Thursday, 18 December 2025
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गिरफ्तारी पर रोक का उच्च न्यायालय के आदेश में कोई जिक्र नही

शिमला/शैल। सीबीआई के साथ ही मनीलाॅडंरिग का मामला झेल रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने ईडी द्वारा उनके एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की गिरफ्तारी के बाद अपनी गिरफ्रतारी की आशंका जताते हूए दिल्ली उच्च न्यायालय से प्रोटैक्शन की गुहार लगाई थी। इसी बीच ईडी ने प्रतिभा सिंह को 28 जुलाई को जांच में शामिल होने के लिये बुलाया था लेकिन वह जांच में शामिल नही हुई। 29 जुलाई को यह मामला सुनवाई के लिये जस्टिस सांघी की अदालत में लगा था। उस दिन यह आदेश हुआ हैः Though the reply is stated to have been filed, the same has not come on record. Another copy has been tendered in Court, which is taken on “record. It is informed that petitioner No.2 had been called for investigation on 28.07.2016 She,however, did not personally appear for her investigation and the same has now been fixed for 09.08.2016. Mr.Sibal submits that petitioner No.2 shall personally appear for interrogation before the concerned authorities and shall fully cooperate with them during the said investigation. Mr. Jain submits that the status report shall be filed with regard to the further investigation carried out by the respondent before the next date. List on 24.08.2016 इस आदेश में संभावित गिरफ्तारी की संभावना पर रोक को कोई जिक्र ही नही है। 29 जुलाई को प्रतिभा सिंह के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत के सामने अपना पक्ष रखते हुए यह भरोसा व्यक्त किया है कि प्रतिभा सिंह 9 अगस्त को ईडी के पास जांच में शामिल होंगी और जांच में पूरा सहयोग भी देगी। प्रतिभा सिंह के जांच में शामिल होने के बाद ईडी इसमें अगली जांच करने के बाद अदालत में इस मामले की स्टेट्स रिपोर्ट रखेगी। स्मरणीय है कि 29 जुलाई को इस मामले में हुई सुनवाई के बाद समाचार पत्रों में यह छप गया था कि इस मामले में प्रतिभा सिंह को भारी राहत मिल गयी है और अदालत ने इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। 

जबकि अदालत के आदेश में गिरफ्तारी का कोई जिक्र ही नही है। ऐसे में कानून के जानकारों का मानना है कि 9 अगस्त को प्रतिभा सिंह के जांच में शामिल होने के बाद इस मामले में गंभीर मोड़ आ सकता है। स्मरणीय है कि आनन्द चौहान ने जो एल आई सी पालिसीयां वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम पर बनवाई थी उनमें चार 27.3.2010 और सात 28.5.10 तथा चार विक्रमायादित्य के नाम पर 31.12.2010 को बनी है जबकि अपराजिता कुमारी के नाम पर 17.10.2014 को दो एफ डी आर बनी है। संयोग है कि एल आई सी की पालिसीयां उसी दौरान बनी जब वीरभद्र केन्द्र में स्टील मंत्री थे। इसी 2009-10, 2010-11 की अवधि 6,03,70,782 रूपेय आनन्द चौहान, एम आर शर्मा और कनु प्रिया राठौर के खातों में कैश जमा हुआ जिसमें से 13-5-2014 को ग्रटर कैलाश दिल्ली में प्रतिभा सिंह के नाम पर 4,47,20,000 से मकान खरीदा गया। ईडी को आशंका है कि यह सारा पैसा मनीलाॅडंरिग है और इसी को लेकर यह पूछताछ संभावित है।

