शिमला/शैल। प्रदेश में राज्य आपदा घोषित है क्योंकि जान माल का अकल्पनीय नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई करने में लम्बा समय लगेगा। सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है। मुख्यमंत्री ने सत्ता संभालते ही प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी है। स्वभाविक है कि ऐसी चेतावनी सचिवालय में बैठी वरिष्ठ अफसरशाही द्वारा दिये गये फीडबैक पर आधारित रही होगी। इस वित्तीय चेतावनी के परिदृश्य में ही नये संसाधन जुटाने के उपाय सोचे गये होंगे। जल-उपकर के लिये अध्यादेश तक लाया गया। डीजल पर दो बार वैट बढ़ाया गया। बिजली-पानी और कूड़े तक के रेट बढ़ाये गये। मंदिरों में वी.आई.पी दर्शन की सुविधा के लिये 1100रू का शुल्क तक लगा दिया। बसों में सामान ले जाने के लिये अतिरिक्त किराया लगाने का फैसला लिया गया। अधिकारियों/कर्मचारियों तक के तबादले नहीं किये गये। ताकि सरकार पर कोई खर्च का बोझ न पड़े। मुख्यमंत्री ने निजी भवनों में चल रहे सरकारी कार्यालय को सरकारी भवनों में शिफ्ट करने के निर्देश दिये ताकि खर्च कम किया जा सके।
ऐसे संकट पूर्ण हालत में सरकार ने यू.एस.क्लब स्थित पांच सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करने के निर्देश दिये हैं। इन्हें कहा गया है कि वह अपने लिये स्थान का प्रबंध करें। स्वभाविक है कि इन्हें निजी भवनों में ही अपने लिये जगह तलाशनी होगी। शायद पर्यटन विभाग ने तो इन आदेशों की अनुपालना के लिए कदम भी उठा लिए हैं। सरकार के इस आदेश के बाद पहली आशंका तो इस ओर जाती हैं की कहीं यू.एस. क्लब भी सरकारी रिपोर्टों में अनसेफ भवनों की श्रेणी में तो नहीं आ गया है। जिससे वहां स्थित कार्यालय को दूसरी जगह शिफ्ट करने की आवश्यकता खड़ी हो गयी है। लेकिन सरकार के आदेशों के बाद जो चर्चाएं सामने आयी हैं उनके मुताबिक यू.एस. क्लब से सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करके वहां पर अधिकारियों के लिए क्लब की व्यवस्था की जायेगी। क्योंकि यह स्थान माल रोड के निकट है और गाड़ियों की पार्किंग आदि की सुविधा भी उपलब्ध है। इस क्लब में अधिकारियों के लिये क्लब बनाने के प्रयास पिछली सरकारों के दौरान भी हुये हैं लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है। जयराम सरकार के समय भी वरिष्ठ अफसरशाही ने ऐसा प्रयास किया था लेकिन मुख्यमंत्री इसके लिये नहीं माने थे।
लेकिन अब आपदा काल में जिस तरह से यह फैसला आया है उससे सरकार की संवेदनशीलता पर गहरे सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसे फैसला मंत्री परिषद की बैठक में लिया गया है। क्या मुख्यमंत्री के अपने स्तर पर यह फैसला लिया गया है या अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ऐसा फैसला यह मानकर ले लिया होगा कि मुख्यमंत्री के स्तर पर कोई सवाल नहीं उठाये जाएंगे। वैसे मुख्यमंत्री या उनके सहयोगी किसी भी मंत्री की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। आपदा काल में इस तरह के फैसले लिये जाना कठिन वितीय स्थिति और आपदा में सरकारी तंत्र की गंभीरता पर गहरे सवाल छोड़ जाता है। यह चर्चा चल पड़ी है कि सरकार का अफसरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। क्योंकि सरकार इस आपदा में हर एक से सहयोग मांग रही है। यदि आम आदमी का सहयोग ऐसे ही कार्यों पर निवेशित होना है तो फिर सहयोग से पहले उसकी पात्रता पर सवाल उठेंगे यह तय है।
