Friday, 19 September 2025
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फेक न्यूज से लेकर आवारा पशु और व्यापारी वर्ग के पत्र ने बढ़ाई सरकार की मुश्किल

शिमला/शैल।  हिमाचल सरकार ने फेक न्यूज रोकने और उसके खिलाफ कारवाई करने के लिये निदेशक लोक संपर्क की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यों की कमेटी का  गठन किया है। इस कमेटी के अतिरिक्त एक बैव पोर्टल भी जारी किया गया है। सरकार के इन कदमों के बाद अभी मुख्यमन्त्री के अपने ज़िले मण्डी में ही सेाशल मीडिया में भ्रामक और भड़काऊ पोस्ट डालने के लिये सात केस दर्ज किये गये हैं। एसपी मण्डी गुरदेव चन्द के अनुसार इन पोस्टों में एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया है। स्मरणीय है कि जब से निजा़मुद्दीन मरकज दिल्ली में तब्लीगी समाज का समागम हुआ है उसके बाद से पूरे देश में एक प्रचार कर दिया गया कि यही समाज कोरोना के लिये जिम्मेदार है। कुछ मीडिया कर्मीयों ने तो इन्हें तालीबान और मानव बमों की संज्ञा तक दे दी। इस तरह के प्रचार के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई और मीडिया के लिये दिशा निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया। इस आग्रह पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र और केन्द्र ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये जिन पर कमेटीयों के गठन के कदम उठाये गये हैं। अभी सर्वोच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर हुई हैं जिसमें केजरीवाल सरकार के खिलाफ मरकज मामले में सीबीआई जांच की मांग की गयी है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग बहुत ही सुनियोजित ढंग से देश के मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा है। आज यह पूरी स्थिति इस तरह विस्फोटक हो चुकी है कि इस महामारी में भी इस प्रचार को विराम नही दिया जा रहा है। महामारी के प्रकोप से जब भी समाज निजात पायेगा तब यह मुद्दा एक बहुत बड़ी सार्वजनिक बसह का विषय बनेगा यह तय है। यह भी तय है कि इस प्रचार से जिस तरह का ध्रु्रवीकरण आगे शक्ल लेगा उससे सबसे ज्यादा नुकसान सत्ता पक्ष को ही होगा। शायद सत्ता पक्ष को भी इसका आभास होने लगा पड़ा है। इसलिये आज फेक न्यूज को लेकर कमेटी गठन से पुलिस में आपराधिक मामले दर्ज करने की नौबत आ गयी है। क्योंकि इस समय तालाबन्दी से जिस तरह का आर्थिक संकट देश के समाने खड़ा हो गया है उससे बहुत सारे लोगों के लिये रोटी का संकट पैदा हो गया है रोटी के इस संकट से शायद कोई भी प्रदेश अछूता नही बचा है। हिमाचल में ही सरकार के सारे प्रत्यनों के वाबजूद प्रदेश के कई भागों से ऐसी शिकायतें आनी शुरू हो गयी है। कुल्लु के सरबरी में प्रवासी मज़दूरों को खाना नही मिल पाया है। बरोट और पन्डोह में कश्मीरी मज़दूरों को पीटने का विडियो वायरल हो चुका है। हमीरपुर में प्रवासी मज़दूरों की पिटाई को लेकर पुलिस में मामला दर्ज हो चुका है। आज प्रदेश के बहुत सारे क्षेत्रों में लोगों की निर्भीरता प्रवासी मज़दूरों पर हो चुकी है। लेकिन जिस तरह से इन मज़दूरों को निशाना बनाया जा रहा है उससे आने वाले दिनों में खेत से लेकर बागीचों तक लेबर का संकट खड़ा हो जायेगा।
इस समय समुदाय विशेष को निशाना बनाने वाले समाज का गोरक्षा को लेकर भी दोहरा चरित्र सामने आने लग पड़ा है। सरकार ने जिस बड़े पैमाने पर हर पंचायत में गोशालाएं खोलने का अभियान छेड़ा था और उसके लिये ज़मीन तथा धन दोनों उपलब्ध करवाये गये हैं। लेकिन आज यह गौधन फिर आवारा पुशओं की शक्ल में लोगों के खेतों में नुकसान कर रहा है या फिर खुले आसमान के नीचे विचरण कर रहा है क्योंकि गौशाला वालों ने चारे के अभाव में इसे खुला छोड़ दिया है। इससे सरकार की पूरी योजना और गाय की रक्षा के सारे दावों की हवा निकल गयी है।
तालाबन्दी में आर्थिक गतिविधियां किस कदर प्रभावित हुई है और उससे व्यापारी वर्ग किस तरह आहत हुआ है उसका अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि व्यापारीयों कि ओर से भी एक पत्र सोशल मिडिया के मचों पर वायरल हुआ है जिसमें सरकार से कई राहते मांगी गई है। इन्होने तर्क दिया है कि जिस तरह से सूखा प्रभावित किसानों को आर्थिक सहायता दी गई है उसी तर्ज पर इन्हें भी सहायता दी जाये। इस कथित पत्र से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार इस वर्ग की इन मांगो को पूरा कर पायेगी।

