शिमला/शैल। धूमल शासन में पूर्व आई पी एस अधिकारी एएन शर्मा को एच्छिक सेवा निवृति के बाद पुनः नौकरी पर बनाए रखने में हुई नियमों की अनदेखी की शिकायत पर विजिलैंस ने बकायदा मामला दर्ज करके इसकी जांच की थी। जांच के बाद पूर्व मुख्यमन्त्राी प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मुख्य सचिव रवि डींगरा, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह पी सी कपूर और आई पी एस ए एन शर्मा के खिलाफ इस प्रकरण का चालान विशेष अदालत में दायर किया था। विशेष अदालत में आए इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौति दी गई थी। उच्च न्यायालय के इस सन्दर्भ में दर्ज हुई एफआईआर को निरस्त करते हुए मामले को शुरू होने से पहले ही समाप्त कर दिया था। उच्च न्यायालय के फैसले से आहत हुई सरकार ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी थी जो कि अन्ततः खारिज हो गई।
इस मामले की शिकायत आने से लेकर इसमें हुई जांच और उसके बाद विशेष अदालत में पहुंचे चालान तक कानून के जानकार इसे बेहद कमजोर मामला करार दे रहे थे। लेकिन उच्च न्यायालय में हारने के बाद इसमें एस एल पी फाईल करने का फैसला लेना अब एस एल पी का डिसमिस हो जाना सरकार और पूरे विजिलैंस तन्त्रा की नीयत और नीति पर गम्भीर सवाल खड़े करता है। क्योंकि यह एक ऐसा मामला था जिसमें सरकार को कोई राजस्व हानि नहीं हुई है क्योंकि ए एन शर्मा ने इस दौरान पद पर रहकर पूरी निष्ठा से काम करके वेतन लिया है और यदि वह ऐच्छिक सेवा निवृति का आवेदन न करते तो भी वह उसी तिथि को सेवा निवृत होते जिस पर बाद में हुए। फिर वीरभद्र सरकार ने भी दर्जनों सेवानिवृत अधिकारियों को पुनः नौकरी पर रखा है। यह मामला नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमन्त्राी प्रेम कुमार धूमल को घेरने के लिए बनाया गया था। लेकिन इस मामले में हुई जांच के बाद जो चालान दायर हुआ था उसे निष्पक्षता से देखते हुए ये स्पष्ट हो जाता है कि यह एक बेहद कमजोर मामला बनाया गया था जिसका सफल होना असम्भव माना जा रहा था। क्योंकि इसमें कमियां थी।
आज इस मामले के सर्वोच्च न्यायालय में खारिच हो जाने से सीधे वीरभद्र सिंह को व्यक्तिगत स्तर पर एक बड़ा राजनितिक झटका माना जा रहा है क्योंकि इस समय वीरभद्र और धूमल परिवार में सीधा राजनीतिक टकराव सार्वजनिक रूप से खुलकर सामने है तथा उसमें वीरभद्र की लगातार हार होती जा रही है। अवैध फोन टैपिंग मामले से लेकर एच पी सी ए और धूमल संपत्ति मामले तक सरकार को कहीं कोई सफलता अब तक नहीं मिली है और न ही आगे मिलने की सम्भावना है। राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में हर जगह यह चर्चा है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। बल्कि अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि अब धूमल के खिलाफ उठाया जा रहा हर कदम पूरी तरह असफल हो रहा है तो इस स्थिति को सुधारते हुए वीरभद्र सिंह को एच पी सी ए के खिलाफ विजिलैंस के सारे मामलों को तुरन्त प्रभाव से अदालतों से वापिस लेकर इन पर हो रहे सरकारी खर्च को तो रोक देना चाहिए। क्योंकि आज वीरभद्र और उनके चुनिंदा तन्त्रा के अतिरिक्त जानकारी रखने वाला हर आदमी मानता है कि एच पी सी ए के हर मामले में बुनियादी कमियां है जिनके कारण इनका सफल होना संदिग्ध है और वीरभद्र के पास व्यक्तिगत तौर पर इन मामलों को देखने और समझने का समय ही नहीं है।
