शिमला/शैल। चुनाव के नतीजे 18 दिसम्बर को आनेे है और 18 दिसम्बर तक का यह समय चुनाव लडने वाले हर उम्मीदवार के लिये एक कड़ी परीक्षा का समय है क्योंकि इस दौरान उसे अपने समर्थकों और मतदाताओं के बीच रहना और इस नाते उसे हर समय यह दावा बनायेे रखना है कि वह जीत रहा है। राजनीतिक दलोें को तो यह दावा सार्वजनिक रूप से मीडिया के माध्यम से प्रदेश की जनता के बीच रखना है। इसी राजनीतिक अनिवार्यता के चलतेे सत्तारूढ़ कांग्रेस और सत्ता पर कब्जे के लिये तैयार बैठी भाजपा ने सरकार बनानेे के दावों की रस्म अदायगी को अंजाम देना शुरू कर दिया है। मतदान के बाद भाजपा अपनी आकलन बैठक कर चुकी है और कांग्रेस की यह बैठक 28 को होने जा रही है।
चुनाव टिकटों के आवंटन के बाद दोनों दलों में बगावत देखने को मिली है। टिकट केे कई प्रबल दावेदारों ने टिकट न मिलने पर बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा है ऐसेे विद्रोहीयों की संख्या दोनो दलों में लगभग बराबर रही है। ऐसे विद्रोहीयों और उनके समर्थकों को दोनों दल निष्कासित भी कर चुके हैं। लेकिन निष्कासन के बाद भी दोनो दलों को भीतरघात का सामना भी करना पड़ा है। भीतरघात एक ऐसा कृत्य है जिसे प्रमाणित कर पाना बहुत आसान नही होता है। भाजपा की हमीरपुर में हुई बैठक में करीब हर ब्लाॅक से भी भीतरघात की शिकायतें आने की चर्चा है। इन शिकायतों पर विचार-विर्मश के बाद इन्हे सांसद वीरेन्द्र कश्यप की अध्यक्षता वाली अनुशासन समिति को अगली कारवाई के लिये भेजनेे का फैसला लिया गया है। सूत्रों का यह भी दावा है कि इस बैठक में पार्टी ने जो आन्तरिक सर्वे करवाया है उसकेे मुताबिक पार्टी को 38 से 42 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इस सर्वे में बिलासपुर की चार में सेे तीन सीटें जीतने का दावा किया गया है। इसमें पार्टी झण्डूता में जीत को लेकर आश्वस्त नही है। झण्डूता में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है क्योंकि यहां केवल दो ही उम्मीदवार मैदान में थे। इस नाते यहां पर पार्टी की विचारधारा और चुनावी रणनीति दोनो की स्वीकारयता की कसौटी परख दाव पर है। फिर यहां एक दशक से भाजपा का कब्जा भी चला आ रहा है। उम्मीदवार भी पहले उम्मीदवार से किसी कदर कम नही था। ऐसे में यदि पार्टी अपने ही आन्तरिक आंकलन में इस सीट को लेकर आश्वस्त नही है तो पार्टी के सारे आंकलनों पर स्वयं ही एक प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
फिर हर ब्लाॅक से भीतरघात की शिकायतों का आना भी इसी ओर संकेत करता है कि पार्टी को अपने ही लोगों ने बडे पैमाने पर नुकसान पंहुचाया है। सूत्रों की माने तो कुछ बडे नेताओं ने दूसरे बडे नेताओं को हटवाने के लिये एक दूसरे के विरोधीयों की धन से भी मदद की है। माना जा रहा है कि इस तरह के भीतरघात से पार्टी को निश्चित रूप से नुकसान पहुंचा है क्योंकि जब बडे नेता ही इस तरह की गतिविधियों कोे अपना अपरोक्ष समर्थन देंगे तो उससे नुकसान तो अवश्य पंहुचेगा। चर्चा है कि जब तक पार्टी ने धूमल को नेता घोषित नही किया था तब तक इस तरह केे भीतरघात की संभावनाएं बहुत कम थी क्योंकि तब तक सामूहिक नेतृत्व के तहत ही यह चुनाव लडे जाने की बात चल रही थी। लेकिन जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्राी जेपी नड्डा का जंजैहली में जय राम ठाकुर को लेकर यह ब्यान आ गया कि चुनाव के बाद उन्हे एक बडी जिम्मेदारी दी जायेगी, इस ब्यान के साथ ही नड्डा का एक साक्षात्कार छप गया जिसमें यह कहा गया कि ऐसा मुख्यमन्त्री दिया जायेगा जो आगे पन्द्रह वर्षों तक नेतृत्व दे पायेगा। इस साक्षात्कार के सामनेे आने के बाद स्वभाविक रूप से पार्टी के भीतरी समीकरणों में बदलाव सामने आने लगे। इसी केे साथ चुनाव अभियान की जो भ्रष्टाचार केन्द्रित रणनीति अपनाई गयी थी उस पर हर पत्रकार वार्ता में नेताओं को कडे सवालों का सामना करना पड़ा। पंडित सुखराम और उनकेे परिवार को भाजपा में शामिल करके कांग्रेस के टूटने की जो उम्मीद की थी वह भी सफल नही हो पायी। उल्टे सुखराम का अपना भ्रष्टाचार भाजपा के गले की फांस बन गया। हर रोज भाजपा को इस पर सफाई देने की नौबत आ गयी। इस परिदृश्य में जब पूरे हालात की पुनः समीक्षा की गयी तब धूमल को नेता घोषित करने के अतिरिक्त पार्टी केे पास कोई विकल्प नही रह गया था। लेकिन कुछ लोगों को धूमल का नेता घोषित होना पसन्द नही आया है। बल्कि कई जगह तो भीतरघात के तार सीधे इन लोगों से जुड़े हुए माने जा रहे हैं। चुनाव परिणामों के बाद इस संद्धर्भ में भाजपा के अन्दर काफी कुछ रोचक देखने को मिलेगा यह तय है।
इसी तर्ज पर कांग्रेस के अन्दर भी बडे पैमाने पर भीतरघात होने की चर्चा बाहर आ रही है। इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकांश विद्रोही तो सीधे- सीधे वीरभद्र सिंह के साथ जुड़े हुए माने जा रहे हैं। पार्टी ने चुनाव आंकलन के लिये 28 को बैठक बुलाई है। इस बैठक में भीतरघात की कितनी शिकायतें प्रदेश भर से आती है और उन पर क्या कारवाई की जाती है इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही सामने आयेगा। लेकिन इस दौरान पार्टी के कुछ हल्कों में वीरभद्र के ईडी मामले को लेकर भी चर्चाएं चल पड़ी हैं। क्योंकि 2012 में वीरभद्र ने चुनाव में जोे शपथ पत्र सौपा था उसे सीबीआई ने अपनी जांच में झूठा पाया है। सीबीआई इस तथ्य कोे दिल्ली उच्च न्यायालय के सामनेे रख चुकी है। उच्च न्यायालय ने इस शपथपत्र को चुनाव आयोग को अगली कारवाई के लिये भेजने की सिफारिश 31.3.17 को की थी। वीरभद्र ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय खरिज कर चुका है। अब वीरभद्र के विरोधी इस कानूनी कमजोरी का चुनाव परिणामों के बाद लाभ उठाने की रणनीति बना रहे हैं। माना जा रहा है कि चुनाव परिणामों के बाद वीरभद्र के लिये स्थितियां सुखद रहनेे वाली नहीं है।