स्वास्थ्य विभाग की खरीद ऐजैन्सी हैण्डीक्राफ्ट हैण्डलूम कारपोरेशन कैसे
आयुर्वेद डाक्टरों के निलंबन से उठे यह सवाल
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार ने आयुर्वेद विभाग में दवाईयों और उपकरणों की खरीद के लिये बनाई गयी विशेषज्ञ कमेटी के सदस्य डाक्टरों को निलंबित कर दिया हैं इनके खिलाफ आरोप है कि इन्होंने 1599 रूपये का उपकरण 4200 रूपये में खरीद कर एक बड़ा घपला किया है। पहली नजर में देखने पर ही यह एक बड़ा घपला नज़र आता है जिस पर तुरन्त कारवाई करके सरकार ने एक बहुत ही सराहनीय कार्य किया है और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरैन्स का प्रमाण दिया है। लेकिन यदि इस प्रकरण का आधार बने दस्तावेजों का निष्पक्षता और गहराई से अवलोकन किया जाये तो यह सामने आता है कि शायद इन डाक्टरों के निलंबन से प्रदेश सरकार ने सरकारी तन्त्र के सहयोग से घट रहे एक बड़े घोटाले को ढकने का प्रयास किया है। इसका संकेत इस तथ्य से उभरता है कि भारत सरकार ने उद्योग एवम् वाणिज्य मन्त्रालय के माध्यम से देशभर में केन्द्र और राज्यों सरकारों द्वारा की जा रही स्टोर परचेज को एकरूपता देने के लिये एक डिजिटल प्रणाली GeM पोर्टल 2017 में तैयार की। इस पोर्टल पर सभी स्टोर परचेज आईटमों उनके सप्लायरों और दामों की जानकारी दर्ज की गयी। एक तरह से यह भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर किया गया रेट कान्ट्रैक्ट ही था।
जब यह पोर्टल तैयार हो गया तब इसे सारी राज्य सरकारों को भेज दिया गया और यह निर्देश दिये गये कि अब सारी स्टोर परचेज इसी पोर्टल के माध्यम से की जाये। पोर्टल को आपरेट करने का वीडियो कॉन्फैंस के माध्यम से प्रदेश सचिवालय में एक सप्ताह का प्रशिक्षण तक दिया गया। बल्कि केन्द्र ने मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर इस पोर्टल के माध्यम से खरीद न करने को लेकर अपनी नाराज़गी भी जताई। प्रदेश के कन्ट्रोल स्टोर ने सरकार के सभी प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को इस पोर्टल का उपयोग करने के निर्देश जारी किये। इन निर्देशों से स्पष्ट हो जाता है कि स्टोर परचेज की कोई भी आईटम इस पोर्टल से बाहर नही खरीदी जा सकती है। इस खरीद के लिये पोर्टल के संद्धर्भ में नये सिरे से नियम बनाए गये। स्टोर परचेज के नियमों में संशोधन किया गया। इसमें 94। और 112 दो नये नियम जोड़े गये जिनकी अधिसूचना 19-7-2017 को जारी की गयी। 20-2-2018 को इसमें पेमैन्ट करने के लिये एसबीआई की छोटा शिमला शाखा में स्टेटपूल का खाता खोला गया। पोर्टल की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये प्रदेश सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र सरकार इस खरीद प्रक्रिया को लेकर कितनी गंभीर रही होगी। बल्कि इस गंभीरता का इससे और पता चल जाता है कि चुनाव आचार संहिता के दौरान इसे संहिता की नैगटिव सूची से भी बाहर ही रखा था।
दस्तावेजो के आईने में पोर्टल
पोर्टल को लेकर भारत सरकार की गंभीरता के बाद यह सवाल उठता है कि क्या सरकार के सारे विभाग इसके माध्यम से खरीद कर रहे हैं या नही। इस समय केन्द्र सरकार आयुष्मान भारत और प्रदेश सरकार हिमकेयर योजनाओं के माध्यम से लोगों को मुफ्त ईलाज की सुविधा प्रदान कर रही है और इसके लिये करोड़ों रूपयों की दवाईयां और उपकरण प्रतिदिन खरीदे जा रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में यह खरीद इस पोर्टल के माध्यम से नही हो रही है। यह विभाग सारी खरीद हैण्डीक्राफ्ट और हैण्डलूम निगम के माध्यम से कर रही है जबकि नियमों में सरकार में ऐसी किसी भी खरीद के लिये एचपीएफआर या टैण्डर प्रक्रिया के माध्यम का ही प्रावधान है। अब यह पोर्टल आने के बाद एक और प्रक्रिया इस माध्यम उपलब्ध हो गयी है। हिमाचल में स्वास्थ्य और आयुर्वेद दोनों विभागों का मन्त्री एक ही है। लेकिन आयुर्वेद में तो पोर्टल का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि स्वास्थ्य विभाग की खरीद हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही है। जिसका नियमों में कोई प्रावधान ही नही है। बल्कि प्रदेश का पशुपालन विभाग भी इसी कारपोरेशन के माध्यम से खरीद कर रहा था लेकिन पशुपालन विभाग के मन्त्री के संज्ञान