Friday, 19 September 2025
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कोरोना के चलते स्वास्थ्य संस्थानों में खाली पदों को तुरन्त भरा जायेःराठौर

शिमला/शैल। कोरोना को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित कर दिया है। आधा विश्व इसकी चपेट मे है। अमेरीका और इटली में तो इसके कारण आपातकाल घोषित कर दिया गया है। भारत में भी कई राज्यों में इसे महामारी घोषित करके सारे शिक्षण संस्थान सिनेमा स्थल, सार्वजनिक सभाओें, मेले, त्योहारों पर होने वाली भीड़ पर प्रतिबन्द लगाने के निर्देश प्रशासन को जारी हो चुके हैं। सर्वोच्च नयायालय सहित कई उच्च न्यायालयों ने केवल आवश्यक मामलें में ही सुनवाई करने का फैलसा लिया है। यह कदम इसलिये उठाये गये हैं क्योंकि अभी तक इसका कोई अधिकारिक ईलाज सामने नही आ पाया है। इस सयम सावधानी बरतने और जन मानस को इसके प्रति सचेत करना ही एकमात्र उपाय इस समय रह गया है। जनता इसके प्रति जागरूक हो और वह हर तरह के संभव प्रतिरोधक कदम उठाये तथा अपना आत्मविश्वास बनाये रखे। यह जिम्मेदारी आती है प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व पर।
हिमाचल में भी सरकार ने सारे शिक्षण संस्थान बन्द कर लिये हैं। मेेले त्योहारों पर और सार्वजनिक सभाओं पर भी अंकुश लगाया गया है। लेकिन क्या जनता में आत्मविश्वास बनाये रखने के लिये आवश्यक कदम उठाये गये हैं यह एक अहम सवाल बना हुआ है और इस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होने सरकार से आग्रह किया है कि इस समय स्वास्थ्य संस्थानों में डाक्टरों और पैरामैडिकल स्टाफ के खाली चले आ रहे पदों को भरने के लिये विशेष अभियान चालाया जाना चाहिये क्योंकि प्रदेश के बहुत सारे संस्थानों में रिक्त पद चल रहे हैं। प्रदेश के सबसे बड़े संस्थान आईजीएमसी के कैंसर जैसे संस्थान में ही दो पद रिक्त चल रहे हैं। मुख्यमन्त्री के गृह ज़िला मण्डी में जहां प्रदेश का पहला मैडिकल विश्वविद्यालय बनाया गया है वहां से कोरोना के संदिग्ध को शिमला रैफर करना डाक्टरों और अन्य साधनों की कमी का सीधा प्रमाण बन जाता है। राठौर ने अपनी टीम के साथ शिमला के सभी स्वास्थ्य संस्थानों में स्वयं जाकर प्रबन्धों का जायज़ा लिया है। राठौर ने फील्ड में भी कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से स्वास्थ्य संस्थानों में जाकर प्रबन्धों का जायज़ा लेने तथा जनता में आत्मविश्वास बनाये रखने के पूरे प्रयास करने का आग्रह किया है। राठौर को यह कदम उठाने की आवश्यकता तब पड़ी जब उन्होने निदेशक स्वास्थ्य से इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिये फोन किया और निदेशक उपलब्ध नही हुए लेकिन जब निदेशक ने सूचना होने के बाद भी सम्पर्क नहीं किया तब उन्हें स्वयं स्वास्थ्य संस्थानों का रूख करना पड़ा।
जहां कांग्रेस ने बतौर जिम्मेदार विपक्ष यह कदम उठाया है वहीं पर प्रदेश भाजपा ने पांवटा साहिब में राज्य कार्यकारिणी का दो दिन का अधिवेशन बुलाकर सरकार के प्रयासों की गंभीरता और ईमानदारी पर स्वयं ही एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जनता में यह आम चर्चा का विषय बन गया है कि एक ओर तो राष्ट्रपति तक वहां होने वाले आयोजनों को स्थगित कर चुके हैं तब प्रदेश भाजपा अपने आयोजन को स्थगित क्यों नहीं कर पायी? क्या वहां पर भाजपा के लिये कोई विशेष प्रबन्ध किये गये थे जिनके चलते कोरोना का खतरा नही था। जबकि पूरा प्रदेश खतरे की जद में है।

