Monday, 22 December 2025
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भ्रष्टाचार के आरोपों पर धारा 505(2) का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है।

  • मीणा की एफ आई आर से उभरी चर्चा
  • क्या 505(2) के प्रयोग से भ्रष्टाचार के खिलाफ उठती आवाजों को दबाने का प्रयास हो रहा है
  • प्रवीण गुप्ता की एफ आई आर की जांच रिपोर्ट कहां है

शिमला/शैल। प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की कार्यप्रणाली को लेकर जारी हुआ दूसरा पत्र बम्ब वायरल होकर चर्चा में आने के बाद कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा ने इस पर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हुए इसमें मामला दर्ज किये जाने की मांग की है। मीणा ने पत्र में दर्ज आरोपों को झुठ करार देते हुये इसे उनकी छवि खराब करने का प्रयास कहा है। पुलिस ने मीणा के आग्रह पर अज्ञात लोगों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 500 और 505(2) के तहत मानहानि का मामला दर्ज कर लिया है। इसमें लगायी गयी धारा 505(2) से यह मामला अपने में ही रोचक बन गया है। क्योंकि यह धारा तब लगती है जब विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनायें पैदा करने के आशय से पूजा के स्थान आदि में झूठे ब्यान या भाषण देना आदि हो। ये गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है। यदि धारा 505(2) न लगायी जाये तो धारा 500 में यह पुलिस का एफ आई आर दर्ज करने का योग्य मामला बनता ही नहीं है। धारा 505(2) को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय का 65-2022 को याचिका संख्या 2954 व्थ् 2018 में आया फैसला विस्तार से इसे स्पष्ट कर देता है। यह याचिका भी एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक पत्रकार के खिलाफ ही दायर किया गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सर्वाेच्च न्यायालय के भी कई फैसले प्रसंग में आये हैं। इस फैसले में मुंबई उच्च न्यायालय ने धारा 505(2) की विस्तृत व्याख्या करते हुये कड़ी टिप्पणी के साथ एफ आई आर को रद्द किया है।

वर्तमान संदर्भ में यह चर्चा इसलिये उठाई जा रही है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उठती आवाजों को दबाने के प्रयास में हिमाचल पुलिस धारा 505(2) के तहत अंसज्ञेय मामलों को संज्ञेय बनाने की नीति पर चल रही है। कानून के जानकारों के मुताबिक पावर कारपोरेशन को लेकर जो पत्र वायरल हुये हैं उनमें किसी भी गणित से धारा 505(2) पिक्चर में आयी ही नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है की क्या हिमाचल पुलिस का थाने तक का स्टाफ इस धारा को लेकर अपने में स्पष्ट नहीं है या ऊपर के निर्देशों पर मामलों को दबाने के प्रयासों में ऐसा किया जा रहा है। क्योंकि जयराम सरकार कार्यकाल में भी प्रवीण गुप्ता द्वारा थाना सदर शिमला में इसी धारा के तहत मामला दर्ज किया गया था जिसका जांच परिणाम आज तक सामने नहीं आया है।
वैसे तो पुलिस में किसी भी मामले की जांच करने के लिये सोर्स रिपोर्ट का भी प्रावधान है। क्योंकि कई बार शिकायतकर्ता नामतः सामने आने का साहस नहीं कर पाता है। अभी जो मामला पावर कारपोरेशन का वायरल पत्रों के माध्यम से चर्चा में आया है अब उसमें यह एफ आई आर दर्ज होने के बाद पत्रों में संदर्भित अधिकारियों/कर्मचारियों और राजनेताओं के ब्यान दर्ज करना और संबंधित रिकार्ड की जांच करना आवश्यक हो जायेगा। क्योंकि दर्ज हुई एफ आई आर का निपटारा तो अदालत में ही होना है चाहे उसमें चालान दायर हो या कैंसलेशन रिपोर्ट। अब यह मामले जन संज्ञान में आ चुके हैं। फिर पावर कारपोरेशन में जो पटेल इंजीनियरिंग कंपनी के संदर्भ में है वह पहले से ही सीबीआई के रॉडार पर चल रही है। ऐसा माना जा रहा है कि जिस एफ आई आर के माध्यम से आवाज दबाने का प्रयास किया गया है वह अब कई लोगों के गले की फांस बन जायेगी क्योंकि पत्रों में दर्ज आरोपों की जांच किया जाना आवश्यक हो जायेगा। धारा 505 (2) का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है।

आपदा काल में सुरक्षित सरकारी भवन से कार्यालयों को निजी भवनों में ले जाना कितना सही

  • यू एस क्लब से सरकारी कार्यालयों की शिफ्टिंग क्यों?