शिमला/शैल। प्रदेश की पुलिस फोर्स को दी गई खाकी जैकटें घटिया निकली है यह आरोप लगाते हुए पुलिस वैलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चैहान ने 09/03/2016 को महामहिम राज्यपाल को एक मांग पत्रा देकर इसका जांच करवाये जाने की मांग की है। चैहान अपने आरोप को पुख्ता करने के लिए इस सम्बन्ध में आर टी आई के तहत मिली जानकारी भी राज्यपाल को सौंपी है। स्मरणीय है कि पुलिस को खाकी जैकेट 2011 में लम्बे संघर्ष के बाद पुनः मिली थी। लेकिन चार साल बाद मिली यह जैकेट घटिया निकली है क्योंकि यह दो तीन माह बाद ही खराब हो गई है जबकि इसकी अवधि तीन वर्ष मानी जाती है।
जब इसकी शिकायत पुलिस मुख्यालय पहुंची तब 04/02/16 को इन जैकटों को परीक्षण हेतु रखा गया और इसके लिए एक कमेठी गठित की गई। इस कमेठी की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि खाकी जैकेट में काफी कमियां है बल्कि इस जांच के लिए एस पी आॅफिस शिमला के स्टोर से दो नयी जैकेट मंगवाकर उनका परीक्षण किया गया जिसमें वह घटिया प्रमाणित हुुई है। जैकेट खरीद की जांच की मांग के साथ ही पुलिस फोर्स को अतिरिक्त वेतन नये पे स्केल देने का मामला उठाते हुये आरोप लगाया है कि इससे फोर्स को 36 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसी के साथ नीली कैप, ब्राऊन बूट एवंम बैल्ट का मुद्दा भी राज्यपाल के संज्ञान में लाया गया है।
राज्यपाल के समक्ष रखे गये इन मामलों पर राजभवन ने पुलिस और गृह विभाग से रिपोर्ट तलब की है। स्मरणीय है कि पुलिस द्वारा खरीदी जा रही वर्दीयों पर अक्सर घटिया होने के आरोप लगते आ रहे हैं। फोर्स से हर बार शिकायतें आती हैं जिन पर जांच की रस्म अदायगी भी होती रही है। लेकिन किसी भी जांच का कोई ठोस परिणाम आज तक सामने नहीं आया है। पुलिस फोर्स एक लम्बे समय से तीन प्रमोशन आठ घन्टे डयूटी और सप्ताह में एक अवकाश की मांग करती आ रही है। अब इस आश्य का जनहित याचिका 5604/2010 भी उच्च न्यायालय में दायर है। सबकी निगाहें इस याचिका के फैसले पर लगी है।
ई डी अधिनियम में 2013 में हुए संशोधन से
173 Cr.PC के तहत रिपोर्ट की अनिवार्यता नहीं
शिमला/शैल। सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे मुख्यमन्त्राी वीरभद्र सिंह के खिलाफ सी बी आई और ई डी मे अलग-अलग एफ आई आर दर्ज है। इनमें वीरभद्र सिंह प्रतिभा सिंह आनन्द चैहान और चुन्नीलाल तथा अन्य नामित हैं । लेकिन दोनो एफ आई आर में वीरभद्र की बेटी अपराजिता सिंह और बेटा विक्रमादित्य सिंह नामित है। परन्तु ई डी ने 23-03-16 को मनीलाॅडरिंग एक्ट की धारा 5 (1) के तहत कारवाई करते हुए अपराजिता के 15,85,639 रूपये और विक्रमादित्य के 62,86,639 रूपये अटैच कर लिये । अटैचमैन्ट की इस कारवाई से आहत होकर इन दोनो ने ई डी की कारवाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए इस कारवाई को निरस्त करने और ई डी अधिनियम की धारा 5 को अंसवैधानिक करार देने की गुहार लगाई है। इनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अटैचमैन्ट के आदेश को यथावत जारी रखते हुए अटैचमैन्ट से जुडी अगली कारवाई पर रोक लगा दी है। यह पूरा प्रकरण इस समय प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में एक ऐसा मुद्दा बना हुआ है जिससे पूरा प्रदेश प्रभावित हो रहा है इस परिदृश्य में हर आदमी की नजर इस मुद्दे पर बनी हुई है और इसे समझने के लिये प्रयासरत है। क्योंकि यदि इस मामले में अपराजिता और विक्रमादित्य को वांच्छित राहत मिल जाती है। तो इसका असर सी बी आई और ई डी में वीरभद्र तथा अन्य के खिलाफ चल रहे मामलों पर सकारात्मक पड़ेगा यदि राहत न मिली तो नकारात्मक पडेगा यह तय है।
