Friday, 19 September 2025
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सरकार के दावों के बावजूद कामगारों में विश्वास बहाली क्यों नही

शिमला/शैल। तालाबन्दी के कारण सारी कारोबारी गतिविधियां एकदम ठप हो गयी है। परिवहन के सारे साधन बन्द है। तालाबन्दी मे जो जहां है वह वहीं रहेगा यह आदेश है। इन आदेशों के चलते कामगार और उनके परिवार सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। बहुत सारे कामगार अपने अपने स्थानों से पलायन करने की बाध्यता पर आ गये हैं। लेकिन ऐसा कर नही पा रहे हैं। ऐसे लोगों की सहायता के लिये केन्द्र सरकार ने आपदा प्रबन्धन अधिनियम के प्रावधानों के तहत यह निर्देश जारी किये हैं कि तालाबन्दी की अवधि के लिये उनका वेतन न काटा जाये। किराये के आवासों में रह रहे ऐसे लोगों के लिये मकान मालिकों को भी यह कहा गया है कि यह इन लोगों से एक माह का किराया न ले। सर्वोच्च न्यायालय में भी  इस आश्य की कुछ याचिकाएं दायर हो गई है। जिनमें इस दिशा में उचित दिशा निर्देश जारी करने के आग्रह किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से इस पर जबाव भी तलब किया है।

यह तालाबन्दी 21 दिनों की है और इसका कड़ाई से अनुपालन करने के आदेश है। अनुपालना की जिम्मेदारी पुलिस को दी गई है। कामगारों की यह समस्या हर प्रदेश में है। हिमाचल में भी करीब पांच लाख लोग प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रभावित है। स्वभाविक है कि यदि यह कामगार एक बार अपने अपने औद्योगिक क्षेत्रों को छोड़कर चले जाते है तो इससे उद्योग भी प्रभावित होंगे। क्योंकि इन लोगों को वापिस काम पर आने में समय लगेगा। तय है कि इससे दोनों पक्ष प्रभावित होंगे।
इससे यह सवाल उठता है कि जब यह तालाबन्दी केवल 21 दिनों के लिये ही है और सरकार ने इनकी सहायता के लिये आदेश तक जारी कर दिये हैं। फिर उद्योगपति, कामगार और मकान मालिक सभी एक दूसरे पर विश्वास क्यों नही कर पा रहे हैं। क्या यह विश्वास नही हो पा रहा है कि यह कारोबारी गतिविधियां 22वें दिन पूर्ववत बहाल हो जायेंगे? क्या सरकार इस आश्य का कोई आदेश जारी नही कर सकती है कि यह कामगार 22वें दिन अपने अपने काम पर पहले की तरह लौट आयेंगे। क्या उद्योगों को सरकार पर विश्वास नही हो पा रहा है कि वह 22वें दिन अपने उद्योग को पूर्ववत चला पायेंगे। हिमाचल सरकार ने 2019 के पुरे वर्ष में निवेशक मीट आयोजित करके 93 हजार करोड़ के निवेश के एम ओ यू विभिन्न उद्योगपतियों से हस्ताक्षरित किये हंै। क्या ऐसे में राज्य सरकार को इस समय ऐसा आदेश नही जारी करना चाहिये कि हिमाचल मे स्थित उद्योग इन कामगारों को पहले की तरह 22वें दिन पूर्ववत काम पर रख लेंगे। यदि सरकार उद्योगपति, कामगार और मकान मालिक में विश्वास बहाल नही कर सकती है तो आम आदमी कैसे सरकार के प्रयासों पर विश्वास बना पायेगा। 

टाण्डा में उपचाराधीन कोविड-19 के दो में से एक व्यक्ति की रिपोर्ट हो चुकी है नेगेटिव