महेश्वर की भाजपा वापसी के प्रयासों का परिणाम है रघुनाथ मन्दिर का अधिग्रहण

शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने कुल्लु के अन्र्तराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के केन्द्रिय देव श्री रघुनाथ के मन्दिर का अधिग्रहण करने के लिये अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार के इस कदम का कुल्लु के देव समाज और महेश्वर सिंह ने कड़ा विरोध किया है। महेश्वर सिहं ने सरकार की अधिसूचना को प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका के माध्यम से चुनौती भी दे दी है। उच्च न्यायालय का फैसला क्या आता है तब तक सरकार के फैसले पर ज्यादा कुछ
कहना सही नही होगा। लेकिन इस अधिग्रहण को जायज ठहराने के लिये मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने यह कहा है कि ऐसा करने के लिये क्षेत्र की जनता की मांग थी। सरकार ने जनता की मांग पर अधिग्रहण का फैसला लिया है। लेकिन कुल्लु की जनता ने यहां के राज परविार से जुडे़ कई मुद्दों पर पहले भी सरकार के पास मांगे रखी हंै जिन पर सरकार ने कभी अमल नही किया।

स्मरणीय है कि इसी रघुनाथ मन्दिर को लेकर 1941 में जिला जज श्री एस एम हक होशियारपुर की अदालत में दो प्रार्थनाएं नम्बर 12 और 13 आयी थी जिन पर 25.2.1942 को धर्मशाला कैंप में फैसला सुनाया गया था। यह प्रार्थनाएं 1920 के एक्ट नम्बर 14 की धारा 3 के तहत आयी थी। जिला जज एस एम हक ने अपनेे फैसले में इस मन्दिर को प्राईवेट संपति करार दिया था। इस फैसले के बाद एक समय श्रीमति विप्लव ठाकुर, कौल सिंह, सिंघी राम, स्व. राज किशन गौड और ईश्वर दास ने भी नवल ठाकुर के आग्रह पर इस मन्दिर के अधिग्रहण की मांग उठाई थी जिसे सरकार ने नही माना था।
इसी तरह देहात सुधार संगठन भुन्तर ने रूपी वैली को लेकर मांग उठायी थी। नवल ठाकुर 1991 में रूपी वैली के मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय में ले गये थे। उच्च न्यायालय ने 13.5.91 को अपने फैसले में 31.12.92 से पहले रूपी वैली के सारे नौतोड़ मामलों की समीक्षा के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों पर 4.11.96 को जिलाधीश कुल्लु ने इस स्थल के निरीक्षण के आदेश दिये थे। इस निरीक्षण की रिपोर्ट पर लम्बे समय तक जिलाधीश के कार्यालय में चिन्तन मनन चलता रहा। अन्त में 10.7.2006 को जिलाधीश कुल्लु के कार्यालय से मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त सविच को रिपोर्ट भेजी गयी। जिलाधीश के पत्र के साथ निरीक्षण की पूरी रिपोर्ट भेजी गयी जिस पर कभी कोई कारवाई नहीं हुई। जिलाधीश का पत्र और 1942 के जिला जज के फैसले की कापी पाठकों के सामने रखी जा रही है।
अब सरकार ने इस मन्दिर के अधिग्रहण का फैसला उस समय लिया जब महेश्वर सिंह ने अपनी हिमाचल लोकहित पार्टी को भाजपा में विलय करने का फैसला लिया। महेश्वर हिलोपा के एक मात्र विधायक है और उनके भाजपा में विलय पर दलबदल कानून लागू नही होता है। वीरभद्र के इस कार्यकाल में महेश्वर सदन के अन्दर और बाहर बराबर मुख्यमन्त्री के साथ खड़े रहे हंै। लेकिन अब जब राजनीतिक विवशताओं के चलते उन्होने पुनः भाजपा में वापसी करने का फैसला ले लिया तब सरकार के मन्दिर अधिग्रहण के फैसले को राजनीतिक आईने में देखा जाना स्वाभाविक है।


























