शिमला/शैल। देवी देवताओं के आशीर्वाद और जनता की दुआओं से स्वस्थ होकर लौटे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का शिमला पहुंचने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों और जनता ने जोरदार स्वागत किया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें कुछ समय आराम करने और समय पर खाना खाने की सलाह दी है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने स्पष्ट किया कि वह अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करते रहेंगे क्योंकि चार वर्षों में प्रदेश को आत्मनिर्भर और दस वर्षों में देश का सबसे समृद्ध राज्य बनाना है। मुख्यमंत्री का यह संकल्प प्रदेश सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिये एक बड़ी चुनौती होगा क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले जो दस गारंटीयां प्रदेश की जनता को दी थी उन पर अब तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाये जा सके हैं। बल्कि इन गारंटीयों के बाद सरकार के सौ दिन पूरे होने पर कुछ और वायदे भी प्रदेश की जनता से मार्च माह में किये गये हैं। इस समय भाजपा इन गारंटीयों को लेकर सुक्खू सरकार के खिलाफ पूरी तरह आक्रामक हुई पड़ी है। भाजपा का हर नेता इसे मुद्दा बना कर हर दिन उछाल रहा है। चुनावी राज्यों में भी यह गारंटीयां मुद्दा बनी हुई है।
दूसरी और सुक्खू सरकार को पूर्व भाजपा सरकार से 9200 करोड़ की देनदारियां विरासत में मिली है। केन्द्र सरकार ने प्रदेश सरकार के कर्ज लेने की सीमा में भी काफी कटौती की है। यह आरोप राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर लाये गये श्वेत पत्र में दर्ज है। ऐसी कठिन वित्तीय स्थिति से गुजरती हुई सरकार अब तक 11000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है और 800 करोड़ लेने की प्रक्रिया में है। ऐसी हालत में भी मुख्यमंत्री का यह दावा करना की शेष बचे चार वर्षों में प्रदेश को आत्मनिर्भर और दस वर्षों में देश का सबसे समृद्ध राज्य बना देने का वायदा कितनी व्यवहारिक शक्ल ले पायेगा इसको लेकर साथ ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि सरकार की कार्यशैली और उसकी अब तक की घोषित योजनाओं पर नजर रख रहे विश्लेष्कांे का मानना है कि मुख्यमंत्री का यह वायदा पूरा हो पाना संभव नहीं है। क्योंकि इस समय प्रदेश में रोजगार की उपलब्धता सबसे बड़ा सवाल है। प्रदेश का युवा वर्ग रोजगार न मिल पाने से पूरी तरह आक्रोषित और हतोत्साहित है। सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। सरकार में सौ दिन पूरा होने पर सरकारी और प्राइवेट सैक्टर में जो रोजगार की उपलब्धता का आंकड़ा जारी किया था वह वायदा कागजी आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाया है।
इस वस्तुस्थिति में स्वास्थ्य लाभ लेकर लौटे मुख्यमंत्री से इतना बड़ा और वायदा करवा देना विपक्ष को एक और मुद्दा देना बन जायेगा। स्वभाविक है कि सलाहकारों द्वारा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा ऐसा ब्यान जारी करवा देना अपने में ही कई सवाल खड़े कर देता है। क्योंकि अब तक की कार्यप्रणाली से यह स्पष्ट हो गया है की सरकार को हर माह एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में कर्ज लेकर वायदों को पूरा करना किसी भी गणित में से प्रदेश हित में नहीं कहा जा सकता। आने वाले दिनों में लोकसभा चुनावों का सामना करना पड़ेगा। उस समय यह कर्ज और वायदे जनता के सबसे बड़े सवाल होंगे। विपक्ष इनको लेकर पूरी तरह हमलावर होगा। क्या कांग्रेस का आम कार्यकर्ता इन सवालों का जवाब दे पायेगा? विश्लेष्कों का मानना है कि जो जनता मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थनाएं कर रही थी उसके सामने फिर ऐसे वायदे परोसने का कोई औचित्य नहीं था। इन वायदों पर प्रदेश संगठन और हाईकमान तक को जवाबदेह होना पड़ेगा यह तय है।
