शिमला/शैल। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा जब प्रदेश विधानसभा के चुनाव हार गयी थी तब इस हार के कारणों का आकलन करके उसके परिणामों को सार्वजनिक नहीं कर पायी थी। क्योंकि उस आकलन में यह सामने आना था कि चूक पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों के स्तर पर हुई थी या इन्हें गढ़ने वाले उच्च देवों के स्तर पर। कारण और परिणाम जो भी रहे हों लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों का प्रयोग तब तक सफल नहीं हो पायेगा जब तक सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हुकमरान अपने को इस अवधारणा से बाहर निकलकर आम आदमी के प्रति अपनी जवाबदेही की प्रतिबद्धता पर व्यवहारिक रूप से अमल नहीं करते हैं। क्योंकि जिन लाभार्थियों को वोट बैंक का डिपॉजिट माना जा रहा था उनकी गिनती शायद इन्हीं पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों से शुरू होकर इन्हीं पर खत्म हो जाती है। इस त्रिदेवों की अवधारणा को पुराने कार्यकर्ताओं के स्थान पर नयों का आगे लाने के लिये प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रयोग से पुराने कार्यकर्ताओं और नयों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी होती जा रही है जो आने वाले समय में संगठन के लिये एक बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी। पिछले दिनों जब संगठन मंत्री सिद्धार्थन सोलन में पार्टी टिफिन बैठक में पहुंचे तो उस बैठक में 120 लोगों में से केवल 20 ही भाजपा के सदस्य थे और शेष वह लोग थे जो पहली बार किसी बैठक में देखे गये। शायद बैठक में कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी बुला लिये गये थे। सोलन मण्डल के भी पूरे पदाधिकारी बैठक में नहीं थे। महिला मोर्चा, एससी मोर्चा, किसान मोर्चा और अन्य प्रकोष्ठों के लोगों को बैठक की सूचना तक नहीं थी। शायद बैठक में योजनाओं के लाभार्थियों को ही वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में पेश किया गया। इस बैठक से यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी के भीतर पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करके लाभार्थी रहे त्रिदेवों और पन्ना प्रमुखों द्वारा ही पार्टी पर कब्जा करने की कवायद शुरू हो गयी है। सोलन की इस बैठक के बाद ही प्रदेश पदाधिकारियों की सूचीयां जारी हुई है। इन सूचियों का अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि शायद अध्यक्ष यह पदाधिकारियों की सेना चुनने में पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं रहे हैं। जिला अध्यक्षों से प्रदेश पदाधिकारियों की जो सूचियां जारी हुई है उनमें विभिन्न धड़ों को प्रसन्न रखने का प्रयास ज्यादा नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि यह मानकर यह चयन किया गया है कि हिमाचल में हर बार सत्ता तो बदल ही जाती है। इस नाते अगली बार भाजपा की बारी है इसलिये किसी न किसी तरह संगठन पर कब्जा किया जाये।
डॉ राजीव बिंदल की टीम में युवा और महिला मोर्चा के अध्यक्षों के अतिरिक्त नौ उपाध्यक्ष तीन महामंत्री सात सचिव, दस प्रवक्ता, एक मीडिया प्रभारी और सात सह मीडिया प्रभारी हैं। यह इस टीम की जिम्मेदारी होगी कि वह कार्यकर्ताओं को आने वाले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनावों में जीत के लिये क्या मंत्र देते हैं। आम कार्यकर्ताओं की यह प्रतिक्रिया है कि इस टीम का चयन जे.पी. नड्डा और पवन राणा के दबाव में किया गया है। यह आरोप लग रहा है कि इस टीम में नौ लोग ऐसे हैं जो पिछले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी थे और खुद अपना ही चुनाव हार गये हैं। यदि यह लोग अपना चुनाव जीत गये होते तो आज प्रदेश में भाजपा की सरकार होती। छः सात पदाधिकारी ऐसे कहे जा रहे हैं जिनके अपने खिलाफ विधानसभा चुनावों में अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने के आरोप हैं। जिन पदाधिकारियों के खिलाफ पिछली बार संगठन की लुटिया डुबाने के आरोप लगते रहे उन्हें इस बार भी पदों से नवाजा गया है। यहां तक कहा जा रहा है कि संघ से आये तिलक राज शर्मा एक धीर गंभीर प्रवृति के व्यक्ति हैं। पिछली बार वह सभी मोर्चा के समन्वयक थे। उन्हें अब डिमोशन करके युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया गया है। देखने में वह प्रौढ़ लगते हैं इसलिये यह सवाल उठ रहा है कि युवा उन्हें कैसे स्वीकार कर पायेंगे।
