शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार एशियन विकास बैंक से कर्ज लेकर प्रदेश में हैरिटेज पर्यटन के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने जा रही है। इस विकास के लिये 256.99 करोड़ का कर्ज लिया गया है। इसके लिये बिलासपुर में मार्कण्डेय और नैना देवी मन्दिर, ऊना में चिन्तपुरनी और हरोली, कांगडा में पौंग डैम, रनसेर तथा कारू टापू नगरोटा सूरियां धमेटा, ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, ज्वालाजी, धर्मशाला- मकलोड़गंज, मसरूर और नगरोटा बगंवा, कुल्लु में मनाली का आर्ट एण्ड क्राफ्ट केन्द्र बड़ाग्रां, चम्बा में हैरिटेज, सकिर्ट, मण्डी के ऐतिहासिक भवन और शिमला में नालदेहरा का ईको पार्क,
रामपूर बुशैहर तथा आस पास के मन्दिर तथा शिमला शहर में विभिन्न कार्य चिन्हित किये गये हैं। इस विकास के साथ हैरिटेज को जोड दिये जाने के कारण यह पूरा कार्य पर्यटन विभाग को ही सौंप दिया गया है। पर्यटन विभाग में इसके लिये एक प्रौजेक्ट डायरैक्टर अलग से लगाया गया है। जिसे अब लोक निमार्ण विभाग के सेवानिवृत ईइनसी एसपी नेगी भी सहयोग दे रहे हैं। यह सारा कार्य अप्रैल 2014 में शुरू हुआ था और 2017 तक पूर्ण किया जाना है। एशियन विकास बैंक से लिये गये कर्ज में केन्द्र सरकार भी भागीदार है। इस कार्य को अंजाम दे रहे ठेकेदारों पर आयत होने वाले सारे कर भी राज्य सरकार ही अदा करेगी।
शिमला के रिज स्थित चर्च की 17.50 करोड रूपये में रिपेयर किये जाने का अनुबन्ध 10 सितम्बर 2014 को हस्ताक्षरित हुआ था। आर टी आई के माध्यम से 27-2-16 को बाहर आये इस अनुबन्ध की शर्त संख्या 17 के अनुसार रिपेयर का काम दो वर्षो में पूर्ण होना है। सितम्बर 2014 में हुए अनुबंध के दो वर्ष सितम्बर 2016 में पूरे हो गये हैं। अनुबन्ध के मुताबिक इसमें 15 करोड़ का तो सिविल वर्क ही होना है। लेकिन अभी तक मौके पर कोई काम शुरू ही नहीं हुआ है इसमें बहुत सारी अनुमतियां प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला से आनी है। इन अनुमतियों की स्थिति इस समय क्या है इस पर अधिकारिक तौर पर कोई कुछ भी कहने से बच रहा है।
इस चर्च का जिर्णोद्वार भारत सरकार के माध्यम से एशियन विकास बैंक से लिये गये कर्ज से किया जा रहा है। यह चर्च शहर की हैरिटेज संपतियों में शामिल है। हरिटेज के तहत सारा निर्माण कार्य प्रदेश का पर्यटन विभाग करवा रहा है और इसके लिये यू एस क्लब में पर्यटन विभाग को अतिरिक्त कार्यालय की सुविधा दी गयी है। पर्यटन विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। पर्यटन विकास के लिये प्रदेश में अलग से एक बोर्ड गठित है जिसके उपाध्यक्ष पूर्व पर्यटन मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया रहे थे। पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष वीरभद्र के विश्वस्त हरीश जनारथा थे। यह सभी लोग पर्यटन विकास बोर्ड के सदस्य भी हैं। हैरिटेज संरक्षण के लिये हैरिटेज कमेटी भी गठित है। इस रिपेयर के लिये हस्ताक्षरित अनुबन्ध के अनुसार यह सारा काम हैरिटेज मानदण्डों के अनूरूप होना है। इस सबका अर्थ यह हो जाता है कि 17.50 करोड़ की रिपेयर का प्रारूप निश्चित तौर पर इन सबके हाथों से गुजरा है और इसके लिये सबकी अनुमति रही होगी।
