Friday, 19 September 2025
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प्रदेश को चार वर्षाे में आत्मनिर्भर और दस में सबसे अमीर बनाएंगे-सुक्खू

  • क्या कर्ज की बैसाखियों पर चल रहे प्रदेश के लिये यह संभव हो पायेगा?
  • क्या मुख्यमंत्री के सलाहकारों ने यह वायदा करवाने से पहले जमीनी हकीकत का संज्ञान नहीं लिया है

शिमला/शैल। देवी देवताओं के आशीर्वाद और जनता की दुआओं से स्वस्थ होकर लौटे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का शिमला पहुंचने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों और जनता ने जोरदार स्वागत किया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें कुछ समय आराम करने और समय पर खाना खाने की सलाह दी है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने स्पष्ट किया कि वह अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करते रहेंगे क्योंकि चार वर्षों में प्रदेश को आत्मनिर्भर और दस वर्षों में देश का सबसे समृद्ध राज्य बनाना है। मुख्यमंत्री का यह संकल्प प्रदेश सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिये एक बड़ी चुनौती होगा क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले जो दस गारंटीयां प्रदेश की जनता को दी थी उन पर अब तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाये जा सके हैं। बल्कि इन गारंटीयों के बाद सरकार के सौ दिन पूरे होने पर कुछ और वायदे भी प्रदेश की जनता से मार्च माह में किये गये हैं। इस समय भाजपा इन गारंटीयों को लेकर सुक्खू सरकार के खिलाफ पूरी तरह आक्रामक हुई पड़ी है। भाजपा का हर नेता इसे मुद्दा बना कर हर दिन उछाल रहा है। चुनावी राज्यों में भी यह गारंटीयां मुद्दा बनी हुई है।
दूसरी और सुक्खू सरकार को पूर्व भाजपा सरकार से 9200 करोड़ की देनदारियां विरासत में मिली है। केन्द्र सरकार ने प्रदेश सरकार के कर्ज लेने की सीमा में भी काफी कटौती की है। यह आरोप राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर लाये गये श्वेत पत्र में दर्ज है। ऐसी कठिन वित्तीय स्थिति से गुजरती हुई सरकार अब तक 11000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है और 800 करोड़ लेने की प्रक्रिया में है। ऐसी हालत में भी मुख्यमंत्री का यह दावा करना की शेष बचे चार वर्षों में प्रदेश को आत्मनिर्भर और दस वर्षों में देश का सबसे समृद्ध राज्य बना देने का वायदा कितनी व्यवहारिक शक्ल ले पायेगा इसको लेकर साथ ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि सरकार की कार्यशैली और उसकी अब तक की घोषित योजनाओं पर नजर रख रहे विश्लेष्कांे का मानना है कि मुख्यमंत्री का यह वायदा पूरा हो पाना संभव नहीं है। क्योंकि इस समय प्रदेश में रोजगार की उपलब्धता सबसे बड़ा सवाल है। प्रदेश का युवा वर्ग रोजगार न मिल पाने से पूरी तरह आक्रोषित और हतोत्साहित है। सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। सरकार में सौ दिन पूरा होने पर सरकारी और प्राइवेट सैक्टर में जो रोजगार की उपलब्धता का आंकड़ा जारी किया था वह वायदा कागजी आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाया है।
इस वस्तुस्थिति में स्वास्थ्य लाभ लेकर लौटे मुख्यमंत्री से इतना बड़ा और वायदा करवा देना विपक्ष को एक और मुद्दा देना बन जायेगा। स्वभाविक है कि सलाहकारों द्वारा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा ऐसा ब्यान जारी करवा देना अपने में ही कई सवाल खड़े कर देता है। क्योंकि अब तक की कार्यप्रणाली से यह स्पष्ट हो गया है की सरकार को हर माह एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में कर्ज लेकर वायदों को पूरा करना किसी भी गणित में से प्रदेश हित में नहीं कहा जा सकता। आने वाले दिनों में लोकसभा चुनावों का सामना करना पड़ेगा। उस समय यह कर्ज और वायदे जनता के सबसे बड़े सवाल होंगे। विपक्ष इनको लेकर पूरी तरह हमलावर होगा। क्या कांग्रेस का आम कार्यकर्ता इन सवालों का जवाब दे पायेगा? विश्लेष्कों का मानना है कि जो जनता मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थनाएं कर रही थी उसके सामने फिर ऐसे वायदे परोसने का कोई औचित्य नहीं था। इन वायदों पर प्रदेश संगठन और हाईकमान तक को जवाबदेह होना पड़ेगा यह तय है।


क्या सरकार ऑपरेशन लोटस के संकट पर आ पहुंची है?