वीरभद्र सिंह ने फिर कहा जेटली और अनुराग पडे़ हैं उनके पीछे

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच से किस कदर आहत है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह इस सबके लिये धूमल, जेटली और अनुराग को लगातार कोसते आ रहे हैं। उधर धूमल ने फिर चुनौती दी है कि प्रदेश में मुख्यमन्त्री रहे तीनों नेताओं की संपति की जांच सीबीआई से करवा ली जाये। इस समय शान्ता कुमार, धूमल और वीरभद्र ही ऐसे नेता हैं जो प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इन तीनों के खिलाफ शिकायतें भी हैं। शान्ता के खिलाफ पालमपुर के ही एक सेवानिवृत प्रिंसिपल आंेकार धवन की शिकायत सरकार के पास धूमल के समय से लंबित है। गंभीर शिकायत है लेकिन न धूमल और न वीरभद्र ही इस पर कारवाई करने को तैयार हैं। धूमल के खिलाफ विनय शर्मा की शिकायत 2012 से लंबित चली आ रही है। विनय शर्मा तो इस शिकायत पर 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। 2013 से वीरभद्र सत्ता में है लेकिन आज तक उनकी विजिलैन्स इसमें कुछ नही कर पायी है। अनुराग ने भी बतौर सांसद 10,27,000 की संपति दो लाख में खरीदी हैं। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मुताबिक कोई भी पब्लिक सर्वेन्ट कम कीमत पर संपति नही खरीद सकता। वीरभद्र की विजिलैन्स के पास यह सारे मामले हैं लेकिन कारवाई नही है।

धूमल के खिलाफ ए एन शर्मा के नाम पर बनाये गये मामले में सरकार की फजीहत किस कदर हुई है यह भी सबके सामने है। एच पी सी ए के सारे मामलों में सरकार की स्थिति हास्यस्पद हो चुकी है। सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का मामला आज तक आरसीएस और प्रदेश उच्च न्यायालय के बीच लटका पड़ा है। अरूण जेटली के खिलाफ मान हानि का मामला वापिस लेना पड़ा है। इन सारे प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र ने अपने विरोधीयों को घेरने के लिये हर संभव प्रयास किया है लेकिन उनका सचिवालय और उनकी विजिलैन्स इन प्रयासों को सफल नही बना पाया है। वीरभद्र के प्रयास सार्वजनिक रूप से सामने भी आ गये और उनके परिणाम शून्य रहने से फजीहत होना स्वाभाविक है। इसी फजीहत का परिणाम है कि वीरभद्र का दर्द इस तरह यदा-कदा सामने आ जाता है।
वीरभद्र परिवार के खिलाफ चल रहे मामले अपने अन्तिम परिणाम तक पहुचने के कगार पर पहुंच चुके हैं भले ही एक दिन की राहत का कानूनी जुगाड़ बैठाते हुए कुछ और समय निकल जाये लेकिन इन मामलों में नुकसान होने की पूरी-पूरी संभावना है। इस परिदृश्य में वीरभद्र का धूमल, जेटली और अनुराग को कोसना तब तक बेमानी हो जाता है जब तक कि वह उनको अपने बराबर के धरातल पर लाकर खड़ा नही कर देते हंै। आज वीरभद्र का कोसना केवल खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे होकर रहा गया है। ऐसे में यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि वीरभद्र अपने प्रयासों में सफल क्यों नही हो पा रहे हंै। क्योंकि यदि धूमल के खिलाफ भी आय से अधिक संपति का मामला ठोस आधारों पर खड़ा हो जाता है तो वह भी वीरभद्र की तर्ज पर आगे चलकर ईडी के दायरे में आ खड़ा होगा। लेकिन क्या वीरभद्र का सचिवालय और विजिलैन्स ऐसा कर पायंेेगे? आज इनकी मंशा पर भी राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्यांेकि वीरभद्र की सरकार अब तक उन आरोपों पर कोई परिणाम प्रदेश की जनता के सामने नही ला पायी है जिनके सहारे वह सत्ता तक पहुंची थी। बल्कि आज वीरभद्र सरकार स्वयं उन आरोपों में घिरती जा रही है जो वह विपक्ष में बैठकर धूमल सरकार के खिलाफ लगाया करती थी। क्योंकि विजिलैन्स के पास ऐसी शिकायतें मौजूद हैं जिन पर यदि ईमानदारी से गंभीर जांच की जाये तो उसकी आंच कई बडे़ चेहरांे को बेनकाब कर सकती है। लेकिन विजिलैन्स ऐसा कर नही पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रशासन के अहम पदों पर बैठे बड़े बाबू अपने भविष्य की चिन्ता को लेकर ज्यादा सजग हो गये हंै। क्योंकि उन्हें उसी तर्ज पर धमकीयां मिलनी शुरू हो गयी है। जैसी की 31.3.99 को स्वयं वीरभद्र ने तत्कालीन शीर्ष प्रशासन को दी थी।