इस तरह जो टीम डॉ बिंदल सामने लाये हैं और उस पर संगठन के भीतर ही दबी जुबान से जो सवाल उठने लग पड़े हैं उससे यह लगता है कि यह टीम मैरिट का नहीं समझौतों का चयन ज्यादा है। आने वाले दिनों में जब यह दबी जुबान से उठ रहे सवाल पूरी मुखरता के सामने आयेंगे तो अध्यक्ष के लिये स्थितियां संभालना कठिन हो जायेगा।
शिमला/शैल। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह मंत्रिमण्डल के सबसे युवा मंत्री है और एक ऐसे बाप के बेटे हैं जो छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस नाते उन्हें एक समृद्ध राजनीतिक विरासत धरोहर के रूप में मिली हुई है। इस विरासत को वह कितना संभाल कर रख पाते हैं और कितना आगे बढ़ा पाते हैं यह आने वाला समय ही तय करेगा। अभी दूसरी बार विधायक बने हैं। युवा मंत्री होने के नाते वह अपने ब्यानों में इतनी बेबाक और स्पाट बातें बोल जाते हैं जिससे उनके राजनीतिक प्रतिद्वन्दी कई बार परेशान होना शुरू हो जाते हैं। इसलिए उनके ब्यानों पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि राजनेताओं की जगह कर्मचारी नेता को उन्हें जवाब देने और उन पर हमला करने के लिये उतारा गया है। स्मरणीय है कि जब कांग्रेस ने चुनाव के दौरान पुरानी पैन्शन बहाल की बात की थी तब उसी नेता ने सोलन में एक पत्रकार वार्ता करके इस पर सवाल उठाये थे। आज विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह के खिलाफ ई.डी. और सी.बी.आई. के मामले में प्रधानमन्त्री से कार्यवाही की मांग की जा रही है। जबकि यह मामले इस समय अदालतों में विचाराधीन चल रहे हैं। शायद गवाहीयों के दौर से गुजर रहे हैं। यहां पर यह उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है कि आने वाले संसद सत्र में जिन 49 कानूनों को केंद्र सरकार निरस्त करने जा रही है उनमें मनी लॉंडरिंग भी शामिल है। अब इनसे जेल की सजा के बदले केवल जुर्माने का ही प्रावधान रखा जा रहा है। इसलिये इन मामलों में कारवाही की मांग करना केवल राजनीति रह जाता है। विक्रमादित्य सिंह ने यू.सी.सी. का समर्थन किया था और कहा था कि एक देश में एक ही कानून होना चाहिए। संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में इस आश्य का निर्देश मौजूद है लेकिन इसे लागू करने के लिए धारा 371 में भी संशोधन करना होगा। इस संशोधन से गुजरात महाराष्ट्र समेत एक दर्जन राज्य प्रभावित होते हैं। राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि मोदी सरकार में यह संशोधन लाने का साहस नहीं है। विक्रमादित्य ने यही प्रश्न किया था कि नौ वर्षों में मोदी सरकार को यह विधेयक लाने से कौन रोक रहा था। लेकिन इस ब्यान के भी मायने बदलने का पूरा प्रयास किया गया। विक्रमादित्य के ब्यान में यह कहीं नहीं था कि वह पार्टी की लाइन से हटकर कोई अपना अलग कदम उठाएंगे। अभी विक्रमादित्य सिंह ने इस बाढ़ और भूस्खलन के लिये अवैध खनन को कारण बताया था। इस अवैध खनन के ब्यान पर उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने यह कहा है कि अवैध खनन कुछ जगह पर कारण हो सकता है लेकिन सभी जगह नहीं। उन्होंने विक्रमादित्य सिंह के ब्यान को बचकाना करार दिया है। लेकिन यह कहने से ही यह विवाद बढ़ कर राजनीतिक आकार लेने लग पडा है। जहां तक निर्माण संबंधी अवैधताओं का प्रश्न है तो इसके लिए प्रदेश उच्च न्यायालय एन.जी.टी. और सर्वोच्च न्यायालय के दर्जनों आदेश निर्देश इसकी पुष्टि करते हैं कि प्रदेश में अवैध निर्माणों के कारण पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है। एन.जी.