शिमला/शैल। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक ब्यान में सरकार से पूछा है कि बजट में घोषित हरित प्रदेश बनाने से जुड़ी योजनाओं पर कितना काम हुआ है और कितने लोगों को लाभ मिला है। स्मरणीय है कि सुक्खु को सरकार ने सत्ता संभालते ही प्रदेश को हरित राज्य बनाने की घोषणा की थी। प्रदेश में डेढ़ हजार इलेक्ट्रिक बसों का बेड़ा एचआरटीसी शामिल करने और निजी बसों के संचालकों को इलेक्ट्रॉनिक वाहन लेने पर सब्सिडी देने की घोषणा की थी। 2025 तक प्रदेश को हरित ऊर्जा प्रदेश बनाने की बात की थी। कांगड़ा और हमीरपुर में पेट्रोल डीजल वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल की बात की थी। पहले चरण में 150 इलेक्ट्रिक बसें खरीदने और 50 अलग-अलग जगहों पर इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की बात की थी। 200 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। 2024 के अन्त तक 500 मैगावाट के सौर ऊर्जा संयन्त्र और हर जिले की दो पंचायतों को ग्रीन पंचायत विकसित करने की घोषणा की थी। इसके लिये 250 किलोवाट से लेकर दो मैगावाट के सोलर प्लांट लगाने के लिये 40% सब्सिडी और उत्पादित बिजली को खरीदने की बात की थी। यह सारी घोषणाएं और वायदे बजट सत्र में किये गये थे।
सरकार बने नौ मो हो गये हैं और बजट सत्र को भी हुये छः माह का समय हो गया है। स्वभाविक है कि इस अवधि में इन घोषणाओं पर कुछ तो अमल हुआ होगा। अब विधानसभा सत्र आ रहा है। इस सत्र में विपक्ष सरकार को उसी की घोषणाओं पर घेरेगा। क्योंकि जमीन पर इस दिशा में संतोषजनक कुछ भी नहीं हुआ है। जबकि यह सरकार भी विकास के नाम पर हजारों करोड़ का कर्ज ले चुकी है। पूर्व सरकार पर प्रदेश को कर्ज में डूबने के जो आरोप लगाये जाते थे आज यह सरकार स्वयं भी उसी कर्ज के सूत्र पर आगे बढ़ रही है। यही कारण है कि पिछली सरकार को लेकर जो वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने का वायदा किया गया था अब वह चर्चा से भी बाहर हो गया है। बल्कि सत्ता में आने पर हर उपभोक्ता वस्तु के दामों में वृद्धि ही हुई है। सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर ही संसाधन बढ़ाने का प्रयास किया गया है। अभी बिजली के शुल्क डेढ़ गुना बढ़ा दिये गये हैं। इसका असर प्रदेश के उद्योगों पर पड़ेगा। इस आपदा के समय में सीमेन्ट के दाम भी बढ़ जायेंगे जिसका सीधा प्रभाव राहत कार्यों पर पड़ेगा।
बिजली की दरें बढा़ने से नयी दरों के तहत एच.टी. के अधीन आने वाले उद्योगों का शुल्क 11% से बढ़कर 19% ई.एच.टी. का 13% से 19% और छोटे तथा मध्यम उद्योगों को 11% से 17% सीमेन्ट सयंत्रों पर 17% से 25% तक कर दिया है। यही नहीं डीजल जेनरेटर द्वारा बिजली उत्पादन पर 45 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली शुल्क भी लगाया गया है। जयराम के मुताबिक उनकी सरकार ने उद्योगों को जो रियायतें दी थी उन्हें भी इस सरकार ने वापस ले लिया है। इन बढ़ी दरों का असर सीमेन्ट और लोहे पर पड़ेगा और यही असर इस आपदा में अपना घर तक खो चुके लोगों पर पड़ेगा। निश्चित है यह सारे मुद्दे आने वाले सत्र में उठेंगे। सुक्खु सरकार अभी तक अपने वायदों की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठा पायी है। आने वाले लोकसभा चुनावों पर इन मुद्दों का सीधा असर पड़ेगा।
