Friday, 19 September 2025
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वितीय स्थिति पर श्वेत पत्र या पूर्व सरकार पर आरोप पत्र है यह दस्तावेज

  • जो लोग फिजूल खर्ची और कुप्रबंधन के लिये जिम्मेदार रहे हैं क्या उनके खिलाफ कोई कारवाई होगी
  • क्या वित्त विभाग मंत्रिमण्डल के आगे नतमस्तक हो गया था
  • क्या यह श्वेत पत्र और कर्ज लेने की भूमिका है?
  • इस श्वेत पत्र को एक ही सरकार के कार्यकाल तक सीमित क्यों रखा गया?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर जनता को यह कहा था की प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। प्रदेश की जनता से वादा किया था कि वह इस पर श्वेत पत्र जारी करेगी। इस वायदे के अनुसार सरकार ने 46 पन्नों का यह श्वेत पत्र विधानसभा के सामने रखा है। इस पत्र के अनुसार सुक्खू सरकार को 92774 करोड़ रुपए की प्रत्यक्ष देनदारियां विरासत में मिली हैं। जिन में 76630 करोड़ की ऋण देनदारी और आरक्षित निधि के तहत जमा हुई 5544 करोड़ की अन्य बकाया देनदारियां और वेतन संशोधन तथा दिसम्बर 2022 तक महंगाई भत्ते की लगभग 10600 करोड़ की बकाया देनदारियां शामिल हैं। 2017-18 के अन्त में यह देनदारियां 47906 करोड़ थी जो 2018-19 से 2022-23 तक बढ़कर 76630 करोड़ पर पहुंच गई है। इन देनदारीयों के कारण आज प्रदेश का हर बच्चा 102818 रुपए के कर्ज तले हैं। श्वेत पत्र के अनुसार प्रदेश की यह स्थिति इसलिए हुई है की जयराम सरकार ने संसाधन बढ़ाने के उपाय न करके केवल कर्ज लेकर ही काम चलाने की नीति पर चलते रहे। दिये गये आंकड़ों के अनुसार अकेले वित्तीय वर्ष 2022-23 में 12912 करोड़ का ऋण लिया गया जो अब तक एक वर्ष में लिया गया सबसे अधिक कर्ज है।