में जब यह आया तो उन्होंने विभाग के अधिकारियों को चार्जशीट तक कर दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि एक ही सरकार के दो मन्त्रीयों का एक ही विषय पर अलग- अलग आचरण क्यों? फिर यहां तो स्वास्थ्य मंत्री के अपने ही विभागों में अलग-अलग आचरण सामने आया है। भारत सरकार तो यह पोर्टल लाकर सारे देश में एकरूपता लाने का प्रयास कर रही है लेकिन हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री इस एकरूपता के प्रयास को अंगूठा दिखा रहे हैं। बल्कि शायद सरकार के अधिकांश विभाग इस पोर्टल का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं। जबकि सरकार के हर विभाग में कोई न कोई परचेज होती ही रहती है और इसी के कारण इस खरीद में रेटों और गुणवत्ता की भिन्नता आ जाती है। इस पोर्टल के माध्यम से खरीद करने में रेट और गुणवत्ता पूरे देश में एक समान ही रहेगी। इसमें समय की भी बचत रहे इसके लिये ही ऑनलाईन खरीद सुनिश्चित की गयी है। लेकिन केन्द्र सरकार के इस प्रयास को हिमाचल सरकार का कोई समर्थन नही मिल रहा है क्योंकि सरकार इस पोर्टल के माध्यम से खरीद कर ही नही रही है। जबकि केन्द्र की मोदी सरकार सारा कार्यव्यवहार डिजिटल करने का अभियान चलाये हुए है और इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी कर रही है। इसलिये राज्य सरकार की कार्य नीति पर सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या प्रदेश सरकार डिजिटल कार्य प्रणाली का समर्थन नही करती है। क्योंकि इस परिदृश्य में जो कुछ आयुर्वेद विभाग में घटा है यदि उसका अवलोकन किया जाये तो यही सत्य और तथ्य प्रमाणित होता है।
सरकार के कन्ट्रोलर स्टोरज़ के 4-9-2018 के पत्र में जारी निर्देशों की अनुपालना में आयुर्वेद विभाग ने 26-3-2019 को एक उपकरण की खरीद का ऑनलाईन आर्डर इस पोर्टल के माध्यम से भेजा लेकिन सप्लायर ने आदेशित उपकरण के स्थान पर अन्य उपकरण भेज दिया। आनलाईन आर्डर में सप्लायर ने यह परिवर्तन कैसे कर दिया? क्या यह चेन्ज़ सप्लायर ने स्वयं अपने स्तर पर कर दी या इसमें पोर्टल में कोई बदलाव आने के कारण ऐसा हुआ। यह तो जांच के बाद ही सामने आना था और यह जांच अभी तक हुई नही है। जबकि आयुर्वेद निदेशक ने इस संबंध में 28-6-2019 को दो पत्र भेजकर कन्ट्रोलर स्टोरज़ और स्वास्थ्य मन्त्री के कार्यालय तक को इस बारे में अवगत करवा दिया। निदेशक ने अपने पत्र में यह आग्रह किया है कि इस पोर्टल में दर्ज जिस सप्लायर ने यह गड़बड़ की है उसके खिलाफ कारवाई करके उसे पोर्टल से बाहर निकाला जाये और विभाग का पैसा उससे वापिस दिलवाया जाये। क्योंकि इस पोर्टल के माध्यम से खरीद कन्ट्रोलर के निर्देशों पर की गयी हैं
निदेशक आयुर्वेद द्वारा इस मामले को कन्ट्रोलर के संज्ञान में लाने के बाद कन्ट्रोलर द्वारा इसे भारत सरकार के भी नोटिस में लाया जाना चाहिये था। क्योंकि पोर्टल का संचालन नियन्त्रण हिमाचल में प्रदेश सरकार द्वारा तो किया नही जा रहा है और जिस दिन हिमाचल का आर्डर जा रहा है संभव है उसी दिन देश के अन्य स्थानों से भी ऐसे ही कई आर्डर गये हां और उनके साथ भी ऐसा ही घटित हुआ हो। इस संबद्ध में एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है जो केवल भारत सरकार के स्तर पर ही की जा सकती है। निदेशक आयुर्वेद ने इसे कन्ट्रोलर, सरकार और स्वास्थ्य मन्त्री के संज्ञान में ला दिया। लेकिन इस पर कोई जांच होने से पहले ही सरकार ने अपने डाक्टरों को ही निलंबित करके अपरोक्ष में सप्लायर का ही पक्ष पुख्ता कर दिया है। क्योंकि सप्लायर को पोर्टल से हटाने और पैसा रिफंड करने का आग्रह किया गया है जिस पर वह अब कह सकता हैं कि इस मामले में जब सरकार ने ही अपने डाक्टरों का दोष मान लिया है तो उसे दोष क्यों दिया जाये। इसी के साथ अब यह सवाल भी जवाब मांगेगा कि केन्द्र द्वारा 2017 में प्रेषित इस पोर्टल के माध्यम से खरीद क्यों नही की जा रही है। यदि सरकार केन्द्र की इस योजना से सहमत नही है तो फिर कन्ट्रोलर ने इसके लिये निर्देश ही जारी क्यों किये। इसी के साथ यह भी स्पष्ट करना होगा कि हैण्डलूम कारपोरेशन स्वास्थ्य विभाग की खरीद ऐजैन्सी कैसे बन गयी और इसके लिये किन वित्तिय नियमों में प्रावधान किया गया है।
आयुर्वेद निदेशक के पत्र