शिमला/शैल। पॉवर कॉरपोरेशन को लेकर आये दूसरे बम्ब पर कॉरपोरेशन के प्रबन्ध निदेशक हरिकेश मीना की शिकायत पर पुलिस ने धारा 500 और 505(2) के तहत एफ.आई.आर. दर्ज करके जांच शुरू कर दी है। इस जांच में पुलिस पत्र में दर्ज तथ्यों से पहले पत्र लिखने वाले और उसे वायरल करने वाले का पता लगाने का प्रयास कर रही है। इस जांच में पुलिस ने पत्र को वायरल करने के लिये तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया है। लेकिन अदालत से उन्हें जमानत भी मिल गयी है। पुलिस की जांच में पत्र का शक भाजपा की ओर गया है। कुछ विधायकों के नाम भी उछले हैं। भाजपा अध्यक्ष बिंदल ने यह नाम उछलने पर स्पष्ट कहा है कि इससे पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पत्र में दर्ज तथ्यों की जांच किये जाने की मांग की है। इसी कॉरपोरेशन को लेकर एक पत्र पहले भी वायरल हो चुका है। लेकिन उसको लेकर न कोई मामला दर्ज किया गया और न ही सरकार की ओर से कोई जांच की गयी है। इस पत्र को नजर अंदाज क्यों किया गया। इस पर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। अभी विधानसभा का सत्र आ रहा है। इस सत्र में यह मुद्दा किसी न किसी प्रकार से अवश्य उछलेगा क्योंकि पत्रों का सोर्स भाजपा होने की ओर जांच में संकेत उभर ही चुके हैं और भाजपा का इस पर मौन रहना उसके लिये ही घातक होगा। संभव है कि विधानसभा सत्र में पत्र के साथ कथित संलग्न दस्तावेज भी चर्चा में आये। ऐसे में जब पुलिस पत्र वायरल करने वालों तक पहुंच गयी है तो स्वभाविक है कि उसके यह संलग्न दस्तावेज भी आ चुके हांे। फिर पुलिस ने अभी तक यह नहीं कहा है कि ऐसे कोई दस्तावेज नहीं है या प्रमाणिक नहीं हैं। स्वभाविक है कि दस्तावेज तो कॉरपोरेशन की फाइलों में होंगे। फाइलों तक पहुंच इसी कॉरपोरेशन में बैठे किसी अधिकारी कर्मचारी की ही हो सकती है। इसलिये पत्रों में दर्ज आरोपों को नजर अंदाज करना ज्यादा देर तक संभव नहीं होगा। जिस तरज में नेता प्रतिपक्ष ने तथ्यों की जांच की मांग की है उससे स्पष्ट है कि इस जांच से ज्यादा देर तक बचना संभव नहीं होगा क्योंकि कुछ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और कुछ पत्रकारों को भी जांच के लिये बुलाया गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन ने जिस तरह बिजली मीटरों पर जांच की मांग की है वह सब भी इस जांच के साथ जुड़ जाये।
शिमला/शैल। सुक्खु सरकार के दो आई.ए.एस. अधिकारी सरकारी आवास आबंटन को लेकर उच्च न्यायालय पहुंच गये है। उच्च न्यायालय ने संबद्ध पक्षों को नोटिस आवास आमंत्रण को लेकर अधिकारियों का उच्च न्यायालय पहुंचना प्रशासनिक पकड़ पर प्रश्न चिन्ह भी जारी कर दिये हैं। दोनों ही अधिकारी मुख्यमंत्री के विश्वास पात्र माने जाते हैं क्योंकि एक निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क है तो दूसरा सोलन का जिलाधीश। मामला सिर्फ इतना भर है कि जिलाधीश सोलन आठ अप्रैल तक शिमला में ही कार्यरत थे। आठ अप्रैल को बतौर डीसी सोलन ट्रांसफर किया गया। जहां पर अब तक कार्यरत है। लेकिन शिमला में जो सरकारी आवास उनके पास था उसे उन्होंने अभी तक खाली नहीं किया है। जबकि यह आवास जुलाई में निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क को आबंटित हो चुका है। जिलाधीश सोलन आवास को खाली नहीं कर रहे हैं और इसी पर यह प्रकरण उच्च न्यायालय पहुंच गया है। जबकि आवास आबंटन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी करती है। यदि कोई अधिकारी, कर्मचारी स्थानान्तरण के बाद भी आवास खाली नहीं करता है तो उसे खाली करवाने की जिम्मेदारी संपदा निदेशालय की होती है। इसके लिए यदि अदालत तक भी जाना पड़ता है तो संपदा निदेशालय जाता है। लेकिन इस मामले में निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क को अदालत से यह गुहार लगानी पड़ी है कि जिलाधीश सोलन अवैध कब्जाधारी है।
दो अधिकारियों के बीच आवास को लेकर उभरा विवाद सचिवालय की दहलीज लांघकर अदालत के आंगन में जा पहुंचे तो आम आदमी की सरकार को लेकर क्या धारणा बनेगी। क्या मुख्य सचिव के स्तर पर यह मामला नहीं सुलझ पाया? क्या अदालत पहुंचने की नौबत आने से पहले इसे मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं लाया गया होगा? क्या इस तरह यह मामला प्रशासनिक अराजकता का प्रमाण नहीं बन जाता है।