2541.43 करोड़ के मुद्रा ऋण का सच क्या है

शिमला/शैल। मोदी सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी 2018 में एक मुद्रा ऋ.ण योजना शुरू की थी। केन्द्र के अनुसार यह योजना उन सभी सुक्ष्म उद्यमों को विकसित करने और पुर्निवित्त करने के लिये जिम्मेदार है जो वित्त संस्थानों का समर्थन करते हैं और मुख्य रूप से विनिर्माण व्यापार, सेवा और गैर कृषि क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले सभी अग्रिम जो 8-4-2015 को या इसके बाद इस योजना के अधीन आये हों को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस योजना के तहत देशभर में करीब 11 लाख करोड़ के ऋण दिये गये हैं।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2019-20 में इस  योजना के तहत 17562 नये लघु उद्यमियों को 425.19 करोड़ के ऋण प्रदेश के बैंको द्वारा उपलब्ध करवाये गये हैं। सितम्बर 2019 तक प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना के तहत 1,45,838 उद्यमियों को 2541.43 करोड़ के ऋण वितरीत किये गये हैं। वर्ष 2019-20 के विधानसभा में रखें गये आर्थिक सर्वेक्षण में इसे सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में पंजीकृत छोटी-बड़ी औद्योगिक ईकाईयों की संख्या अभी 60 हज़ार से कम है। इनमें कार्यरत कामगारों की संख्या भी 1.50 लाख के करीब है। वैसे कामगार बोर्ड के पास तो पंजीकृत कामगारों की संख्या 56000 के करीब है। लेकिन प्रधानमन्त्री मुद्रा ऋण योजना के तहत 1,45,838 उद्यमियों को 2541.43 करोड़ के ऋण दे दिये गये हैं। इसके मुताबिक प्रदेश में इतने उद्योग स्थापित हो गये हैं। लेकिन सरकार के उद्योग विभाग, श्रम एवम् रोज़गार विभाग तथा कामगार बोर्ड के आंकड़ों में भिन्नता होने के कारण इस पर सन्देह बन जाता है। विभिन्न बैंकों से जब ऐसे ऋण लाभार्थियों की सूची लेने का प्रयास किया गया तो उनके पास ऐसी सूची उपलब्ध ही नही थी। किसी भी बैंक ने ऐसे लाभार्थियों के उद्यमों का अपने स्तर पर कोई निरीक्षण किया हो इसका भी कोई रिकार्ड उपलब्ध नही था। इस ऋण से कितने लाभार्थी इस ऋण की वासपी की किश्तें नियमित रूप से अदा कर रहे हैं इसका भी कोई उचित रिकार्ड बैंकों के पास उपलब्ध नहीं था। बैंकों के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक ऐसे लाभार्थीयों का कोई ठोस रिकार्ड ऋण देते हुए लिया ही नही गया है।
आज जब देश और प्रदेश कोरोना संकट से जुझते हुए मन्त्रीयों, विधायकों के वेत्तनभत्तों में कटौती करने के कगार पर पहुंच गया है तक यह आवश्यक हो जाता है कि इस तरह के खर्चों की पूरी जांच करके तथ्य जनता के सामने लाये जायें क्योंकि यह पैसा प्रदेश के आम आदमी का पैसा हैं।