शिमला/शैल।अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने प्रदेश में कोविड-19 की स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि अब तक प्रदेश में कुल 2409 लोग दूसरे देशों से आए हैं और जिनमें से 688 लोगों ने 28 दिन की जरूरी निगरानी अवधि को पूरा कर लिया है एवं 1476 लोग अभी भी निगरानी में हैं। इसमें 179 लोग प्रदेश छोड़कर भी जा चुके हैं। आज प्रदेश में 17 लोगों के कोविड-19 के प्रति जांच के नमूने लिए गए थें तथा सभी की जांच रिपोर्ट नेगेटिव पाई गई है। अब तक कुल 150 लोगों के जांच की जा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि जो पूर्व में दो व्यक्ति कोविड-19 के प्रति पोजिटिव पाए जाने के उपरान्त Dr. RPGMC टाण्डा में उपचाराधीन हैं उनमें से एक की रिपोर्ट कोविड-19 के प्रति नेगेटिव हो चुकी है। उन्होंने आगे जानकारी देते हुए बताया कि IT विभाग हि0प्र0, स्वास्थ्य विभाग के लिए एक नई वेब एप्लीकेशन बना रहा है जिसमें सभी गृह निगरानी में रखे गए लोगों की जानकारी उपलब्ध होगी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने बताया कि प्रदेश स्वास्थ्य विभाग इस वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए वृह्द सूचना, शिक्षा एवं सम्प्रेषण गतिविधियाँ संचालित कर रहा है, जिसके माध्यम से जनसाधारण को विभाग द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुपालन के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि कोविड-19 के संक्रमण को रोका जा सके।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) ने जनसाधारण से आह्वान किया कि वे व्यर्थ में मास्क और हैण्ड सैनिटाईजर खरीद कर अपनी आर्थिकी पर बोझ ना डालें बल्कि अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान दें, साबुन से समय-समय पर हाथ धोतें रहें, छींकनें और खाँसनें के दौरान शिष्टाचार का पालन करें। यह आवश्यक नहीं कि आपको हैण्ड सैनिटाईजर लेना आवश्यक है, यदि यह उपलब्ध ना भी हों तो भी हम साबुन से सही तरह अपने हाथ धोने की आदत अपना कर इस रोग के संक्रमण से बच सकते हैं। यदि आपको खाँसी या बुखार है तो किसी के सम्पर्क में ना आएं, सार्वजनिक स्थानों पर ना थूँके, अगर आप अस्वस्थ महसूस करते हैं तो अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र या चिकित्सक से सम्पर्क करें। यह जरूरी नहीं कि खाँसी या बुखार केवल कोराना वायरस के ही लक्षण हों, ये किसी अन्य बिमारी के भी लक्षण हो सकतें है, इसलिए कोरोना वायरस की सही जानकारी एवं सुरक्षा के दिशानिर्देशांे का सजगता से पालन कर आप स्वयं व दूसरों को इसके संक्रमण के प्रभाव से सुरक्षित रख सकते है। इसलिए यह भी पुनः अनुरोध किया की क्फर्यू की ढ़ील के दौरान भी अनावश्यक रूप से घरों से बाहर न निकलें एवं कोविड-19 के संक्रमण के रोकथाम के लिए प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में सहयोग दें। यदि किसी कारणवश घर से बाहर जाना भी पडता है तो अपने बचाव के लिए सजग एवं सतर्क रहें।