  • कर्ज और आपदा सहायता के आंकड़े पर छिड़ा घमासान
  • मुकेश अग्निहोत्री और जगत सिंह नेगी का प्रदेश भाजपा पर बड़ा आरोप
  • भाजपा के इशारे पर केंद्र ने रोके 4950 करोड़
  • आरटीआई के माध्यम से बिन्दल का सरकार पर दस माह में 11300 कर्ज लेने का खुलासा
  • सुक्खू की गैर हाजिरी सरकार और विपक्ष का सामना सरकार के लिए हो सकता है घातक
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार दस माह में 11300 करोड़ का कर्ज ले चुकी है और यदि कर्ज लेने की यही गति जारी रही तो पांच साल में इस सरकार के नाम 60,000 करोड़ के कर्ज का रिकॉर्ड बन जायेगा। यह आरोप प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल ने आर.टी.आई. के माध्यम से मिली जानकारी के आधार पर लगाया है। दूसरी और सुक्खू सरकार में उपमुख्यमन्त्री मुकेश अग्निहोत्री और राजस्व एवं बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने एक संयुक्त ब्यान में आरोप लगाया है कि केन्द्र सरकार ने प्रदेश भाजपा नेताओं के इशारे पर 4950 करोड़ की आपदा सहायता राशि रोक रखी है। इन मंत्रियों ने खुलासा किया है कि केंद्र सरकार की ओर से टीमें प्रदेश में आपदा का आकलन करने आयी थी और प्रदेश सरकार ने 10 अगस्त को 6746 करोड़ का पहले प्रस्ताव सहायता के लिए भेजा था। इसके बाद 10 अक्तूबर को 9900 करोड़ की सहायता का दूसरा प्रस्ताव भेजा था। इस तरह 4950 करोड़ प्रस्ताव का 50% प्रदेश का हक बनता था जो जारी नहीं किया गया है और इसके लिये प्रदेश भाजपा नेतृत्व जिम्मेदार है। दूसरी ओर प्रदेश भाजपा के नेता सुक्खू सरकार की गारंटीयों को पांच राज्यों के चुनाव में मुद्दा बनाकर उठा रहे हैं। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने तेलंगाना में एक चुनावी जनसभा में इन गारंटीयों की सूची दिखाते हुए आरोप लगाया है कि हिमाचल में एक वर्ष में इस पर अमल करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है न ही किसी किसान से 100 रूपये लीटर दूध खरीद गया है और न ही 2 रूपये किलो गोबर। गारंटीयों के नाम पर प्रदेश सरकार का पक्ष बहुत कमजोर है और शायद इसीलिये इस सरकार का कोई भी मंत्री इन राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं जा पाया है। यह बढ़ता कर्ज और गारंटीयों पर अमल की दिशा में कोई कदम न उठा पाना सुक्खू सरकार के लिए आने वाले दिनों में कई बड़े मुद्दे होंगे। क्योंकि इस समय भाजपा और कांग्रेस के लिए यह विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव अस्तित्व का सवाल बनने जा रहे हैं। इंडिया गठबंधन बनने से पहले टूटने के संकेत देने लग गया है और इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आज कांग्रेस ही मोदी-भाजपा के लिये सबसे बड़ी चुनौती है।
ऐसे में इस चुनौती को और कमजोर करने के लिए कांग्रेस की किसी सरकार को अस्थिर करने तक की रणनीति पर मोदी सरकार जा सकती है। भाजपा की इस संभावित रणनीति का आसान शिकार सुक्खू सरकार को माना जा रहा है। क्योंकि हिमाचल में जयराम सरकार पर सबसे बड़ा आप प्रदेश को कर्ज के गर्त में धकेलना लगा था। लेकिन आज भाजपा बाकायदा आर.टी.आई. के सहारे सुक्खू सरकार पर अपने से भी कई गुना बड़ा कर्ज का ही आरोप लगा रही है। इस आरोप के अतिरिक्त मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में किसी न किसी बहाने टाइम निकालने के मुकाम पर सरकार को पहुंचा दिया गया है। इस समय अपनी बीमारी के कारण मुख्यमंत्री स्वयं फ्रन्ट पर आकर मोर्चा संभालने की स्थिति में नहीं हैं संगठन और सरकार में तालमेल का अभाव आम आदमी की जानकारी में आ चुका है। शीर्ष प्रशासन जितना शुभचिंतक इस सरकार का है उससे ज्यादा पूर्व सरकार का है। इसलिए व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर पूर्व सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सलाहकारों ने कोई कदम नहीं उठाने दिया है। इस समय मुख्यमंत्री की गैर हाजिरी में पूरा प्रशासन अराजक हो गया है। सरकार का वित्तीय संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। कर्ज लेने पर रोक लगने के हालात बनते जा रहे हैं। पूरी भाजपा शान्ता से लेकर बिन्दल तक सरकार पर आक्रामक हो चुकी है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार लोकसभा चुनाव से पहले हिमाचल सरकार को अपने ही भार से दम घुटने के मुकाम पर पहुंचा देगी। मुख्य संसदीय सचिवों के प्रकरण पर यदि लोस चुनाव से पहले कोई अदालती फैसला नहीं आता है तो गारंटीयों पर अमल न होना और कर्ज का बढ़ना बजट सत्र के मुख्य मुद्दे हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में सरकार के लिये बजट पारित करवाने तक का संकट खड़ा हो सकता है। यदि मुख्यमंत्री तुरंत प्रभाव से स्थितियों के सक्रिय नियंत्रण में नहीं आ जाते हैं तो कांग्रेस के लिए कठिनाइयां बढ़ सकती हैं। क्योंकि आरटीआई के माध्यम से कर्ज के आंकड़े बाहर आना एक ऐसा हथियार सिद्ध होगा जिसकी काट किसी के पास नहीं होगी। क्योंकि आने वाले समय में प्रमुखता के यह सवाल पूछा जायेगा कि यह कर्ज कहां खर्च किया जा रहा है। कर्ज के इस आंकड़े के सामने आपदा के आंकड़े भी छोटे पड़ जाएंगे। जबकि पहले यह कहा गया था कि केन्द्र ने प्रदेश के कर्ज लेने पर ही कटौती लगा दी है।

