्रदेश सरकार कई बार विभागीय सचिवों को इस बारे में निर्देश जारी का चुकी है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने CWP 4916/2010 शेर सिंह बनाम स्टे्ट आॅफ हिमाचल प्रदेश में सरकार पर अपनी नाराज़गी भी प्रकट की थी। इसके बाद 23 अप्रैल 2011 को गृह विभाग द्वारा सारे प्रशासनिक सचिवों को पत्र भी जारी किया गया था। लेकिन व्यवहार में ऐसे मामलों में कैसा आचरण किया जाता है वह सक्सेना प्रकरण से स्पष्ट हो जाता है। सरकार के इस तरह के पक्षपात-पूर्ण आचरण से सरकार की नीयत पर आरोप आने शुरू हो जाते हैं। इसका प्रभाव नीचे तक पड़ता है।

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