क्या आऊट सोर्स दलालों के दबाव में केन्द्र के फैसले पर अमल नही हो रहा

क्लास थ्री, फोर के लिये परीक्षा और साक्षात्कार समाप्त कर चुकी है केन्द्र सरकार

दलालों को 23 करोड़ कमीशन दे चुकी है सरकार

शिमला/शैल। क्या रोज़गार के मामले में सरकार जनता को गुमराह कर रही है या अफसरशाही इसमें राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह कर रही है। यह सवाल इन दिनो चल रहे विधानसभा सत्र में इस सम्बन्ध में पूछे गये सवालों के जवाब में आये आंकड़ों बजट में किये गये दावों और सदन में रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज आंकड़ों में आयी भिन्नता के कारण चर्चा में आया है। रोज़गार को लेकर विधानसभा के हर सत्र में दोनों पक्षों के विधायक सवाल पूछते हैं। सरकार जवाबदेती है और साथ में आंकड़े रखती है। यह सवाल और जवाब समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते हैं। जनता इन पर विश्वास कर लेती है क्योंकि उसके पास इसकी सत्यता को परखने का कोई साधन नही होता है। कोई भी सरकार के इन आंकड़ों को एक साथ रखकर विश्लेष्ण करके निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास नही करता है।
सरकार को कुछ दस्तावेज़ सदन में रखने ही पड़ते हैं और उन दस्तावेज़ों में प्रशासन आंकड़ों के साथ कोई ज्यादा खिलवाड नही कर पाता है क्योंकि इसी सबका परीक्षण सीएजी अपनी रिपोर्टों में करता है। यह एक अलग सवाल है कि सीएजी की रिपोर्टों और सरकार द्वारा सदन में रखे गये दस्तावेज़ों का अध्ययन बहुत कम लोग करते हैं। लेकिन यह सही है कि इसी सबके सहारे वास्तविक स्थिति की जानकारी हासिल की जा सकती है। सरकार हर साल विकास करती है और यह विकास करते-करते प्रदेश आज पचपन हज़ार करोड़ से भी ज्यादा के कर्ज तले आ चुका है। इस कर्ज का जो ब्यान प्रतिवर्ष दिया जा रहा है शायद उतना कर राजस्व प्रदेश को कर्ज के सहारे खड़े किये गये संसाधनों से नही मिल रहा है। यह बजट दस्तावेजों और सीएजी की रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है। इस विकास का दूसरा प्रतिफल होता है कि इससे प्रति व्यक्ति की आय और कर्ज कितना बैठ रहा है। वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 1,95,255 रूपये प्रति व्यक्ति आय रहने का अनुमान है और कर्ज 71000रूपये है।
आय व्यय के बाद विकास का पता रोज़गार की स्थिति से चलता है। रोज़गार में सरकार और निजि क्षेत्र दोनों की भागीदारी और जिम्मेदारी एक बराबर रहती है। क्योंकि निजि क्षेत्र भी सरकार द्वारा ही खड़े किये गये आधारभूत ढांचे के सहारे अपने उद्योग खड़े कर पाता है। इसीलिये विकास में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये ‘‘सामाजिक जिम्मेदारी’’ का वैधानिक प्रावधान किया गया है। इस परिप्रेक्ष में रोज़गार के आंकड़ों की पड़ताल में जो तथ्य सामने हैं उनके मुताबिक इस समय सरकार के विभिन्न अदारों में 63126 पद रिक्त चल रहे हैं। विधायक रमेश धवाला के प्रश्न में आये जवाब के मुताबिक प्रथम श्रेणी में 4208, क्लास टू में 749, क्लास थ्री में 43412 और क्लास फोर में 14757 पद रिक्त है। विधायक होशियार सिंह के प्रश्न में आये उत्तर के मुताबिक सरकार ने 15 जनवरी 2019 तक 1304 लोगों को नियमित और 7604 को कान्टैªक्ट के आधार पर रोज़गार उपलब्ध करवाया है। विधायक राजेन्द्र राणा के प्रश्न में दिये गये जवाब के मुताबिक 31.7.2019 तक 30574 लोगों को सरकारी क्षेत्र में रोज़गार दिया गया है। इसमें 1-8-2016 से 31-7-2017 तक 11619, 1-8-2017 से 31-7-2018 तक 9030 और 1-8-18 से 31-7-2019 तक 9925 लोगों को रोज़गार दिया गया है।