क्या तब्लीगी जमात के कारण हुई हिमाचल में कोरोना मामलों की बढ़ौत्तरी

शिमला/शैल। क्या हिमाचल प्रदेश में कोरोना के मामलों में तब्लीगी जमानत के लोगों के प्रदेश में आने से बढ़ौत्तरी हुई है? क्या यह लोग अपनी पहचान छिपा रहे हैं? क्या यह समुचित जानकारी न होने के कारण ऐसा कर रहे हैं या जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। यह सारे सवाल इस समय प्रमुख चर्चा में चल रहे हैं क्योंकि सोशल मीडिया में जिस तरह के पोस्ट देखने को मिल रहे हैं उससे यह सारी आशंकाएं उठ खड़ी हुई हैं। इन्ही आशंकाओं के चलते मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश के सभी ज़िला उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिये हैं कि प्रदेश में आये दिल्ली की निज़ामुद्दीन तब्लीगी जमात के लोगों को चिन्हित करके उन्हें जांच के लिये ले जाया जाये। इसके लिये मुख्यमन्त्री ने इन लोगों से आग्रह भी किया है कि वह स्वेच्छा से अपने और जनहित में जांच के लिये आगे आयें। इसी के साथ मुख्यमन्त्री ने इन्हे चेतावनी भी दी है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से आगे न आया और बाद में पकड़ा गया तो उसके खिलाफ और उसे आश्रय देने वाले के खिलाफ भी कड़ी कारवाई की जायेगी। मुख्यमन्त्री के इस आग्रह के बाद डीजीपी एस आर मरड़ी ने भी स्पष्ट निर्देश जारी कर दिये हैं। इन निर्देशों के मुताबिक ऐसे लोगों के खिलाफ पकड़े जाने पर हत्या और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज करके आपराधिक कारवाई की जायेगी। डीजीपी ने इसके लिये स्वेच्छा से सामने आने का समय 5 अप्रैल शाम तक का दिया है। यह समय सीमा खत्म होने तक कितने लोग सामने आये हैं या इसके बाद कितने लोगों को पुलिस और प्रशासन खोज पाया है इस पर अभी तक कोई जानकारी सामने नही आयी है।
  प्रदेश में अब तक कोरोना के 14 पाजिटिव मामले सामने हैं। इनमें से सात मामले सोलन और सात ही कांगड़ा से हैं। दोनों जिलों में एक-एक मौत भी हो चुकी है। सोलन के बद्दी क्षेत्र में जिस महिला की कोरोना के कारण मौत हो चुकी है उसके साथ आये चारों लोग पाजिटिव पाये गये हैं और  वह ईलाज के लिये दिल्ली  भी चल गये हैं इनके अतिरिक्त इसी बद्दी नालागढ़ क्षेत्र से तीन और लोग पाजिटिव पाये गये है और इन्हे आईजीएमसी शिमला भेज दिया गया है। यह तीनों गाजियावाद के रहने वाले हैं। ऊना में भी तीन पाजिटिव मामले सामने आये थे जिन्हे टांडा मैडिकल कालिज में भेज दिया गया है। यह लोग मण्डी के रहने वाले हैं और यह ऊना में मस्जिद में रह रहे थे तथा निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात में गये थे। तब्लीगी जमात के 85 लोगों के खिलाफ 17 मामले दर्ज किये जा चुके हैं इनमें बद्दी में 45 और ऊना में 14 लोगों के खिलाफ मामलें हैं सिरमौर के ददाहू में भी एक विनित अग्रवाल के खिलाफ मामला दर्ज हैं। दो लोगों द्वारा सामाजिक शर्मिंदगी के चलते आत्महत्या भी कर ली गई है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अब तक 407 मामलों में खून के सैंपल लिये गये हैं। 4352 लोगों को निगरानी में रखा गया है। 1892 लोग 28 दिन की आईसोलेशन की अवधि पूरी कर चुके हैं। पुलिस प्रशासन ने तब्लीगी जमात के 204 लोगों को अब तक चिन्हित किया है और इन सबको संगरोधन में भेज दिया गया है। इनमें सबसे ज्यादा 73 बद्दी, 39 ऊना, 35 सिरमौर , 23 शिमला, 20 चम्बा, 10 कांगड़ा और 4 मण्डी से हैं। डीजीपी के अनुसार कफ्रर्यू  लगने के बाद प्रदेश में 358 मामले दर्ज किये गये और 372 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसी के साथ 25 वाहनों को भी जब्त किया गया है।
इन अधिकारिक आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश में तब्लीगी जमात के लोगों के कारण कोरोना के मामले बड़े हैं और आगे बड़ने की आशंका है जिसके चलते सख्ती से निपटने की चेतावनी भी जारी कर दी गयी है। जमात के लोग इसलिये खतरा माने जा रहे हैं क्योंकि वह निजामुद्दीन मरकज में शिरकत करके प्रदेश में आये है और वहां से संक्रमण के वाहक होने का अनचाहे ही माध्यम बन गये हैं। निजा़मुद्दीन मरकज को लेकर पुलिस में मामले दर्ज हो चुके हैं। इनकी जांच में सामने आयेगा कि इनके खिलाफ लाकडाऊन की अवेहलना का मामला उस बिल्डंग की चार दिवारी के भीतर रहते हुए भी बनता है या नही। कानून के जानकारों के मुताबिक कर्फ्यू और तालाबन्दी की अवेहलना भवन की चार दिवारी के भीतर नही बनती है। इसी के साथ यह भी जांच में ही सामने आयेगा कि उस सम्मेलन में शामिल कितने लोग पहले से ही संक्रमित होकर वहां आये और फिर दूसरो में सक्रमण फैलाने का कारण बने। क्योंकि कई बार जानकारी के अभाव में भी ऐसी गलतीयां हो जाती हैं।
ऊना में ही जहां मण्डी के रहने वाले तीन लोग पकड़े गये है वहीं पर अम्ब में कार्यरत एक ज्यूडिशियल अधिकारी श्रीमति रोज़ी दहिया ऊना अस्पताल के आईसोलेशन वार्ड में 20-03-2020 को कोरोना संक्रमण के लिये भर्ती हुई थी। लेकिन आईसोलेशन के नियमों का उल्लघंन करते हुए देर शाम अपने पति के साथ अस्पताल में घूमी भी और रात को पति के ही साथ वहां रही भी। ज़िलाधीश ऊना ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए सीएमओ को पत्र लिखकर इस मामले की जांच करने के आदेश किये हैं। इससे यह सवाल उठता है कि जब एक जिम्मेदार न्यायिक अधिकारी इस तरह से आईसोलेशन के नियमों की अस्पताल में भर्ती होने के बाद अवेहलना करता है तो निजा़मुद्दीन मरकज से आने वाले तब्लीगीयों से नियमों की जानकारी की कितनी अपेक्षा की जा सकती है।

