Friday, 19 December 2025
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कर्मचारी नेता विनोद का निलम्बन के बाद गुजारा भत्ता भी बन्द

शिमला/शैल। प्रदेश कर्मचारी परिसंघ के अध्यक्ष एवं बागवानी विभाग में अधीक्षक के पद पर कार्यरत विनोद कुमार को आर्थिक और मानसिक तौर पर प्रताडित करने का आरोप लगाते हुए कर्मचारी नेताओं ने कहा है कि पिछले तीन महीनों से अनुचित तरीके से परिसंघ अध्यक्ष की सेवाओं को निलंबित किए जाने और उन  के वेतन और गुजारा भत्ता रोके जाने वाली कार्रवाई  प्रदेश सरकार और उसके भ्रष्ट अधिकारियों की प्रशासनिक भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। परिसंघ नेताओं संजय मोगू, कैलाश चौहान, एस.एस. टैगोर ने जारी ब्यान में कहा है कि वर्तमान सरकार में भ्रष्टाचारियों का संरक्षण और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वालों को इस तरह से प्रताड़ित किया जाना वर्तमान सरकार की राजनीतिक और प्रशासनिक असफलता का खुला सबूत है। जहां वित्तीय अनियमितताओं में संलिप्त भ्रष्ट कृत्य करने वाले नियमानुसार दण्डित होने चाहिए वहां इसके विरूद्ध आवाज उठाने वाले अनुचित और गैर-कानूनी तरीके से अपमानित और प्रताड़ित किए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने परिसंघ अध्यक्ष को तबादलों और निलंबन जैसी कार्रवाईयों से प्रताड़ित किया वहीं सरकार ने अब उनके वेतन और गुजारा भत्ता भी बन्द कर दिया है ।
परिसंघ नेताओं ने विभाग के अधिकारियों पर मै. चेल्सी फूडस, प्लाॅट न.46, इन्डस्ट्रीयल एरिया, संसारपुर कांगड़ा से 5.00 लाख की घूस लेने का आरोप लगाते हुए कहा है कि विभाग के अधिकारियों ने इस कम्पनी को नवम्बर 2015 में पहले 1,94,00,000/- रूपये की अनुदान राशि की जगह 1,99,00,000/- की राशि जारी की, उसमें से 5.00 लाख रू. बडे़ अधिकारियों ने वापिस अपनी जेबों मे डाले। दूसरा घोटाला इन अधिकारियों के कार्यकाल में 41.00 लाख रू. का हुआ जिसमें बागवानी मन्त्राी और प्रधान सचिव (उद्यान) ने अधिकारियों को बचाया तथा यह 41.00 लाख रू. का पूरा घोटाला एक छोटे कर्मचारी के सिर पर डाल दिया । यह दोनों मामलें परिसंघ अध्यक्ष ने बतौर अपनी सरकारी सेवा में शाखा अधीक्षक के समय उजागर करवायें हैं। इसके अतिरिक्त परिसंघ अध्यक्ष की सेवाओं को निलम्बन करने के बाद उन पर विभाग द्वारा तय आरोपों में वर्ष 2016 में एक कम्पनी को अनुदान राशि जारी करने की एवज़ में 2.00 करोड़ रू. कम्पनी से डील का जिक्र किया है जबकि एक कम्पनी को 14.00 करोड़ की सबसिडी जारी करने के एवज़ में 2.00 करोड़ की डील का मामला तत्कालिन निदेशक उद्यान विभाग वर्तमान निदेशक जो उस समय एम.आई.डी.एच के परियोजना निदेशक एवं कार्यकारी निदेशक  और प्रधान सचिव इन तीनों के बीच लेन-देन के बंटवारे का विवाद है, जिसकी सी.बी.आई. जांच होनी चाहिए। चूंकि यह मामला पूर्व में प्रदेश मीडिया की सुर्खियों में रहा है और परिसंघ इन अधिकारियों की सूची सहित इन सभी मामलों को आने वाली सरकार के समक्ष रखेगा। परिसंघ के नेताओं ने कहा है कि भ्रष्टाचार के इन मामलों पर पर्दा डालने के लिए और लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाने के लिए वर्तमान भ्रष्ट तन्त्र ने परिसंघ अध्यक्ष के वेतन और गुजारा भत्तों को भी रोक दिया है, जिसके विरोध में आचार-संहिता उठने के बाद प्रदेश के कर्मचारी नेता बागवानी निदेशक और प्रधान सचिव (उद्यान) का घेराव किया जायेगा।
वैसे कानून के मुताबिक निलम्बन की सूरत में गुजारा भत्ता संबधित कर्मचारी/अधिकारी को दिया जाना उसका अधिकार है। उद्यान विभाग द्वारा कर्मचारी नेता विनोद कुमार का गुजारा भत्ता भी बन्द कर दिया जाना यह प्रमाणित करता है कि इस कर्मचारी द्वारा लगाये जा रहेआरोपों में कहीं कोई गंभीरता अवश्य है क्योंकि गुजारा भत्ता बन्द करना कानूनन अपराध है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद डिस्ट्रिक जज धर्मशाला अब तक नही कर पाये मकलोड़गंज बस अड्डा प्रकरण की जांच