पिछले सत्र में रमेश धवाला के एक प्रश्न के उत्तर में जवाब आया था कि पिछले तीन वर्षों में निजि क्षेत्र में 31-7-2019 तक 1,41,494 लोगों को रोज़गार मिला है। लेकिन यही सवाल विधायक होशियार सिंह, राजेन्द्र राणा और विक्रमादित्य ने पूछा था तो उसमें कहा गया था कि सूचना एकत्रित की जा रही है। फिर विधायक मोहन लाल ब्राक्टा, मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य ने पूछा था कि सरकारी विभागों और उपक्रमों में आऊट सोर्स पर कितने लोगों को रखा गया है और सरकार इनको नियमित करेगी या नही। इसके जवाब में बताया गया था कि 12165 लोगों को आऊट सोर्स पर रखा गया है। इस पर 153,19,80030 रूपये खर्च हुए हैं जिनमें से 130,10,21,806 कर्मचारियों पर और 23,09,58,224 रूपये इन्हे काम दिलाने वाली कंपनीयों को कमीशन दिया गया है। 12165 लोगों को 94 कंपनियों के माध्यम से रखा गया है जिसका अर्थ है कि 94 लोगों को 23 करोड़ रूपये दिये गये हैं। यहां यह सवाल उठता है कि क्लास थ्री और क्लास फोर के कर्मचारियों की भर्ती के लिये भारत सरकार ने किसी भी परीक्षा और साक्षात्कार की शर्त को समाप्त कर दिया है। अब इन पदों पर केवल शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्रों के आकलन के आधार पर ही रख लिये जाने का प्रावधान किया है। केवल रिक्त पदों को विज्ञाप्ति करने की ही आवश्यकता है। लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार केन्द्र के इस फैसले पर अमल नही कर पा रही है चर्चा है कि उन आऊट सोर्स दलालों के दबाव में सरकार इस फैसले पर अमल नही कर पा रही है। सरकार के सभी विभागों/ उपक्रमों में आऊटसोर्स पद भर्तियां की जा रही हैं। इस आऊटसोर्स को लेकर ही तो विश्वविद्यालय के समीप पाटर हिल में आर एस एस की शाखा लगाने पर बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया था। पुलिस में एक दूसरे के खिलाफ एक एफआई आर तक दर्ज हो गये थे। तब नौ जवान सभा के संयोजक चन्द्र कांत वर्मा ने आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय ने आऊटसोर्स पर भर्तियां करने के लिये टैण्डर मंगवाया था और एक काॅरपोरेट नामक कंपनी को ठेका दे दिया गया था। लेकिन बाद में मन्त्री के दबाव में इस ठेके को रद्द करके फिर से टैण्डर मंगवाये गये और सिंगल टैण्डर पर ही एक उतम हिमाचल नामक कंपनी को यह ठेका दे दिया गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आऊट सोर्स दलालों का सरकार पर भारी दबाव चल रहा है।
इससे हटकर भी यदि सरकार के आंकड़ों को आर्थिक सर्वेक्षण और सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के आईने में परखा जाये तो पता चलता है कि सरकार कर्मचारियों के सभी वर्गों में पिछले कुछ वर्षों से लगातार कमी आ रही है। सरकार के दस्तावेजों के मुताबिक 2005-06 से 2017-18 तक सरकारी और प्राईवेट सैक्टर में एक लाख से भी कम लोगों को रोजगार मिला है। लेकिन सरकार दावा कर रही है 31-7-2019 तक पिछले तीन वर्षों में अकेले प्राईवेट सैक्टर में ही 141494 लोगों को रोजगार मिला है।जबकि उद्योग विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के प्राईवेट सैक्टर में कुल 1,58000 लोगों को ही रोजगार मिला हुआ है। इस तरह विधानसभा में आये प्रश्नों के जबावों में दिये गये आंकड़ों और सांख्यिकी विभाग तथा आर्थिक सर्वेक्षण में रखे गये आंकड़ों के विरोधाभास को सामने रखते हुए यह स्वभाविक सवाल उठता है कि कौन से आंकड़ों पर विश्वास किया जाये या फिर शासन और प्रशासन दोनों मिलकर जनता को गुमराह कर रहे हैं।      