सीआईसी और शिक्षा के नियामक आयोग का अध्यक्ष तलाशने के लिए नही बन पायी स्क्रीनिंग कमेटी

शिमला/शैल। प्रदेश में मुख्य सूचना आयुक्त और शिक्षा के नियामक आयोग के अध्यक्ष पद करीब पिछले पांच माह से खाली चल रहे हैं। इन पदांे को भरने के लिये आवेदन आमन्त्रित कर लिये गये थे। शिक्षा के नियामक आयोग में सदस्य का रिक्त पद भर भी लिया गया है और मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी आर.के.एम.बी. कालिज की प्रिसिंपल मीरा वालिया को सदस्य का पद मिला है। जिस बैठक में सदस्य का पद भरा गया था उस बैठक में अध्यक्ष का पद नही भरा जा सका। क्योंकि नियामक आयोग का अध्यक्ष पद भरने के लिये शिक्षा सचिव चयन समिति की बैठक बुलाते है। लेकिन यहां पर तत्कालीन शिक्षा सचिव पी सी धीमान स्वयं इस पद के लिये दावेदार थे और इस कारण यह बैठक नही बुलायी जा सकी। अब धीमान सेवानिवृत हो गये हैं अब यह बैठक बुलायी जा सकती है। 

पी सी धीमान की दावेदारी के कारण यह पद खाली रखा गया था। लेकिन इसी बीच सरकार ने शराब का कारोबार करने के लिये भी एक अलग निगम बनाने का फैसला ले लिया है। सरकार द्वारा शराब का सारा कारोबार अपने एकाधिकार में लेने के लिये जीआईसी को इस कारोबार से बाहर कर दिया गया है। जीआईसी को अपना आवेदन तक वापिस लेना पड़ा है। इस सबमंे आबकारी एंवम कराधान सचिव के नाते पीसी धीमान की मुख्य भूमिका रही है। धीमान की इसी भूमिका के लिये इस नयी निगम के अध्यक्ष पद के लिये भी वह प्रबल दावेदारों में आ गये हैं। लेकिन एचपीसीए के मामले में सरकार धीमान के खिलाफ मुकद्दमा चलाने की अनुमति तक दे चुकी है ऐसे में सेवानिवृति के बाद धीमान को किसी पद पर तैनाती देना सरकार के लिये विवाद खड़ा कर सकता है।
इसी तरह सीआईसी के लिये आये आवेदनों की छंटनी के लिये भी अभी तक स्क्रीनिंग कमेटी गठित नही हो पायी है। इस पद के दावेदारों में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के एस तोमर भी शामिल हो गये हैं। हालांकि संविधान के मुताबिक लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के सदस्यों पर सरकार में कोई भी अन्य पद स्वीकारने पर प्रतिबन्ध है। इस संद्धर्भ में आरटीआई एक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य राज्यपाल को शिकायत तक भेज चुके हैं। उधर विशेषज्ञों के मुताबिक सूचना आयोग अध्यक्ष के बिना काम ही नही कर सकता है। सूचना आयोग में अध्यक्ष का होना अनिवार्यता है। सूचना आयोग को लेकर सरकार एक तरह से सवैंधानिक संकट मे फंस चुकी है। ऐसे में सरकार इन रिक्त पदों को कब और कैसे भरती है इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।