स्वास्थ्य विभाग दो वर्षों में फाइनल नहीं कर पाया टैण्डर

  • प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं सवालों में
  • सरकार स्वास्थ्य सेवाएं प्रदाता कंपनियों का भुगतान नहीं कर पा रही
  • कई कंपनीयों ने रोकी सेवाएं

शिमला/शैल। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के कार्य प्रणाली पर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि जो प्राइवेट कंपनियां सरकार के लिए विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रही थी उन्होंने अपनी सेवाओं को बन्द करना शुरू कर दिया है। क्योंकि सरकार उनके बिलों का भुगतान नहीं कर पा रही है। कई कंपनियां सेवाएं बन्द कर चुकी हैं और कई ने काम बन्द करने का अल्टीमेटम दे रखा है। यह आरोप है नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर जय राम का। जयराम के मुताबिक कल्लू के क्षेत्रीय अस्पताल में चल रही डायलिसिस सेवाएं सेवा प्रदाता कंपनी ने बंद कर दी है। लोगों को निजी अस्पताल में सेवाएं लेनी पड़ रही है क्योंकि सरकार कंपनी को भुगतान नहीं कर पायी है। इससे जिन लोगों को अब तक निःशुल्क इलाज मिल रहा था उन्हें अब हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। जयराम ठाकुर ने आरोप लगाया है कि हिम केयर के तहत ईम्पैनल्ड अस्पतालों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। हिम केयर के तहत विभिन्न चिकित्सा सामान उपलब्ध करवाने वाली कंपनियों ने सप्लाई रोक दी है क्योंकि उनका भुगतान नहीं हो पा रहा है। इससे आप्रेशन प्रभावित हो रहे हैं। ऑक्सीजन प्लांट बन्द पड़े हैं। इस तरह प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से चरमरा गयी है।
नेता प्रतिपक्ष की इसी चिन्ता के बीच यह भी सामने आया है कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने 17-1-2022 के लिए एक टैण्डर जारी किया था। इस पर कोई फैसला न हो पाने के कारण इसे रद्द कर दिया गया। इसके 28-4-2022 के लिये पुनः जारी किया गया और फिर रद्द हो गया। तीसरी बार 8-7-2022 को जारी किया गया। 19-10-2022 और 9-11-2022 को सैंपल और डैमोन्सट्रेशन भी हो गया परन्तु इसके बाद रद्द कर दिया गया। चौथी बार 18-5-2023 को फिर आमंत्रित हुआ और निविदायें आयी परन्तु फिर रद्द हो गया। पांचवीं बार 14-9-2023 को आमंत्रित हुआ। इस बार पांच निविदायें आयी। इसमें भी कई निविदा दाताओं के दस्तावेजों पर प्रश्न चिन्ह लग चुके हैं। इस बार यह टैण्डर फाईनल हो पाता है या नहीं यह रोचक बना हुआ है।
ऐसे में स्वभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि जो विभाग करीब दो वर्ष में एक टैण्डर को फाइनल न कर पा रहा हो वह प्रदेश की जनता को क्या और कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्या इस तरह की स्थिति स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं आयी होगी? उनके स्तर पर क्या संज्ञान लिया गया होगा? क्योंकि स्वास्थ्य विभाग यदि कोई खरीद कर रहा होगा तो निश्चित रूप से उसका ताल्लुक आम आदमी के स्वास्थ्य से रहा होगा। यदि ऐसे टैण्डर भी दो वर्ष में फाइनल न हो पाये तो संबंधित विभाग ही नहीं पूरी सरकार सवालों के घेरे में आ जाती है।