टी. ने तो शिमला से कार्यालयों को दूसरे स्थानों पर ले जाने तक निर्देश दे रखे हैं। इसलिए मंत्रियों के ब्यानों को लेकर खड़ा किया जा रहा विवाद अपने में कोई मायने नहीं रखता है। क्योंकि इस आपदा ने बहुत कुछ साफ कर दिया है। थुनाग के बाजार में बहती मिली लकड़ी पर जांच आदेशित होना बहुत कुछ साफ कर देती है। लेकिन इन ब्यानों से विवाद का असर प्रदेश के सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर पड़ेगा यह तय है। इस समय लोकसभा की 2014 और 2019 के चुनावों में चारों सीटें भाजपा के पास रही हैं। मण्डी उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने जयराम सरकार को हराकर इस सीट पर कब्जा किया है। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए हाईकमान चारों सीटों की उम्मीद करेगा। इसके लिए समय-समय पर आकलन भी किए जाएंगे। यही अपेक्षा भाजपा हाईकमान को भी यहां से है। क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक केन्द्रीय मन्त्री प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में ऐसे ब्यानों और उन पर उभरी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से प्रदेश की राजनीति में नये समीकरण उभारने का प्रयास किया जायेगा यह तय है।
यह है अनूप दत्ता की शिकायत








शिमला/शैल। धर्मशाला के योल बाजार निवासी एक अनूप दत्ता ने मुख्यमंत्री को संबोधित एक ईमेल भेजकर भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अवैध तरीके से दी गयी एक जमीन खरीद की अनुमति को रद्द किये जाने और संबद्ध अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने का आग्रह किया है। आरोप लगाया गया है कि एक गैर हिमाचली गैर कृषि को 105 एकड़ चाय बागान कृषि उद्देश्य के लिये खरीदने की अनुमति दी गयी है। जबकि नियमों के अनुसार चार एकड़ से अधिक की अनुमति के लिये आवेदन ही नहीं किया जा सकता है। अनुप दत्ता ने इस आश्य की शिकायत 17-06-23 और 29-06-23 मुख्य सचिव, प्रधान सचिव राजस्व, प्रधान सचिव विजिलैन्स और सचिव लॉ मंत्री को भेजी थी। लेकिन इसकी प्राप्ति की कोई सूचना न मिलने पर मुख्यमंत्री को यह शिकायत भेजी है। आठ पन्नों की इस शिकायत में प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। दत्ता के मुताबिक यह मामला 2002 में घटा था और तब से लेकर वह इसकी शिकायत करता रहा है और यह शिकायत करने की वजह से वह स्वयं भी उत्पीड़न का शिकार हुआ है। लेकिन वह इस लड़ाई से पीछे नहीं हटा है। स्मरणीय है कि लैण्ड सिलिंग अधिनियम में चाय बागानों को अधिकतम भूमि सीमा से बाहर रखा गया था। ऐसे बागानों को बेचने के लिये पहले उन्हें लैण्ड सिलिंग के दायरे में लाना होगा और उसके बाद ही उसे बेचने की अनुमति मिल सकती है। गैर कृषक और गैर हिमाचली को चार एकड़ से अधिक की अनुमति मिल ही नही सकती। इसलिये अनूप दत्ता की शिकायत में दम है। फिर हिमाचल सरकार में तो 31 अक्तूबर 1997 को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक रिवार्ड स्कीम तक अधिसूचित कर रखी है और यह आज भी लागू है क्योंकि इसे वापस नहीं लिया गया है। ऐसे में जब इस तरह की कोई शिकायत आये और शिकायतकर्ता बीस वर्षों से लगातार उसको उठाता आया हो तब ऐसी शिकायत को जनता के सामने रखना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि भ्रष्टाचार को लेकर सरकारों की कथनी और करनी का सच सामने आना ही चाहिये। सुक्खू सरकार ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरैन्स घोषित कर रखी है लेकिन करनी अलग है। भ्रष्टाचार की कई शिकायतें मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही लंबित चल रही है। इसलिए अनूप दत्ता की शिकायत को जनता के सामने यथास्थिति रखा जा रहा है।
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे और अब भाजपा की प्रदेश कोर कमेटी के सदस्य हर्ष महाजन कि पिछले दिनों दिल्ली में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू तथा कुछ कांग्रेसी विधायकों से हुई मुलाकात और अब विपिन परमार तथा त्रिलोक कपूर के ब्यानों से महाराष्ट्र के परिदृश्य में हिमाचल में भी अटकलों का बाजार तेज होने लग गया है। सुक्खू और हर्ष महाजन के रिश्ते कांग्रेस में बहुत अच्छे रहे हैं यह सब जानते हैं। विधानसभा चुनावों से पहले भी कई कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं उठती रही हैं। बल्कि सुक्खू और जयराम का एक फ्लाइट में संयोगवश इकट्ठे होना तथा उस फ्लाइट में और किसी यात्री का न होना भी कई चर्चाओं का विषय रहा है। इस परिदृश्य में बनी कांग्रेस सरकार में मंत्रियों से पहले मुख्य संसदीय सचिवों की शपथ हो जाना और बाद में उनकी नियुक्तियों को भाजपा नेताओं द्वारा ही उच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना और अब इन्हें अदालत के नोटिस तामील न हो पाना कुछ ऐसे संयोग हैं जिन्हें अगर एक साथ रखकर पढ़ने की कोशिश की जाये तो बहुत सारे ऐसे सवाल खड़े हो जाते हैं जिनका जवाब तलाशना कठिन हो जाता है।