शिमला/शैल। इस बस अड्डा प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने 16.5.2016 को जज धर्मशाला को सौंपी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह जांच चार माह में पूरी करके रिपोर्ट सौपने के निर्देश दिय थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के परिवहन विभाग को भी निर्देश दिये थे कि वह इस प्रकरण से जुड़ा सारा रिकार्ड जज को तुरन्त प्रभाव से सौंपे और इस जांच में पूरा सहयोग करे। इन निर्देशों का पालन करते हुए जज को सारा रिकार्ड तुरन्त सौंप दिया गया था। लेकिन सूत्रों के मुताबिक जिला जज धर्मशाला अब तक इस प्रकरण की जांच पूरीे करके सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट नही सौंप पाये है। ऐसे में यह चर्चा उठना स्वभाविक ही है कि जब न्यायिक अधिकारी ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना न कर पाये तो फिर अन्य प्रशासन से क्या उम्मीद की जा सकती है। यह चर्चा एनजीटी द्वारा अभी हाल ही में प्रदेश भर में हुए अवैध निमार्णो के कारण पर्यावरण को पहुंचे नुकसान के संद्धर्भ में दिये गये फैसले से उठी है।
स्मरणीय है कि धर्मशाला के मकलोड़गंज में 2004 से बीओटी के तहत बन रहे बस स्टैण्ड और चार मंजिला होटल तथा शापिंग काम्लैक्स के निर्माण पर फिर अनिश्चितता की तलवार लटक गयी है। स्मरणीय है कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है जिसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अनुमतियां न लिये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी के समक्ष एक अतुल भारद्वाज ने शिकायत डाली थी। इस शिकायत की जांच करके सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में रखी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निर्माण पर कानूनी प्रावधानों की गंभीर उल्लंघना के आरोप लगाते हुए सारै संवद्ध प्रशासनिक तन्त्र इसमें मिली भगत पायी गयी थी। इसमें प्रदेश सरकार पर एक करोड़ रूपये का जुर्माना भी लगाया गया था। सरकार के साथ ही निर्माण कार्य कर रही कंपनी मै. प्रंशाति सूर्य को ब्लैक लिस्ट करने और जुर्माना लगाने की संस्तुति की गयी थी।
सीईसी की इस रिपोर्ट को मै. प्रशांति सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया। इस फैसले में मै. प्रशांति सूर्य को पर्यावरण संरक्षण के एनजीटी अधिनियम की धारा 15 और 17 के तहत 15 लाख का जुर्माना लगाया गया। यह जुर्माना प्रदेश के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में जमा करवाना होगा। इसी के साथ प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग तथा बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथाॅरिटी पर भी दस लाख का जुर्माना लगाया गया। हिमाचल सरकार पर पांच लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का अलग से जुर्माना लगा है। इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को भी दो सप्ताह के भीतर गिराये जाने के निर्देश दिये गये हैं। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को इस पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने पारित किये हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की बस अड्डा प्राधिकरण ने फिर अपील के माध्यम से चुनौति दी। इस अपील की सनुवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस संद्धर्भ में जो जांच प्रदेश के मुख्य सचिव को करने की जिम्मेदारी दी थी अब जांच जिला कांगड़ा के सत्र न्यायधीश को करने की जिम्मेदारी दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers      responsible for the           construction of the    bus stand / hotel /accompanying complex and to submit a   report to this Court as to        the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a       suitable presenting officer to assist him      in the matter. We further direct that        the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take      the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his / her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek                  any clarification or    direction considered        necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report  before this Court within a period of four months from the date a copy of this     order is received by him. 