 

बाहरा विश्वविद्यालय भी आया सवालों में

शिमला/शैल। बाहरा विश्वविद्यालय के फिजियोथैरपी विभाग के छः छात्रों ने सोशल मीडिया मंच के माध्यम से अपनी एक शिकायत विधायक विक्रमादित्य सिंह को भेजी है। शिकायत के मुताबिक पिछले कुछ अरसे से अध्यापक उनकी क्लास नही ले रहे हैं। इस संबंध में यह छात्र विश्वविद्यालय के वाईस चान्सलर तक अपनी शिकायत दे चुके हैं। अध्यापक इसलिये क्लास नही ले रहे हैं क्योंकि उन्हे कुछ समय से वेतन नही मिल रहा है। छात्रों का कहना है कि वह नियमित रूप से वेतन फीस विश्वविद्यालय को दे रहे हैं। दूसरी ओर अध्यापक इसलिये नही पढ़ा रहे हैं क्योंकि उन्हें समय पर वेतन नही मिल रहा है। ऐसे में जब छात्रों की परीक्षा सिर पर हैं तब अध्यापक इसी तरीके से विश्वविद्यालय प्रशासन पर अपना दवाब बना सकते हैं।
बाहरा विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों की इस समस्या ने एक बार फिर निजि शिक्षण संस्थानों को लेकर बनाये गये नियामक आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये हैं क्योंकि प्राईवेट शिक्षण संस्थानों पर निगरानी रखने के लिये यही सबसे बड़ा मंच है। बाहरा विश्वविद्यालय की जब स्थापना हुई थी तब इसको मिली जम़ीन को लेकर भी सवाल उठे थे। सूत्रों के मुताबिक आज भी विश्वविद्यालय के पास एक बड़ा भूभाग ऐसा है जिसे अभी तक उपयोग में नही लाया गया है। धारा 118 के प्रावधानों पर अमल करते हुए ऐसी ज़मीन को वापिस लिया जा सकता है लेकिन प्रशासन ने इस ओर अभी तक कोई कदम नही उठाया है। सूत्रों के मुताबिक विश्वविद्यालय के संचालक समानान्तर में होटल व्यवसाय में भी आ चुके हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि शायद छात्रों की फीस के पैसे को कहीं दूसरी जगह निवेश किया जा रहा है। अब जब प्रदेश के कुछ निजि विश्वविद्यालयों के खिलाफ फर्जी डिग्रीयां बेचने को लेकर जांच चल रही है तब बाहरा विश्वविद्यालय के छात्रों की शिकायत को हल्के से लेना गलत होगा।