शिमला/शैल। प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की कार्यप्रणाली को लेकर जारी हुआ दूसरा पत्र बम्ब वायरल होकर चर्चा में आने के बाद कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा ने इस पर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हुए इसमें मामला दर्ज किये जाने की मांग की है। मीणा ने पत्र में दर्ज आरोपों को झुठ करार देते हुये इसे उनकी छवि खराब करने का प्रयास कहा है। पुलिस ने मीणा के आग्रह पर अज्ञात लोगों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 500 और 505(2) के तहत मानहानि का मामला दर्ज कर लिया है। इसमें लगायी गयी धारा 505(2) से यह मामला अपने में ही रोचक बन गया है। क्योंकि यह धारा तब लगती है जब विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनायें पैदा करने के आशय से पूजा के स्थान आदि में झूठे ब्यान या भाषण देना आदि हो। ये गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है। यदि धारा 505(2) न लगायी जाये तो धारा 500 में यह पुलिस का एफ आई आर दर्ज करने का योग्य मामला बनता ही नहीं है। धारा 505(2) को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय का 65-2022 को याचिका संख्या 2954 व्थ् 2018 में आया फैसला विस्तार से इसे स्पष्ट कर देता है। यह याचिका भी एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक पत्रकार के खिलाफ ही दायर किया गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सर्वाेच्च न्यायालय के भी कई फैसले प्रसंग में आये हैं। इस फैसले में मुंबई उच्च न्यायालय ने धारा 505(2) की विस्तृत व्याख्या करते हुये कड़ी टिप्पणी के साथ एफ आई आर को रद्द किया है।
वर्तमान संदर्भ में यह चर्चा इसलिये उठाई जा रही है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उठती आवाजों को दबाने के प्रयास में हिमाचल पुलिस धारा 505(2) के तहत अंसज्ञेय मामलों को संज्ञेय बनाने की नीति पर चल रही है। कानून के जानकारों के मुताबिक पावर कारपोरेशन को लेकर जो पत्र वायरल हुये हैं उनमें किसी भी गणित से धारा 505(2) पिक्चर में आयी ही नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है की क्या हिमाचल पुलिस का थाने तक का स्टाफ इस धारा को लेकर अपने में स्पष्ट नहीं है या ऊपर के निर्देशों पर मामलों को दबाने के प्रयासों में ऐसा किया जा रहा है। क्योंकि जयराम सरकार कार्यकाल में भी प्रवीण गुप्ता द्वारा थाना सदर शिमला में इसी धारा के तहत मामला दर्ज किया गया था जिसका जांच परिणाम आज तक सामने नहीं आया है।
वैसे तो पुलिस में किसी भी मामले की जांच करने के लिये सोर्स रिपोर्ट का भी प्रावधान है। क्योंकि कई बार शिकायतकर्ता नामतः सामने आने का साहस नहीं कर पाता है। अभी जो मामला पावर कारपोरेशन का वायरल पत्रों के माध्यम से चर्चा में आया है अब उसमें यह एफ आई आर दर्ज होने के बाद पत्रों में संदर्भित अधिकारियों/कर्मचारियों और राजनेताओं के ब्यान दर्ज करना और संबंधित रिकार्ड की जांच करना आवश्यक हो जायेगा। क्योंकि दर्ज हुई एफ आई आर का निपटारा तो अदालत में ही होना है चाहे उसमें चालान दायर हो या कैंसलेशन रिपोर्ट। अब यह मामले जन संज्ञान में आ चुके हैं। फिर पावर कारपोरेशन में जो पटेल इंजीनियरिंग कंपनी के संदर्भ में है वह पहले से ही सीबीआई के रॉडार पर चल रही है। ऐसा माना जा रहा है कि जिस एफ आई आर के माध्यम से आवाज दबाने का प्रयास किया गया है वह अब कई लोगों के गले की फांस बन जायेगी क्योंकि पत्रों में दर्ज आरोपों की जांच किया जाना आवश्यक हो जायेगा। धारा 505 (2) का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है।