सैशन जज धर्मशाला ने इस जांच के संद्धर्भ में अभी तक अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को नहीं सौंपी है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय और सीईसी ने जिस विस्तार से इस मामले में हुई धांधलीयों को उजागर करते हुए सभी संवद्ध पक्षों को कड़ी फटकार और जुर्माना लगाया है उसे देखते हुए इसमें संलिप्त रहे सारे अधिकारियोें की व्यक्तिगत जिम्मेदारीयां तय होना निश्चित माना जा रहा है। क्योंकि इसमें हुई अनियमितताओं का संज्ञान तो शीर्ष अदालत पहले ही ले चुकी है। अब इसमें केवल यह तय होना ही शेष है कि किस अधिकारी के स्तर पर क्या कोताही हुई है।

प्रदेश सरकार 38 वर्षों में नही बना पायी स्थायी Development Plan

1979 में जारी हुई थी अन्तरिम प्लान
अन्तरिम प्लान में हो चुके हैं 18 संशोधन
 प्रदेश का 97.42% क्षेत्र है लैण्ड स्लाईड के
दायरे में
अवैध निमार्णों को नियमित करने के 5143
आवेदन हैं सरकार के पास लंबित
नौ बार आ चुकी हैं रिटैन्शन पालिसियां


शिमला/शैल। भारत सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश का 97.42% भौगोलिक क्षेत्र लैण्डस्लाइड के जोन में है। प्रदेश के राजस्व विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में flash floods, Cloud burst  और land slides से 2016 के मानसून में 863.97 करोड़ का नुकसान हो चुका है। इनमें 40 लोगों की जान का और 2283 करोड़ का स्ट्रक्चरल नुकसान हो चुका है। 2017 में किन्नौर में भूस्खलन के 5, प्लैश फ्लड और बादल फटने के तीन, चटट्टाने गिरने के तीन हादसे हो चुके हैं। जिनमें 5 लोगों की मौत हुई है। 31 अगस्त 2017 तक मण्डी में लैण्ड स्लाईड के 48 मामले घट चुके हैं। शिमला में लैण्ड स्लाईड के 4 भवन गिरने के 2, बादल फटने के 2 और भूकंप का 1 मामला घटा है। कुल्लु में लैण्ड स्लाईड के 5 भूकम्प का 1 और प्लैश फ्लड के 34 हादसे हुए हैं। बिलासपुर में लैण्ड स्लाईड के 4 और फ्लैश फ्लड का 1 मामला घटा है। सोलन के बद्दी नालागढ़ और कण्डाघाट में 2016 और 2017 में लैण्ड स्लाईड के 31 हादसे हो चुके हैं। सरकार के अपने इन आंकड़ो से अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में यह आपदा कितनी भयानक हो सकती है। मण्डी के कोटरूपी हादसे में 50 लोगों की तो जान ही जा चुकी है। इस परिदृश्य में यह चिन्ता और चिन्तन का एक गंभीर मामला बनकर सामने हैं। लेकिन क्या शासन और प्रशासन इस बारे में ईमानदारी से गंभीर है? यह सवाल एनजीटी द्वारा 16 नवम्बर को दिये फैंसले के बाद हरेक जुबान पर है। बल्कि इस फैंसले का विरोध करने के लिये शिमला में करीब 100 भवन मालिकों ने एक बैठक करके एक जन कल्याण समिति का गठन तक कर लिया है और एक बड़ा आन्दोलन इस फैसले के खिलाफ खड़ा करने की घोषणा की है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर एनजीटी को ऐसा फैैसला सुनाने की नौबत क्यों आई? सरकार की ओर से इस संद्धर्भ में कहां और क्या-क्या चूक हुई है। स्मरणीय है कि हिमाचल प्रदेश में नगर एवम् ग्राम नियोजन अधिनियम 1977 में पारित हो गया था और इस एक्ट की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये टीसीपी विभाग की स्थापना कर दी गयी थी। निदेशक टीसीपी को इस एक्ट के तहत न्याययिक शक्तियां तक हासिल है। इस एक्ट का उद्देश्य पूरे प्रदेश के शहरी ग्रामीण क्षेत्रों का सुनियोजित विकास सुनिश्चित करना था। इसके लिये एक स्थायी योजना लाई जानी थी। लेकिन विभाग मार्च 1979 में केवल एक अन्तरिम प्लान ही जारी कर पाया। अब तक 18 संशोधन लाये जा चुके हैं  The Development Plan is a document, which can transform the future of a city by impacting its development positively in the years to come depending upon the infrastructural resources existing or which could be augmented. Unfortunately, this did not happen in case of Shimla. This city, famously known as the ‘queen of hills’ has been surviving on the crutches of Interim Development Plan since 1979. As many as 18 amendments in interim development plan of 1979 have been carried out which shows adhocism, anarchy and arbitrariness in functioning and decision  making. Therefore, all        successive governments have faulted in their duty of beholding of public trust for short-term gains.  जबकि एक्ट की धारा  16 (c) One more aspect which warrants attention is the provision of Section 16(c) of the HP Town and Country Planning Act, 1977. The provisions of this section impose restriction on the change use of land or on carrying out of any development except for agriculture purposes.  Sub-section  ‘c’ of Section 16 imposes a restriction on registration of any deed or document of transfer of any sub-division of land by way of sale or otherwise, unless the sub-division of land is duly approved by the Director, subject to the rules framed. 