क्या लाक डाउन और कर्फ्यू लगाकर ही सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने पूरे प्रदेश में 23 मार्च से लाक डाउन लागू कर दिया है। लाक डाउन के दौरान कौन सी सेवाएं उपलब्ध रहेगी और सामान्य नागरिकों से क्या अपेक्षाएं रहेंगी इसका पूरा जिक्र मुख्य सचिव के आदेश में दर्ज है। कोरोना की प्रदेश में वास्तविक स्थिति क्या है इसका खुलासा अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य आर डी धीमान ने एक पत्रकार वार्ता में सामने रखा है। उनके मुताबिक अब तक 1030 मामले निगरानी में रखे गये थे। जिनमें से 387 व्यक्ति निगरानी के 28 दिन पूरे कर चुके हैं और अब उनमें इस रोग के कोई लक्षण नही हैं तथा पूरी तरह स्वस्थ हैं। अब केवल 515 लोग निगरानी में चल रहे हैं। प्रदेश में आई.जी.एम.सी. शिमला, राजेन्द्र प्रसाद मैडिकल कालिज टाण्डा और राजकीय मैडिकल कालिज नेरचैक मण्डी में आईसोलेशन वार्ड बना दिये गये हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री के मुताबिक कोरोना के केवल दो मामले पाजिटिव पाये गये हैं। मुख्यमन्त्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के ब्यानों के मुताबिक कोरोना से भयभीत होने की आवश्यकता नही है।
कोरोना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की गयी है। दुनिया के अधिकांश देशों में फैल चुकी और अभी तक इसका कोई अधिकारिक ईलाज भी सामने नही आया हैं। केवल इसके लक्षणों की जानकारी उपलब्ध है और यह बताया गया है कि यह संक्रमण से फैलती है और संक्रमण एक दूसरे के संपर्क में आने से होता है। इसलिये अभी तक केवल संक्रमण से ही बचने के उपाय किये जा सकते हैं और इसके हर उस आयोजन को बंद कर दिया गया है जहां भी दूसरे के संपर्क में आने की संभावनाएं रहती हैं। सरकार ऐसे आयोजनों पर जनता कर्फ्यू और लाक डाउन के आदेश जारी होने से पहले ही प्रतिबन्ध लगा चुकी है। अब जब लाक डाउन के आदेश आ गये हैं तो इसमें सबसे ज्यादा प्राईवेट सैक्टर के कारोबार पर असर पडे़गा। दिहाड़ीदार मज़दूर सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। इसलिये यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सरकार इस वर्ग के लिये क्या सहायता उपलब्ध करवायेगी इस बारे में अभी तक सरकार की ओर से कोई घोषणा सामने नही आयी है। सरकार आवश्यक सामान की आपूर्ति तो सुनिश्चित करने के प्रयास तो कर रही है लेकिन यह कैसे सुनिश्चित होगा कि दिहाड़ीदार मज़दूर यह आवश्यक सामान खरीद सकने की क्षमता में भी है या नही।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या लाक डाउन और कर्फ्यू ही सरकार के स्तर पर आवश्यक कदम हैं। जब कोई दवाई तक सामने नही आयी है और हर व्यक्ति को सैनेटाईज़र प्रयोग करने की सलाह दी  जा रही है तो क्या सार्वजनिक स्थालों पर इसका छिकड़काव किया जाना आवश्यक नही होना चाहिये। क्योंकि इस समय दवाई के अभाव में सैनेटाईज़र और अन्य कीटनाश्कों का छिड़काव ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। लेकिन सरकार की ओर से इस दिशा में अभी तक कोई कदम नही उठाये जा रहे हैं। इस रोग के परीक्षण की सुविधा और आईसोलेशन वार्डों की उपलब्धता ही ज़िला मुख्यालय पर उपलब्ध नही है। प्रदेश के सारे मैडिकल कालिजों तक में यह सुविधा उपलब्ध नही है। क्या सरकार की प्रशासनिक स्तर पर सारे सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबन्ध लगाकर ही जिम्मेदारी पूरी हो जाती है इसको लेकर अब सवाल उठने शूरू हो गये है। व्यापारिक संगठनों ने व्यापार प्रभावित होने के कारण आर्थिक सहायता की मांग तक कर दी है। लेकिन सरकार अभी तक प्रदेश की जनता को यह नही बता पायी है कि उसने इस बीमारी से निपटने के लिये कितना आर्थिक प्रावधान कर रखा है।
यह माहमारी एक प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आयी है और प्राकृतिक आपदायें पूर्व निश्चित होती है। यह आकस्मिक होती है और इसलिये संविधान की धारा 267 के तहत बजट में आकस्मिक निधि का प्रावधान रखा गया है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उस निधि से पैसा निकाला जा सकें। लेकिन प्रदेश में कुछ अरसे से आकस्मिक निधि के तहत कोई धन का प्रावधान ही किया जा रहा है और कभी कोई माननीय इस ओर ध्यान ही नही दे रहा है। कैग रिपोर्ट में इसको लेकर सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की गयी है। बल्कि कैग ने तो इसी के साथ रिस्क फण्ड रखने की भी बात की है। लेकिन कैग की टिप्पणी के वाबजूद सरकार की ओर से कोई कदम न उठाया जान कई सवाल खड़े करता है।

