Thursday, 18 September 2025
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जंगी थोपन पवारी परियोजना रिलांयस को मिलने का रास्ता साफ


ब्रकेल के 2713 करोड़ का हर्जाना बसूलने का क्या होगा
क्या अदानी को 280 करोड़ लौटाना सरकार की जिम्मेदारी है

शिमला/शैल।वीरभद्र के इस शासनकाल में सरकार के सारे बडे़ बडे़ दावों के वाबजूद प्रदेश के पाॅवर प्रौजेक्टस में बडे़ निवेश का दावा अमली शक्ल नही ले पाया है। हांलाकि सरकार ने निवेशकों के पक्ष में अपनी हाईड्रल नीति में भी कई बड़े बदलाव किये है इन बदलावों के अतिरिक्त सरकार ने 960 मैगावाट के जंगी थोपन पवारी हाईडल प्रौजेक्ट को सितम्बर 2015 में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रचर को देने का फैसला लिया। इस फैसले के बाद इसी प्रौजेक्ट में अपफ्रन्ट प्रिमियम के नाम पर ब्रेकल -अदानी के जमा हुए 280 करोड़ को वापिस लौटाने का भी फैसला लिया। इस प्रौजेक्ट को लेकर रिलायंस 2009-10 से सर्वोच्च न्यायालय में गया हुआ था। क्योंकि उसे यह प्रौजेक्ट 2006-07 में वीरभद्र सरकार ने नही दिया था। उस समय यह प्रौजेक्ट नीदरलैण्ड की कंपनी बे्रकल को दिया गया था। लेकिन ब्रेकल यह प्रौजेक्ट शुरू नही कर पाया और किसी न किसी बहाने सरकार से समय में बढ़ौतरी हालिस करता रहा। ब्रेकल के इस आचरण को रिलायंस ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस चुनौती में अदालत के सामने ब्रेकल के सारे दावे एकदम गल्त साबित हुए। उच्च न्यायालय ने ब्रेकल को फ्राड करार देते हुए इस आवंटन को ही रद्द कर दिया। जब इस प्रोजैक्ट के लिये टैण्डर निविदायें आमन्त्रित की गयी थी तब रिलायंस दूसरे स्थान पर था। लेकिन आवंटन रद्द होने के बाद भी जब प्रोजैक्ट रिलायंस को नही दिया गया तब रिलायंस इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ले गया ।

रिलायंस के सर्वोच्च न्यायालय में होने के बीच ही प्रदेश के सियासी समीकरण बदल गये। स्मरणीय है कि ब्रेकल जब इस प्रौजेक्ट की अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा नही कर पाया था तब अदानी से 280 करोड़ कर्ज लेकर ब्रकेल ने 2008 में यह अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा किया था। लेकिन अदानी ब्रेकल कन्सरोटियम का विधिवत अधिकृत सदस्य नही था। इसलिए ब्रेकल को कर्ज देने वाले के अतिरिक्त अदानी की इस प्रोजैक्ट में और कोई हैसियत नही बन पायी। ब्रेकल को 280 करोड़ का कर्ज अदानी ने सरकार की जिम्मेदारी पर नही दिया था। कर्ज बे्रकल और अदानी का निजी मामला था। ब्रेकल के तय समय तक इस प्रोजैक्ट को पूरा न कर पाने के कारण जो नुकसान प्रदेश को हुआ है उसका आकलन 2713 करोड़ आंका गया है। यह 2713 करोड़ ब्रेकल से बसूल किया जाना था। इसके लिये पहले कदम के तौर पर उसके द्वारा जमा करवाया 280 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम जब्त किया जाना था। इसके लिये ब्रेकल को नोटिस तक जारी हो रहा था। लेकिन सियासी समीकरणों के बदलनेे के कारण न केवल 2713 करोड़ के हर्जाने का नोटिस देना ड्राप किया गया बल्कि ब्रेकल के नाम अदानी का 280 करोड़ का कर्ज लौटाने का भी प्रबन्ध कर दिया गया।
रिलायंस और अदानी दोनो प्रधान मंत्राी नरेन्द्र मोदी के चेहते उद्योगपति हैं। दोनो ने लोकसभा चुनावों में मोदी का किस हद तक साथ दिया है इसे पूरा देश जानता है। इस पृष्ठभूमि में रिलायंस और अदानी के हित आपस में जुड़ गये। यहां रिलायंस प्रोजैक्ट हासिल करने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया। ब्रेकल को अदालत ने फ्राड करार दे रखा है। ब्रेकल और अदानी वैध हिस्सेदार है नही। अदानी का इस तरह 280 करोड़ डूब रहा था। ऐसे में संयोवंश वीरभद्र-मोदी की सीबीआई और ईडी की जांच के शिकंजे में उलझ गये। स्थिति गंभीर बन गयी इसको भांपते हुए वीरभद्र के प्रबन्धकों ने अदानी अंबानी के सहारे मोदी तक पहुंचने का जुगाड़ भिडाया। इस जुगाड़ के प्रबन्धन में लगे वीरभद्र के एक अतिविश्वस्त अधिकारी की भूमिका तो बड़ी चर्चा तक का विषय बन गयी थी। इसी पृष्ठ भूमि में अन्ततः रिलायंस नेे सवोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस ली है। सरकार रिलायंस को यह प्रोजैक्ट देने की आॅफर भेज चुकी है जिसे उसने सिन्द्धात रूप में स्वीकार भी कर लिया है। रिलायंस को प्रौजेक्ट के लिये तो अपफ्रन्ट प्रिमियम देना ही है। अब इसी प्रिमियम को अदानी को वापिस दिया जाना है बदले में वीरभद्र को सीबीआई और ईडी से राहत दिलाने की शर्त है।
लेकिन अब ईडी अटैचमैन्ट आर्डर जारी करने के बाद एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर चुका है। सीबीआई ने गिरफ्तारी की रोक हठाने की याचिका दे रखी है। ईडी ने आनन्द चौहान पर जांच में सहयोग न करने का आरोप लगाया हुआ है। ऐसे में वीरभद्र का मामला इस समय ऐसा पेचीदा बन गया है जहां पर प्रत्यक्षतः राहत पहुंचा पाना बहुत आसान नही होगा। दूसरी ओर ब्रेकल को अदालत द्वारा एकदम आधार हीन पाये जाने के बाद उससे 2713 करोड़ के नुकसान के नोटिस को ड्राप करके 280 करोड़ वापिस लौटाने का जोखिम इस समय वीरभद्र का प्रशासनिक तन्त्रा ले पायेगा इसको लेकर भी सन्देह है।

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