शिमला/शैल। विभिन्न सरकारी विभागों और अन्य अदारों में छोटे-बड़े सामान की करोड़ों की खरीद होती है। बहुत सारे विभागों में तो एक ही तरह का सामान खरीदा जाता है लेकिन इस खरीद में प्राय रेटों की भिन्नता पायी जाती है और यही भिन्नता भ्रष्टाचार को जन्म देती है। इस भिन्नता और इसके परिणामस्वरूप होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिये टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट की प्रणालीयां अपनाई गयी हैं लेकिन इन प्रणालीयों को नजरअन्दाज करके करोड़ों की खरीद हो रही है। अभी स्वास्थ्य विभाग में हुई बायोमिट्रिक मशीनों की खरीद में हुआ भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की खरीद कुछ निगमों बोर्ड़ों के माध्यम से हो रही है और इसके लिये तर्क यह दिया जा रहा है कि ऐसी खरीद करके यह सरकारी अदारे अपने कर्मचारियों का वेतन तो निकाल रहे हैं। इस समय अधिकांश निगम बोर्ड घाटे में चल रहे हैं क्योंकि जिन उद्देश्यों के लिये इनका गठन किया गया था उस दिशा में अब काम हो ही नहीं रहा है। कुछ अदारे तो बन्द कर दिये गये हैं और उनके कर्मचारियों का अन्यों में विलय कर दिया गया है। लेकिन अभी तक समग्र रूप से सारे अदारों का आकलन नही किया गया हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि ऐसा करने ही नही दिया जा रहा है।
रेट कान्ट्रैक्ट की जिम्मेदारी सरकार ने कन्ट्रोल स्टोरेज़ को दे रखी है और यह उद्योग विभाग के अधीन काम करता है लेकिन उद्योग विभाग के तहत ही काम करने वाले खादी बोर्ड और हैण्डीक्राफ्ट एवम् हैण्डलूम कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं बल्कि बन्द होने के कगार पर पहुंचे हुए हैं क्योंकि यह दोनों अपना मूल तय काम कर ही नही रहे हैं और अपना वेतन निकालने के लिये कुछ विभागों के लिये खरीद ऐजैन्सी बन गये हैं। जबकि नियमों के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। जिन आईटमों का रेट कान्ट्रैक्ट नहीं होता है उनके लिये टैण्डर प्रणाली अपनाई जाती है। सरकारी विभाग इस तय प्रक्रिया की अनदेखी कर रहे हैं और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है यह सरकार के संज्ञान में भी है बल्कि इस पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 12.1.2017 को एक बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की ओर से 16.1.2017 को सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश भी जारी किये गये थे जिन पर आज तक अमल नही किया गया है। जबकि तत्कालीन वित्त सचिव आज मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव हैं।
प्रदेश सरकार के इन निर्देशों के बाद भारत सरकार ने उद्योग और वाणिज्य विभाग से एक GeM पोर्टल तैयार करवाया और राज्य सरकारों को भेजा। यह पोर्टल टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट के साथ खरीद के लिये एक और प्रणाली उपलब्ध हो गयी है। हिमाचल सरकार ने ळमड के साथ 26-12-2017 को एक एमओयू साईन किया है। इस एमओयू के बाद सरकार के प्रधान सचिव उद्योग की ओर से 20-8-2018 को निर्देश जारी किये गये थे जिस पर कन्ट्रोलर स्टोरेज़ ने 4.9.2018 को सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर यह कहा कि GeM पोर्टल के माध्यम से खरीद करना अनिवार्य है। इसके लिये सरकार ने अपने नियमों में संशोधन करके नियम 94 A जोड़ा और स्टेट पूल के नाम से बैंक में खाता तक खोला। सरकार की इस कारवाई से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस पोर्टल के माध्यम से ही खरीद करनी होगी।
लेकिन इस सबके बावजूद आज भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बड़े विभाग राज्य सरकार के अपने और भारत सरकार के आदेशों /निर्देशों को अंगूठा दिखाते हुए हैण्डीक्राफ्ट -हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से ही खरीद कर रहे हैं। इसमें सबसे अधिक गौर तलब तो यह है कि डाक्टर बाल्दी ने जो निर्देश बतौर वित्त सचिव जारी किये थे उनकी अनुपालना बतौर प्रधान सचिव मुख्यमन्त्री सुनिश्चित नही कर पा रहे हैं।