क्या राठौर की कार्यकारिणी भाजपा को चुनौती दे पायेगी या अपने ही भार में दब जायेगी

 

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की 197 सदस्यों की कार्यकारिणी अन्ततः घोषित हो गयी है। यह कार्यकारिणी घोषित करने में जितना लम्बा समय लिया गया और फिर जिस बड़े आकार में यह सामने आयी है उससे पार्टी के भीतर चल रही खींचतान का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि इसमें जहां सभी विधायकों को स्थान देने का प्रयास किया गया है वहीं पर सभी बड़े नेताओं के परिजनों को भी पद दिये गये हैं। 197 सदस्यों की कार्यकारिणी में 153 पदाधिकारी हैं। स्मरणीय है कि 2019 के शुरू में ही सुखविन्दर सुक्खु को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन इस बदलाव के बाद  भी पार्टी लोकसभा की चारों सीटें हार गयी। इस हार के कारणों पर हुए मंथन का निष्कर्ष क्या रहा इस पर कोई खुली बहस करने की बजाये थोड़े समय बाद कार्यकारिणी को ही भंगकर दिया गया। कार्यकारिणी भंग होने के बाद हुए दोनों विधानसभा उपचुनावों मंे फिर पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा क्योंकि धर्मशाला में पार्टी जमानत तक नही बचा पायी। इसी सबके कारण यहां तक अटकलें चल निकली थी कि अध्यक्ष को भी बदला जा रहा है। अब राठौर तो अपना पद बचाने में सफल हो गये हैं लेकिन यह सवाल उठ गया है कि क्या इतनी बड़ी कार्यकारिणी के साथ अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस आसानी से भाजपा से सत्ता छीन पायेगी।
अभी जयराम सरकार का तीसरा बजट आया है और इस कार्यकाल के दो और बजट आने शेष हैं। कार्यकाल का अन्तिमवर्ष तो चुनाव का वर्ष होता है। इस परिप्रेक्ष में अभी जो एक डेढ़ वर्ष का कार्यकाल होगा उसी में विपक्ष सरकार को घेरने और सरकार विपक्ष को कमजोर करने का प्रयास करेगा। सरकार को घेरने के लिये उसकी नीतियों और उनके सहारे किये जाने वाले उपलब्धियों के दावों की सत्यता जनता के सामने लानी होती है। इसी के साथ दूसरा बड़ा हथियार भ्रष्टाचार होता है। सरकार में कहां-कहां भष्टाचार हुआ है विपक्ष उसको हथियार बनाता है इसके लिये सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाये जाते हैं। लेकिन अभी तक के कार्याकाल में कांग्रेस ऐसा कोई प्रयास नही कर पायी है। आने वाले दिनों में इस दिशा में क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन पूर्व में दोनांे पार्टीयां बतौर विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ कई आरोप पत्र लायी हुई हैं जिन पर आज तक कोई जांच नही हो पायी है। ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ ठोस आरोप लेकर आती है या जयराम सरकार वीरभद्र शासन के खिलाफ लाये अपने ही आरोप पत्रांे पर जांच और कारवाई का साहस जुटा पाती है। क्योंकि इस समय जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष मुकेश अन्गिहोत्री , पूर्व अध्यक्ष सुक्खु, जगत सिंह नेगी , हर्षवर्धन चैहान और रामलाल सदन में सरकार पर आक्रमकता बनाये हुए हैं क्या उसको सदन के बाहर पार्टी और प्रभावी ढंग से बढ़ा पाती है या नही। यह राठौर के लिये भी परीक्षा का समय होगा।
इस समय कार्यकारिणी में बारह प्रवक्ता और 69 सचिव हैं। यदि यह लोग ईमानदारी से पूरे अध्ययन के साथ प्रदेश और राष्ट्रीय मुद्दों को जनता तक ले जाते हैं तो निश्चित रूप से एक बदलाव का वातावरण तैयार करना कठिन नही होगा। लेकिन इतने बडे़ आकार की कार्यकारिणी में जिस तरह से परिवारवाद भारी रहा है उससे यह आशंका अभी से खड़ी हो गयी है कि क्या पार्टी बड़े नेताओं के साये से बाहर आ पायेगी। क्योंकि 2014 से लगातार हर चुनाव हारती आ रही है। संगठन और सरकार में लगातार अन्ततः विरोध रहे हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिन्द्धात को सीधे-सीधे अंगूठा दिखाया गया। पार्टी के समानान्तर एनजीओ के नाम से संगठन खड़ा करने के प्रयास किये गये। एनजीओ के अध्यक्ष ने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ अदालत का दरवाजा तक खटखटाया। आज उस एनजीओ के लगभग सारे पदाधिकारी राठौर की कार्यकारिणी में शामिल हैैं। लेकिन इस कार्यकारिणी में धर्मशाला उपचुनाव के पार्टी उम्मीदवार या उसके समर्थकों को जगह नही मिल पायी है। दूसरी ओर धर्मशाला में सुधीर शर्मा के अन्तिम क्षणों में उपचुनाव से किनारा करने के कारणों को लेकर कुछ भी सामने नही आया है। पार्टी में नये लोगों को जोड़ने के कोई प्रयास नही किये गये हंै। बल्कि भाजपा से कांग्रेस में सुरेश चन्देल भी लगभग हाशिये पर ही चल रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि राठौर की यह कार्यकारिणी सही अर्थों में कांग्रेस के लिये चुनौती पेश कर पायेगी या फिर अपने ही भार तले दम तोड़ देगी। क्योंकि जिस तरह से कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रयास करने में लगी है उसका असर सभी प्रदेशों पर होगा यह तय है।