शिमला/शैल। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के कार्य प्रणाली पर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि जो प्राइवेट कंपनियां सरकार के लिए विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रही थी उन्होंने अपनी सेवाओं को बन्द करना शुरू कर दिया है। क्योंकि सरकार उनके बिलों का भुगतान नहीं कर पा रही है। कई कंपनियां सेवाएं बन्द कर चुकी हैं और कई ने काम बन्द करने का अल्टीमेटम दे रखा है। यह आरोप है नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर जय राम का। जयराम के मुताबिक कल्लू के क्षेत्रीय अस्पताल में चल रही डायलिसिस सेवाएं सेवा प्रदाता कंपनी ने बंद कर दी है। लोगों को निजी अस्पताल में सेवाएं लेनी पड़ रही है क्योंकि सरकार कंपनी को भुगतान नहीं कर पायी है। इससे जिन लोगों को अब तक निःशुल्क इलाज मिल रहा था उन्हें अब हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। जयराम ठाकुर ने आरोप लगाया है कि हिम केयर के तहत ईम्पैनल्ड अस्पतालों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। हिम केयर के तहत विभिन्न चिकित्सा सामान उपलब्ध करवाने वाली कंपनियों ने सप्लाई रोक दी है क्योंकि उनका भुगतान नहीं हो पा रहा है। इससे आप्रेशन प्रभावित हो रहे हैं। ऑक्सीजन प्लांट बन्द पड़े हैं। इस तरह प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से चरमरा गयी है।
नेता प्रतिपक्ष की इसी चिन्ता के बीच यह भी सामने आया है कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने 17-1-2022 के लिए एक टैण्डर जारी किया था। इस पर कोई फैसला न हो पाने के कारण इसे रद्द कर दिया गया। इसके 28-4-2022 के लिये पुनः जारी किया गया और फिर रद्द हो गया। तीसरी बार 8-7-2022 को जारी किया गया। 19-10-2022 और 9-11-2022 को सैंपल और डैमोन्सट्रेशन भी हो गया परन्तु इसके बाद रद्द कर दिया गया। चौथी बार 18-5-2023 को फिर आमंत्रित हुआ और निविदायें आयी परन्तु फिर रद्द हो गया। पांचवीं बार 14-9-2023 को आमंत्रित हुआ। इस बार पांच निविदायें आयी। इसमें भी कई निविदा दाताओं के दस्तावेजों पर प्रश्न चिन्ह लग चुके हैं। इस बार यह टैण्डर फाईनल हो पाता है या नहीं यह रोचक बना हुआ है।
ऐसे में स्वभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि जो विभाग करीब दो वर्ष में एक टैण्डर को फाइनल न कर पा रहा हो वह प्रदेश की जनता को क्या और कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्या इस तरह की स्थिति स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं आयी होगी? उनके स्तर पर क्या संज्ञान लिया गया होगा? क्योंकि स्वास्थ्य विभाग यदि कोई खरीद कर रहा होगा तो निश्चित रूप से उसका ताल्लुक आम आदमी के स्वास्थ्य से रहा होगा। यदि ऐसे टैण्डर भी दो वर्ष में फाइनल न हो पाये तो संबंधित विभाग ही नहीं पूरी सरकार सवालों के घेरे में आ जाती है।
कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष विनोद कुमार ने लिखा पत्र
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल फिर से खोलने का प्रयास कर रही है। यह ट्रिब्यूनल भारत सरकार की अनुमति से ही खुल सकता है और केंद्र सरकार की अनुमति के लिए इस आश्य का प्रस्ताव भेजा जा चुका है। लेकिन यह ट्रिब्यूनल दोबारा खोलने की चर्चा जैसे ही सामने आई उसी के साथ इसके विरोध के स्वर भी मुखर होने लग गये हैं। अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार और उनके साथियों ने इसके विरोध का मोर्चा खोल दिया है। इन कर्मचारी नेताओं का मानना है कि कर्मचारियों के मामले में न्याय के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इनका कहना है पहले भी यह ट्रिब्यूनल कर्मचारियों के प्रस्ताव पर ही बंद किया गया था। उन्होंने तर्क दिया है कि पंजाब और हरियाणा में कर्मचारियों और उनके मामलों की संख्या दो गुणी है परन्तु वहां पर तो कोई ट्रिब्यूनल नहीं है और उच्च न्यायालय के माध्यम से ही त्वरित न्याय मिल रहा है। कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि हिमाचल में यह ट्रिब्यूनल कुछ सेवानिवृत नौकरशाहों और अन्यों की शरण स्थली से अधिक कुछ साबित नहीं हुआ। विनोद कुमार ने खुलासा किया है कि पूर्व में भी जब यह ट्रिब्यूनल बन्द करने की मांग की गई थी तब भी दो नौकरशाह श्रीकांत बाल्दी और मनीषा नन्दा कि इसमें नियुक्तियां फाइनल हो गई थी तब ट्रिब्यूनल को भंग करने की मांग न करने के लिए उन्हें कहा गया था। लेकिन कर्मचारी हित में वह मांग पर कायम रहे और परिणाम स्वरूप ट्रिब्यूनल भंग हो गया। विनोद कुमार ने जोर देकर कहा कि इस फैसले का विरोध करने के लिए वह राज्यपाल से लेकर केंद्र सरकार तक भी अपना पक्ष रखेंगे। उन्होंने सुक्खू सरकार को सलाह दी है कि वित्तीय संकट से जूझ रहे प्रदेश पर 100 करोड़ का अतिरिक्त बोझ कुछ नौकरशाहों के लिए न डाला जाये।