मनीलाॅडरिंग अधिनियम 2002 में आया था उस समय उसकी धारा 5 के तहत अटैचमैन्ट की कारवाई के लिये जो आवश्यक प्रावधान रखे गये थे उनके मुताबिक सी आर पी सी की धारा 173 के तहत मैजिस्ट्रेट के पास रिपोर्ट फाईल होना आवश्यक था। अपराजिता सिंह तथा विक्रमादित्य के खिलाफ ई डी की ऐसी कोई रिपोर्ट 173 सी आर पी सी के तहत मैजिस्ट्रेट के पास नहीं है। लेकिन इस अधिनियम की धारा 5 में चार जनवरी 2013 को अधिसूचित संशोधन के तहत 173 के तहत रिपोर्ट की अनिवार्यता नही रह गयी है In Section 5 of the principal Act, for Sub-section (1) the following sub-section shall be substituted, namely :-
(1) "Where the Director or any other officer not below the rank of Deputy Director authorised by the Director for the purposes of this section has reason to believe (the reason for such belief to be recorded in writing), on the basis of material in his possession, that-
(a)Any person is in possession of any proceeds of crime; and
(b)Such proceeds of crime are likely to be concealed, transferred or dealt with in any manner which may result in frustrating any proceeding relating to confiscation of such proceeds of crime under this Chapter,
he may, by order in writing provisionally attach such property for a period not exceeding one hundred and eighty days from the date of the order, in such manner as may be prescribed:
Provided that no such order of attachment shall be made unless, in relation to the scheduled offence, a report has been forwarded to a Magistrate under section 173 of the Code of Criminal Procedure, 1973, or a complaint has been filed by a person authorised to investigate the offence mentioned in that Schedule, before a Magistrate or court for taking cognizance of the scheduled offence, as the case may be, or a similar report or complaint has been made or filed under the corresponding law of any other country: Provided further that, notwithstanding anything contained in clause (b), any property of any person may be attached under this section if the Director or any other officer not below the rank of Deputy Director authorised by him for the purposes of this section has reason to believe (the reason for such belief to be recorded in writing ), on the basis of material in his possession, that if such property involved in money –laundering is not attached immediately under this Chapter the non- attachment of the property likely to frustrate any proceeding under this Act" अपराजिता और विक्रमादित्य ने अधिनियम की धारा 5 के 2002 के मूल प्रावधानो के अनुसार ई डी की कारवाई को चुनौती दी है। जिसका लाभ 2013 के संशोधन के मुताबिक मिलना संभव नही लगता । 2002 में प्रोविजनल अटैचमैन्ट की अधिकतम सीमा 90 दिनो की थी जिसे 2013 में बढ़ाकर 180 दिन कर दिया गया है। प्रोविजनल अटैचमैन्ट के बाद 30 दिन के भीतर ई डी की अपनी एजुकेटिंग अथारिटी के पास की रिपोर्ट प्रेषित करनी होती है जो हो चुकी है। अटैचमैन्ट के बाद पूरी जब्ती की कारवाई 180 दिनो के बाद अमल में लायी जाती है लेकिन इस मामले में ग्रेटर कैलाश में मई 2014 में प्रतिभा सिंह द्वारा खरीदी गयी संपति की अटैचमैन्ट होने से इस पूरे प्रकरण की गंभीरता और बढ़ जाती है। इस परिदृश्य में अटैचैन्ट का निरस्त हो पाना कठिन माना जा रहा है।