पर्यटन के विकास के लिये एक मुश्त शुरू होने वाली इस बड़ी योजना की कार्यशैली पर नगर निगम के तत्कालीन महापौर संजय चौहान ने एशियन विकास बैंक के मिशन डायरेैक्टर को 27.6.2016 को पत्र लिखकर गंभीर शंकाए व्यक्त की हैं। बैंक के मिशन डायरैक्टर ने शिमला में इस योजना को अंजाम दे रहे प्रौजेक्ट डायरैक्टर मनोज शर्मा को 6 जुलाई को पत्र भेजकर नगर निगम के मेयर की शंकाओं से अवगत भी करवा दिया है। लेकिन इस पत्राचार का अभी तक कोई परिणाम सामने नही आया है। स्मरणीय है कि शिमला के लिये सौन्दर्यकरण की इस योजना का प्रारूप मूल रूप से नगर निगम प्रबन्धन ने ही तैयार किया था और इस पर निगम के हाॅऊस से भी स्वीकृति करवा ली गई थी लेकिन काम को अंजाम देने की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को दे दी गयी है। शिमला के सौन्दर्यकरण के लिये कहां पर क्या काम करवाया जाना है तय यह हुआ था। उसकी मूल जानकारी शिमला नगर निगम को ही है। संभवतः इसी जानकारी के कारण आज इस कार्य की गुणवत्ता और इस पर हो रहे निवेश पर एक साथ सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
नगर निगम द्वारा पारित प्रारूप के अनुसार शिमला के सौन्दर्यकरण के तहत 13 मद्दें तय की गयी थी जिनमें से अब मद्द संख्या 11 एसकेलेटरज और मद्द संख्या 12 यूटिलिटी सर्वसिज को ड्राप कर दिया गया है। शिमला में हो रहे कार्यो में कुछ प्रमुख कार्य हैं हैरिटैज के तहत आने वाले दोनो चर्चों की मुरम्मत, मालरोड़ की मैटलिंग टारिंग, पांच रेन शैल्टरों का निमार्ण और नगर निगम के मुख्यालय टाऊन हाल की रेस्टोरेशन। इन कार्यो पर किये जाने वाले निवेश का आकलन भी तीन किश्तो में किया गया है। इन कार्यों को अजांम देने के लिये आठ कन्सलटैन्ट भी नियुक्त किये गये हैं। जिन्हें 1.4.2014 से 31.3.2015 तक फीस के रूप में 4,29,21,353 रूपयेे अदा किये गये हैं।
चर्चों की मुरम्मत को लिये ADB LOAN-No. 3223 IND, IDIPT- H.P. किश्त तीन में 12.40 करोड़ के निवेश का आकलन है। लेकिन इसी मुरम्मत को लेकर 27.2.16 को एक प्रकाश सैमुअल ने जो आर टी आई के तहत सूचना हासिल की है उसमें यह आकलन 17.52 करोड़ कहा गया है। इस कार्य के लिये पर्यटन विभाग चर्च कमेटी के बीच हुये अनुबन्ध के मुताबिक सितम्बर 2016 तक यह कार्य पूरा होना था। अभी तक यह काम शुरू भी नही हुआ है और इसकी लागत में पांच करोड की बढ़ौतरी हो गयी है। पांच रेन शैल्टरों की निमार्ण लागत का आकलन 3 करोड़ कहा जा रहा है। मालरोड की रैस्टोरेशन का आकलन ADB LOAN NO 2676-IND किश्त एक में 23.73 करोड़ है और किश्त तीन में यह आकलन 33.89 करोड़ दिखाया गया है। टाऊन हाल की मुरम्मत का आकलन किश्त एक के मुताबिक 8.02 करोड है। टाऊन हाल के निमार्ण का काम एक अभी राम इन्फ्र्रा प्रौजेक्ट प्राईवेट लि. को दिया गया था। अभी राम इन्फ्र्रा ने इस काम के लिये शिमला स्थित वर्मा ट्रैडिंग कंपनी से लकडी की खरीद की। टाऊन हाल का काम इस कंपनी को सितम्बर 2014 में अवार्ड हुआ और इसने जनवरी 2016 में वर्मा ट्रैडिंग कंपनी से लकडी की खरीद की। कुल 13,74,929 रूपये की लकडी इस काम के लिये खरीदी गयी और इस पैसे की वर्मा ट्रैडिंग को अदायगी भी नही की गयी है। वर्मा ट्रैडिंग ने यह शिकायत भी नगर निगम के मेयर से की है। उसे यह जानकारी ही नहीं है यह काम नगर निगम की बजाये मुख्यमन्त्री का पर्यटन विभाग करवा रहा है।
शिमला के सौन्दर्यकरण का यह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। बल्कि चर्चों की रिपेयर का काम तो अभी तक शुरू ही नहीं हो पाया है। इस काम के लिये चर्च कमेटी के साथ जो अनुबन्ध हुआ उसके मुताबिक दो वर्ष के भीतर यह काम पूरा होना था। इस अनुबन्ध की अवधि सितम्बर 2016 में समाप्त हो चुकी है और नया अनुबन्ध अभी तक हुआ नहीं है। ऐसे में अब यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि क्या चर्चों की रिपेयर होगी भी या नहीं।