शिमला/शैल। प्रदेश में राज्य आपदा घोषित है क्योंकि जान माल का अकल्पनीय नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई करने में लम्बा समय लगेगा। सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है। मुख्यमंत्री ने सत्ता संभालते ही प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी है। स्वभाविक है कि ऐसी चेतावनी सचिवालय में बैठी वरिष्ठ अफसरशाही द्वारा दिये गये फीडबैक पर आधारित रही होगी। इस वित्तीय चेतावनी के परिदृश्य में ही नये संसाधन जुटाने के उपाय सोचे गये होंगे। जल-उपकर के लिये अध्यादेश तक लाया गया। डीजल पर दो बार वैट बढ़ाया गया। बिजली-पानी और कूड़े तक के रेट बढ़ाये गये। मंदिरों में वी.आई.पी दर्शन की सुविधा के लिये 1100रू का शुल्क तक लगा दिया। बसों में सामान ले जाने के लिये अतिरिक्त किराया लगाने का फैसला लिया गया। अधिकारियों/कर्मचारियों तक के तबादले नहीं किये गये। ताकि सरकार पर कोई खर्च का बोझ न पड़े। मुख्यमंत्री ने निजी भवनों में चल रहे सरकारी कार्यालय को सरकारी भवनों में शिफ्ट करने के निर्देश दिये ताकि खर्च कम किया जा सके।
ऐसे संकट पूर्ण हालत में सरकार ने यू.एस.क्लब स्थित पांच सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करने के निर्देश दिये हैं। इन्हें कहा गया है कि वह अपने लिये स्थान का प्रबंध करें। स्वभाविक है कि इन्हें निजी भवनों में ही अपने लिये जगह तलाशनी होगी। शायद पर्यटन विभाग ने तो इन आदेशों की अनुपालना के लिए कदम भी उठा लिए हैं। सरकार के इस आदेश के बाद पहली आशंका तो इस ओर जाती हैं की कहीं यू.एस. क्लब भी सरकारी रिपोर्टों में अनसेफ भवनों की श्रेणी में तो नहीं आ गया है। जिससे वहां स्थित कार्यालय को दूसरी जगह शिफ्ट करने की आवश्यकता खड़ी हो गयी है। लेकिन सरकार के आदेशों के बाद जो चर्चाएं सामने आयी हैं उनके मुताबिक यू.एस. क्लब से सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करके वहां पर अधिकारियों के लिए क्लब की व्यवस्था की जायेगी। क्योंकि यह स्थान माल रोड के निकट है और गाड़ियों की पार्किंग आदि की सुविधा भी उपलब्ध है। इस क्लब में अधिकारियों के लिये क्लब बनाने के प्रयास पिछली सरकारों के दौरान भी हुये हैं लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है। जयराम सरकार के समय भी वरिष्ठ अफसरशाही ने ऐसा प्रयास किया था लेकिन मुख्यमंत्री इसके लिये नहीं माने थे।
लेकिन अब आपदा काल में जिस तरह से यह फैसला आया है उससे सरकार की संवेदनशीलता पर गहरे सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसे फैसला मंत्री परिषद की बैठक में लिया गया है। क्या मुख्यमंत्री के अपने स्तर पर यह फैसला लिया गया है या अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ऐसा फैसला यह मानकर ले लिया होगा कि मुख्यमंत्री के स्तर पर कोई सवाल नहीं उठाये जाएंगे। वैसे मुख्यमंत्री या उनके सहयोगी किसी भी मंत्री की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। आपदा काल में इस तरह के फैसले लिये जाना कठिन वितीय स्थिति और आपदा में सरकारी तंत्र की गंभीरता पर गहरे सवाल छोड़ जाता है। यह चर्चा चल पड़ी है कि सरकार का अफसरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। क्योंकि सरकार इस आपदा में हर एक से सहयोग मांग रही है। यदि आम आदमी का सहयोग ऐसे ही कार्यों पर निवेशित होना है तो फिर सहयोग से पहले उसकी पात्रता पर सवाल उठेंगे यह तय है।