शिमला। शिमला के रिज स्थित की 17.50 करोड रूपये में रिपेयर किये जाने का अनुबन्ध 10 सिम्बर 2014 का हस्ताक्षरित हुआ है। आर टी आई के माध्यम से 27.2.16 को बाहर आये इस अनुबन्ध की शर्त संख्या 17 के अनुसार रिपेयर का काम दो वर्षो में पूर्ण होना है।
सितम्बर 2014 में हुए अनुबध के दो वर्ष सितम्बर 2016 में पूरे हो जायेगें। इसके मुताबिक केवल पांच माह का समय शेष बचा है। अनुबन्ध के मुताबिक इसमें 15 करोड़ का तो सिविल वर्क ही होना है। लेकिन अभी तक मौके पर कोई काम शुरू ही नहीं हुआ है इसमें बहुत सारी अनुमतियां प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला से आनी है। इन अनुमतियों की स्थिति इस समय क्या है इस पर अधिकारिक तौर पर कोई कुछ भी कहने से बच रहा है। ऐसे में पांच माह मे 17.50 करोड़ का काम कैस पूरा होगा अपने में ही कई सवाल खडे कर जाता है। इस चर्च की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोई भी तकनीकी जानकार यह मानने को तैयार नही है कि इसकी रिपेयर पर 17.50 करोड़ रूपये खर्च हो सकते है क्योंकि यह पूरा भवन कहीं से भी लेश मात्र भी क्षतिग्रस्त नहीं है।
इस चर्च का जिर्णोद्वार भारत सरकार के माध्यम से एशियन विकास बैक से लिये गये कर्ज से
किया जा रहा है। यह चर्च शहर की हैरिटेज संपतियों में शामिल है। हैरिटेज के तहत सारा निर्माण कार्य प्रदेश का पर्यटन विभाग करवा रहा है और लिये यू एस क्लब में पर्यटन विभाग को अतिरिक्त कार्यालय की सुविधा दी गयी है। पर्यटन विभाग स्वयं मुख्य मंत्री के पास है और उनके प्रधान सचिव अतिरक्त मुख्य सचिव वी सी फारखा के पास विभाग सचिव की जिम्मेदारी है। पर्यटन विकास के लिये प्रदेश में अलग से एक बोर्ड गठित है जिसके उपाध्यक्ष पूर्व पर्यटन मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया है । पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष वीरभद्र के विवस्त हरीश जनारथा है। यह सभी लोग पर्यटन विकास बोर्ड के सदस्य भी है। हैरिटेज संरक्षण के लिये हैरिटेज कमेटी भी गठित है। इस रिपेयर के लिये हस्ताक्षरित अनुबन्ध के अनुसार यह सारा काम हैरिटेज मानदण्डो के अनूरूप होना है। इस सबका अर्थ यह हो जाता है कि 17.50 करोड़ की रिपेयर का प्रारूप निश्चित तौर पर इन सबके हाथों से गुजरा है और इसके लिये सबकी अनुमति रही होगी । अब पांच माह में यह काम कैसे पूरा किया जाता है या इसमें समय और बढाया जाता है। यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन यह भी सवाल उठ रहा है कि 2014 में हस्ताक्षरित हुए अनुबन्ध पर अब तक कोई कारवाई क्यों नहीं हुई ? दूसरी ओर इस अनुबन्ध पर पर्यटन विभाग के साथ इण्डिया के कर्मचारियों/ पदाधिकारियों की ओर से हस्ताक्षरित किये गये है। स्मरणीय है कि चर्च आफ नार्थ इण्डिया का गठन छः चर्च सूमहों को एक संस्था के तहत लाने के लिये किया गया था। लेकिन सी एन आई के गठन के बाद इसके सदस्यों /पदाधिकारियों पर चर्च एंवम अन्य संपत्तियों के दुरूप्योग और उनको गल्त ढंग से बेचने आदि के आरोप जब सामने आने लगे तब कुछ लोगों ने सी एन आई के गठन को यह कहकर अदालत में चुनौती दे दी की यह संस्था षडयंत्र करके इन संपत्तियों को हडपने का प्रयास कर रही है। इसमें देश केे कई हिस्सों में सी एन आई के लोगों पर बने आपराधिक मामलों में सजा तक भी हो चुकी है। इसी सबको सामने रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सी एन आई के गठन को ही अवैध करार देते हुए उसे ऐसी संपत्तियों से तुरन्त प्रभाव से बेदखल करके यह संपत्तियां उन मूल