शिमला/शैल। भाजपा की प्रदेश से लेकर केन्द्र तक की सारी लीडरशीप इस विधानसभा चुनाव में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर चल रही है। भाजपा के हर छोटे-बडे नेता की जनसभा और पत्रकार वार्ताएं वीरभद्र के भ्रष्टाचार से शुरू हो रही है। लेकिन इसी के साथ यह भी कहते हैं कि वीरभद्र के खिलाफ उनकी सरकार में नही बनाये गये बल्कि यूपीए सरकार के समय से चले आ रहे है। परन्तु वीरभद्र इन मामलों को जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर का एक षडयंत्र करार देते रहे है। इस षडयंत्र के लिये वह तर्क देते हैं कि यूपीए शासनकाल में सीबीआई ने जो प्रारम्भिक जांच की थी उसमें
उन्हे क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन भाजपा सरकार ने इस क्लीन चिट को नजर अन्दाज करके उनके खिलाफ नये सिरे से जांच करवाई की। जिसके परिणामस्वरूप यह मामले खड़े हुए हैं। इस परिदृश्य में यदि वीरभद्र के मामले की पड़ताल की जाये तो यह सामने आता है कि सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला खड़ा किया है। सीबीआई इस मामले में अपनी जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में डाल चुकी है। इस मामले में दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कर चुके हैं परन्तु दोनों अदालतें उनके आग्रह को अस्वीकार कर चुकी है। सीबीआई द्वारा बनाये गये आय से अधिक मामले को ईडी मनीलाड्रिंग मानकर जांच कर रही है। मनीलाॅड्रिंग प्रकरण में ईडी दो अैटचमैन्ट आदेश जारी करके परिवार की चल-अचल संपत्ति को अैटच कर चुकी है। इस मामले में पहले अटैचमैन्ट आदेश के बाद ईडी वीरभद्र के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान को गिरफ्तार कर चुकी है। आनन्द चौहान जून 2016 से हिरासत में है। आनन्द की गिरफ्तारी पहले जारी हुए अटैचमैन्ट आर्डर में ईडी ने कहा कि इस मामले में वक्कामुल्ला को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई और इसे शीघ्र ही पूरी करके अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। यह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के प्रंसग को लेकर ईडी अभी तक अपनी शेष जांच पूरी नही कर सका है। इसी कारण से अनुपूरक चालान दायर नही हो पाया है और कोई गिरफ्तारी भी नही हो पायी है। लेकिन इसी के कारण आनन्द चौहान के चालान पर भी आगे कारवाई नही बढ़ पायी है। ईडी में दर्ज मामले को भी रद्द करवाने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लगा चुके हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय इस गुहार को अस्वीकार करके ईडी को हर तरह की कारवाई के लिये स्वतन्त्र कर चुका है। लेकिन ईडी की ओर से अगली कारवाई नही की जा रही है। ईडी के इस आचरण पर केन्द्रिय मन्त्री अरूण जेटली और रविशंकर प्रसाद तथा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा तक कुछ नहीं कह पाये हैं।