फोरलेन निर्माता कंपनियों के खिलाफ आयी शिकायत पर कारवाई कब

  • क्या इन निर्माणों में पर्यावरण इम्पैक्ट असैसमैन्ट अथॉरिटी की भी कोई भूमिका है
  • क्या इन निर्माता कंपनियों के साथ निगरान तंत्र की भी भूमिका नहीं है
शिमला/शैल। परमाणु-सोलन और किरतपुर-मनाली फोर लेन पर इस वर्षा के कारण जितना नुकसान हुआ है क्या उसके लिये इन फोर लेन निर्माता कंपनीयों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए? क्योंकि जिस तरह का भूस्खलन हुआ है उसका कारण पहाड़ों का अवैज्ञानिक कटान माना जा रहा है। परमाणु-सोलन में जाबली के पास एक पूरा गांव नष्ट हो गया है। मण्डी-कुल्लू में भी पहाड़ से पत्थर गिरने के कारण मौतें हुई हैं। अवैज्ञानिक कटान आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में आता है और दण्डनीय अपराध है। परमाणु- सोलन निर्माण पर सवाल उठाते हुये शिमला के पूर्व उप महापौर सी.पी.एम. नेता टिकेन्द्र पंवर ने परमाणु पुलिस के पास निर्माता कंपनियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा कर कंपनी के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज किये जाने की मांग की है। मण्डी में भी सी.पी.एम. नेताओं ने किरतपुर-मनाली फोर लेन निर्माता कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किये जाने की मांग की है। पुलिस द्वारा अभी तक यह सामने नहीं आया है कि उसने इन शिकायतों पर क्या कारवाई की है। लेकिन इस संबंध में आये हर अध्ययन में यह माना गया है कि इस नुकसान का बड़ा कारण अवैज्ञानिक कटान रहा है।
निर्माता कंपनियों के खिलाफ आयी शिकायतों के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या इसके लिये केवल यह निर्माता कंपनियां ही जिम्मेदार हैं या प्रदेश सरकार के तंत्र की भी इसमें कोई जिम्मेदारी बनती है। क्योंकि पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को देखने के लिए प्रदेश में पर्यावरण विभाग स्थित है। जब भी किसी नई परियोजना के निर्माण का प्रस्ताव सरकार के पास आता है तो उसकी स्वीकृति दिये जाने से पहले पर्यावरण इम्पैक्ट असैसमैन्ट रिपोर्ट ली जाती है और रिपोर्ट देने के लिये इस आश्य की एक अथॉरिटी भी गठित है। इस अथॉरिटी की रिपोर्ट के बिना किसी भी योजना की अनुमति नहीं मिल पाती है चाहे कोई उद्योग लगाना हो कोई सड़क निर्माण होना हो या कोई विद्युत परियोजना का प्रस्ताव हो।
इस अथॉरिटी की रिपोर्ट के बाद जब निर्माण शुरू हो जाता है तो समय-समय पर यह देखना की निर्माण में तय मानकों की अनदेखी तो नहीं हो रही है। ऐसे में जब फोर लेन निर्माता कंपनियों पर अवैज्ञानिक कटान के आरोप लग रहे हैं तब क्या सारी निगरान एजैन्सियों की भूमिका भी स्वतः ही जांच के दायरे में नहीं आ जाती है? अब जब सी.पी.एम. नेताओं ने निर्माता कंपनियों के खिलाफ शिकायत करके जांच किये जाने की मांग उठा दी है तो क्या उसी तर्ज पर संबद्ध निगरान एजैन्सियों की भी जांच नहीं हो जानी चाहिये।