 यदि इस प्रावधान की अनुपालना सुनिश्चित की गयी होती तोे जिस तरह के निर्माण संजौली मे खड़े हो गये हैं वह खड़े न हो पाते। यही नही टीसीपी के प्रावधानों की अनुपालना सुनिश्चित करने की बजाये सरकार अवैधताओं को नियमित करने के लिये रिटैन्शन पाॅलिसियां लाती चली गयी और अब तक नौ पाॅलिसियां आ चुकी हैं। बल्कि 2016 में एक अध्यादेश लाकर 1977 के अधिनियम की मूल भावना को ही कमजोर करने का प्रयास किया गया और इस अध्यादेश को तो राज्यपाल की स्वीकृति भी मिल गयी थी। जबकि 11 अगस्त 2000 को सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके यह कहा है कि That all private as well as government construction are totally  banned within the core area of Shimla planned area permitting only construction on old lines with prior approval of the state Govt. लेकिन इस अधिसूचना के बाद 22 अगस्त 2002, 5 जून 2003, 28 नवम्बर 2011, 13 अगस्त 2015 और 28 जून 2016 को अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी करके पूरे एक्ट को ही एक तरह से पंगू बना दिया है। सरकारी नीतियों की इसी अस्थिरता को अन्ततः 2014 में एनजीटी में चुनौती दी गयी । एनजीटी में याचिका आनेे पर जब अदालत ने इस पर सरकार और उसके संवद्ध अदारों से जवाब तलब किया तब यह सामने आया कि शिमला में 5143 लोगों ने अपने निमार्णो को नियमित किये जाने के लिये आवदेन कर रखा है। इनमें 3342 निमार्णों में तो स्वीकृत प्लान से कुछ हटकर निर्माण किये जाने को नियमित किये जाने के लिये आवेदन किया गया है। लेकिन 180 निमार्ण तो पूरी तरह अवैध हैं जिनमें पहले कोई प्लान स्वीकृति के लिये सौंपा ही नही गया है। बल्कि यह आंकड़ा भी लोगों के अपने आवदेनों पर आधारित है। लेकिन संवद्ध विभागों को अपने तौर पर अवैध निर्माणो की कोई जानकारी ही नही है क्योंकि इन विभागों ने ऐसी कोई स्टडी ही नही करवा रखी है। इस परिदृश्य में यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि सरकारों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते पर्यावरण और कालान्तर में आम आदमी को होने वाले नुकसान की ओर कभी कोई ध्यान नही दिया है। ऐसे में क्या सरकार एनजीटी के इस आदेश को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का साहस जुटा पायेगी?