संस्थाओं को वापिस कर दी है जिनके पास यह 1948 में भारत सरकार के फैसले के बाद कर दी थी। क्योंकि अग्रेंजी शासन काल चर्च और अन्य संपत्तियो की देख रेख की जिम्मेदारी सरकार के पास थीं लेकिन 1948 में ही भारत सरकार ने हिन्दु धार्मिक संस्थाओें की संपत्तियों की तर्ज पर इनकी जिम्मेदारी भी स्थानीय संस्थाओं को सौंप दी थी। हिमाचल में भी ऐसी संपत्तियों को लेकर बडी विवादित स्थित है। ऐसे में सी एन आई को लेकर आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी पर्यटन विभाग का सी एन आई के साथ अनुबन्ध साईन करना कई सवाल खडे करता है।
गर्ल चाइल्ड की बेहतरी, श्रम सुधारों में परिवर्तन, बद्दी तक मेट्रो कनेक्टिविटी है सीआईआई का 2016-17 का एजेेंडा-संजय खुराना
शिमला। कंफेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) हिमाचल प्रदेश स्टेट काउंसिल ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान वर्ष 2016-17 के लिए सीआईआई के एजेंडे का अनावरण किया। सीआईआई हिमाचल प्रदेश स्टेट काउंसिल के चेयरमैन संजय खुराना ने वर्ष 2016-17 के लिए सीआईआई की थीम बिल्डिंग कंपटीटिव हिमाचल की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सीआईआई हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का धन्यवाद देता है कि उन्होंने सीआईआई द्वारा मुख्यमंत्री स्टार्टअप स्कीम के सुझाव को हिमाचल प्रदेश के युवाओं के लिए हिमाचल प्रदेश के बजट में घोषित किया। उन्होंने कहा कि सीआईआई हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ काफी नजदीकी से कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि सीआईआई हिमाचल प्रदेश में इंक्यूबेशन सेंटर की शुरुआत के लिए भी अनुशंसा करेगा।
उन्होघ्ने कहा कि सीआईआी हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ काफी लंबे अरसे से कार्य कर रहा है और इस सीआईआई सरकार से श्रम सुधारों, इंडस्ट्री के लिए एग्जिट पालिसी, रिटेंशन पालिसी के साथ ही हिमाचल प्रदेश के लिए आईटी पालिसी और सोलर पालिसी के लिए अनुसंशा करेगी।
खुराना ने कहा कि इस वर्ष सीआईआई कई जिला प्रशासन, स्थानीय एनजीओ और अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों के साथ कार्य करेगा जिससे कि आर्थिक रूप से पिछड़े और बैकवर्ड क्लास को सीएसआर गतिविधियों के तहत लाभ दिया जा सके। उन्होंने कहा कि सीआईआई का विशेष जोर राज्य की गर्ल चाइल्ड को बढ़ावा देना और उनकी स्थिति को सुधारना है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सोलन और सिरमौर में पायलट प्रोजेक्ट लांच किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सीआईआई राज्य सरकार को बद्दी इंडस्ट्रियल एरिया के लिए मेट्रो कनेक्टिविटी का सुझाव भी दिया है।
शहरी विकास मंत्रालय द्वारा सीआईआई को धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजना पर सक्रिय रूप से काम करने का लक्ष्य दिया गया है। जिसके लिए सीआईआई अपने सभी संसाधनों और विशेषज्ञता के साथ जुटा है।
सीआईआई हिमाचल प्रदेश स्टेट काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र गुलेरिया ने कहा कि हमने यह सिफारिश भी की है किराज्य के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में मेट्रो कनेक्टिविटी इंट्रोड्यूस की जानी चाहिए। हमको उम्मीद है कि जल्द ही हमारे सुझावों पर प्रयास सफल होंगे। उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय और अन्य प्राकृतिक निधि का उपयोग करने केलिए सभी को समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित रहना चाहिए।