प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के पुनः खुलने से पहले ही मुखर हुआ विरोध

कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष विनोद कुमार ने लिखा पत्र
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल फिर से खोलने का प्रयास कर रही है। यह ट्रिब्यूनल भारत सरकार की अनुमति से ही खुल सकता है और केंद्र सरकार की अनुमति के लिए इस आश्य का प्रस्ताव भेजा जा चुका है। लेकिन यह ट्रिब्यूनल दोबारा खोलने की चर्चा जैसे ही सामने आई उसी के साथ इसके विरोध के स्वर भी मुखर होने लग गये हैं। अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार और उनके साथियों ने इसके विरोध का मोर्चा खोल दिया है। इन कर्मचारी नेताओं का मानना है कि कर्मचारियों के मामले में न्याय के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इनका कहना है पहले भी यह ट्रिब्यूनल कर्मचारियों के प्रस्ताव पर ही बंद किया गया था। उन्होंने तर्क दिया है कि पंजाब और हरियाणा में कर्मचारियों और उनके मामलों की संख्या दो गुणी है परन्तु वहां पर तो कोई ट्रिब्यूनल नहीं है और उच्च न्यायालय के माध्यम से ही त्वरित न्याय मिल रहा है। कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि हिमाचल में यह ट्रिब्यूनल कुछ सेवानिवृत नौकरशाहों और अन्यों की शरण स्थली से अधिक कुछ साबित नहीं हुआ। विनोद कुमार ने खुलासा किया है कि पूर्व में भी जब यह ट्रिब्यूनल बन्द करने की मांग की गई थी तब भी दो नौकरशाह श्रीकांत बाल्दी और मनीषा नन्दा कि इसमें नियुक्तियां फाइनल हो गई थी तब ट्रिब्यूनल को भंग करने की मांग न करने के लिए उन्हें कहा गया था। लेकिन कर्मचारी हित में वह मांग पर कायम रहे और परिणाम स्वरूप ट्रिब्यूनल भंग हो गया। विनोद कुमार ने जोर देकर कहा कि इस फैसले का विरोध करने के लिए वह राज्यपाल से लेकर केंद्र सरकार तक भी अपना पक्ष रखेंगे। उन्होंने सुक्खू सरकार को सलाह दी है कि वित्तीय संकट से जूझ रहे प्रदेश पर 100 करोड़ का अतिरिक्त बोझ कुछ नौकरशाहों के लिए न डाला जाये।

क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना सरकार की नीति है?