यही नहीं वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव और सरकार के मीडिया सलाहकार सुभाष आहलूवालिया के मामले में शिमला स्थित ईडी कार्यालय ने उनको नोटिस जारी करके तलब किया था। तब शिमला मे तैनात ईडी के सहायक निदेशक का वीरभद्र सरकार ने अचानक उनका डैपुटेशन कैन्सिल करने की कारवाई शुरू कर दी थी और अन्त में उस सहायक निदेशक को हिमाचल पुिलस में वापिस आना पड़ा था। उस समय भाजपा ने सहायक निदेशक को सरकार द्वारा वापिस बुलाये जाने के मामले पर भाजपा ने प्रदेश विधानसभा में जमकर हंगामा किया था। तीन दिन तक सदन की कारवाई को बाधित रखा था। आहलूवालिया के खिलाफ गंभीर आरोपों की शिकायत ईडी के पास पहुंची हुई थी। करीब सौ करोड़ की मनीलाॅड्रिग के आरोप उस शिकायत मे थे, लेकिन ईडी के किसी भी नोटिस पर आहलूवालिया के ऐजैन्सी में पहुंचने की खबर नही है। उस शिकायत पर ईडी में क्या कारवाई हुई इसकी आज तक किसी को जानकारी नही है। लेकिन इस मुद्दे पर सदन को तीन दिन तक बाधित रखने वाली प्रदेश भाजपा और ईडी भी आज तक एकदम चुप है। जो भाजपा वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बनाकर उछाल रही है। वह आज आहलूवालिया के मामले पर चुप क्यों है। भाजपा की चुप्पी से ज्यादा तो ईडी की खामोशी सवालों में है। बल्कि अब तो यह चर्चा उठती जा रही है कि हिमाचल की एचपीसीए को लेकर जो आपराधिक मामले प्रदेश भाजपा नेताओं के खिलाफ आज अदालत तक पहुंच चुके है और इन नेताओं को भी ज़मानते लेनी पड़ी है उसमें एक मामलें में आहलूवालिया समेत वीरभद्र कार्यालय के दो अधिकारी भी चालान में खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामत़द है। चर्चा है कि इनके खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामज़द होने के कारण ही एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामले आगे नही बढे हैं और बदले में ईडी इनके मामलों में चुप होकर बैठी है।
स्मरणीय है कि सीबी आई के दो पूर्व निदेशकों के खिलाफ जांच चल रही है एक निदेशक के खिलाफ तो यह आरोप है कि उसे ई डी हिरासत में चल रहे मीट विक्रेता मोईन कुरैशी के माध्यम से कुछ लोगों के मामलों को दबाने के लिये करोड़ो की रिश्वत मिली है। मोईन कुरैशी के प्रदेश के किन लोगों के साथ क्या रिश्ते हैं इसे बहुत लोग जानते हैं। इसीलिये जब वीरभद्र सिंह और सुभाष आहलूवालिया के मामलें में ईडी तो चुप बैठी हुई है। भाजपा आहलूवालिया के मामले को नजरअन्दाज कर रही है और वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बना रही है तो यह स्वभाविक सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा हैं वैसे तो भाजपा के लिये एक परेशानी वाला यह सवाल भी खड़ा है कि जहां वीरभद्र ज़मानत पर हैं वहीं पर धूमल, अनुराग, राजीव बिन्दल और वीरेन्द्र कश्यप आदि भाजपा के नेता भी ज़मानत पर हैं। इस परिदृश्य में भाजपा द्वारा वीरभद्र के मामले को रोज उठाना जबकि ईडी एकदम शान्त बैठी है इससे स्वभाविक रूप से यह संकेत उभरता है कि भाजपा केन्द्र की एजैन्सीयों के नाम से अपने राजनीतिक विरोधीयों को भ्रष्टाचारी प्रचारित करके राजनीतिक ब्लैकमेलिंग कर रही है। क्योंकि सीबीआई का चालान तो ट्रायल कोर्ट में पहुंच चुका है। और उसका फैसला आने में लम्बा समय लगेगा। फैसले से पहलेे ही इसमे फतवा देना शुद्ध राजनीति है। ईडीे की तो अभी जांच भी पूरी नही हुई है यह ईडी ने आनन्द चौहान की गिरफ्तारी में स्वयं स्वीकार किया है। बल्कि इसके बाद ही चर्चा उठी थी कि ईडी वीरभद्र के खिलाफ कोई ठोस मामला बना नही पा रही है। उल्टे ईडी की फज़ीहत हो रही है कि सहअभियुक्त तो जेल में है और मुख्यअभियुक्त बाहर है। ईडी वित्त मन्त्रालय के अधीन है। और इसीलिये वित्त मन्त्री अरूण जेटली एक कानूनविद होने के बावजूद इस संद्धर्भ में पूछे गये सवालों का केई स्पष्ट उत्तर नही दे पाये हैं।