सुक्खू सरकार में मंत्रियों के तीन पद खाली चले हुये हैं जो मंत्रिमण्डल में असन्तुलन का सीधा प्रमाण हैं और मंत्रिमण्डल का विस्तार लटकता जा रहा है। विभिन्न निगमों/बोर्डों में अभी तैनातीयां नहीं हो पायी हैं इससे वरिष्ठ कार्यकर्ता भी हताशा में आ गये हैं। जबकि पार्टी अध्यक्षा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सरकार में मान-सम्मान दिये जाने की मांग कर चुकी है। प्रशासनिक तौर पर अभी भी भाजपा शासन के दौरान लगाये अधिकारियों को ही प्रशासन के शीर्ष पदों पर तैनात रखा है। मुख्यमंत्री प्रशासन के माध्यम से प्रदेश में सरकार बदलने का संदेश नहीं दे पाये हैं। बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का दावा प्रशासनिक अराजकता बनता जा रहा है। आम आदमी की शिकायत है कि मुख्यमंत्री को दिये जा रहे प्रार्थना पत्रों/प्रतिवेदनों का कोई अता पता ही नहीं चल रहा है। चर्चा है कि एक मंत्री अपने विभाग के सचिव की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे। उन्होंने मुख्यमंत्री से सचिव को बदलने का आग्रह किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने सचिव को बदलने की बजाये मंत्री का ही विभाग बदलने की पेशकश कर दी। एक अन्य मंत्रा की सिफारिश पर मुख्यमंत्री ने तो फाइल पर अनुमोदन कर दिया लेकिन सचिव स्तर पर काम नहीं हुआ। पता चला कि मुख्यमंत्री ने ही सचिव को ऐसे निर्देश दिये थे। बहुत सारे ऐसे मामले चर्चा में हैं जहां मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बावजूद सचिव स्तर पर काम रुक रहे हैं। इससे प्रशासन में अनचाहे ही अराजकता का वातावरण बनता जा रहा है।
मंत्रा परिषद में असन्तुलन कार्यकर्ताओं में मोहभंग की स्थिति पैदा होना तथा प्रशासन में बढ़ती अराजकता अब ऐसे तथ्य बन गये हैं कि शायद हाईकमान के भी संज्ञान में आ चुके हैं। शायद इसी सबका परिणाम रहा है की चुनावी सर्वे में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिल पा रही है। इसी सर्वे के बाद हाईकमान ने निष्पक्ष रिपोर्ट के लिये पूर्व मंत्री कॉल सिंह को दिल्ली बुलाया था। चर्चा है कि कॉल सिंह की रिपोर्ट में 23 विधायकों और मंत्रियों के भी हस्ताक्षर हैं। जब से कॉल सिंह की रिपोर्ट और सर्वे के परिणाम चर्चा में आये हैं तब से स्थितियां और उलझती जा रही हैं। बल्कि अब तो यहां तक चर्चाएं चल रही हैं कि मुख्यमंत्री स्वस्थ्य लाभ के नाम पर चंडीगढ़ बैठकर पूरी स्थिति का आकलन करने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरी ओर यह माना जा रहा है की मुख्य संसदीय सचिवों को लेकर दायर हुई याचिका पर जल्द फैसले के हालात पैदा किये जायें। क्योंकि यह तय है की यह नियुक्तियां संविधान के प्रावधान के अनुरूप नहीं हैं इसलिए यह रद्द होंगी ही। उस समय राजनीतिक समीकरण नये सिरे से आकार लेंगे। प्रदेश पहले ही वित्तीय संकट से गुजर रहा है और जब इसके साथ राजनीतिक संकट के आसार बन जाएंगे तब केन्द्र सरकार और भाजपा को खेल खेलने का खुला अवसर मिल जायेगा। क्योंकि जिस तरह भाजपा कर्नाटक में प्रधानमंत्री मोदी के व्यापक चुनाव प्रचार के बाद भी हार गयी उससे अब गैर भाजपा सरकारों को अस्थिर करने वहां सत्ता पलटने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं बचते हैं। फिर अभी केन्द्रीय मंत्री परिषद के संभावित फेरबदल में अनुराग ठाकुर को मंत्री पद से हटाकर संगठन में जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चाओं से भी यही संकेत उभर रहे हैं कि भाजपा हिमाचल में कोई बड़ा खेल खेलने के लिये जमीन तैयार कर रही है। यदि कांग्रेस हाईकमान और प्रदेश सरकार समय रहते सचेत न हुई तो हिमाचल में कोई बड़ा नुकसान हो सकता है।