ईडी मामले में नहीं मिल पायी वीरभद्र को अन्तरिम राहत और आनन्द चौहान को जमानत

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को मनीलाॅडरिंग मामले में अब तक अदालत से कोई राहत नही मिल पायी है और इसी मामलें में गिरफ्तार उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को जमानत नही मिल पायी है। इस मामले में ईडी का जो रूख अब तक सामने आया है उससे लगता है कि अभी निकट भविष्य में किसी को भी राहत मिलना कठिन है। स्मरणीय है कि वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, आनन्द चौहान और चुन्नी लाल के खिलाफ 23.9.15 को सीबीआई ने आय से अधिक संपति का मामला दर्ज किया था। इसी मामले के तथ्यों के आधार पर ईडी ने 27.10.15 को मनीलाॅडरिंग का मामला दर्ज कर लिया था। सीबीआई ने मामला दर्ज करने के साथ ही वीरभद्र के आवास और कुछ अन्य स्थानों पर छापेमारी की। इस छापामारी से आहत होकर वीरभद्र ने हिमाचल उच्च न्यायालय में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले को रद्द किये जाने की गुहार लगायी। इस याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी करते हुए उच्च न्यायालय ने वीरभद्र से पूछताछ करने गिरफ्तार करने और मामले का चालान अदालत में ले जाने से पूर्व अदालत से पूर्व अनुमति लेने की शर्त लगा दी। जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिये जाने के बाद भी गिरफ्रतारी के लिये अनुमति लेने की शर्त अब भी जारी है। इस शर्त को हटाने के लिये सीबीआई की याचिका दिल्ली उच्चन्यायालय में लंबित है। वीरभद्र की तर्ज पर ही आनन्द चौहान और चुन्नी लाल ने भी हिमाचल उच्च न्यायालय से ऐसी ही राहत मांगी थी जो उन्हें नही मिली क्योंकि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो चुका है। आनन्द चौहान और चुन्नी लाल की गिरफ्तारी पर अदालत से कोई रोक न होने से ही इनकी गिरफ्तारी हुई है।
दूसरी ओर जब ईडी ने मामला दर्ज करने के बाद छापामारी की तब वीरभद्र सिंह ने इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए ईडी की कारवाई का आधार बने दस्तावेजों की कापी मांगी तथा दर्ज मामले को रद्द करने की गुहार लगायी। यह याचिका भी अभी तक न्यायालय में लंबित चल रही है ईडी द्वारा किसी की भी गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं है। इसी आधार पर ईडी ने आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर लिया है। आनन्द चौहान की गिरफ्तारी से संकट में आये वीरभद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से अपनी गिरफ्तारी की संभावित आंशका पर न्यायालय से सुरक्षा की गुहार लगायी है जो नही मिलने पायी है। ईडी से अभी तक इस मामले के किसी भी अभियुक्त को कोई राहत नहीं मिल पायी है। जानकारो का मानना है कि इसमें अब राहत मिलने की सारी संभावनाएं नही के बराबर रह गयी है क्योंकि ईडी में 27.10.15 को दर्ज हुए मामले में वीरभद्र को 16.11.15 को ऐजैन्सी में पेश होने के सम्मन जारी किये गये थे। जिस पर वीरभद्र ने ईडी को 10.1.16 को पत्र भेजकर सूचित किया कि 15 फरवरी तक व्यस्त है इसलिये नही आ सकते। इसके बाद 11.1.16 को वीरभद्र का वकील पेश