क्या सुक्खू सरकार संकट में है

  • विधायकों और पूर्व विधायकों की प्रतिक्रियाओं से उठी चर्चा
  • हर चुनावी सर्वेक्षण में आ रही कांग्रेस की हार
  • हाई कमान ने लिया कड़ा संज्ञान
शिमला/शैल। पिछले दिनों जिस तरह के ट्वीट कांग्रेस विधायको राजेंद्र राणा और सुधीर शर्मा के आये हैं उससे राजनीतिक हल्कों और प्रशासनिक गलियारों में जो चर्चाएं चल निकली हैं यदि उन्हें अधिमान दिया जाए तो निश्चित रूप से सुक्खू सरकार सियासी संकट में फंस चुकी है। क्योंकि आठ माह में सुक्खू अपने मंत्रिमंडल के तीन रिक्त स्थानों को नहीं भर पाये हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष का भी एक पद खाली चला आ रहा है। इन खाली पदों को एक समय सुक्खू का मास्टर स्ट्रोक कुछ लोगों ने माना था । लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में जब सुक्खू ने मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले ही छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर ली तब यह स्पष्ट हो गया था कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार एक कूटनीति की शिकार हो गई है और कभी भी निष्पक्ष निर्णय नहीं ले पाएगी । क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां संविधान के अनुरूप नहीं है। इन नियुक्तियों को एक दर्जन भाजपा विधायकों सहित तीन याचिकाओं के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। यह फैसला जब भी आएगा इनके खिलाफ ही आएगा। पहले भी उच्च न्यायालय ऐसी नियुक्तियों को रद्द कर चुका है। सर्वोच्च न्यायालय भी इन्हें असंवैधानिक करार दे चुका है।कानून की यह जानकारी होने के बावजूद भी ऐसी नियुक्तियां करना क्या दर्शाता है यह अंदाजा लगाया जा सकता है। लोकसभा चुनावों से पूर्व यहफैसला आना तय है।
मंत्रियों के 3 पद खाली रखते हुए एक दर्जन के करीब गैरविधायकों को कैबिनेट रैंक में ताजपोशी देना सुक्खू सरकार का और बड़ा फैसला है। इन ताजपोशियों में भी अकेले जिला शिमला को 90% स्थान दिया गया है । इन ताजपोशियों से ही यह आरोप लगा है कि यह सरकार मित्रों के से घिरकर रह गई है। क्योंकि यह ताजपोशियां पाने वाले संगठन के कोई बड़े पदाधिकारी भी नहीं रहे हैं और विधानसभा चुनावों में भी इनकी कोई बड़ी भूमिका नहीं रही है । ऐसे राजनीतिक फैसलों का पार्टी के विधायकों और दूसरे कार्यकर्ताओं पर क्या असर पड़ेगा इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। इन फैसलों से हटकर यदि सरकार के मंत्रियों और उनकी कार्य स्वतंत्रता की बात की जाए तो जब शिमला में टैक्सी यूनियन विवाद खड़ा हुआ तब सरकार के मंत्री एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए। उसके बाद जब यह आपदाएं और जगह-जगह भूस्खलन और बाढ़ का प्रकोप घटा तब एक मंत्री ने इसके लिए जब अवैध खनन को जिम्मेदार ठहराया तब दूसरे मंत्री ने इस बयान को ही बचकाना करार दे दिया। यही नहीं जब विक्रमादित्य सिंह केंद्र में नितिन गडकरी और अन्य मंत्रियों से मिले तब यह सामने आया कि विभाग द्वारा भेजे गए प्रस्तावों को अधिकारियों के स्तर पर बदल दिया गया है। इस पर विक्रमादित्य सिंह को एक पत्रकार वार्ता में अधिकारियों को संदेश देना पड़ा कि वह लक्ष्मण रेखा लांघने का प्रयास न करें । इस तरह राजनीतिक स्तर पर आठ माह की जो कारगुजारियां रही हैं उसमें व्यावहारिक तौर पर संगठन और सरकार में तालमेल का अभाव रहा है। पार्टी अध्यक्षा इसे राष्ट्रीय अध्यक्ष और हाई कमान के संज्ञान में ला चुकी है । प्रशासन पर अभी भी भाजपा का प्रभाव कितना है इसका अंदाजा मंत्री पुत्र पूर्व विधायक नीरज भारती के ट्वीट से लगाया जा सकता है। इस परिपेक्ष में जब पार्टी के विधायकों से लेकर नीचे कार्यकर्ताओं के स्तर तक सभी जगह अप्रसन्नता के भाव देखने को मिलेंगे तो निश्चित तौर पर इसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। इसी स्थिति के कारण कांग्रेस हाईकमान द्वारा करवाए चुनावी सर्वेक्षण में यह सामने आया कि हिमाचल में सरकार होने के बावजूद पार्टी चारों सीट हार रही है। इसी सर्वेक्षण के बाद हाई कमान ने वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री कौल सिंह को हालात की रिपोर्ट देने के लिए कहा है । कौल सिंह की रिपोर्ट के अनुसार 23 विधायकों ने लिखित में सरकार से नाराजगी व्यक्त की है। अब तो यह सवाल भी पूछा जाने लग पड़ा है कि जो मुकेश अग्निहोत्री एक समय भाजपा सरकार के प्रति बहुत मुखर होते थे अब चुप क्यों हैं। बल्कि जब उनके ही विभाग से संबंधित जल उपकर आयोग के सदस्यों को शपथ दिलाई गई तब वह उपस्थित क्यों नहीं थे । क्या आयोग के सदस्यों की नियुक्तियों में उनकी सहमति नहीं रही है। अभी 15 अगस्त को जिस तरह से स्वतंत्रता दिवस में झंडा फहराने के लिए बिलासपुर में तैनात किया गया है उससे संगठन और सरकार में उभरती दरारें और चौड़ी होने की संभावना बढ़ने के आसार बनते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री अपने गैर राजनीतिक सलाहकारों से ऐसे घिर गए हैं कि उन्हें उनके दिखाएं हरे के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। बल्कि सही लिखने बोलने वालों को सरकार का दुश्मन माना जा रहा है। चर्चा है कि हाईकमान शीघ्र ही इसका संज्ञान लेकर शीघ्र ही कोई बड़ा फैसला सुना सकता है। क्योंकि अगर राजनीतिक परिदृश्य के साथ सरकार द्वारा लिए गए अन्य फैसलों पर भी एक साथ नजर डाली जाए तो स्थितियां और भी भयावह हो जाती हैं।