 

बाहरा विश्वविद्यालय भी आया सवालों में

शिमला/शैल। बाहरा विश्वविद्यालय के फिजियोथैरपी विभाग के छः छात्रों ने सोशल मीडिया मंच के माध्यम से अपनी एक शिकायत विधायक विक्रमादित्य सिंह को भेजी है। शिकायत के मुताबिक पिछले कुछ अरसे से अध्यापक उनकी क्लास नही ले रहे हैं। इस संबंध में यह छात्र विश्वविद्यालय के वाईस चान्सलर तक अपनी शिकायत दे चुके हैं। अध्यापक इसलिये क्लास नही ले रहे हैं क्योंकि उन्हे कुछ समय से वेतन नही मिल रहा है। छात्रों का कहना है कि वह नियमित रूप से वेतन फीस विश्वविद्यालय को दे रहे हैं। दूसरी ओर अध्यापक इसलिये नही पढ़ा रहे हैं क्योंकि उन्हें समय पर वेतन नही मिल रहा है। ऐसे में जब छात्रों की परीक्षा सिर पर हैं तब अध्यापक इसी तरीके से विश्वविद्यालय प्रशासन पर अपना दवाब बना सकते हैं।

बाहरा विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों की इस समस्या ने एक बार फिर निजि शिक्षण संस्थानों को लेकर बनाये गये नियामक आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये हैं क्योंकि प्राईवेट शिक्षण संस्थानों पर निगरानी रखने के लिये यही सबसे बड़ा मंच है। बाहरा विश्वविद्यालय की जब स्थापना हुई थी तब इसको मिली जम़ीन को लेकर भी सवाल उठे थे। सूत्रों के मुताबिक आज भी विश्वविद्यालय के पास एक बड़ा भूभाग ऐसा है जिसे अभी तक उपयोग में नही लाया गया है। धारा 118 के प्रावधानों पर अमल करते हुए ऐसी ज़मीन को वापिस लिया जा सकता है लेकिन प्रशासन ने इस ओर अभी तक कोई कदम नही उठाया है। सूत्रों के मुताबिक विश्वविद्यालय के संचालक समानान्तर में होटल व्यवसाय में भी आ चुके हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि शायद छात्रों की फीस के पैसे को कहीं दूसरी जगह निवेश किया जा रहा है। अब जब प्रदेश के कुछ निजि विश्वविद्यालयों के खिलाफ फर्जी डिग्रीयां बेचने को लेकर जांच चल रही है तब बाहरा विश्वविद्यालय के छात्रों की शिकायत को हल्के से लेना गलत होगा।

 

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