कांग्रेस और भाजपा दोनो ही कर रहे सरकार बनाने के दावे

शिमला/शैल। चुनाव के नतीजे 18 दिसम्बर को आनेे है और 18 दिसम्बर तक का यह समय चुनाव लडने वाले हर उम्मीदवार के लिये एक कड़ी परीक्षा का समय है क्योंकि इस दौरान उसे अपने समर्थकों और मतदाताओं के बीच रहना और इस नाते उसे हर समय यह दावा बनायेे रखना है कि वह जीत रहा है। राजनीतिक दलोें को तो यह दावा सार्वजनिक रूप से मीडिया के माध्यम से प्रदेश की जनता के बीच रखना है। इसी राजनीतिक अनिवार्यता के चलतेे सत्तारूढ़ कांग्रेस और सत्ता पर कब्जे के लिये तैयार बैठी भाजपा ने सरकार बनानेे के दावों की रस्म अदायगी को अंजाम देना शुरू कर दिया है। मतदान के बाद भाजपा अपनी आकलन बैठक कर चुकी है और कांग्रेस की यह बैठक 28 को होने जा रही है।
चुनाव टिकटों के आवंटन के बाद दोनों दलों में बगावत देखने को मिली है। टिकट केे कई प्रबल दावेदारों ने टिकट न मिलने पर बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा है ऐसेे विद्रोहीयों की संख्या दोनो दलों में लगभग बराबर रही है। ऐसे विद्रोहीयों और उनके समर्थकों को दोनों दल निष्कासित भी कर चुके हैं। लेकिन निष्कासन के बाद भी दोनो दलों को भीतरघात का सामना भी करना पड़ा है। भीतरघात एक ऐसा कृत्य है जिसे प्रमाणित कर पाना बहुत आसान नही होता है। भाजपा की हमीरपुर में हुई बैठक में करीब हर ब्लाॅक से भी भीतरघात की शिकायतें आने की चर्चा है। इन शिकायतों पर विचार-विर्मश के बाद इन्हे सांसद  वीरेन्द्र कश्यप की अध्यक्षता वाली अनुशासन समिति को अगली कारवाई के लिये भेजनेे का फैसला लिया गया है। सूत्रों का यह भी दावा है कि इस बैठक में पार्टी ने जो आन्तरिक सर्वे करवाया है उसकेे मुताबिक पार्टी को 38 से 42 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इस सर्वे में बिलासपुर की चार में सेे तीन सीटें जीतने का दावा किया गया है। इसमें पार्टी झण्डूता में जीत को लेकर आश्वस्त नही है। झण्डूता में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है क्योंकि यहां केवल दो ही उम्मीदवार मैदान में थे। इस नाते यहां पर पार्टी की विचारधारा और चुनावी रणनीति दोनो की स्वीकारयता की कसौटी परख दाव पर है। फिर यहां एक दशक से भाजपा का कब्जा भी चला आ रहा है। उम्मीदवार भी पहले उम्मीदवार से किसी कदर कम नही था। ऐसे में यदि पार्टी अपने ही आन्तरिक आंकलन में इस सीट को लेकर आश्वस्त नही है तो पार्टी के सारे आंकलनों पर स्वयं ही एक प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