शिमला/शैल। बहुचर्चित और विवादित कोटखाई क्षेत्र के गुड़िया रेप और हत्या कांड में शिमला पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये कथित अभियुक्तों के खिलाफ 90 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट में चालान दायर न हो पाने के कारण इन अभियुक्तों को अदालत से ज़मानत मिल चुकी है। स्मरणीय है कि इसी कांड में गिरफ्तार हुए एक अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाने पर इसी गुड़िया मामले की जांच के लिये गठित हुई पूरी एसआईटी टीम भी हिरासत में चल रही है। इस टीम की ज़मानत याचिका को अब फिर कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है। स्मरणीय है कि जब यह कांड घटा था और इस पर मीडिया में चर्चा उठी थी तब इस चर्चा का स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले को अपने पास ले लिया था। उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लिये जाने के बाद इसकी जांच के लिये सरकार नेे एक एसआईअी आईजी ज़हूर जैदी की अध्यक्षता में गठित कर दी थी। लेकिन इस एसआईटी की कार्यप्रणाली को लेकर लोगों में रोष और अविश्वास फैल गया है। जनता ने गुड़िया को इन्साफ दिलाने के लिये एक गुड़िया न्याय मंच का गठन कर लिया। इस मंच केे बैनर तले जो जनाक्रोश फूटा उससे प्रदेश दहल उठा था। बल्कि देश के कई भागों में भी इसको लेकर धरना-प्रदर्शन हुए। लोगों ने ठियोग और कोटखाई पुलिस थानों के बाहर इतना उग्र प्रदर्शन किया कि पुलिस थाने को आग तक लगा दी गयी। इस आग में थाने के मालखाने से रिकार्ड लाकर लोगों ने उसे आग की भेंट कर दिया।
जनता मे फैले जनाक्रोश का संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय और सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। जब सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया तब गुड़िया के रेप और हत्या को लेकर छः लोगों को एसआईटी गिरफ्रतार कर चुकी थीं लेकिन इस गिरफ्तारी को लेकर यह आरोप लगे थे कि इसमें असली अपराधीयों को छोड़कर बेगुनाहों को पकड़ा गया है। इसी आरोप पर जनाक्रोश भड़का था और इसी बीच पुलिस कस्टडी में एक अभियुक्त की हत्या हो गयी। सीबीआई के सामने दो मामले खड़े थे। एक था गुड़िया के रेप और हत्या का मामला, दूसरा था पुलिस कस्टडी में कथित अभियुक्त सूरज की हत्या। सूरज की हत्या को एसआईटी ने अभियुक्तों के बीच हुए झगड़े का परिणाम कहा था। लेकिन जनता ने इस हत्या को भी असली अपराधियों को बचाने का प्रयास करार दिया था। सीबीआई ने भी अन्ततः इस हत्या के लिये एसआईटी टीम को जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया।
प्रदेश उच्च न्यायालय हर पखवाड़ेे के बाद सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर रहा है। हर बार स्टेटस रिपोर्ट दायर होने से पहले समाचार छपते रहे हैं कि सीबीआई को बड़ी सफलता हाथ लग गयी है, बड़ा खुलासा होने वाला है। लेकिन हर स्टेटस रिपोर्ट पर उच्च न्यायालय की नाराज़गी सामने आती रही है। गुडिया प्रकरण में जिन लोगों को पकड़ा गया था सीबीआई उनका नार्को टैस्ट भी करवा चुकी है और इस टैस्ट के बाद भी कोई ठोस प्रमाण पकडे़ गये अभियुक्तो के खिलाफ जब सीबीआई नहीं जुटा पायी तो 90 दिन के भीतर चालान दायर नही हो पाया और परिणामस्वरूप इनको ज़मानत मिल गयी।