शिमला/शैल। शिमला के मिडल बाजार स्थित हिमाचल रसोई रेस्तरां में 18 जुलाई शाम को 7ः00 बजे हुये धमाके की जांच अब एन.एस.जी. के पास पहुंच गयी है। इस धमाके में एक कारोबारी अवनीश सूद की मौत हो गयी थी और 13 लोग जख्मी हुये थे। धमाका इतना जोरदार था कि इसमें मिडल बाजार और माल रोड की 25 दुकानों और घरों के शीशे चटक गये थे। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस के मुताबिक यह धमाका गैस सिलैण्डर के फटने से हुआ है। लेकिन स्थल पर सबसे पहले पहुंचे फायर ऑफिसर ने वहीं से दो सिलैण्डर बाहर निकाल कर रख दिये थे। उसके मुताबिक कोई सिलैण्डर नहीं फटा था। घटनास्थल पर कोई आग भी नहीं लगी थी। परन्तु जब पुलिस अधीक्षक ने ही एक पत्रकार वार्ता में धमाके का कारण सिलैण्डर फटना बताया तो उससे एक भ्रान्ति की स्थिति बन गई। इस धमाके से जिन लोगों के आवास और दुकानें प्रभावित हुई हैं वह भी इसे सिलैण्डर फटना नहीं मान रहे हैं। पुलिस ने धारा 336, 337 और 304 (A) के तहत एफ.आई.आर दर्ज करके धमाके के कारणों की जांच शुरू कर दी है। फॉरैन्सिक टीम ने भी घटनास्थल का दौरा करके मौके से साक्ष्य जुटाकर अपनी जांच शुरू कर दी है। लेकिन अभी कोई रिपोर्ट नहीं आयी है। ऐसे में जब घटनास्थल पर कोई सिलैण्डर न फटने पर भी इसे गैस सिलैण्डर फटना कहा गया तब स्वतः ही एक भ्रांति और सन्देह का वातावरण बन गया। इस सन्देह को दूर करने के लिये स्थानीय विधायक हरीश जनारथा के आग्रह पर मुख्यमंत्री और डी.जी.पी. ने केन्द्र से आग्रह करके एन.एस.जी. को यह जांच सौंपी है। एन.एस.जी. की 16 सदस्यों की जांच टीम ने 5 दिन बाद आकर घटनास्थल का निरीक्षण करके मौके से साक्ष्य जुटाये हैं। एन.एस.जी. ने पुलिस और फॉरैन्सिक टीम से भी मंत्रणा की है। घायलों से मिलकर उनके ब्यान भी लिये हैं। अब एन.एस.जी. की जांच रिपोर्ट आने का इन्तजार है। जब पुलिस और फॉरैन्सिक टीम की भी रिपोर्ट आ जायेगी तब तीनों जांच रिपोर्टों के बाद इस धमाके के कारणों का खुलासा हो पायेगा। लेकिन आम आदमी के मन में उठते सन्देहों के निराकरण के लिये केन्द्रीय टीम का लाया जाना आवश्यक था। इसके लिये विधायक और सरकार के प्रयासों की सराहना की जा रही है।
शिमला/शैल। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा जब प्रदेश विधानसभा के चुनाव हार गयी थी तब इस हार के कारणों का आकलन करके उसके परिणामों को सार्वजनिक नहीं कर पायी थी। क्योंकि उस आकलन में यह सामने आना था कि चूक पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों के स्तर पर हुई थी या इन्हें गढ़ने वाले उच्च देवों के स्तर पर। कारण और परिणाम जो भी रहे हों लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों का प्रयोग तब तक सफल नहीं हो पायेगा जब तक सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हुकमरान अपने को इस अवधारणा से बाहर निकलकर आम आदमी के प्रति अपनी जवाबदेही की प्रतिबद्धता पर व्यवहारिक रूप से अमल नहीं करते हैं। क्योंकि जिन लाभार्थियों को वोट बैंक का डिपॉजिट माना जा रहा था उनकी गिनती शायद इन्हीं पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों से शुरू होकर इन्हीं पर खत्म हो जाती है। इस त्रिदेवों की अवधारणा को पुराने कार्यकर्ताओं के स्थान पर नयों का आगे लाने के लिये प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रयोग से पुराने कार्यकर्ताओं और नयों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी होती जा रही है जो आने वाले समय में संगठन के लिये एक बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी। पिछले दिनों जब संगठन मंत्री सिद्धार्थन सोलन में पार्टी टिफिन बैठक में पहुंचे तो उस बैठक में 120 लोगों में से केवल 20 ही भाजपा के सदस्य थे और शेष वह लोग थे जो पहली बार किसी बैठक में देखे गये। शायद बैठक में कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी बुला लिये गये थे। सोलन मण्डल के भी पूरे पदाधिकारी बैठक में नहीं थे। महिला मोर्चा, एससी मोर्चा, किसान मोर्चा और अन्य प्रकोष्ठों के लोगों को बैठक की सूचना तक नहीं थी। शायद बैठक में योजनाओं के लाभार्थियों को ही वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में पेश किया गया। इस बैठक से यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी के भीतर पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करके लाभार्थी रहे त्रिदेवों और पन्ना प्रमुखों द्वारा ही पार्टी पर कब्जा करने की कवायद शुरू हो गयी है। सोलन की इस बैठक के बाद ही प्रदेश पदाधिकारियों की सूचीयां जारी हुई है। इन सूचियों का अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि शायद अध्यक्ष यह पदाधिकारियों की सेना चुनने में पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं रहे हैं। जिला अध्यक्षों से प्रदेश पदाधिकारियों की जो सूचियां जारी हुई है उनमें विभिन्न धड़ों को प्रसन्न रखने का प्रयास ज्यादा नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि यह मानकर यह चयन किया गया है कि हिमाचल में हर बार सत्ता तो बदल ही जाती है। इस नाते अगली बार भाजपा की बारी है इसलिये किसी न किसी तरह संगठन पर कब्जा किया जाये।
डॉ राजीव बिंदल की टीम में युवा और महिला मोर्चा के अध्यक्षों के अतिरिक्त नौ उपाध्यक्ष तीन महामंत्री सात सचिव, दस प्रवक्ता, एक मीडिया प्रभारी और सात सह मीडिया प्रभारी हैं। यह इस टीम की जिम्मेदारी होगी कि वह कार्यकर्ताओं को आने वाले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनावों में जीत के लिये क्या मंत्र देते हैं। आम कार्यकर्ताओं की यह प्रतिक्रिया है कि इस टीम का चयन जे.पी. नड्डा और पवन राणा के दबाव में किया गया है। यह आरोप लग रहा है कि इस टीम में नौ लोग ऐसे हैं जो पिछले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी थे और खुद अपना ही चुनाव हार गये हैं। यदि यह लोग अपना चुनाव जीत गये होते तो आज प्रदेश में भाजपा की सरकार होती। छः सात पदाधिकारी ऐसे कहे जा रहे हैं जिनके अपने खिलाफ विधानसभा चुनावों में अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने के आरोप हैं। जिन पदाधिकारियों के खिलाफ पिछली बार संगठन की लुटिया डुबाने के आरोप लगते रहे उन्हें इस बार भी पदों से नवाजा गया है। यहां तक कहा जा रहा है कि संघ से आये तिलक राज शर्मा एक धीर गंभीर प्रवृति के व्यक्ति हैं। पिछली बार वह सभी मोर्चा के समन्वयक थे। उन्हें अब डिमोशन करके युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया गया है। देखने में वह प्रौढ़ लगते हैं इसलिये यह सवाल उठ रहा है कि युवा उन्हें कैसे स्वीकार कर पायेंगे।
इस तरह जो टीम डॉ बिंदल सामने लाये हैं और उस पर संगठन के भीतर ही दबी जुबान से जो सवाल उठने लग पड़े हैं उससे यह लगता है कि यह टीम मैरिट का नहीं समझौतों का चयन ज्यादा है। आने वाले दिनों में जब यह दबी जुबान से उठ रहे सवाल पूरी मुखरता के सामने आयेंगे तो अध्यक्ष के लिये स्थितियां संभालना कठिन हो जायेगा।