शिमला धमाके की जांच के लिये पांचवे दिन पहुंची एन.एस.जी.

  • लोगों में फैलते भ्रम के लिए आवश्यक था एन.एस.जी का आना

शिमला/शैल। शिमला के मिडल बाजार स्थित हिमाचल रसोई रेस्तरां में 18 जुलाई शाम को 7ः00 बजे हुये धमाके की जांच अब एन.एस.जी. के पास पहुंच गयी है। इस धमाके में एक कारोबारी अवनीश सूद की मौत हो गयी थी और 13 लोग जख्मी हुये थे। धमाका इतना जोरदार था कि इसमें मिडल बाजार और माल रोड की 25 दुकानों और घरों के शीशे चटक गये थे। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस के मुताबिक यह धमाका गैस सिलैण्डर के फटने से हुआ है। लेकिन स्थल पर सबसे पहले पहुंचे फायर ऑफिसर ने वहीं से दो सिलैण्डर बाहर निकाल कर रख दिये थे। उसके मुताबिक कोई सिलैण्डर नहीं फटा था। घटनास्थल पर कोई आग भी नहीं लगी थी। परन्तु जब पुलिस अधीक्षक ने ही एक पत्रकार वार्ता में धमाके का कारण सिलैण्डर फटना बताया तो उससे एक भ्रान्ति की स्थिति बन गई। इस धमाके से जिन लोगों के आवास और दुकानें प्रभावित हुई हैं वह भी इसे सिलैण्डर फटना नहीं मान रहे हैं। पुलिस ने धारा 336, 337 और 304 (A) के तहत एफ.आई.आर दर्ज करके धमाके के कारणों की जांच शुरू कर दी है। फॉरैन्सिक टीम ने भी घटनास्थल का दौरा करके मौके से साक्ष्य जुटाकर अपनी जांच शुरू कर दी है। लेकिन अभी कोई रिपोर्ट नहीं आयी है। ऐसे में जब घटनास्थल पर कोई सिलैण्डर न फटने पर भी इसे गैस सिलैण्डर फटना कहा गया तब स्वतः ही एक भ्रांति और सन्देह का वातावरण बन गया। इस सन्देह को दूर करने के लिये स्थानीय विधायक हरीश जनारथा के आग्रह पर मुख्यमंत्री और डी.जी.पी. ने केन्द्र से आग्रह करके एन.एस.जी. को यह जांच सौंपी है। एन.एस.जी. की 16 सदस्यों की जांच टीम ने 5 दिन बाद आकर घटनास्थल का निरीक्षण करके मौके से साक्ष्य जुटाये हैं। एन.एस.जी. ने पुलिस और फॉरैन्सिक टीम से भी मंत्रणा की है। घायलों से मिलकर उनके ब्यान भी लिये हैं। अब एन.एस.जी. की जांच रिपोर्ट आने का इन्तजार है। जब पुलिस और फॉरैन्सिक टीम की भी रिपोर्ट आ जायेगी तब तीनों जांच रिपोर्टों के बाद इस धमाके के कारणों का खुलासा हो पायेगा। लेकिन आम आदमी के मन में उठते सन्देहों के निराकरण के लिये केन्द्रीय टीम का लाया जाना आवश्यक था। इसके लिये विधायक और सरकार के प्रयासों की सराहना की जा रही है।

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