हुआ जिसने कुछ आंशिक जानकारीयां ईडी को दी। यह आंशिक जानकारियां पर्याप्त और संतोषजनक न होने पर ईडी ने वीरभद्र को 5.1.16,12.1.16, 21.1.16, 28.1.16, 11.3.16, 17.3.16 और 21.3.16 को पेश होने के सम्मन भेजे लेकिन वह एक बार भी ऐजैन्सी के सामने पेश नही हुए। वीरभद्र के पेश होने पर ईडी ने 23.8.16 को करीब आठ करोड़ की चल-अचल संपति की अटैचमैन्ट के आदेश जारी कर दिये। बल्कि इसी बीच 9.2.16 को बागवानी निदेशक डी पी भंगालिया का ब्यान ईडी ने दर्ज किया जिसमे श्रीखण्ड बागीचे से 2008-09 में 5500, 2009-10 में 2700 तथा 2010-11 में 9300 वाक्स सेब उत्पादन की संभावना बतायी गयी है। 8.2.16 को ए.पी.एम.सी. सोलन के सचिव भानू शर्मा ने ईडी को परवाणु सेब मण्डी के कार्यशील होने तथा सेब के ढुलान में प्रयुक्त होने वाले फार्मो आर तथा क्यू की जानकारी दी तथा आनन्द चौहान द्वारा ऐसा कोई भी दस्तावेज जांच में न मिलने की भी जानकारी दी। 8.2.16 को निदेशक परिवहन के कार्यालय से इस सेब के ढुलान में प्रयुक्त हुए कथित वाहन नम्बरों की जानकारी ली गयी जिसमे यह वाहन मौजूदा ही नहीं होने की जानकारी सामने आयी।
इस तरह जो घटनाक्रम पूरे मामले में घटा है उससेे यह तथ्य उभरता है कि ईडी ने वीरभद्र को अपना पक्ष रखने के बहुत अवसर दिये लेकिन वह एक बार भी ऐजैन्सी के सामने पेश नही हुए। वीरभद्र के इस असहयोग के बाद ईडी के पास संपति अटैचमैन्ट का आदेश जारी करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जाता था। अब एलआईसी पाॅलिसीयों और कुछ एफडीआर में निवेश हुए धन का वैध स्त्रोत बताने की जिम्मेदारी केवल वीरभद्र परिवार की ही रह जाती है क्योंकि इन पाॅलिसीयों को कैश करवाकर ग्रेटर कैलाश में लिया गया मकान प्रतिभा सिंह के नाम पर है पालिसीयों में हुए निवेश के रिकार्ड पर लाभार्थी यही परिवार है। इसी तरह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से करीब 6.5 करोड़ का ट्टण लेना तो प्रतिभा सिंह ने अपने चुनावी शपथ पत्र में दिखाया हैं लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच में यह सामने आया है कि वक्कामुल्ला के पास इतना धन है ही नही। ईडी वक्कामुल्ला से लिये गये करीब 6.5 करोड के ट्टण को भी मनीलाॅडरिंग मान रही है। सूत्रों के मुताबिक वक्कामुल्ला को लेकर ईडी की जांच पूरी हो गयी है और अब उसको सारे संबंधित लोगों से पूछताछ का दौर शुरू होगा। यदि वक्कामुल्ला के पास वैध स्त्रोत नहीं पाया गया तो यह पैसा भी मनीलाॅडरिग का हिस्सा बनेगा और इसमें कुछ और संपतियां अटैच होने की स्थिति आ जायेगी। यह भी माना रहा है कि ईडी ने इसी मामले में जो देश के विभिन्न शहरो में छापामरी की है उसकी कड़ीयांे में भी कई और लोग जुड़ने स्वाभाविक हैं। चर्चा है कि इसमें कुछ मन्त्रियों, चेयरमैनो, पत्रकारो तथा अधिकारियों के नाम भी चिन्हित हो चुके हैं जो इस मनीलाॅडरिंग ट्रेल का हिस्सा माने जा रहे हैं। इस परिदृश्य में ईडी प्रकरण में निकट भविष्य में कोई राहत मिल पाने की संभावना नहीं है। माना जा रहा है कि वीरभद्र के सलाहकार इस मामलें में उन्हे सही राय नही दे पाये हैं।

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