फिर हर ब्लाॅक से भीतरघात की शिकायतों का आना भी इसी ओर संकेत करता है कि पार्टी को अपने ही लोगों ने बडे पैमाने पर नुकसान पंहुचाया है। सूत्रों की माने तो कुछ बडे नेताओं ने दूसरे बडे नेताओं को हटवाने के लिये एक दूसरे के विरोधीयों की धन से भी मदद की है। माना जा रहा है कि इस तरह के भीतरघात से पार्टी को निश्चित रूप से नुकसान पहुंचा है क्योंकि जब बडे नेता ही इस तरह की गतिविधियों कोे अपना अपरोक्ष समर्थन देंगे तो उससे नुकसान तो अवश्य पंहुचेगा। चर्चा है कि जब तक पार्टी ने धूमल को नेता घोषित नही किया था तब तक इस तरह केे भीतरघात की संभावनाएं बहुत कम थी क्योंकि तब तक सामूहिक नेतृत्व के तहत ही यह चुनाव लडे जाने की बात चल रही थी। लेकिन जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्राी जेपी नड्डा का जंजैहली में जय राम ठाकुर को लेकर यह ब्यान आ गया कि चुनाव के बाद उन्हे एक बडी जिम्मेदारी दी जायेगी, इस ब्यान के साथ ही नड्डा का एक साक्षात्कार छप गया जिसमें यह कहा गया कि ऐसा मुख्यमन्त्री दिया जायेगा जो आगे पन्द्रह वर्षों तक नेतृत्व दे पायेगा। इस साक्षात्कार के सामनेे आने के बाद स्वभाविक रूप से पार्टी के भीतरी समीकरणों में बदलाव सामने आने लगे। इसी केे साथ चुनाव अभियान की जो भ्रष्टाचार केन्द्रित रणनीति अपनाई गयी थी उस पर हर पत्रकार वार्ता में नेताओं को कडे सवालों का सामना करना पड़ा। पंडित सुखराम और उनकेे परिवार को भाजपा में शामिल करके कांग्रेस के टूटने की जो उम्मीद की थी वह भी सफल नही हो पायी। उल्टे सुखराम का अपना भ्रष्टाचार भाजपा के गले की फांस बन गया। हर रोज भाजपा को इस पर सफाई देने की नौबत आ गयी। इस परिदृश्य में जब पूरे हालात की पुनः समीक्षा की गयी तब धूमल को नेता घोषित करने के अतिरिक्त पार्टी केे पास कोई विकल्प नही रह गया था। लेकिन कुछ लोगों को धूमल का नेता घोषित होना पसन्द नही आया है। बल्कि कई जगह तो भीतरघात के तार सीधे इन लोगों से जुड़े हुए माने जा रहे हैं। चुनाव परिणामों के बाद इस संद्धर्भ में भाजपा के अन्दर काफी कुछ रोचक देखने को मिलेगा यह तय है।
इसी तर्ज पर कांग्रेस के अन्दर भी बडे पैमाने पर भीतरघात होने की चर्चा बाहर आ रही है। इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकांश विद्रोही तो सीधे- सीधे वीरभद्र सिंह के साथ जुड़े हुए माने जा रहे हैं। पार्टी ने चुनाव आंकलन के लिये 28 को बैठक बुलाई है। इस बैठक में भीतरघात की कितनी शिकायतें प्रदेश भर से आती है और उन पर क्या कारवाई की जाती है इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही सामने आयेगा। लेकिन इस दौरान पार्टी के कुछ हल्कों में वीरभद्र के ईडी मामले को लेकर भी चर्चाएं चल पड़ी हैं। क्योंकि 2012 में वीरभद्र ने चुनाव में जोे शपथ पत्र सौपा था उसे सीबीआई ने अपनी जांच में झूठा पाया है। सीबीआई इस तथ्य कोे दिल्ली उच्च न्यायालय के सामनेे रख चुकी है। उच्च न्यायालय ने इस शपथपत्र को चुनाव आयोग को अगली कारवाई के लिये भेजने की सिफारिश 31.3.17 को की थी। वीरभद्र ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय खरिज कर चुका है। अब वीरभद्र के विरोधी इस कानूनी कमजोरी का चुनाव परिणामों के बाद लाभ उठाने की रणनीति बना रहे हैं। माना जा रहा है कि चुनाव परिणामों के बाद वीरभद्र के लिये स्थितियां सुखद रहनेे वाली नहीं है।