पी एम केयर फण्ड की आवश्यकता क्यों: राठौर

शिमला/शैल। कोरोना की आपदा आने के बाद एक पी एम फण्ड की स्थापना की गयी है। इसमें प्रधानमंत्री, रक्षा मत्री, वित मंत्री आदि कई मंत्री इस केयर फण्ड के सदस्य बनाये गये हैं। इस फण्ड में कई उद्योगपतियों और अन्य लोगों ने सैंकड़ों  करोड़ का दान दिया है। लेकिन इस फण्ड पर यह सवाल उठने शुरू हो  गये है कि क्या यह एक सरकारी फण्ड है और इसका भी बाकायदा आडिट होगा। इसमें प्रधानमंत्री और जो अन्य मंत्री शामिल हैं क्या वह बतौर मंत्री शमिल हैं या व्यक्तिगत स्तर पर शामिल हैं। यह सवाल इस लये उठ रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री रिलीफ फण्ड के नाम से पहले से ही एक कोष स्थापित है। इसके अतिरिक्त आपदा प्रबन्धन के नाम पर भी एक कोष केन्द्र से लेकर राज्यों तक स्थापित है। इस समय इसी आपदा प्रबन्धन के नाम पर सारे राहत कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यह एक गैर सरकारी कोष है। इस कोष पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कड़ी प्रतिक्रिया जारी की है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कहा है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष में पहले से ही पर्याप्त फंड पड़ा है। इस फण्ड को तो खर्च नही किया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री के नाम पर इस विपदा के समय एक नए केअर फंड की स्थापना करने की क्या जरूरत आन पड़ गई, केंद्र सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए।
राठौर ने कहा है कि हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री केअर फंड की स्थापना के साथ ही उनके निकट माने जाने वाले बड़े उद्योगपतियों ने इस केयर फंड में बड़े पैमाने में पैसा डाल दिया है। उन्होंने इस केयर फंड की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सन्देह व्यक्त करते हुए कहा है कि इसमें उनके मित्र उद्योपतियों के साथ किसी भी बड़ी सांठगांठ से भी इंकार नही किया जा सकता।
राठौर ने कहा है कि भाजपा देश मे लोगों की सहायता के घड़याली आंसू बहा रही है। भाजपा लोगों की सेवा कम और प्रधानमंत्री के महिमा मंडल व प्रचार में ज्यादा जुटी है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस और कई स्वयमसेवी सगंठन पूरी ईमानदारी से लोगों की हरसंभव मदद कर रहें है, जबकि भाजपा अभी तक मोदी किट में ही उलझी हुई है।
राठौर ने भाजपा का कटाक्ष करते हुए कहा है कि उसे राजनीति करने के आगे कई अवसर और मौके मिलेंगे। यह समय किसी राजनीति का नही है, यह समय लोगों की समस्याओं को दूर करने का है। देश में कोरोना संक्रमण को लेकर लोग भयभीत हैं, ऐसे में लोगो की मदद सच्चे मन से की जानी चाहिए।