प्रदेश से कौन जायेगा राज्य सभा में अटकलों का दौर शुरू

शिमला/शैल। प्रदेश से राज्यसभा सांसद विप्लव ठाकुर की सेवानिवृति से खाली हुई सीट पर अभी चुनाव होने जा रहे हैं। विपल्व कांग्रेस पार्टी से सांसद बनी थी क्योंकि तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। अब भाजपा की सरकार है तो उसी का कोई नेता इसमें जायेगा यह स्वभाविक और सामान्य सी बात है। लेकिन इस समय देश और प्रदेश में जो राजनीतिक परिस्थितियां बनी हुई हैं उनके कारण यह चयन महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि पिछले दिनों प्रदेश में दो महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले हुए हैं। पहला फैसला भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर था तो दूसरा विधानसभा अध्यक्ष को लेकर।
प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित कर दिया हुआ था। लेकिन धूमल के अपना ही चुनाव हार जाने के बाद स्थितियां बदल गयी। उन बदली हुई स्थितियांे में राजीव बिन्दल और जगत प्रकाश नड्डा दो लोगो के नाम मुख्यमन्त्री के लिये चर्चा में आये थे। नड्डा का नाम तो इतना आगे तक चला गया था कि उनके समर्थकों ने तो मिठाईयां तक बांट दी थी और शिमला की ओर से कूच भी कर दिया था। उन्हे आधे रास्ते से वापिस किया गया था यह सब जानते हैं क्योंकि जयराम ठाकुर का नाम मुख्यमन्त्री के लिये आ गया था। जयराम के मुख्यमन्त्री बनने के बाद काफी समय तक पार्टी में राजनीतिक सन्तुलन नही बन पाया था। जयराम को एक पत्रकार वार्ता में यहां तक कहना पड़ गया था कि ‘‘अब तो मैं मुख्यमन्त्री बन ही गया हूं इसलिये इसे मान भी लो’’ मुख्यमंत्री का यह कथन राजनीतिक संद्धर्भों में बहुत महत्वपूर्ण था। परन्तु क्या आज यह स्थितियां बदल पायी हैं? यह सवाल विश्लेष्कों के सामने आज भी यथा स्थिति खड़ा है। क्योंकि चर्चाओं के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष और फिर स्पीकर विधानसभा दोनो चयनों में मुख्यमन्त्री का दखल लगभग नहीं के बराबर रहा है। ऐसे में अब राज्य सभा के लिये किसके नाम पर मोहर लगती है और उसमें मुख्यमन्त्री का दखल कितना रह पाता है इस पर सबकी निगाहें लगी है।
विश्लेष्कोें के मुताबिक राज्यसभा उम्मीदवार का फैसला राष्ट्रीय राजनीति के हर दम बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखकर लिया जायेगा। दिल्ली में भड़की हिंसा के बाद भाजपा को रक्षात्मक होना पड़ रहा है। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान जिन भाजपा नेताओं के ब्यानों पर ऐतराज उठाये गये थे उनका संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने उनके प्रचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। इसमें अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा दोनों आ गये थे। जब चुनाव आयोग ने संज्ञान लेकर कारवाई कर दी थी तो उसी परिदृश्य में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस मुरलीधर को इन नेताओं के खिलाफ एफआईआर की बात करनी पड़ी थी। यदि जस्टिस मुरलीधर का तत्काल प्रभाव से तबादला न कर दिया जाता तो यह एफआईआर इनके खिलाफ हो ही जाती और भाजपा के लिये एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाता। लेकिन जज के तबादले से एफआईआर तो रूक गयी लेकिन बाकि स्थितियां तो वैसी ही बनी हुई हैं। इसके बाद ही कांग्रेस नेताओं के ब्यानों का संद्धर्भ उठाकर उनके खिलाफ कारवाई की मांग की जाने लगी है। लेकिन इस पूरी स्थिति पर भाजपा का कोई बड़ा नेता ख्ुालकर सरकार के पक्ष में नही आया है बल्कि अनुराग ठाकुर भी अब पब्लिक में अपने ब्यान से पलटने का प्रयास कर रहे हैं। केवल शान्ता कुमार ही एक ऐसे बड़े नेता हैं जिन्होनें शाहीन बाग में अदालत पर्यवेक्षक भेजने के फैसले पर सवाल उठाये हैं।
शाहीन बाग का धरना हिन्दु सेना की धमकी के बाद भी जारी है। अमित शाह फिर दोहरा चुके हैं कि सरकार अपने ऐजैण्डे से पीछे नही हटेगी। शाह की सभाओं में अनुराग ठाकुर की तर्ज के नारे लग रहे हैं। इससे यह स्पष्ट लग रहा है कि अभी काफी समय तक स्थिति उलझी रहेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। इस पीढ़ी में से केवल शान्ता कुमार ने ही कुछ कहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि इन बड़े नेताओं में से किसी ने कोई अप्रिय ब्यान दे दिया तो उससे पार्टी की मुश्किलें एकदम बढ़ सकती हैं। इस समय भाजपा को ऐसे बड़े नेताओं की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है और यह राज्यसभा के माध्यम से ही पूरी की जा सकती है। फिर शान्ता कुमार ने चुनावी राजनीति से ही बाहर रहने का फैसला किया है। यदि पार्टी उनकी आवश्यकता को मानते हुए उन्हे राज्यसभा के लिये मनोनीत कर देती है तो शायद वह इस जिम्मेदारी से इन्कार नही कर पायेंगे। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा प्रदेशों के माध्मय से बहुत वरिष्ठ लोगों को ही राज्यसभा में लाने का प्रयास करेगी जो उसे वैचारिक मार्गदर्शन दे सकें।
वैसे इस समय प्रदेश से जल शक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह, पूर्व अध्यक्ष सतपाल सत्ती, चन्द्र मोहन ठाकुर और महेन्द्र पाण्डे के नाम भी चर्चा में चल रहे हैं। महिला मोर्चा की पूर्व प्रदेश अध्यक्षा इन्दु गोस्वामी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वह कुछ दिनों मे कोई बड़ा धमाका करने वाली हैं। मन्त्रीमण्डल में खाली चल रहे मन्त्री पदों को भी बजट सत्र के दौरान ही भरने की चर्चा चल पड़ी है। अभी जब नड्डा प्रदेश में थे तो मुख्यमन्त्री विधानसभा छोड़कर पूरा समय उन्ही के साथ रहे। अब मुख्यमन्त्री दिल्ली में अमितशाह को मिलकर लौटे हैं। इस मुलाकात में संभावित नये मन्त्रियों के नाम फाईनल होने से लेकर शाह द्वारा कुछ मामलों में नाराज़गी व्यक्त करने तक की चर्चाएं सामने आ गयी हैं। ऐसे में पूरा परिदृश्य रोचक हो गया है।