प्रदेश के 23 सार्वजनिक उपकरणों से 17 घाटे में चल रहे हैं। 31 मार्च 2017 को इनका संचित घाटा 3584.91 करोड़ था जो 31 मार्च 2022 तक बढ़कर 4902.78 करोड़ हो गया। सार्वजनिक उपक्रमों में राज्य विद्युत बोर्ड 1809.61 करोड़ के घाटे के साथ पहले स्थान पर है और एच.आर.टी.सी. 1707.12 करोड़ के साथ दूसरे नम्बर पर है। एच.आर.टी.सी. प्रतिमाह 60 करोड़ के घाटे में चल रही है। केंद्र सरकार द्वारा योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग लाने से भी प्रदेश को प्रतिवर्ष 3000 करोड़ का नुकसान हुआ है। राजस्व घाटा अनुदान में प्रतिवर्ष केंद्र कमी कर रहा है इससे भी सांसदों संसाधनों में कमी आयी है। इसी तरह जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति बन्द होने से भी राज्य का राजस्व कम हो गया है। इसी के साथ प्रदेश सरकार की उधार लेने की सीमा में भी कटौती करने से भी संसाधनों पर असर पड़ा है। यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि राज्य सरकार केंद्र के पास अपने हितांे की ठीक से पैरवी नहीं कर पायी है। इस तरह 2022-23 के मुकाबले 2023-24 में इस सरकार के पास 6779 करोड़ के संसाधन कम होंगे।
पूर्व की जयराम सरकार कर्ज पर निर्भरता के अतिरिक्त फिजूल खर्ची और दोषपूर्ण नीतियों का भी आरोप है। इसमें इन्वैस्टर मीट पर 27 करोड़ खर्च करके जो आयोजन किये गये और उन में निवेश आने और रोजगार मिलने के जो दावे पेश किये गये थे वह जमीन पर पूरे नहीं हुए। यही नहीं मानकों की अवहेलना करके संस्थाओं का खोला जाना सबसे बड़ी फिजूल खर्ची रही है। प्रशासनिक विभागों ने 584 प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजे जिनमें से केवल 94 प्रस्तावों को वित्त विभाग की स्वीकृति मिली। स्वास्थ्य विभाग ने 140 प्रस्ताव भेजे जिनमें से सिर्फ नौ को स्वीकृति मिली। शिक्षा विभाग ने 25 प्रस्ताव भेजें और वित विभाग से दो को स्वीकृति मिली। राजस्व विभाग ने 62 प्रस्ताव भेजें और दो को स्वीकृति मिली। यही नहीं कई प्रस्ताव तो वित्त विभाग को भेजे बिना ही सीधे कैबिनेट को भेज दिये गये। शिक्षा विभाग ने 23 महाविद्यालय वित्त विभाग के परामर्श के बिना ही खोल दिये। इसी तरह राजनीतिक कार्यक्रमों आजादी का अमृत महोत्सव और जन मंच कार्यक्रमों पर 6,93,00,238 तथा 534.38 लाख खर्च किये गये। प्रगतिशील हिमाचल स्थापना के 75 वर्ष कार्यक्रमों पर 28,42,63,033 रूपये खर्च किये गये। इस तरह पिछली सरकार राजस्व प्राप्तियां में वृद्धि और राजस्व व्यय में वृद्धि के बीच सन्तुलन बनाये रखने में असफल रही। इसके परिणाम स्वरूप राजस्व व्यय में तो 12.72 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2018-19 में 29442 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 44425 करोड़ हो गया। जबकि इसी अवधि में राजस्व आय 5.77 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 30950 करोड़ से बढ़कर केवल 38089 करोड़ ही हो पायी। इसके परिणाम स्वरुप राज्य की वित्तीय स्थिति बिगड़ गयी।
श्वेत पत्र में आये इस विवरण और आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है की पिछली सरकार इस संदर्भ में कतई भी संवेदनशील नहीं रही। न ही डबल इंजन की सरकार होने का प्रदेश को कोई लाभ नही मिल पाया है। लेकिन इसी के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी खड़ा होता है कि जब पिछली सरकार यह सब कर रही थी तो प्रशासन क्या कर रहा था। जब वित्त विभाग को नजरअन्दाज करके प्रस्ताव सीधे कैबिनेट को भेज दिये गये तो उस पस वित विभाग ने अपनी आपत्ति क्यों दर्ज नहीं करवाई क्योंकि मंत्रिमण्डल की हर बैठक में वित्त विभाग की उपस्थिति अनिवार्य होती है। हर बोर्ड कॉरपोरेशन के संचालक मण्डल में वित्त विभाग का प्रतिनिधि रहता है। यह श्वेत पत्र राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा तो प्रशासन की निष्ठाओं पर सवाल उठाता है। श्वेत पत्र में यह नहीं कहा गया है कि मंत्रिमण्डल ने वित्त और प्रशासनिक विभागों की राय को नजरअन्दाज करके फैसले लिये तथा प्रशासन पर थोपे। क्योंकि यह श्वेत पत्र एक गंभीर आरोप पत्र है जिसमें सरकार पर कुप्रबंधन और फिजूल खर्ची के आरोप लगाये गये हैं। आरक्षित निधि को भी खर्च कर दिया गया जो कि अपने में ही अपराध है। परंतु इन अपराधों के लिये किसी के खिलाफ कोई कारवाई भी की जाएगी ऐसा कुछ नहीं कहा गया है। इस तरह यह श्वेत पत्र एक रस्मअदायगी से ज्यादा कुछ नहीं रह जाता है। बल्कि आगे के लिये भी ऐसा ही करने का रास्ता खोल देता है। जबकि यहा आना चाहिये था कि जो प्रदेश आज 92774 करोड़ की देनदारीयों पर पहुंच गया है उसमें यह चलन कब और क्यों शुरू हुआ। कर्ज लेकर राहत बांटना कब तक जारी रहेगा। क्योंकि आवश्यक सेवाएं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर ज्यादा देर संसाधन नहीं जुटाये जा सकते। जनता को महंगाई और बेरोजगारी से निजात दिलाने के लिये बजटों में की जाने वाली घोषणाओं पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।

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