अब सीबीआई को उच्च न्यायालय ने 30 नवम्बर तक एसआईटी के खिलाफ चालान दायर करने को कहा है और गुड़िया मामले में दिसम्बर में फिर रिपोर्ट दायर करने के निर्देश दिये है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने एसआईटी के सदस्यों के खिलाफ चालान दायर करने के लिये सरकार से अभियोजन की अनुमति मांग रखी है। कानून के जानकारों के मुताबिक कस्टोडियल डैथ में सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सरकार की अनुमति की आवश्यकता नही होती है। कस्टोडियल डैथ में सीधे सवाल है कि या तो सूरज की अभियुक्तों के आपसी झगड़े में मौत हो गयी है, या फिर उसे नीयतन किसी को बचाने के लियेे मारा गया है। यदि उसकी मौत आपसी झगडे़ में हुई है तो उसके लिये पूरी एसआईटी को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता। यदि सूरज को नीयतन किसी को बचाने के लिये मारा गया है तो यह सच्चाई बाहर आने में समय नही लगना चाहिये। लेकिन अभी तक कुछ भी सामने नही आ पाया है, बल्कि अब यह सन्देह होता जा रहा है कि सीबीआई के हाथ अब तक कुछ भी ठोस नही लगा है। एसआईटी की गिरफ्तारी को भी 90 दिन होने वाले है। यदि 90 दिन के भीतर यह चालान दायर नही हो पाया तो इन लोगों को भी अदालत द्वारा ज़मानत देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जायेगा।
गुडिया प्रकरण से एक समय प्रदेश की राजनीति में भुचाल खड़ा हो गया था। विपक्ष के हाथ एक बड़ा मुद्दा लग गया था। भाजपा का हर नेता इस पर वीरभद्र सरकार को घेर रहा था लेकिन अब सीबीआई की असफलता से भाजपा के लिये इस मुद्दे का उठाना संभव नही रह गया है। बल्कि पुलिस थाना को आग लगाने और रिकार्ड जलाने के लिये जिन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं और अब तक कारवाई नही हुई है, क्या भाजपा सत्ता में आने पर इन लोगों के खिलाफ कारवाई करेगी या नही यह सवाल अब भाजपा से पूछा जाने लगा है।
शिमला/शैल। मुख्यन्त्री वीरभद्र सिंह के बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण विधान क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। इस चुनाव के लिये उन्होने जो शपथ पत्र दायर किया है उसमें अपनी चल- अचल संपति 84 करोड़ दिखा रखी है। यह 84 करोड़ संपत्ति दिखाने पर भाजपा ने वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य से सवाल पूछा है कि इतनी संपत्ति पांच वर्षों में उन्होने कैसे अर्जित कर ली। फिर इसी शपथ पत्र में विक्रमादित्य ने वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से 84 लाख का कर्ज लिया भी दिखाया है। इस कर्ज पर भी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. पात्रा ने सवाल पूछा है कि जब विक्रमादित्य के पिता मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनकी माता पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह के पास करोड़ो रूपया कैश- इन- हैंड था तो उन्हे यह कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। डा. पात्रा ने विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला की कंपनीयों केे व्यापारिक रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
विक्रमादित्य की संपति पर यह सवाल इसलिये उठाये गये कि जब वीरभद्र सिंह ने 17.10.12 को विधानसभा चुनाव लडते हुए जो शपथ पत्र दायर किया था उसें विक्रमादित्य को अपनेे पर आश्रित दिखाया था। उस समय विक्रमादित्य के नाम करीब 1.5 करोड़ की संपति दिखायी गयी है। 2012 तक विक्रमादित्य कोई आयकर रिर्टन भी दायर नही करते थे। उसके बाद विक्रमादित्य ने अपनी कंपनी के नाम महरौली में जो फार्म हाऊस गड्डे परिवार से 1.20 करोड में खरीदा था उसके लिये उन्हें 90 लाख वीरभद्र सिंह ने दिये थे। 30 लाख उन्होने अपने साधनों से दिये थे। लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच में यह खुलासा हुआ है कि यह तीस लाख भी दो कंपनीयों से 15- 15 लाख के चैकों के माध्यम से आया है। इन कंपनीयों की वैद्धता पर भी ईडी ने सवाल उठाये हैं और इसी कारण से फार्म हाऊस की अटैचमैन्ट केे आदेश हुए है।