क्या भण्डारी की एफआईआर मरड़ी की सेवानिवृति पर ग्रहण लगायेगी

शिमला/शैल। क्या मरड़ी के खिलाफ भण्डारी की एफआईआर का निपटारा मरड़ी की सेवानिवृति से पूर्व हो पायेगा यह सवाल पुलिस के गलियारों में इन दिनों विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि नियमानुसार यदि किसी कर्मचारी/अधिकारी के खिलाफ सेवानिवृति के समय कोई आपराधिक मामला लंबित चल रहा हो तो ऐसे व्यक्ति को न तो सेवानिवृति लाभ ही मिल पाते हैं और न ही कोई नयी नियुक्ति सरकार में मिल पाती है। स्मरणीय है कि धूमल शासन में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने यह आरोप लगाये थे कि प्रदेश सीबीआई अवैध रूप से उनके फोन टेप कर रही है। इन्ही आरोपों के बीच विधानसभा के चुनाव हुए और सरकार बदल गयी। वीरभद्र मुख्यमन्त्री बन गये और प्रशासन ने अवैध फोन टैपिंग के आरोपों पर कार्यवाही करते हुए रात को ही सीआईडी मुख्यालय पर छापामारी करके फोन टैपिंग का रिकार्ड कब्जे में ले लिया। इस प्रकरण में डीजीपी रहे आईडी भण्डारी पर गाज गिरी। उनके खिलाफ मुकद्दमा बना और सेवानिवृति लाभ तक रोक दिये गये।
भण्डारी को इस मामले में बरी होने में लम्बा समय लगा लेकिन अन्त में वह बाईज्जत इस प्रकरण से बाहर आ गये। अदालत ने यह पाया कि भण्डारी के खिलाफ जानबूझ कर मामला बनाया गया था। मामले से छूटने के बाद भण्डारी ने उन लोगों के खिलाफ कारवाई की मांग की जिन्होंने उनके खिलाफ जानबूझ कर मामला बनाया था। भण्डारी को इस कारवाई के लिये सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अदालत में जाना पड़ा। अदालत ने इसमें मामला दर्ज किये जाने के निर्देश दिये। इस पर थाना छोटा शिमला में भण्डारी ने अगस्त 2018 में एफआईआर दर्ज करवाई जिसमें डीजीपी एस आर मरड़ी अभियुक्त नामज़द है। यह एफआईआर होने के बाद पुलिस अपने ही डीजीपी के खिलाफ जांच करने का साहस नही कर पायी। भण्डारी ने इस मामले को विजिलैन्स को सौंपने की मांग की लेकिन मुख्य सचिव के स्तर पर इस मांग को ठुकरा दिया गया और मामला थाना छोटा शिमला में ही लंबित रहा।
अब मरड़ी सेवानिवृति के कगार पर आ पहुंचे हैं। ऐसे में यदि सेवानिवृति से पूर्व यह मामला नही निपटता है तो उन्हे सेवानिवृति लाभ मिलने कठिन हो जायेंगे। फिर मरड़ी ने शायद मानवाधिकार आयोग में सदस्य के पद के लिये भी आवेदन कर रखा है लेकिन यहां भी यह लंबित मामला समस्या बन जायेगा। चर्चा है कि मरड़ी सेवानिवृति से पूर्व इस मामले से निपटारा चाहते हैं। यदि पुलिस इसमें अदालत में चालान डालती है तो उसमें ट्रायल लम्बा चलेगा और अपील तक की नौबत आयेगी। ऐसे में मरड़ी इस प्रयास में कहे जा रहे हैं कि इस अदालत में क्लोज़र रिपोर्ट ही डाली जाये। चर्चा है कि इसके लिये एक आईजी स्तर के अधिकारी ने थाना छोटा शिमला पर पूरा दवाब डाला हुआ है। लेकिन मामला दस्तावेजों पर आधारित होने के कारण क्लोज़र रिपोर्ट डालना संभव नही हो रहा है परन्तु जांच अधिकारी पर शायद आईजी साहब का दवाब ज्यादा हो गया है। सूत्रों की माने तो जांच अधिकारी इस दबाव से इतने परेशान हो गये हैं कि वह दबाव को रिकार्ड पर ले आये हैं। माना जा रहा है। कि यदि सही में यह दवाब रिकार्ड पर आ गया है तो यह कई लोगों के लिये परेशानी का कारण बनेगा।

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