क्या ऐसे लडे़गे कोरोना से नाहन मैडिकल कालिज में ही 3.75 करोड़ खर्च करने के बावजूद नही है आक्सिजन पाईपलाईन स्पलाई

25 मार्च के पुनर्नियुक्ति आदेशों पर अभी तक नही आया कोई भी
विभाग में डाक्टरों और पैरामैडिकल के पद अभी भी खाली

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री द्वारा 24 मार्च को देश भर में तालाबन्दी लागू कर दी गई थी जो तीन सप्ताह तक चलेगी। इसके बाद क्या होगा इसका पता 14 अप्रैल को लगेगा। तालाबन्दी के आदेशों के चलते पुरे देश में आर्थिक उत्पादन से जुडी हर गतिविधि बन्द हो गई है। इससे लाखों कामगार और उनके परिवार प्रभावित हुये हैं। हिमाचल भी इस प्रभाव से अच्छूता नही रहा है। यहां के औद्योगिक  क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूर और उनके परिवारों के करीब पांच लाख लोग प्रभावित हुये हैं। तालाबन्दी से यह लोग इस कदर प्रभावित हूये है कि अपने अपने घरों को वापिस जाने के अतिरिक्त इनके पास और कोई विकल्प शेष नही रह गया है। दूसरी ओर तालाबन्दी में यह आदेश कि जो जहां है वह वहीं रहे। इस आदेश की अनुपालना के लिये राज्य की सारी सीमाएं सील कर दी गई है। देश भर में यही स्थिति है। ऐसे लोगों के खाने ठहरने की व्यवस्था करने और सरकार के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी जिले के जिलाधीशों और पुलिस उपायुक्तों को दी गई है। प्रदेश में तालाबन्दी ही नही बल्कि कर्फ्यू लागू है तथा प्रदेश के भीतर भी एक जिले से दूसरे जिलो में जाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। यह सब कोरोना के फैलाव को रोकने के लिये किया गया है क्योंकि सरकार को हर आदमी के जान माल की चिन्ता है। मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से स्थिति पर नजर रख रहे हैं और इस पर हर रोज प्रशासन से बातचीत करके प्रदेश को संबाधित भी कर रहे है।