  • इण्डस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय प्रकरण से उठी चर्चा
  • अक्तूबर 22 में विनियामक आयोग विश्वविद्यालय बन्द करने की सिफारिश भेजता है
  • लेकिन जनवरी में नये कोर्स शुरू करने की भी अनुमति दे देता है क्यों?
शिमला/शैल। हिमाचल को शैक्षणिक हब बनाने के नाम पर जब प्रदेश में प्राइवेट सेक्टर में निजी विश्वविद्यालय और अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थान बड़े पैमाने पर खुले थे तब यह आरोप लगा था कि शिक्षा का बाजारीकरण किया जा रहा है। यह आरोप लगा था कि इन संस्थानों में छात्रों और उनके अभिभावकों दोनों का ही यहां शोषण होगा। इन आरोपों का गंभीर संज्ञान लेते हुये सरकार ने 2010 में ही एक निजी शिक्षण संस्थान विनियामक आयोग की स्थापना कर दी थी। इन शिक्षण संस्थानों में यूजीसी के मानकों के अनुसार अध्यापन हो रहा है। इन संस्थानों में नियुक्त किया जा रहा टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टॉफ यूजीसी द्वारा तय शैक्षणिक योग्यता के अनुसार रखा जा रहा है। और उसे यूजीसी के मानकों के अनुसार वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं यह सुनिश्चित करना इस आयोग के क्षेत्राधिकार में रखा गया था। जो संस्थान तय मानकों पर जितना उतरेगा उसे उसी के अनुरूप पाठय कोर्स आवंटित किये जाएंगे। यह सब सुनिश्चित करने के लिए आयोग द्वारा समय-समय पर इन संस्थानों का निरीक्षण किया जाना और उस निरीक्षण की रिपोर्ट सरकार को सौंपना आयोग के कार्य क्षेत्र का अनिवार्य हिस्सा है। यही नहीं इन शैक्षणिक संस्थाओं की कार्यशैली को पारदर्शी बनाने के लिए हर विश्वविद्यालय की ई.सी. में विधायकों का भी मनोनयन विधानसभा द्वारा किया जाता है। सभी विश्वविद्यालयों को इतनी इतनी जमीन खरीद की अनुमतियां हासिल हैं कि शायद ही कोई विश्वविद्यालय अपनी आधी जमीन का भी अब तक उपयोग कर पाया हो। जबकि दो वर्ष के भीतर ऐसी हासिल जमीन का उपयोग करना होता है और इसकी रिपोर्ट भी आयोग को देनी होती है। लेकिन सरकार द्वारा नियामक आयोग स्थापित किए जाने के बाद भी मानव भारतीय विश्वविद्यालय प्रकरण इस प्रदेश में घट गया। आज ऊना स्थित इण्डस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय भी कुछ कुछ इस कगार पर पहुंचता नजर आ रहा है। इसमें विश्वविद्यालय में ज्यादा सवाल तो विनियामक आयोग की कार्य प्रणाली और सरकार की उदासीनता पर उठ रहे हैं। स्वभाविक है कि किसी भी विश्वविद्यालय में बच्चे वहां पढ़ा रहे अध्यापकों की योग्यता से प्रभावित होकर ही आते हैं। जिस संस्थान में छात्रों की संख्या हर वर्ष गिरती चली जाये वह संस्थान ज्यादा देर कार्यशील नहीं रह सकता यह तय है। इस विश्वविद्यालय में 2019-20 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों की संख्या 135 थी जो 2020-21 में घटकर 55 रह गई और 2021-22 में शून्य पहुंच गई। 2022-23 में स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों में 166 है। छात्रों की इस घटती संख्या का विनियामक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अयोग्य फैक्लटी और यूजीसी के मानकों के अनुसार स्टॉफ को वेतन न दिया जाना। विनियामक आयोग इन कमियों पर इस विश्वविद्यालय को जुर्माना भी लगता है और फिर कोविड के नाम पर आधा जुर्माना माफ भी कर देता है। जब विश्वविद्यालय में कोई सुधार नहीं होता है तो यह आयोग अक्तूबर 22 में इसे बन्द करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सरकार को पत्र भेज देता है। लेकिन अक्तूबर के बाद 2023 में इसी विश्वविद्यालय को बी.ए.एम.एस. और एल.एल.बी. जैसे नये कोर्स शुरू करने की अनुमति देता है। उधर सरकार आयोग के अक्तूबर 22 के पत्र पर आज तक कोई कारवाई नहीं करती है। जब रिकॉर्ड पर यह स्थितियां आ चुकी हो और फिर भी कुछ कारवाई न हो पाये तो इसे भ्रष्टाचार को संरक्षण देना न कहा जाये तो और क्या कहा जाये?

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