यही नही ईडी के अटैचमैन्ट आदेश में हुए खुलासे के मुताबिक 19 नवम्बर 2011 से 25 नवम्बर के बीच वक्कामुल्ला की तीन कंपनीयों से विक्रमादित्य के स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के खाते में 25.11.11 को दो करोड़ रूपये आते हैं और फिर 10.01.12. को विक्रमादित्य की कंपनीे मैप्पल डैस्टीनेशन से 50 लाख वक्कामुल्ला को दे दिये जाते है। 11.1.12 को इसी कंपनी से वक्कामुल्ला की कंपनी तारिणी सुगर को 1.50 करोड़ दे दिये जाते हैं। वीरभद्र से विक्रमादित्य को 90 लाख 2.8.11 को मिलते है और विक्रमादित्य 4.8.11 को 45-45 लाख सुनीता गड्डे और पिचेश्वर गड्डे के खातों में जमा करवाते हैं। लेकिन इसके बाद नवम्बर 2011 में पहले वक्कामुल्ला दो करोड़ विक्रमादित्य को देते हैं फिर 10 जनवरी को 2012 को विक्रमादित्य की कंपनी दो करोड़ वक्कामुल्ला और उसकी कंपनी को देते हैं। संभवतः इसी लेन देन के आधार पर विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला के रिश्तों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। इसी कारण से विक्रमादित्य की संपति के 84 करोड़ हो जाने पर सवाल उठ रहे है।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने इन चुनावों के लिये अभी तक यह घोषित नही किया है कि यदि उसे चुनावों में बहुमत हासिल होता है तो उसका मुख्यमन्त्री कौन होगा। भाजपा ने जो सूची अपने उम्मीदवारों की जारी की है उसमें 21 नये चेहरों को शामिल किया गया है। चार वर्तमान विधायकों बी. के. चौहान, अनिल धीमान, रिखी राम कौण्डल और गोबिन्द शर्मा को टिकट नही दिया गया है। कांग्रेस से आये अनिल शर्मा को टिकट दे दिया गया है। अनिल के साथ ही उनके पिता पर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम और बेटेे आश्रय शर्मा को भी भाजपा में शामिल कर लिया गया है। पंडित
सुखराम को दूरसंचार घोटालेे में सजा हो चुकी है और
उन्हेे सर्वोच्च न्यायालय से बढ़ती आयु और बिमारी के आधार पर ज़मानत मिली हुई है यह सभी जानते हैं। भाजपा ने पूर्व सांसद सुरश चन्देल और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष खीमी राम को टिकट नही दिया है। 21 नये चेहरों को चुनावों मैदान में उतारा गया है पूर्व सांसद राजन सुशान्त को पार्टी में शामिल नही किया गया है। ऐसे में सुरेश चन्देल, राजन सुशान्त और पंडित सुखराम को लेकर भाजपा के तीन अलग- अलग स्टैण्ड भी सामने आ गये हैं। क्योंकि जिस अनिल शर्मा के खिलाफ भाजपा अपने ही आरोप पत्र में आरोप लगा चुकी है उसे टिकट देने के बाद सुरेश चन्देल को इन्कार करना और सुशान्त को पार्टी में शामिल तक नही करना भाजपा के नीतिगत आन्तरिक विरोधाभासों का एक प्रमाण बन जाता है जो भाजपा के अन्य दलों से भिन्न होने के दावों को एकदम नकार देता है। इस परिदृश्य में पार्टी के कुछ हल्कों में रोष और विद्रोह का उभरना स्वभाविक है। यह विद्रोह उभर चुका है इसे भाजपा कितना शांत कर पाती है इसका पता तो नामांकन वापिस लेने के अन्तिम दिन के बाद ही लग पायेगा। बहरहाल इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।