इस परिदृश्य मे यह स्वभाविक है कि आम आदमी सरकार के प्रबन्धों उसकी नितियों और उसके आदेशों पर ही बात करेगा। कोरोना महामारी से बचाव के लिये अभी तक कोई दवाई उपलब्ध नही है यह एक कड़वा सच है। ऐसे में जब दवाई नही है तो ‘‘ईलाज से प्रहेज ही बेहतर है’’ की व्यवहारिता लागू होती है। परहेज के नाम पर सैनेटाईजर और मास्क का प्रयोग पहला कदम है इसके बाद जो भी सन्दिगध कहीं पर भी चिन्हित होता है उसे तुरन्त प्रभाव से अस्पताल पहुचाना है। अस्पताल के नाम पर पहला स्थान मेडिकल कालेज का आता है क्योंकि वहां पर मरीजों के ईलाज के साथ डाक्टर भी तैयार किये जाते हैं। जहां पर डाक्टर तैयार किये जाते हैं वहां पर सारी व्यवस्थायें एक दम चाक-चैबन्द होगी यह एक सामान्य सी अपेक्षा रहती है। इसलिये जब एक सरकार के ही मेडिकल कालेज में व्यवस्था के नाम पर गंभीर कमियां मिलेगी तो अन्य अस्पतालों का अन्दाजा लगाना कोई कठिन नही होगा। कोरोना के मरीज के लिये जांच के बाद सबसे पहले आक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है क्योंकि मरीज को सांस लेने मे तकलीफ होती है। यह सुविधा उपलब्ध कराकर उसे आसोलेस्न वार्ड में ले जाया जाता है। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य संसथानों की हालत इस दिशा में क्या है इसका अनुमान डा यश्वन्त सिंह परमार कालेज नाहन से लगाया जा सकता है। यह कालेज 2016 में स्थापित हो गया था। लेकिन आज 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां मरीजों को आईसीयू वार्ड में आक्सीनज की पाईपलाईन स्पलाई उपलब्ध नही हैं। 3.75 करोड़ खर्च करके पाईप लाईन व्यवस्था नही बन पाई है जबकि यह पैसा इसी व्यवस्था के लिये खर्च किया गया है। यहां तक की गैस के बड़े सिलैन्डर तक उपलब्ध नही हैै। स्टाफ की भारी कमी है। डाक्टरों के डयूटी रूम तक चालू हालत में नही है। अभी कोरोना की दस्तक के बाद मेडिकल कालेज में आसोलेस्न वार्ड तैयार किया गया है। लेकिन आसोलेस्न वार्ड कालेज के साथ लगते आयुर्वेद अस्पताल के भवन में बनाया गया है। यहां पर आक्सीजन पाईपलाईन स्पलाई व्यवस्था ही नही है। क्योंकि यह भवन ही मेडिकल कालेज ने अब लिया है। 3.75 करोड़ खर्च कर दिये गये हैं और गैस की पाईप लाईन सपलाई बल्कि बड़े सिलैण्डर तक नही है। क्या यह अपने में एक बड़ा घपला नही है। मजे की बात यह है की प्रशासन से लेकर सचिवालय तक सबको इसकी जानकारी है लेकिन फिर भी कोई कावाई आज तक नही हो पाई है।
नाहन भाजपा अध्यक्ष डा राजीव बिन्दल का चुनाव क्षेत्र है। बिन्दल धूमल सरकार में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। इसलिये यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जब डा बिन्दल के चुनाव क्षेत्र में स्थित एक सरकारी मेडिकल कालेज में इस तरह का हाल है तो प्रदेश के अन्य स्वास्थ्य संस्थानों का हाल क्या होगा।
यही नही अब कोरोना के चलते सरकार ने 25 मार्च को एक आदेश जारी करके 31.12.2017 से लेकर 29.2.2020 तक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत  हुये सभी स्वास्थ्य अधिकारियों और पैरामेडिकल कर्मियों को 30 जुन तक पुनः सेवा में बुला लिया है। यह आदेश 25 मार्च को हुये हैं और 24 मार्च से प्रदेश में कर्फ्यू और देश भर में लाकडाउन लागू है। इन आदेशों के चलते सचिवालय तक सारे कार्यालय बन्द है। सरकार के आदेशों के बावजूद निदेशालय से यह पुनर्नियुक्ति पत्र जारी नही हो सके हैं क्योंकि निदेशालय में भी कोई काम करने वाला नही था। जब इन सेवानिवृत लोंगो को नियुक्ति पत्र ही नही गये हैं तो फिर इन की सहमति/असहमति कब आयेगी और कब ये लोग सेवायें दे पायेंगे। फिर इनकी सेवायें 30 जुन तक ही ली जायेंगी। क्योंकि उससे आगे के बारे में इस आदेश में कोई जिक्र ही नही किया गया है ऐसे में यह भी स्वाल उठता है कि जो लोग दो साल, एक साल पहले सेवानिवृत होकर अपना आवास आदि छोडकर चले गये हैं वह अब इस जोखिम के समय तीन माह के लिये सेवा देने क्यों आयेंगे। यदि उन्हे कम से कम एक वर्ष की भी पुनर्नियुक्ति दी जाती है तो वह शायद आने का सोच लेते। ऐसे में सरकार ने यह आदेश जारी करके जनता में अपनी पीठथपथपाने से ज्यादा कोई प्रयास नही किया है। क्योंकि आजकल स्वास्थ्य मंत्री के आभाव में इस विभाग की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री के ही पास है। ऐसे में यदि सरकार सही मायनों में स्थिति के प्रति गंभीर होती तो नये लोंगो को भर्ती करती और वह लोग नौकरी के लिये ततकाल प्रभाव से ज्वाईन भी कर लेते। लेकिन सरकार ने ऐसा नही किया है और इससे सारी गंभीरता का खुलासा हो जाता है।

यह है सरकार के आदेश



















































 

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