एनजीटी के आदेशों से सरकार की रिटैन्शन पाॅलिसी सवालों में आदेशों को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बन रही रणनीति

शिमला/शैल। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश के सारे "Green forest and core areas''  में हर तरह के निमार्ण पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। यही नही राष्ट्रीय उच्च मार्गो के तीन मीटर के दायरे में भी यह रोक लगा दी है। प्रदेश में हुए अन्धा धुन्ध निमार्ण पर सरकार की प्रताड़ना करते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा है कि "If  such unplanned    and indiscriminate development is permitted, there will be irreparatable loss and damage to the environment, ecology and natural resources on the one hand and inevitable disaster on the other'' ट्रिब्यूनल ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के पहाड़ को काटने या वन क्षेत्र को नुकसान का दोषी पाया जाता है तो हर दोष के लिये उस पर पांच लाख का जुर्माना लगाया जायेगा। नये निर्माणों पर ट्रिब्यूनल ने कहा है कि

"Beyond the core, green /forest area and the areas falling under the authorities of the Shimla Planning Area, the construction may be permitted strictly in accordance with the provisions of the Town and Country Planning Act. Development Plan and the Municipal laws in force. Even in these areas, construction will not be permitted beyond two storeys plus attic floor."
However, if any construction particularly public utilities (buildings like hospitals, schools and offices of essential services but would definitely not include commercial, private builders and any such allied buildings) are proposed to be constructed beyond two storeyes plus attic floor then the plans for approval or obtaining NOC shall be submitted to the authorities concerned having jurisdiction over the area in question." 

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये निदेशक टीसीपी की अध्यक्षता में एक कमेटीे का भी गठन किया है। इस कमेटी के अन्य सदस्यों में सचिव शहरी विकास विभाग, निदेशक वाड़िया इन्स्टीच्यूट आॅफ हिमालय जियालोजी राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन के अधिकारी और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के सदस्य सचिव शामिल हैं। यह कमेटी सरकार को This committee shall also advise the state of Himachal Pradesh for regulating traffic on all roads, declaring prohibited zones        for vehicular traffic, preventing and controlling pollution and for management    of  municipal solid      waste in Shimla. The recommendation of this committee should be carried out by the state government and all its departments as well as local authorities without default and delay. ट्रिब्यूनल ने यह आदेश योगेन्द्र मोहन सेन गुप्ता और शीला मल्होत्रा की याचिका पर सुनाये हंै। ट्रिब्यूनल ने प्रदेश के टीसीपी और प्रदूशण नियन्त्रण बोर्ड के 20 सदस्यों के खिलाफ कारवाई करने की भी अनुशंसा की है।
एनजीटी के इन आदेशों से प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में हड़कंप की स्थिति पैदा हो गयी है क्योंकि राजधानी शिमला में अवैध निर्माण के हजारों मामलें हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि यह अवैध निर्माण अपरोक्ष में राजनीतिक संरक्षण के चलते हुए है। क्योंकि इन्हें नियमित करने के लिये सरकार नौ बार रिटैन्शन पाॅलिसियां ला चुकी है। प्रदेश उच्च न्यायालय भी इन निर्माण पर कई बार तल्ख टिप्पणीयां कर चुकी है। एनजीटी के इन आदेशों के बाद नगर निगम शिमला के भी कईे पार्षद इन्हे उच्च न्यायालय में चुनौती देने का फैसला लेने का विचार बना रहे हैं। इन आदेशों की अनुपालना करना सरकार के लिये भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
इन आदेशों के बाद नये निमार्णों के लिये बहुत सारी कठिनाईयां पैदा होने की आशंका हो गयी है। क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में निमार्ण नही हो सकेगा जिनकी ढलान 35% से अधिक होगी। इन आदेशों के बाद स्मार्ट सिटी की सारी परियोजना का प्रारूप भी अब नये सिरे से बनाने की आवश्यकता आ खड़ी होगी। क्योंकि स्मार्ट सिटी के नाम पर बहुत सारेे ऐसे कार्य प्रायोजित है जिनकी अनुमति इन आदेशों के तहत मिल पाना संभव नही होगा।

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