पार्टी ने यह चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़नेे का दावा किया है। मुख्यमन्त्री के लियेे जो दो नाम पवन राणा और अजय जम्वाल एक अरसेे तक सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाये रहे हैं उन्हे पार्टी ने चुनाव में उतारा ही नही है इसका अर्थ है कि चुने गये विधायकों में से हीे किसी को मुख्यमन्त्री पद से नवाज़ा जायेगा। लेकिन टिकट वितरण के दौरान जिस तरह का ध्रुवीकरण उभरा है उसमें केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा को लेकर भी यह संकेत उभरे हैं कि वह प्रदेश के अगलेे मुख्यमन्त्री हो सकते हैं। लेकिन अभी नड्डा का जो एक साक्षात्कार छपा है उसमें नड्डा ने यह कहा है कि मुख्यमन्त्री उस व्यक्ति को बनाया जायेगा जो कि अगले पन्द्रह वर्षों तक इस जिम्मेदारी को निभायेगा। नड्डा इस गणित में स्वयं पूरी तरह फिट बैठतेे हंै इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन इस साक्षात्कार के साथ ही नड्डा का जय राम ठाकुर के चुनाव क्षेत्र से भी एक ब्यान आया है। जय राम के पक्ष में बोलते हुए नड्डा ने जंजैहली की जनता को स्पष्ट कहा है कि चुनाव जीतने के बाद उन्हेे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। जयराम धूमल मन्त्रीमण्डल में मन्त्री तो पहले रह ही चुकेे हैं। ऐसे में अब बड़ी जिम्मेदारी सौपने के संकेत से साफ सन्देश जाता है कि जय राम को अगला मुख्यमन्त्री बनाया जाने का फैसला भाजपा हाईकमान लगभग ले चुकी है। जय राम नड्डा के साक्षात्कार में छपे मानक पर भी पूरे उतरते हैं। फिर नड्डा स्वयं इस समय हाईकमान का एक हिस्सा हैं। चुनाव प्रचार में नड्डा को पार्टी पूरे संसाधनों से लैसे करने जा रही है। एक चैपर हर समय उनकेे लिये उपलब्ध रहेगा। इससे यह और स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा को बहुमत मिलनेे की सूरत में नड्डा और जयराम में से ही कोई अगला मुख्यमन्त्री होगा।
नड्डा का ब्यान और उनका सामने आया साक्षात्कार पार्टी के अन्य लोगों पर कितना और क्या असर डालता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह तय है कि उनका यह ब्यान एक चर्चा का मुद्दा जरूर बन जायेगा। वैसे भाजपा के लिये जो स्थितियां नगर निगम शिमला के चुनावों से पूर्व थी वह निगम चुनावों के परिणाम आने के बाद निश्चित रूप से बदली हैं। फिर अभी पंजाब के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा करीब दो लाख मतो से हारी है। हार के इतने बडे़ अन्तर से स्पष्ट हो जाता है कि अब मोदी के दावों पर जनता में विश्वास की कमी पनपती जा रही है। फिर भाजपा अब सुखराम के पार्टी में शामिल होने से वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर खुलकर हमला नही कर पायेगी। क्योंकि सुखराम ने जो अपनी सफाई में यह कहा है कि उनके यहां मिला पैसा कांग्रेस पार्टी का था और वीरभद्र ने सीताराम केसरी के माध्यम से उनके घर रखवाया यह अब गले नही उतरता है। क्योंकि सुखराम को तीनों मामलों में सजा हो चुकी है और इस सजा को दिल्ली उच्च न्यायालय कनर्फम कर चुका है। फिर सुखराम जो आज कह रहे हैं वह उन्होनेे इन मामलों की सुनवाई के दौरान किसी भी अदालत के सामने नही कहा है। यही नही जब विकास कांग्रेस भंग होनेे के बाद वह कांगे्रस में शामिल हुए थे तो जिस कांग्रेस नेे उनके खिलाफ इतना बड़ा षडयंत्र रचा उसमें वह किस नैतिकता केे आधार पर शामिल हुए थे। आज इतने अरसे बाद उन्हे यह क्यों याद आया। सुखराम के इस तर्क से तो जो आरोप वह वीरभद्र पर ब्लैक मेलिंग का लगा रहे हैं वह स्वयं उसी में घिर जाते हैं। क्योंकि इतना समय चुप रह कर क्या वह सत्ता का लाभ नही ले रहे थे।